रीमा मेरी जेब में
मैं अर्थात रीमा भारती!
इण्डियन सीक्रेट कोर की जांबाज, खतरनाक तथा नम्बर वन एजेन्ट! जिसके नाम से अपराध जगत के बड़े–बड़े सूरमा थर्रा उठते हैं। माफिया और अन्डरवर्ल्ड डॉन कांप उठते हैं, देश विरोधी और समाज विरोधी तत्वों की जो आंखों में खटकती है, परन्तु दोस्तों के लिए जो कुर्बान होने से नहीं चूकती और अपनी जिन्दगी के फुर्सत के लम्हें जो भरपूर आनन्द के साथ बिताना पसन्द करती है। मैं अर्थात रीमा भारती इस समय एक सेवन स्टार होटल में डिनर लेने के इरादे से अपनी कार प्रविष्ट कर रही थी।
होटल के पार्किंग में मैंने कार खड़ी की, उसके पश्चात होटल के प्रवेश द्वार की तरफ बढ़ने लगी। होटल के प्रवेश द्वार की तरफ अभी कुछ कदम बढ़ी थी कि मुझे ठिठकना पड़ गया। कदम जहां थे वहीं रह गए, क्योंकि किसी ने मेरा नाम लेकर पुकारा था।
मैंने पलटकर देखा तो एक हृष्ट–पुष्ट तथा रौबीले व्यक्तित्व वाले को अपनी तरफ आते पाया। मैं उस व्यक्ति को गौर से देखती रही, पहली झलक में ही मुझे लगा कि उस व्यक्ति को कहीं देखा है, परन्तु जब उसकी दूरी कुछ ही फासले की रह गयी तो मैं उसे तुरन्त पहचान गई कि वह पुलिस विभाग का स्टेशन ऑफिसर दौलत सिंह है।
जब दौलत सिंह करीब आया तो मैंने उसके चेहरे पर ढेरों हवाइयां उड़ती देखीं।
“कहिए एस.पी. साहब!” मैंने उसके करीब आते ही सवाल किया—“खैरियत तो है? काफी परेशान नजर आ रहे हैं?” मैंने एक क्षण में ही दौलत सिंह को रीड कर लिया था।
“हां रीमा जी।” एस.पी. दौलत सिंह ने कहा—“आपको दो दिन से तलाश कर रहा हूँ। अचानक रास्ते में आपको कार में जाते देखा तो पीछे–पीछे यहां तक आया, मुझे आपसे बहुत जरूरी बात करनी है—अगर आप मेरी परेशानी सुन लेंगी तो मैं आपका अहसानमन्द रहूंगा।”
“कैसी बात कर रहे हो दौलत सिंह!” मैंने कहा—“आओ, मेरे साथ! डिनर लेते हैं—उसी दौरान सब बताना।”
“ठीक है।” दौलत सिंह के चेहरे पर राहत उभरी, वह बोला, “मेरी परेशानी भी ऐसी है जो बैठकर बातचीत से ही बताई जा सकती है।” मैं दौलत सिंह के साथ आगे बढ़ गई।
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होटल के डायनिंग रूम की एक खाली मेज पर बैठकर मैंने डिनर का आर्डर दिया, फिर सामने बैठे दौलत सिंह की तरफ देखते हुए कहा—“हां, अब बताइए, किस परेशानी में हैं आप?”
“क्या बताऊं रीमा जी! पुलिस डिपार्टमेन्ट की नौकरी में हूं। आप जानती ही हैं कि मैं अपने कर्तव्य के प्रति कितना सतर्क हूं। जीवन में कभी अपने उसूलों से समझौता नहीं किया। फूटी कौड़ी भी रिश्वत के नाम पर नहीं ली, हर समय असामाजिक तत्वों और कानून विरोधी लोगों से मोर्चा लेने से नहीं चूका। जान पर खेलने पर आमादा रहा। फर्ज के आगे अपनी जान को भी तुच्छ समझा, मगर...।” कहते–कहते दौलत सिंह रुक गया, उसका गला भर गया।
“मगर क्या मिस्टर दौलत सिंह?” मैंने पूछा।
“मगर आज मेरी स्थिति सांप–छछूंदर जैसी हो गई है।” दौलत सिंह ने अपना अधूरा वाक्य पूरा करते हुए कहा।
इसी दौरान वेटर ने खाना सर्व किया और चला गया। मैंने बात आगे बढ़ाने के लिए कहा—“हां मिस्टर दौलत सिंह, आगे की बात बताइए कि आपकी स्थिति कैसे सांप–छछूंदर की हो गई—क्योंकि मैं जानती हूं कि आप जैसा ईमानदार, बहादुर और कर्तव्यनिष्ठ पुलिस अफसर जल्दी हार नहीं मान सकता। जरूर कोई गम्भीर समस्या है, जिसने आपको उलझा कर रख दिया है। आप सब खुलकर बताइए, मैं आपका हर प्रकार का सहयोग करूंगी।” इसके साथ ही रीमा ने दौलत सिंह से खाना शुरू करने का इशारा भी किया।
खाना खाते–खाते दौलत सिंह ने बताना शुरू किया—“रीमा जी, आज से दस दिन पहले मैंने अन्डरवर्ल्ड के डॉन रोबिन टाईगर का ट्रक पकड़ा था। उस ट्रक में काफी घातक किस्म के हथियार छिपाकर रखे गए थे। मैंने स्वयं फोर्स के साथ उस ट्रक से वे हथियार बरामद किए थे और ट्रक को अन्धेरी के एक थाने में खड़ा करवा दिया था। उसके बाद मुझे लगातार कई लोगों के फोन आए कि मैं वह ट्रक छोड़ दूं—यहां तक कि नोटों से भरे बैग को लेकर खुद टाईगर का आदमी मेरे पास पहुंचा। मैंने उसे डांटकर भगा दिया। इसके बाद रोबिन टाईगर ने मुझे फोन किया कि यदि मैं उसके ट्रक को नहीं छोड़ूंगा तो जान के साथ–साथ अपनी नौकरी से भी हाथ धो बैठूंगा। मैंने उसकी परवाह नहीं की और जो लोग मैंने ट्रक के साथ पकड़े थे, उन्हें पकड़कर बन्द कर दिया—साथ ही उनके खिलाफ मुकदमा भी दायर करवा दिया, परन्तु फिर भी मेरे पास उसके एक विधायक चमनलाल उस ट्रक को छोड़ने की सिफारिश लेकर आए। मैं तैश में आ गया तो विधायक ने कहा—मैं जनता का प्रतिनिधि हूं एस.पी.! तुम मेरी ताकत को नहीं जानते, मुझसे इस तरह पेश आने का नतीजा तुम्हें भुगतना होगा।”
मैं खाते–खाते एस.पी. दौलत सिंह की बात पर पूरा ध्यान दे रही थी। मेरी भी दिलचस्पी इस मामले में बढ़ गई थी। इसलिए मैंने दौलत सिंह से कहा—“फिर क्या हुआ? विधायक की धमकी के बाद क्या स्थिति आई?”
“ट्रांसफर।” दौलत सिंह ने उत्तर दिया—“विधायक की धमकी के अगले दिन ही मुझे दूसरे इलाके का चार्ज दे दिया गया। यह मेरा सरासर अपमान था रीमा जी, परन्तु फिर भी मैंने खून का घूंट पी लिया, लेकिन बात यहीं खत्म नहीं हुई। अगले ही दिन जब मैंने दूसरे क्षेत्र का चार्ज लिया तो मेरे पास रोबिन टाईगर का फिर फोन आया। उसने मेरा मजाक उड़ाते हुए कहा—एस.पी.! यह तो छोटा सा नमूना है। अगला नमूना ऐसा है जिसकी वजह से तेरी वर्दी भी उतरने वाली है।” इतना कहकर रोबिन टाईगर ने फोन काट दिया और अगले दिन मुझे टर्मिनेट करने के आदेश आ गए और रिश्वत के आरोप में मुझे पुलिस कमिशनर ने तलब किया। मैं पुलिस कमिश्नर के यहां पहुंचा, तो मैंने अपने ऊपर होने वाली ज्यादती की गुहार की। उन्होंने कहा—“दौलत सिंह! हम जानते हैं कि तुम एक ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ ऑफिसर हो, परन्तु जो कुछ हमने देखा है, उसके मुताबिक ऐसा लगता है कि तुमने ईमानदारी का सिर्फ मुखौटा लगा रखा है। सच्चाई मैं तुम्हें दिखाता हूं।” इतना कहकर पुलिस कमिश्नर ने एक सी.डी. मुझे दिखाई, जिसमें मेरे सामने नोटों का खुला बैग लिए रोबिन टाईगर का आदमी खड़ा था और मुझसे वो रुपये लेने को कह रहा था। सी.डी. का वह सीन मेरा ही था, न जाने कैसे ले लिया गया था। मैंने कमिश्नर साहब से बहुत कहा कि यह सब अन्डरवर्ल्ड डॉन की साजिश है, मगर कमिश्नर साहब ने एक न मानी और मेरी बर्खास्तगी को बरकरार रखा, मैं लुटा–पिटा-सा अपने घर लौटा तो घर में मेरे बच्चों और पत्नी ने बताया कि उन्हें किसी टाईगर नाम के आदमी ने फोन पर कहा है कि वो मेरी पुत्री को उठवा लेगा और सारे घर को मौत के घाट उतार देगा। अब आप ही बताइए रीमा जी, कि मैं क्या करूं? मेरी नौकरी, मेरी इमेज, मेरा परिवार और स्वयं मैं कितनी भारी मुसीबत में पड़ गए हैं! ऐसी स्थिति में दो दिन पहले मुझे आपकी मदद का ख्याल आया––––तो आपकी तलाश में निकल गया। मेरा सौभाग्य कि आप मुझे मिल गर्इं। आप अब जैसा चाहें वैसा आदेश दे सकती हैं—चाहे मेरा समूचा परिवार तबाह हो जाए, मेरी भी जान चली जाए, परन्तु पुलिस डिपार्टमेन्ट में जो मेरी छवि है, वो खराब न हो। कोई यह न कहे कि साला बेईमान था। फर्ज और ईमानदारी का ढोंग करता था!” इतना कहते–कहते दौलत सिंह की आंखों में आंसू आ गए, वह खाना खाना भी भूल गया।
एस.पी. दौलत सिंह की व्यथा ने मन को छुआ, इसलिए दौलत सिंह की आंखों में जैसे ही आंसू आए और उसने खाना बीच में ही रोका तो मैंने कहा—“मिस्टर सिंह––––! रिलैक्स! जो जांबाज पुलिस वाले होते हैं, वो इतनी जल्दी नहीं हिम्मत हारते! आराम से खाना खाओ और अब अपनी सारी परेशानी मुझ पर छोड़ दो।”
मेरे इन शब्दों ने दौलत सिंह में आशा और हौसले का संचार कर दिया। उसके चेहरे पर चमक आ गई, वह बोला—“आपसे मुझे यही उम्मीद थी रीमा जी। अब मुझे किसी बात का डर नहीं है, कोई कुछ भी कहता रहे परन्तु आपको मुझ पर विश्वास है कि मैं गलत नहीं हूं, यही मेरे लिए काफी है।”
“यस, मिस्टर दौलत सिंह। मैं तुम्हें काफी समय से जानती हूं। जो कुछ भी हुआ है, वह उस डॉन के बच्चे रोबिन टाईगर का जाल था, यदि अब तक तुम मुझे न मिल पाते तो रोबिन टाईगर तुम्हें बर्खास्त करवाने के बाद तुम्हारे खिलाफ रिश्वतखोरी का मुकदमा चलवाता और तुम्हें और तुम्हारे परिवार को भी बरबाद कर डालता। मगर अब वो ऐसा नहीं कर पाएगा, चाहें वो कितनी ही पहुंच वाला हो, बेफिक्र रहो मिस्टर दौलस सिंह। अब अन्डरवर्ल्ड डॉन रोबिन टाईगर की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है। मैं अभी से उस डॉन का शिकार करने निकल रही हूं। पहले उस थाने में मुझे ले चलो, जहां हथियारों से लदा ट्रक तुमने खड़ा करवाया था।”
“वहां तो मैं आपको ले चलूंगा रीमा जी, मगर मेरे परिवार की सुरक्षा के प्रश्न का क्या होगा?” दौलत सिंह ने चिंतातुर स्वर में कहा।
मैंने दौलत सिंह के इस प्रश्न पर उसे ऐसे देखा मानो उसने कोई बचकाना बात कही हो, मैं मुस्करा कर बोली—“आपने यह चिंता क्यों की कि मैं तुम्हारे परिवार के प्रति लापरवाह हूं? यह काम तो मैं अभी करने वाली थी—।” इसके साथ ही मैंने तुरन्त अपने दो एजेन्टों को फोन पर निर्देश दिया कि एस.एच.ओ. दौलत सिंह के निवास की सुरक्षा के लिए पहुंच जाएं।
मगर दौलत सिंह के घबराए मन का क्या करा जाए, वह पूछने लगा—“रीमा जी! सिर्फ दो एजेन्ट? अगर टाईगर के आदमियों ने मेरे पीछे मेरे घर पर धाबा बोल दिया तो दो एजेन्ट क्या सुरक्षा कर पाएंगे?”
इस बार भी मैंने दौलत सिंह को यूं देखा कि मानो उसने बचकाना बात कह दी है। वह मुस्कराकर बोला—“मिस्टर दौलत सिंह! बुरा मत मानना, पुलिस फोर्स के आदमियों और इण्डियन सीक्रेट कोर के एजेन्टों में जमीन–आसमान का फर्क होता है, शायद तुम्हें यह पता नहीं है, अत: जानकारी के लिए बता दूं कि हमारा एक एजेन्ट पूरी आर्मी ब्रिगेड के बराबर होता है, वो घायल शेर से भी अधिक खूंखार, चीते से भी अधिक सतर्क तथा लोमड़ी से भी अधिक चालाक और गिद्ध से भी अधिक पैनी निगाह वाला होता है। मेरे फोन करते ही तुम्हारा निवास आई.एस.सी. की सिक्योरिटी रेंज में आ चुका है, इसलिए तुम्हारे निवास पर किसी भी डॉन का खतरा फटकने का भी नहीं—।”
मेरे शब्दों और जानकारी को सुनकर दौलत सिंह निरुत्तर हो गया। उसने राहत की एक गहरी सांस ली, वह कृतज्ञ भाव से मुझ को देखने लगा तो मैं बोली—“खाना भी हो गया और कॉफी भी! मेरे ख्याल से अब चला जाए...।”
“बेशक!” दौलत सिंह उठते हुए बोला।
मैं दौलत सिंह को लिए काउन्टर पर पेमेन्ट करके बाहर निकल आई। कुछ मिनट बाद मैं अपनी कार से अन्धेरी स्थित उस थाने की तरफ जा रही थी, जिसमें दौलत सिंह ने ट्रक खड़ा किया था।
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