शातिर खिलाड़ी
“खट...खट...खट...।”
दस्तक की आवाज सुनते ही अर्जुन त्यागी उछल कर बिस्तर पर बैठ गया और दरवाजे को इस तरह घूरने लगा जैसे उसकी निगाहें दरवाजे के उस पार खड़े दरवाजा खटखटाने वाले को देखने का प्रयास कर रही हों।
“खट...खट...खट...।” पुनः दस्तक हुई।
“कौन है...?” बैड पर बैठे-बैठे ही अर्जुन त्यागी ने हांक लगाई।
“स्वीपर...!” बाहर से आवाज आई—“कमरे की सफाई करनी है।”
अर्जुन त्यागी एक गहरी सांस छोड़कर रह गया।
वह यही समझा था कि उसका कोई दुश्मन...या उसको पटाने वाला कोई आदमी आया है।
राजनगर में आये उसे दो दिन हो गये थे। मेरठ में हाफिज अली का काम तमाम करने के उपरांत जब उसने उसकी कार की डिग्गी में नजर मारी थी तो उसमें उसे करोड़ों रुपये के नोट तो जरूर मिले थे... मगर वे तमाम नोट नकली थे...। बच्चों के खेलने वाले नोट।
उस वक्त अर्जुन त्यागी पर क्या गुजरी थी...यह वह ही जानता था।
जितना खून उसने मेरठ में बहाया था...उसके मद्देनजर उसका अब वहां एक पल भी रुकना खतरनाक था...सो मन-ही-मन वह अपनी किस्मत को कोसता हुआ वहां से भाग कर सीधा दिल्ली पहुंचा...वहां से जो भी ट्रेन उसे मिली, वह उस पर सवार हो गया और जहां जाकर ट्रेन खाली हुई...वह वहां उतर गया।
स्टेशन पर पैर रखते ही उसे पता चला कि वह राजनगर में आ पहुंचा है।
एक बार पहले भी वह राजनगर आया था...मगर तब बस से आया था...। और यहां आकर उसने जो गुल खिलाये थे...वे अण्डरवर्ल्ड में अभी तक चर्चा का विषय बने हुए थे।
स्टेशन से बाहर निकलकर वह कुछ दूर पैदल चला और फिर दाईं तरफ मुड़कर कुछ ही दूर बने विशाल गेस्ट हाऊस के खुले दरवाजे में प्रवेश कर गया।
रिसैप्शन पर बैठी खूबसूरत और हसीन लड़की को उसने अपना नाम किशोर कुमार बताया और पांच दिन का किराया बतौर एडवांस देकर उसने एक कमरा ले लिया।
आज उसे उस कमरे में दूसरा दिन था।
कल का सारा दिन उसने राजनगर घूमने में लगा दिया था...। जेब में कोई ज्यादा पैसा नहीं था उसके पास...और कामकाज न तो वह कोई कर सकता था...न ही करने का ख्वाहिशमंद था।
वह तो बस इसी बात का तलबगार था कि उस पर एकदम से दौलत की बरसात होनी शुरू हो जाये और वह पूरे इण्डिया के अण्डरवर्ल्ड का एकमात्र बादशाह बन जाये...उसके एक इशारे पर खून की नदियां बहने लगें...।
कई बार उसको अपने अरमान पूरे होते हुए भी नजर आये, लेकिन हर बार सफलता पाकर भी उसे असफलता का मुंह देखना पड़ा था। अर्जुन त्यागी बैड से नीचे उतरा और नंगे पैर चलता हुआ दरवाजे के करीब जा पहुंचा।
हाथ ऊपर उठाकर उसने सिटकनी गिराई और जैसे ही दरवाजा खोला—
बुरी तरह से चौंका वह।
सामने करीब पचास वर्ष का सेहतमंद, चेहरे तथा कपड़ों से संभ्रांत दिखने वाला व्यक्ति खड़ा था। उसने अपने दायें हाथ में रोल की हुई अखबार पकड़ रखी थी...।
अर्जुन त्यागी को देखकर वह मुस्कुराया—“हैलो...।”
“माफ कीजिए...मैंने आपको पहचाना नहीं...।” अर्जुन त्यागी एक शरीफ इंसान बनने की कोशिश करते हुए बोला—“आपको शायद किसी और से मिलना है...।”
“मुझे तुमसे ही मिलना है।”
“लेकिन मैं तो आपको नहीं जानता...।”
“मैं तो जानता हूं...।” वह आदमी बोला—“और अब तुम भी मुझे जान जाओगे...।”
“सॉरी सर...मेरी आदत लोगों से ज्यादा मेल-जोल बढ़ाने की नहीं...।”
“मैं जानता हूं....तुम लोगों से नहीं मिलते...हां, लोग तुमसे मिलने के लिए छटपटाते रहते हैं...।”
“मैं कुछ समझा नहीं...।”
“अन्दर आने को नहीं कहोगे अर्जुन त्यागी...।”
अर्जुन त्यागी के होठों पर मुस्कान नाच उठी—“आपको वाकई गलतफहमी हुई है...मेरा नाम अर्जुन त्यागी नहीं, किशोर कुमार है...।”
वह अभी तक यही समझ रहा था कि वह व्यक्ति कोई पुलिसिया या सी.बी.आई. का आदमी है...।
“रजिस्टर पर नाम बदल कर लिखवा लेने से तुम सचमुच किशोर कुमार नहीं हो जाओगे...रहोगे तुम अर्जुन त्यागी ही...।”
“ल-लेकिन...।”
“ओ.के.! अर्जुन त्यागी न सही...किशोर कुमार बनकर ही मुझे अन्दर आने को तो बोलो...।”
“मगर क्यों...?”
“दरवाजे पर इतनी लम्बी-चौड़ी और कीमती बात नहीं हो सकती...।”
अर्जुन त्यागी ने एक पल के लिए हिचकिचाने की एक्टिंग की और फिर लम्बी सांस छोड़ते हुए एक तरफ हट गया।
वह व्यक्ति भीतर प्रविष्ट हुआ और आगे बढ़कर बैड पर इस प्रकार जाकर बैठ गया जैसे वह अर्जुन त्यागी से काफी बेतकल्लुफ हो।
अर्जुन त्यागी ने दरवाजा बंद किया...सिटकनी चढ़ाई और आकर बैड के करीब रखी कुर्सी पर बैठ गया।
“अब कहें...कौन हैं आप? और कहने से पहले मैं एक बार फिर आपको बताना चाहूंगा कि मेरा नाम किशोर कुमार है...असली नाम है यह...कोई उर्फ अर्जुन त्यागी नहीं...कोई उर्फ काका...टीकू...चीकू नहीं...सिफ किशोर कुमार।”
वह व्यक्ति मुस्कुराया—“मैं जानता हूं कि तुम खुद को किशोर कुमार क्यों कह रहे हो...। घबराने की जरूरत नहीं, मैं कोई पुलिसिया नहीं। पुलिस वालों से मेरा वही रिश्ता है जो कि तुम्हारा है...। फिर भी मैं तुम पर जोर नहीं डालूंगा कि तुम खुद को अर्जुन त्यागी ही कहो...क्योंकि मुझे विश्वास है कि तुम खुद ही अपने मुंह से कहोगे कि तुम अर्जुन त्यागी ही हो...।”
“कोई जादूगर हैं आप जो जादू करके मेरे नाम को बदल देंगे...?”
“नहीं...बल्कि मैं एक ऐसा प्रोपोजल तुम्हारे सामने रखूंगा कि तुम खुद ही अर्जुन त्यागी बन जाओगे।”
“कैसा प्रोपोजल...?”
“उससे पहले मैं तुम्हें अपने बारे में बताऊंगा...ताकि तुम्हारे दिल में कोई शक-शुबहा न रह जाये कि मैं तुम्हारे मतलब का आदमी नहीं हूं...।”
अर्जुन त्यागी बोला कुछ नहीं...बस लापरवाही से कंधे उचका दिये।
“मेरा नाम भी वही है जो कि तुम्हारा है...।”
“क्या? अर्जुन त्यागी...?”
उस व्यक्ति के होठों पर मुस्कान नाच उठी—एक रहस्यमयी मुस्कान।
“क्या तुम्हारा नाम अर्जुन त्यागी है...?”
हड़बड़ाया अर्जुन त्यागी...फिर उसका चेहरा पुनः सामान्य हो गया।
“तो किशोर कुमार है आपका नाम...?” वह मुस्कराकर बोला।
“हां...।” वह व्यक्ति भी मुस्कुराया—“और अब तक सत्रह खून कर चुका हूं...मगर मेरा यह रिकार्ड तुम्हारे रिकार्ड से कहीं ज्यादा पीछे है। तुम्हें तो खुद को ही याद नहीं होगा कि तुम कितने खून कर चुके हो। लेकिन एक रिकार्ड में मैं तुमसे आगे हूं...।”
अर्जुन त्यागी बोला कुछ नहीं...बस उसकी तरफ देखता रहा।
उसे चुप देख किशोर कुमार ने खुद ही अपनी बात आगे बढ़ाई—“वो रिकार्ड यह है कि सत्रह खून कर चुके होने के बावजूद भी मैं बेदाग हूं...मेरे कपड़ों पर खून की एक छींट नहीं पड़ी...। यानि मैं राजनगर में एक इज्जतदार व्यक्ति के रूप में देखा जाता हूं...।”
“बहुत अच्छी बात है...।” अर्जुन त्यागी लापरवाही से बोला—“अब जरा अपने आने का मकसद भी बता दो...।”
किशोर कुमार ने हाथ में रोल किया हुआ पेपर खोला, उसे पलंग पर बिछाया और अर्जुन त्यागी की तरफ देखे बिना ही एक स्थान पर उंगली रखते हुए बोला—
“इसे पढ़ो...।”
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