शतरंज शैतान की : Shatranj Shaitan Ki
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Description
शायद आपने शतरंज का खेल खेला हो। यदि ना खेला हो तो इसके बारे में सुना तो अवश्य होगा। बड़ा दिलचस्प होता है यह शतरंज का खेल। शह और मात, इसके वो पहलू हैं जिसके लिए खिलाड़ी अपनी सुध–बुध गवां कर इसमें डूबे रहते हैं। चालें चलती हैं, मोहरे पिटते हैं - घोड़े, ऊंट, प्यादे, वजीर सब केबल अपने बादशाह को बचाने के लिए दांव पर लगे होते हैं - और फिर, जिसका बादशाह गया - समझो वो खेल से ‘आऊट’...।
परन्तु!
यह तो हुई उस शतरंज की बात जो सिर्फ एक ‘गेम’ है।
अगर यही शतरंज की बिसात कोई शैतान बिछाये तो क्या वो सिर्फ एक गेम होगी? जी बिल्कुल... गेम तो होगी, मगर सिर्फ मनोरंजन के लिए खेली जाने वाली गेम नहीं।
उसमें लकड़ी के बने मोहरे नहीं पिटेंगे, बल्कि इंसानी लाशें गिरेंगी। खून की नदियां बहेंगी। चीखों के शैतान आयेंगे। मौत ठुमके लगायेगी - और खुद शैतान अट्ठाहस करेगा।
जी हां!
प्रस्तुत उपन्यास का यही प्लाट है, जिसमें आपकी प्रिय पात्रा शैतान की बिछाई शतरंज में ऐसी उलझती है कि तौबा बोल उठती है। कदम–कदम पर उसका दिमाग ये सोचकर कुन्द हो उठता है कि अब ‘शैतान’ कौन–सी चाल चलेगा ? क्या उसके यानि रीमा के पास शैतान की अगली चाल का तोड़ होगा ?
यदि नहीं...!
तो इसका सीधा–सा अर्थ है रीमा भारती की मौत!
और प्रस्तुत उपन्यास का सबसे दिलचस्प पहलू है, इसका क्लाइमेक्स! किसने किसको ‘शह’ दी और किसे ‘मात’ ? किसका बादशाह शहीद हुआ और विजयश्री का ताज किसके सिर की शोभा बना ?
अरबों-खरबों के हिरे-जवाहरात के बेशकीमती खजाने का नाम था जिंगोला टापू... जिस को पाने की दौड़ में शामिल अंण्डरवर्ल्ड के बड़े-बड़े नाम एक-एक कर तब धराशाही होते चले गए जब एंट्री हुई रीमा भारती की...।
Shatranj Shaitan Ki
Reema Bharti
Ravi Pocket Books
BookMadaari
प्रस्तुत उपन्यास के सभी पात्र एवं घटनायें काल्पनिक हैं। किसी जीवित अथवा मृत व्यक्ति से इनका कतई कोई सम्बन्ध नहीं है। समानता संयोग से हो सकती है। उपन्यास का उद्देश्य मात्र मनोरंजन है। प्रस्तुत उपन्यास में दिए गए हिंसक दृश्यों, धूम्रपान, मधपान अथवा किसी अन्य मादक पदार्थों के सेवन का प्रकाशक या लेखक कत्तई समर्थन नहीं करते। इस प्रकार के दृश्य पाठकों को इन कृत्यों को प्रेरित करने के लिए नहीं बल्कि कथानक को वास्तविक रूप में दर्शाने के लिए दिए गए हैं। पाठकों से अनुरोध है की इन कृत्यों वे दुर्व्यसनों को दूर ही रखें। यह उपन्यास मात्र 18 + की आयु के लिए ही प्रकाशित किया गया है। उपन्यासब आगे पड़ने से पाठक अपनी सहमति दर्ज कर रहा है की वह 18 + है।
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शतरंज शैतान की
तेजी से सड़क पार करता वो शख्स एकाएक लड़खड़ाया, और फिर एक हाथ से अपना सीना दबाये तथा दूसरे हाथ में काले रंग का ब्रीफकेस संभाले कटे वृक्ष की तरह सड़क के बीचोंबीच ढेर होता चला गया।
मैंने फुर्ती से अपनी कार के ब्रेक लगाये। ब्रेक लगाये क्या, बल्कि एक तरह से ब्रेक पैडल पर खड़ी ही हो गई।
मेरी कार के टायर जोर से चीखे और वो सड़क पर घिसटती हुई उस शख्स से मुश्किल से एक फुट के फासले पर जाम हो गई।
निःसंदेह अगर मैंने फुर्ती दिखाने में पल का सौवां हिस्सा भी जाया कर दिया होता तो मेरी तेज रफ्तार से दौड़ती कार उस शख्स को कुचलती चली गई होती।
गनीमत थी कि उस घड़ी सड़क सुनसान थी, मेरे आगे-पीछे अन्य कोई कार नहीं थी, अन्यथा बड़ी दुर्घटना हो सकती थी।
किन्तु इस बारे में जरा भी सोचे बगैर मैं अपनी ओर का दरवाजा खोलकर नीचे उतरी तथा उस शख्स की तरफ झपट पड़ी।
मैंने देखा—वो एक अधेड़ व्यक्ति था। उसके शरीर पर ढंग के ही कपड़े नजर आ रहे थे। हाथ में सोने की चेन वाली घड़ी, हाथों की कम से कम चार उंगलियों में सोने की अंगूठियां तथा गरदन में व्हाइट गोल्ड की मोटी सी चेन।
मगर इस घड़ी मेरे पास इन सब चीजों पर ध्यान देने का वक्त ही कहां था?
वो बदस्तूर अपना सीना भींचे प्यासी मछली के समान तड़प रहा था, उसके चेहरे पर पीड़ा के अथाह भाव फैले हुए थे। उसकी पलकें सख्ती से मुंदी हुई थीं। होठों से लगातार कराहें फूट रही थीं और चेहरे पर इस तरह पसीना फैला था मानो उस पर बाल्टी भर पानी उड़ेल दिया गया हो।
“हे!” मैंने उस पर झुकते हुए उसका कन्धा पकड़कर हिलाया—“क्या हुआ तुम्हें? ठीक तो हो तुम?”
उसने बहुत कोशिश करके बड़ी कठिनाई से आंखें खोलीं।
“म-मैं-मैं-।” उसके होठों से पीड़ा में डूबी धीमी और कमजोर-सी आवाज फूटी। जिसे मैं कान लगाकर मुश्किल से सुन पा रही थी—“ल-लगता है, म-मुझे दिल का दौरा प-पड़ा है।”
“वो तो तुम्हारी हालत से पता चल रहा है।” मैं बोली—“अटैक भी काफी सीरियस लगता है। लेकिन घबराओ मत, मैं तुम्हें हॉस्पिटल—।”
“न-नहीं, हॉस्पिटल नहीं। म-मैं जानता हूं मैं बचूंगा नहीं। त-तुम-तुम मेरा एक काम कर दो। व-वो सामने होटल सनराइज के रूम नम्बर तीन सौ पांच में मेरा मालिक ठहरा हुआ है। उ-उसे दो घण्टे बाद हांगकांग की फ्लाईट पकड़नी है। य-ये-ये ब्रीफकेस उसके लिए बहुत जरूरी है। इ-इसे उसके हाथों तक प-पहुंचा दो—हिच्च—।”
“इस ब्रीफकेस का पहुंचना तुम्हारी जिन्दगी से ज्यादा जरूरी तो नहीं होगा?”
“हिच्च—हिच्च—व-वक्त नहीं है मेरे पास।”
“वाह री वफादारी! मरते-मरते भी निभा रहे हो—।”
लेकिन मेरे शब्द अधूरे ही रह गये। मैंने देखा, उसकी आंखें स्थिर होकर शून्य में कहीं जा टिकी थीं। चेहरे पर मुर्दानी फैल चुकी थी।
मैंने उसकी नब्ज और धड़कन चैक की।
वह मर चुका था।
जाहिर है, उसे अपने मालिक तक ब्रीफकेस पहुंचाने की पड़ी थी, यही वजह थी कि वो इतनी हड़बड़ी में सड़क क्रास करने की कोशिश कर रहा था।
मैंने गहरी सांस लेते हुए सड़क पर पड़े ब्रीफकेस को कब्जे में किया और सीधी हो गई।
एक मरते हुए इंसान की आखरी ख्वाहिश को पूरा ना करे, वो रीमा भारती क्या?
मैंने अपने मोबाइल से पुलिस को सड़क पर पड़ी उस लाश की खबर दी और कार में सवार होकर आगे बढ़ गई।
चन्द मिनट बाद मेरी कार एक टर्न लेकर होटल सनराइज के कम्पाउण्ड में दाखिल हो रही थी।
पांच मिनट बाद मैं हाथ में ब्रीफकेस संभाले उस शानदार होटल के रिसैप्शन पर थी।
लम्बे रिसैप्शन काउन्टर के पीछे मौजूद चार में से एक रिसैप्शनिस्ट ने मुस्कुरा कर मेरा स्वागत किया—“यस मैडम—मे आई हेल्प यू?”
“मुझे यह ब्रीफकेस तुम्हारे होटल में ठहरे एक कस्टमर तक पहुंचाना है।”
“रूम नम्बर?”
“थ्री नॉट फाइव।”
रूम नम्बर सुनते ही उसकी मुस्कान यूं गायब हुई मानो जलता बल्ब अचानक फ्यूज हो गया हो। फिर तीव्रता से स्वयं को संभालकर वह फोन का रिसीवर उठाती बोली—“ओ.के.। मैं कस्टमर को खबर करती हूं।”
मेरे जी में आया कि उससे पूछूं—“इस रूम के कस्टमर में ऐसा क्या था मोहतरमा, जो तुम्हारी मुस्कान कपूर बन गई?”
किन्तु मैंने पूछा नहीं।
मैंने इससे लेना ही क्या था? एक मरते इंसान की आखरी ख्वाहिश पूरी करनी थी। वो ब्रीफकेस रूम के कस्टमर के हवाले करना था और वहां से रुखसत हो जाना था।
उधर, फोन पर किसी से बड़े आदर से पेश आती रिसैप्शनिस्ट सहसा मुझसे मुखातिब हुई—“मैडम, मिस्टर चांग आपका नाम जानना चाहते हैं।”
“चांग?”
“उस रूम के कस्टमर का यही नाम है, वो आपका नाम पूछ रहे हैं।”
इसका मतलब वो कोई चीनी था।
मैंने कहा—“उससे बोलो, मेरे नाम में कुछ नहीं रखा। यहां आकर अपनी अमानत संभाले और मुझे रुखसत करे।”
उसने वही बात फोन पर दोहरा दी।
दो मिनट गुजरे, रिसैप्शनिस्ट फोन रखकर दूसरे कार्य में व्यस्त हो गई थी।
मैं बेचैनी से चांग का इंतजार कर रही थी।
वो पट्ठा आकर अपनी अमानत संभालता तो मैं वहां से रवानगी लेती। मुझे डेलानाइट क्लब पहुंचना था, जहां आज रात डांस का एक खास प्रोग्राम था और मैं उस प्रोग्राम को देखने के लिए अपनी टेबल पहले से ही रिजर्व करवा चुकी थी।
सहसा
रिसेप्शन की बगल में बनी चार लिफ्ट्स में से एक का डोर खुला और उसमें से चार व्यक्ति बाहर निकले।
चारों के जिस्मों पर काले सूट थे। शक्लो-सूरत से वे चीनी लग रहे थे। चेहरों पर लिखा था कि वे खतरनाक किस्म के लोग हैं।
चारों फर्श रौंदते हुए रिसैप्शन की तरफ बढ़े, जहां उस घड़ी मैं काऊन्टर पर कुहनिया टिकाये चांग की प्रतीक्षा कर रही थी। फिलहाल मेरी नजरें उन चारों पर ही टिक चुकी थीं।
वे मेरे करीब आये।
फिर उनमें से एक ने मुझे घूरते हुए कहा—“तुम्हीं हो?”
मैं सकपकाई तथा अपने दायें-बायें देखा।
“मैं तुमसे ही बात कर रहा हूं।” वो बोला।
“क्या बात कर रहे हो?” मैं बोली—“तुमने तो आते ही सवाल कर दिया। वो भी ऐसा अटपटा कि मेरी समझ में ही नहीं आया कि जवाब क्या दूं?”
“ब्रीफकेस लेकर तुम्हीं आई हो?”
“हां।” मैंने उसकी आंखों के सामने ब्रीफकेस चमकाया—“ये रहा।”
“शंकर लाल कहां है? वो खुद क्यों नहीं आया?”
“अगर तुम उस शख्स की बात कर रहे हो जो ये ब्रीफकेस लेकर आ रहा था तो तुम्हारी जानकारी के लिए बता दूं कि वो अब जिन्दा नहीं है। उसने यह ब्रीफकेस यहां पहुंचाने के लिए मुझे सौंपा और दुनिया से रुखसत हो गया।”
“क्या हुआ था उसे?” चीनी का स्वर सामान्य था, मानो शंकरलाल की मौत की खबर का उस पर बाल बराबर भी प्रभाव ना पड़ा हो।
“हार्ट अटैक!” मैं बोली—“सीरियस हार्ट अटैक।”
“ओह!”
“क्या तुम्हीं चांग हो?”
“नहीं, हमारे साथ चलो—बास तुमसे मिलना चाहते हैं।”
“बास—यानि चांग?”
“हां।” उसने हांडी जैसा सिर हिलाया—“चलो हमारे साथ।”
“देखो, मैं कहीं जाने वाली नहीं हूं। अपना ये ब्रीफकेस संभालो। बन्दी चली अपने रास्ते।”
तभी मेरे पहलू में कोई कठोर वस्तु आ गड़ी।
“ये गन है।” दूसरा चीनी फुंफकारा, रिवॉल्वर उसी के हाथ में थी—“अगर होशियार बनने की कोशिश की तो यहीं ढेर हो जाओगी, और तुम्हें ये भी बता दूं कि यह होटल अण्डरवर्ल्ड का है। यहां एक-दो लाशें गिर जाने का किसी पर कोई फर्क नहीं पड़ता।”
“अजीब जबरदस्ती है!” मैं बोली—“अरे भई, मेरा इस ब्रीफकेस से, तुम्हारे उस शंकरलाल से या तुम लोगों से कुछ लेना-देना नहीं है। मैं तो इंसानियत के नाते एक मरते हुए इंसान की आखरी इच्छा पूरी करने, यह ब्रीफकेस लेकर यहां चली आई—और तुम लोग हो कि मेरे गले ही पड़े जा रहे हो।”
“ये बात चलकर चांग साहब को बताना।”
“फिर वही बात—।”
“चलो।” उसने मुझे लिफ्ट की तरफ धकेला।
मैंने पाया—रिसैप्शन के पीछे मौजूद कोई भी रिसैप्शनिस्ट हमारी तरफ देख भी नहीं रही थी, मानो उन्हें इस बात से कोई वास्ता नहीं था कि वहां क्या हो रहा था?
एकाएक मैंने फैसला कर लिया।
अब तमाशा घुसकर ही देखना था।
देखना था कि आखिर चक्कर चक्कर क्या है? मैं चाहती तो अभी उन चारों की ऐसी-तैसी करके आसानी से वहां से निकल सकती थी, किन्तु इस विचार के अन्तर्गत मैंने कोई हरकत नहीं की थी।
मैं उन चारों से घिरी लिफ्ट में दाखिल हुई।
लिफ्ट थर्ड फ्लोर पर पहुंचकर रुकी।
दूसरे मिनट, मैं रूम नम्बर तीन सौ पांच में दाखिल हो रही थी।
रूम क्या, वो तो सूईट ही था—शानदार सूईट!
रिवॉल्वर वाले ने मुझे सोफे पर धकेल दिया। ब्रीफकेस अभी भी मेरे हाथ में ही था।
मैंने चारों तरफ नजरें घुमाईं।
फिलहाल वहां हम लोगों के अलावा अन्य कोई नहीं था। सामने एक दरवाजा था, जिस पर परदा झूल रहा था।
“अरे भई, तुम्हारे चांग साहब कहां हैं?” मैंने चारों की तरफ देखा।
“चुपचाप बैठी रहो।”
“अजीब घामड़...।”
मेरे शब्द मुंह में ही रह गये। तभी परदा हिला और उसे हटाकर एक ठिगने कद वाले भारी-भरकम तथा पचास के पेटे के चीनी ने बाहरी कमरे में कदम रखा था।
उसके चेहरे से सारे जहां की क्रूरता टप-टप करके टपक रही थी।
उसके वहां कदम रखते ही मुझे वहां तक लाने वाले चीनी आदर से झुके, उनमें से एक ने उसे चीनी भाषा में वो सब बताया जो नीचे रिसैप्शन पर उनके और मेरे बीच हुआ था—यह भी कि मैंने उन्हें शंकरलाल की बाबत क्या खबर दी थी?
मेहरबान दोस्त जानते ही हैं कि मैं संसार की कई भाषायें जानती हूं जिनमें चायनीज भी शामिल है, अतः मुझे उस शख्स की बात समझने में जरा भी दिक्कत नहीं हुई थी।
उधर, उस शख्स ने जो कि निःसंदेह चांग ही रहा होगा, धैर्य से अपने गुर्गे की पूरी बात सुनी, फिर उसकी नजरें मेरी तरफ घूमीं। उसने मेरे हाथ में दबे ब्रीफकेस पर सरसरी नजर डाली, तदुपरांत उसकी छोटी-छोटी मगर बेहद पैनी आंखें मेरे चेहरे पर आ फिक्स हुईं।
“तुम्हें यहां किसने भेजा है?” उसके स्वर में बुलडॉग जैसी गुर्राहट थी।
“क्या?” मैंने हैरत से उसे देखा।
“शंकरलाल कहां है?” उसने दूसरा सवाल दागा।
“मैं तुम्हारे चमचों को सब कुछ बता चुकी हूं।”
“जो कि सच नहीं है।”
“मेरे पास तुम्हें बताने के लिए इसके अलावा और कोई सच नहीं है।”
तड़ाक—।
बगैर किसी चेतावनी के उसका हाथ चल गया, जो कि एक भरपूर थप्पड़ की शक्ल में मेरे गोरे-गोरे गाल से टकराया था।
मेरा चेहरा ही नहीं, समूचा सिर झनझना गया था।
उस पट्ठे का हाथ नहीं मानो वजनी हथौड़ा था।
मैं उसे घूरकर रह गई, पता नहीं उस वक्त क्या सोचकर उस पल मैंने उसके इस थप्पड़ का जवाब देने के लिए कोई हरकत नहीं की थी।
उधर—
वो मेरी तरफ झुका और मेरी आंखों में आंखें डालकर बोला—“जब मैं किसी से कोई सवाल करता हूं तो उसे हर हालत में जवाब देना ही पड़ता है, और ये भी सुन तो कि झूठ और खामोशी से मुझे सख्त नफरत है। बोलो, तुम्हें किसने भेजा है और शंकरलाल कहां है?”
“मैं बता चुकी हूं—शंकरलाल जहन्नुम में पहुंच चुका है। अगर नहीं यकीन तो सरकारी मुर्दाघर में जाकर खुद तस्दीक कर लो, और मुझे उसी ने यहां भेजा है। उसकी मौत के ऐन चन्द मिनट पहले मेरी उससे मुलाकात हुई थी। दम तोड़ते हुए उसने मुझसे ये ब्रीफकेस यहां पहुंचाने की रिक्वेस्ट की थी। शायद मेरी मति मारी गई थी जो मैं इंसानियत—।”
“झूठ—सरासर झूठ।” वो दहाड़ उठा—“बकवास कर रही हो तुम! जरूर तुम मेरे किसी दुश्मन की चली हुई चाल हो या फिर पुलिस की। आज पूरे एशिया की पुलिस को चांग की तलाश है। वो उसकी लाश देखने के लिए ऐड़ी-चोटी का जोर लगाये हुए हैं। जानती हो क्यों, क्योंकि चांग एशिया का सबसे बड़ा ड्रग्स किंग है। वो मौत बेचता है, मौत बांटता है, मौत का सौदागर है।”
“ओह! तो वो ये था।” मैंने मन ही मन सोचा।
आई.एस.सी. के रिकॉर्ड में चांग का पूरा 'डाटा' मौजूद था। बस उसकी तस्वीर नहीं थी। इसलिए मैं उसे नहीं पहचान सकी थी।
अब तो कुछ कहने सुनने की जरूरत ही नहीं थी।
संयोग से एक बहुत बड़ी मछली मेरे सामने थी।
एशिया का सबसे बड़ा ड्रग्स स्मगलर-ड्रग्स किंग! जिसे दूसरे लफ्जों में सचमुच मौत का सौदागर भी कहते थे—यू जिंग चांग!
यानि शंकरलाल उसका गुर्गा था।
उस ब्रीफकेस में ड्रग्स या फिर वैसा ही कुछ रहा होगा।
मैं इंसानियत के चक्कर में इस खतरनाक शख्स तक आ पहुंची थी।
अगर मेरी जगह कोई और होती या होता तो चांग उसे किसी भी कीमत पर जिन्दा नहीं छोड़ने वाला था।
जिन्दा तो वो मुझे भी नहीं छोड़ने वाला था, क्योंकि मैंने उसे देख लिया था। यदि मैं उसे यकीन भी दिला देती कि मैं संयोग से उस तक पहुंची थी, तब भी उसने शर्तिया मुझे मार डालना था, क्योंकि मैं उसकी शक्ल देख चुकी थी। मैं उसके लिए खतरा बन सकती थी।
अब!
बस मेरे सामने यही रास्ता बचता था कि उसे अपना असली रूप दिखा दूं।
रीमा भारती वाला रूप!
उसे बता दूं कि मैं क्या चीज हूं!
उसने मुझे थप्पड़ मारा था।
चलती-फिरती मौत को थप्पड़ मारा था।
इस थप्पड़ का जवाब तो उसे मिलना ही था, ऐसा जवाब—जिसके बाद उसे किसी सवाल-जवाब की जरूरत नहीं रह जाती।
मैंने एक छुपी नजर उसके चारों आदमियों पर डाली। वे मेरी ओर से विशेष सतर्क नहीं लग रहे थे। उनकी नजरों में मैं एक साधारण लड़की थी और भला एक साधारण लड़की से उन्हें या उनके बास को क्या खतरा हो सकता था?
और वक्त बर्बाद ना करते हुए मैं हरकत कर गई।
एकाएक मैं स्प्रिंग लगे खिलौने की तरह सोफे से उछली तथा मेरे सिर की भरपूर टक्कर चांग के फूले हुए चेहरे पर पड़ी।
वह मुझसे कतई ऐसी किसी हरकत की उम्मीद नहीं रखता होगा। मेरा हमला उसके लिए एकदम अप्रत्याशित था।
अतः वह हलक से चीख उगलता हुआ पीछे उलट गया।
परन्तु—।
उसके गिरने से पूर्व ही मैं उसके कोट की जेब मैं हाथ डालकर उसका रिवॉल्वर खींच चुकी थी। वहां रिवॉल्वर है, इसका अंदाजा मुझे उसकी फूली हुई जेब देखकर पहले से हो चुका था।
फिर!
धांय—धांय!
मैंने एक तरफ जम्प लगाते हुए रिवॉल्वर का ट्रेगर दबाया।
उसके दो गुर्गे चीखें मारते हुए शहीद हो गये।
शेष दो के हाथों में पलक झपकते ही रिवॉल्वर चमके और उन्होंने मेरे ऊपर फायर भी किये।
परन्तु तब तक मैं सोफे के पीछे पोजीशन ले चुकी थी।
लेकिन मैं सांस लेने के लिए भी नहीं रुकी थी।
चांग जैसे खतरनाक शख्स को जरा भी मौका देने का मतलब था, अपने हाथों अपनी कब्र खोदना—।
मैं तीव्रता से सोफे के किनारे की तरफ रेंगी। मैंने तनिक सिर निकालकर बाहर झांका।
धांय—।
तुरन्त मुझ पर गोली झपटी।
मैंने फौरन सिर वापस खींच लिया।
मगर इतनी देर में चांग सहित उसके बचे हुए दोनों गुर्गों की पोजिशन देख चुकी थी।
सहसा मैं गेंद की तरह उछली।
उस घड़ी यदि कोई मुझे देखता तो यकीनन हैरत से भर ही जाता।
मेरा जिस्म रोल होता हुआ तकरीबन दस फुट हवा में उठा था।
और फिर—हवा में ही रोल होते हुए—
धांय—धांय—धांय—।
मेरे हाथ का रिवॉल्वर भौंकता चला गया।
चांग का एक गुर्गा माथे पर बड़ा-सा सुराख लिए गिरा, दूसरे के सीने पर ठीक दिल के स्थान पर खून का धब्बा उभरा। उसकी आंखें फैलीं और घुटने मुड़ते चले गये।
मेरी तीसरी गोली चांग के कन्धों में जा समाई थी।
फिर जैसे ही मैं नीचे आई, मेरी टांग की 'किक' अपनी कनपटी पर खाकर वह उछलकर धड़ाम से फर्श पर चित्त हो गया।
मैं फर्श पर गिरकर रोल होती हुई तुरंत उठकर खड़ी हो गई।
सब कुछ चन्द ही पलों में हो गया था।
अब बाजी मेरे हाथ में थी।
दूसरे पल मैं हाथ में रिवॉल्वर संभाले फर्श पर पड़े चांग के सिर पर खड़ी थी, जो चेहरे पर अथाह पीड़ा लिये मगर अविश्वास भरी आंखों से मुझे देख रहा था, मानों उसके सामने दुनिया का सबसे लेटेस्ट अजूबा खड़ा हो।
मेरे होठों पर मुस्कान डिस्को कर रही थी।
बेहद जहरीली मुस्कान।
“कहो प्यारे।” मैं बोली—“अब क्या हाल हैं तुम्हारे?”
“क-कौन हो तुम?” उसने अपने सूख चुके होठों पर जुबान फिराई।
“कमाल है, पूरे पांच फिट दस इंच की लड़की दिखाई नहीं दे रही है क्या? जो अंधों की, सॉरी, गधों की तरह पूछ रहा है कि मैं कौन हूं?”
“तुम—तुम कोई आम लड़की नहीं हो। कोई भी आम लड़की ऐसा करिश्मा नहीं कर सकती—जो चन्द पलों में मेरे कमाण्डो जैसे ट्रेण्ड आदमियों को यूं मार गिराये। चांग को यूं मजबूर कर दे। तुम जरूर खास हो, कोई ऊंची 'शै' हो। मेरी सोच से कहीं ज्यादा पहुंची हुई चीज हो।”
“ठीक कह रहे हो चांग प्यारे! मैं वाकई वो हूं जहां तक तुम्हारी सोच पहुंच भी नहीं सकती। इसे तुम्हारी बद्किस्मती ही कहा जायेगा कि मैं तुम तक पहुंच गई और यकीन मानो, बिल्कुल संयोग से पहुंची हूं। इसके पीछे मेरी कोई पूर्वनिर्धारित स्कीम या चाल नहीं थी। मैं तो जानती तक नहीं थी कि इस समय तुम जैसा पहुंचा हुआ संत मुंबई शहर में मौजूद है। लेकिन जब तुम्हारी मौत तुम्हें मुंबई और मुझे तुम तक खींच लाई तो इसका क्या किया जाये।”
“मगर—तुम हो कौन?”
“रीमा भारती का नाम सुना है कभी?”
“र-रीमा।” उस अवस्था में भी वो उछल पड़ा—“रीमा भारती—आई.एस.सी. की नम्बर वन एजेन्ट?”
“यस मेरे प्यारे चीनी चूहे, मैं वही हूं।”
“ओह! ओह! अब समझ में आया!”
“क्या?”
“ये चमत्कार कैसे हुआ! पलक झपकते ही तस्वीर कैसे बदल गई! जिस चांग से कोई आंखें मिलाने की हिम्मत नहीं करता, वो तुम्हारे कदमों में कैसे पड़ा है! क्योंकि ऐसा चमत्कार सिर्फ रीमा भारती ही कर सकती है।”
“गुड! समझदार बच्चे हो।”
“अब तुम मेरे साथ क्या सलूक करने वाली हो?”
“ये सवाल तो मुझे पूछना चाहिए डियर चांग, बोल तेरे साथ क्या सलूक किया जाये?”
“तुम चाहो तो हमारे बीच एक सौदा हो सकता है।”
“सौदा?”
“मुझे यहां से जाने दो, बदले में मुंहमांगी दौलत ले लो। एक करोड़ डालर कैसे रहेंगे?”
“बस? सिर्फ एक करोड़ डालर—तुम्हारी जान की कीमत, उसकी जान की कीमत, जिसकी एशिया के हर देश की पुलिस को तलाश है, वो उसे मौत के घाट उतरते देखने के लिए मरी जा रही है?”
“पांच करोड़—।”
“नहीं।” एकाएक मेरा लहजा तल्ख हो उठा—“तुम्हें छोड़ने के बदले मुझे उतने डालर चाहिए जो आज तक अमेरिकन ट्रेजरी ने छापे और रिलीज किये हैं। ओह नो, शायद वो भी कम हैं—तुझ जैसी हरामी चीज के लिए तो मुझे पूरी दुनिया की दौलत चाहिए—बोलो, दे सकोगे?”
“तुम—तुम—।”
“सुन हरामजादे! मौत के व्यापारी! आज तक तेरी ड्रग से जितने लोग मरे होंगे, अगर तू कीमत के रूप में उनमें से एक की जान भी लौटा दे, एक को जिन्दा कर दे, तो मैं तुझे बख्श दूंगी। वरना—।”
मेरा वाक्य अधूरा रह गया।
वो चाल खेल गया था।
आखिर वो भी यूं ही एक खतरनाक मुजरिम नहीं कहलाता था।
अचानक विद्युत गति से उसकी टांग चली और मेरे हाथ से रिवॉल्वर गायब—।
फिर इससे पहले कि मैं समझ पाती, उसके सिर की टक्कर मेरे सीने पर पड़ी। वो समझ चुका था, मुझे खरीदा नहीं जा सकता, इसलिए मुझ पर हमला कर बैठा था। अपने बचाव का यही उसके पास आखरी रास्ता भी था।
मैं हवा में तैरती-सी पीछे सोफे पर गिरी।
वो भी हवा में तैरता-सा मेरे ऊपर आ सवार हुआ। उसके दोनों हाथ मेरी गर्दन पर जम गये। उंगलियों ने नाजुक गर्दन को जकड़ लिया। उसके जबड़े सख्ती से कसे हुए थे। आंखों में मौत नाच रही थी।
मेरा दम तेजी से घुटने लगा।
मगर मैं इतनी आसानी से हार मानने वाली कहां थी!
मेरे हाथ तो आजाद थे।
मैंने फौलादी घूंसा उसकी गोभी के पकोड़े जैसी नाक पर जड़ दिया। एक चीख के साथ उसकी गिरफ्त ढीली पड़ी। तभी नीचे से मेरा घुटना उसकी जांघों के जोड़ से टकराया।
वो मेरे ऊपर से उलटकर फर्श पर गिरा।
मैं उछलकर खड़ी हुई।
वह भी किसी शराबी की तरह झूमता हुआ उठने को हुआ।
लेकिन अब मैं उसे किसी भी तरह का मौका देने के मूड में नहीं थी, अतः मेरी अकड़ी हुई खड़ी हथेली का वार उसकी मोटी गर्दन पर पड़ा।
वार रीमा भारती का था। वार इतना सधा हुआ था कि—
कड़ाक!
उसकी गरदन की हड्डी टूट गई। तो वापस मुंह के बल फर्श पर ढेर हो गया।
मैंने पांव की ठोकर से उसे सीधा किया।
उसके जिस्म में कोई हरकत नहीं थी। उसकी पथराई आंखें छत को घूर रही थीं। फिर भी अपनी तसल्ली के लिए मैंने झुककर उसे चेक किया। वो वाकई इस नश्वर संसार को अलविदा कह चुका था।
मर चुका था वो।
फिर बाकी का काम लोकल पुलिस के जिम्में छोड़कर मैं रूम से बाहर निकल आई।
मेरे हाथों चांग का अन्त तो ऐसा था जैसे मुफ्त में अंधे के हाथ बटेर लग गई हो। मैंने सोचा भी नहीं था कि एक मामूली-सी घटना मेरे हाथों इतने बड़े मुजरिम का अन्त करवा देगी।
बाहर पार्किंग में खड़ी अपनी कार स्टार्ट करते वक्त मुझे जोरों की नींद आ रही थी। किन्तु तभी मेरा मोबाइल जाग उठा और उसकी स्क्रीन पर चमकते 'खुराना' के नाम को देखकर मुझे अंदाजा लगाते देर नहीं लगी कि शायद आज की रात मेरे नसीब में सोना नहीं था।
इस असमय खुराना का फोन आने का मतलब था, कोई नई मुसीबत!
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Additional information
Book Title | शतरंज शैतान की : Shatranj Shaitan Ki |
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Isbn No | |
No of Pages | 286 |
Country Of Orign | India |
Year of Publication | |
Language | |
Genres | |
Author | |
Age | |
Publisher Name | Ravi Pocket Books |
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admin –
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