राहु-केतु
दिनेश ठाकुर
जागीर खान की चमचमाती 'इंडिगो' सायन के पेट्रोल पंप पर पहुंचकर रुकी।
जागीर खान इंडिगो की पिछली सीट पर पसरा हुआ था। वो कार में अकेला नहीं था। उसके अगल-बगल कमाण्डो जैसी चुस्ती-फुर्ती वाले दो शख्स मौजूद थे। वैसा ही एक शख्स कार की अगली सीट पर ड्राइवर की ऐन बगल में बैठा था। तीनों के हाथों में आग उगलने को तैयार ऑटोमेटिक गनें दबी हुई थीं।
पहली नजर में ही अंदाजा लगाया जा सकता था कि वे तीनों जागीर खान के अंगरक्षक थे।
जागीर खान पचास के पेटे में पहुंचा हुआ एक भारी-भरकम शरीर वाला शख्स था। उसकी दाढ़ी परम्परागत ढंग से बढ़ी हुई थी और नीचे छाती तक झूल रही थी। उसकी आंखों पर नजर का चश्मा तथा हाथों में सोने के मूठ वाली छोटी सी छड़ी थी। उसने काली शेरवानी पहन रखी थी।
वो मुम्बई अण्डरवर्ल्ड के बेताज बादशाह जोगलेकर का खास आदमी था और जोगलेकर के ऑर्गेनाइज्ड क्राइम का महत्वपूर्ण स्तम्भ!
परन्तु!
उन दिनों जोगलेकर एवं उसकी ऑर्गेनाइजेशन के सितारे गर्दिश में चल रहे थे। जोगलेकर के प्रतिद्वंद्वी गिरोह उसके वर्चस्व का खात्मा करके उसकी बादशाहत हथियाने की फिराक में थे। जिसके परिणामस्वरूप मुम्बई की सरजमीन पर खूनी गैंगवार का माहौल उत्पन्न हो गया था। कब, कहां किस लम्हे माफियाओं की राइफलें आग उगलना शुरू कर दें, कुछ मालूम नहीं था।
माफियाओं की उस खूनी जंग से सारा शहर दहशत में था। मुम्बई पुलिस अपनी समूची ताकत जुटाकर भी माफियाओं की गैंगवार रोक पाने में नाकाम साबित हो रही थी। अण्डरवर्ल्ड वार में कौन किस पर भारी पड़ रहा था, कहना मुहाल था। परन्तु दहशत का साया अण्डरवर्ल्ड से जुड़े प्रत्येक मामूली और गैरमामूली शख्सियत के चेहरे पर सहज ही देखा जा सकता था।
तीन-तीन अंगरक्षकों के साए में होने के बावजूद जागीर खान के चेहरे पर भी व्याकुलता साफ-साफ नजर आ रही थी, जो कि फ्यूल भरवाने के लिए पेट्रोल पंप पर कार रुकते ही काफी बढ़ गई थी। यदि उसकी कार का फ्यूल बिल्कुल ही खत्म ना हो गया होता तो वो किसी भी कीमत पर ड्राइवर को वहां पेट्रोल पंप पर कार रोकने की इजाजत नहीं देता।
पेट्रोल पंप पर उस घड़ी तनिक भी भीड़ नहीं थी। सिर्फ जागीर खान की इकलौती कार वहां पर फ्यूल भरवाने के लिए रुकी थी।
कार के रुकते ही भीतर मौजूद खान के तीनों सिक्योरिटी गार्ड दरवाजा खोलकर फुर्ती से बाहर आ गए।
उस पल वे तीनों जरूरत से ज्यादा चौकन्ने नजर आ रहे थे।
अटेंडेंट लपककर कार के करीब पहुंचा।
ड्राइवर ने तत्काल से चाबी थमाई और बोला—“फुल कर दे।”
अटेंडेंट ने सहमति में सिर हिलाया तथा अपने काम में जुट गया।
जागीर खान के तीनों गार्ड कार के दोनों तरफ मुस्तैदी से खड़े थे। उनकी गिद्ध जैसी पैनी निगाहें बड़ी सतर्कता से चारों तरफ का जायजा ले रही थीं।
तभी वहां दो अन्य कार पहुंचीं और पेट्रोल लेने के लिए खान की कार के पीछे कतार में लगकर खड़ी हो गईं।
गार्ड्स की आदतन सतर्क निगाहें पीछे मौजूद दोनों कारों की तरफ उठ गईं। किन्तु मन में शक वाली कोई बात नजर नहीं आई। उन कारों में फैमिली मैन मौजूद थे, जो शहर के आम नागरिक थे।
अटेंडेंट ने कार का टैंक फुल करके चाबी ड्राइवर को थमा दी। जागीर खान ने पांच-पांच सौ के दो नोट अटेंडेंट को थमा दिए और बोला—“बाकी तू रख ले।”
अटेंडेंट के चेहरे पर तत्काल खुशी के भाव उभरे। जागीर खान की कार में कुल नौ सौ रुपयों का पेट्रोल भरा गया था। मतलब उसे सौ का नोट बख्शीश के तौर पर हासिल हुआ था।
उसने जागीर खान को ठोककर सलाम किया।
ड्राइवर ने कार स्टार्ट कर दी। तीनों सिक्योरिटी गार्ड फुर्ती से वापस कार में समा गए।
ड्राइवर ने कार को अभी गियर में डाला ही था कि ठीक तभी सामने की दिशा से एक खटारा फिएट खड़खड़ करती हुई आई और जागीर खान की इंडिगो के ठीक सामने आकर एक झटके से रुक गई।
जागीर खान का ड्राइवर कार आगे बढ़ाते-बढ़ाते रुक गया।
आगे अब इतनी भी जगह नहीं बची थी, जो वो अपनी कार को घुमाकर फिएट की बगल से निकाल ले जाता।
इंडिगो के पीछे पहले से ही दो-दो कारें खड़ी थीं, लिहाजा वो अपनी कार को बैक भी नहीं कर सकता था।
फिएट के ड्राइवर पर उसे बहुत गुस्सा आया।
कमबख्त सरासर रॉन्ग साइड में था। जिस तरह उसने अपनी फिएट को लाकर वहां रोका था, उसी स्थिति में उसकी फिएट का फ्यूल टैंक विपरीत दिशा में था और वो उसमें पेट्रोल हरगिज भी नहीं भरवा सकता था। उसके लिए उसे अपनी फिएट को पंप के दूसरी तरफ ले जाना था या फिर फिएट को घुमाकर खान की कार वाली लाइन में उसी जैसी स्थिति में सबसे पीछे ले जाकर लगाना था।
फिएट का ड्राइवर निश्चित ही सिरे से अनाड़ी था।
“साला। अहमक।” जागीर खान भुनभुनाया।
“मैं देखता हूं खान साहब।” कार की अगली सीट पर बैठा गार्ड बोला। फिर वो दरवाजा खोलकर कार से नीचे उतर गया।
वो गुस्से में दनदनाता हुआ फिएट के करीब पहुंचा।
फिएट की ड्राइविंग सीट पर एक अत्यंत दुबला-पतला मरियल-सा नौजवान बैठा था। उसका चेहरा लंबूतरा था। छोटी-छोटी कंचों जैसी आंखें गड्ढों में धंसी हुई थीं। गालों की हड्डियां बाहर को उभरी थीं। उसकी गर्दन औसत से कहीं ज्यादा लंबी थी। उसे देखकर अनायास ही किसी शुतुरमुर्ग की याद ताजा हो जाती थी।
वो जुगाली करने वाले अंदाज में अपने जबड़े चलाता हुआ पान चबा रहा था।
गार्ड ने उसे सख्त नजरों से घूरा।
“कहीं से चुराकर लाया है क्या?” गार्ड उसे घूरता हुआ गुर्राया।
फिएट की ड्राइविंग सीट पर बैठा नौजवान सकपकाया—“किसको बोला?”
“किसी को बोलने की जरूरत ही कहां है? तेरी हरकतें ही बता रही हैं। पंप पर कार लगाने की तमीज तक नहीं है तुझे।”
“दो-चार दिन कार चला लूंगा तो आ जाएगी।” नौजवान ने लापरवाही से कहा—“तुम अपनी कहो बंधु! तुम्हारे पेट में क्यों मरोड़ हो रही है?”
“अबे हलकट! एक तो तूने रास्ता ब्लॉक करके रख दिया, ऊपर से पूछता है मेरे पेट में क्यों मरोड़ हो रही है?” गार्ड फनफनाया—“इस डिब्बे को फौरन बाजू हटा।”
“ड...डिब्बा? क्या?”
“मैं तेरी इस खटारा की बात कर रहा हूं जिसे शायद तू किसी कबाड़ी की दुकान से खरीदकर लाया है।”
“मगर ये तो फिएट कार है।” वो बड़ी मासूमियत से बोला।
“अबे! मैं कब कह रहा हूं कि ये बोइंग विमान है?” गार्ड झुंझलाया—“इस डिब्बे को फौरन पीछे हटा, वरना...।”
“वरना क्या?” मरियल ने सीना चौड़ाया।
“तेरा मुकम्मल खाना खराब हुआ समझ और अब बकवास बिल्कुल नहीं। हमारे साहब पहले से ही काफी लेट हो चुके हैं। अपने डिब्बे को हटाकर फौरन रास्ता खाली कर। समझा!”
“समझ गया बंधु! पण एक प्रॉब्लम है।”
“क्या प्रॉब्लम है तेरी?” गार्ड ने आंखें निकालीं।
“मेरी कार का फ्यूल बिल्कुल खत्म हो गया है। यहां तक पहुंच गई, गनीमत है। बगैर पेट्रोल भरवाए अब ये स्टार्ट नहीं होने वाली।”
“क्या बकता है?”
“बक नहीं रहा उस्ताद। तुम्हें बता रहा हूं। या तो धक्का लगाकर मेरी कार पीछे कर दो। या फिर...।”
“या फिर?”
“अपनी कार बैक करके पीछे ले जाओ और मोड़कर चलते बनो। इसके अलावा तीसरा कोई रास्ता हो तो तुम मुझे बता दो।”
मरियल सच ही कह रहा था।
उसने जो बताया था उसके अलावा तीसरा कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था।
इंडिगो के आगे उसकी खटारा फिएट दीवार बनी खड़ी थी। वस्तुस्थिति महसूस करके गार्ड बेचैन हो उठा।
तब तक इंडिगो से उतरकर एक अन्य गार्ड भी वहां आ पहुंचा था। इंडिगो के पीछे खड़ी कारों ने हॉर्न बजाना शुरू कर दिया था।
पहले गार्ड ने उसे पूरी बात बता दी।
“तेरे साथ और कोई नहीं है?” उसने मरियल को खा जाने वाली नजरों से घूरकर पूछा।
“होता तो क्या नजर नहीं आता?” मरियल बोला—“तो तुम लोग मेरी कार में धक्का लगा रहे हो?”
“पागल हुआ है।” गार्ड भड़का—“हम लोग तुझे धक्का लगाने वाले नजर आते हैं?”
“तो फिर ऐसे ही खड़े रहो। मैं अभी आता हूं।” मरियल फिएट का दरवाजा खोलकर बाहर निकल आया।
“अरे! तू किधर चला?”
“उधर कॉफी शॉप में मेरे दो-तीन जोड़ीदार बैठे 'व्हिस्की' पी रहे हैं। मैं उन्हें बुलाकर लाता हूं।”
“जल्दी जा और सुन...।”
मरियल जाते-जाते ठिठक गया। उसने पलटकर गार्ड को सवालिया निगाहों से देखा।
“जल्दी आना। अगर तूने आने में जरा भी देर लगाई तो इस डिब्बे को ट्रैफिक पुलिस के हवाले कर दूंगा।”
“खामखां। मैं बस अभी गया और अभी आया।”
“दफा हो जा।”
मरियल लम्बे-लम्बे डग भरता हुआ वहां से रुखसत हो गया।
“अबे जरा ठहर।” सहसा दूसरा गार्ड हौले से चौंककर बोला।
“क्या हुआ?” उसका साथी गार्ड बोला—“वो तो चला गया।”
“मुझे कुछ गड़बड़ लग रही है यार।” वो सशंक भाव से बोला।
“गड़बड़।” पहला गार्ड हड़बड़ाया—“कैसी गड़बड़?”
“तू ही सोच यार, कॉफी शॉप में व्हिस्की कब से मिलने लगी, जो उस मरियल के जोड़ीदार वहां बैठे उसे चुसक रहे हैं?”
“ओह!” उस गार्ड को जैसे तब वो बात सूझी थी।
“और उसने फिएट के सारे शीशे क्यों बंद कर रखे हैं?” दूसरा गार्ड संदिग्ध भाव से मरियल की लावारिस खड़ी फिएट को घूरता हुआ बोला—“इसके सारे शीशे भी स्मोक कलर के हैं। इन शीशों पर तो बाकायदा रोक लगी हुई है। फिर ये स्मोक कलर के शीशों वाली कार शहर में खुलेआम कैसे घूम रही है?”
“ओह नो! इस तरफ तो मैंने ध्यान ही नहीं दिया था।” उसके जोड़ीदार गार्ड के दिमाग में एकाएक खतरे की घंटी बज उठी। वो बुरी तरह उत्तेजित होकर चीखा—“खान साहब को बचाओ सुलेमान! और...और वो हरामजादा मरियल कहां गया? उसे जल्दी जाकर थामो।”
बेचारा सुलेमान!
बुरी तरह हकबका उठा।
परन्तु इससे पहले कि वो कुछ कर पाता।
अचानक वातावरण में एक कर्णभेदी धमाका गूंज उठा था।
धड़ाम!
वो धमाका मरियल की खटारा फिएट के भीतर हुआ था।
और उस धमाके के साथ ही आग के शोले धधक उठे और आग के शोलों से चौतरफा घिरी फिएट हवा में कई फुट ऊपर तक उठती चली गई थी।
पलक झपकते ही पेट्रोल पंप पर हंगामा मच गया था।
बुरी तरह बौखलाए जागीर खान ने अपनी इंडिगो से बाहर निकलने का प्रयास किया, परन्तु वो अपने प्रयास में कामयाब नहीं हो सका।
आग का गोला फिएट का हवा में लहराता मलवा ठीक पेट्रोल मशीन के ऊपर जाकर गिरा था।
पेट्रोल मशीन ने पलक झपकते आग पकड़ ली और फिर वो आग मशीन के रास्ते नीचे जमीन में मौजूद विशाल टैंकर तक जा पहुंची...जिसमें हजारों लीटर पेट्रोल भरा हुआ था।
अगले ही पल!
वहां पर मानो प्रलय आ गई।
पेट्रोल पंप तथा उसके आसपास की जमीन के भीतर से जैसे ज्वालामुखी फट पड़ा।
आग के धधकते शोले विकराल रूप धारण करके आसमान को छूने लगे।
परन्तु!
तबाही के उस हौलनाक मंजर को अंजाम देने वाले उस मरियल नौजवान का दूर-दूर तक कोई अता-पता नहीं था।
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