शिकारी तितली
अचानक जोरों से बादल गड़गड़ाए...निकट ही कहीं बिजली गिरी...भयानक धमाका हुआ और इसके साथ ही समस्त वातावरण अंधकार में डूब गया!
सम्भवतः पूरे क्षेत्र की विद्युत् आपूर्ति बन्द हो गयी थी।
मैं रुक गयी।
बेतहाशा भागने की वजह से मेरी सांसें बुरी तरह से उखड़ गयी थीं। मैंने चारों ओर देखा। अंधकार इतना था कि मुझे आस-पास का भी दिखलायी नहीं दे रहा था। यहां तक कि बैंकाक की ये सड़क भी...जिस पर मैं पिछले आधे घंटे से दौड़ रही थी...मैं अंधकार का ही एक अंश नजर आती थी।
तभी मैंने दूर कहीं पुलिस की गाड़ी का सायरन सुना और मैंने कुछ पल रुकने के बाद फिर उसी गति से दौड़ना आरम्भ कर दिया। मैं जानती थी...थाईलैण्ड की खुफिया एजेन्सी का नम्बर वन एजेन्ट होंग-चू अपने एक दर्जन सहायकों तथा पुलिस के बीस से अधिक आला अफसरों के साथ मेरी तलाश में पूरे बैंकाक में घूम रहा था।
भयभीत नहीं थी मैं।
बुजदिल भी नहीं थी। मेरे लिए एक ही वक्त में पन्द्रह-बीस आदमियों से टक्कर लेना कुछ भी मुश्किल न था। मैं तो केवल होंग-चू से इसलिए बचना चाहती थी... क्योंकि उससे उलझना और टकराना मेरा उद्देश्य न था।
मैं तो थाईलैण्ड में ''जेहाद'' नाम के आतंकवादी संगठन के कमांडिंग ऑफिसर मुल्ला मसूद की तलाश में आयी थी, किन्तु न जाने किस प्रकार होंग-चू को मेरे विषय में जानकारी मिल गयी थी और वो मेरे पीछे हाथ धोकर पड़ गया था।
होंग-चू के विषय में सोचते हुए मैंने पीछे मुड़कर देखा...दूर तक सन्नाटा था और अंधकार अब भी उतना ही गहरा था।
भागते-भागते थक गयी थी मैं।
सांसें फिर से उखड़ने लगी थीं। मैं फिर रुक गयी, किन्तु तभी अचानक मेरे चारों ओर का वातावरण बिजली के प्रकाश से जगमगा उठा।
मैंने चारों ओर दृष्टि दौड़ाई और ये देखकर संतोष की सांस ली कि मैं अनजाने ही भागते-भागते शहर की घनी आबादी से बाहर आ गयी थी। जिस स्थान पर मैं खड़ी थी...वहां वृक्षों की एक लम्बी कतार थी और उसके बीच से एक पतली सड़क उत्तर की दिशा में चली गयी थी।
कुछ सोचकर मैं मुड़ी और तेज-तेज कदमों से उसी सड़क को नापने लगी। इस समय थाईलैण्ड के समयानुसार रात्रि के तीन बजे थे और समस्त वातावरण मौत जैसे सन्नाटे में डूबा हुआ था।
सड़क के दोनों ओर कई इमारतें निर्माणाधीन थीं और कुछ बनकर तैयार हो चुकी थीं। बीच-बीच में छोटे मैदान थे और उनमें रात के अंधेरे में प्रेत-पिशाचों की तरह नजर आती ऊंची-ऊंची झाड़ियां उगी हुई थीं।
रोशनी कम ही थी और ये मेरे लिए अच्छी बात थी।
मैं चलती रही।
धीरे-धीरे आधा घंटा बीत गया। सड़क एक सूखे नाले के ऊपर से होकर कहीं आगे चली गयी थी।
मैं सड़क छोड़कर नाले में उतर गयी।
¶¶
दोस्तों...ये तो आप जान ही गये होंगे कि मैं कौन हूं?
जी हां...बिल्कुल ठीक समझे आप! मैं हूं रीमा भारती...इंडियन सीक्रेट कोर अर्थात् आईoएसoसीo की नम्बर वन एजेन्ट! भारत मां की अल्हड़, शरारती और लाडली बेटी। दोस्तों की दोस्त और देश के दुश्मनों के लिए साक्षात मौत।
आप सोच रहे होंगे...मैं देश को छोड़कर थाईलैण्ड की धरती पर क्यों चली आयी? जवाब आपके पास है दोस्तों...क्योंकि आप मुझे बहुत अच्छी तरह से जानते हैं। न केवल मुझे...बल्कि मेरे निश्चय, मेरी सौगन्ध और संकल्प को भी।
हां...सौगन्ध ली है मैंने...अपने देश के दुश्मनों को मिटाने की। दुनिया का कोई भी वो शख्स...जो मेरे हिन्दुस्तान की एकता और अखण्डता से खिलवाड़ करेगा...भले ही वो संसार के किसी भी कोने में छुपा हो...आकाश की ऊंचाइयों पर बैठ गया हो...अथवा सागर की गहराइयों में छुप गया हो...मैं उसे जिन्दा नहीं छोड़ूंगी!
और यहां भी मैं इसीलिए आयी हूं।
मुल्ला मसूद!
हां...यही नाम है उस कमीने का!
''जेहाद'' का कमांडिंग ऑफिसर!
भारत सुरक्षा बल के बीस जवानों और पचास से अधिक निर्दोष लोगों पर अन्धाधुंध गोलियां बरसाकर उन्हें मौत की नींद सुला देने वाला नर-पिशाच।
मेरे बॉस मिस्टर खुराना ने मुझे उसके विषय में विस्तार से बताया था और कहा था—“सीमा सुरक्षा बल के जवानों ने 'जेहाद' का एक अड्डा...जो कि नियंत्रण रेखा के पास था...पूरी तरह से नष्ट कर दिया है और इस हमले में 'जेहाद' के बीस से भी अधिक आदमी मारे जा चुके हैं, किन्तु 'जेहाद' का कमांडिंग ऑफिसर मुल्ला मसूद भागने में सफल हो गया है। खुफिया सूत्रों का कहना है कि वो इस वक्त बैंकाक में है।
ये भी कहा जा रहा है कि थाईलैण्ड की पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया है और वो उससे अपने ढंग से पूछताछ कर रही है। क्योंकि भारत और थाईलैण्ड के बीच विनिमय सन्धि है...अतः भारत सरकार के लिए मुल्ला मसूद को भारत लाना कुछ भी मुश्किल नहीं है।
विनिमय सन्धि के अनुसार थाईलैण्ड सरकार का भी ये कर्तव्य है कि वो मुल्ला मसूद को आवश्यक पूछताछ के बाद भारत के हवाले कर दे...।
“क्या?” पूछा था मैंने—“क्या थाईलैण्ड सरकार ऐसा करने से इंकार कर रही है?”
“नहीं रीमा!” खुराना ने बताया था—“बल्कि वो इन खबरों का खंडन कर रही है कि मुल्ला मसूद उसके देश में है। हो सकता है...मुल्ला मसूद वहीं हो और थाईलैण्ड सरकार को इस विषय में कोई जानकारी न हो। तुम्हारा काम ये है कि तुम थाईलैण्ड पहुंचकर मुल्ला मसूद के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त करोगी और वो जहां भी है...उसे हिन्दुस्तान लेकर आओगी...।”
“ओoकेo...।”
“इसके अलावा...तुम्हें ये भी पता लगाना है कि 'जेहाद' के नेटवर्क का केन्द्र अर्थात् उसका हैडक्वार्टर कहां है? तुम्हें उसे भी नष्ट करना है। तैयारी करो और देवराज के साथ रात की फ्लाइट से थाईलैण्ड चली जाओ। ध्यान रहे रीमा...ये एक सीक्रेट मिशन है...अतः तुम्हें अपनी प्रत्येक कार्यवाही को गुप्त रखना है और थाईलैण्ड के किसी भी एजेन्ट से नहीं मिलना है।”
“मैं समझ गयी सर!”
तो दोस्तों...ये है मेरा वो मिशन...जिसे पूरा करने के लिए मैं बैंकाक आयी हूं, लेकिन जानते हैं आप...क्या हुआ? सर मुंडाते ही ओले पड़ गये। हुआ ये कि बैंकाक के हवाई अड्डे पर मैं और देवराज दोनों ही पूरी तरह से मेकअप में थे। योजनानुसार हम दोनों को अलग-अलग टैक्सी से अलग-अलग होटल में पहुंचना था।
देवराज टैक्सी लेकर चला गया था।
मैंने होटल सुमानो के लिए टैक्सी पकड़ी थी।
किन्तु मैंने सुमानो होटल के अपने कमरे में पहुंचकर अभी चैन की सांस भी न ली थी कि पुलिस और थाईलैण्ड के खुफिया विभाग के एजेन्टों ने मेरे होटल को चारों ओर से घेर लिया था।
ठीक उसी वक्त मेरी छठी इन्द्री ने मुझे खतरे का संकेत किया था और मैं पूरी स्थिति को समझकर अपने ही ढंग से होटल से बाहर निकलने में सफल हो गयी थी।
पुलिस और थाईलैण्ड के खुफिया विभाग के एजेन्ट तभी से मेरा पीछा कर रहे थे। पता नहीं...होंग-चू को मेरे विषय में जानकारी किसने दी थी।
रात अभी काफी शेष थी।
¶¶
अचानक मुझे देवराज का ध्यान आया। अभी तक मुझे ये भी पता न था कि वो बैंकाक के किस होटल में था और कितना सुरक्षित था। हो सकता है...मेरी तरह वो भी किसी मुसीबत में फंस गया हो।
मैंने उससे वाच ट्रांसमीटर पर सम्पर्क स्थापित किया। सम्पर्क स्थापित होते ही देवराज की आवाज आयी—
“हैलो...हैलो मैडम! इट इज अटैंडिंग देवराज...ओवर...।”
“देवराज...कहां से बोल रहे हो...क्या तुम अपने होटल में हो? होटल का नाम बताओ...ओवर...!” मैंने ट्रांसमीटर पर कहा।
“यस मैडम...मैं होटल लैण्ड के रूम नम्बर वन टू वन में हूं। मैं आपके लिए काफी परेशान और चिंतित हूं...कृपया अपने विषय में बताएं...ओवर!”
मुझे ये जानकर तसल्ली हुई कि देवराज पूरी तरह से सुरक्षित था। मैंने उससे अपनी बीती सुनायी।
सुनकर देवराज ने कहा—“लेकिन मैडम...ये सब हुआ कैसे? हमने तो फ्लाइट पकड़ते वक्त भी पूरी सावधानी बरती थी। हालांकि हम उस वक्त मेकअप में नहीं थे...किन्तु बैंकाक की धरती का स्पर्श करने से पहले तो हम दोनों ने अपने हुलिए बदल लिये थे। यहां तक कि हम दोनों टैक्सी स्टैण्ड पर भी कुछ देर के अन्तर से आये थे और हमने सावधानी की दृष्टि से एक-दूसरे से कुछ कहा भी नहीं था, किन्तु इसके बावजूद भी थाईलैण्ड के किसी एजेन्ट ने आपको पहचान लिया...ओवर...!”
“मेरा ख्याल हे देवराज!” मैं बोली—“हम लोगों ने जब बैंकाक के लिए फ्लाइट पकड़ी थी...तो उस वक्त मुम्बई एयरपोर्ट पर अथवा विमान में थाईलैण्ड का कोई एजेन्ट मौजूद था और वो मुझे पहचानता था। मुझे विश्वास है...होंग-चू को मेरे विषय में उसी ने सूचित किया होगा। लेकिन तुम्हें परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है। मैं होंग-चू और उसके आदमियों को धोखा देने में सफल हो गयी हूं और इस समय पूरी तरह से सुरक्षित हूं...ओवर...!”
“किन्तु मैडम!” ट्रांसमीटर पर देवराज की आवाज सुनायी दी—“हमें अपनी आगामी योजना पर विचार करने के लिए एक-दूसरे से मिलना बहुत जरूरी है। आप मुझसे अपनी स्थिति बताएं...ताकि मैं आपसे मिल सकूं...ओवर...!”
“नहीं देवराज...फिलहाल ये सम्भव नहीं है। रात का वक्त है और मैं एक सूखे नाले में छुपी हुई हूं। मैं नहीं जानती कि ये नाला शहर के किस क्षेत्र में है। सवेरा होने पर ही कुछ पता चलेगा। मैं तुम्हें सूचित कर दूंगी। अपना ख्याल रखना और इस बात का भी ध्यान रखना कि यदि होंग-चू को तुम्हारे विषय में भी पता चल गया तो वो तुम्हें भी घेरने का प्लान बना सकता है...ओवर...!”
“मैं सावधान रहूंगा मैडम...ओवर!”
“ओवर एण्ड आल।” मैंने कहा और ट्रांसमीटर ऑफ कर दिया।
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