सत्यमेव जयते : Satyameva Jayate
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मुण्डकोपनिषद् का यह वाक्य कितना सुन्दर व कितना आदर्शमय है, यह आपको बताने की आवश्यकता नहीं। हमारे देश भारत की सभ्यता और संस्कृति की सही तस्वरी इसी एक वाक्य के द्वारा पूरे विश्व में पेश हो जाती है - ‘सत्य की ही जय होती है’। सत्य अजर, अमर है, शाश्वत है। सत्य की जय हर हाल में होती है।
संसार में आतंकवाद ने, जिस तरह सिर उठाकर अपनी असुरी शक्ति का प्रभाव डाला है, उससे विश्व त्रस्त है। पर वह दिन अब दूर नहीं जब दसों दिशाओं से मां दुर्गा के संहारक हाथ उठेंगे और आतंकवाद का पूरे विश्व से सफाया कर देंगे। इस उपन्यास के कथानक में, रीमा भारती को प्रतीक रूप में, उस समस्या से संघर्ष करता हुआ देखकर आप ‘सत्यमेव जयते’ के नारे को सार्थक होता हुआ पाएगें।
Satyameva Jayate
Reema Bharti
Ravi Pocket Books
BookMadaari
प्रस्तुत उपन्यास के सभी पात्र एवं घटनायें काल्पनिक हैं। किसी जीवित अथवा मृत व्यक्ति से इनका कतई कोई सम्बन्ध नहीं है। समानता संयोग से हो सकती है। उपन्यास का उद्देश्य मात्र मनोरंजन है। प्रस्तुत उपन्यास में दिए गए हिंसक दृश्यों, धूम्रपान, मधपान अथवा किसी अन्य मादक पदार्थों के सेवन का प्रकाशक या लेखक कत्तई समर्थन नहीं करते। इस प्रकार के दृश्य पाठकों को इन कृत्यों को प्रेरित करने के लिए नहीं बल्कि कथानक को वास्तविक रूप में दर्शाने के लिए दिए गए हैं। पाठकों से अनुरोध है की इन कृत्यों वे दुर्व्यसनों को दूर ही रखें। यह उपन्यास मात्र 18 + की आयु के लिए ही प्रकाशित किया गया है। उपन्यासब आगे पड़ने से पाठक अपनी सहमति दर्ज कर रहा है की वह 18 + है।
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सत्यमेव जयते
एक ऊँची दीवार पर, छत से कुछ ही नीचे एक बड़े आकार का अशोक चिन्ह लगा हुआ था। और उसके ठीक बांये लिखा हुआ था 'सत्यमेव जयते'।
उसके ठीक नीचे एक बड़ी सी कुर्सी पर आँखों पर चश्मा चढ़ाये, अधेड़ उम्र का व्यक्ति, हाथ में कलम थामे बैठा हुआ था।
वह जज था। वह इस समय अदालत में बतौर जज की हैसियत से सुनवाई कर रहा था। अदालत में कई वकील व अन्य लोग मौजूद थे।
अदालत के कटघरे में एक लम्बी-चौड़ी कद-काठी का व्यक्ति खड़ा हुआ था। उसकी आँखें बड़ी व काली तथा भयानक प्रतीत होती थीं। उसके चेहरे पर बड़ी-बड़ी मूंछें भी थीं। वह बतौर मुलज़िम की हैसियत से कटघरे में खड़ा हुआ था।
सभी खामोश थे। तभी वकील श्री देसाई जो कि सरकारी वकील थे, अपनी कुर्सी छोड़कर उठे और जज साहब को सम्बोधित करते हुए कहा—“योर ऑनर! यह आदमी जो कि इस समय कटघरे में खड़ा हुआ है, यह वास्तव में इन्सान की खाल में भेड़िया है। यह वो शख्स है जिसने कश्मीर के सैकड़ों बेगुनाह लोगों को मौत की नींद सुला दिया। सैकड़ों बच्चों को यतीम व औरतों को बेवा कर दिया है इसने। ....यस योर ऑनर, यही वो शख्स है जिसने कश्मीर की वादियों को नरक में बदलने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इस शख्स को कड़ी से कड़ी बल्कि अगर इस दुनिया में मौत से बढ़कर भी कोई सजा हो तो वो दी जाये। दैट्स ऑल योर ऑनर।”
“अदालत इसके खिलाफ सुबूत चाहती है मिस्टर देसाई।”
“हाजिर है योर ऑनर।” कहकर मिस्टर देसाई ने कागजों का बण्डल जज साहब को दे दिया और कहा—
“यह रहा योर ऑनर इसके जीवन का चिट्ठा। यह खुफिया विभाग आई.एस.सी. के चीफ मिस्टर कुलभूषण खुराना की रिपोर्ट के आधार पर है।”
“हूँ....।”
जज साहब, रिपोर्ट का बारीकी से अध्ययन करने लगे। कुछ समय तक अदालत में पूरी तरह से सन्नाटा छाया रहा। फिर जज साहब ने कहा—
“जोरावर, क्या तुम्हें अपनी सफाई में कुछ कहना है?” उन्होंने कटघरे में खड़े मुजरिम से पूछा।
“हा....हा.....हा।” उसने एक जोरदार ठहाका लगाकर जज साहब की बात को नजरअंदाज कर दिया। इस व्यवहार को देखकर मिस्टर देसाई भड़क उठे और बोले—
“देखिये योर ऑनर, यह मौत के मुंह में खड़ा होकर भी ठहाके लगा रहा है। इसे अदालत के सम्मान का जरा भी ख्याल नहीं है। आप इसे कड़ी से कड़ी सजा दीजिए।”
सरकारी वकील की बात खत्म होते ही लोगों में कानाफूसी शुरू हो गई। जज साहब ने मेज पर हथौड़े की चोट मारते हुए जोर से कहा—“आर्डर-आर्डर।” जज साहब की बात सुनकर सभी शान्त हो गए। जज साहब ने पुनः कलम उठाया और कहा—
“यह अदालत तमाम सुबूतों और दलीलों के मद्देनजर इस नतीजे पर पहुँची है कि मुलज़िम जोरावर मलिक पर जुर्म साबित होते हैं। इसलिये यह अदालत मुलज़िम जोरावर मलिक को दफा तीन सौ दो ताजीरात-ए-हिन्द फाँसी की सजा सुनाती है।”
“हा....हा....हा। तू मौत की सजा सुना सकता है जज, पण अपुन को मौत नेई दे सकता। अपुन कू तुम्हारे हिन्दुस्तान की सलाखें ज्यादा दिनों तक कैद में नेई रख सकतीं।”
जज साहब उसकी बातों की अनसुनी कर उठ गये। सभी अन्य लोग उठकर जाने लगे। जोरावर को पुलिस पकड़कर अदालत से बाहर लेकर जाने लगी।
उसकी आंखें बेहद सुर्ख थीं। मानों उनमें से खून टपकने वाला हो। वहशीपन से भरी उसकी आंखें, दो जलते अंगारों जैसी प्रतीत हो रही थीं। वह कद-काठी में भी असाधारण था। करीब सवा छह फुट का वह शख्स, रंग में काला और भद्दे होंठ वाला था।
अदालत से बाहर आते समय उसके भद्दे होंठ भिंचे हुए थे। मुट्ठियां तनी हुई थीं, जिस कारण उसके हाथों की मछलियां उभर आई थीं।
वह अण्डरवर्ल्ड का टॉप शूटर था, जिसे आज अदालत ने मृत्यु-दण्ड की सजा सुनाई थी। मगर मृत्यु-दण्ड की सजा सुनने के बावजूद उसके चेहरे पर हल्की सी भी शिकन नहीं थी।
फिर!
एकाएक उसकी भृकुटियां तन गईं। उसकी सुर्ख आंखें एक दिशा में घूरने लगी थीं। उधर, जहां जीन्स-शर्ट में एक अप्सरा के समान खूबसूरत युवती उसे मुस्कुराते हुए देख रही थी। युवती के होठों की मुस्कान में व्यंग्य था और आंखों में शरारत थी।
जैसे ही उस युवती पर उस शूटर की नजर पड़ी थी, उसके कदम ठहर गये थे। मुट्ठियां और भिंच उठीं। उस खूंखार शूटर के यूं रुक जाने से उसे घेरे में लिए पुलिस इंस्पेक्टर्स और सिपाही भी रुक गए।
“रुक क्यों गये जोरावर!” साथ चल रहे पुलिस इंस्पेक्टर ने उसे टोककर कहा—“जल्दी करो। तुम्हें पुलिस वैन में चलकर बैठना है।”
परन्तु जोरावर ने इंस्पेक्टर को एक पल घूरा। फिर बोला— “अपुन को टोकना पसन्द नहीं ए बीडू! जानता है अपुन कि अपुन को तेरे साथ चलकर उस वैन में बैठने का है क्योंकि अदालत ने अपुन को मौत की सजा दिएला है ! पण अपुन उस फुलझड़ी के माफिक छोकरी को कुछ बोलना मांगता है...समझा...।”
जोरावर के अंदाज से इंस्पेक्टर सहम-सा गया। उससे कुछ कहते नहीं बन सका। जोरावर सीधे उस युवती के पास पहुंचकर बोला—“भौत खुश हो रीली न तू....। सोचती होएगी कि जोरावर को मौत की सजा हो गेली है, इसलिए जोरावर फिनिश हो जाएंगा...पण अइसा मत सोच...जोरावर बाजार की पकौड़ी नेई है समझी, जो कानून उसे गप्प कर लेइंगा...अपुन हवा है हवा...। समझी! हवा को कोई कैद नेई कर सकता है! अपुन वापस लौटेंगा...और जिस दिन अपुन का वापसी होएंगा न, उस दिन तू समझ ले कि तू फिनिश होएंगी। अपुन का यह बात याद रखने का है!” इतना कहकर जोरावर आगे बढ़ने लगा।
“एक मिनट जोरावर।” उस युवती ने (जो और कोई नहीं मेहरबान दोस्तों, आपकी अपनी और भारत मां की लाडली बेटी रीमा भारती थी) कहा—“शुक्र मना कि अदालत ने तुझे सजा-ए-मौत दे दी! अगर तुझे मेरे हाथों मरना पड़ता, तो मैं तुझे तड़पा-तड़पा कर मारती—तुझे ऐसी मौत देती कि तेरी सात पुश्तें भी कांप उठतीं। अब जा यहां से...और अपने बचे दिन अपनी मौत के इंतजार में बिता। जेल की काल कोठरी तेरा इंतजार कर रही है।”
जोरावर के तन-बदन में रीमा के शब्द सुनकर आग लग गई थी, पर वह रत्ती भर विचलित नहीं हुआ। उसके होठों पर अजीब सी मुस्कान उभरी और उसने ठण्डे स्वर में कहा—“जाता है...जाता है ! पण जाते-जाते अपुन तुझ कूं इतना बोलता है कि अपुन का इंतजार करना...अपुन लौटेगा तेरे पास। मौत बनकर वापस लौटेगा...याद रखना...।” इतना कहकर जोरावर आगे बढ़ गया।
उसके साथ-साथ पुलिस दल भी आगे बढ़ गया। रीमा ने अपनी आंखों पर गॉगल्स लगाए और अपनी कार की दिशा में बढ़ गई। जोरावर की बकवास का उस पर कोई असर कहां होने वाला था। जोरावर जैसे कितने अण्डरवर्ल्ड शूटर्स को वह अपनी जेब में रखकर घूमने वाली शख्सियत जो थी।
¶¶
अदालत परिसर से बाहर निकलकर रीमा सड़क किनारे खड़ी अपनी कार की तरफ बढ़ने लगी। आते समय उसने अपनी कार को वहीं खड़ा कर दिया था।
अब पैदल चलते हुए वह अपनी कार की तरफ बढ़ रही थी। उसने अपनी रिस्टवॉच पर नजर डाली। शाम के सवा पांच बज रहे थे। उसके होठों पर मुस्कान उभरी। ठीक एक घण्टे के भीतर उसे अपनी एक फ्रेण्ड काजल के यहां पहुंचना था। काजल ने उसे आज सुबह फोन पर अपने जन्मदिन और जन्मदिन पर होने वाली पार्टी की सूचना दी थी। रीमा को वहां ठीक छह बजे पहुंचना था।
वह आकर कार में बैठी। उसने कार स्टार्ट की। उसी दौरान उसकी नजर सड़क से गुजरती उस वैन की तरफ चली गई जिसमें जोरावर को जेल ले जाया जा रहा था। अदालत परिसर से निकल कर वह वैन बड़ी तेजी से आगे गुजरी।
लेकिन तभी,
रीमा को बुरी तरह चौंकना पड़ा, क्योंकि उसी वैन के पीछे एक शानदार मर्सडीज कार भी तेजी से गुजरी थी। रीमा को उस मर्सडीज पर उसकी रफ्तार देखकर सन्देह हुआ। ऐसा प्रतीत हुआ मानो मर्सडीज जोरावर वाली वैन के पीछे लगी है।
'कुछ गड़बड़ है।' रीमा के जेहन में विचार कौंधा और फिर अगले ही पल रीमा को अपनी कार उस मर्सडीज के पीछे लगा देनी पड़ी।
उधर मर्सडीज स्पीड से भागी जा रही थी और इधर रीमा भी अपनी कार को उस मर्सडीज के पीछे लगाए हुए थी।
करीब दस मिनट गुजरे। इस दौरान रीमा को यह अहसास हो गया कि मर्सडीज वाकई जोरावर वाली वैन के पीछे लगी है और वैन का पीछा करने की धुन में मर्सडीज में बैठे लोगों को सन्देह नहीं हो सका है कि कोई कार उनका पीछा कर रही है। यह स्थिति रीमा के लिए संतोषजनक थी, क्योंकि वह जानना चाहती थी कि मर्सडीज में बैठे कौन लोग हैं, जो जोरावर जैसे अण्डरवर्ल्ड शूटर में इस वक्त भी दिलचस्पी ले रहे हैं। जबकि जोरावर को अदालत द्वारा फांसी की सजा सुनाई जा चुकी है। कहीं ऐसा तो नहीं कि मर्सडीज में बैठे लोग जोरावर को मुक्त कराने का मंसूबा रखकर पुलिस वैन के पीछे लगे हों?
करन्ट की तरह मस्तिष्क में उभरने वाले इस विचार से रीमा का दिमाग तेजी से सक्रिय हो उठा। उसे इस नतीजे तक पहुंचने में देर नहीं लगी कि जोरावर को ले जा रही पुलिस वैन पर कुछ पल में ही हमला हो सकता है। इस विषय पर सोचते ही रीमा कोई कदम उठाने ही वाली थी कि तभी मर्सडीज से एक रिवॉल्वर वाला हाथ उभरते उसने देखा, जिसकी नाल का रुख आगे भाग रही पुलिस वैन की तरफ था। यानि रीमा की आशंका सही थी।
और अगले पल एक फायर हुआ।
'धांय!'
निशाना पुलिस वैन के पिछले टायर पर लगाया गया था—जो अचूक साबित हुआ। फलस्वरूप पुलिस वैन ने हिचकोले खाने शुरू कर दिये। यह गनीमत थी कि इस वक्त पुलिस वैन शहरी सीमा से कुछ दूर आ चुकी थी, वर्ना इस प्रकार पुलिस वैन के असंतुलित होने का खामियाजा कई नागरिकों को जान देने के रूप में उठाना पड़ता।
लेकिन शायद पुलिस वैन का ड्राईवर होशियार था। उसने किसी प्रकार वैन को कन्ट्रोल कर लिया। इसके साथ ही पुलिस वैन में बैठे पुलिसकर्मी भी सतर्क हो गए थे। इसलिए वैन की तरफ से भी मर्सडीज पर फायरिंग शुरू हो गयी।
मगर मर्सडीज का ड्राईवर भी कम उस्ताद नहीं था। वैन से फायरिंग की उसे पहले से उम्मीद थी, इसलिए उसने मर्सडीज की रफ्तार धीमी करके उसे फुटपाथ की तरफ चढ़ा दिया और मर्सडीज रोक दी।
इसी के साथ मर्सडीज से एक फायर और पुलिस वैन पर हुआ। इस बार निशाना वैन का दूसरा टायर था। यह निशाना भी सही बैठा और जोरदार आवाज के साथ पुलिस वैन का दूसरा टायर फट गया, जिस कारण वैन अब बेकाबू हो उठी थी। वह तेज हिचकोले खाती हुई पुल की तरफ बढ़ने लगी। रीमा आंखें फाड़े उस दृश्य को देखती रही। उसके देखते ही देखते पुलिस वैन पुल के किनारे की रेलिंग को तोड़ती हुई नीचे नदी में जा गिरी।
रीमा के लिए वह एक लोमहर्षक दृश्य था। जोरावर नाम के अपराधी समेत इंस्पेक्टर व पुलिस कर्मियों से भरी वैन, दुर्घटना का शिकार हो गई थी। और इसका कारण मर्सडीज से होने वाली फायरिंग थी।
पुलिस वैन के पुल से गिरते ही आसपास के लोग उस तरफ दौड़ कर जाने लगे। रीमा अपने स्थान से टस से मस नहीं हुई। उसकी दृष्टि मर्सडीज पर टिकी हुई थी। इस दौरान उसने मर्सडीज ड्राईविंग सीट पर बैठे व्यक्ति की सूरत भी देख ली थी और उसकी सूरत को अपनी मैमोरी में अच्छी तरह फीड भी कर लिया था।
अब रीमा का इरादा मर्सडीज में बैठे अन्य लोगों की सूरतें देखने का तथा उनकी अक्ल के पुर्जे दुरुस्त करने का हो गया था, क्योंकि उन्हीं की करतूत के कारण निर्दोष पुलिस वाले दुर्घटना का शिकार हुए थे और उनमें से कौन जिन्दा बचा और कौन मर गया, इस बारे में अभी तक कुछ पता नहीं था।
लिहाजा रीमा के लिए उस मर्सडीज वालों से हिसाब-किताब पूछना जरूरी हो गया था। उसने अपना पिस्टल निकाला। कार से उतरकर बाहर आयी और सतर्कता के साथ मर्सडीज की तरफ बढ़ने लगी।
लेकिन!
रीमा चार-पांच कदम ही चली थी कि उस मर्सडीज में कान फाड़ देने वाला तेज धमाका हुआ—
'धड़ाम!'
यह धमाका ऐसा था मानों धरती में भूचाल आ गया हो। रीमा के पैर धमाके के साथ ही लड़खड़ा उठे। संभलने की भरसक चेष्टा के बावजूद वह गिरने से खुद को रोक न सकी। लड़खड़ा कर गिर पड़ी। गिरते-गिरते रीमा ने देखा कि उस विस्फोट से मर्सडीज के परखच्चे उड़ गए हैं। ऐसे में उसमें बैठे लोगों की जो दुर्दशा होनी थी, वह हुई।
रीमा को एक साथ दो हादसों को देखना पड़ा।
विस्फोट के बाद मर्सडीज के हिस्से इधर-उधर छितराकर गिरे थे। जहां मर्सडीज खड़ी थी—वहां उसका नष्ट इंजन पड़ा था। जिसमें धुआं तथा आग नजर आ रही थी। इसके अलावा उसमें बैठे लोगों के जलते वस्त्र, कुछ रक्त और एक रिवॉल्वर भी पड़ा रीमा को दूर से नजर आ गया।
वह अपने स्थान से उठी। उसकी नजर पुल की तरफ चली गई, जहां मर्सडीज के विस्फोट से पहले पुलिस वैन नीचे जा गिरी थी। वह स्थान सुनसान हो गया था, क्योंकि जो लोग पुल पर जमा होने वाले थे, वे मर्सडीज में हुए विस्फोट से आतंकित होकर दूर भाग खड़े हुए थे। और उस समय सहमे और भयभीत से कभी पुल के नीचे तो कभी मर्सडीज की तरफ देख रहे थे। रीमा ने उस तरफ बढ़ने का इरादा किया; लेकिन अगले ही पल उसे ठिठक जाना पड़ा, क्योंकि पुलिस वाहन के सायरन की आवाज उसे सुनाई पड़ी। जाहिर था कि इस घटना की सूचना पुलिस को दे दी गई थी।
ऐसी स्थिति में रुकना खास फायदेमंद नहीं था। इसलिए रीमा ने वहां से रवाना हो जाना ही उचित समझा। पुलिस वैन में कौन मरा और बचा, इसके बारे में वह किसी भी सूत्र से जानकारी ले सकती थी। इसलिए अपना पिस्टल वापस अपनी जेब के हवाले करते हुए वह अपनी कार की तरफ वापस चल दी। अब उसे काजल के यहां पहुंचना था, जहां वह आज इन्वाइट थी। मगर इन दो हादसों ने उसके मस्तिष्क में कई सवाल खड़े कर दिए थे। उसका जासूसी दिमाग इन्हीं सवालों का जवाब पाने के लिए सक्रिय हो उठा था।
¶¶
काजल रीमा की सहेली थी, परन्तु आज वह पहली बार उसके यहां पहुंची थी। काजल शादीशुदा थी। उसके पति अच्छे रईस परिवार से थे। लेकिन, रीमा ने कभी काजल के पति को देखा न था।
इस वक्त रीमा की कार ने एक शानदार बंगले के भीतर प्रवेश किया। पार्किंग में कार खड़ी करके वह अन्दर जाने वाले रास्ते पर चल पड़ी।
पार्टी का आयोजन एक गार्डन में किया गया था, जहां के वृक्षों पर रंग-बिरंगे बल्बों की रोशनियां जगमगा रही थीं। सिर्फ उस गार्डन के वृक्ष ही नहीं बल्कि बंगले की अन्दरूनी दीवारें तथा बालकनी भी रंगीन रोशनी से सजे थे। कुल मिलाकर मनमोहक दृश्य था। सारी सज्जा बड़े सुन्दर ढंग से की गई थी। आयोजन में काफी लोग आए थे। स्त्री-पुरुष, बच्चे सभी का हुजूम वहां इकट्ठा था। खाने-पीने और मस्ती का माहौल था। ठहाकों और बातचीत के स्वर सुनाई पड़ रहे थे।
रीमा ने वहां पहुंचने पर काजल की तलाश में नजरें दौड़ाईं। मगर काजल उसे दिखाई नहीं पड़ी।
सहसा,
“रीमा!” शहद की तरह मीठा स्वर रीमा के कानों में गूंजा।
रीमा ने पलटकर देखा और काजल पर नजर पड़ते ही वह मुस्करा उठी।
“हाय काजल!” कहते हुए रीमा बाहें फैलाए उसकी तरफ बढ़ी। काजल की भी बाहें रीमा को अपने अंक में भरने के लिए फैल गईं।
दोनों आलिंगन में बंध गए।
“कैसी हो रीमा?” काजल रीमा को बाहों में कसकर बोली।
“आई एम फाइन बेबी!” रीमा ने मुस्करा कर कहा।
“इतनी देर कैसे कर दी?” काजल ने शिकायती स्वर में पूछा।
“किसी काम में फंस गई थी।”
“इसीलिए मुझे तुम्हारे आने की आशा नहीं थी।” काजल ने कहा।
“क्यों?”
“क्योंकि तुम्हारा काम ही अजीब है, जब देखो किसी का पीछा, ठांय-ठांय ! ढिशुम-ढिशुम।” काजल पूरी एक्टिंग करते हुए बोली।
रीमा उसकी इस हरकत पर मुस्करा उठी। विषय बदलने के लिए उसने कहा—“खैर छोड़ो यह सब; तुम्हारे हसबैण्ड कैसे हैं?”
“बढ़िया!” काजल ने कहा—“आओ, तुम्हें मिलवाती हूं।” इतना कह रीमा का हाथ थामे वह एक तरफ को बढ़ने लगी।
कुछ पल बाद काजल एक सुन्दर सूटेड-बुटेड युवक से उसका परिचय करा रही थी—“रीमा, यह हैं मेरे पति....महेश सिंधवी।”
“हैलो!” कहते हुए उसने रीमा की तरफ हाथ बढ़ाया।
“हैलो मिस्टर महेश!” रीमा ने भी हाथ मिलाते हुए कहा।
परन्तु आगे कुछ बात नहीं हो सकी, क्योंकि तभी किसी ने महेश को आवाज दी थी और महेश उसकी तरफ मुखातिब हो गया था।
इसके बाद रीमा को काजल, अन्य लोगों से मिलवाने लगी। मगर, सच तो यह था कि रीमा के सीक्रेट एजेण्ट होने का पता काजल को भी नहीं था। काजल की दृष्टि में रीमा सिर्फ एक पत्रकार थी, इसलिए पार्टी में आए लोगों से काजल रीमा का परिचय एक पत्रकार के रूप में करा रही थी।
कुछ पल बीते।
फिर वह वक्त आया जब काजल को जन्मदिन का केक काटना था।
उस समय सभी लोग उस स्थान पर एकत्र हो गए, जहां जन्मदिन का केक रखा हुआ था।
रीमा, अपने पति महेश और अन्य लोगों के बीच काजल ने अपने जन्मदिन का केक काटा।
“हैप्पी बर्थ डे टू यू....हैप्पी बर्थ डे टू यू काजल...।” की आवाज के साथ तालियों का स्वर गूंज उठा। काजल ने केक काटकर उसका एक पीस अपने मुंह में और बचा हिस्सा पति को खिलाया। उसने एक टुकड़ा और काटा और रीमा को खिलाने के लिए हाथ बढ़ाया।
परन्तु ऐसा नहीं हो सका, क्योंकि उसी क्षण किसी ओर से फायर हुआ—
'धांय।'
एक सनसनाती गोली काजल के हाथ पर रखे केक को उड़ाती हुई चली गई। निशाना शायद चूक गया था। इस फायर से पार्टी में मौजूद लोग घबरा उठे। वे संभलने की चेष्टा करते, तभी फिर एक और फायर हुआ। निशाना रीमा को लक्ष्य करके लगाया गया था या काजल को, कहा नहीं जा सकता। लेकिन फायर करने वाले का इरादा इस बार भी पूरा नहीं हो सका। क्योंकि दूसरा फायर होते ही रीमा, काजल का हाथ थामते हुए फुर्ती के साथ नीचे बैठ गई थी।
अगले क्षण।
“वन मिनट काजल।” रीमा ने भयभीत काजल को साहस बंधाते हुए कहा—“मैं अभी आई।”
“न...नहीं रीमा!...तुम यहीं रहो...क...कहीं तुम्हें गोली न लग जाए।” काजल घबराकर बोली।
रीमा के होठों पर रहस्यमय मुस्कान उभरी—यह सोचकर कि भला काजल को क्या पता कि खूबसूरत और मासूम सी नजर आने वाली वह एक ऐसी बला है, जिससे रिवॉल्वर की गोली को भी डरना पड़ता है और उसकी तरफ बढ़ते समय अपना रुख बदलने पर मजबूर होना पड़ता है। फिर भी काजल को आश्वस्त करते हुए उसने कहा—“मुझे कुछ नहीं होगा! मुझे देखने दो कि गोली चलाने वाला किधर गया।”
काजल शायद उसे फिर रोकती, लेकिन अपना वाक्य समाप्त होते ही रीमा तेजी से आगे की तरफ रेंगती चली गई। वह उस दिशा की तरफ जा रही थी जिधर से गोली चलाई गई थी। वह जगह गार्डन की दीवार थी।
रीमा कुछ ही पल में उस स्थान पर जा पहुंची और देखते ही देखते वह चारदीवारी पर चढ़ गई। ऐसा करते समय वह किसी जंगली बिल्ली की तरह सतर्क थी। उसकी पैनी दृष्टि ने पल भर में चारदीवारी से कुछ दूरी पर एक भागते साये को देख लिया था। उसने भागते साये को गिराने के लिए फुर्ती के साथ अपना पिस्टल निकाला।
मगर अफसोस।
इस बार भी रीमा के पिस्टल को बिना इस्तेमाल हुए जेब में वापस चले जाना पड़ा। वजह बनी—उसके मोबाइल पर बीप का अचानक उभरना। रीमा का ध्यान क्षणेक के लिए उस भागते साये की तरफ से गाफिल हो गया था और अगले पल ही वह साया फिर नजर नहीं आ सका।
बहरहाल, रीमा ने मोबाइल की स्क्रीन पर नम्बर देखा। नम्बर उसके चीफ खुराना का था। वह सतर्क हो उठी। समझ गई कि अब उसकी मौज-मस्ती का वक्त खत्म होने वाला है, क्योंकि चीफ हमेशा किसी गंभीर और खास अवसर पर ही उसे कॉल किया करता था।
“हैलो सर!” रीमा ने कॉल अटैण्ड करते हुए कहा।
“रीमा!” खुराना ने उधर से गंभीर स्वर में कहा—“फौरन मुझसे आकर मिलो! इसी वक्त! क्विक!”
इससे पहले कि रीमा कुछ पूछती या कहती, खुराना ने संबंध काट दिया।
उसने बुरा-सा मुंह बनाया। फिर गहरी सांस लेते हुए वापस उसी तरफ बढ़ गई, जिधर वह काजल को छोड़कर आई थी।
¶¶
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Additional information
Book Title | सत्यमेव जयते : Satyameva Jayate |
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Isbn No | |
No of Pages | 352 |
Country Of Orign | India |
Year of Publication | |
Language | |
Genres | |
Author | |
Age | |
Publisher Name | Ravi Pocket Books |
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