सब साले चोर हैं।
“अदालत के कटघरे में खड़ा यह शख्स चेहरे से मासूम जरूर नजर आ रहा है मीलार्ड! मगर इस चेहरे के पीछे इतना घिनौना चेहरा छुपा हुआ है कि उस पर जितनी बार भी थूका जाये, कम होगा और इसका जुर्म...वो तो इतना संगीन है जिसके लिए यदि इसे बीच चौराहे पर खड़ा करके फांसी दे दी जाये...बार-बार फांसी के फंदे पर लटकाया जाये तथा इसकी लाश को कुत्तों से घसिटवाया जाये...तो भी शायद कम होगा।”
अदालत के कक्ष में सरकारी वकील चीख रहा था।
वह पल भर के लिए सांस लेने को रुका तथा फिर मुलजिमों के कटघरे में खड़े पहलवान सरीखे व्यक्ति की तरफ संकेत करके पुनः चीख उठा—
“मुलजिम का नाम दलीप सिंह है...डब्लू.डब्लू.एफ. का मशहूर रेसलर दलीप सिंह। जिसे कभी भारत का गौरव कहा जाता था, सरकार ने जिसे ढेरों मैडलों तथा सम्मानों से नवाजा, वो दलीप सिंह! युवा एथलीटों का आदर्श था...मां-बाप अपने बच्चों से कहते थे कि तुम्हें ‘उस जैसा बनना है, वो दलीप सिंह! लेकिन कौन जानता था मीलार्ड कि यह शराफत का नकाब लगाये एक भेड़िया है। इंसान के जिस्म में एक शैतान है। एक ऐसा शैतान, जिससे कोई भी केवल और केवल नफरत कर सकता है। जिस तरह इस शख्स का जिस्म पत्थर की मानिन्द कठोर है...उसी तरह इसका दिल भी पत्थर का है। ना सिर्फ पत्थर का है बल्कि उसमें हवस के कीटाणु भी छेद करके अपना घर बनाये हुए हैं। जब इस पर वासना का भूत सवार होता है तो यह सब कुछ भूल जाता है...इसे कानून, इंसान, समाज, भगवान किसी का भी खौफ नहीं रह जाता। यही वजह है कि यह हवस की आग में इस कदर अंधा हो गया कि जो शख्स इस पर टूट कर विश्वास करता था, इसे अपना हमदर्द...अपने भाई समान मानता था, इसने उसी का बेरहमी से कत्ल कर दिया। जो लड़की इसे पिता समान दर्जा देती थी, इसने उसी के साथ जबरन मुंह काला किया, उसकी आबरू लूट ली, बलात्कार किया उसके साथ। इस राक्षस को इतना भी ख्याल ना आया कि इसकी भी एक जवान बेटी है। कोई उस पर भी बुरी नजर रख सकता है। इसे तो उस वक्त अपनी प्यास बुझाने की पड़ी थी...सो यह अपनी मनमानी करके ही माना। अब इंसाफ का तकाजा यही है मीलार्ड कि इस शख्स को सख्त से सख्त सजा दी जाये, और वो सजा सिर्फ सजा-ए-मौत ही हो सकती है। आप इसे फांसी के फंदे पर लटकाने का हुक्म दें—ताकि आइंदा कोई दलीप सिंह किसी के विश्वास की पीठ में छुरा ना भोंक सके...किसी मासूम को अनाथ बनाकर तथा उसकी आबरू लूटकर जीवन भर के लिए उसे आंसू बहाने पर मजबूर न कर सके।”
सरकारी वकील खामोश हुआ तो दलीप सिंह भर्राये स्वर में कह उठा—
“यह सब झूठ है मीलार्ड! मैं बेकसूर हूं। मैंने किसी का कत्ल नहीं किया, किसी का बलात्कार नहीं किया। मुझे फंसाया जा रहा है मीलार्ड...मुझे फंसाया जा रहा है।”
“खामोश!” न्यायाधीश ने प्रभावशाली स्वर में कहा—“तुम्हें भी अपनी सफाई देने का मौका दिया जायेगा। लेकिन जब तुम्हें बोलने के लिए कहा जाये, तब बोलना। इससे पहले अगर तुमने अदालत की कार्यवाही में दखलंदाजी की तो उसे कंटम्प्ट ऑफ कोर्ट माना जायेगा।” फिर न्यायाधीश की नजरें सरकारी वकील की ओर घूमीं—“आपने अभी-अभी मुलजिम के बारे में जो कुछ कहा, उस पर जो संगीन इल्जाम लगाये, उनको लेकर आपके पास क्या सबूत और गवाह हैं?”
“मेरे पास पुख्ता और अकाट्य सबूत भी हैं मीलार्ड तथा गवाह भी हैं।”
“पेश किया जाये।”
सरकारी वकील अपनी टेबल की तरफ बढ़ा।
उधर...दलीप सिंह का चेहरा धुआं-धुआं हो रहा था। आंखों में ऐसे भाव थे मानो उसे अभी से मौत की सजा सुना दी गई हो।
साढ़े छः फुट कद वाले पहाड़ जैसे नजर आने वाले दलीप सिंह की हालत इस वक्त दयनीय थी।
काफी हट्टा-कट्टा था वह। उसके जिस्म पर एकमात्र जींस और बास्केट थी। बास्केट की बाजू तो थी नहीं, ऐसे में उसके उभरे हुए मसल्ज, उठे हुए मजबूत कंधे तथा चौड़ा सीना उसकी असीम शक्ति को दर्शाती थी। उसका समूचा व्यक्तित्व उसके पहलवान होने की गवाही दे रहा था।
वह पहलवान ही था।
डब्ल्यू.डब्ल्यू.एफ. का पहलवान। रिंग में कई विश्व प्रसिद्ध रेसलरों को पानी पिला चुका था।
वही रेसलर दलीप सिंह इस वक्त मुम्बई के सेशन कोर्ट के कटघरे में मुलजिम बना खड़ा था।
सरकारी वकील ने अपनी फाईल खोलकर उसमें से एक बंद लिफाफा निकाला तथा बढ़ाकर न्यायाधीश की टेबल पर लिफाफा रखता हुआ पुरजोर स्वर में बोला—
“मैंने दलीप सिंह पर जो इल्जाम लगाये हैं मीलार्ड, उसका एक लफ्ज भी झूठा नहीं है। मेरे पास ना सिर्फ नीलम की इज्जत लूटे जाने के डाक्टरी सर्टिफिकेट मौजूद हैं, बल्कि चश्मदीद गवाह भी हैं, जिन्होंने किशन लाल का कत्ल होते देखा है। इसमें नीलम का एग्जामिन करने वाले डाक्टर ने साफ-साफ लिखा है कि उसका बलात्कार हुआ है...उसकी मर्जी के खिलाफ उसके साथ मुंह काला किया गया है। फिर भी मैं उस डाक्टर को बतौर गवाह अदालत के कटघरे में बुलाने की इजाजत चाहता हूं।”
“इजाजत है।” लिफाफा उठाकर उसमें से रिपोर्ट निकालते हुए बोले न्यायाधीश।
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“आपका नाम...?”
“अशोक रस्तोगी...। डाक्टर अशोक रस्तोगी...।” गवाहों के कटघरे में खड़ा करीब चालीस वर्षीय डाक्टर अपनी नाक पर रखा चश्मा दुरुस्त करता हुआ बोला।
“सामने कटघरे में जो शख्स खड़ा है...।” सरकारी वकील ने दलीप सिंह की तरफ इशारा किया—“उसे जानते हैं आप...?”
डाक्टर अशोक रस्तोगी ने दलीप सिंह की तरफ देखा—“जी हां...इसे मैंने टी.वी. पर बहुत बार देखा है, बहुत माना हुआ रेसलर है यह...। इसका नाम दलीप सिंह है।”
“वो तो इसे दुनिया जानती है...। मैं निजी तौर पर जानने की बात पूछ रहा हूं।”
“जी नहीं...। मैं इसे निजी तौर पर नहीं जानता।”
“फिर तो आप यह भी नहीं जानते होंगे कि यह शख्स इस वक्त यहां अदालत में और वो भी मुलजिम के कटघरे में क्यों खड़ा है?”
“जी नहीं। मैं नहीं जानता।”
सरकारी वकील ने एक नजर दलीप सिंह पर डाली। फिर अपनी कोहनी कटघरे पर टिकाते हुए बोला—
“तीन दिन पहले आपके पास एग्जामिन के लिए एक रेप केस आया था डाक्टर...।”
“जी हां...एक केस आया था। नीलम महाजन नाम था उस लड़की का...।”
“उसका मैडीकल आपने किया था?”
“बिल्कुल...।”
“क्या उस लड़की के साथ सचमुच रेप हुआ था...या फिर वह झूठ बोल रही थी?”
“उसके साथ सचमुच रेप हुआ था।” डाक्टर अशोक रस्तोगी बोला—“उसके उभारों पर...कंधों पर खरोचों के निशान थे...। गालों पर दांतों के निशान थे...दांतों के निशान ही बता रहे थे कि नीलम महाजन के साथ उसकी मर्जी के खिलाफ सम्भोग किया गया था और औरत की मर्जी के खिलाफ उससे सम्भोग करना बलात्कार ही कहलाता है। वैसे मैंने पुलिस को उसकी मैडीकल रिपोर्ट दे दी थी...जिसमें सब कुछ लिखा हुआ है कि नीलम महाजन के कहां-कहां चोट वगैरह हैं।”
“थैंक्यू डाक्टर रस्तोगी...।” गहरी सांस छोड़ते हुए मुस्कुराया सरकारी वकील...और फिर मजिस्ट्रेट की तरफ मुड़ते हुए बोला—“मीलार्ड...अदालत ने नीलम महाजन की मैडीकल रिपोर्ट देख ली है...और डाक्टर रस्तोगी का बयान भी सुन लिया है...जिसमें डाक्टर ने साफ-साफ कहा है कि नीलम महाजन के साथ बलात्कार ही हुआ है और यह मुलजिम दलीप सिंह के खिलाफ एक पुख्ता सबूत माना जायेगा। अब मैं उस पीड़िता को अदालत में बुलाने की इजाजत चाहूंगा मी—लार्ड!”
“इजाजत है।”
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