शोला : Shola
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Description
देवा ठाकुर का पहला पैगाम जिस्म की
हर सांस, हर धड़कन पर
मुकम्मल कब्जा!
Shola
Deva Thakur
Ravi Pocket Books
BookMadaari
प्रस्तुत उपन्यास के सभी पात्र एवं घटनायें काल्पनिक हैं। किसी जीवित अथवा मृत व्यक्ति से इनका कतई कोई सम्बन्ध नहीं है। समानता संयोग से हो सकती है। उपन्यास का उद्देश्य मात्र मनोरंजन है। प्रस्तुत उपन्यास में दिए गए हिंसक दृश्यों, धूम्रपान, मधपान अथवा किसी अन्य मादक पदार्थों के सेवन का प्रकाशक या लेखक कत्तई समर्थन नहीं करते। इस प्रकार के दृश्य पाठकों को इन कृत्यों को प्रेरित करने के लिए नहीं बल्कि कथानक को वास्तविक रूप में दर्शाने के लिए दिए गए हैं। पाठकों से अनुरोध है की इन कृत्यों वे दुर्व्यसनों को दूर ही रखें। यह उपन्यास मात्र 18 + की आयु के लिए ही प्रकाशित किया गया है। उपन्यासब आगे पड़ने से पाठक अपनी सहमति दर्ज कर रहा है की वह 18 + है।
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शोला
देवा ठाकुर
यूसुफ गाजी अपनी जिन्दगी का सबसे हैरतअंगेज दृश्य देख रहा था। वह एक अदालत के कटघरे में खड़ा था। उसके बाएं हाथ में हथकड़ी थी और उस हथकड़ी की रस्सी एक सिपाही ने पकड़ी हुई थी। वह सिपाही कटघरे से बिल्कुल सटकर खड़ा था। अदालत ठीक वैसी ही थी, जैसी कि होती हैं। मंचनुमा स्थान पर एक लम्बी-सी मेज के पीछे महामहिम जज काला चोंगा पहने विराजमान थे...जज के दाईं ओर पेशकार बहुत सी फाइलें सामने सजाए बैठा था। बाईं तरफ एक लेडी स्टेनोग्राफर टाइप राइटर पर खटर-पटर कर रही थी।
अदालत में पुलिस वालों का आवागमन जारी था...काले कोट वाले वकील भी आ-जा रहे थे। ऐसा नहीं था कि यूसुफ ने अदालतें नहीं देखी थीं। अदालत उसके लिए कोई हैरतअंगेज हो भी नहीं सकती थी। हैरतअंगेज बात तो यह थी कि वह अदालत में पहुंच कैसे गया? न ही पुलिस ने उसे किसी जुर्म में गिरफ्तार किया था, न ही उस पर कोई केस रजिस्टर्ड हुआ था...फिर बिना कुछ किए-धरे सीधे अदालत।
अचानक यूसुफ को ध्यान आया कि वह तो एयर फ्रांस की फ्लाइट से इंदिरा गांधी एयरपोर्ट पर उतरा था। लन्दन से एक फर्जी पासपोर्ट पर सफर करता हुआ यहां पहुंचा था। पासपोर्ट में उसका नाम गगन मल्होत्रा था और यह सारा प्रबन्ध बाकायदा 'मास्क' ऑर्गेनाइजेशन ने ही किया था। एयरपोर्ट पर इमीग्रेशन ऑफिस से फ्री होने के बाद कस्टम काउंटर पर उसने अपना सामान चेक कराया। पासपोर्ट पर मुहर लगवाई और अपना लगेज ट्रॉली में रखकर ट्रॉली धकेलता टर्मिनल के एक्सटीरियर में पहुंचा, जहां पूर्व निर्धारित प्रोग्राम के तहत बलेश्वर नामक व्यक्ति ने उसे रिसीव किया। बलेश्वर को भी वह अच्छी प्रकार पहचानता था और बलेश्वर को उसे इस नए रूप में पहचानने में कतई परेशानी नहीं हुई थी।
लन्दन में एक एक्सपर्ट ने उसके चेहरे पर प्लास्टिक मेकअप करके उसे गगन मल्होत्रा बनाया था...उसकी शक्ल बेशक बदली हुई थी...यह सावधानी इसलिए बरती गई थी, क्योंकि पुलिस को उसकी तलाश थी। पुलिस यूसुफ गाजी को तलाश कर रही थी, लेकिन अब वह यूसुफ गाजी था ही नहीं, इस नए रूप का पता संगठन के चंद विश्वसनीय एजेंटों को था, जिनमें बलेश्वर भी एक था।
वह बाकायदा कार में बैठा था...बलेश्वर ने उसके लिए एक ऐसी गाड़ी का प्रबन्ध किया था, जो बकौल इसके लिए बुलेट प्रूफ थी। उसकी पिछली सीट और अगली सीट के दरमियान एक शीशा लगा था। जिस तरह एक माफिया डॉन या किसी मोस्ट वी०आई०पी० पर्सन की सिक्योरिटी की पूर्ण व्यवस्था की जाती थी...वैसे ही व्यवस्था उसके लिए की गई थी। यूसुफ अपने मातहतों की इस कार्यशैली से बहुत खुश था। बलेश्वर ने ड्राइविंग सीट सम्भाली थी...उसके बाद न जाने क्या हुआ कि वह सीट पर बैठे-बैठे सो गया और जब उसकी आंख खुली तो अदालत के कटघरे में खड़ा था...यही बात उसके लिए हैरतअंगेज थी।
“यह जज बड़ा खब्ती है।” यूसुफ के बराबर में सटकर खड़ा सिपाही धीरे से बोला——“लगता है, आज फांसी की सजा सुनाएगा...।”
“क...क्या...म...मगर.....क्यों...?” यूसुफ हकला गया——“मगर मैं अदालत में क्योंकर आ गया...?”
उसी समय जज ने मेज पर हथौड़ी बजाई——“ऑर्डर...ऑर्डर...।”
अदालत में सन्नाटा छा गया।
यूसुफ गाजी सोचने लगा, कहीं वह कोई सपना तो नहीं देख रहा है। आखिर यह हो कैसे सकता है? उसने फौरन अपने गाल पर चिकोटी काटी तो खुद 'सी' करके रह गया। अब उसे यकीन आ गया कि यह सपना तो हरगिज नहीं है।
ऐसी सूरते हाल सामने थी कि यूसुफ अपने आप को तिलस्मे होशरूबा या अलिफ लैला के किस्सों का पात्र समझने पर मजबूर हो गया था।
“अदालत की कार्यवाही शुरू की जाए...।” जज ने ऐलान किया।
“सुनो...।” सिपाही ने यूसुफ को कोहनी मारकर धीरे से कहा——“अब अगर तुम्हें फांसी से बचना है तो वही कहना जो मैं कहूं। मैं इस क्रैक जज की दुखती नब्ज जानता हूं...लेकिन शर्त एक है...तुम्हें बरी होने के बाद बीस हजार रुपया देना होगा...मंजूर हो तो तरकीब बताऊं...।”
यूसुफ ने उसे कनखियों से देखा.....मगर कोई जवाब नहीं दिया। वैसे बीस हजार की रकम उसके लिए कोई खास नहीं थी, मगर अभी तक तो उसकी समझ में ही यही नहीं आ रहा था कि मामला क्या है? उस पर चार्ज क्या है...और यह मुकदमा उस पर क्यों चलाया जा रहा है?
अब मुकदमा अदालत में पेश करने वाला पब्लिक प्रॉसिक्यूटर फाइल समेटकर जज की टेबल के सामने आ खड़ा हुआ...उसने एक नजर मुलजिम यूसुफ पर डाली...फिर अपनी फाइल पलटी।
“योर ऑनर...मुलजिम कालू झबरा उर्फ काना कटकटैया दफा 302 का एक संगीन मुलजिम है। यह एक खतरनाक किस्म का जुनूनी हत्यारा है। जिस पर पचास से भी अधिक कत्लों के मामले हैं। यह शख्स रात के समय किसी भी तन्हा आदमी पर हमलावर होता है और उसका सिर काट लेता है। इस जनूनी हत्यारे के ठिकाने पर जब छापा डाला गया तो वहां एक दर्जन इंसानी खोपड़ियां बरामद की गईं और दो ताजा कटे हुए सिर भी पाए गए...पुलिस को इसकी तलाश पिछले पांच साल से थी...।” पब्लिक प्रॉसिक्यूटर ने यूसुफ गाजी पर ऐसा इल्जाम लगाया कि चार्जशीट सुनकर ही यूसुफ के फरिश्ते कूच कर गए।
“अमा...क्या बकवास कर रहे हो?” यूसुफ के मुंह से निकला——“एक दर्जन खोपड़ी...दो ताजे कटे सिर.....और नाम भी क्या बताया...कालू झबरा...लाहौल विला कूवत! कालू झबरा...उर्फ...।”
“उर्फ काना कटकटैया...।” सिपाही बड़बड़ाया।
“हां...वही काना...कटकट...।” यूसुफ बौखलाए स्वर में बोला।
“मुलजिम काना कटकटैया...तुम्हें जो कुछ कहना है, बयाने सफाई के वक्त बोलना...अभी चुप रहो।” सरकारी वकील ने कहा।
“चुप रहो...अमा क्यों चुप रहो...हद हो गई...एक दर्जन खोपड़ी.....दो ताजा कटे सर...कहां की हांक रहे हैं आप...।”
“ऑर्डर...ऑर्डर...।” उसी समय जज ने पहली बार मुलजिम की तरफ देखते हुए अपनी हथौड़ी बजाई।
“म...मी...लार्ड...सब बेबुनियाद इल्जाम मुझ पर लगाया जा रहा है।”
“मुलजिम कालू झबरा उर्फ काना कटकटैया...तुम्हें बयाने सफाई का भरपूर मौका दिया जाएगा...जब तक तुम्हें बयाने सफाई के लिए न कहा जाए.....खामोश रहो...।”
“जी...जी.....।” यूसुफ चुप होकर पब्लिक प्रॉसिक्यूटर को घूरने लगा...उसका दिल चाह रहा था कि इस नामुराद सरकारी वकील की तिक्का बोटी उड़ा दे...बल्कि काना कटकटैया की स्टाइल में इसका सर ही काट डाले। परन्तु अभी अदालत में सिवाय उबाल खाने के वह कुछ कर ही नहीं सकता था।
“पब्लिक प्रॉसिक्यूटर मिस्टर माथुर...प्रोसीड...।”
“थैंक्यू मी लोर्ड।”
“पब्लिक प्रॉसिक्यूटर ने फाइल का अगला पृष्ठ पलटा।
“योर ऑनर! मुलजिम पर लगाए गए आरोपों को प्रमाणित करने के लिए मैं सबूत पक्ष की ओर से चंद गवाहों को अदालत में पेश करने की इजाजत चाहता हूं।”
“इजाजत है।” जज ने कहा।
“मेरा पहला गवाह है बलेश्वर...।”
बलेश्वर को बुलाने के लिए चपरासी ने आवाज लगाई। कुछ ही देर में जब बलेश्वर अदालत में पेश हुआ तो यूसुफ के छक्के ही छूट गए। बलेश्वर तो उसके गैंग का एक सदस्य था और बाकायदा उसका मातहत था। बलेश्वर गवाहों के कटघरे में आकर खड़ा हो गया। यूसुफ ने बलेश्वर को घूरकर देखा। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि बलेश्वर आखिर किस तरह उसके खिलाफ गवाही देने पर तैयार हुआ है।
उसके सामने गीता रख दी गई।
“गीता पर हाथ रखकर कसम खाओ कि जो कुछ कहोगे, सच कहोगे।”
बलेश्वर ने गीता पर हाथ रखकर कसम खाई।
“यह तुम्हें जानता है?” सिपाही ने धीरे से पूछा।
“हां...हां भई...।” यूसुफ बोला।
“बस तो फिर फांसी पक्की समझो...।” सिपाही बोला। बलेश्वर अदालत में गवाही दे रहा था और जो कुछ कह रहा था...वह अजब दास्तान थी।
“हजूर! मैं बाल-बच्चेदार नेक शरीफ शहरी हूं। कालू झबरा को पिछले दस साल से जानता हूं। मुझे तो पता ही नहीं था कि यह इतना जालिम इंसान होगा। पता तब लगा, जब इसने एक रात मेरे बेटे का सिर काट लिया। मैंने इसे अपनी आंखों से खून करते देखा...और उसी दिन मुझे पता चला कि यही जुनूनी हत्यारा काना कटकटैया है।”
जो कुछ वह बयान दे रहा था, वह भी हैरतअंगेज थे। यूसुफ का दिल चाहा, इसे गोली से उड़ा दे, मगर वह मजबूर था। वह सिर्फ दांत पीसकर रह गया।
अदालत में कुल तीन गवाह पेश हुए और यूसुफ सबको जानता था...वकार अली और लॉरेंस...यह दोनों भी उसके गिरोह के सदस्य थे। तीनों ने उसे बुरी तरह फांस दिया था। अब यूसुफ यह तो भूल ही गया था कि वह अदालत में आया कैसे...अब तो वह एक ही बात सोच रहा था...फांसी से बचे कैसे? उसके गिरोह के आदमियों ने ही उसे मरवा डाला था। उसका दिल कह रहा था कि अदालत को चीख-चीखकर बता दे कि यह तीनों बदमाश जो मेरे खिलाफ गवाही दे रहे हैं, सब मार्फिन, ब्राउन शुगर, हेरोइन का गैरकानूनी धन्धा करते हैं। अब जब वह खुद फंस गया है और फांसी के फन्दे की तरफ जा रहा है, तो इन्हें क्यों छोड़े?
गवाहों के बयान खत्म होने के बाद अदालत में एक सील किया हुआ लम्बा-सा छुरा पेश किया गया, जो बकौल पब्लिक प्रॉसिक्यूटर के, कातिल का खूनी हथियार था।
“देख...अब तेरे बचने का कोई चांस नहीं।” सिपाही बोला——“अब मैं ही तुझे बचाने की तरकीब बता सकता हूं...लेकिन बीस हजार रुपया लूंगा।”
“ठ...ठीक है...।” यूसुफ फुसफुसाया। मरता क्या न करता——“मैं बीस हजार दे दूंगा...।”
“ऑल राइट...अब जो मैं कहूं, वही करना...। इस खब्ती जज की एक सनक बड़ी मशहूर है...आमतौर पर मुलजिम अदालत में हमेशा झूठ बोलते हैं...अगर कोई मुलजिम सच-सच बोल जाए तो चाहे उसने कितना बड़ा भी संगीन जुर्म क्यों न किया हो, यह जज सच बोलने से खुश होकर उसे बरी कर देता है।”
“मैं सच ही तो बोल रहा हूं...मैं कालू झबरा हूं ही नहीं।”
“मगर यह पब्लिक प्रॉसिक्यूटर...तुम्हारा सच-झूठ जानने के लिए लाई। डिटेक्टर मशीन मंगवा लेगा। उस मशीन के जरिए तुरंत पता चल जाता है कि झूठ बोला जा रहा है या सच...अगर तुमने एक भी बात झूठ बोल दी तो फिर फांसी के हुक्म से बच नहीं पाओगे...।”
यूसुफ हर बात सच बोलने के लिए तैयार हो गया।
पूरा मुकदमा सुनने के बाद जज ने यूसुफ को सम्बोधित किया——“मुलजिम कालू झबरा उर्फ काना कटकटैया...तुम्हारे ऊपर लगे तमाम इल्जाम सबूत पक्ष की ओर से पूरे प्रमाणिक तौर पर पेश किए गए, जिससे यह अदालत पूरी तरह सन्तुष्ट है, लेकिन इससे पहले कि अदालत तुम्हें सजा-ए-मौत का हुक्म सुनाए, तुम्हें अपनी सफाई का मौका दिया जाता है। अगर अदालत तुम्हारे बयानों से सन्तुष्ट हो गई तो तुम्हें बरी भी किया जा सकता है।”
“अब मत चूकना...।” सिपाही बोला।
“हजूर...।” पब्लिक प्रॉसिक्यूटर ने आपत्ति दर्ज की——“मैं चाहता हूं कि मुलजिम के बयानों को लाई डिटेक्टर मशीन पर जांच लिया जाए...ताकि सच-झूठ का पता लग जाए...।”
“ठीक है...आप वह मशीन मंगवाइए।” जज ने कहा।
पब्लिक प्रॉसिक्यूटर ने लाई डिटेक्टर मशीन मंगाई। यह मशीन एक काले बक्से की शक्ल में थी...उस पर अनेक छोटे और रंग-बिरंगे बल्ब लगे थे। बीच में एक स्क्रीन थी। बक्से के ऊपर हाथ रखने के खांचे बने हुए थे। एक हेलमेट जैसा टोप उससे जुड़ा था। पब्लिक प्रॉसिक्यूटर ने जब उसका एक बटन दबाया तो इस स्क्रीन पर आड़ी-तिरछी रेखाएं दौड़ने लगीं। साथ ही बल्ब भी रोशन हो गए...मशीन से पी-पी की आवाज आ रही थी।
“इन खांचों पर दोनों हाथ रखो।” पब्लिक प्रॉसिक्यूटर ने कहा।
यूसुफ ने हाथ रख दिए।
फिर उसके सिर पर टोप चढ़ाया गया...जो उसके कानों तक पूरी तरह फिक्स हो गया।
“योर ऑनर...आप बयान ले सकते हैं। जैसे ही मुलजिम झूठ बोलेगा...मशीन सीटी बजा देगी।”
“अब एक शब्द भी झूठ मत बोलना...।” सिपाही ने उसे समझा दिया——“इस बात को सरकारी वकील भी जानता है कि तुमने एक बात भी झूठ कही नहीं कि सारी बातें झूठ मान ली जाएंगी...और सजा हो जाएगी।” सिपाही ने उसे धीरे-धीरे फुसफुसाकर समझाया।
“कालू झबरा...उर्फ काना कटकटैया...अब तुम अपना बयान दो।”
“मी लोर्ड...।” यूसुफ ने बोलना शुरू किया——“मेरा नाम न तो कालू झबरा है न काना कटकटैया...और न मैंने यह खून किए हैं। मुझे बेवजह फंसाया गया है। सारे गवाह, सारे सबूत झूठे पेश किए गए हैं...।”
मशीन ने कोई सीटी नहीं बजाई।
“कमाल है!” जज ने कहा——“यह तो सच बोल रहा है। जब यह शख्स कालू झबरा है ही नहीं तो फिर कौन है? तुम्हारा नाम क्या है मुलजिम? अदालत तुम्हारा नाम जानना चाहती है।” जज ने पूछा।
अब यूसुफ का दिल तेजी से धड़कने लगा। अगर वह बोलता कि उसका नाम गगन मल्होत्रा है तो मशीन सीटी बजा देती और फिर उसका झूठ पकड़ा जाता। और अगर वह अपना असली नाम बताता, तो बेड़ा गर्क...। फिर वह सोचने लगा, जब वह फांसी पर झूलने वाला ही है तो सच बताने में हर्ज ही क्या है...हो सकता है सिपाही के कहे अनुसार, वह सच बोलकर बच ही जाए...।
“तुम्हारा नाम क्या है?” जज ने फिर सवाल किया।
“यूसुफ गाजी।” यूसुफ ने सच बताया।
“क्या तुम्हारा वर्तमान में कोई और भी नाम है, जिससे तुम्हें जाना जाता है?” पूछा गया।
“जी...गगन मल्होत्रा...।”
“तुम्हारा असली बिजनेस क्या है...क्या करते हो?”
“यूसुफ के माथे पर पसीना भरभरा आया। सिपाही ने उसे टोका लगाया और धीरे से बोला——“झूठ मत बोलना...।”
“जी...मैं ड्रग्स का कारोबार करता हूं।”
“ड्रग्स...कैसी ड्रग्स?” जज ने पूछा।
“वह ड्रग्स जो अफीम से बनती है...मार्फिन...ब्राउन शुगर, स्मैक...हेरोइन वगैरा...।” यूसुफ ने अपना भांडा फोड़ दिया।
“वह तुम्हारा निजी व्यवसाय है या तुम किसी गैंग के साथ जुड़े हो?”
“जी...मैं मास्क ऑर्गेनाइजेशन का एक मेंबर हूं...ऑर्गेनाइजेशन में मेरा मुकाम डी नाइन की हैसियत से है...।”
“क्या डी कोई सांकेतिक शब्द है?”
“डी एक बड़ी पदवी है जिसे डॉन भी कहा जाता है...।”
“यह माल किस तरह और कहां से आता है और उसकी सप्लाई का नेटवर्क क्या है...क्या तुम उसका खुलासा करोगे...?”
यूसुफ अब समझ गया, नि:संदेह वह किसी दलदल में फंस गया था...और वह जिस दलदल में भी फंसा था, अब गले तक फंस चुका था। उसे अपने ऊपर हैरानी हो रही थी कि वह सब क्योंकर बक गया। वह एक ऐसा जुर्म कबूल कर रहा है, जो खून करने से भी ज्यादा संगीन है।
“तुम खामोश क्यों हो गए...जवाब दो...?”
उसके बाद यूसुफ मास्क के नेटवर्क के बारे में बताने लगा। मास्क एक अंतरराष्ट्रीय ऑर्गेनाइजेशन है जो जिसका कारोबार पूरे संसार में फैला है। मास्क की सप्लाई पाकिस्तान से होती है...सप्लाई के चार मार्ग हैं, जो राजस्थान बॉर्डर से जुड़े हैं...पाकिस्तान से हिंदुस्तान में मार्क 999 हेरोइन सप्लाई होती है...इसकी प्रोडक्शन अफगानिस्तान और पेशावर में होती है। मास्क के नेटवर्क में प्रत्येक मुल्क में एक कमांडर एरिया इंचार्ज होता है जिसे डी० वन कहा जाता है। माल दिल्ली और मुम्बई पहुंचाया जाता है...दिल्ली के थोक डीलर का नाम निर्मल खत्री है और मुम्बई में शेख गुलफाम।”
यूसुफ गाजी से ऐसी-ऐसी जानकारियां प्राप्त कर ली गईं, जो वह तब भी न बकता, जब उसकी जान पर बन आती। उसने उन तीनों गवाहों के बारे में भी बता दिया। वह मास्क ऑर्गेनाइजेशन के चीफ को नहीं जानता था, लेकिन जिन लोगों को जानता था, उनके बारे में बता दिया। लन्दन में जिस माफियोज के टूटी द कैंपों में से वह एक शख्स आबतौनी को जानता था, जिसने उसे गगन मल्होत्रा के नाम से हिन्दुस्तान भेजने की व्यवस्था की थी।
उसके सारे सवालों का उत्तर पाने के बाद जज ने फाइल सम्भाली।
यूसुफ का दिल तेज-तेज धड़कने लगा। ऐसी सूरत में क्या अब उसे छोड़ दिया जाएगा?
“मुलजिम के बयानों को सुनने के बाद अदालत इस नतीजे पर पहुंची है कि मुलजिम का नाम कालू झबरा नहीं, यूसुफ गाजी है...उसने अदालत में जो भयानक सच बताया है, वह इस बात को दर्शाता है कि उसने अदालत में कोई किसी प्रकार का धोखा देने की कोशिश नहीं की...उसके बयानों से साबित होता है कि बेशक वह ड्रग्स माफिया है, परन्तु जो जुर्म उस पर लगाया गया है, वह बेबुनियाद है। इस सच्चाई को ध्यान में रखते हुए अदालत यूसुफ गाजी को बाइज्जत रिहा करती है।”
यूसुफ ने सुकून की भरी सांस ली।
ठीक उसी समय उसे अपने टोप और हाथों में तेज झनझनाहट महसूस हुई...बिल्कुल ऐसा लगा जैसे इलेक्ट्रिक शॉक लगा हो...शॉक इतना तगड़ा था कि उसकी आंखों के आगे अन्धेरा छा गया और वह चेतना-शून्य हो गया।
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Additional information
Book Title | शोला : Shola |
---|---|
Isbn No | |
No of Pages | 296 |
Country Of Orign | India |
Year of Publication | |
Language | |
Genres | |
Author | |
Age | |
Publisher Name | Ravi Pocket Books |
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