विधवा की सुहागरात
अमावस की काली रात।
इतना घनघोर अन्धेरा कि हाथ को हाथ सुझाई नहीं देता था। तेज बर्फीली हवा के झोंकों से झूमते हुए दैत्याकार पेड़ भयावना दृश्य प्रस्तुत कर रहे थे।
भयभीत होकर उसने खिड़की बन्द कर दी और बेड पर आकर लेट गई।
उसकी हिरनी-सी आंखों की सड़कों पर दूर-दूर तक भी नीन्द का कोई वाहन दिखलाई नहीं पड़ रहा था।
नीन्द न आने का कारण था भय...एक अनजाना-सा भय, जिसने शाम से ही उसके अस्तित्व को अपने पाश में जकड़ रखा था।
सोचते-सोचते उसका मस्तिष्क बुरी तरह चकराने लगा था, परन्तु वो नहीं जान पाई थी कि वो भयभीत क्यों थी?
बस, भय में बार-बार अन्जानी आशंकाओं के बादल घुमड़-घुमड़कर गरज रहे थे। लग रहा था कि कोई अन्जाने खतरे का पंछी उसे नोंचने के लिए अपने घोंसले से उड़ान भर चुका है और वह कभी भी उस पर झपट्टा मार सकता है।
शाम उसने किसी को फोन किया था और आक्रोश भरे भाव से बोली थी—“अब तुम मुझे बेवकूफ नहीं बना सकते हो—मुझे विश्वस्त सूत्रों से मालूम हो चुका है कि तुम उस गोरी चमड़ी वाली से शादी करने की तैयारी में लगे हो—परन्तु मेरे जीते-जी तुम उस चुडैल को अपनी पत्नी नहीं बना सकोगे।”
“क्यों भला?” दूसरी तरफ से व्यंग में डूबा हुआ भर्राया स्वर उभरा था।
“जैसे तुम कुछ जानते ही नहीं हो।” वह तड़पते हुए बोली—“तुम्हारी बीवी ने बलात्कार की शिकार होकर आत्महत्या कर ली थी तो तुम टूटकर बिखरने लगे थे—यूं लगा था कि तुम घुल-घुलकर खत्म हो जाओगे—तभी हमारी मुलाकात हुई थी—मैं भी भरी जवानी में विधवा हो गई थी—सुहाग का सुख क्या होता है, ये ठीक से जान भी नहीं पाई थी कि विधाता ने मेरी मांग से सिंदूर की लाली नोंचकर वैधव्य की राख भर दी थी—हमने ये महसूस किया था कि हम दोनों ही एक-दूसरे का सहारा बन सकते हैं—तुमने ये वादा करके कि बीवी की बरसी होते ही मुझे सुहागिन बना दोगे, मेरे साथ सुहागरात मना ली थी—मैंने भी तुम पर भरोसा करके अपना सर्वस्व तुम पर न्यौछावर कर दिया था—अब मेरी कोख में तुम्हारे प्यार का अंकुर पल रहा है—तुमने मुझ विधवा के साथ सुहागरात मनाकर मेरे पैर भारी कर दिए—अब तुम एक कुंवारी और खूबसूरत लड़की से शादी करने को मरे जा रहे हो—फिर मेरा क्या होगा? लोग जब पूछेंगे कि मुझ विधवा के पेट में बच्चा कहां से आ गया है, तो मैं क्या जवाब दूंगी?”
“सुनो...तुम मेरी पत्नी बनने का ख्याल अपने दिमाग से निकाल दो।”
“इसलिए कि मैं बासी हो गई हूं और वो कुंवारी है?”
“तुम चाहे जो समझो—मैं तुमसे शादी नहीं कर सकता—पहली मुलाकात में तुम मुझे देखकर मुस्कुराई थीं—दूसरी मुलाकात में तुमने अपना शरीर मुझे सौंप दिया था—ना जाने ऐसा कितनों के साथ किया होगा...न...सफाई मत देना—यही बोलोगी कि मैं पवित्र हूं, सती-सावित्री हूं—मैं तुम्हें अपनी पत्नी का दर्जा नहीं दे सकूंगा।”
“वो तो तुम्हें देना होगा...।” वह किसी जख्मी नागिन की भांति बल खाते हुए बोली थी—“शायद तुम भूल गए हो कि तुमने मौहब्बत की झोक में मुझे रोजाना एक प्रेम-पत्र लिखा था, जिनमें तुमने मुझसे शादी करने के दावे किए थे, आखिरी पत्र में मेरे पेट में पल रहे बच्चे को अपना नाम देने की बात लिखी थी, यदि तुमने किसी और के साथ शादी की तो मैं उन सभी पत्रों को लेकर कोर्ट में पहुंच जाऊंगी—फिर तुम्हें धोखाधड़ी के आरोप में सजा मिलेगी...बदनामी भी होगी तुम्हारी, शराफत इसी में है कि तुम उस लड़की को ठोकर मारो और मुझसे शादी कर लो—जो सुख मैं तुम्हें दे सकती हूं, वो कल की छोकरी नहीं दे सकती है—वो सिर्फ दौलत के लालच में ही तुम्हारे साथ चिपकी हुई है—मुझे कल ही तुम्हारा जवाब चाहिए—रात को ठण्डे मन से सोचना—कल मैं तुम्हारी प्रतीक्षा करूंगी।”
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दूर कहीं बिजली कड़की।
घबराकर उठ बैठी वह और सहमी-सहमी सी आंखों से कमरे की दीवारों को घूरने लगी।
फोन बन्द करने के बाद उसे लगा था कि उसने अपने प्रेमी को पत्रों की धमकी देकर ठीक नहीं किया है। प्रेमी पर उस लड़की की खूबसूरती का भूत सवार है। वह उससे शादी करने को उतावला हो रहा है।
कहीं वह गड़बड़ी ना कर डाले?
बस, तभी से एक अनजाना-सा भय उसके भीतर चुपके से प्रविष्ट हो गया था और उसकी आंखों की नीन्द उड़ गई थी।
अचानक ही कॉलबैल अपने कर्कश स्वर में चिण्घाड़ी थी।
वह इतने जोरो से चिहुंकी कि यदि ऐन वक्त पर बेड को थाम नहीं लेती तो नीचे गिर गई होती।
दिल इतने जोरो से घबराया की धड़कनों का शोर चर्च के घड़ियाल की भांति सुनाई पड़ने लगा।
वह इस कदर पसीने से नहाई कि देखने वाला यह समझता कि वो बाथरूम से नहाकर निकली थी।
कनपटियों पर हथौड़े से बजने लगे उसके।
“कौन हो सकता है? किसने बजाई घण्टी?”
तभी उसकी निगाहें वॉल क्लॉक पर पड़ीं।
नौ बजे थे।
“बिना कारण ही घबरा रही थी मैं...।” वह बेड से उतरते हुए बुदबुदाई—“अभी तो नौ ही बजे हैं—सभी पड़ोसी जाग रहे होंगे—यदि कोई खतरे वाली बात हुई भी तो शोर मचाकर सबको इकट्ठा कर लूंगी।”
मेन गेट खोलते ही वह सिसकारी-सी लेते हुए दो कदम पीछे हट गई।
उसके चेहरे पर घबराहट फैलती चली गई।
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एक मर्द ने युवती के साथ भीतर प्रवेश किया और मेन गेट को बन्द करके सिटकनी लगा दी।
“तु—तुम...!” वह आशंकित मन के साथ कंपकंपाते स्वर में बोली—“इस वक्त मेरे घर क्यों आए हो? ये...ये लड़की कौन है?”
“मेरी होने वाली बीवी है...।” मर्द युवती की पतली कमर में हाथ डालकर अपने शरीर से सटाते हुए बोला—“इसी के साथ शादी करने वाला हूं मैं।”
क्रोधातिरेक में उसका चेहरा भट्टी की भांति दहकने लगा, वह नथुनों को चौड़ाते हुए फुंफकारी-सी—“तो तुम मेरा कलेजा फूंकने के लिए, मेरे तन-मन में आग लगाने के लिए इसे मेरे पास लेकर आए हो—कान खोलकर सुन लो मिस्टर...या तो तुम मुझसे शादी करोगे, या फिर जिन्दगी भर कुंवारे रहोगे।”
“यहां बातें करना ठीक नहीं होगा—कोई पड़ोसी सुन भी सकता है—हम भीतर चल कर बातें करते हैं न।”
“नहीं, अभी तुम इस चुड़ैल को लेकर जाओ यहां से—बात करनी होगी तो कल दिन में अकेले आना।”
“पागलों जैसी बातें न करो—मैं तुमसे झगड़ने नहीं आया हूं—मैं तुमसे समझौता करने आया हूं—इस बात को ध्यान में रखकर कि तुम्हारी कोख में मेरा बच्चा पल रहा है और तुम्हें सहानुभूति की जरूरत है—हम आराम से बैठकर बातें करेंगे।”
पहले तो वह इंकार करने के मूड में दिखलाई पड़ी, परन्तु फिर कमरे की तरफ चल दी।
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“बोलो...क्या बात करने आए हो तुम?”
“देखो, ये बात तो तय है कि मुझे सिर्फ इसी के साथ...।” सोफे पर बैठा हुआ मर्द अपनी बगल में बैठी युवती को इंगित करके बोला—“इतनी प्यारी जीवनसाथी को कौन नहीं पाना चाहेगा? अपने दिमाग में ये बात बैठा लो कि मैं तुमसे शादी नहीं करूंगा।”
“क्यों नहीं करोगे—?” वह बल खाते हुए जख्मी नागिन-सी फुंफकारी—“क्या मुझे वेश्या समझकर बिस्तर पर...? मत भूलो मिस्टर कि तुमने मुझसे शादी का वादा किया था—तब मैंने तुम्हें अपना शरीर सौंपा था—मैं विधवा हूं—यदि मेरी कोख में पलने वाले बच्चे को बाप का नाम नहीं मिला तो मैं किसी को भी अपनी सूरत दिखलाने लायक नहीं रहूंगी।”
“मेरी एक जानकार लेडी डॉक्टर है—वह तुम्हें इस अनचाहे बच्चे से छुटकारा दिला देगी।”
“यह बच्चा तुम्हारे लिए अनचाहा हो सकता है, परन्तु मेरे लिए यह जिगर का टुकड़ा है—मेरी कोख का मोती है—मैं इसकी हत्या नहीं होने दूंगी—इसे जन्म दूंगी मैं और इसे इसके बाप का नाम भी दूंगी।”
“तो ठीक है—कोई ऐसी आसामी ढूंढ लो, जो तुमसे शादी करके इस बच्चे को अपना नाम दे सके—मैं तुम्हें पांच लाख रुपये दूंगा—मैं यहां तुम्हें ये ही बताने आया था कि मैं अपने पत्रों की कीमत के रूप में तुम्हें पांच लाख रुपये दे दूंगा—इतने रुपयों से तुम अपनी जिन्दगी को संवार सकती हो—यदि कोई शख्स तुम्हारे पेट में पल रहे बच्चे को अपनाने को तैयार हो तो तुम्हें अबॉर्शन कराने की भी जरूरत नहीं है—इसके लिए तुम किसी गरीब युवक को चुन सकती हो और उसे पांच लाख रुपयों से बिजनेस करा सकती हो—या फिर अबॉर्शन करा लो और किसी के साथ शादी कर लो—मुझसे शादी करने की जिद में तुम जिन्दगी भर दु:खी ही रहोगी—क्योंकि तुम मेरी नजरों से उतर चुकी हो—मजबूरी में मैंने तुमसे शादी की भी तो मेरा प्यार न पा सकोगी—मैं तब भी इस लड़की से सम्बन्ध बनाए रखूंगा—इसलिए समझदारी से काम लो तुम।”
“बात तुम्हारा प्यार पाने की नहीं है—बात तो अब जिद वाली हो गई है—तुमने शादी का झांसा देकर मुझ विधवा की मर्यादा भंग की—जिस कमरे में मेरे स्वर्गीय पति की तस्वीर लगी है, उसी कमरे में तुमने मेरे साथ सुहागरात मनाई—मेरी कोख में अपने खून का अंश डालकर तुम मुझे दूध में गिरी मक्खी की भांति फेंक देना चाहते हो—मैं तो खून के आंसू बहाती रहूं...और तुम इस लड़की के साथ रंगरेलियां मनाते रहो, ये बर्दाश्त नहीं होगा मुझसे—मुझे अपना अधिकार हासिल करना आता है मिस्टर—मुझसे शादी करने के बाद तुमने यदि इस लड़की की तरफ आंख उठाकर भी देखा तो मैं तुम दोनों की असलियत का पर्दाफाश कर दूंगी।”
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