यमराज : Yamraj by Ajgar
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Description
यमराज : Yamraj by Ajgar
Rakesh Pathak
प्रस्तुत उपन्यास के सभी पात्र एवं घटनायें काल्पनिक हैं। किसी जीवित अथवा मृत व्यक्ति से इनका कतई कोई सम्बन्ध नहीं है। समानता संयोग से हो सकती है। उपन्यास का उद्देश्य मात्र मनोरंजन है। प्रस्तुत उपन्यास में दिए गए हिंसक दृश्यों, धूम्रपान, मधपान अथवा किसी अन्य मादक पदार्थों के सेवन का प्रकाशक या लेखक कत्तई समर्थन नहीं करते। इस प्रकार के दृश्य पाठकों को इन कृत्यों को प्रेरित करने के लिए नहीं बल्कि कथानक को वास्तविक रूप में दर्शाने के लिए दिए गए हैं। पाठकों से अनुरोध है की इन कृत्यों वे दुर्व्यसनों को दूर ही रखें। यह उपन्यास मात्र 18 + की आयु के लिए ही प्रकाशित किया गया है। उपन्यासब आगे पड़ने से पाठक अपनी सहमति दर्ज कर रहा है की वह 18 + है।
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यमराज
अजगर
कर्नल बशीर अहमद अपने विशाल बंगले के एक कक्ष में गहरी निन्द में सोया हुआ था। बंगले में सन्नाटा छाया था। यहां दो नौकर थे, जो बंगले में ही पिछवाड़े की ओर बने कमरे में सो रहे थे। कर्नल का खूंखार शिकारी कुत्ता जिम्मी बंगले के कम्पाउण्ड में इधर–उधर चक्कर लगाते हुए गुर्रा रहा था। बंगले के गेट पर कुर्सी लगाकर बैठा सैनिक गार्ड अपनी राइफल बगल में रखे, निन्द की झपकियों के बीच डूब–उतरा रहा था। कर्नल के बगल वाले कमरे में नताशा बेड पर लेटी कोई जासूसी उपन्यास पढ़ रही थी।
रात के एक बजे थे। सिविल लाइन कैन्टोन्मेन्ट का वह पूरा क्षेत्र गहरे सन्नाटे में डूबा हुआ था। यह एक सैनिक क्षेत्र था और रात के साढ़े ग्यारह बजे के बाद इस क्षेत्र से गुजरने वाली सभी सड़कें सील हो जाती थीं। बैरियर गिरा दिये जाते थे और चारों चेकपोस्ट में से हर एक पर छ: सैनिकों के साथ एक लेफ्टिनेन्ट मुस्तैदी से ड्यूटी देता था।
सन्नाटे में डूबे इस वातावरण में एक अजीब-सी निस्तब्धता छायी हुई थी, जो हवा के तेज झोकों से उत्पन्न सरसराहट से और भी भयावह वीरानता का एहसास दिला रही थी। इसी समय एक साया मुख्य सड़क पर लुकता छिपता कर्नल के बंगले की ओर बढ़ता दिखायी पड़ा। वह मेनगेट के पास रुककर अन्दर की ओर झांकने लगा।
गार्ड अब भी निन्द में झूमता बार–बार कुर्सी से टेक लगा रहा था। साये ने अपनी काली पैन्ट की जेब में हाथ डाला। दूसरे ही क्षण उसके हाथ में एक विचित्र प्रकार की गन नजर आने लगी। उसने कमर से एक फीट की लम्बी नली जैसा उपकरण निकालकर गन की नाल पर चढ़ाया और गार्ड की ओर नाल करके ट्रेगर दबा दिया।
गन से नीले रंग के द्रव की एक पतली तीव्र धार निकली और गार्ड के सामने जा गिरी। करीब मिनट भर के बाद गार्ड का सिर पूर्णत: कुर्सी के पुश्त से जा लगा। साये ने एक विशिष्ट अन्दाज में सीटी बजायी। दूसरे ही क्षण एक भयंकर ब्लड हाउन्ड गुर्राता हुआ वहां पहुंचा। वह एकटक साये को देखते गुर्राने लगा। साये ने फुर्ती से गन ऊपर उठायी और नीले द्रव की एक फुहार कुत्ते के चेहरे पर जा गिरी। कुत्ता जोर से गुर्राया, फिर झूमता हुआ भूमि पर लेट गया।
साये ने गन को पीठ में लगी बेल्ट में फंसाया और लोहे के फाटक पर चढ़कर दूसरी ओर उतर गया। वह इत्मीनान से बंगले की ओर बढ़ने लगा। कुछ ही देर में वह बंगले के मुख्यद्वार पर था। उसने पीठ पर से एक लम्बी पतली स्टील की पत्ती निकाली और पल्लों की फांक में घुसाकर ऊपर झटके देने लगा। कुछ ही क्षण में बोल्ट हट गया। उसने दरवाजे को खोला और अन्दर प्रविष्ट हो गया।
ऐसा प्रतीत होता था कि उसे बंगले के चप्पे–चप्पे की जानकारी हो। वह दबे पांव कर्नल के कमरे की ओर बढ़ गया। कर्नल के कमरे का दरवाजा बन्द था। साये ने जेब से चाबी निकाली और दरवाजा खोलकर अन्दर चला गया। अब उसके हाथ में एक घातक छुरा नजर आने लगा।
कर्नल बशीर की आंखें अचानक खुल गयीं। एक क्षण में उसकी छठी इन्द्री ने यह बता दिया कि कमरे में कोई प्रविष्ट हो चुका है। उसने अपना सारा ध्यान आहट की ओर लगा दिया, फिर दूसरे ही क्षण बिस्तर से लुढ़ककर नीचे जा पड़ा। इसी समय छुरा तेजी से बिस्तर में धंस गया।
साये ने वार खाली देखकर छुरा वहीं छोड़ा और तेजी से कर्नल पर छलांग लगायी। इससे पहले कि वह कर्नल पर गिरता, कर्नल जगह छोड़ चुका था। वह भड़ाक से फर्श से जा टकराया। उसके कण्ठ से कराह निकली, लेकिन वह फुर्ती से उठकर खड़ा हो गया।
दूसरे ही क्षण वह कराटे की मुद्रा बनाकर एकटक कर्नल को देखता उसकी ओर बढ़ने लगा। कर्नल मुस्कुराया। उसने फौरन अपनी मुद्रा बदल दी। अब वह एक खूंखार कराटे स्पेशलिस्ट दिखायी दे रहा था।
साये ने ताबड़तोड़ हथेलियों के किनारे से वार करना शुरू कर दिया लेकिन कर्नल ने उस सभी को हाथों पर रोकते पैर की भरपूर ठोकर उसके पेट पर लगायी। साये के ओठों से चीख निकल गयी। वह पेट पकड़े दोहरा हो गया।
इसी समय कर्नल ने दीवार पर लटकी वर्दी के होलस्टर से रिवाल्वर खींच ली और साये की ओर तानता गुर्राया—‘‘खबरदार! हिले तो गोली मार दूंगा। हाथ ऊपर उठाओ।’’
साये ने धीरे से हाथ उठा दिये। उसने काले रंग की कमीज और पैन्ट पहन रखी थी। पैरों में पी०टी० शूज थे और चेहरे पर एक जालीदार नकाब पड़ी थी।
‘‘कौन हो तुम? मेरा कत्ल क्यों करना चाहते हो?’’ बशीर ने पूछा।
‘‘मेरा सम्बन्ध अल्फा लिब्रेशन फ्रन्ट से है। हां, मैं तुम्हारा कत्ल करना चाहता हूं। तुम जैसे सभी फौजी अधिकारियों का कत्ल करना चाहता हूं, जो हमारी जमीन, हमारी पहचान पर अपने अनर्गल कानून को थोपना चाहते हैं। हमें गुलाम बनाना चाहते हैं।’’
‘‘ख्याल अच्छा है।’’ बशीर मुस्कुराया—‘‘लेकिन इसे हकीकत में बदलने में एक मुश्किल है। इस देश में लाख के लगभग फौजी अधिकारी हैं। तुम किस–किस का कत्ल करोगे?’’
‘‘हर एक का हम एक–एक कर कुर्बान हो जायेंगे, पर खुद को गुलाम न बनने देंगे।’’ साये के कण्ठ से एक गुर्राहट निकली।
‘‘बकवास बन्द करो। पड़ोसी मुल्क से हथियार और पैसे लेकर यहां के बाशिन्दों की हत्या तुम कर रहे हो या यहां की सरकार? तुम लोग विदेशी एजेन्ट हो। वहां से सहायता लेकर यहां का अमनोचैन बर्बाद करना चाहते हो। तुम्हारी हकीकत यही है।’’
‘‘कौन-सा अमनोचैन कर्नल? वह जो तुम्हारी पालिटिशियन पार्लियामेन्ट में नजारे करवाते हैं? या वह जो तुम्हारे थानों और अदालत में रण्डियों की तरह बिकता है?’’ साये के स्वर में कटुता भर आयी—‘‘हां, यह सच है कि हम पड़ोसी मुल्क से सहायता लेते हैं। यह हमारी मजबूरी है। हमने चालीस साल तुम्हारी इस नकली आजादी को भुगता है। हमने तुम्हारी पुलिस से डण्डे खाये हैं, उसकी गालियां सुनी हैं। हमने सरकारी सिस्टम में लुटेरों को बैठे देखा है, जो हमें बेदर्दी से लूटते रहे हैं। रहने दो कर्नल! मेरा मुंह न खुलवाओ। मुझे अफसोस है कि मैं असफल रहा। बाजी तुम्हारे हाथ में है। अब तुम्हारा क्या इरादा है?’’
‘‘अपने आपको कानून के हवाले कर दो।’’
‘‘यदि न करूं तो?’’
‘‘तो मैं यहीं तुम्हें गोली मार दूंगा।’’
साये के नकाब के अन्दर से झांकती आखें स्थिर हो गयीं। दूसरे ही क्षण उसने दरवाजे की ओर छलांग लगा दी।
कर्नल ने फुर्ती से फायर कर दिया।
गोली साये की टांग में लगी, किन्तु पलटनिया खाता हुआ दरवाजे से बाहर निकल गया। वह फुर्ती से उठा और गलियारे में दौड़ता हुआ निकल गया।
कर्नल जब बाहर आया, तो वहां कोई नहीं था। वहां एक विचित्र-सी गन फर्श पर पड़ी थी। कर्नल ने वापस लौटकर फोन उठाया और नम्बर डायल करते हुए बोला—‘‘हैलो! कन्ट्रोलरूम? मैं कर्नल बशीर बोल रहा हूं। मेरे बंगले में कोई आतंकवादी घुस आया था। मैं कह नहीं सकता कि वह भाग गया या बंगले में ही कहीं छुपा हुआ है। फौरन रेड अलर्ट कर दो और यहां फोर्स भेजो।’’
उसने रिसीवर क्रेडिल पर रखा और सिगार निकालकर सुलगाने लगा।
उसके होंठों पर रहस्यात्मक मुस्कान फैली हुई थी।
¶¶
नताशा की पलकें मुंदती जा रही थीं, पर उपन्यास इतना रोचक था कि वह उसे पढ़ने का लोभ संवरण नहीं कर पा रही थी।
तभी फायर के धमाके की आवाज गूंजी।
उसने किताब एक ओर फेंकी और उछलकर खड़ी हो गयी। उसने कुर्सी पर रखा गाउन उठाकर पहना और दरवाजे की ओर बढ़ी ही थी कि दरवाजा खुला। काले कपड़ों में लैस एक व्यक्ति अन्दर आया और उसने दरवाजा बन्द कर लिया।
नताशा ने चमककर पूछा—‘‘कौन हो तुम?’’
‘‘खुदा के लिये!’’ वह व्यक्ति हांफता हुआ बोला—‘‘मेरी मदद करो। मेरी टांग में गोली लगी है।’’
नताशा ने गौर से उसकी ओर देखा। वह एक अधेड़ व्यक्ति था। नकाब उसके चेहरे से कहीं गिर गयी थी। उसकी बायीं टांग से खून बह रहा था, जिसने काले पैन्ट को तर कर रखा था।
‘‘मगर तुम हो कौन?’’
‘‘मैं अल्फा लिब्रेशन फ्रन्ट का मेम्बर हूं। तुम इस घाटी की रहने वाली हो। तुम जानती हो कि हम अपने वजूद के लिये लड़ रहे हैं। तुम भी इसी घाटी की बेटी हो। मेरी मदद करो।’’
‘‘लेकिन तुम यहां क्यों आये थे?’’
‘‘तुम्हारे भाई कर्नल बशीर की हत्या करने।’’
‘‘और तुम चाहते हो कि मैं तुम्हारी मदद करूं?’’ नताशा गुर्रायी।
‘‘तुम हमवतन हो, हमारे मजहब की हो। हम दीन–ईमान के लिये लड़ रहे हैं। मेरी मदद करना तुम्हारा फर्ज है।’’
‘‘मैं अपने फर्ज को अच्छी तरह जानती हूं।’’ नताशा ने कहा और उस पर छलांग लगा दी। उसकी हथेली का भरपूर कराटे–चाप उस व्यक्ति की गर्दन पर पड़ा और वह कराहता हुआ बेहोश हो गया।
इसी समय बंगले में भारी बूटों की आवाज गूंजने लगी। नताशा ने दरवाजा बन्द किया और बाहर आ गयी।
बाहर हॉल में दर्जन भर मिलिट्रीमैन एक लेफ्टिनेन्ट के साथ खड़े थे।
‘‘वह बंगले में ही कहीं होगा।’’ कर्नल बशीर की कठोर आवाज गूंजी—‘‘अच्छी तरह ढूंढो।’’
‘‘सर!’’ लेफ्टिनेन्ट ने अलर्ट भाव में कहा—“वह बाहर भी भागा होगा, तो बच नहीं सकता। चप्पे–चप्पे पर फोर्स उसे ढूंढ रही है।’’
‘‘भइया! वह यहां है।’’ नताशा ने कहा—‘‘मैंने उसे बेहोश कर दिया है।’’
कर्नल बशीर चौंक पड़ा। उसने नताशा को देखा, फिर लेफ्टिनेन्ट को इशारा दिया।
लेफ्टिनेन्ट फोर्स के साथ नताशा के कमरे की ओर बढ़ गया।
आनन–फानन में उस व्यक्ति को जकड़ लिया गया। फौजी उसे खींचकर ले गये।
‘‘यह तुम्हारे हत्थे कैसे चढ़ गया?’’ कर्नल मुस्कराया।
‘‘वह मेरे कमरे में आ गया। मुझे देखकर मदद मांगने लगा।’’
‘‘तुमसे?’’ कर्नल ने हैरत से उसकी ओर देखा—‘‘भला तुम क्यों उसकी मदद करने लगीं?’’
‘‘उसका ख्याल था कि वह घाटी की बेहतरी और दीन–ईमान की बात कहकर मुझे भी बरगला लेगा।’’
‘‘बेचारा!’’ कर्नल ने कन्धे उचकाये और अपने कमरे की ओर बढ़ते हुए कहा—‘‘जाओ, सो जाओ। खामख्वाह निन्द में खलल हो गयी।’’
नताशा के होंठों पर व्यंग भरी मुस्कान फैल गयी।
अपने कमरे में पहुंच कर उसने दरवाजा बन्द किया और बालों को खोल डाला। उसके हाथ में उसका चौड़ा हेयर बेल्ट आ गया। उसने उसको एक विशिष्ट अन्दाज में दबाया।
दूसरे ही क्षण ‘‘पिक-पिक’’ की आवाज आने लगी।
‘‘हैलो! जीरो जीरो नाइन दिस साइड। ओवर।’’
‘‘हैलो! मैं नम्बर जीरो जीरो थ्री बोल रही हूं। ओवर।’’
‘‘यस मैडम? ओवर।’’
‘‘लगता है, उसे मुझ पर शक हो गया है। अभी बात करना उचित नहीं है। कल शाम चार बजे शान–ए–मुगल में मिलो। ओवर।’’
‘‘ठीक है! बन्द करता हूं। ओवर एण्ड ऑल।’’
नताशा ने क्लिप सिरहाने में रख दिया और लेट गयी।
¶¶
शान–ए–मुगल।
सिविल लाइन का एकमात्र प्रसिद्ध होटल, जिसमें संध्या होते ही अफसरों, रईसों एवं शहर के आभिजात्य वर्ग के स्त्री–पुरुषों की भीड़ लग जाती थी। इस समय भी उसका डायनिंग हॉल खचाखच भरा हुआ था। इसके एक केबिन में नताशा बैठी बार–बार घड़ी देख रही थी।
तभी एक अधेड़ व्यक्ति पर्दा हटाकर अन्दर दाखिल हुआ।
‘‘बउ़ी देर कर दी अहमद?’’ नताशा ने बेचैनी भरे स्वर में पूछा।
‘‘पुलिस और मिलिट्री, दोनों के पास मेरा हुलिया है। यहां तक पहुंचने में बड़ी कसरत करनी पड़ी है।’’ अहमद ने बैठते हुए कहा।
इसी समय पर्दा हटा और बैरे का चेहरा नमूदार हुआ।
‘‘शामी कबाब और कॉफी!’’ बशीर ने कहा।
बैरा चला गया।
‘‘क्या बात है? उसे तुम पर शक कैसे हो गया?’’ अहमद ने चिन्तित भाव में उसकी ओर देखा।
‘‘मैं नहीं जानती!’’
‘‘फिर तुम कैसे कह सकती हो कि उसे शक हो गया है?’’
‘‘रात एक बजे मेरे कमरे में एक आदमी घुस आया। उसकी बायीं टांग से खून बह रहा था। उसने मुझसे कहा कि वह अल्फा लिब्रेशन फ्रन्ट का मेम्बर है और मेरे भाई कर्नल बशीर की हत्या करने आया था लेकिन कर्नल की गोली से घायल हो गया। उसने मुझसे मदद मांगी। इस नाते मांगी कि मैं घाटी की बेहतरी और मजहबी ईमान के वास्ते उसकी मदद करूं।’’
‘‘मगर।’’ अहमद ने कुछ कहना चाहा, पर चुप हो गया।
बैरा पर्दा हटाकर अन्दर आया और ट्रे लगाने लगा।
उसके जाने के बाद अहमद ने कहा—‘‘मगर मुझे तो ऐसे किसी ऑपरेशन की जानकारी नहीं है।’’
‘‘मुझे भी नहीं है।’’
‘‘शायद यह फैसला नम्बर वन या टू ने खुफिया तरीके से लिया हो?’’
‘‘नहीं! उन्होंने भी नहीं लिया।’’
‘‘यह तुम कैसे कह सकती हो? क्या उनसे बातें हुई हैं?’’
‘‘नहीं। वह व्यक्ति फ्रॉड था। मेरी परीक्षा लेने आया था।’’
‘‘क्या मतलब?’’ अहमद बुरी तरह चौंक पड़ा।
‘‘उसका मेरे कमरे में आना और मुझसे सहायता मांगना एक ड्रामा था, जो कर्नल बशीर ने सेटअप किया था। वह व्यक्ति कोई सैनिक था। बशीर फ्रन्ट के मेम्बर के रूप में उसे मेरे साथ चिपका देना चाहता था, ताकि मैं उससे खुल जाऊं और मेरा असली रूप सामने आ जाये।’’
‘‘ओह! लेकिन तुम्हें उस आदमी पर शक कैसे हुआ?’’
‘‘इस मुल्क की मिलिट्री में बालों को एक खास अन्दाज में काटा जाता है। वह स्टाइल किसी आम नागरिक का नहीं होता। दूसरी शक वाली बात यह थी कि उस व्यक्ति के बायें घुटने से नीचे तक पैन्ट खून से तरबतर थी लेकिन गोली का छेद पैन्ट पर कहीं नहीं था। एक और भी बात थी। उसके पास एक वाटरगन थी। उसमें बेहोश करने वाला लिक्विड था। उसने उसका इस्तेमाल दरबान और कुत्ते पर किया लेकिन कर्नल पर नहीं।’’
‘‘ओह!’’
‘‘एक फायर की आवाज जरूर गूंजी थी, पर वह भी ड्रामे का ही एक हिस्सा था शायद।’’ नताशा ने कॉफी पीते हुए कहा—‘‘मैंने तुम्हें यहां इसलिये बुलाया है कि मेरा अब वहां रहना खतरे से खाली नहीं। देर–सबेर कर्नल को मालूम हो जायेगा कि मैं उसकी बहन नहीं हूं।’’
‘‘मैं तुम्हारी बात नम्बर वन तक पहुंचा दूंगा।’’ अहमद ने काफी खत्म की और जेब से सौ का एक नोट निकाल कर ट्रे में रखता बोला—‘‘जितनी जल्दी हो सके, यहां से निकल जाओ। यदि ऐसी बात थी, तो तुम्हें सावधानी रखनी चाहिये थी। उन्हें तुम पर शक होगा, तो उन्होंने तुम्हारा पीछा भी करवाया होगा।’’
‘‘या खुदा! यह तो मैंने सोचा ही नहीं था।’’ नताशा के चेहरे पर घबड़ाहट फैल गयी।
‘‘तुम यहीं बैठी रहो। मैं जा रहा हूं।’’ अहमद ने कहा—‘‘यहां केबिन में भी ग्राहकों की साझेदारी होती है। उन्होंने मुझे पकड़ भी लिया, तो तुम पर हाथ नहीं डाल सकते। यह साबित करना मुश्किल होगा कि तुम्हारा मुझसे कोई सम्बन्ध है।’’
अहमद तेजी से निकल गया।
नताशा ने कबाब खत्म की, कॉफी का अन्तिम घूंट लिया और घंटी दबा कर उठ गयी।
एक मिनट बाद बैरा प्रगट हुआ।
नताशा ने प्लेट में पड़े नोट की ओर इशारा करते हुए कहा—‘‘बाकी तुम रख लेना।’’
‘‘शुक्रिया मेम साहब!’’ बैरे ने सिर झुकाया।
‘‘क्या तुम्हारे होटल का यही कायदा है? केबिन के अन्दर कोई अजनबी मुंह उठाये घुसा चला आता है?’’ नताशा ने तमतमाये हुए स्वर में कहा—‘‘कहां है तुम्हारा मैनेजर?’’
‘‘आपने एतराज किया होता, तो नहीं आ सकता था। यहां इजाजत लेकर कोई किसी के भी टेबुल पर बैठ सकता है।’’
‘‘इजाजत लेने का तरीका रिवॉल्वर की खौफनाक नाल भी तो हो सकती है?’’ नताशा जोर से चिल्लायी—‘‘यह होटल है या आतंकवादियों का अखाड़ा?’’
अचानक ही डायनिंग हॉल में बैठे व्यक्तियों का ध्यान उसकी ओर मुड़ गया। लोग खाना रोककर उसी ओर देखने लगे।
‘‘वह आया और बिना इजाजत अन्दर बैठ गया।’’ नताशा गुस्से से पैर पटकती हुई बोली—‘‘मैं उससे कुछ कहती, इससे पहले उसने रिवॉल्वर निकालकर टेबुल के नीचे से मेरी ओर तान दिया। बोला कि मैंने कोई एतराज किया, तो वह मुझे गोली मार देगा।’’
हंगामे का शोर सुनकर होटल का मैनेजर करीम अख्तर भागा हुआ वहां आया। सारा माजरा जानते ही उसके होश उड़ गये। वह नताशा को जानता था। कर्नल बशीर उस इलाके का एक मशहूर हस्ती था। उसने घिघियाते हुए कहा—‘‘मैं माफी चाहता हूं। आज तक ऐसा कुछ नहीं हुआ। मैं होटल के कायदे–कानून बदल दूंगा।’’
‘‘भाड़ में जाओ तुम और तुम्हारे होटल का कायदा–कानून।’’ —नताशा गरजी—‘‘मैं ऐसी नामुराद जगह पर फिर से तो आने से रही?’’
इसी समय होटल के डायनिंग हॉल में एक लेफ्टिनेन्ट नजर आया। उसके पीछे पांच सैनिक थे। उनके बीच अहमद रस्सियों से बंधा था। उसके चेहरे पर चोट के निशान थे।
‘‘यही है। यही है।’’ नताशा चिल्लायी—‘‘यही आदमी था।’’
मैनेजर झपटता हुआ फौजियों के पास पहुंचकर बोला—‘‘माजरा क्या है जनाब?’’
‘‘यह आदमी अभी–अभी इस होटल से निकला है। यह किसके साथ बैठा था?’’ लेफ्टिनेन्ट ने पूछा।
‘‘मेरे साथ।’’ नताशा झपटती हुई उसके पास पहुंची—‘‘मैं सात नम्बर के केबिन में बैठी थी। अचानक यह पर्दा हटाकर अन्दर घुस आया और इसने रिवॉल्वर निकाल लिया। इसने कहा कि मैंने कोई गलत हरकत की, तो मुझे गोली मार देगा।’’
‘‘आपसे क्या चाहता था यह?’’ लेफ्टिनेन्ट ने अपनी दृष्टि नताशा के चेहरे पर जमा दी।
‘‘कर्नल बशीर का डेली रुटीन पूछ रहा था।’’
‘‘मगर क्यों?’’
‘‘यह तो यही बता सकता है!’’ नताशा ने कहा—‘‘मेरा ख्याल है कि यह कोई आतंकवादी है और मेरे भाई की हत्या करना चाहता है। कल रात भी एक आतंकवादी हमारे बंगले में घुस आया था। इसने कुछ बताया नहीं कि इसका सम्बन्ध किससे है?’’
‘‘सब बतायेगा।’’ लेफ्टिनेन्ट ने इत्मीनान से कहा—‘‘इसका तो दादा भी मुंह खोलेगा। क्या मैं आपकी सुरक्षा का कोई इन्तजाम करूं?’’
‘‘नहीं, शुक्रिया!’’ नताशा ने तल्ख स्वर में कहा—‘‘मैं चली जाऊंगी।’’
लेफ्टिनेन्ट ने सिर हिलाया और फौजियों को इशारा किया। वे अहमद को खींचते हुए ले गये। बाहर एक वैन खड़ी थी। उन्होंने उसे उस पर चढ़ाया और खुद भी बैठ गये। वैन स्टार्ट होकर होटल कम्पाउण्ड से निकल गयी।
नताशा अपनी कार की ओर बढ़ गयी। उसके जबडे़ कसे हुए थे।
¶¶
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Additional information
Book Title | यमराज : Yamraj by Ajgar |
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Isbn No | |
No of Pages | 234 |
Country Of Orign | India |
Year of Publication | |
Language | |
Genres | |
Author | |
Age | |
Publisher Name | Ravi Pocket Books |
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