सिन्दूर की कसम : Sindoor Ki Kasam
Ebook ✓ 48 Free Preview ✓
48
100
Description
चम्पापुर रियासत की चम्पावती न केवल राजकुमारी थी बल्कि परम्परागत शक्तियों कि स्वामिनी भी थी। वो एक रहस्यमय खजाने की चाबी भी थी, जिस खजाने पर पाँच सौ सालों से डाका डालने के प्रयास में लोग जान गँवा रहे थे, फिर वो खुद एक रहस्य बन गई। ऐसा रहस्य जिसकी सच्चाई जो जानने का दावा करता था, वो ही गलत प्रूव होता था।
रहस्य के धागों से बुना ऐसा मायाजाल है ‘सिन्दूर की कसम’—जो पुरातन क्रूर परम्पराओं पर भी तीखी चोट करता है।
सुपरस्टार राइटर ‘परशुराम शर्मा’ की शानदार कारीगरी — सिन्दूर की कसम
Sindoor Ki Kasam
Parshuram Sharma
Ravi Pocket Books
प्रस्तुत उपन्यास के सभी पात्र एवं घटनायें काल्पनिक हैं। किसी जीवित अथवा मृत व्यक्ति से इनका कतई कोई सम्बन्ध नहीं है। समानता संयोग से हो सकती है। उपन्यास का उद्देश्य मात्र मनोरंजन है। प्रस्तुत उपन्यास में दिए गए हिंसक दृश्यों, धूम्रपान, मधपान अथवा किसी अन्य मादक पदार्थों के सेवन का प्रकाशक या लेखक कत्तई समर्थन नहीं करते। इस प्रकार के दृश्य पाठकों को इन कृत्यों को प्रेरित करने के लिए नहीं बल्कि कथानक को वास्तविक रूप में दर्शाने के लिए दिए गए हैं। पाठकों से अनुरोध है की इन कृत्यों वे दुर्व्यसनों को दूर ही रखें। यह उपन्यास मात्र 18 + की आयु के लिए ही प्रकाशित किया गया है। उपन्यासब आगे पड़ने से पाठक अपनी सहमति दर्ज कर रहा है की वह 18 + है।
Free Preview
सिन्दूर की कसम
महल डिस्को क्लब में मुख्य आकर्षण का केन्द्र हिना थी। उसकी दीवानों की कमी नहीं थी—महल के मालिक ने भी हिना की पब्लिसिटी पर काफी पैसा खर्च किया था और इस पब्लिसिटी का नतीजा था—जो हिना का डिस्को और ब्रेक डांस देखने वाले सौ रूपए का टिकट खर्च करके वहां आते थे। और हिना के उस फूल का इन्तजार करते थे जो वह नाचते-नाचते हॉल में बैठे लोगों की तरफ उछालती थी। फूल किसी की गोद में गिरता था और फिर वही इंसान हिना का नाइटपेयर हो जाता था।
क्लब के कर्मचारी और दूसरी लड़कियां ग्राहकों को यह बात समझा देती थीं कि इस क्लब में सिर्फ हिना ही एक ऐसी लड़की है जिसे बुक नहीं किया जा सकता—वह अपने पसंदीदा व्यक्ति की तरफ फूल उछालेगी और फिर इसे इशारा करेगी कि वह फ्लोर पर आकर उसके साथ नाचे और फिर उस खुशनसीब की तरफ से एक शैम्पेन खोली जाएगी और हिना उसके साथ फ्लोर छोड़कर चली जाएगी।
अमरेन्दर सिंह एक सप्ताह से रोज क्लब में आ रहा था और इस चक्कर में था कि फूल उसकी गोद में गिरे, पर ऐसा तो सभी सोचकर आते थे—पर फूल तो किसी एक की गोद में गिरता था...। अमरेन्दर अब तक सात हजार रूपए क्लब की भेंट चढ़ा चुका था।
“मेरे लिए आर्डर देंगे आप?” एक लड़की अमरेन्दर के पास आकर बैठती हुई बोली।
अमरेन्दर चुपचाप सिगरेट के कश लेता हुआ हिना का नृत्य देखता रहा। फूल उसके हाथ में आ गया था और किसी भी लम्हे वह फूल उछाल सकती थी।
“फूल का इन्तजार है।”
“सब ब्लडीफूल इसी फूल के इन्तजार में हैं...।” अमरेन्दर ने उसकी तरफ देखे बिना कहा।
“अगर वह तुम्हारे पास आ गया तो आर्डर चलेगा...।”
“सबको दावत...अब तक तुम छोकरी लोगों का आर्डर ही तो भरता रहा हूं।”
“फूल न आया तो मेरी बुकिंग करेंगे...।”
“अरे लानत है बुकिंग पर...मैं यहां लुगाई बाजी करने नहीं आता, समझी...मेरी तरफ से उम्मीद छोड़कर दूसरा ग्राहक ढूंढो...।”
लड़की बुरा-सा मुंह बनाकर खड़ी हुई।
महल डिस्को क्लब ऊंचे दर्जे का रंडीखाना था। जो लोग जी० बी० की बदबूदार गलियों में जाना अपनी तौहीन समझते थे और जिनके पास काले धन को ठिकाने लगाने का कोई जरिया नहीं था—उन लोगों के ऐश्वर्य के लिए नए तरीके की व्यवस्थाएं की गई हैं...उनका एक रूप डिस्को क्लब है।
“साली...।” लड़की के जाने के बाद अमरेन्दर ने भद्दी गाली दी...। “पता नहीं अपने आप को क्या समझती हैं।”
इतने में एक छोकरा अमरेन्दर के पास बिना पूछे आकर बैठ गया।
अमरेन्दर ने उसे घूरकर देखा। उसने बैठने के लिए आज्ञा लेने की भी जहमत गंवारा नहीं की।
“क्यों मिस्टर...तुम्हें भी ऑर्डर की जरूरत है क्या?” अमरेन्दर ने उसे घूरते हुए कहा।
“नहीं...।” वह लड़का बोला, “मैं बाहर से पी खाकर यहां आता हूं।”
“तेरे को भी लुगाई बाजी का शौक है क्या...इतनी-सी उम्र में...शादी हुई तेरी...।”
“नहीं...शादी भी नहीं...शौक भी नहीं।”
“फिर यहां काहे को आया है...।”
“एक भटकी हुई लड़की को रास्ता दिखाने...।”
“भटकी हुई लड़की...अबे यहां भटकी हुई लड़कियां कहां हैं...कमाने खाने वाली हाई जेंट्री की रण्डियां हैं...इनमें से ज्यादातर तो खाते-पीते घरों से आवारागर्दी करने आती हैं...।”
“सबकी बात मैं नहीं जानता...मैं हिना के अलावा किसी को नहीं जानता।”
“हिना...।” अमरेन्दर अब सतर्क हो गया——“हिना तुम्हारी क्या लगती है?”
“मंगेतर...मैं उससे मोहब्बत करता हूं...और आखिरी दम तक करता रहूंगा।”
“मोहब्बत और इन छोकरियों से...।” अमरेन्दर हंस पड़ा।
“मैं उसे इस गन्दी दुनिया से मुक्त कराकर जरूर ले जाऊंगा...अब हिना मुझे नहीं पहचानती...पर मैं तो उसे पहचानता हूं...और यह पहचान कायम रखना चाहता हूं? वह भटक गई है...लेकिन मैंने भी हिम्मत नहीं हारनी है...। उसने सगाई तोड़ दी तो क्या हुआ...मैंने तो नहीं तोड़ी...।”
“दारू पिएगा...?”
“नहीं...वह देखेगी तो बुरा मानेगी...।”
“कमाल का आशिक है यार...यह जानने के बाद भी कि वह रोज किसी मर्द के साथ ऐश करती है फिर भी तू उसका दम भर रहा है...।”
“क्योंकि यह मेरी ही गलती से हुआ...इसका जिम्मेदार भी मैं ही हूं...दहेज नामक शैतान ने उसे मुझसे दूर कर दिया और वह इस रास्ते पर चली आई। उसने कहा था कि वह अब अपने पति के लिए सौदा खुद करेगी...उसके पास लाखों रुपया होगा और वह ठोक बजाकर पति खरीदने बाजार में निकलेगी...अपने पति के गले में एक पट्टा डाल देगी...कुत्ते की तरह...।”
“यार पुत्तर...तुम लोगों की प्रेम कहानी तो किसी फिल्म माफिक लगती है...।”
“मैं अपनी कहानी को नीकामी की चीज नहीं समझता...।”
सातवें दिन भी हिना का फूल अमरेन्दर के पास नहीं आया परन्तु उसे हिना तक पहुंचने का एक रास्ता अवश्य मिल गया था। और वह रास्ता मधुसूदन था जो हिना का प्रेमी था।
“लेकिन मुझे तो बताओ...शायद मैं तुम्हारी कुछ मदद कर सकूं...।” अमरेन्दर ने उसे टटोला।
“क्या करोगे अंकल जानकर...कोई कुछ नहीं कर सकता...।”
“तुम करते क्या हो?”
“फिलहाल तो घर से भागा हुआ हूं और लौटूंगा तभी जब हिना को हासिल कर लूंगा...।”
“लेकिन जीने के लिए कुछ तो करना ही होगा...तुम चाहो तो मैं वह काम कर सकता हूं...तुम्हारी कहीं अच्छी-सी नौकरी लगा सकता हूं—खर्चा कैसे चलता है...।”
“मैं घर से पचास हजार रूपये लेकर चम्पत हुआ हूं...।”
“पचास हजार भी ठिकाने लग जाएंगे पुत्तर...इस तरह डिस्को क्लबों में जाता रहेगा तो अधिक वक्त नहीं लगने का...फिर तू क्या करेगा...?”
“तब की तब सोची जाएगी...अभी तो मेरे पास तीस हजार रुपया है।
“यार पुत्तर...तीस हजार भी ठण्डा हो जाएगा...फिर मुझ जैसा आदमी तुझे नहीं मिलने वाला...तू तीस हजार आड़े वक्त के लिए जमा रख और नौकरी करके...और हिना से तेरी शादी भी करवाने में मदद करूंगा...मैं बहुत पैसे वाला आदमी हूं मुन्ना...और मेरे ताल्लुकात भी हाई लेवल तक हैं...।”
“लेकिन आप मेरी मदद करना क्यों चाहते हैं...?”
“तू होटल रंजीत में आ जा...मेरे कमरे का नंबर एक बारह है...नोट कर ले...नाम कुंवर अमरेन्दर सिंह...वहीं तुझे सब बताऊंगा...।”
मधुसूदन ने अपना पर्स निकाला और फिर पर्स की डायरी में नोट कर लिया।
“कल ही आ जा...लंच पर...लंच मेरे यहां...।”
मधुसूदन ने सहमति से सिर हिलाया और हिना के फ्लोर से हटते ही वह भी उठकर चला गया।
¶¶
अमरेन्दर को मधुसूदन के आने की उम्मीद नहीं थी—परन्तु जब वह ठीक वक्त पर पहुंच गया तो कुंवर अमरेन्दर को लगा कि लड़का अपने मामले में सीत्पिस है और अभी इतना बिगड़ा हुआ नहीं है...
“बैठ बेटा...बैठ जा।” अमरेन्दर ने कहा——“मैं तेरा ही इन्तजार कर रहा था।”
मधुसूदन बैठ गया।
“पहले मैं तुम्हें अपना पूरा परिचय देता हूं।” कुंवर अमरेन्दर ने कहा——“चम्पापुर का नाम सुना कभी?”
“जी, सुना है पर...।”
“मैं चम्पापुर स्टेट का ट्रस्टी हूं। कुंवर अमरेन्दर सिंह या कुंवर अमर कह सकते हो।”
“ओ आई सी...तब तो आप बहुत बड़ी हस्ती हैं...।”
“और मैं तीन बार अपने इलाके का एम० पी० रह चुका हूं...एक बार मिनिस्टर भी रहा हूं...।” अमरेन्दर ने अपनी अधपली मूंछों पर ताव देते हुए कहा।
“आपको ऐसी घटिया जगह नहीं जाना चाहिए था...।”
“यही तो रोना है मुन्ना...हम भी तुम्हारी इस हिना का फोटो मैगजीन में देखकर वहां गए थे...इसका यह मतलब मत समझना कि हम उसका नाईट पार्टनर बनना चाहते हैं। असल में किस्सा कुछ और ही है...हमने बहुत कोशिश की कि वह कुछ वक्त हमसे बात करे पर उस क्लब का मालिक पता नहीं उसे क्या तोप समझता है...उसे किसी से बात भी नहीं करने देता...नाइट में चाहे जो मर्जी करो। उसका पता मालूम करना चाहा तो किसी ने बोलने नहीं दिया।”
“वह लोग पता काहे को बोलने लगे। इस धंधे में जो औरत या लड़की उतरती है उसका न तो कोई पता होता है न कोई नाम जो भी होता है सब फर्जी...।”
“हिना का नाम क्या है? मेरा मतलब असली नाम?”
“उसका असली नाम हिना ही है।”
“कमाल है। वह अपने असली नाम से इस धंधे में जानी जाती है। कॉलगर्ल्स तो अपना नाम बदल देती हैं।”
“लेकिन वह इस नाम से कोई बेशर्मी नहीं समझती। बस इसलिए तो उसे सही रास्ते पर लाना मुश्किल पड़ रहा है। उसकी नजर में यह सब कारोबार है और इस कारोबार से वह दौलतमन्द बनना चाहती है। हिना जैसी बहुत-सी लड़कियां आज इस धंधे को अपनाए हुए हैं और हर एक की अपनी एक अलग कहानी है—एक मजबूरी है—लेकिन इसमें सबसे बड़ी मजबूरी पैसा है—जो किसी भी तरह कैसे भी हासिल करना होता है—इनमें से अधिकांश पैसा कमा कर बाद में शादी करके गृहस्थ जीवन में आ जाती हैं। अब तक वेश्या ग्रहस्थ जीवन में नहीं आती और आती भी है तो कोठा नहीं छोड़ती...।”
“लेकिन हिना को इस धंधे में क्यों आना पड़ा?”
“एक हिना ही क्यों...और भी हिनाएं हैं...आप किस-किस के बारे में जानते फिरेंगे...।”
“किस-किससे मेरा कोई मतलब नहीं मित्र...मेरा मतलब सिर्फ एक ही हिना से है—मैं कोई समाज सुधारक नहीं हूं जो इन्हें सुधारने का ठेका लेता फिरूं। दरअसल में किसी खास मकसद से यह सब जानकारी हासिल करना चाहता हूं।”
“पहले आप अपना मकसद बयान करें।” मधुसूदन ने पूछा——“आप बताइए तो...फिर ही कुछ बात बनेगी।”
“तुम तो यार पूरे ही घाघ मालूम पड़ते हो...खैर...।”
अमरेन्दर अपने स्थान से खड़ा हुआ। उसने कमरे में रखा अपना ब्रीफकेस खोला और फिर एक लिफाफा लेकर वापस उसी जगह आकर बैठ गया। उसने लिफाफे से एक फोटो निकाली और मधुसूदन को थमा दी।
“बताओ यह किसका फोटो है?” अमरेन्दर ने सवाल किया।
“हिना का है...।” मधुसूदन ने फोटो लौटाते हुए कहा——“आपने कहां खींचा?”
“यह हिना का फोटो नहीं है मेरे नन्हे मित्र...।”
“क्या...?” मधुसूदन चौंक पड़ा, “आप क्या कह रहे हैं?”
“बहुत ध्यान से देखने पर भी फर्क महसूस नहीं होता लेकिन यह सचमुच हिना की फोटो नहीं है।”
“कमाल है! आप मजाक कर रहे हैं।”
“मैं मजाक नहीं कर रहा यार। यह चम्पाकली का फोटो है...चम्पाकली...!”
“चम्पाकली...चम्पाकली कौन है?”
“चम्पाकली चम्पाकली ही है और जिसकी यह तस्वीर है वह चम्पाकली है।”
“लेकिन...।” मधुसूदन ने फोटो दोबारा देखा——“आप चाहे इसे जो नाम दें...लेकिन यह हिना है...हण्ड्रेड परसेंट हिना है मैं इस पर शर्त लगाने को तैयार हूं।”
“तुम शर्त हार जाओगे पुत्तर...चम्पाकली राजा रणविजय सिंह की इकलौती बेटी का नाम है और चम्पापुर में कौन है जो रणविजय का नाम नहीं जानता।”
“बड़ी अजीब बात है! हिना और चम्पाकली...चम्पाकली के राजा की बेटी और आप...?”
“मैं राजा रणविजय का छोटा भाई...स्टेट की संपत्ति का ट्रस्टी!”
“ओह...लेकिन ट्रस्टी क्यों?”
“यह लम्बी कहानी है...फिलहाल तुम इस कहानी के पचड़े में मत पड़ो मैं तुम्हें यह बताना चाहता था कि मैं हिना से क्यों दिलचस्पी ले रहा हूं। चम्पाकली और हिना की शक्ल में जरा मात्र भी फर्क नहीं होने के कारण...।”
“तो...।”
“नो...।” अमरेन्दर को उस पर गुस्सा आने लगा——“तो के बच्चे...तू भी कुछ बोलेगा या नहीं...।”
“म...मैं क्या बोलूं...?”
“यह हिना कौन है...क्या किस्सा है इसका...मेरा शक है कि यह चम्पाकली है—जो हिना बनकर अपनी इज्जत लुटाने आ गई है...मैं इसे वापस ले जाने आया हूं...।”
“फिर तो आपको जबरदस्त गलतफहमी हो गई है। हिना तो एक गरीब घर की लड़की है—उसके दो भाई हैं...बाप शराबी है और कुछ कमाता-धमाता नहीं...मां मर चुकी है...हिना मेरी मंगेतर है...मैं उससे मोहब्बत करता हूं...हम शादी कर लेते मगर मेरे बाप ने नहीं होने दी...।”
“क्यों नहीं होने दी...।”
“दहेज के अभिशाप ने नहीं होने दी...मैंने हिना के बाप को समझाया था कि मेरा लालची बाप दहेज की जो भी शर्त रखे सब मान लेना...एक बार सगाई हो जाए, फिर शादी के वक्त मैं बाप से खुद ही निबट लूंगा...लेकिन मेरा लालची बाप सगाई तो करवा बैठा पर शादी के लिए तैयार नहीं हुआ। शादी से पहले ही पचास हजार रुपया कैश मांगने लगा...और बाकी दहेज शादी पर देने की शर्त रखने लगा...बस यहीं से सारी गड़बड़ शुरू हो गई। मैंने सोचा घरवाले तैयार नहीं होते तो क्या बात है हम कोर्ट मैरिज कर लेंगे...लेकिन हिना एक स्वाभिमानी लड़की है—वह कोर्ट मैरिज पर राजी न हुई और बोली शादी चोरों की तरह नहीं होगी—मैं बारात लेकर उसके घर पर पहुंचूं...सम्मान पूर्वक उसे दुल्हन बनाकर अपने घर ले जाऊंगा...तभी...बस यहीं से सारा किस्सा बिगड़ गया...हिना की खातिर मैं अपने बाप से लड़ पड़ा...पर घर में एक भी आदमी मेरे पक्ष में नहीं था...कोई भी नहीं...फिर हिना से आखिर सगाई टूट ही गई...वह यहां आ गई...और मैं भी घर से फरार होकर यहां आ पहुंचा...।”
“क्या तुम और हिना इसी शहर के हो?”
“नहीं...हिना का भाई यहां दिल्ली में एक कारखाने में चौकीदारी का काम करता है। यह उसी के पास आ गई। हम दोनों लखनऊ के रहने वाले हैं।”
“तुम्हारे लालची बाप ने तुम्हारी गुमशुदगी की रिपोर्ट थाने में दर्ज तो कराई ही होगी?”
“हां कराई है...लेकिन मैं अपने लालची बाप का पक्का इंतजाम करके आया हूं—मैं जानता था पचास हजार की रकम वापिस करने के लिए वह अपने बेटे को जरूर तलाश करेगा...यूं भी मैं उसके लिए दहेज की लॉटरी का टिकट हूं—इन दो वजहों से वह मुझे आसानी से हल्क से नहीं जाने देगा...दूसरा खटका उसे यह होगा कि कहीं मैं हिना से शादी न रचा लूं...इन सब कारणों से वह पुलिस की मदद से मुझे हासिल करने की कोशिश करेगा लेकिन मैंने भी कच्ची गोलियां नहीं खेलीं...मैं थाने वालों को दस हजार रुपए चटवाकर आया हूं। वे मुझे तलाश ही नहीं करेंगे...उन्होंने मुझसे एक दरखास्त भी लिखवा कर रख ली थी——ताकि अगर मेरा बाप ज्यादा हाथ पांव पटके तो वे जवाब में वह दरखास्त दिखाकर उल्टे मेरे बाप पर डण्डा घुमा सकें...मैंने उसमें लिख दिया कि दहेज के लालच में मेरी शादी तोड़ी गई, जिससे एक लड़की का जीवन बर्बाद हो गया और इस कारण से मैं घर छोड़ रहा हूं...और वक्त आने पर हिना से शादी कर लूंगा।”
“थाने वालों ने तुम्हारी इतनी कैसे मान ली...जो तुम्हारे लिए इतनी सिरदर्दी लेंगे...वे तुम्हें पकड़ कर वापिस ले जा सकते हैं।”
“जरूर ले जा सकते थे...इस काम के लिए मेरा बाप दस-बीस हजार खर्च कर सकता था—लेकिन थाने और अपने शहर की पुलिस का मुझे खास तजुर्बा है...थाने के दो दरोगा शर्मा, वर्मा मेरे दोस्त बन गए थे। दोनों शराबी, कबाबी...हिना से कोर्ट मैरिज की सलाह उन्होंने ही दी थी। उनका कहना था कि इस काम में मेरी मदद करेंगे...लेकिन मैं इनके झांसे में नहीं आया...मैंने उनसे कहा कि मैं भागना चाहता हूं—हिना मेरी जिन्दगी से निकल चुकी है। वह दिल्ली में है और मैं उससे वहीं शादी करूंगा...तब तक तो दोनों दोस्त बने रहे परन्तु इनकी हरामखोरी, मक्कारी और यारी का असली चेहरा तब सामने आया जब उन्होंने थाने में बन्द करवा दिया।”
“वह क्यों?”
“एक दिन उन्होंने मुझसे एक ड्रामा किया। मैं भागने का प्लान बना रहा था और मैं बस पैसा उड़ाने की ताक में था...इन्हें सब कुछ मालूम था कि मैं कब कहां किस तरह रुपया लेकर चम्पत हूंगा। ठीक वक्त पर दो सिपाहियों ने मुझे पकड़ लिया और मुझे थाने में ले आए...थाने के एस० ओ० जगदीश के सामने मुझे पेश किया और फिर मुझसे कहा कि मेरे बाप ने रिपोर्ट लिखाई है। उस वक्त मेरे पास कुल दस हजार रुपया था। बाकी रुपया मैंने हिना के बाप को दिया हुआ था कि जरूरत पड़ते ही ले लूंगा...मैंने तीन किस्तों में रुपया घर की सेफ से चुराया था और तब तक किसी को खबर तक नहीं लगी थी। दस हजार आखिरी बार मेरे हाथ लगा था और मैं उसी दिन निकलने वाला था। तब इन दोनों दरोगाओं ने एस० ओ० से मेरी सिफारिश की और उसके बाद मुझसे कहा कि एस० ओ० रुपया मांग रहा है। मैंने उनसे कहा कि मेरे पल्ले कुल दस हजार की रकम लगी है और इसी में मुझे गुजारा करना है...तब इन लोगों ने दस हजार मुझसे वसूल कर लिए और तब मुझे पुलिस की यारी का तजुर्बा हुआ...मैंने उनसे कहा कि मैं दस हजार तो दे दूंगा पर बाद में वे मुझे तंग न करें और मेरी कोई खोज खबर न करें—वह राजी हो गए...।”
“और जब बाद में उन्हें पता लगा होगा कि तुम पचास हजार लेकर गए हो तो...।”
“तो भी अब वे कुछ नहीं करेंगे...अगर मुझे पकड़ा तो मैं बताऊंगा कि रुपया कहां-कहां खर्च हुआ...यह बात मैं उन्हें समझाकर आया था। मैं दस हजार का जूता उनके मुंह पर मार कर आया हूं। मेरा बाप कोई कम पहुंच वाला आदमी नहीं है। इसलिए उन्होंने मुझसे यह दरखास्त लिखाई थी ताकि कोई दबाव पड़ने पर इसका इस्तेमाल कर सकें और कोई ताज्जुब नहीं कि उन्होंने मेरे बाप को आसामी भी बना लिया हो...जिसे यह लोग आसामी बनाना चाहें उसके खिलाफ एक दो फर्जी रिपोर्ट लिखवा कर अपना उल्लू सीधा कर लेते हैं।”
“खैर! डिस्को क्लब से बाहर क्या तुम हिना से नहीं मिलते?”
“मैंने कोशिश की थी पर अब वह अपने भाई के साथ नहीं रहती—एक लेडीज हॉस्टल में रहने लगी है और वहां का इन्तजाम कुछ ऐसा है कि अगर हिना न मिलना चाहे तो कोई उससे मुलाकात नहीं कर सकता। हॉस्टल से टैक्सी में बैठकर वह सीधी डिस्को क्लब में आ जाती है और यहां भी उससे लम्बी बात करना नामुमकिन है—लेकिन आप हिना से क्यों मिलना चाहते हैं...?”
“मैं तुम्हें बता चुका हूं—मेरा शक था कि वह खुद चम्पाकली है।”
“आपका शक बेबुनियाद है। मैं तो हिना को पिछले दस साल से जानता हूं।”
“तो फिर यही हो सकता है कि यह कुदरत का करिश्मा हो——दोनों की समान शक्लें होना कुदरत की ही बात हो सकती है। यह हिना कुछ पढ़ी-लिखी भी है?”
“बारहवीं कक्षा तक मेरे साथ ही पढ़ी थी...फिर उसने पढ़ाई छोड़ दी। उसकी इंग्लिश बहुत अच्छी है।”
“ओह! तब तो उस पर कुछ खास मेहनत नहीं करनी पड़ेगी...।”
“जी...। मैं समझा नहीं...?”
“देखो मधुसूदन...क्या तुम किसी तरह इस लड़की को राजी कर सकते हो...मैं उसे इतनी दौलत दे सकता हूं जितनी कि वह कल्पना भी नहीं कर सकती...कॉल गर्ल के धंधे में वह कितना कमा लेगी...लाख दो लाख...उसे इससे कहीं अधिक रकम मैं दे सकता हूं और उसे इस तरह का कोई काम भी नहीं करना पड़ेगा?”
“लेकिन आप उसे इतनी रकम क्यों देना चाहते हैं?”
“मैं उसे हिना से चम्पाकली बना दूंगा...एक साधारण लड़की से राजकुमारी बनने का वह सिर्फ सपना देख सकती है।”
“ओह...बात अब समझ में आई...लेकिन चम्पाकली बनाने के बाद मेरा क्या होगा...?”
“तुम्हारी शादी बड़ी धूमधाम के साथ हिना के साथ होगी। मैं तुम्हें राजकुंवर बना दूंगा।”
“तब तो अंकल! मैं आपके काम की खातिर जान लड़ा दूंगा...।”
“तो फिर काम शुरू कर दो...जब यह तैयार हो जाए तो मुझे सूचना दे देना...मेरा फोन नम्बर नोट कर लो...मैं यहीं ठहरा हुआ हूं। उस जगह मेरा बार-बार जाना ठीक नहीं...।”
“हिना को यकीन दिलाने के लिए यह फोटो मुझे दे दें...।”
“हां...इसे रख लो...।”
मधुसूदन चम्पाकली का फोटो लेकर चलता बना।
तीन दिन बाद मधुसूदन ने अमरेन्दर से सम्बन्ध स्थापित किया। और उसे सूचना दी कि हिना उससे बात करने के लिए तैयार हो गई है। हिना से मुलाकात का समय और स्थान तय हो गया। अमरेन्दर ने उसे डिनर पर आमंत्रित कर लिया। और डिस्को क्लब से छुट्टी लेकर हिना होटल रंजीत में पहुंच गई। मधुसूदन उसके साथ ही आया था। मधुसूदन ने दोनों का परिचय कराया।
“अब तू फूट जा मधु! धंधे की बात हम खुद कर लेंगे...।” हिना ने अत्यन्त पेशेवराना अन्दाज में कहा और मधुसूदन उदासी भरा चेहरा लेकर वहां से चलता बना।
“हां तो सेठ...क्या नाम बोला...कुंवर अमरीश...?”
“अमरेन्दर...।”
“ठीक...कुंवर अमरेन्दर...यह मधु तुम्हारी खाली पीली तालिम ठोक रहा था या कुछ दम भी है...।”
“दम...दम तो बहुत है।” अमरेन्दर ने मुस्कुरा कर कहा।
“हमारा एक नाइट पांच हजार का पड़ता है...यह भी बताया उल्लू ने...?”
“लेकिन हम तुमसे नाइट बुक नहीं करना चाहता...।”
“मालूम...मैं सिर्फ यह बताना चाहती हूं कि धंधे की बात नहीं बनी तो पांच हजार का हर्जाना देना होगा...फिर बात खत्म...और हम अपने-अपने रास्ते पर चले जायेंगे, ओ० के०...।”
“मंजूर है...।”
“तो बोलो सेठ क्या खातिर चाहिए...?”
अमरेन्दर हैरान था कि इस लड़की की आवाज चम्पाकली से बिल्कुल मिलती है—लेकिन इसके बोलने का ढंग बिल्कुल पेशेवराना था।
हिना ने एक सिगरेट सुलगा ली। दो-तीन गहरे कश खींचे फिर अमरेन्दर पर निगाह जमाई।
“शुरू करूं...?”
“पहले माल पांच हजार...मेरे पर्स में...फिर काम की बात शुरू...।”
अमरेन्दर ने उसे मन ही मन गालियां दी और फिर पांच हजार रुपया दे दिया।
“अब ठीक...।” वह हंस पड़ी, “अपना राग शुरू करो...आज रात के लिए हिना तुम्हारी जानेमन है...।”
“बात एक रात की नहीं है...लम्बी डील है...तुम्हें मधुसूदन ने कितना बताया...।”
“वह चम्पाकली का मामला...हमारी शक्ल किसी प्रिंसेस से मिलती है...बस...।”
“तो तुम चम्पाकली बनने को तैयार हो...?”
“बखेड़े का धंधा नहीं सेठ...हिना एक धंधे वाली कॉल गर्ल है—मालूम है ना...।”
“बराबर मालूम है।”
“तो हिना चम्पाकली कैसे बन सकती है...हमारे सारे आशिक उधर ही पहुंच जायेंगे...।”
“कोई उल्लू का पट्ठा नहीं पहुंचने पाएगा...तुम अभी कुंवर अमरेन्दर को ठीक तरह से नहीं जानतीं...तुम सिर्फ हां करो और रुपया बोलो...यह काम मेरा है तुम्हें चम्पाकली बनाना...उसमें तुम्हें कोई परेशानी या उलझन नहीं होगी...।”
“और उसको भी नहीं...?”
“किसको?”
“चम्पाकली को...उसको जब पता लगेगा कि हिना दो टके की कॉलगर्ल उसका राजपाट सम्भाले है, तब...?”
“चम्पाकली...।” अमरेन्दर मुस्कुराया, “तुम यूं समझो कि वह मर चुकी है और मेरे तुम्हारे सिवा किसी को इस बात का पता नहीं है कि चम्पाकली मर चुकी है तब...।”
“और लोग भी तो होंगे जो चम्पाकली को जानते पहचानते होंगे...।”
“तुम्हारी समझ में यह बात क्यों नहीं आती कि चम्पाकली कोई साधारण लड़की नहीं है। उससे वही मिल सकता है। वही बात कर सकता है जिसे हम चाहें।”
“चम्पाकली बनकर मुझे क्या करना होगा...?”
“अगर तुम चाहो तो जीवन भर चम्पाकली बनी रह सकती हो और यह राज़ सिर्फ मुझे मालूम होगा लेकिन अगर यह रात भर का एग्रीमेंट नहीं तो फिर तुम्हें कुछ अरसा चम्पाकली बनकर रहना होगा जब तक कि चम्पाकली यानी कि तुम्हारी शादी नहीं हो जाती...और यह शादी तुम्हारे लिए नाटक भर होगी—शादी तुम्हें उस शख्स से करनी है—जो हम सजेस्ट करेंगे...इसके बाद तुम अपनी सम्पत्ति अपने पति के नाम ट्रांसफर कर दोगी और तुम्हारा खेल खत्म हो जाएगा...तुम चाहे जहां अपना जीवन बिताने के लिए स्वतंत्र होगी। अब तुम चाहे जैसा मुनासिब समझो...।”
“अगर मैं सारी जिन्दगी चम्पाकली के रूप में रहना चाहूं तो भी क्या तुम्हारी पसन्द के आदमी से शादी करनी होगी?”
“तब उसकी जरूरत नहीं—तुम अपनी पसन्द के आदमी से शादी कर सकती हो...लेकिन उस सूरत में तुम्हें एक बात का ध्यान रखना होगा...तुम्हारे नाम जो जायदाद होगी उसके मालिक हम रहेंगे...तुम एक रबर स्टैम्प बनकर रहोगी...वैसे तुम खुद चाहे जितनी ऐश से जीना चाहो, जी सकोगी...।”
“यही ठीक रहेगा...परमानेन्ट चम्पाकली...वाह...ठाठ ही ठाठ...रुपया ही रुपया...दहेज-वहेज की साली प्रॉब्लम ही नहीं...मैं पतियों की मण्डी में कोई अच्छा-सा पति खरीद कर उसके गले में पट्टा डालकर रखूंगी...और वह रोज मेरे पैर धोकर पिएगा...जरूरत पड़ी तो उसे ठोकर मार कर निकाल दूंगी और दूसरा पति खरीद लाऊंगी...पैसा तो बहुत होगा ना हम लोगों के पास...?”
“चम्पाकली बनने के बाद तुम्हारे लिए पैसे की कोई अहमियत नहीं रह जाएगी...लेकिन एक बात याद रखना वहां तुम्हें बाजारू औरत नहीं बनना है...तुम्हारा रुतबा बहुत ऊंचा होना चाहिए...तुम्हारी बोल-चाल...नाज नखरे...चलने का अन्दाज...और बहुत-सी चीजें ध्यान में रखनी होंगी जिसकी तुम्हें ट्रेनिंग की जरूरत है...।”
“अरे...वह तुम मुझ पर छोड़ो...फिल्म की माफिक काम करूंगी...चलो सेठ इसी खुशी में व्हिस्की मंगाओ...आज की दावत हम तुम्हें देंगे...तुमने हमारा लफड़ा ही निपटा दिया...।”
“एक बात कान खोलकर सुन लो छोकरी! तुम्हें यह रण्डियों वाली आदत बिल्कुल छोड़नी होगी।”
“क्या बोला...तूने मुझको रण्डी बोला—अरे जा...सेठ होगा तू अपने घर का...अरे रण्डी होगी तेरी मां...तेरी तो...।” हिना ने उसे बड़ी भद्दी गाली दी और उठ खड़ी हुई——“पकड़ अपने रुपये...मैं हराम की कमाई नहीं खाती...।”
उसने रुपये अमरेन्दर की तरफ फेंक दिए और अमरेन्दर खून का घूंट पीकर रह गया।
“हरामजादी...!” वह बड़बड़ाया फिर जब उसने देखा कि हिना वाकई उसके हाथ से निकलने वाली है तो वह एकदम से आगे बढ़ा और उसका रास्ता रोक कर खड़ा हो गया——“तुम तो नाराज हो गईं...असल में मैं यह कहना चाहता था कि अब तुम हिना नहीं चम्पाकली हो—सो तुम्हें अपनी आदतों को बदलना होगा...चम्पाकली ना तो शराब पीती है, ना सिगरेट—इसलिए यह सब तुम्हें छोड़ना होगा...।”
“तो ऐसा बोल...काहे को गाली देता है। अरे रण्डी को रण्डी कौन बनाता है, मालूम...?”
“नहीं...।”
“तुम लोग बनाता है—वरना औरत मां होती है, बहन होती है...बीवी होती है...होती है कि नहीं।”
“हां...ठीक कहती हो...अब गुस्सा थूक दो और बैठ जाओ...।”
वह वापिस आकर बैठ गई।
“मेरे ख्याल से अब हमें डिनर ले लेना चाहिए...डाइनिंग हॉल में नहीं—यहां पर...।”
“जैसी तुम्हारी मर्जी!” हिना ने पुनः सिगरेट सुलगा ली लेकिन सिगरेट सुलगाने के बाद वह मुस्कुराई। अमरेन्दर ने कुछ न कहा—फिर हिना ने स्वयं ही सिगरेट एस्ट्रे में कुचलते हुए कहा——“आज से यह बन्द., और व्हिस्की भी बन्द...।”
“वैरी गुड...गुड गर्ल...।” अमरेन्दर ने इन्टरकॉम पर कमरे में ही डिनर भेजने का आदेश दिया।
¶¶
1 review for Simple Product 007
Additional information
Book Title | सिन्दूर की कसम : Sindoor Ki Kasam |
---|---|
Isbn No | |
No of Pages | 216 |
Country Of Orign | India |
Year of Publication | |
Language | |
Genres | |
Author | |
Age | |
Publisher Name | Ravi Pocket Books |
Related products
-
- Keshav Puran : केशव पुराण
-
10048
-
- Changez Khan : चंगेज खान
-
10048
admin –
Aliquam fringilla euismod risus ac bibendum. Sed sit amet sem varius ante feugiat lacinia. Nunc ipsum nulla, vulputate ut venenatis vitae, malesuada ut mi. Quisque iaculis, dui congue placerat pretium, augue erat accumsan lacus