Patal Mein Danka : पाताल में डंका
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सोने की लंका और हीरों के पहाड़ की तलाश में सरगर्म वृन्दा स्वामी, सिंगही, थारसा की टीम का सीधा टकराव शोला दि ग्रेट से हैं, शोला जो इस कथानक में पाताल का शहंशाह बनता है और हजारों डायनासोरों से जंग करता उन्हें शिकस्त देता है। सुरखाव की धरती से लेकर पाताल तक एक खौफनाक जंग, काले जादूगर की वर्ल्डवार!
देवा ठाकुर का एक बिना स्पीड ब्रेकर उपन्यास
Ist Part पाताल में डंका
IInd Part हाहाकार
Patal Mein Danka : पाताल में डंका
Deva Thakur
Ravi Pocket Books
BookMadaari
प्रस्तुत उपन्यास के सभी पात्र एवं घटनायें काल्पनिक हैं। किसी जीवित अथवा मृत व्यक्ति से इनका कतई कोई सम्बन्ध नहीं है। समानता संयोग से हो सकती है। उपन्यास का उद्देश्य मात्र मनोरंजन है। प्रस्तुत उपन्यास में दिए गए हिंसक दृश्यों, धूम्रपान, मधपान अथवा किसी अन्य मादक पदार्थों के सेवन का प्रकाशक या लेखक कत्तई समर्थन नहीं करते। इस प्रकार के दृश्य पाठकों को इन कृत्यों को प्रेरित करने के लिए नहीं बल्कि कथानक को वास्तविक रूप में दर्शाने के लिए दिए गए हैं। पाठकों से अनुरोध है की इन कृत्यों वे दुर्व्यसनों को दूर ही रखें। यह उपन्यास मात्र 18 + की आयु के लिए ही प्रकाशित किया गया है। उपन्यासब आगे पड़ने से पाठक अपनी सहमति दर्ज कर रहा है की वह 18 + है।
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पाताल में डंका
देवा ठाकुर
शोला वृन्दास्वामी की सबसे अद्भुत क़ैद में था। शोला के लिये किसी भी कैद से छुटकारा पाना मुश्किल काम न था, लेकिन इस कैद से मुक्ति असम्भव थी, इसीलिये यह अद्भुत कैद थी। शोला के गले में एक स्टील का पट्टा फिक्स था। जिस पर एक जंजीर फिक्स थी। जंजीर के दूसरे छोर पर भी वैसा भी पट्टा था जो होहारा की चौड़ी कलाई में फिक्स था। यानि कि शोला अब कहीं भी आता-जाता तो होहारा उसके साथ रहता था। अगर यह जोड़ी किसी शहरी आबादी की सड़कों पर नमूदार होती तो लोगों की भीड़ सिर्फ इन्हें देखने के लिये सड़कों पर उमड़ आती। वे इन्हें आदिकाल के मानव ही समझते। सात फुट का मजबूत शानों, चौड़े सीने वाला, गठीला बदन, रंग गोरा चिट्टा, बाल कन्धों तक फैले हुए, क्लीन शेव्ड चित्ताकर्षक चेहरा स्वप्नीली आंखें—चौड़ा तेजस्वी ललाट और शरीर पर इस वक्त सिर्फ अधोवस्त्र था, वह भी किसी जानवर की खाल का। उसे देखकर जंगल के काल्पनिक किरदार टार्जन का गुमान होता था—यह था शोला। अब शोला के पार्टनर की शख्सियत पर भी गौर फरमाइये। सर्वजाति का जिन्न होहारा जो अपने लोकप्रिय जुमले—मैं आ गया हूं होहारा—से कुख्यात था, उसका जिस्म आबनूसी था, इस काले कलूटे का कद शोला से भी एक फुट निकलता हुआ था, यानि कि आठ फुट। इसका सीना शोला से दो फुट ज्यादा चौड़ा था। उसकी तरह कन्धों की चौड़ाई भी दो फुट ज्यादा थी। इसके हाथ बेल्चों की याद ताजा करते थे। कलाइयां दानवी थीं और दांत सफेद, चमकीले, नोकीले थे। मुंह खोले तो दांतों की कतार से दरिन्दा लगता था। इसकी नाक छिदी हुई थी, जिसमें एक हाथी दांत का रिंग फंसा था। इसके जिस्म पर इस वक्त भी इसका परम्परागत सफेद लबादा था जो इसके घुटनों तक के हिस्से को कवर करता था। होहारा से शीला की अनेक भिड़ंतें हो चुकी थीं लेकिन वह होहारा को कभी भी शिकस्त नहीं दे पाया था। दूसरी बात यह भी थी कि शोला अगर किसी से सामना करने से कतराता था तो वह होहारा ही था और इस वक्त वृन्दास्वामी ने अपने इस बेमिसाल जिन्न होहारा को शोला के साथ इस तरह बांध दिया था कि शोला कहीं भी होता होहारा उसे जब चाहे कच्चे धागे से बांधकर अपने पास बुला लेता—यानि दोनों ही एक जंजीर दो छोरों पर बंधे थे और जंजीर भी कोई ऐसी वैसी नहीं थी। वृन्दा के जादू की जंजीर थी जिससे न तो शोला आजाद हो सकता था न होहारा। अब अगर ये दोनों शख्सियत इसी शक्ल में किसी शहर की शाहराह पर उतर आते तो यक़ीनी तौर पर लोग इन्हें देखने के लिये उमड़ पड़ते।
"कुछ भी हो तुम्हारा हथियार वह नामुराद घन्टा तो मैंने दफन कर ही दिया है।" शोला होहारा को बड़ी देर से ताव दिलाने की कोशिश कर रहा था, लेकिन होहारा जो कि बोलता बहुत कम था और गिने-चुने अल्फाज़ ही बोलता था, वह शोला की किसी बात का न तो जवाब दे रहा था न उसके चेहरे पर कोई भाव आ रहा था। उसका चेहरा एकदम भावरहित सपाट था।
शोला जराका की दरगाह के इन्टीरियर से बाहर निकल आया था और इस वक़्त एक झील के किनारे बैठा था। शोला एक संगी चट्टान पर आलथी-पालथी मारे बैठा था, जबकि होहारा उससे कुछ फुट दूर नीचे रेतीली जमीन पर उकड़ू बैठा था। जंजीर इतनी ही लम्बी थी कि उनके दरमियान में अधिक से अधिक आठ फुट का फासला रह सकता था।
"अबे कलूटे! कुछ बोलता क्यों नहीं?" शोला ने एक पत्थर उठाते हुए कहा—"मैं तेरे सिर पर दें मारूंगा यह पत्थर।"
होहारा ने अब भी कोई जवाब नहीं दिया। दरअसल शोला एक नफसयाती हरबा होहारा पर इस्तेमाल करना चाहता था। वह चाहता था होहारा उत्तेजित हो जाये—क्रोध में आकर उस पर हमला करने के लिये हाथ-पैर चलाये, उस सूरत में शोला ने तय किया था कि वह थोड़ी देर तक तो उससे मल्लयुद्ध करेगा लेकिन बाद में बेहोशी का नाटक करके लम्बा हो जायेगा। जाहिर है कि होहारा उसके बाद उसे कन्धे पर लादकर ले जाता और सीधा वृन्दास्वामी के सामने पेश कर देता। होहारा वृन्दा को बताता कि उसने शोला को पीटकर बेहोश कर दिया है। वजह भी बतायी जाती। शोला का मकसद वृन्दास्वामी तक पहुंचना था—दूसरे वह यह भी जाहिर करना चाहता था कि उसमें होहारों से टकराने की ताकत नहीं रही। इस तरह होहारा कभी भी उस पर ऐसा वार कर सकता है कि शोला का दम ही निकल जाये। वृन्दास्वामी शोला को फिलहाल जिन्दा रखना चाहता था। ऐसी कोई सिचुयेशन आने पर कि होहारा शोला की जान का दुश्मन बन गया है वह होहारा से उसे आज़ादी दिला देता। शोला का मकसद यही था। उसकी प्लानिंग यह भी थी कि किसी तरह सुरखाब के चार बड़ों में खटास पैदा करके उन्हें आपस में ही लड़वा दिया जाये।
ये चार बड़े थे—नम्बर एक वृन्दास्वामी, नम्बर दो दक्षिण अफ्रीका की रियासत टकारागोची का जादूगर बलोची, नम्बर तीन चीन का शैतान सिंगही, नम्बर चार टी.थ्री.बी. यानि थ्रीसिया बमबल ऑफ बोहमिया जिसे थारसा भी कहा जाता था। सुरखाब का पांचवां बड़ा गिंजा जो वहां सर्वोच्च पद पर था और हुक्मरान था वह मारा जा चुका था। अब इन चारों में से किसी एक को सुरखाब की संसद का प्रधानमंत्री बनना था। उन चारों में वृन्दास्वामी की पोजीशन सबसे मजबूत थी। वे चारों ही इस वक़्त सुरखाब में मौजूद थे।
दक्षिण अफ्रीका का एक गुमनाम खत्ता सुरखाव की सरज़मीन थी, जो दुनिया के नक्शे में कहीं मौजूद नहीं था। काले जादूगरों की इस सिद्धपीठ की सीमायें तिलस्मी थीं। सदियों से इस रहस्यमय धरती का निजाम चल रहा था। कोई बाहरी शख्स सरहद से गुज़रकर यहां नहीं पहुंच सकता था। यहां जो भी शख्स बाहर से आता था उसके लिए बाकायदा एक सिस्टम बना हुआ था। उन्हें तिलस्मी सुरंगों से सीमा में लाया जाता था और फिर आने वाला तभी वापस जा सकता था, जब सुरखाब के हुक्मरान का इजाजतनामा मिल जाता। यहां आदमखोर वहशी रहते थे, जो बाहरी दुनिया से आदमियों को शिकार के तौर पर मारकर अपनी सरहद में ले आते थे। यहां चार कौमें आबाद थीं। एक सिर पर हरे पत्थर का पटका बांधते थे, उनका काम भोजन व्यवस्था जुटाना था। दूसरी कौम लाल पत्थर का पटका बांधती थी, इसका काम रक्षा व्यवस्था देखना था। तीसरी कौम नीले पत्थर वाली थी, जो यहां के काहन कहलाते थे और पूजनीय माने जाते थे। शासन काहन ही चलाते थे। चौथी कौम सरहद की तिलस्मी सुरंगों में रहती थी, उसका काम सरहद की देखभाल और आने-जाने के लिये रास्ता देना था, यह कौम काले पत्थर का पटका बांधती थी। इनका सरदार भी जादूगर होता था।
सुरखाब की संसद को जराकाका हुजूर भी कहा जाता था—उसकी दरगाह में नर बलियां चढ़ायी जाती थीं। वहां जादूगर नरबलि चढ़ाकर सिद्धियां करते थे या मन्नतें मांगते थे, बारह साल के बाद यहां उर्स भी होता था और काले जादूगरों का मेला लगता था। शोला और निनजा वास्तव में अफ्रीका की यात्रा पर निकले थे। उन्हें अंगोला जाना था, जहां से वे टकरागोची जाने का इरादा रखते थे। दरअसल शोला की ज़िन्दगी की इस नयी ख़ौफ़नाक दास्तां का आग़ाज उस वक्त हुआ जब शोला मुम्बई में था और एक खूबसूरत औरत मूर्ति जो कि एक फिल्म हीरोइन थी, उसके साथ जीवन बसर कर रही थी, मूर्ति ने उसे अपने पास बॉडीगार्ड के लिये रखा था। शोला को उन दिनों अपने को कहीं छुपाकर रखना था ताकि वृन्दास्वामी उसे तलाश न कर सके। वृन्दा और शोला की कहानी कंस और कृष्ण की कहानी थी। काले जादूगर ने वृन्दा की मौत की भविष्यवाणी की थी और जिसके हाथों उसकी मौत लिखी थी वह शोला था। वृन्दा ने शोला को जन्म लेने से पहले ही मारने की कोशिश शुरू कर दी थी लेकिन शोला की मां तो आग में जिन्दा जल गयी, मगर उसने बच्चे को जन्म दे दिया। इस बच्चे को एक बिल्ला अंडीलो ले भागा था। अंडीलो भी एक जिन्न था—फिर महामाया नामक जादूगरनी ने शोला की परवरिश की और वृन्दा की मौत का सामान तैयार कर दिया। महामाया वृन्दास्वामी का खात्मा चाहती थी। उसने शोला को इस काबिल बना दिया कि शोला वृन्दास्वामी से जंग लड़ सके। जिस दानवी अग्नि शलाकी तिरखा ने शोला को बचपन से ही दूध पिलाया था, उससे शोला के खून में ऐसी तासीर आ गयी कि उसे आग में नहीं जलाया जा सकता था। तिरखा की ताकत भी उसमें मौजूद थी। शोला को मार्शल आर्ट्स से लेकर तंत्र-मंत्र से भी लैस किया गया था और फिर शोला और वृन्दास्वामी में जंग छिड़ गयी। इस जंग में जापान के सोरो कबीले का मास्टर निनजा उसके साथ हो गया। निनजा सिब्लीसी तंत्र का माहिर भी था। यह बूढ़ा शख्स जबरदस्त फाइटर था। मुम्बई में मूर्ति के गायब होने के बाद ये दोनों अफ्रीका के लिये रवाना हुए थे। उनका अनुमान था कि टकारागोची के प्रिंस शोम्बी ने यह काम किया है और गोली इसमें प्रमुख भूमिका अदा कर रही है। गोली का कंकाल भी अफ्रीकी जादूगर बलोची ले गया था। वह उस कंकाल को जीवित करना चाहता था।
अंगोला पहुंचने से पहले ही प्लेन हाईजैक हुआ। उसे अफ्रीका के एक रेगिस्तान में उतारा गया। जहां उसने क्रेश लैंडिंग की थी और प्लेन तबाह हो गया, लेकिन यात्री बच गये। यह कारनामा गोली का था। उसकी रूह एक इन्सानी जिस्म में थी। उसी प्लेन में रूमी नामक लड़की भी थी। निनजा, शोला और रूमी किसी तरह भटकते-भटकते सुरखाब की सरहद तक पहुंच गये और उन्हें मुर्दा समझकर सुरखाबी उठाकर ले गये। बाकी लोग साजिश के तहत वृन्दास्वामी के काफिले में पहुंचा दिये गये, जिन्हें नरबलि के लिये सुरखाब की दरगाह में पहुंचाया गया। शोला को आग में न जला पाने के कारण जंगलियों ने उसे अपने पूर्वजों की रूह समझकर दरगाह में पेश किया, जहां जराकाका ने शोला को एक नयी मान्यता दे दी। दरगाह में जराकाका की खोपड़ी रखी होती थी—गिंजा सर्वोच्च आसन पर विराजमान होकर जराकाका के फैसले सुनाता था। शोला को पता चला कि वह सुरखाब की एक बहुत बड़ी पौराणिक शख्सियत सूरीवान है। सूरीवान जो सुरखाब कि महान देवी सुरखाब का पति था और जाराका काका उन्हीं की संतान थी। बताया गया कि उसके साथ जो बूढ़ा शख्स निनजा है वह सूरीवान का गुलाम टम्बोटू है यानि शोला किसी जन्म में सूरीवान के रूप में यहां आया था, उसने दरगाह में पचास इन्सानों की बलि देकर देवी सुरखाब को प्रकट किया था। सुरखाब ने सूरीवान को पसंद कर लिया और उसे अपने साथ ले गयी। सुरखाब देवी बारह साल बाद यहां प्रकट होती थी। वह सिर्फ एक रात वहां रहती थी और फिर अल्तास के तिलस्मी पहाड़ों में चली जाती थी। बारह साल बाद पूर्णमासी की रात को चांद की पहली किरण पड़ते ही अल्तास के तिलस्मी रास्ते खुलते थे और सूर्य की पहली किरण पड़ते ही रास्ते फिर बन्द हो जाते थे। सूरीवान को देवी बारह साल बाद लेकर लौटी तो उस वक़्त वह गर्भवती थी और उसी रात उसने जराकाका को जन्म दे दिया और कहा कि सुरखाब में अब जराकाका की मान्यता होगी। जराकाका की मान्यता तभी से थी। अब वहां सिर्फ उसकी खोपड़ी थी। सूरीवान बनते ही शोला काहन बन गया। उसके सिर पर नीले पत्थर का पटका लगा दिया गया। उसके साथ ही जराकाका ने शोला की उन तमाम शक्तियों को भी लौटा दिया, जो वृन्दास्वामी ने शोला से छीन ली थीं।
बारह वर्ष बाद लगने वाला उर्स शुरू हो चुका था और दुनिया भर के काले जादूगरों का आना शुरू हो गया था। वृन्दास्वामी भी दो सौ आदमियों के लश्कर के साथ वहां पहुंचा, उसके साथ नरबलि चढ़ाने के लिये पचास इन्सान थे, ये वही इन्सान थे, जिन्हें प्लेन हाईजैक करके अफ्रीका में उतारा गया था। वृन्दा ने शोला से मुलाकात की और बताया कि यह उसका हैडक्वार्टर है, जहां अब शोला तमाम उम्र के लिये कैद हो चुका है। शोला को तमाम शक्तियां मिलने के बाद अंडीलो की रूह उसके सम्पर्क में आ गयी। जराकाका की मान्यता के अनुसार यहां उन्हीं का जादू चल सकता था जो बड़े काहन थे। अब शोला को वह मान्यता प्राप्त थी, लेकिन वृन्दास्वामी की घोषणा के बाद शोला ने सुरखाब के सरहद का तिलस्म तोड़ने का इरादा बना लिया। वह नरबलि के लिये लाये गये इंसानों की फौज बनाकर एक रात वृन्दास्वामी के लश्कर पर हमलावर हुआ। उससे पहले वह रेड स्टोन आर्मी के सेनापति अखोटा को मार चुका था और अंडीलो अखोटा के शरीर में घुस गया था, अतः अखोटा उसका साथ दे रहा था। अखोटा की लड़की नेलसी उसे प्यार करती थी। उधर निनजा ने एक चाल चलकर सरहद की तिलस्मी गुफा में ब्लैक स्टोन आर्मी के जादूगर कोडो का खात्मा करके उस पर भी कब्जा जमा लिया था। निनजा ने टेलीपैथी द्वारा जापान के एक वैज्ञानिक जोयोटा को वहां आने का संदेश भेज दिया था। इधर शोला ने वृन्दास्वामी को आग में जलाकर उसे खत्म कर डाला। भारी मार-काट मच गयी और जराकाका की खोपड़ी में गिंजा ने जराकाका का आह्वान किया। गिंजा सुरखाब का हुक्मरान था और सबसे बड़ा जादूगर था। उसने इस विपत्ति में सुरखाब के दूसरे बड़ों से सम्पर्क किया। जराकाका ने सूरीवान (शोला) का समर्थन करते हुए दरगाह का स्थान छोड़ दिया। जराकाका का विश्वास था कि अल्तास की धरती से खौफनाक दरिन्दे (डायनासोर) हमला करके तबाही मचा देंगे क्योंकि अल्तास सदियों से चली आने वाली इस व्यवस्था में तब्दीली नहीं चाहता। वह नहीं चाहता कि सुरखाब का तिलस्म तोड़कर इसके रास्ते आम लोगों के लिये खोल दिये जायें। इसी शैतान अल्तास की क़ैद में सुरखाब देवी रहती थी, जिसे बारह साल में एक रात के लिये आज़ाद किया जाता था। जराकाका ने बताया कि सूरीवान (शोला) सारी मान्यतायें और तिलस्म तोड़ डालेगा। जराकाका दरिन्दों के हमले की रोकथाम के लिये अल्तास पहाड़ की ओर कूच कर गया और गिंजा ने दरगाह को एयर टाइट करके सारे रास्ते जाम कर दिये। उसने जादुई ग्लोब के जरिये सुरखाब के दूसरे बड़े बलोची से सम्पर्क किया जो सरहद के बाहर पड़ाव डाले, सरहदी गुफा खुलने का इन्तजार कर रहा था। गिंजा ने उसे बताया कि वृन्दा मारा गया और जराकाका ने दरगाह का स्थान छोड़ दिया। बलोची ने जल्दी ही पहुंचने का आश्वासन दिया। गिंजा ने एक और बड़े सिंगही से सम्पर्क किया। वह समुद्री मार्ग से आ रहा था। थारसा से उसका सम्पर्क नहीं हो पाया। शोला दरगाह के बन्द दरवाजों को खोलने की कोशिश में नाकाम होने के बाद सरहद की तरफ कूच कर गया। वहां से जब वापसी हुई तो उसके साथ निनजा और वैज्ञानिक जोयोटा भी था। जिन लोगों को नरबलि के लिये लाया गया था, उन्हें सरहद पार करा दी गयी। रूमी ने सरहद पार नहीं की। वह अभी तक गिंजा के हरम में थी और अब जंग में शोला का साथ देना चाहती थी।
जोयोटा ने सुरखाब में जादू को नष्ट करने व लिये कम्प्यूटर द्वारा वायरस छोड़ दिया। अब गिंजा का जादू भी ठप्प हो गया। अब कमान शोला के हाथ में थी। रैड स्टोन आर्मी उसके साथ थी। वृन्दा के बचे-खुचे साथियों ने जो आतिशी हथियारों से लैस थे, एक सुरंग में पनाह ले ली थी। उनसे युद्ध शुरू हो गया। बलोची एक खुफिया रास्ते से दरगाह में पहुंच गया। निनजा पर बलोची के कुछ अहसानात थे। जब वृन्दा ने निनजा को कोयले की मूर्ति बना डाला था तब बलोची उस जगह खजानों की तलाश में पहुंचा था और उसने निनजा में जान फूंक दी थी। उसी जगह बलोची को गोली का भी कंकाल मिला था। यह कंकाल एक ताबूत में रखा था और उसके साथ था। जादूगरों की सिद्धपीठ में वह गोली को जिन्दा करना चाहता था। दरगाह में पहुंचते ही बलोची ने गिंजा का खात्मा कर दिया और दरगाह के रास्ते खोल दिये। उसने निनजा से मुलाकात की और दरगाह पूरी तरह उनके नियन्त्रण में थी। बलोची ने बताया कि सिंगही को भी खत्म करना होगा, जो वहां पहुंचने वाला था।
ये सब तैयारियां चल ही रही थीं कि पूर्णमासी की एक रात आ गयी जब अल्तास के तिलस्मी द्वार खुल जाते थे और सुरखाब बाहर आती थी, लेकिन उस रात सुरखाब तो नहीं आयी अलबत्ता डायनासोरों ने हमला कर दिया। उससे पहले शोला को जोयोटा ने कम्प्यूटर द्वारा ट्रांसमिट करके वायरस के साथ अल्तास की रहस्यमय धरती में भेज दिया। डायनासोरों से निनजा की जंग हुई। जोयोटा ने क्रिस्टल की एक ऐसी गोली इजाद कर दी थी जिसके मस्तिष्क में घुसते ही वह जीवधारी अपनी पैदाइशी उम्र की शक्ल में पहुंच जाता था। इसी गोली की मदद से डायनासोरों को पैदाइशी उम्र में पहुंचाकर उनका खात्मा कर दिया गया।
शोला जब अल्तास की धरती में पहुंचा तो क्रिस्टल की वजह से बच्चे की शक्ल में आ गया। दो गौरिल्ले उसे उछाल रहे थे कि एक रेप्टाइल ने उसे लपक लिया और रेप्टाइल उसे दबोचकर समुन्दर की तरफ उड़ गयी। रेप्टाइल ने शोला को अल्तास की एक आबादी अमरीना में छोड़ा। शोला को एक औरत ने पालना शुरू कर दिया। शोला एक दिन में एक वर्ष बढ़ने लगा और फिर चंद ही रोज में वह अपनी वास्तविक उम्र में आ गया। इस बात ने सारे अमरीना में अफवाहों का बाजार गर्म कर दिया कि वह देवता की संतान है। इस धरती पर सूरज आकाश के ठीक मध्य उदय होता था और एक ही जगह स्थिर रहता था फिर वहीं अस्त हो जाता था। यहां दो ताकतवर रियासतें थी। एक अमरीना और दूसरी सबरीना। दोनों में दुश्मनी थी और उनमें जंग होती रहती थी। अमरीना का धर्मगुरु काहन अजरंग था, जो देवता अल्तास का प्रतिनिधि बताया जाता था। सबरीना में भी वैसा ही एक काहन सबरंग था। अजरंग सबरीना को अपने आधीन करना चाहता था लेकिन सबरंग सबसे बड़ा रोड़ा था। वह सबरंग का खात्मा करना चाहता था। सबरीना में ही हीरो का एक पहाड़ था। बताया जाता है कि रानी सुरखाब उसी पहाड़ में कैद थी। वायरस के कारण यहां का जादू भी ठप्प हो गया था। राजा की अचानक मौत हो गयी तब अजरंग ने शोला से गुप्त समझौता करके उसे हुक्मरान बनवा दिया। अजरंग भी शोला से खौफजदा था। यह चंद ही दिनों में बच्चे से जवान हुआ था और उसके आते ही अजरंग का जादू भी ठप्प पड़ गया था। अजरंग चाहता था कि शोला सबरीना पर हमला करके सबरंग को गिरफ्तार कर ले। शोला को यह जंग लड़नी ही थी क्योंकि वह चमकीले पत्थरों के उस पहाड़ तक पहुंचना चाहता था, जहां सुरखाव कैद थी। यहां सोने की इमारतें थीं—हीरों के पहाड़ थे जिसकी इनके नजदीक कोई अहमियत नहीं थी।
जंग हुई। सबरीना फतह कर लिया गया लेकिन सबरंग हाथ नहीं आया, शोला को सबरीना की आर्मी ने कैद कर लिया। शोला वहां से फरार होकर वापस अमरीना पहुंच गया। फिर अजरंग से जंग छिड़ गयी। अजरंग की शक्ल जब शोला ने देखी तो चौंक पड़ा—वह वृन्दास्वामी का हमशक्ल था। शोला ने उसका कत्ल कर डाला। शोला को मालूम हुआ कि अजरंग की दरिन्दों को डायनासोर बनाने की एक प्रयोगशाला भी उसी धरती पर कहीं थी। उसने सैकड़ों डायनासौर पैदा करके एक टापू में छोड़े हुए थे। अजरंग की मौत के बाद ये डायनासोर अमरीना और सबरीना पर हमलावर हो जाते और ऐसा ही हुआ। शोला उस वक्त सबरंग के सुल्तान का खात्मा करके हीरों के पहाड़ तक पहुंच गया था। पहाड़ में आग की एक खाई थी। शोला ने उसे पार किया और एक ऐसी जगह पहुंचा, जहां अल्तास देवता खुद विराजमान था। नंगधड़ंग जटाधारी साधू की हैवतनाक शक्ल के अल्तास ने शोला को बहुत-सी बातों का ज्ञान-दर्शन कराया। उसने बताया कि अजरंग इस धरती का बहुत बड़ा वैज्ञानिक था—उसने विशालकाय दरिन्दों की सेना बना डाली थी। जिन्हें वह फोर्थ जयमेन्शन के जरिये आदेश देता था और वह सब पूरी तरह उसके कंट्रोल में थे लेकिन उसकी मौत के बाद यह नियंत्रण खत्म हो गया था और डायनासोर इन्सानों की बस्ती में घुसकर तबाही मचा रहे थे। उसने बताया कि अब यहां इन्सानों की आबादियां खत्म हो जायेंगी। अल्तास ने सुरखाब की कहानी भी सुनायी। अल्तास का कहना था कि यह पाताललोक है और यहां के दैवी पुरुषों ने भू-लोक पर आने-जाने का तिलस्मी मार्ग बनाया हुआ था, जो सुरखाब की धरती पर खुलता था। सुरखाब की धरती को कवच में रखने की व्यवस्था कर दी गयी ताकि वहां कोई बाहरी मनुष्य न पहुंच सके। सुरखाब ने वहशी जंगलियों को एक सिस्टम, एक संविधान में बांध दिया गया था और वे देवी सुरखाब की पूजा करते थे। सुरखाब देवी पाताल की सबसे पहली महारानी थी और वह इन रास्तों से भू लोक में विचरण करने जाया करती थी। जंगली उसे देवी मानते थे। लेकिन बाद में ऐसी व्यवस्था कर दी गयी थी कि यह तिलस्मी रास्ता बारह साल में सिर्फ एक बार एक रात के लिये ही खुल सके और उस रात सुरखाब की धरती पर देवी के दर्शन हो सकें। ऐसी ही एक रात सुरखाब वहां गयी और जब लौटी तो अकेली न थी—भू लोक का पहला मनुष्य पाताल लोक में उतर गया था। उसका नाम सूरीवान था। सुरखाब ने इस पर ही बात खत्म न की बल्कि सूरीवान से शादी कर ली और सूरीवान को सुल्तान बना डाला। यह पाताल के संविधान में असहनीय घटना थी। अल्तास जो कि इस लोक की निर्णायक दैवी शक्ति थी, उसे हस्तक्षेप करना पड़ा। उस वक़्त अमरीना और सबरीना दो अलग रियासतें नहीं थीं, एक ही रियासत थी। सुरखाब को दन्डित किया गया, लेकिन वह उस वक्त गर्भवती हो चुकी थी। सुरखाब अल्लास का हुक्म नहीं टाल सकती थी। बारह साल बाद के उर्स में जब वह दर्शन देने पहुंची तो सूरीवान को बाहर की दुनिया में छोड़ आयी और वहीं उसने अपने बच्चे जराकाका को भी उसी रात जन्म दे दिया। इसीलिये सुरखाब में जराकाका की मान्यता हो गयी और वह सबसे बड़ा जादूगर कहलाया। सुरखाब वापस अकेली लौटी, लेकिन वह सूरीवान के लिये तड़पने लगी। वह दोबारा सूरीवान को पाताल ला सकती थी, इसी सम्भावना को देखते हुए सुरखाब को क़ैद करके दन्डित कर दिया गया। उसे हीरे की मूर्ति की शक्ल दे दी गयी। यह मूर्ति बारह साल में एक बार इन्सानी शक्ल में आती थी। ऐसी व्यवस्था इसलिये की गयी ताकि सुरखाब की धरती की मान्यता भी बरकरार रहे। सुरखाब को एक रात के लिये वहां उतारा जाता फिर वापस खींच लिया जाता। यह क्रिया सम्मोहन में होती थी। वापस आते ही सुरखाब फिर से चमकीले पत्थर का बुत बन जाती थी। सूरीवान सुरखाब के वियोग में मर खप गया। जबकि सुरखाब अब भी वह सजा भुगत रही थी। यह थी सुरखाब और सूरीवान की प्रेम कथा। अल्तास के पास ही जराकाका की खोपड़ी मौजूद थी। उसने बताया कि जराकाका ने वहां घुसने की कोशिश की थी और उसे फनाह कर दिया गया। अल्तास का कहना था कि पाताल में अब प्रलय आ चुकी है, लेकिन उसे फिर से स्थापित किया जायेगा। वहां अब युग बदल रहा था, नये युग में सूरीवान और सुरखाब को जिम्मेदारी उठानी थी कि वे नया निर्माण करें और अल्तास भी फिर से मनुष्य के अवतार में जन्म लेगा। अल्तास के अनुरोध पर शोला ने उसी के खंजर से उसका सिर काट दिया और अल्तास धुएं की लकीर बनकर फिज़ा में विलीन हो गया। सुरखाब को आजादी मिल गयी। वह अपनी असली शक्ल में आ गयी। शोला ने कुछ वक़्त सुरखाब के साथ उन्हीं पहाड़ों में बिताया। पहाड़ों में एक जगह सूरीवान के हथियारों का जखीरा भी रखा था। एक रायफल और दो रिवॉल्वर भी थे। एक नक्शा और कम्पास भी था। अब इस धरती के अन्य रहस्यमय हिस्सों के बारे में शोला सुरखाब से जानकारी लेने लगा। एक दिन ओगीरा (सेनापति) वहां अपने कुछ साथियों के साथ आया। उसने बताया कि दरिन्दों ने सब तबाह कर दिया है और वह अपने बचे-खुचे साथियों के साथ पलोठा की तरफ कूच कर रहा है। पलोठा में कुछ वहशी इंसानों की आबादियां थीं। ओगीरा के जाने के बाद शोला ने नये युग के निर्माण की तैयारी शुरू कर दी। वह अब अपनी दुनिया में नहीं जाना चाहता था। उसने अपनी सोच से वृन्दास्वामी का तो खात्मा कर ही दिया था और वही उसके जीवन का मकसद था। अब बाहरी दुनिया में उसके लिये कुछ भी नहीं था।
एक दिन सुरखाब पहाड़ से बाहर निकली तो उस पर दरिन्दों ने हमला कर दिया। इससे पहले कि शोला उसे बचाता, एक रेप्टाइल सुरखाब को दबोचकर उड़ गयी। अब शोला सुरखाब की तलाश में दरबदर भटकने के लिये मजबूर हो गया था। भटकते-भटकते उसे ओगीरा का एक कप्तान पैरो मिला जो फटेहाल था और कुछ सगोथर (गौरिल्नुमा आदमी) उसका पीछा कर रहे थे। शोला ने बूढ़े पैरों की सगोथरों से जान बचायी—तब पैरो ने बताया कि वह अपने कुछ साथियों के साथ ओगीरा की तलाश में निकला था और माहारों ने उसे पकड़ लिया, वह अकेला बचा था और किसी तरह उनकी कैद से भागने में कामयाब हो गया था। माहोर दानसल डायनासोरों की एक छोटी नस्ल थी और संगोथर उनके गुलाम सैनिक थे। सुरखाब की तलाश में शोला बाद में माहोरों की आबादी मोतरा में पहुंचा, जहां उसे गिरफ्तार कर लिया गया। शोला ने यहां भी अपनी ताकत का डंका बजा माहोरों से सौदेबाजी कर ली। सुरखाब को उनकी ही कौम की रेप्टाइल उठाकर लायी थी, जिसे माहोरों ने अपने एक दोस्त होजा को दान दे दिया था। शोला माहोरों की बस्ती से रुखसत हो गया। उसने माहोरों के एक जादूगर को समझौते की शर्त के अनुसार एक जादू सिखा दिया था। यह जादू एक धमाके की शक्ल का था। धमाका होगा और कुछ दूर मौजूद जानदार शै खत्म। दरअसल वह एक रिवॉल्वर था, जो शोला ने माहोरों के जादूगर को दे दिया। शोला वहां से निकलकर माहोरों के पवित्र मन्दिर ताशा में जा घुसा। ताशा अजरंग की प्रयोगशाला थी। उसने इसी जगह डायनासोर बनाये थे। इसी जगह माहोरों का पवित्र धर्मग्रंथ रखा हुआ था। शोला यह सब देख ही रहा था कि अचानक माहोरों का जादूगर वहां पहुंच गया और उसने शोला पर रिवॉल्वर से फायर कर दिया—शोला ने भी गोली चला दी। ठीक उसी वक्त उसे ट्रांसमिट करके जराकाका की दरगाह में वापस बुला लिया गया।
जराकाका की दरगाह में वापस आने के बाद शोला को सारी बाजी ही पलटी नजर आयी। जिस वृन्दास्वामी को वह कत्ल कर चुका था, वह जीवित था और सब कुछ उसके नियंत्रण में था। उसके साथ सिंगही और बलोची भी थे। जोयोटा को उन्होंने कैद कर लिया था। काफी अरसे तक कम्प्यूटर से शोला का सम्पर्क कटा हुआ था। इसलिये सिंगही और वृन्दास्वामी के पास अल्तास की दुनिया की आधी-अधूरी जानकारी थी। उन्होंने निनजा को उसी दुनिया में ट्रांसमिट कर दिया था। जादू लॉक करने का वायरस जोयोटा ने छोड़ा था, उसे नष्ट करके जादू बहाल कर दिया गया था। शोला जिसे रूमी समझता था वह थारसा थी। वृन्दा ने शोला को जादू की जंजीर से बांध दिया था और होहारा को भी उसके साथ उसी जंजीर से बांध दिया था। अब शोला होहारा का कैदी था। यहां तक कि कथा का पूरा विवरण जानने के लिये पढ़ें- देवा ठाकुर के उपन्यास ‘शोला का डंका’, ‘डंके की चोट’ और अब पेश है ‘पाताल में डंका’। ये सब उपन्यास बुकमदारी पर उपलब्ध हैं।
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Additional information
Book Title | Patal Mein Danka : पाताल में डंका |
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Isbn No | |
No of Pages | 287 |
Country Of Orign | India |
Year of Publication | |
Language | |
Genres | |
Author | |
Age | |
Publisher Name | Ravi Pocket Books |
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