पगली माँगे पाकिस्तान
“केशव....केशव...।”
घबराई हुई-सी सोफिया ने बेडरूम में कदम रखा।
“क्या बात है सोफी...?” केशव पण्डित ने चारमीनार का कश लगाकर मुंह तथा नाक के छिद्रों से उसका कसैला धुआं उगलते हे पूछा—“परेशान लग रही हो...सब खैरियत तो है?”
“खैरियत ही तो नहीं है।” सोफिया की हरी आंखों से बेचैनी व परेशानी शहद की मानिन्द टपक रही थी। गुलाबी मुखड़ा मलीन पड़ा हुआ था—“वो....वो....डाकू बब्बन चौधरी...।”
“क्या हुआ डाकू बब्बन चौधरी को? अरे हां...आज तो उसकी फांसी की डेट थी। आज सुबह उसे तथा उसके तीन साथियों मलखान, सलीम और गज्जा को फांसी पर लटका दिया...।”
“नहीं केशव....नहीं।” केशव का वाक्य काटकर सोफिया कह उठी—“यही तो मैं तुम्हें बतलाना चाह रही हूं कि बब्बन चौधरी व उसके साथियों को फांसी नहीं दी जा सकी। वे लोग पिछली रात ही किसी तरह जेल से फरार होने में सफल हो गये हैं।”
“क्या कह रही हो!” केशव पण्डित झटके से बेड पर सीध होकर बैठ गया तथा उसने सिगरेट का टुकड़ा साईड टेबल पर रखी एशट्रे में मसल दिया।
“मैं ठीक कह रही हूं। टी.वी. पर बराबर यह खबर आ रही है...बार-बार रिपीट की जा रही है। न्यूज चैनल वाले जेल की सुरक्षा व्यवस्था का मखौल उड़ा रहे हैं...उसे कोस रहे हैं। कितनी बड़ी बात है कि फांसी की सजा पाये चार कैदी, अपनी फांसी के समय से केवल चन्द घन्टे पहले जेल से फरार हो गए और जेल का प्रशासन कुछ ना कर सका। सारी सुरक्षा व्यवस्था खोखली साबित हुई।”
“खैर! जो हुआ, सो हुआ सोफी! लेकिन मुझे विश्वास है कानून जल्द ही बब्बन चौधरी को पुनः बीहड़ों से खींचकर फांसी के तख्ते पर खड़ा कर देगा। वह चाहे कितनी कोशिश कर ले, कितना भाग ले, लेकिन कानून के लंबे हाथों से बच नहीं सकेगा। उसे अपने गुनाहों की सजा तो मिलनी ही है।”
“अब यह इतना आसान नहीं होगा केशव!” बोली सोफिया—“बब्बन चौधरी एक दुर्दान्त और बेरहम डाकू ही नहीं, बेहद चालाक भी है। उसने ना जाने कितनी हत्याएं कीं? कितनी औरतों का सुहाग तथा मांओं की गोद उजाड़ी है? यह तो तुम्हीं थे केशव, जिसने अपने साहस, दिलेरी व दिमागी शतरंज के बल पर उसे गिरफ्तार करवाया तथा अदालत में खुद उसके खिलाफ मुकदमा लड़कर उसे फांसी की सजा दिलवाई। मगर....।”
“मगर क्या सोफी....?”
“मैं वो दिन नहीं भूल सकती केशव...जब जज साहब ने बब्बन चौधरी और उसके साथियों को सजा सुनाई थी। उस रोज मैं, चांदनी, करतार सिंह तथा राजन भइया अदालत कक्ष में मौजूद थे। मौत की सजा सुनकर उस दस्यु ने भयभीत होने के स्थान पर जोरदार कहकहा लगाया था। फिर वो दरिन्दा तुम्हें खूनी आंखों से घूरता हुआ बोला था कि उसे दुनिया की कोई भी ताकत फांसी पर नहीं लटका सकती। वो बहुत जल्द जेल की चारदीवारी से बाहर होगा और तुमसे बदला लेगा। उस रोज वो चीख-चीख कर तुम्हें जिन्दा ना छोड़ने की कसम खा रहा था केशव....।”
“तो तुम इसी बात से डरी हुई हो?” केशव पण्डित ने सोफिया को बांहों में भरते हुए कहा।
“क्या मेरा डरना स्वाभाविक नहीं है केशव? तुमने तो उसे फांसी के फंदे पर पहुंचा ही दिया था। ऐसे लोग अपनी दुश्मनी भूलते नहीं हैं। पता नहीं वो दरिन्दा तुम पर कब अटैक कर दे?”
नीली आंखों वाले के गुलाबी होठों पर मुस्कान रेंगी।
उसने सोफिया की ओस से भीगी-सी थरथराती गुलाब की पंखुड़ियों पर एक चुम्बन अंकित किया तथा बोला—“तुम्हें चिंता करने की जरूरत नहीं है सोफी....। ईश्वर ने मुझे जितनी जिन्दगी दी है, उससे पहले मुझे कोई नहीं मार सकता। एक क्या, यदि दस बब्बन चौधरी भी मिलकर चाहें तो तुम्हारे सुहाग का बाल भी बांका नहीं कर सकते। अब जरा मुस्कुराकर दिखलाओ....मुस्कुराओ।” कहते हुए केशव ने सोफिया को गुदगुदा दिया।
बरबस ही सोफिया खिलखिला कर हँस दी।
“तुम अपने प्यारे-प्यारे हाथों से एक कप चाय बनाकर लाओ।” केशव उसे बांहों के घेरे से आजाद करता हुआ बोला—“तब तक मैं तैयार होता हूं। आज एक मुकदमे के सिलसिले में जल्दी कोर्ट पहुंचना है।”
“मैं नाश्ता तैयार करती हूं।”
“नाश्ता रहने दो....वो मैं कचहरी में कर लूंगा।”
सोफिया कमरे से बाहर निकल गई।
केशव ने बिस्तर त्याग कर बाथरूम का रुख किया ही था कि तभी फोन की घन्टी बजने लगी। उसने फोन का रिसीवर उठाया तथा बोला—“हैलो....केशव पण्डित स्पीकिंग।”
“नमस्कार पण्डित जी....मैं अनिल यादव बोल रहा हूं।”
“ओह! यादव भाई...कहो, सुबह-सुबह कैसे फोन किया?”
“एक बहुत बुरी खबर है...पण्डित जी।”
“तुम्हारा संकेत शायद बब्बन चौधरी और उसके साथियों के जेल से फरार होने की तरफ है?”
“जी नहीं। मैं जानता हूं कि यह खबर तो टी.वी. अथवा किसी अन्य माध्यम से आप तक पहुंच चुकी होगी, दरअसल जो खबर मैं आपको देने जा रहा हूं, वो संबन्धित तो इसी से है लेकिन इससे भी बुरी है।”
“ऐसी क्या खबर है यादव भाई?” केशव पण्डित के चेहरे पर कौतूहलता एवं उलझन के भाव उभरे।
“बब्बन चौधरी तथा उसके साथियों ने चालीस छोटे-मासूम बच्चों को ले जा रही एक स्कूली बस को किडनैप कर लिया है। अब वो डिमांड कर रहे हैं कि केशव पण्डित को उनके हवाले किया जाये, अन्यथा वो सारे बच्चों को मार डालेंगे।”
“ओह!” केशव पण्डित के चेहरे पर गहन गम्भीरता कुंडली मार गई—“तो यह बात है!”
“सिर्फ इतना ही नहीं। उन्होंने धमकी दी है कि अगर ग्यारह बजे तक केशव पण्डित उनके हवाले नहीं किया गया तो वह ग्यारह पांच से एक-एक बच्चे की हत्या करना शुरू कर देंगे और हर पांच मिनट के अन्तराल पर एक बच्चे को मारते जायेंगे। उन्होंने आपको अकेला और निहत्था रोड पर बुलाया है तथा वो स्कूली बस भी वहीं पास के जंगलों में खड़ी कर रखी है। हालांकि पुलिस ने उस पूरे इलाके को घेर लिया है, परन्तु कोई भी बस के करीब जाने का साहस नहीं कर पा रहा है....आखिर सवाल चालीस मासूम जिन्दगियों का है।”
“मैं भी अपने बारे में नहीं बल्कि उन परिवार वालों के बारे में सोच रहा हूं जिनके घर के वे चिराग हैं....सुबह कैसे खुशी-खुशी उन लोगों ने अपने बच्चों को स्कूल के लिए विदा किया होगा! अब जब उन्हें इस बारे में पता चलेगा तो उनका क्या हाल होगा यादव भाई....?”
“उन परिवारों में तो कोहराम मच जाएगा पण्डित जी...।”
“खैर! डोंट वरी....मुझे अपनी जिन्दगी की परवाह नहीं है यादव भाई। मैं उन बच्चों को हर हाल में बचाऊंगा।” कहने के साथ केशव पण्डित ने रिसीवर रख दिया।
पलटा तो सोफिया को चाय का प्याला लिए पीछे खड़े पाया।
“क्या बात है केशव? कोई खास खबर?” संदिग्ध नज़रों से केशव पण्डित को देखते हुए सोफिया ने पूछा।
केशव ने बतलाया।
सुनकर सोफिया का चेहरा अति गंभीर होता चला गया था।
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“केशव....चीफ मिनिस्टर साहब तुमसे मिलने आये हैं।” सोफिया ने आकर सूचना दी—“उनके साथ कुछ पत्रकार तथा अन्य लोग भी हैं, जो उस अपह्रत बस के बच्चों के गार्जियन लगते हैं।”
“आओ—उनसे मिल लेते हैं।” केशव बाहर की तरफ बढ़ा। सोफिया उसके पीछे थी।
बाहर, बंगले के लॉन में लोगों की अच्छी खासी भीड़ जमा थी।
केशव तथा सोफिया के बाहर कदम रखते ही न्यूज चैनलों के कैमरे चालू हो गए थे।
सी.एम. शिवराज पाटिल ने केशव पण्डित से हाथ मिलाया। सोफिया को नमस्ते किया तथा बोले—“हम एक विशेष प्रार्थना लेकर यहां हाजिर हुए हैं पण्डित जी!”
“मुझे मालूम है सी.एम. साहब, आपको इस सम्बन्ध में कुछ कहने की आवश्यकता नहीं।” चारमीनार का रसिया मुस्कुराया—“डाकुओं ने सरकार से मेरी डिमांड की है। मैं वहां जा रहा हूं। अकेला और निहत्था। आपमें से कोई भी चिंता ना करे। मेरे रहते उन मासूमों में से किसी एक का बाल भी बांका नहीं हो सकता।”
तभी एक सूटेड-बूटेड अधेड़ आगे बढ़ा तथा आंखों में आंसू भरकर वह हाथ जोड़कर केशव से बोला—“उस बस में मेरा इकलौता बेटा है पण्डित जी! मेरा इकलौता सहारा। मेरे बुढ़ापे की लाठी। इसी तरह यहां मौजूद हर मां-बाप के जिगर के टुकड़े उस बस में फंसे हुए हैं, जिन्हें लेकर डाकुओं ने शर्त रखी है कि सरकार आपको उनके हवाले कर दे, अन्यथा वे उन्हें मार डालेंगे। लेकिन हम सब आपसे यह कहने आये हैं पण्डित जी! बेशक डाकू हमारी औलादों को मार डालें, लेकिन आप खुद को उन दरिन्दों के हवाले ना करें। अरे...वो तो हमारी औलादें है—लेकिन आप तो इसे देश के बेटे हैं। भारत मां के लाडले हैं। गरीबों के मसीहा, मजलूमों के सहारा हैं। कानून की वो बुलन्द और अटल मीनार जिस पर जितना भी गर्व किया जाये, कम होगा। देश को आपकी जरूरत है पण्डित जी—आप पर हम अपनी एक औलाद तो क्या दर्जनों औलादें कुर्बान कर सकते हैं। प्लीज पण्डित जी....आप वहां मत जाइये।”
“हां....हां....आप वहां मत जाइये।” एक साथ दर्जनों औरत-मर्दों के स्वर गूंजे—“मर जाने दीजिए हमारे बच्चों को! कुर्बान हो जाने दीजिए आप पर! हमें अपने बच्चे नहीं, केशव पण्डित चाहिए....।”
केशव के प्रति लोगों का यह प्यार देखकर सोफिया की आंखें सजल हो उठी थीं। उसने अपना चेहरा दूसरी तरफ घुमा लिया तथा चुपके-चुपके आंसू पोंछने लगी।
जबकि कानून के बेटे के होठों पर मुस्कान थी।
दृढ़ निश्चय से पूर्ण मुस्कान!
“आप लोगों ने मुझे इतना सम्मान दिया, मुझसे इतना प्यार करते हैं, यह मेरे लिए गौरव की बात है।” बोला केशव पण्डित—“आपका यही प्यार मेरी जिम्मेदारी को और बढ़ा देता है। बस में जो फंसे हुए हैं वो आपके नहीं मेरे बच्चे हैं—और एक पिता होने के नाते उनके प्रति मेरा जो कर्त्तव्य बनता है, वो मैं अवश्य पूरा करूंगा। आप विश्वास रखिए, जो होगा अच्छा ही होगा....बाकी सब आप लोग ईश्वर पर छोड़ दीजिए।”
“हम लोगों की तरफ से भी और अपनी तरफ से भी यही प्रार्थना लेकर आये थे पण्डित जी, कि आप वहां ना जाये। सी.एम. शिवराज पाटिल बोले—“हम अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहे हैं कि बच्चों को हिफाजत के साथ डाकुओं के चंगुल से छुड़ा लें—और हमें पूरी उम्मीद है कि हमारे कमाण्डोज इसमें जरूर सफल रहेंगे।”
“आपको उम्मीद ही तो है सी.एम. साहब! लेकिन आप यह बात दावे के साथ तो नहीं कह सकते।” नीली आंखों वाले ने सी.एम. की आंखों में झांका—“आप मुझे गारंटी दीजिए कि एक भी बच्चे का बाल बांका नहीं होगा। मैं अभी अपना निर्णय वापस लेने को तैयार हूं।”
सी.एम. बगलें झांकने लगे।
उनसे कोई जवाब देते नहीं बन पड़ा।
“देखिए सी.एम. साहब।” केशव ने कहा—“इस समय हालात का तकाजा यही है कि डाकुओं की शर्त मानकर बच्चों को छुड़ा लिया जाये। आगे जो होगा, वो देखा जायेगा।”
फिर वहां मौजूद लोग विरोध ही करते रह गए। लेकिन पर्वत को क्या कोई हिला सका है, जो केशव पण्डित को अपने इरादे से हिला देता!
तदुपरांत केशव उन सबों के सामने ही अपनी मर्सीडीज में बैठकर वहां से रवाना हो गया था। कार वह स्वयं ही ड्राइव कर रहा था।
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