सांप के मुंह में छछुन्दर
“अरे....रे-रे....कैसी बात कर रहे हो कालिया साहब?” नागदत्त तुरन्त बोला—“मैं भला आपको मना कैसे कर सकता हूँ। मेरे को तो इस शहर में रहना है। आप चाहें तो मेरे को एक इशारे पर इस शहर से बाहर फिंकवा सकते हैं। क्या मेरे को ये नहीं मालूम कि आपकी पहुँच कितने ऊपर तक है?”
“घबराइए मत।”—कालिया ने उसे सांत्वना दी—“मैं आपका नुकसान नहीं करूंगा। मेरा मतलब है कि सबूतों के साथ छेड़छाड़ कतई नहीं करूंगा मैं।”
और समीर कालिया भीतर की तरफ को बढ़ गया।
युवती जानबूझकर इंस्पेक्टर नागदत्त से बचकर निकली थी। मगर नागदत्त तो वो नाग था जो शिकार को दूर से भी नहीं बख्शता था। वह
जालिम जानबूझकर युवती के पास को सरका तथा उसके नितम्बों को दबा दिया।
“उई—” युवती चिहुंकी।
“क्या हुआ?”—कालिया ने कहर भरे भाव से उसे घूरा। जबकि बाहर निकलते नागदत्त के होंठों पर बेहद शरारतपूर्ण मुस्कराहट काबिज थी।
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नाग जैसे ही बाहर आया तो पत्रकारों ने उसे रोक लिया, इस प्रकार जैसे मक्खियों का झुण्ड गुड़ की भेली के ऊपर भिनभिनाता है। गुड़ की भेली अगर कपड़े वगैरह में रखी भी हो तो भी वे उसका पीछा नहीं छोड़तीं तथा उसके आस-पास भिनभिनाती रहती हैं; ताकि मौका लगते ही उस पर आक्रमण कर दें।
“नाग जी....नाग जी, आपने सिंघानिया जी की लाश का मुआयना वगैरह तो कर लिया होगा।”—एक पत्रकार बोला—“आपकी क्या राय है?”
“भईया, अब राय हमारी कहां रही!”—नाग ने ठंडी सांस ली—“राय तो अभिषेक बच्चन की हो गई।”
सब हँसे।
“न....नहीं....नहीं।” वह पत्रकार सकपकाकर रह गया—“मेरा व-वो मतलब कतई नहीं था। मैं तो बस यह पूछना चाहता था कि इस कत्ल के बारे में क्या विचार हैं आपके?
“जिस तरीके से कत्ल किया गया है, मृतक के जिस्म पर अट्ठाईस निशान हैं जो कि किसी चाकू के गोदने के हैं। इसके सिवाय मैं अभी कुछ भी कहना पसंद नहीं करूंगा। सिंघानिया जी के परिवार वाले आ गए हैं। लाश का पंचनामा कराने के पश्चात् लाश के पोस्टमार्टम की रिपोर्ट आ जाएगी तो हम उसे मीडिया को रिलीज कर देंगे।”
“नाग जी।”—एक युवती पत्रकार ने सवाल किया—“इस टाईम पर जो क्राईम लोग कर रहे हैं, सुल्तान नगर में जिस प्रकार जुर्म की तादात बढ़ती जा रही है, उसे देखकर तो लगता है इस शहर का नाम सुल्तान नगर से बदल कर शैतान गढ़ रख देना चाहिए। जवान लड़की की आबरू यहाँ पर सुरक्षित नहीं रह गई। आये दिन खून हो रहे हैं। चोरियाँ तथा डकैतियाँ तो इस प्रकार होने लगी हैं मानो ये सब बच्चों का खेल हो....और अब सिंघानिया जैसे प्रतिष्ठित उद्योगपति का खून भी हो गया। आप पुलिस वाले क्या कर रहे हैं?”
“झक मार रहे हैं!”—नाग फुंकारा—“आप खुद एक पत्रकार हैं, क्या आपको यह नहीं पता कि जब से मेरा तबादला इस शहर में हुआ है, तब से शहर में क्राईम रेट कितना कम हो गया है, मेरे इलाके में? दस प्रतिशत भी क्राईम नहीं रह गया है। और मैडम, आप क्या मुझे ये बतलाने का कष्ट करेंगी कि कौन सा ऐसा प्रान्त, कौन-सा ऐसा देश है जहाँ जुर्म नहीं है। जहाँ पर उजाला होता है वहाँ पर अंधेरा भी होता है। दीये के तले ही होता है अंधेरा। अब मैं कोई भगवान तो नहीं हूँ, जिसके पास जादू का डण्डा हो और वो घुमाकर तमाम के तमाम क्रिमिनल्स को पकड़ लूँ। सारे खूनियों को फाँसी पर लटका दूँ।”
“यह भी सुनने में आया है कि आप जानबूझकर थाने में जुर्म की रिपोर्ट दर्ज नहीं करते हैं?”—वही पत्रकार बोली—“बतलाया ये भी जाता है कि आप खुद सुपारी लेकर खून करने का काम करते हैं?”
“आप लोगों के कहने से क्या होता है?”—नाग के चेहरे पर क्रोध वाले भाव जागने लगे—“आप लोग कल को ये कहने लग जायें कि इस मुल्क का प्रधानमंत्री, आई○एस○आई○ का एजेन्ट है तो क्या ये सच हो जाएगा? कुछ भी बोलने के लिए आवश्यक होता कि उसका सुबूत आपके पास हो। आप मीडिया वाले तो पूँजीपतियों की जूती चाटने वाले कुत्ते बनकर रह गए हैं। जिसने भी रोटी का टुकड़ा डाला, आपने बस उसका गुणगान करना चालू कर दिया...रही बात तुम्हारी, तो तुम क्या दूध की धुली हो? सारा चिट्ठा जानता हूँ मैं तुम्हारा। तुम्हारा नाम मीनल है ना? मीनल चावला। मुम्बई के शेयर दलाल की बेटी हो ना तुम। उस शेयर दलाल की बेटी जो शेयर दलाली के साथ में दूसरी दलाली भी करता था। आज जेल में है। तुम्हारे पास ग्रेजुएशन की डिग्री भी नहीं है। क्यों, नहीं है ना....?”—नाग ने अपनी निगाह उस लड़की के चेहरे पर टिका दी—स्वर बड़ा कुत्सित भाव से भरता चला गया—“तुमने बी○ए○ में दाखिला तो लिया था ना!”
लड़की बगलें झांकने लग गई। उसके चेहरे पर वैसे भाव उभरे मानो भरे दरबार में उसका चीरहरण किया जा रहा हो।
वहीं पर बस नहीं किया नाग ने। उसने फुंकार मारनी चालू की तो फुंकार और भी भयानक हो गई—“वैसे मैडम मीनल चावला, ये तो बड़ी छोटी-सी बात है। इससे भी काफी कुछ ज्यादा जानता हूँ मैं। मेरा बोलने का बस इतना सा मतलब है कि मैं उस बच्ची को भी जानता हूं जो हर रात मखीजा साहब की गोद में खेलती है।”
लड़की का चेहरा कनपटियों तक लाल भभूका हो गया। चेहरे पर पहले ऐसे भाव आये जैसे उसको पूरे खचाखच भरे स्टेडियम के बीच खड़ा करके नंगी कर दिया हो।
मगर अगले ही पल....उसकी आँखों से चिंगारियाँ फूटने लग गईं। नथुने तथा चेहरे की नसें फूलने तथा पिचकने लग गईं। अंगारों पर लोटती सी वह बोली—“ओये इंस्पेक्टर! अपनी बित्ते भर की जुबान को लगाम दे। तू क्या समझता है तू खाकी वर्दी पहनकर तोप बन गया? तेरे को मेरी ताकत का तथा पहुँच का अंदाजा नहीं। एक मिनट में तेरी वर्दी को उतरवाकर रख दूंगी।”
“हाँ....हाँ जानता हूँ। मालूम है मेरे को।”—नाग कुत्सित भाव से मुस्कराया—“मेरे को अच्छी तरह मालूम है कि तू किससे बोल कर मेरे जिस्म पर से वर्दी उतरवाएगी। टेस्ट बदलने के लिए तू उसके पास भी जाती है। कल रात उसी के फार्म हाऊस वाली पार्टी में शामिल थी तू।”
लड़की चुप। जुबान को मानो फेवीक्विक से चिपका दिया गया था। चेहरे पर कहर वाले भाव अवश्य आये, मगर वह बोल न सकी कुछ भी।
होंठ काटकर रह गई।
मन-ही मन कलपकर रह गयी—“तेरे मुँह में कीड़े पड़ें रे नाग! तू तो पक्का नाग है। तेरी फुंकार में भी बड़ा जहर है। यदि तूने उसका नाम बतला दिया होता तो वो मेरे को काट ही डालता। कल रात वाली पार्टी में तो बस हम दोनों ही थे। कभी-कभार ही वह ऐसी पर्सनल पार्टी रखता है। वह तो बड़ा सीधा-सादा कैरेक्टर वाला बन्दा है। अगर उसका नाम खराब हो जायेगा तो वह जरूर मेरी गत खराब कर देगा—पर तू भी बहुत कुछ जानता है मेरे बारे में। तेरे को तो मैं एक बार ऐसा सबक सिखलाऊँगी कि तू मेरे पैरों में गिरकर माफी मांगेगा। तब मैंने भी तेरे से अपने तलवे ना चटवा लिये तो मेरा नाम भी मीनल चावला नहीं। तू तो बस नाम का नाग है, मगर मैं वो नागिन हूं जो अपना फन निकालती है तो सामने वाले को फना कर देती है।”
मगर! उसके कलपने का प्रभाव मानो किसी पर ना था। सब के सब अपने काम में मशगूल थे। पूर्णतः मशगूल।
एक पत्रकार नाग से सवाल कर रहा था—“नाग जी, जैसा कि सिंघानिया साहब जैसे नामचीन शख्स का कत्ल किया गया है, उसके फार्म हाऊस के भीतर ही—कातिल ने बड़ी बेरहमी के साथ उसका खून किया—ऐसे नामचीन शख्स के कत्ल केस को सॉल्व करने का तो दबाव आप पर होगा ही। आपको क्या लगता है, कितने दिन में आप उस खूनी को पकड़कर सामने लाकर खड़ा कर देंगे?”
“देखिए, हर खूनी का, अपराधी का काम करने का अपना एक विशिष्ट स्टाइल होता है।” नागदत्त पाण्डेय ने यूँ समझाना आरम्भ किया मानो वह पहली-दूसरी क्लास के स्टूडेन्ट्स के बालकों को पढ़ा रहा हो—“इस शहर में जितने भी किलर्स तथा अपराधी हैं, उन सबका ब्यौरा हमारे थानों में है। हम आज ही वैसे खूनी की तलाश आरंभ कर देंगे तथा उसका नाम-पता मालूम करके उसके ठिकाने पर दबिश देंगे। हमें यकीन है कि इस कार्य को कर दिखलाने में हमें एक-दो दिन से ज्यादा वक्त नहीं लग पायेगा।”
“अगर इस प्रकार आपने खूनी को तलाश किया तो इस जन्म में आप खूनी तक नहीं पहुँच पायेंगे।”—बोला था कोई।
वह सबसे कोई तीन-चार फुट की दूरी पर ही खड़ा था।
सबने उसकी तरफ देखा तो सुखद आश्चर्य की वजह से उनकी आँखें फैलती चली गईं। कई पत्रकारों के मुँह से तो खुशी भरी किलकारी निकल पड़ी—“अरे....ये तो केशव पण्डित जी हैं। दिमाग के जादूगर केशव पण्डित!”
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