पिशाच : Pishach by Anil Saluja
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हराम की करोड़ों की दौलत मिल रही थी सतीश रावण को...। इसी दौलत के कारण वह पुलिस के चंगुल में जा फंसा——
पिशाच
अनिल सलूजा
एक ऐसा खौफनाक उपन्यास जिसका आगाज भी खून-खराबे से हुआ है—— और अंजाम भी खून में डूबा हुआ।
पिशाच : Pishacha
Anil Saluja
प्रस्तुत उपन्यास के सभी पात्र एवं घटनायें काल्पनिक हैं। किसी जीवित अथवा मृत व्यक्ति से इनका कतई कोई सम्बन्ध नहीं है। समानता संयोग से हो सकती है। उपन्यास का उद्देश्य मात्र मनोरंजन है। प्रस्तुत उपन्यास में दिए गए हिंसक दृश्यों, धूम्रपान, मधपान अथवा किसी अन्य मादक पदार्थों के सेवन का प्रकाशक या लेखक कत्तई समर्थन नहीं करते। इस प्रकार के दृश्य पाठकों को इन कृत्यों को प्रेरित करने के लिए नहीं बल्कि कथानक को वास्तविक रूप में दर्शाने के लिए दिए गए हैं। पाठकों से अनुरोध है की इन कृत्यों वे दुर्व्यसनों को दूर ही रखें। यह उपन्यास मात्र 18 + की आयु के लिए ही प्रकाशित किया गया है। उपन्यासब आगे पड़ने से पाठक अपनी सहमति दर्ज कर रहा है की वह 18 + है।
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पिशाच
अनिल सलूजा
“तड़...तड़...तड़...।”
“बड़ा...म...।”
पहले गोलियों की आवाजों से पूरा इलाका कांपा...फिर टायर के बर्स्ट होने का जबरदस्त धमाका हुआ।
उसी के साथ ही वह वैन शराबी की तरह सड़क पर लहराई और फुटपाथ पर चढ़कर एक तरफ उलट गई।
“तड़...तड़...तड़।” सड़क के दोनों तरफ से पुनः गोलियों की आवाजें उभरीं।
“खनाक्...खनाक्” की आवाजों से वेन की विंडस्क्रीन और खिड़कियों के शीशे टूट गए।
तभी वैन विंडस्क्रीन में से तीन व्यक्ति हाथों में स्टेनगनें लिए बाहर कूदे...उसी के साथ ही वैन का पिछला दरवाजा खुला और उसमें से दो व्यक्ति बाहर निकले।
अपने साथियों की तरह वे भी स्टेनगनों से लैस थे।
मगर इससे पहले कि वे मुकाबला करने के लिए पोजीशन लेते——
“तड़...तड़...तड़...।”
सड़क के दोनों तरफ से शोलों की बारिश शुरू हो गई उन पर...और देखते ही देखते वे पांचों लाशों में तब्दील हो सड़क पर बिखर गए।
बेचारों को गोली चलाने तक का मौका हासिल नहीं हुआ...उनके हाथों में नई स्टेनगनों से पटाखा तक नहीं छूटा।
उनके मरते ही वहां एकदम से मौत का सन्नाटा छा गया।
करीब पांच मिनट बाद ही एक टाटा सूमो उस उल्टी पड़ी वैन के करीब पहुंची और देखते ही देखते उसमें से स्टेनगनों से लैस चार व्यक्ति बाहर निकले।
स्टेनगन को ताने उन्होंने पहले वैन का मुआयना करना शुरू किया कि कोई रह तो नहीं गया।
दो व्यक्ति आगे ड्राइविंग केबिन की तरफ बढ़े और टूटी हुई विंडस्क्रीन में से भीतर झांका।
एक व्यक्ति जमीन के साथ लगे दरवाजे के साथ घायल अवस्था में पड़ा कराह रहा था।
तुरंत दोनों में से एक ने स्टेनगन का रुख उसकी तरफ किया और ट्रिगर दबा दिया।
“तड़...तड़...तड़...।”
गोलियों ने उस व्यक्ति के जिस्म में घर बना लिया।
वह बेचारा तड़प भी नहीं पाया और लाश में तब्दील हो गया।
आगे की पूरी तसल्ली करने के बाद वे दोनों पीछे आए, जहां पर उनके साथी खड़े थे।
“कोई मिला...?” उनमें से एक ने पूछा।
“नहीं...।” पीछे वालों में से एक बोला——“सभी खत्म हो गए।”
“माल निकालो...।”
तुरंत पीछे वाले दोनों वैन के पिछले हिस्से में प्रवेश कर गए।
अंदर लकड़ी की छः पेटियां पड़ी थीं तथा चार पेटियां गत्ते की पड़ी थीं।
दोनों ने पांच चक्कर लगाए वे पेटियां वैन से सूमो में पहुंचाने में और फिर वह सभी सूमो में सवार हो गए।
सूमो स्टार्ट होकर थोड़ा-सा बैक हुई...फिर पीछे मुड़ी और फिर गोली की तरह वहां से भाग निकली।
¶¶
“वाह…। मजा आ गया...करोड़ों का माल एक ही झटके में हमारा। ठाकुर को जब पता चलेगा कि उसका करोड़ों का माल कोई उड़ाकर ले गया है तो उसके हाथों के तोते उड़ जाएंगे...।”
“और जब उसे अपने वफादारों की मौत का पता चलेगा तो निश्चय ही वह पागल हो उठेगा। छाती पीटने लगेगा अपनी।”
“हा...हा...हा...।”
तीसरे ने ठहाका लगाया।
“बेचारा ठाकुर...यह सोच-सोचकर ही मर जाएगा कि उसका माल उड़ाया तो किसने उड़ाया।”
चौथा भी हंसते हुए बोला। वह सूमो को ड्राइव कर रहा था।
इस वक्त सूमो शहर की सीमा में प्रवेश करने जा रही थी।
“इसी तरह अगर ठाकुर को दो-तीन चोट और पहुंच गईं...तो समझ लो उसका बेड़ा गर्क हुआ कि हुआ...।”
चौथा अपने साथियों की तरफ देखते हुए चहका।
“सलामत रहे चौहान...अगर उसकी इंफॉर्मेशन हमें वक्त पर मिलती रही तो वह दिन दूर नहीं जब लखनपुर पर हमारा राज चलेगा...और ठाकुर का नाम भी लोग भूल जाएंगे।”
“सामने देख हीरा...।” तभी पीछे बैठा व्यक्ति चीखा।
ड्राइविंग कर रहे हीरा ने हड़बड़ाकर सामने देखा।
दैत्य की तरह एक ट्रक धड़धड़ाता हुआ उनकी तरफ बढ़ रहा था और इस वक्त वह सिर पर आ पहुंचा था।
सड़क तंग थी।
हीरा ने सूमो को संभालने की पूरी कोशिश की कि वह कच्चे पर उतारकर बचा ले...।
मगर तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
“भड़ाक...।” बड़ी तेज आवाज के साथ ट्रक सूमो से टकराया।
सूमो जोरों से लड़खड़ाई और पलट कर सड़क से नीचे गिरी और फिर पलटियां खाती हुई सड़क के नीचे लगी झाड़ियों की तरह लुढ़कने लगी।
ट्रक ड्राइवर ने सूमो की हालत देखी तो पहले तो वह घबराया...फिर ट्रक को पूरी गति से दौड़ा दिया।
मन-ही-मन वह ऊपरवाले को शुक्र अदा कर रहा था कि सड़क पूरी तरह से खाली थी और किसी ने एक्सीडेंट होते नहीं देखा था।
¶¶
“भड़ाक!”
एक तेज आवाज सतीश रावण के कानों में पड़ी।
आवाज से ही वह समझ गया कि कोई तगड़ा एक्सीडेंट हुआ है...सो वह तेजी से रेल की बोगी से निकला और उधर भागा जिधर से कि आवाज आई थी।
गंगानगर से भागकर वह सीधा हरियाणा में दाखिल हुआ था।
उसकी बदकिस्मती कि हरियाणा पुलिस को उसका पता चल गया और वह उसके पीछे लग गई।
उस वक्त सतीश रावण हिसार के रेलवे स्टेशन के करीब था, जब उसे हथियारों से लैस चार पुलिसवाले अपनी तरफ बढ़ते नजर आए।
बुरी तरह से बौखला उठा वह और वहां से भागा।
पुलिस उसके पीछे भागी।
साथ ही सतीश रावण पर एक साथ तीन फायर हुए।
मगर वह सकुशल था। गोलियां उसके दाएं-बाएं से निकल गईं।
तभी छुक-छुक की आवाज उसके कानों में पड़ी।
भागते हुए ही उसने आवाज की दिशा की तरफ देखा।
एक मालगाड़ी स्टेशन छोड़कर जा रही थी।
बिना कोई वक्त गवाएं सतीश रावण ट्रेन की तरफ लपका और कुछ देर ट्रेन के साथ भागते हुए आखिर उसने एक बोगी को पकड़ ही लिया।
ठीक तभी दो-तीन फायर और हुए उस पर।
मगर तब तक सतीश रामायण बोगी में चढ़ चुका था।
उसी बोगी में कोयला भरा हुआ था।
सतीश रामायण कोयले पर लेट गया और लंबी-लंबी सांसें छोड़ने लगा।
बाल-बाल बचा था वह।
अगर वक्त रहते उसे पुलिस का पता नहीं चल जाता तो निश्चय ही अब तक कई गोलियां उसके जिस्म में पेवस्त हो चुकी होती।
लेटे-लेटे पता नहीं कब नींद ने उसे धर दबोचा था और पता नहीं कितनी देर तक सोता रहा था वह।
उसे बस इतना पता था कि जब वह ट्रेन में चढ़ा था तो सूरज निकला हुआ था...और अब रात का अंधेरा चारों तरफ फैला हुआ था।
जिस वक्त उसकी नींद खुली...उसने अपने वाली बोगी को खड़े पाया था। उसकी बोगी के साथ दो बोगियां और भी खड़ी थीं। बाकी ट्रेन का कहीं पता नहीं था।
“ट्रेन उन दोनों बोगियों को वहां छोड़कर चली गई होगी...।”
सतीश रावण ने यही सोचा।
अभी वह यह सोच ही रहा था, जब उसके कानों में एक्सीडेंट की आवाज पड़ी थी।
“हो सकता है, एक्सीडेंट में कोई मर-खप गया हो...और वहां से कुछ माल-पानी हासिल हो जाए...।”
यह सोचकर वह उधर भागा था।
सड़क के करीब पहुंचते ही उसकी निगाहें सड़क के नीचे उलटी पड़ी...बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो चुकी सूमो पर पड़ी।
तुरंत वह उधर लपका और सूमो के करीब पहुंचकर भीतर झांका।
अंधेरे में उसे सूमो में चार साये बिखरे पड़े नजर आए।
एक स्टेयरिंग के पीछे दबा हुआ था, दो पिछली सीटों के नीचे लकड़ी की पेटियों के नीचे दबे पड़े थे तथा एक सूमो के नीचे दबा हुआ था।
निश्चय ही वह सूमो के लुढ़कने से उछल कर बाहर आ गिरा था और तभी सूमो उस पर आ पड़ी थी।
तभी सतीश रावण की निगाहों में दो स्टेनगनें आईं।
अंधेरे में हालांकि स्टेनगन नजर नहीं आ रही थीं, मगर चांद की रोशनी सीधा उन दो स्टेनगन पर पड़ रही थी...जिसकी वजह से उसे वे नजर आ गई थीं।
स्टेनगन देखकर वह पहले तो चौंका...फिर उसके होठों पर मुस्कान फैल गई।
“मेरी ही बिरादरी के भाई-बंद लगते हैं...।” वह बड़बड़ाया और आगे बढ़कर दोनों स्टेनगन में से एक हाथ लंबा करके निकाल ली।
“अवश्य ही पेटियों में भी मेरे ही मतलब का सामान भरा होगा।” वह स्टेनगन को उलटते-पलटते हुए पेटियों की तरफ देखते हुए बोला और सूमो के पिछले हिस्से की तरफ बढ़ा।
पिछले दरवाजे के सामने आकर उसने जोर लगाकर पिछला दरवाजा खोला और गर्दन भीतर करके दोनों हाथों से गत्ते की एक पेटी को खींचकर बाहर निकाला और उसे खोलने लगा।
मगर गत्ते की पेटी इतनी मजबूती से पैक थी कि हाथों से खोल नहीं पा रहा था वह उसे।
मगर हताश नहीं हुआ वह...अपना दायां हाथ ऊपर उठाकर उसने पीठ पर कॉलर के बीच डाला और अपनी पीठ से चिपकी आरी खींच ली।
उसने आरी से गत्ते को काटा और फिर उसे खोलकर भीतर झांका।
पॉलिथीन की थैलियों से भरी पड़ी थी वह पेटी।
सतीश रावण ने एक थैली निकाल कर उसे चांद की रोशनी में किया तो पेन के आकार की बत्तियां भरी नजर आईं उसे।
“चरस...।” वह बड़बड़ाया...साथ ही उसकी आंखों में हजारों वाट की चमक उभर आई।
एक ही झटके में करोड़ों का माल हासिल हो गया था उसे...वह भी बिना हाथ-पैर हिलाए...और क्या चाहिए था उसे?
उसने तुरंत थैली वापस पेटी में डाली और उसे एक तरफ रखकर भीतर से अन्य पेटियां निकालने लगा।
अभी वह चार पेटियां ही निकाल पाया था कि तभी——
“हैंड्स अप...।” एक दहाड़ती आवाज उसके कानों के परदे से टकराई।
बुरी तरह से चिहुंक उठा सतीश रावण...साथ ही वह तेजी से आवाज की दिशा की तरफ मुड़ा।
एक-दो नहीं...पूरे छः पुलिसिये थे...जिनमें से दो के हाथ में रिवॉल्वर थीं और बाकी चार के हाथों में डंडे थे।
पीछे सड़क पर पुलिस की जीप खड़ी थी।
इतना माल मिलने की खुशी में वह इस कदर बेसुध हो गया था कि उसे यह तक ध्यान नहीं रहा कि वह सड़क के करीब खड़ा है।
तभी तो खता खा गया था।
जब तक वह संभलता, पुलिस से चारों तरफ से घिर चुका था।
एक सिपाही ने नीचे पड़ी स्टेनगन देखी तो वह चीखा——“स्टेनगन सर।”
“कब्जे में करो...।” रिवॉल्वर ताने इंस्पेक्टर बोला——“और उन पेटियों में देखो।”
फौरन दूसरे सिपाहियों में से एक ने खुली पेटी में से थैली उठाई।
अगले ही पल वह चीखा——“चरस...।”
इंस्पेक्टर जोरों से चौंका...फिर उसके होठों पर ऐसी मुस्कान फैली जैसे उसने बहुत बड़ा हाथ मारा हो।
और फिर उसके आदेश पर सिपाहियों ने आनन-फानन सतीश रावण को हथकड़ी में जकड़ा और सड़क पर ले जाकर जीप के फ्रेम के साथ हथकड़ी के दूसरे सिरे को लॉक कर दिया।
“बुरे फंसे...।” सतीश रावण मन-ही-मन बड़बड़ाया। अब वह उस वक्त को कोस रहा था कि जब उसने एक्सीडेंट की आवाज सुनी थी...फिर उस वक्त को कोसने लगा जब उसने सड़क की तरफ से लापरवाही दिखाई थी।
ऊपर से उसे यह डर लग रहा था कि कहीं वह पहचाना ना जाए। वह जानता था कि अगर वह पहचान लिया गया, तब मौत तो शायद ना आए...मगर सारी उम्र जेल से बाहर नहीं निकल पाएगा वह...क्योंकि अपनी मौत का उसे पता था कि वह कैसे आएगी।
शैतान आत्मा जो था वह...वह शैतान आत्मा जिसने धर्मराज के सिंहासन तक को हिला डाला था।
उसे फ्रेम के साथ बांधने के बाद एक सिपाही वहीं रुक गया...जबकि बाकी सड़क से नीचे उतरकर इंस्पेक्टर के करीब पहुंच गए।
“तलाशी लो गाड़ी की...।” इंस्पेक्टर ने हुक्म सुनाया।
कुछ ही देर में सभी पेटियां तथा चारों लाशें बाहर पड़ी थीं।
हीरा तथा उसके तीनों साथी उस एक्सीडेंट में मर गए थे।
“फौरन कंट्रोल रूम मैसेज भेजो कि यहां एंबुलेंस भेजी जाए।” इंस्पेक्टर ने एक हवलदार से कहा।
हवलदार फौरन सड़क की तरफ बढ़ने लगा।
इंस्पेक्टर ने अपने करीब खड़े सब-इंस्पेक्टर खरे की तरफ गर्दन मोड़ी।
“यह पांचों गैरकानूनी काम करते थे...।” वह बोला——“और यह सारा माल लखनपुर से ला रहे थे...मगर इत्तेफाक से गाड़ी का एक्सीडेंट हो गया और पांच में से चार मर गए। बाकी बचे एक ने सारा माल समेट कर वहां से निकलना बेहतर समझा, मगर उसके निकलने से पहले ही हम प्रकट हो गए।”
“हो सकता है सर कि यह सिर्फ प्यादे हों...और यह किसी और के लिए काम करते हों?” खरे बोला।
इंस्पेक्टर ने चौंककर उसकी तरफ देखा।
“कहीं तुम जगतार सिंह को तो इसमें नहीं घसीट रहे?” वह बोला।
“जगतार सिंह एक बहुत बड़ा क्रिमिनल है सर। लखनपुर के अंडरवर्ल्ड पर उसी का राज है। यह बात हर कोई जानता है। पुलिस भी जानती है...लेकिन आज तक वह गिरफ्तार नहीं किया जा सका।”
“क्योंकि उसके खिलाफ आज तक कोई सबूत नहीं मिला...और बिना सबूत के उस पर हाथ डाला नहीं जा सकता।”
“हो सकता है, यह माल उसी का हो...और वह आदमी उसी का आदमी हो, अगर वह यह सब कबूल कर लेता है तो इससे पुलिस उसे बेशक गिरफ्तार ना कर सके...मगर उसके विरुद्ध कदम उठाने का मौका तो मिल सकता है।”
इंस्पेक्टर ने समझने वाले अंदाज में सिर हिलाया। खरे की बात उसे सही लगी थी।
“थाने चलकर पूछेंगे इससे कि वह किस हरामी की औलाद है।”
वह बोला।
तभी हवलदार वापस आ गया।
“मैसेज भेज दिया ?” इंस्पेक्टर ने पूछा।
“यस सर...और कंट्रोल रूम की तरफ से भी एक मैसेज आया है सर।”
“क्या?”
“नत्थू शाह रोड पर एक वैन उलटी पड़ी है तथा उसके पास खून से लथपथ छः लाशें पड़ी हैं।”
बुरी तरह से चौंका इंस्पेक्टर शिवदयाल।
खरे भी चौंक पड़ा।
“कंट्रोल रूम से वहां के लिए एंबुलेंस भेज दी गई है...और पंचनामा करने के लिए आपको कहा गया है।”
हवलदार ने कहा।
इंस्पेक्टर शिवदयाल ने गहरी सांस छोड़ी——“हो गई रात काली...।” वह बड़बड़ाया और खरे को उन लाशों का पंचनामा तैयार करने तथा सारा माल उसकी निगरानी में छोड़, दो सिपाहियों को साथ ले जीप की तरफ बढ़ गया।
अगली सीट पर बैठा सतीश रावण अभी भी ऊपर वाले को कोस रहा था कि यह किस जंजाल में फंसा दिया उसने।
स्टेयरिंग पर बैठकर शिवदयाल ने दोनों सिपाहियों को सतीश रावण के सामने उसकी निगरानी करने के लिए पीछे बैठने को कहा और फिर एक घूरती नजर सतीश रावण पर डालकर सामने देखने लगा।
¶¶
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Additional information
Book Title | पिशाच : Pishach by Anil Saluja |
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Isbn No | |
No of Pages | 272 |
Country Of Orign | India |
Year of Publication | |
Language | |
Genres | |
Author | |
Age | |
Publisher Name | Ravi Pocket Books |
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