उल्टे चक्कर
“समझने की कोशिश करो भगवत भाई—मैं तुम्हारा माल नहीं ले सकता।”
“क्यों? हमारा माल घटिया है क्या?”
“नहीं।”
“महंगा है क्या—”
“मैं कबूल करता हूं कि तुम्हारा माल सस्ता होने के साथ-साथ बहुत बढ़िया भी है—और मेरे को उससे मोटा फायदा तो होगा ही—साथ ही मेरे ग्राहकों में भी बढ़ोत्तरी होगी—फिर भी मैं तुम्हारा माल नहीं बेच सकता।”
“रूपसिंह के डर से—।”
“हां।” स्पष्ट कहा उस आदमी ने—“मैं पहले राजा जी का माल बेचा करता था। अब उनकी मौत के बाद उसके बेटे का माल बेचूंगा। अगर मैंने उनका माल नहीं बेचा तो कल को मेरी लाश किसी गटर में पड़ी होगी और मेरी जगह कोई दूसरा उनका माल बेच रहा होगा।”
भगवत ने गहरी सांस छोड़ते हुए पहलू बदला और जेब से रिवाल्वर निकाल कर दूसरी जेब से रुमाल निकाला और उससे रिवाल्वर को साफ करते हुए बड़े ही नाटकीय अंदाज में बोला—
“तो तू राहू जी महाराज का माल नहीं बेचेगा?”
उस व्यक्ति के गले की घण्टी जोरों से उछली—माथे पर पसीने की बूंदें चमकने लगीं।
भगवत बेशक रिवाल्वर को पोंछ रहा था—लेकिन वह समझ रहा था कि भगवत आज फैसला करके आया है कि या तो वो उसका माल बेचेगा या फिर वो उसकी गोली खायेगा।
बोल नहीं फूटा उसके मुंह से—बस होंठ फड़फड़ा कर रह गये।
भगवत ने गर्दन उठा कर अपने दाईं तरफ खड़े व्यक्ति को देखा और गम्भीरता से बोला—
“इसे माल दे रमन।”
तुरंत रमन ने जेब से एक थैली निकाली और उसे एक तरह से जबरदस्ती दुबले से व्यक्ति के हाथ में थमा दी।
“दो सौ ग्राम माल है।” भगवत रिवाल्वर को वापिस जेब में डालते हुए बोला—“पेमेंट बेशक दो दिन बाद देना—लेकिन माल यही बिकना चाहिये।”
कहकर वह खड़ा हो गया।
उस सिंगल हड्डी का जवाब सुनने की भी जरूरत नहीं समझी उसने और दरवाजे की तरफ बढ़ गया।
दरवाजे के करीब पहुंच कर वह ठिठक पड़ा और सिंगल हड्डी को देखते हुए बोला—
“परसों शाम को रमन आयेगा पेमेंट लेने के लिये।”
उस व्यक्ति ने कुछ नहीं कहा—बस रमन को देखते हुए सहमे अंदाज में सिर हिला दिया।
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“डिंग-डिंग-डिंग।”
मोबाइल के बजते ही रूपसिंह ने जेब से मोबाइल निकाल कर कान से लगाया।
“हैलो।”
“मैं पण्डित बोल रहा हूं छोटे राजा।” दूसरी तरफ से आदर भरी आवाज आई।
“कोई खास खबर?”
“अहमद का फोन आया था।”
“अहमद?” रूपसिंह के माथे पर बल पड़े।
“राजस्थान यूनिवर्सिटी की कैंटीन वाला।”
“क्या कह रहा था?”
“राहू जी महाराज का आदमी जबरदस्ती उसे दो सौ ग्राम नमक दे गया है।”
नमक का मतलब रूपसिंह समझ गया था। हेरोइन का कोड नमक रखा हुआ था उसने।
फिर भी चेहरा सुलग उठा रूपसिंह का—“क्या किया है तूने?”
“सत्या को रवाना कर दिया है।”
“ठीक किया। और अहमद को भी प्रोटेक्शन दे दे।”
“जी छोटे राजा।”
“काम होते ही तू खुद मेरे पास रिपोर्ट लेकर आना।”
“जी छोटे राजा।”
छोटे राजा उर्फ रूपसिंह जयपुर की एक नामी हस्ती थी। इससे पहले पूरे राजस्थान के अण्डरवर्ल्ड पर सिर्फ उसके बाप राजाजी का राज चलता था। छह महीने पहले राजाजी की मौत के बाद रूपसिंह ने उसकी गद्दी सम्भाल ली। मगर गद्दी सम्भालते ही एक सिर और खड़ा हो गया—जिसने खुद को अण्डरवर्ल्ड का राजा घोषित कर दिया।
वह था राहू जी महाराज।
बस तभी से दोनों के बीच अण्डरवर्ल्ड का बादशाह बनने की होड़ लगी हुई थी। दोनों जब भी मौका मिलता, एक दूसरे को चोट पहुंचाने की कोशिश करते। और अभी तक यह फैसला नहीं हो पाया था कि अण्डरवर्ल्ड पर दोनों में से किसकी हुकूमत चलेगी।
रूपसिंह करीब चालीस चाल का पतले मुंह वाला व्यक्ति था। उसके चेहरे का इतना वजन नहीं था—जितनी बड़ी पगड़ी उसके सिर पर थी।
ढेठ राजस्थानी नजर आता था वह चेहरे से। लेकिन पगड़ी के अलावा उसने और कुछ भी राजस्थानी नहीं पहना हुआ था। उसके बदन पर शानदार सफारी सूट था। गले में सोने की मोटी चेन व दस में से छह उंगलियों में विभिन्न नगों की अंगूठियां थीं। बायें हाथ में सोने की चेन वाली घड़ी और दाईं कलाई में सोने का कड़ा था।
कुल मिलाकर देखा जाये तो उसके सिर पर पहनी पगड़ी उसके व्यक्तित्व को कुछ कमजोर कर रही थी। मगर वह पगड़ी उसके बाप की थी, जो हर वक्त उस पगड़ी को पहने रखता था। और उसकी मौत के बाद वह पगड़ी रूपसिंह के सिर पर राजाजी के ओहदेदारों ने रख दी।
बस तभी से वह पगड़ी उसके सिर पर थी।
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