प्यादा
कबीर कोहली
काफी बड़ा कमरा था वह...जोकि बड़े ही शानदार ढंग से सजा हुआ था।
कमरे की बीचों-बीच काफी बड़ा शीशे के टुकड़ों का झूमर लटक रहा था जिसमें कि कई बल्ब जलते हुए अपनी रोशनी से शीशे के उन टुकड़ों को हीरो की तरह जगमगा रहे थे। दीवारों पर बहुमूल्य पेंटिंग्स लगी थीं तथा फर्श पर वाल-टू-वाल सुर्ख रंग का कालीन बिछा हुआ था।
उसी कालीन पर दरवाजे से लेकर कमरे के आधे तक रबड़ का एक कार्पेट था और कार्पेट के अन्त में एक सिंहासन नुमा कुर्सी पर शंकरदास बैठा था।
शंकरदास करीब पचास साल का सेहतमन्द, चेहरे से ही क्रूर नजर आने वाला व्यक्ति था।
इस वक्त वह काले रंग का बिना बाजू का बनियान पहने हुए था तथा नीचे काले रंग की जींस।
उसकी कमर में गोलियों की बेल्ट बंधी थी और बाएं तरफ रिवाल्वर होलेस्टर में फंसी हुई थी।
उंगलियों में हीरे जड़ित अंगूठियां थीं और गले में कम-से-कम आधा किलो सोने की चेन थी।
शंकरदास के दाएं-बाएं दो बहुत ही हसीन और खूबसूरत लड़कियां जोकि सिर्फ पैन्टी और ब्रा पहने थीं, सिंहासन के हत्थों पर बैठी थीं और शंकरदास के हाथ उनकी जांघों को इस तरह सहला रहे थे मानो उन्हें सहलाने से उसके भीतर शक्ति का संचार हो रहा हो।
युवतियों के बाद थोड़ा हटकर दाएं-बाएं स्टेनगन से लैस चार आदमी खड़े थे।
दो इस तरफ—दो उस तरफ।
दो आदमी उसके सिंहासन के पीछे खड़े थे—जोकि खाली हाथ थे।
शंकरदास के सामने उसके पैरों में रबड़ के कार्पेट पर घुटनों के बल एक व्यक्ति बैठा था और उसके दोनों हाथ शंकरदास के सामने जुड़े हुए थे।
उसके पैरों में बैठा आदमी चेहरे तथा कपड़ों से ही लाला नजर आ रहा था।
“जा लाला।” शंकरदास अपना दायां हाथ युवती की जांघ पर मारते हुए बोला—“तेरा काम हो जाएगा।”
“शंकरदास की जय हो।” लाला खुश हो गया।
“पांच लाख रुपये जमा कर देना।”
लाला ने सिर हिलाया और खड़ा हो गया।
झुककर उसने शंकरदास, जिसे कि अण्डरवर्ल्ड में शंकर दादा के नाम से जाना जाता था, के पैर छुए और मुड़कर कार्पेट पर चलता हुआ दरवाजे से बाहर निकल गया।
उसके जाने के बाद दरवाजे में एक सूटेड-बूटेड, अधेड़ उम्र का व्यक्ति दाखिल हुआ और चलता हुआ शंकर दादा के सामने आकर रुका।
बिना कुछ बोले उसने अपने घुटने मोड़े और उन्हें कार्पेट पर टिका कर शंकरदास के दोनों पैरों को छूकर हाथ जोड़कर उसे देखने लगा।
शंकरदास ने उसे गहरी निगाहों से देखा।
“तू सेठ दीनदयाल तो नहीं?” वह बोला—“दयाल शू कम्पनी का मालिक?”
“हां, शंकर दादा।” दीनदयाल भर्राये लहजे में बोला—“मेरी मजबूरी मुझे तेरे चरणों में खींच लाई है।”
“क्या तकलीफ है तुझे?”
“मेरा इकलौता बेटा मेरे कहे से बाहर हो गया है।” दीनदयाल बोला—“तुम तो जानते ही हो शंकर दादा कि इस शहर में मेरी कितनी इज्जत है, मगर मेरे बेटे के कारण मुझ पर थू-थू हो रही है।“
“मतलब की बात कर सेठ...।“
शंकर दादा युवती की जांघ पर हाथ फेरता हुआ बोला।
“वो...वो एक ऐसी लड़की से प्रेम करने लगा है, जिसके घर में सुबह की रोटी है तो शाम की नहीं। उस लड़की की मां अपने वक्त में तवायफ थी, जो की महफिलों में नाच-गाकर लोगों का दिल बहलाती थी। उसने कभी शादी भी नहीं की...।”
“यानि वह छोकरी हराम की है।“
“हां शंकर दादा।“
“आगे बोल।” अपना बांया हाथ थोड़ा ऊपर उठाते हुए बोला शंकर दादा और पुनः उस युवती की जांघ पर रख दिया।
“मेरा बेटा उसके प्यार में दीवाना हो गया है शंकर दादा। यहां तक कि वह उसके रूप जाल में फंसा मेरी दौलत को ठोकर मारने को भी तैयार है।”
“यानि सच्चा प्यार करता है वह उस छोकरी से।”
“हां, शंकर दादा! लेकिन वह लड़की और उसकी मां मेरी दौलत पर नजरें गड़ाए हुए हैं। अगर वह लड़की गरीब होती और राहुल से सच्ची मोहब्बत करती होती तो मैं बिना किसी विरोध के हां कर देता लेकिन लड़की के माथे पर तवायफ की नाजायज बेटी का ठप्पा लगा हुआ है। ऊपर से वह मेरे बेटे राहुल से नहीं, मेरी दौलत से प्यार करती है। ऐसे में तुम ही बताओ शंकर दादा—मैं यह शादी मंजूर कैसे कर सकता हूं? और अब तो राहुल ने यहां तक कह दिया है कि अगर मैंने हां नहीं की तो वह उस लड़की से कोर्ट मैरिज कर लेगा।”
“अब क्या चाहता है तू?” गम्भीरता से बोला शंकर दादा।
“मेरे खानदान की इज्जत बचाओ शंकर दादा...।” रो ही पड़ा दीनदयाल—“अगर राहुल ने उस लड़की से शादी कर ली तो मेरे सामने सिवाये आत्महत्या के और कोई भी चारा नहीं रह जाएगा।”
“पच्चीस लाख।”
“क्या?” बुरी तरह से हड़बड़ाया दीनदयाल।
“तेरी होने वाली बहू को तेरे खानदान से दूर करने के।“
“म-मंजूर है।”
दीनदयाल बोला। हालांकि वह कहना चाहता था कि पच्चीस लाख बहुत बड़ी रकम है मगर वह यह भी जानता था कि शंकर दादा के दरबार में सौदेबाजी नहीं होती।
सो मजबूरन उसे हां भरनी पड़ी।
“छोकरी का नाम क्या है?”
“लता।”
“कहां रहती है?”
“शेखावटी में। दूसरी सड़क पर।”
“शंकर दादा थोड़ा-सा आगे झुका और होठों पर कुटिल मुस्कान लाते हुए बोला—
“दिखने में कैसी है वो?”
गहरी सांस छोड़ी दीनदयाल ने और बोला—
“मैंने तो उसे देखा नहीं शंकर दादा—लेकिन सुना है कि वह अप्सराओं को मात देने वाली खूबसूरत है।”
“अब जा। पच्चीस लाख जमा कर दे, कल तक तेरा काम हो जाएगा।”
दीनदयाल उठा और झुककर शंकर दादा के पैरों को छूकर सीधा हुआ और मुड़कर कार्पेट पर चलता हुआ दरवाजे से बाहर निकल गया।
शंकर दादा ने दरवाजे की तरफ देखा और तनिक ऊंचे स्वर में बोला—
“कोई और फरियादी है?”
“हां, शंकर दादा—एक फरियादी है...।”
दरवाजे के पीछे से आवाज आई और फिर जो शख्स दरवाजे में प्रविष्ट हुआ, उसे देख वह बुरी तरह से चौंक उठा।
उसके हाथ अपने सिंहासन के हत्थों पर बैठी उत्तेजक मुद्रा बनाए दोनों युवतियों की जांघों पर हल्के से बजे। इशारा समझ फौरन दोनों युवतियां हत्थों से उतरकर स्टेनगनों वाले गार्डों की बगल में जा खड़ी हुईं।
शंकर दादा के गार्ड भी हल्के से चौंके, साथ ही उनकी स्टेनगनें जमीन की तरफ झुक गईं।
कार्पेट पर उसकी तरफ बढ़ने वाला करीब तेईस-चौबीस साल का युवक था, जिसकी रंगत तो साफ थी मगर उसकी आंखों में वैसी ही हिंसक चमक थी जैसी कि शंकर दादा की आंखों में थी।
काली जैकेट और काली पैंट पहने वह युवक सुनील था।
शंकर दादा का बेटा सुनील।
उसका अपना खून। उसकी सल्तनत का वारिस।
अपने ही बेटे को फरियादी के रूप में आते देख उसका चौंकना स्वाभाविक ही था।
सुनील कार्पेट के अन्त में पहुंचा और घुटनों के बल बैठकर अपना सिर शंकर दादा के पैरों से लगा दिया।
उसने अपना सिर उसके पैरों से हटाया और हाथ जोड़ते हुए बोला—
“आप तो लोगों के बिगड़े काम संवारते हैं पापा। जो काम कानून नहीं कर सकता—वह आपके सिर्फ इशारे भर से हो जाता है। आपके कदमों में बैठकर कोई भी फरियादी खाली हाथ नहीं लौटता मगर आपके इस नालायक बेटे की झोली खाली है। मेरी भी झोली भर दो पापा।”
शंकर दादा अभी तक अवाक-सा बैठा हुआ था। हौले से मुस्कुराया और अपने दोनों हाथ आगे बढ़ाकर उसके कन्धों को पकड़ कर खड़ा कर दिया।
“तेरी जगह वहां नहीं—यहां है—मेरे पास।” वह सिंहासन पर एक तरफ खिसकते हुए बोला—“यहां बैठ बेटे—।”
“ल-लेकिन पापा...।”
“तू मेरा बेटा है, मेरा वारिस! अण्डरवर्ल्ड का भावी सम्राट, और सम्राट किसी के सामने सिर नहीं छुपाता—और ना ही वह किसी के सामने गिड़गिड़ा कर मांगता है। उसका दिल जिस भी चीज पर आता है, वह उसे मांगता नहीं बल्कि छीनता है। इस तरह गिड़गिड़ा कर मांगने की आदत मत डाल बेटा—छीनना सीख! पूरे शहर क्या—आस-पास के शहरों में भी तुझे जो चीज पसन्द है, हम तुझे लाकर देंगे। बोल बेटा, क्या चाहिए तुझे—तू एक बार बोल तो सही।”
कहते हुए उसने उसका कन्धा थपथपाया।
“पापा।” सुनील बोला—“मुझे...मुझे प्यार हो गया है।”
शंकर दादा के होठों पर मुस्कान नाच उठी।
“मैं पहले ही जानता था कि तू ऐसा ही कुछ कहेगा।” वह बोला—“यह उम्र ऐसी ही होती है—। इस उम्र में इंसान को धन दौलत वगैरह कुछ नहीं सूझता, उसके जेहन में तो हर वक्त किसी ना किसी लड़की की तस्वीर ही उभरी रहती है।”
“तू बोल बेटे—उस लड़की का नाम बोल। आज रात वह तेरे बेडरूम में होगी।”
“म-मैं उससे प्यार करता हूं पापा—उससे शादी करना चाहता हूं।”
सुनकर चौंका शंकर दादा, फिर उसके चेहरे पर मुस्कान उभर आई।
“ओ...तो मामला यहां तक पहुंच गया है।”
“मेरी तरफ से...।” गर्दन झुका ली सुनील ने—“उसकी तरफ से नहीं।”
एक बार फिर चौंका शंकर दादा—“यानि वह तेरे से प्यार नहीं करती?”
“नहीं।”
“तूने उसके सामने अपने प्यार का इजहार किया?”
“हां...मगर...।” सुनील ने गहरी सांस छोड़ी—“मगर उसने मेरे प्यार को ठुकरा दिया।”
शंकर दादा का चेहरा कानों तक लाल हो उठा—आंखें सुलगने लगीं।
“उस हरामजादी ने तेरे प्यार को ठुकरा दिया और तू मुंह लटकाकर वापस लौट आया।” वह फुंफकार उठा—“हरामजादी को कहीं बीच सड़क पर गिराकर उस पर चढ़ क्यों नहीं गया तू? अगर प्यार के बदले प्यार नहीं मिला तो जबरदस्ती उसे अपना बना लेना था।”
“क-या-या मैं....?”
“क्या वह हरामजादी जानती नहीं थी कि तू किसका बेटा है?”
“जानती थी।”
शंकर दादा का चेहरा और भी कठोर हो उठा—“फिर भी उसने इंकार कर दिया! इतनी जुर्रत उसकी!”
“वो किसी और से प्यार करती है पापा।”
“बेशक करती हो।” गुर्राया शंकर दादा—“जिस चीज पर हमारे बेटे का दिल आ गया हो, उस चीज पर किसी का भी अधिकार नहीं रह जाता, यहां तक कि उसका अपना भी नहीं। तू नाम बोल उसका! मैं देखता हूं कैसे वह तेरे से शादी करने से इंकार करती है।”
“शैलजा।” सुनील ने लड़की का नाम बताया।
“कहां रहती है वो?”
“आप उसे जानते हैं पापा। नेता सेवकराम की लड़की है शैलजा।”
बड़ा-म-बड़ा-म...।
शंकर दादा के मस्तिष्क में जैसे एक साथ कई परमाणु विस्फोट हुए।
आंखें फट पड़ीं।
कुछ देर तक तो वो सुनील को सकते की-सी अवस्था में फटी-फटी निगाहों से देखता रहा, फिर एकदम से चिहुंक उठा—जैसे उसे सुईं चुभा दी गई हो।
“तू...तू सेवकराम की लड़की की बात कर रहा है—।”
उसे जैसे विश्वास नहीं हुआ।
“हां, पापा—मैं शैलजा को दिलोंजान से प्यार करता हूं पापा। मैं उसके बिना जी नहीं पाऊंगा। उसे मेरी झोली में डाल दीजिए।”
“ल-लेकिन...।” शंकर दादा का लहजा एकदम से बदल गया—“वो...वो तो सेठ हरनाम दास के लड़के से प्यार करती है।”
“मुझे पता है—और मैं यह भी जानता हूं कि सेवकराम से आपके बहुत ही अच्छे सम्बन्ध हैं।“
शंकर दादा कुछ नहीं बोला। उसने सुनील को नहीं बताया कि सेवकराम के साथ उसके सम्बन्ध सिर्फ मित्रता तक नहीं, बल्कि वह उसके धन्धे में बराबर का पार्टनर है।
सेवकराम राजनीति में रहकर अपने चेहरे पर जनसेवक का नकाब ओढ़कर अण्डरवर्ल्ड पर राज कर रहा है।
गहरी सांस छोड़ी शंकर दादा ने।
“वाह बेटा—जिन्दगी में तुमने हमसे मांगा भी तो क्या मांगा! तुमने वह चीज मांग ली, जिसकी तरफ हाथ बढ़ाते हुए भी हमारा कलेजा कांप जाए।”
“पापा...।”
“हां बेटा—हम तुम्हारी इच्छा पूरी नहीं कर सकते। तुम कहो तो मैं पूरे राजनगर की खूबसूरत लड़कियों को लाकर तुम्हारे कदमों में डाल दूं मगर बेटे—तुम शैलजा को भूल जाओ।”
सुनील सिंहासन से उतरकर तेरे से उसके पैरों में घुटनों के बल बैठ गया और हाथ जोड़ते हुए बोला—
“मुझे मेरा प्यार मेरी झोली में डाल दो शंकर दादा।”
“सुनी-ल-।” आवाज थर्रा गई शंकर दादा की।
“मैं शैलजा के बिना जिन्दा नहीं रह सकता।”
“नहीं सुनील—तुम्हें शैलजा को भूलना होगा। सेवकराम मेरा दोस्त जरूर है—लेकिन वह सेठ हरनाम दास के लड़के से छीन कर शैलजा को मुझे कभी नहीं देगा—और शैलजा की तो उससे मंगनी भी हो चुकी है।”
“यानि आज शंकर दादा के दरबार से उसके अपने ही बेटे को मायूस होकर जाना पड़ेगा।”
“तू उसे भूल जा—शैलजा के अलावा तू किसी भी लड़की का नाम बोल, मैं तेरी शादी उससे करा दूंगा।”
“मगर मैं सिर्फ और सिर्फ उससे प्यार करता हूं।”
“तुझे उसके प्यार को भूलना होगा।”
“उसे पाना मेरी जिद है पापा। बस यूं समझ लीजिए कि अगर शैलजा मुझे नहीं मिली तो आप भी अपना बेटा खो देंगे।“
“ऐसे क्या सुर्खाब के पर लगे हैं उसमें—जो तू उसी के नाम की रट लगाए हुए है।”
शंकर दादा उसे घूरते हुए बोला।
सुनील ने गहरी सांस छोड़ी और खड़ा हो गया।
“मैं यह तो नहीं बता सकता पापा की उसमें कौन से सुर्खाब के पर लगे हैं—लेकिन यह जरूर बता सकता हूं कि मैं राकेश को नीचा दिखाना चाहता हूं। उसे खून के आंसू रुलाना चाहता हूं।”
कहते हुए सुनील के जबड़े भिंच गए। आंखों में ज्वालामुखी कौंधने लगा।
“राकेश!” बड़बड़ाया शंकर दादा—“यह कौन है?”
“हरनाम दास का लड़का—जिससे कि शैलजा की शादी होने जा रही है।”
एक और झटका लगा शंकर दादा को।
“उससे तेरी क्या दुश्मनी हो गई बेटे जो तू उसे खून के आंसू रुलाना चाहता है।”
सुनील के जबड़े भिंच गए। चेहरा कठोर हो उठा—आंखों में ऐसे भाव उभर आए जैसे वह बीते वक्त को याद कर रहा हो।
“कॉलेज में वह मेरी क्लास में पढ़ता था...” उसके होठों से गुर्राहट उबली—“शैलजा हमसे एक क्लास कम थी। हम दोनों ही उससे प्यार करते थे और एक दिन हिम्मत करके मैंने शैलजा के आगे अपने प्यार का इजहार कर दिया। शैलजा ने भी शर्माकर मेरा प्यार कबूल कर लिया और यह बात जब राकेश को पता चली तो वह जलभुन गया, उससे हमारा प्यार देखा नहीं गया और उसने हम दोनों को अलग करने के लिए शैलजा के कान भर दिए कि मैं एक गैंगस्टर का बेटा हूं और यह भी कहा कि मैंने कॉलेज की तीन लड़कियों को खराब किया है मगर शैलजा ने उसकी बातों पर विश्वास नहीं किया। आखिर उसने सबूत के तौर पर दो लड़कियों को उसके सामने खड़ा कर दिया। जिन्होंने शैलजा से यह कहा कि उनके सम्बन्ध मेरे साथ रह चुके हैं।”
“क्या यह सच था?”
“हां...मेरा उन दोनों के साथ सम्बन्ध था।” बिना झिझक स्वीकार किया सुनील ने—“मगर शैलजा से मैं सच्ची मौहब्बत करता था मगर राकेश ने मेरा भांडा फोड़ कर मुझे शैलजा की नजरों में गिरा दिया और उसने मुझे अपने दिल से निकालकर वहां राकेश को बसा लिया।”
“ओह।”
“मैंने गुस्से में राकेश को यह कहा था कि अगर मैंने भी उससे बदला नहीं लिया तो मैं भी शंकर दादा की औलाद नहीं।”
उसने गहरी सांस छोड़ी और आगे बोला—“उस वक्त भी मैं अगर चाहता तो आपसे कहकर राकेश को खत्म कराकर उसकी लाश को समुद्र में फिंकवा सकता था मगर मैंने ऐसा नहीं किया। मैं चाहता था कि वह खून के आंसू रोए। वह शैलजा, जिसे उसने मुझसे छीना था, उससे छिनकर मेरी हो जाए, तब रोएगा वह खून के आंसू।”
“तो मामला प्यार का नहीं, बदले का है।”
“प्यार का भी है पापा, मैं अपना खोया हुआ प्यार पाना चाहता हूं।”
“साथ में राकेश से बदला भी लेना चाहते हो?”
“हां।”
गहरी सांस छोड़ी शंकर दादा ने।
उसके चेहरे पर सोचें उभर आईं, माथे पर चिन्ता की लकीरें खिंच गईं।
थोड़ी देर बाद वह खड़ा हुआ और सुनील के कन्धे पर हाथ रखते हुए गम्भीरता से बोला—
“मुझे आज की रात सोचने का मौका दो बेटे—मैं सुबह तुमसे बात करूंगा।”
“आप चाहें तो कुछ भी सोचें पापा मगर मुझे शैलजा से कम कुछ नहीं चाहिए।”
दृढ़तापूर्वक बोला सुनील।
शंकर दादा ने उसकी बात का जवाब नहीं दिया। उसने बस उसके कन्धे पर हल्की-सी थपकी दी और पीछे वाले दरवाजे की तरफ बढ़ गया।
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