तेरी गोली तेरा सीना : Teri Goli Tera Seena by Shiva Pandit
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Description
दुर्दांत हत्यारा...खुद को गर्व से हरामी कहने वाला...दौलत का दीवाना अर्जुन त्यागी ने इस बार दौलत की खातिर बेशुमार कत्ल कर डाले...दौलत का अम्बार उसने हासिल भी कर लिया...मगर अन्त में...उसकी किस्मत ने फिर उसे अंगूठा दिखा दिया...।
कैसे...जानने के लिए पढ़ें अर्जुन त्यागी सीरीज का हाहाकारी उपन्यास ‘तेरी गोली तेरा सीना..।’
शिवा पण्डित की जादुई कलम से निकला शानदार उपन्यास!
अर्जुन त्यागी का एक और शानदार कारनामा... तेरी गोली तेरा सीना
तेरी गोली तेरा सीना : Teri Goli Tera Seena
Shiva Pandit
Arjun Tyagi Series
BookMadaari
प्रस्तुत उपन्यास के सभी पात्र एवं घटनायें काल्पनिक हैं। किसी जीवित अथवा मृत व्यक्ति से इनका कतई कोई सम्बन्ध नहीं है। समानता संयोग से हो सकती है। उपन्यास का उद्देश्य मात्र मनोरंजन है। प्रस्तुत उपन्यास में दिए गए हिंसक दृश्यों, धूम्रपान, मधपान अथवा किसी अन्य मादक पदार्थों के सेवन का प्रकाशक या लेखक कत्तई समर्थन नहीं करते। इस प्रकार के दृश्य पाठकों को इन कृत्यों को प्रेरित करने के लिए नहीं बल्कि कथानक को वास्तविक रूप में दर्शाने के लिए दिए गए हैं। पाठकों से अनुरोध है की इन कृत्यों वे दुर्व्यसनों को दूर ही रखें। यह उपन्यास मात्र 18 + की आयु के लिए ही प्रकाशित किया गया है। उपन्यासब आगे पड़ने से पाठक अपनी सहमति दर्ज कर रहा है की वह 18 + है।
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अर्जुन त्यागी सीरीज़
तेरी गोली तेरा सीना
शिवा पण्डित
हल्का-सा झटका लगते ही अर्जुन त्यागी की आंख खुल गई। सीट पर बैठे-बैठे ही उसने गर्दन ऊंची करके बस की विण्डस्क्रीन में से बाहर देखा।
आगे एक अन्य बस खड़ी थी।
“क्या हुआ भाई साहब...?” गर्दन वापिस छोटी कर उसने खिड़की के पास बैठे व्यक्ति की तरफ देखते हुए पूछा—जोकि खिड़की में से गर्दन निकालकर बाहर झांक रहा था।
व्यक्ति ने गर्दन वापिस खींची और अर्जुन त्यागी की तरफ देखा—
“मालूम नहीं...काफी आगे तक जाम लगा हुआ है...।
तभी एक व्यक्ति फुटपाथ पर चलता हुआ उधर से आता देख उस व्यक्ति ने पुनः गर्दन बाहर निकाली—
“क्या हुआ भइया...?” उसने अपनी खिड़की के करीब से गुजरते हुए उस व्यक्ति से पूछा।
“तलाशी हो रही है...।” वह व्यक्ति बोला।
“किसकी...?”
“दोपहर को हौज खास में एम.एल.ए. का कत्ल हुआ था न...।”
“पता नहीं...।”
“पुलिस उसके हत्यारे को खोज रही है...नाकाबंदी कर रखी है...हर बस की...ट्रक की...कार की पूरी जांच-पड़ताल के पश्चात ही उसे आगे बढ़ने दिया जा रहा है।”
“कमाल है...।” अर्जुन त्यागी के करीब वाला व्यक्ति बड़बड़ाया—“पुलिस अपनी हार को बर्दाश्त न करते हुये हजारों लोगों को तंग कर रही है...।”
“पता भी है वह हत्यारा कौन है...?” बाहर वाला बोला।
“कौन है...?”
“अर्जुन त्यागी...।”
“अर्जुन त्यागी...यह कौन हुआ...?”
“लो कर लो बात...अर्जुन त्यागी को नहीं जानता...।” बाहर वाला ऐसे बोला जैसे वह उसे किसी फिल्म अभिनेता के बारे में बता रहा हो—“अरे भाई, ऐसा खतरनाक हत्यारा है कि तुम्हारे सामने आ जाए तो तुम्हारा हार्टफेल हो जाए...।”
“बहुत डरावना है उसका चेहरा...?”
“यह तो मैं नहीं जानता...लेकिन सुनने में आया है कि उसके जैसा अपराधी आज तक नहीं हुआ। कहते हैं न कि ऊपर वाला सिर्फ अपने भक्तों पर दया करता है...लेकिन वह तो अर्जुन त्यागी पर दया किये हुये है...। बस इतना जान लो कि उसने इतने खून कर रखे हैं कि उसे खुद गिनती याद नहीं होगी...इतने डाके डाल चुका है कि अगर वह बाकी उम्र लूट के रुपये गिनने में लगा दे तो उसकी उम्र खत्म हो जाएगी...लेकिन नोट खत्म नहीं होंगे।”
“ऐसा...?” हैरानी से बोला खिड़की वाला व्यक्ति।
“मैंने तो सुना है भैया...आगे मुझे क्या मालूम...।”
“अब पुलिस को कितनी देर लगेगी...?”
“पुलिस तो सारी रात लगी रहेगी...लेकिन तुम्हारा नम्बर आधे घंटे तक आ जाएगा।”
वह कहकर आगे बढ़ गया।
खिड़की वाला व्यक्ति बुरा मुंह बनाते हुये कुछ बड़बड़ाया। फिर पुनः गर्दन मोड़कर आगे देखने लगा।
इधर अपनी सीट पर बैठा अर्जुन त्यागी मुस्कुरा पड़ा। बेशक इस वक्त उसका कलेजा उसकी पसलियों में बज रहा था...लेकिन बाहर वाले व्यक्ति की बात ने उसे मुस्कुराने पर मजबूर कर दिया था।
यह सच था कि उसने अपने अपराधी जीवन के छोटे से समय में ही अत्यधिक ख्याति अर्जित कर ली थी।
यह भी सच था कि वह बेइंतहा कत्ल कर चुका था।
लेकिन यह सच नहीं था कि उसने बेशुमार पैसा लूटा था।
इसी पैसे के लिये तो वह इतने कत्ल कर चुका था...इतने डाके डाल चुका था...।
लेकिन उसकी फूटी तकदीर हर बार ऐन वक्त पर उसे दगा दे जाती। रुपया हाथ में आने के पश्चात् भी निकल जाता।
बड़ी मुश्किल से उसने पचास लाख कमाये थे...राज वूलन मिल्ज का पे रोल लूटा था उसने...। दो दिन तक पचास लाख उसके पास भी रहे...मगर उसकी तकदीर दगा दे गई...।
तेजवीर सिंह की निगाह पड़ गई उन रुपयों पर...। और उससे वे रुपये छीन लिये। न केवल छीन लिए गए...बल्कि उसके साथी रमेश भण्डारी को मार डाला तेजवीर के आदमियों ने...और उसकी ऐसी ठुकाई की कि बस मरा नहीं वह...बाकी तो सब कुछ हो गया था।
हफ्ता भर वह रेवती के घर पड़ा कराहता रहा। रेवती के जिस्म की गर्मी और तेजवीर सिंह से बदला लेने की भावना ने ही उसे हफ्ते भर में ठीक कर दिया...वर्ना वह पन्द्रह दिन से पहले बैड से हरगिज नहीं उतरता।
और फिर उसने तेजवीर सिंह पर वो कहर बरपाया कि तेजवीर सिंह की तौबा बोल गई। अन्त में उसने उसका सरेआम कत्ल भी कर डाला और वहां से भाग निकला।
सारा दिन वह एक खाली मकान की छत पर लेटा रहा...रात को वह छत से उतरा और वहां से टैक्सी पकड़कर सीधा आई०एस०बी०टी० पहुंचा।
रेवती का कत्ल कर उसे बिस्तर के नीचे से सिर्फ पचास हजार ही मिले थे जो कि उसकी जेब में थे।
आई०एस०बी०टी० से उस वक्त उसे आगरा जाने वाली यू०पी० रोडवेज की बस, बस अड्डे से बाहर निकलती नजर आई।
देर नहीं लगाई उसने और उस बस में सवार हो गया।
वह जितनी जल्दी हो सके दिल्ली से बाहर निकल जाना चाहता था।
लेकिन किस्मत अभी उसे बाहर निकालने को राजी नहीं लगती थी। तभी तो दिल्ली—यू०पी० बार्डर पर उसे नाकाबंदी में फंसना पड़ गया।
अर्जुन त्यागी ने एक लम्बी सांस छोड़ी और तेजी से सोचने लगा...क्या किया जाये?
इसमें तो अब वह हरगिज नहीं बैठा रह सकता था...क्योंकि ऐसे में उसके पकड़े जाने के शत-प्रतिशत चांस थे और एक बार फिर पुलिस के हत्थे चढ़ने की देर है कि पुलिस उसे बिना किसी अदालत में ले जाने की जहमत उठाये, उसे ऊपर पहुंचा देगी।
अब तो बचने का बस एक ही रास्ता था कि नीचे उतरकर वापिस दिल्ली में घुस जाये और कुछ दिनों तक किसी सुरक्षित स्थान पर छुप जाए।
अभी वह यह सब सोच ही रहा था कि तभी बस का दरवाजा खुला और एक व्यक्ति ने भीतर प्रवेश किया।
दायें-बायें की सीटों के बीच खड़े होकर वह बस में बैठी सवारियों को इस प्रकार देखने लगा जैसे उसे किसी की तलाश हो।
तलाश करती हुई जैसे ही उसकी नजर अर्जुन त्यागी पर पड़ी, अर्जुन त्यागी ने फट से मुंह फेर लिया।
दो-तीन पलों बाद उसने पुनः उस व्यक्ति को देखा तो उसे अपनी तरफ ही घूरते पाया।
अर्जुन त्यागी का कलेजा और भी जोरों से धड़क उठा।
“फंसे...।” मन-ही-मन बड़बड़ाया वह।
तभी उस व्यक्ति के होंठों पर हल्की सी मुस्कान उभरी...साथ ही उसने उसे आंख के इशारे से नीचे आने को कहा और फिर वह मुड़ा तथा बस से नीचे उतर गया।
अर्जुन त्यागी कशमकश में पड़ गया कि वह नीचे उतरे या नहीं?
नीचे तो यूं भी उसे उतरना था। यूं भी उस दुबले-पतले फिल्म अभिनेता मैकमोहन जैसे लगने वाले दढ़ियल ने उसे जिस ढंग से इशारा किया था...उससे वह इसी नतीजे पर पहुंचा था कि वह भी उसका ही भाई-बंद है...उसी की बिरादरी का है।
सो वह इस अंदाज से खड़ा हुआ जैसे बस में बैठा बोर हो रहा हो।
सीटों के बीच से गुजरते हुए वह बस से नीचे उतरा और पिछली तरफ देखा।
वह व्यक्ति फुटपाथ पर आगे बढ़ा जा रहा था...उसने मुड़कर यह देखने की कोशिश भी नहीं कि अर्जुन त्यागी नीचे उतरा भी है या नहीं।
अर्जुन त्यागी एक पल के लिये हिचकिचाया...फिर उसके पीछे-पीछे चलने लगा।
दस-बारह वाहन पार करके ही वह उसके बराबर पहुंच सका।
“थोड़ा आगे परली लाइन पर एचआर-0732 ट्रक खड़ा है...उसमें सवार हो जाओ।”
वह व्यक्ति धीरे से फुसफुसाया।
अर्जुन त्यागी ने उसकी तरफ देखा तक नहीं...वह फुटपाथ से नीचे उतरा और एक कार के तथा बस के बीच में से निकलकर परली लेन में पहुंचा और आगे बढ़ने लगा।
शीघ्र ही उसकी नजर उस ट्रक पर पड़ी थी जिसका नम्बर दढ़ियल ने बताया था।
ट्रक का बोनट खुला था तथा मिस्त्रियों के कपड़े पहने एक व्यक्ति इंजन में मुंह डाले ऐसे हाथ हिला रहा था जैसे वह ट्रक ठीक कर रहा हो।
अर्जुन त्यागी जानता था कि सड़क पर ट्रक या कोई भी वाहन खड़ा करना अपराध माना जाता है और उसका फौरन चालान हो जाता है...सो इससे निपटने के लिए ही ट्रक का बोनट खोला होगा।
आगे बढ़कर वह ट्रक के करीब पहुंचा।
ट्रक फलों की पेटियों से लदा हुआ था।
तभी वह दढ़ियल उसे सड़क पार कर अपनी तरफ बढ़ता नजर आया।
ट्रक के करीब आकर उसने परली तरफ का दरवाजा खोला और उसमें चढ़ गया।
“आ जाओ...।” वह अर्जुन त्यागी से बोला। अर्जुन त्यागी भी ट्रक में सवार हो गया।
तभी दढ़ियल ने केबिन की बैक पर हाथ रखकर उसे एक साइड में सरकाया तो बैक का करीब दो फीट का हिस्सा एक तरफ हट गया।
“भीतर चले जाओ...।” वह दढ़ियल बोला।
अर्जुन त्यागी ने भीतर झांका...ट्रक में लदी पेटियों के नीचे बैठने के लिये विशेष तौर पर वह जगह बनाई हुई थी।
अर्जुन त्यागी हिचकिचाया।
“घबराओ नहीं अर्जुन त्यागी...।” दढ़ियल बोला—“मौजूदा वक्त में हमारा कहना मानना तुम्हारी मजबूरी है...पुलिस कुत्तों की तरह तुम्हें जगह-जगह सूंघती फिर रही है।”
“तुम कौन हो...?” तभी अर्जुन त्यागी ने पूछा।
“ऐसे हालात में क्या तुम्हें ऐसे प्रश्न पूछने चाहिये...पता है पीछे भी पुलिस खड़ी है...ताकि अगर तुम किसी तरह बार्डर से वापिस भागते हो तो पीछे खड़ी पुलिस के हत्थे चढ़ जाओ।”
“ओह!”
“जल्दी करो...वर्ना किसी की नजर इस जगह पर पड़ गई तो तुम्हारे साथ-साथ मैं भी रगड़ा जाऊंगा।”
अर्जुन त्यागी ने एक पल के लिए सोचा, फिर भीतर प्रवेश कर गया।
तुरन्त उस दढ़ियल ने बैक को यथा स्थान किया और फिर सामने देखने लगा।
करीब दो मिनट बाद अर्जुन त्यागी के नीचे कम्पन शुरू हुआ...साथ ही इन्जन का शोर उसके कानों में पड़ा और फिर ट्रक आगे बढ़ने लगा।
ट्रक वह व्यक्ति चला रहा था जो कि मिस्त्री बना हुआ था। अभी ट्रक करीब डेढ़-दो सौ गज ही चला था कि उसे रुक जाना पड़ा।
सामने एक पुलिसिया ट्रक को रुकने का संकेत कर रहा था। एक तरफ फुटपाथ पर दो सब-इंस्पेक्टर, एक इंस्पेक्टर तथा दो हवलदार खड़े थे।
ट्रक के रुकते ही दोनों सब-इंस्पेक्टर और दोनों हवलदार ट्रक के करीब आये।
ड्राइवर या दढ़ियल से बिना कुछ पूछे एक हवलदार साइड से ऊपर चढ़ गया और देखने लगा। फिर उसने टूल बॉक्स में नजर मारी और नीचे आ गया।
“कोई नहीं साहब...।” वह सब-इंस्पेक्टर से बोला।
सब-इंस्पेक्टर ने खिड़की पर हल्के से डण्डा मारा।
“नीचे उतरो...।” वह बोला।
दढ़ियल और ड्राइवर के चेहरों की रंगत पल भर के लिए बदली...फिर किसी प्रकार खुद को सम्भालते हुए वे ट्रक से नीचे आ गये।
उनके नीचे आते ही दूसरा हवलदार केबिन में चढ़ा और अच्छी तरह से छानबीन करने लगा।
“क्या है ट्रक में...?” बाहर सब-इंस्पेक्टर ड्राइवर से पूछ रहा था।
“फ्रूट हैं साहब...।” ड्राइवर बोला।
“किसका है...?”
ड्राइवर ने अपने मैले कपड़ों से एक पर्चा बाहर निकाला और सब-इंस्पेक्टर की तरफ बढ़ा दियाजिस पर सब-इंस्पेक्टर ने सरसरी तौर पर ही निगाह मारी।
“रास्ते में कोई मिला क्या तुम्हें...?”
“कौन साहब...?”
“किसी ने लिफ्ट मांगी हो...?”
“नहीं साहब...।”
“तू कौन है...?” सब-इंस्पेक्टर ने दढ़ियल की तरफ देखा।
आढ़ती हूं साहब...।” दढ़ियल बोला—“गाजियाबाद में अपनी ससुराल गया था...वापिसी पर यह ट्रक मिल गया सो इस पर बैठ गया...।”
“क्यों...? बस में आते हुए तेरी जान निकलती है...धंधा आढ़त का करता है...और किराया खर्च करने में तेरी मां मरती है?”
“य...यह मुझे जानता था साहब...इसलिये...।”
“चल फूट...।” हवलदार को नीचे उतरते देख गुर्राया सब-इंस्पेक्टर।
दोनों ने राहत भरी सांस छोड़ी और ट्रक में बैठ गये।
ट्रक आगे बढ़ा तो उनकी जान में जान आई।
“बाल-बाल बचे...।” दढ़ियल बोला—“अगर हवलदार बैक को साइड में सरका देता तो हमारा फालूदा बन जाना था।”
“मैंने ही इस जगह के बारे में बताया था...।” ड्राइवर शान से सीना फुलाते हुए बोला—“देखा...कैसी सेफ जगह बनाई...किसी को शक भी नहीं हो सकता था।”
“अब डींग मत हांक और आगे देख।” बुरा मुंह बनाया दढ़ियल ने।
ड्राइवर ने फौरन गर्दन सीधी की और एक्सीलेटर पर पैर का दबाव और तेज कर दिया।
¶¶
ड्राइविंग केबिन की बैक साइड में हुई तो अर्जुन त्यागी को दढ़ियल का चेहरा नजर आया।
“आ जाओ...।”
अर्जुन त्यागी झुककर बाहर सीट पर आ गया...उसने विण्ड स्क्रीन पर नजर डाली तो बोनट के अन्त में उसे सामने दीवार नजर आई। दायें-बायें भी दीवारें नजर आईं उसे।
यानि वह किसी गैराज या किसी बड़े कमरे में था।
उसने दढ़ियल की तरफ देखा। वह नीचे उतर रहा था।
मिस्त्री के कपड़े पहने ड्राइवर नजर नहीं आया उसे।
“आओ...।” नीचे उतरकर दढ़ियल दरवाजे की तरफ मुड़ते हुए बोला।
अर्जुन त्यागी छलांग मारकर नीचे उतर आया। तभी उसकी नजर पीछे गई। मिस्त्री के कपड़े पहने ड्राइवर शटर वाले बड़े दरवाजे के बीचों-बीच खड़ा था।
दढ़ियल गेट की तरफ मुड़ा तो अर्जुन त्यागी बिना कुछ बोले उसके पीछे चलने लगा।
उसके बाहर आते ही ड्राइवर ने शटर बंद किया और अर्जुन त्यागी की तरफ मुड़ा।
बाहर आते ही अर्जुन त्यागी ने खुद को एक सड़क पर खड़ा पाया। वह नहीं जानता था कि वह सड़क किस एरिया में है। वह गैराज जिसमें से वह निकला था, एक बड़े मकान की चारदीवारी में ही बना हुआ था। उससे आगे मकानों की दूर तक लाइन जा रही थी।
दढ़ियल उसी गैराज वाले मकान के बंद दरवाजे के सामने ठिठका और दाईं तरफ दीवार पर लगा पुश बटन दबाकर गर्दन पीछे मोड़कर अर्जुन त्यागी की तरफ देखते हुए मुस्कुराया।
प्रत्युत्तर में अर्जुन त्यागी ने भी दांत दिखाये...लेकिन भीतर से वह पूरी तरह से सतर्क था। किसी भी खतरे का सामना करने के लिए पूरी तरह से तैयार था।
हालाकि उसे विश्वास था कि वह अपने टाइप के ही आदमियों के बीच है...फिर भी उसने सावधानी का दामन नहीं छोड़ा।
“कौन है...?”
तभी भीतर से किसी औरत की सुरीली आवाज आई—
“मैं हूं...दरवाजा खोलो।”
दढ़ियल थोड़ा ऊंचे स्वर में बोला।
तुरन्त दरवाजा खुला।
अर्जुन त्यागी ने देखा कि दरवाजा खोलने वाली करीब चौबीस-पच्चीस साल की भरपूर जवान और खूबसूरत लड़की थी। लड़की की रंगत हालांकि कुछ श्यामल थी...लेकिन उससे खूबसूरती पर जरा भी फर्क नहीं पड़ रहा था। उल्टे यह लग रहा था कि अगर उसका रंग गोरा होता, शायद तब वह उतनी खूबसूरत नहीं लग रही होती जितनी कि अब लग रही थी।
उसके भरे हुए गाल, ऊंची गर्दन और तीखे नैन-नक्श देखकर अर्जुन त्यागी के दिल में गुदगुदी सी होने लगी। प्रिंटेड सलवार-कमीज पहने थी वह...बालों को लड़कों की तरह कटवा रखा था।
उसकी कमीज का गला हालांकि काफी खुला था...लेकिन फिर भी अर्जुन त्यागी को वो सब कुछ नजर नहीं आया जिसे देखने का वह इच्छुक था। हां, अगर थोड़ा झुकती तो अवश्य वह उसकी नाभि तक के दर्शन कर सकता था।
लड़की ने पहले दढ़ियल को देखा...फिर अर्जुन त्यागी की तरफ देखते हुए मुस्कुराई और एक तरफ हट गयी।
“आओ...।”
दढ़ियल अंदर प्रवेश करते हुए बोला।
पीछे-पीछे अर्जुन त्यागी ने प्रवेश किया तो उसने कोहनी उसकी छातियों पर इस ढंग से रगड़ी मानो बेख्याली में लग गयी हो।
युवती हौले से हंस पड़ी।
पीछे-पीछे ड्राइवर भी प्रवेश कर गया।
मकान में प्रवेश करते ही अर्जुन त्यागी ने स्वयं को छोटे से आंगन में पाया। सामने गली थी, जिसके दाईं तरफ तीन कमरे बने हुए थे। आंगन में ही बाईं तरफ बाथरूम था जिसका कि दरवाजा खुला हुआ था।
दढ़ियल गली में प्रवेश कर गया और एक रास्ता छोड़कर दूसरे दरवाजे में प्रवेश कर गया।
अर्जुन त्यागी ने उसके पीछे कमरे में प्रवेश किया।
साधारण ढंग से बना वह कमरा काफी साफ-सुथरा था। कमरे के बीचों बीच सनमाइका की सेंटर टेबल के दो तरफ सोफे रखे हुए थे। दाईं तरफ वाले सोफे के करीब एक स्टूल पर टेलीफोन रखा हुआ था। दाईं तरफ कोने में शो-केस में कलर टी०वी० था, बाईं तरफ दीवान बिछा हुआ था, जिस पर सफेद रंग की चादर बिछी थी तथा दीवान से लगाकर दो गोल सिरहाने रखे हुए थे।
“बैठो...।”
दढ़ियल स्वयं फोन वाले स्टूल के करीब सोफे पर बैठते हुए बोला।
अर्जुन त्यागी उसके सामने वाले सोफे पर बैठ गया। दढ़ियल ने जेब से फोर स्क्वायर का पैकेट निकाला और अर्जुन त्यागी की तरफ बढ़ाया—
“सिगरेट...।”
अर्जुन त्यागी ने खामोशी से एक सिगरेट निकाली और होंठों में दबा ली।
दढ़ियल ने भी अपने लिये सिगरेट निकाली। फिर पैकेट को टेबल पर फेंककर लाइटर निकालकर पहले अर्जुन त्यागी की सिगरेट सुलगाई। फिर अपनी सुलगाकर लाइटर को पैकेट के ऊपर रख दिया।
“अब बोलो...।” कश लगाकर बोला अर्जुन त्यागी—“कौन हो तुम...?”
“बताते हैं...जरा दूसरों को भी तो आ लेने दो...।” दढ़ियल बोला।
तभी युवती एक ट्रे उठाये भीतर दाखिल हुई। ट्रे में स्कॉच की बोतल और मटन रखा हुआ था, साथ में चार खाली गिलास थे।
तभी पीछे-पीछे सोडा लिये वो ड्राइवर भी भीतर दाखिल हुआ।
अब उसके कपड़े साफ थे तथा मुंह भी धुला हुआ था।
युवती ट्रे को टेबल पर रखने के लिये झुकी तो अर्जुन त्यागी का कलेजा धड़क उठा।
खुले गले के भीतर से उसे वह सब कुछ नजर आ रहा था जिसे देखने के लिये बाहर वह तरस रहा था।
अर्जुन त्यागी की आंखों का पीछा कर दढ़ियल मुस्कुराया।
“घबराओ नहीं...।” वह बोल पड़ा—“यह तुम्हारे ही हैं...।”
अर्जुन त्यागी ने हड़बड़ाकर उसकी तरफ देखा।
“दोनों तुम्हारे ही हैं।” दढ़ियल बेशर्मी से हंसा।
अब भला अर्जुन त्यागी का शर्म से क्या ताल्लुक! उसकी नजरें पुनः युवती के गले में जा अटकीं।
युवती हौले से हंसी और ट्रे को उठाकर वापिस बाहर निकल आयी।
अर्जुन त्यागी विचार-मग्न मुद्रा में कश लगाने लगा।
तभी युवती वापिस आई और अर्जुन त्यागी के बराबर वाली सीट पर बैठ गयी।
वह आगे को झुकी और सभी के लिये पैग तैयार करने लगी। पैग तैयार करके उसने एक पैग उठाकर अर्जुन त्यागी की तरफ बढ़ाया जिसे अर्जुन त्यागी ने बिना किसी संकोच के थाम लिया।
दोनों ने भी पैग उठाये और सभी ने एक साथ पैग होंठों से लगा लिये।
अर्जुन त्यागी ने पैग खाली करके टेबल पर रखा और सामने बैठे दढ़ियल की तरफ देखते हुए बोला—
“अब बोलो कौन हो तुम...? किसलिये मुझे यहां लाये हो तुम...?”
दढ़ियल ने अपना पैग खाली करके टेबल पर रखा और अर्जुन त्यागी की तरफ देखते हुए बोला—
“यह तो तुम्हें मानना ही पड़ेगा अर्जुन त्यागी कि अगर हम वक्त पर तुम्हें ढूंढ ना लेते तो तुम अब तक पुलिस की गोली का शिकार हो गये होते...।”
अर्जुन त्यागी के होंठों पर मुस्कान नाच उठी—
“अहसान जता रहे हो...?” वह बोला।
“नहीं...।” जरा भी नहीं हड़बड़ाया दढ़ियल।
“अगर अहसान जता रहे हो तो फिर इतना जान लो कि तुम लोग मेरे बारे में कुछ खास नहीं जानते...सिर्फ नाम ही सुन रखा है तुमने मेरा...।”
“तुम्हारी सूरत का भी पता था हमें...।” दढ़ियल के साथ बैठा ड्राइवर बोल पड़ा—“वर्ना हम तुम्हें ढूंढते कैसे...?”
“मेरे कामों के बारे में सुन रखा है क्या...?” अर्जुन त्यागी ने उसकी तरफ देखा।
“काफी कुछ...।”
“फिर भी सोच रहे हो कि मैं पुलिस के हाथों मारा जाता?”
“यानि पुलिस तुम्हें छू भी नहीं पाती...?”
“शुक्र मनाओ कि तुम लोग वक्त पर पहुंच गए...वर्ना ढूंढते रह जाते...।” मुस्कुराया अर्जुन त्यागी।
“खैर...।” दढ़ियल ने लम्बी सांस छोड़ी—“जो भी है, तुम हमें मिल गए और यह हमारे लिये शुभ संकेत है।”
अर्जुन त्यागी मन-ही-मन हंसा—यह तो उसको जानने वाला व्यक्ति ही बता सकता था कि वह कितना शुभ है। उससे बढ़कर तो दूसरा कोई मनहूस पैदा हो ही नहीं सकता था—जिसको भी यार बनाया—अंत में उसके सीने में गोली उतार दी।
“वो तो काम जानने के पश्चात ही पता चलेगा कि मैं तुम्हारे लिये शुभ हूं या मुझे ढूंढने में तुमने अपना वक्त बर्बाद किया है।” प्रत्युत्तर में वह बोला।
तभी युवती ने नया पैग तैयार करके अर्जुन त्यागी की तरफ बढ़ाया।
“यह रोशनी है।” तभी दढ़ियल युवती की तरफ मुंह करके बोला।
पैग पकड़ते हुए अर्जुन त्यागी ने रोशनी की तरफ देखा, मुस्कुराया और बोला—
“तुम्हारा नाम अगर संध्या होता तो ज्यादा जंचता...।”
“मेरा रंग देख कर कह रहे हो...?”
रोशनी उसे घूरते हुए मुस्कुराई।
हंसा अर्जुन त्यागी।
“यह मेरा दोस्त है जगदेव...जगदेव शर्मा।”
दढ़ियल ने ड्राइवर की तरफ इशारा किया।
अर्जुन त्यागी ने उसकी तरफ देखा तो जगदेव शर्मा ने होंठ फैला दिये।
“और मैं किशन वासवानी हूं।” दढ़ियल ने अपना परिचय दिया।
“और मुझे तो तुम लोग जानते ही हो...फिर भी मैं बताये देता हूं...मेरा नाम अर्जुन त्यागी है।”
हौले से हंसा किशन वासवानी, फिर आगे बोला—
“हम तीनों पार्टनर हैं...हर काम मिल-बांट कर करते हैं...और मिल बांट कर ही खाते हैं।”
“लेकिन रोशनी तो अकेली तुम दोनों को खाती होगी...।”
“हम दोनों भी तो इसे खाते हैं।” हंसते हुए जगदेव बोला।
“तुम कहां खा सकते हो...यह ही तुम दोनों को निगल जाती है...ऐसे में तुम्हारा खाने का सवाल ही नहीं उठता।”
जगदेव शर्मा और किशन वासवानी मुक्त कंठ से हंसे।
रोशनी ने घूरकर अर्जुन त्यागी की तरफ देखा—“अब तो दो की बजाय तीन को निगलूंगी—देखूंगी कि कितनी बड़ी बला बने हुये हो।”
अर्जुन त्यागी हंसा, फिर गहरी सांस छोड़ी और बोला—
“अरे हमारी क्या बला है...बला तो तुम्हारी है जो बड़ी से बड़ी बलाओं को भी खा जाती है।”
एक बार फिर जगदेव शर्मा और किशन वासवानी हंसे।
रोशनी झेंपते हुए मुस्कुराई।
“यह जोक नहीं...सच्चाई है।”
बोला अर्जुन त्यागी और पैग होंठों से लगाकर उसे खाली करके टेबल पर रखा। फिर किशन वासवानी की तरफ देखते हुए बोला—
“अब जरा मतलब की बात हो जाए...।”
“बिल्कुल।” अपना पैग उठाया किशन वासवानी ने।
अर्जुन त्यागी सोफे से टेक लगाकर बैठ गया और सिगरेट का लम्बा कश लगाकर टोटे को साइड में फर्श पर मसल दिया।
किशन वासवानी ने दो घूंट भरे और अर्जुन त्यागी की तरफ देखते हुए बोला—
“हम तीनों आपस में पार्टनर हैं, यह तो हम तुम्हें बता ही चुकें हैं। यह मकान जिसमें तुम बैठे हुए हो, यह रोशनी के नाम हैं लेकिन इसमें हिस्सेदार हम तीनों हैं...हम तीनों को एक-दूसरे पर पूरा विश्वास है। तभी तो हम जब भी कोई काम करते हैं तो उसमें से होने वाली आमदनी हम रोशनी के पास ही रखते हैं।”
“और क्या मजाल जो हमारे हिसाब में कभी झगड़ा हुआ हो।”
जगदेव शर्मा बोला।
“हमने आज तक जितने भी काम किये हैं, उनकी औकात कभी दो लाख से ऊपर नहीं हुई।” किशन वासवानी आगे बोला—“एक बार हमने एक बच्चे का अपहरण सिर्फ इसलिये किया था कि हमें पता लगा था कि बच्चे का बाप करोड़पति है। हमने फिरौती के रूप में पांच लाख मांगे तो जानते हो, पांच लाख की बजाय हमें सिर्फ पचास हजार मिला।”
“क्यों?”
“वह बच्चा सेठ का नहीं था...उसकी तो कोई औलाद ही नहीं है। वह बच्चा उसने अनाथालय से गोद लिया था।”
“ओह...!”
“जब मैंने...।” जगदेव शर्मा किशन वासवानी की बात को आगे बढ़ाते हुए बोला—“सेठ को फोन किया और बच्चे के बदले पांच लाख की फिरौती मांगी तो जानते हो उसने क्या जवाब दिया?”
“क्या...?”
“उसने कहा कि वह बेशक बच्चे को मार दे...वह अनाथालय से दूसरा बच्चा ले आयेगा।”
“हमारे तो हाथ-पैर फूल गये...इतना बड़ा हाथ मारने के बावजूद भी हमारे पल्ले कुछ नहीं पड़ रहा था।” रोशनी बोली—“तब हमने सलाह की और पुनः सेठ को फोन किया तो उसने कहा कि वह बच्चे के पचास हजार दे सकता है क्योंकि उसे अनाथालय में नये बच्चे के लिये दान के रूप में पचास हजार देने पड़ेंगे। सो वह दान की रकम हमें दे देगा।”
“और मजबूरन हमें पचास हजार पर हां करनी पड़ी।” जगदेव शर्मा बोला।
“जिन्दगी में पहली बार इतना बड़ा हाथ मारा था...लेकिन मिला क्या? सिर्फ पचास हजार...।”
किशन वासवानी हंसते हुए बोला।
अर्जुन त्यागी भी मुस्कुराया और आगे को झुक कर अपने लिये नया पैग तैयार करने लगा।
किशन वासवानी ने पैग उठाकर उसे खाली किया और फिर अर्जुन त्यागी की तरफ देखते हुए बोला—
“पांच लाख की रकम हमारे लिये काफी बड़ी थी—लेकिन इस बार हमें एक करोड़ रुपयों की आफर मिली है—ऐसे में तुम खुद अंदाजा लगा सकते हो कि हमारी क्या हालत होगी...।”
“एक करोड़ की आफर को हमने बिना सोचे-विचारे कबूल कर लिया...।” रोशनी बोली—“लेकिन जब हमने काम के बारे में जाना तो हमारे हाथ-पांव फूल गये। काम हमारे बस का बिल्कुल भी नहीं था।”
“और एक करोड़ का लालच हमें काम को हाथ से निकलने न देने के लिये कह रहा था।” जगदेव शर्मा बोला।
“ऐसे में हमें किसी ऐसे व्यक्ति की सेवायें लेने की सूझी जो एक करोड़ की भारी-भरकम रकम को हमारे कदमों में ला दे...।”
किशन वासवानी बोला।
“और छूटते ही तड़ाक से तुम लोगों के दिमाग में मेरा नाम आ अटका...।” अर्जुन त्यागी पैग उठाकर सोफे की पुश्त से टेक लगाते हुए बोला।
“नहीं...। तुम्हारा नाम हमारे दिमाग में दो दिन बाद आया, जब तुमने राज वूलन मिल्ज का पचास लाख का पे रोल लूटा था—हमें लगा था कि अगर तुम हमारा साथ देने को तैयार हो जाओ तो हम एक करोड़ को बोरियों में भर कर यहां ला सकते हैं।”
“और हम तुम्हें ढूंढने में लग गए...।” रोशनी बोली।
“चूंकि तेजवीर सिंह विधायक था...सो हम तुरन्त इस नतीजे पर पहुंचे कि अब तुम दिल्ली छोड़कर भागने की कोशिश करोगे। सो हमने दिल्ली से निकलने वाले तमाम रास्तों के बारे में जानकारी ली और हमने यही अंदाजा लगाया कि तुम यू०पी० में प्रवेश करने की कोशिश करोगे। सो मैंने और जगदेव ने स्कीम बनाई और तुम्हें पा लिया।”
“अगर मैं यू०पी० की बजाय किसी और स्टेट की तरफ भागता तो...?”
अर्जुन त्यागी ने पूछा।
“तो हमारी किस्मत!” गहरी सांस छोड़ी किशन वासवानी ने।
“और अगर मैं दिल्ली से फिलहाल न निकलता...?”
“तो भी हमारी किस्मत...।”
“लेकिन ऊपर वाले को हमारा मिलना बेहतर लगा।” तभी रोशनी बोली—“तभी तो उसने तुम्हें हमसे मिला दिया।”
“यानि ऊपर वाला भी यही चाहता है कि हमें एक करोड़ मिले।”
जगदेव शर्मा हंसा।
अर्जुन त्यागी भी हंसा और फिर पैग हलक में उतारकर खाली करके टेबल पर रखा तथा किशन वासवानी की तरफ देखते हुए बोला—“अब बताओ...क्या चाहते हो?’”
“करोल बाग में एक दुकान है मोंगिया ज्वैलर्स। उसके मालिक सुन्दर दास मोंगिया के पास दो नायाब हीरे हैं। उन दोनों की कीमत डेढ़ करोड़ है।” किशन वासवानी ने बताया।
“यानि वे हीरे चुराना चाहते हो?”
“नहीं...।”
“तो फिर...?”
“वैसे ही दो हीरे कहीं और हैं और सुन्दर दास मोंगिया को वे दो हीरे चाहियें...अगर हम उसे वे हीरे चुराकर ला देते हैं तो वह हमें एक करोड़ रुपया देगा।”
“वह उन हीरों का क्या करेगा...?”
“बेचेगा...और क्या करेगा!”
“वो तो मुझे मालूम है—मैं यह पूछ रहा हूं कितने में बेचेगा?”
“यह हमें जानने की जरूरत नहीं। हमें तो उसने एक करोड़ की आफर दी है।”
मुस्कुरा पड़ा अर्जुन त्यागी.. फिर लम्बी सांस छोड़ते हुए बोला—“इसमें तुम्हारा कोई कुसूर नहीं...जिसने लाख दो लाख पर हाथ साफ किया हो और उससे आगे का कभी सपना भी न देखा हो...उसे एकदम से एक करोड़ की आफर मिल जाए, वह कुछ सोचेगा भी क्योंकर...।”
“एक करोड़ कोई कम तो नहीं होते...।” रोशनी बोल पड़ी।
“बिल्कुल नहीं होते...।” अर्जुन त्यागी ने रोशनी की तरफ देखा—“लेकिन जरा सोचो, जिनकी कीमत वह डेढ़ करोड़ बता रहा है—क्या पता वह दो करोड़ का हो...तीन करोड़ का हो या उससे अधिक का हो...ऐसे में सुन्दर दास मोंगिया को तो बिना हाथ-पैर मारे करोड़-दो करोड़ का फायदा हो गया ना? यानि फंसो तो तुम फंसो...कमाये तो वो कमाये...।”
“हीरे डेढ़ करोड़ के ही हैं।” जगदेव शर्मा बोला।
“हीरे की कोई कीमत नहीं होती जगदेव शर्मा। एक हीरे को एक जौहरी एक लाख का बतायेगा तो दूसरा उसी हीरे की कीमत दस लाख लगा सकता है...यह तो परखने वाले की नजर के ऊपर डिपेंड करता है।”
जगदेव शर्मा ने किशन वासवानी की तरफ देखा।
“तुम कहना क्या चाहते हो?” किशन वासवानी उलझे स्वर में बोला।
“मैं यह कहना चाहता हूं कि तुम्हें यह जानना चाहिये था कि वह हीरे बेचेगा कितने में...फिर बीस-तीस लाख उसके काटकर बाकी की कीमत अपने लिये रखते।”
“लेकिन अब तो हमारा सौदा हो चुका है।” रोशनी बोली।
“तो फिर सौदा कैंसिल कर दो...।” मुस्कुराया अर्जुन त्यागी।
“यानि हीरे चुराने का ख्याल दिल से निकाल दें...?”
“बिल्कुल नहीं, बल्कि मुझे सुन्दर दास मोंगिया के सामने ले जाओ और कहो कि चोरी मैं करूंगा। यह काम तुम्हारे बस का नहीं...ऐसे में तुम्हारा-उसका कान्ट्रेक्ट खत्म हो जायेगा...फिर मेरे साथ नया कान्ट्रेक्ट करेगा।”
रोशनी ने अपने साथियों की तरफ देखा।
फिर दोनों की निगाहें आपस में मिलीं और किशन वासवानी अर्जुन त्यागी की तरफ देखते हुए बोला—
“कहीं ऐसा ना हो कि तुम्हारे हाथ में पहुंचते-पहुंचते सौदा हाथ से ही फिसल जाये।”
अर्जुन त्यागी के होंठों पर मुस्कान नाच उठी।
“मैंने कहा था कि तुम मेरे बारे में कुछ खास नहीं जानते...तभी ऐसा कह रहे हो।”
“ल...लेकिन...।”
“फिक्र मत करो...सौदा होगा और अवश्य होगा...और करोड़ से ऊपर ही होगा...।”
तीनों के चेहरों पर चमक उभर आई।
अर्जुन त्यागी ने टेबल पर रखा फोर स्क्वायर का पैकेट उठाया। एक सिगरेट निकालकर होंठों में दबाई, पैकेट को वापिस रखकर लाइटर उठाकर सिगरेट का सिरा सुलगाकर लाइटर वापिस टेबल पर रखते हुए एक लम्बा कश लगाया और मुंह से धुएं की फुहार छोड़ते हुए बोला—
“अब जरा यह भी बता दो कि वे हीरे किस जगह पर हैं जो कि तुम्हें लूटने हैं...?”
“पहले यह बताओ कि तुम हमारा साथ दोगे या नहीं...?”
जगदेव शर्मा बोला।
अर्जुन त्यागी ने उसे देखा।
“जब मैं सुन्दर दास मोंगिया से मिलने की इच्छा प्रकट कर रहा हूं तो जाहिर है कि साथ दूंगा। रुपया आता हुआ किसे अच्छा नहीं लगता...।”
तीनों के चेहरे खिल उठे।
“अब बोलो...किसके पास हैं वे हीरे...?” मन-ही-मन मुस्कुराते हुए बोला अर्जुन त्यागी।
किशन, वासवानी ने एक बार जगदेव शर्मा तथा रोशनी की तरफ देखा, फिर पुनः अर्जुन त्यागी के चेहरे पर निगाहें जमाते हुए बोला—
“सतनाम सिंह रागी के पास...।”
“यह कौन हुआ...?”
“बहुत बड़ा हरामी है सतनाम सिंह रागी...।” किशन वासवानी बोला—“तुम्हारी तरह बड़ी-बड़ी डकैतियां डाल चुक
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Additional information
Book Title | तेरी गोली तेरा सीना : Teri Goli Tera Seena by Shiva Pandit |
---|---|
Isbn No | |
No of Pages | 320 |
Country Of Orign | India |
Year of Publication | |
Language | |
Genres | |
Author | |
Age | |
Publisher Name | Ravi Pocket Books |
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