रीना राठौर सीरीज
स्टिंग ऑपरेशन
अनिल सलूजा
“तमाम गवाहों और सुबूतों के मद्देनजर यह अदालत इस नतीजे पर पहुंची है—मुलजिम विशाल कपूर ने अपने पेशे का गलत इस्तेमाल करते हुए एक बेगुनाह लड़की को न केवल बदनाम किया— बल्कि उसे आत्महत्या करने पर मजबूर भी किया...। साथ में मुलजिम विशाल कपूर ने एक और घर को बदनाम करने की भी कोशिश की...लिहाजा अदालत विशाल कपूर को दोषी मानते हुए उसे दस साल के कठोर कारावास की सजा देती है।”
फैसला सुनते ही कटघरे में खड़े विशाल कपूर के चेहरे पर भूचाल आ गया।
तभी उसकी नजर राठौर पर पड़ी—जो विजयी मुस्कान के साथ उसी को देख रही थी।
विशाल कपूर का पूरा वजूद सुलग उठा।
आंखों में अंगारे दहकने लगे।
उधर मजिस्टेट ने अपने फैसले पर दस्तखत किए और कुर्सी छोड़ कर चेम्बर में चले गए।
ठीक तभी पीछे से सिकन्दर ठाकरे ने विशाल कपूर की कलाई पकड़ी और उसमें हथकड़ी डाल दी।
विशाल कपूर कटघरे से निकला और सिकन्दर ठाकरे के आगे-आगे चलते हुए रीमा राठौर के करीब आ खड़ा हुआ। जो उस वक्त टेबल पर से फाइलें उठा रही थी।
फाइलें उठाते हुए उसने विशाल कपूर को देखा और मुस्कुराई—“अगर जहर बोओगे—तो फसल भी जहरीली ही होगी, विशाल कपूर...। सरकार ने प्रैस को आजादी इसलिए नहीं दी कि वो दूसरों के घरों को उजाड़ने लगे। तुम...।”
“बहुत बुरा किया तुमने रीमा राठौर—बहुत बुरा किया...।”
विशाल कपूर एक-एक शब्द को चबाते हुए बोला—“बिना कोई तफ्तीश किए तुमने मेरे मुंह पर जो कालिख मली है—उसको मैं कभी नहीं भूलूंगा। जेल में मैं हर पल ऊपर वाले से तुम्हारी लम्बी उम्र की दुआ करता रहूंगा—ताकि जेल से छूटने के बाद मैं तुम्हें खत्म करके अपना इन्तकाम ले सकूं...। तुम भी खुद को बचा कर रखना, रीमा राठौर—क्योंकि अब तुम्हारी जिन्दगी पर मेरा नाम लिखा जा चुका है।”
“हा...हा...हा...।” रीमा राठौर उसकी बात को हवा में उड़ाने वाले अंदाज में हंसी—फिर उसके गाल पर हल्के से थपकी देते हुए बोली—“अभी बच्चा है तू विशाल कपूर—रीमा राठौर का कलेजा चबाने के लिए स्टील के दांत चाहिये—जबकि अभी तो तुम्हारे दूध के दांत भी नहीं टूटे। तू घबरा नहीं—मैं खुद को कुछ भी नहीं होने दूंगी...। जब तू जेल से निकलेगा—तब देखूंगी कि जो दावा तू अब कर रहा है—उस पर कितना खरा उतरता है।”
कह कर उसने सिकन्दर ठाकरे को देखा—“ले जाओ इसे।”
ठाकरे ने विशाल कपूर की पीठ पर थपकी दी और गुर्राया—“चल...।”
विशाल कपूर ने रीमा राठौर को एक बार आग उगलती आंखों से देखा और बाहर की तरफ कदम बढ़ा दिए।
रीमा राठौर ने फाइलें अपनी बगल में दबाते हुए एक नजर विशाल कपूर की पीठ पर डाली—फिर अपने दाईं तरफ देखा—दर्शक दीर्घा में रखी कुर्सियों पर सबसे आगे लाईन पर एक बुजुर्ग हाथ जोड़े उसी को देख रहा था।
फैसला सुनने आये लोग पीछे के दरवाजे से निकल रहे थे। वे दोनों बुजुर्ग दम्पत्ति उसके सामने आये। “अब तो आप संतुष्ट हैं न, बाबा...।” रीमा राठौर आदमी से बोली। उस आदमी की आंखों में आंसू भर आये—साथ ही एक बार फिर से उसके हाथ जुड़ गए।
“विशाल कपूर को उसके किए की सजा तो मिल गई बेटी; लेकिन हमें क्या मिला...। हमारी बेटी तो हमें वापिस नहीं मिली...।”
कहते हुए वह फफक पड़ा।
रीमा राठौर ने गहरी सांस छोड़ी।
“अगर मुझे मरे हुओं को जिन्दा करने की कला आती होती तो मैं अवश्य ही आपकी बेटी को भगवान से छीन कर ले आती...। मैं तो बस एक आम इंसान हूं— और इंसान भगवान नहीं बन सकता। विशाल कपूर ने आपकी बेटी को मरने पर मजबूर किया था—जिसकी सजा उसे कानून ने सुना दी है। और वही मैंने किया। आपको न्याय दिलाना मेरा फर्ज था—वो फर्ज मैंने पूरा कर दिया है।”
कह कर उसने अपने काले कोट का कालर पकड़ कर उसे थोड़ा एडजस्ट किया—फिर बोली—
“ऊपर वाले का दिया आपके पास बहुत कुछ है—आप किसी अनाथ लड़की को गोद ले लें—इस तरह आपको बेटी मिल जायेगी—और उसे मां-बाप मिल जायेंगे।”
“तुम ठीक कहती हो बेटी—भगवान तुम्हारा भला करे।” औरत बोली।
“हम तुम्हारी सलाह पर विचार करेंगे।” आदमी बोला।
अदालत के परिसर में खड़ी पुलिस की गाड़ी के करीब खड़ी नेहा ने विशाल कपूर को देखा तो उसकी आंखों से झर-झर आंसू बहने लगे।
उसने करीब तीन साल का लड़का गोद में उठा रखा था—करीब पांच साल की एक लड़की फ्रॉक पहने उसके करीब खड़ी थी...।
औरत की साड़ी उसके फूले हुए पेट के ऊपर बंधी थी—जिससे उसकी साड़ी उसके टखनों से कॉफी ऊपर तक हो रही थी।
साफ नजर आ रहा था कि वह गर्भवती है।
तभी छोटी लड़की—पापा-पापा कहती हुई विशाल कपूर की तरफ लपकी और उसकी टांगों से लिपट कर जोर-जोर से रोने लगी।
विशाल कपूर के कदम वहीं रुक गए—और उसके साथ चल रहे ठाकरे के कदमों में भी स्थिरता आ गई।
इंसानियत के नाते उसने इस मिलन को होने देना उचित समझा—सो वह कुछ नहीं बोला।
विशाल कपूर झुका और बच्ची को अपनी बांहों में उठाकर सीधा होते हुए उसके आंसू पोंछने लगा।
“घर आ जाओ, पापा...मम्मी घर में रोती रहती हैं।” वह मासूम भोलेपन से रोते हुए बोली—“हमारा भी दिल नहीं लगता आपके बिना।” कह कर उसने ठाकरे की तरफ देखा—“मेरे पापा को छोड़ दीजिए अंकल—मैंने तीस रुपये जोड़े हैं—साथ में मेरे पास बहुत-सी गुड़ियां-गुड्डे हैं—आप सभी ले लीजिये—मगर मेरे पापा को छोड़ दें।”
उस मासूम गुड़िया से नजर मिलाने का साहस नहीं था उसमें।
तभी बच्चा उठाये औरत विशाल कपूर के सामने आई और उसके सीने से सिर लगा कर फफक पड़ी।
“मत रोओ, नेहा...तुम भी जानती हो कि मैं बेकसूर हूं। मुझे फंसाया गया है...मैं...।”
“आप दिल छोटा मत कीजिये जी...।” नेहा सीधी हो अपना आंचल दुरुस्त करते हुए बोली—“मैं आपको कुछ भी नहीं होने दूंगी—मैं हाईकोर्ट में अपील करूंगी और आपको इंसाफ दिला कर ही रहूंगी।”
विशाल कपूर ने उसकी बात का जवाब न देते हुए उससे बच्चा लेकर उसे चूमा और वो प्यार से बोला—
“अपनी मां को तंग मत करना।”
बच्चे ने चुपचाप सिर हिला दिया। उस बेचारे को पता ही क्या था कि क्या हो रहा था?
विशाल कपूर ने दोनों बच्चों को बारी-बारी से चूमा और लड़के को नेहा को पकड़ा कर गुड़िया को नीचे खड़ा कर दिया।
“चलो, इंस्पेक्टर...।” वह बोला।
“नहीं...।” गुड़िया फिर से विशाल कपूर की टांगों से लिपट गई और जोर-जोर से रोने लगी—“मैं आपको नहीं जाने दूंगी—आप कहीं नहीं जायेंगे—आप घर चलिए...।“
अपने फटते कलेजे को सम्भाले विशाल कपूर ने गुड़िया को स्वयं से अलग कर उसकी बांह नेहा को पकड़ाई और भर्राये लहजे में बोला—“बच्चों का ध्यान रखना नेहा...।”
कुछ नहीं बोली नेहा—बस आंसू बहाते हुए सिर हिला दिया।
“चलो, इंस्पेक्टर...।“ विशाल कपूर बोला और पुलिस की बंद गाड़ी की तरफ कदम बढ़ा दिए—जिसका पिछला दरवाजा खुला था।
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