One Shot : वन शॉट
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नया संशोधित संस्करण
रोहन रात्रा एक बेगैरत, बदचलन और बदकिरदार शख्स था जो जब एक सर्द स्याह रात शहर के हाईवे से मुर्दा बरामद हुआ तो उसका भाई कातिल की तलाश में अकेला ही निकल पड़ा। आखिरकार तो ये उसका सलीब था जिसे उसने अकेले ही ढोना था।
प्रस्तुत उपन्यास के सभी पात्र एवं घटनायें काल्पनिक हैं। किसी जीवित अथवा मृत व्यक्ति से इनका कतई कोई सम्बन्ध नहीं है। समानता संयोग से हो सकती है। उपन्यास का उद्देश्य मात्र मनोरंजन है। प्रस्तुत उपन्यास में दिए गए हिंसक दृश्यों, धूम्रपान, मधपान अथवा किसी अन्य मादक पदार्थों के सेवन का प्रकाशक या लेखक कत्तई समर्थन नहीं करते। इस प्रकार के दृश्य पाठकों को इन कृत्यों को प्रेरित करने के लिए नहीं बल्कि कथानक को वास्तविक रूप में दर्शाने के लिए दिए गए हैं। पाठकों से अनुरोध है की इन कृत्यों वे दुर्व्यसनों को दूर ही रखें। यह उपन्यास मात्र 18 + की आयु के लिए ही प्रकाशित किया गया है। उपन्यासब आगे पड़ने से पाठक अपनी सहमति दर्ज कर रहा है की वह 18 + है।
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वन शॉट
प्राक्थन
सर्द दिसम्बर की उस घने कोहरे वाली गहरी स्याह रात में एक काली वैन तेज़ी से उस हाईवे पर दौड़ी जा रही थी जो दोनों ओर सिर उठाये खड़े पहाड़ों के बीच से गुज़रता हुआ आगे राजनगर और उससे और आगे ऊपर शिमागो तक जाता था। बारिश की बून्दों की हल्की फुहार, आसमान में रह-रहकर गरजते बादल, कड़कती बिजली और हवा में बसी महक बता रही थी कि बरसात बस आने को ही थी और ऐसे मौसम में - एक काली वैन, उस काली रात का हिस्सा बनी—मंथर गति से आगे सरकती एक सुनसान मोड़ पर आकर रुक गई।
अगले कुछ क्षण माहौल में सन्नाटा पसरा रहा।
फिर एकाएक गाड़ी का पिछला दरवाज़ा खुला और भीतर से धकेलकर कुछ बाहर फेंका गया। तत्पश्चात गाड़ी में पीछे बैठी सवारी ने दरवाज़ा बंद किया, फिर गाड़ी ने एक तीखा यू-टर्न काटा और वापिस राजनगर जाते रास्ते पर दौड़ गयी।
और ठीक उस वक़्त काले आसमान में घने बादल फट पड़े और तेज़ बरसात शुरू हो गई।
ऐसी घनघोर बरसात जो अपने साथ गुनाह के सभी सबूतों को अपने साथ बहा ले जाने पर आमादा थी।
¶¶
विनय रात्रा—जो मूलतः कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर की निष्पाप और निष्कलंक नौकरी करता दिखता था, लेकिन असल में—हिन्दुस्तान की उस ख़ुफ़िया एजेंसी में एजेंट था जिसका मुख्य काम मुल्क के लिए एस्पियोनेज और काउंटर एस्पियोनेज की गतिविधियों को संचालित करने का था। इस वक़्त वो अपने एक मिशन के तहत जोर्जिया की राजधानी तिब्लिसी में था और ऐन उस वक़्त अपनी कार में एयरपोर्ट को जाते काखेती हाईवे पर उड़ा चला जा रहा था। यकायक उसकी कार को पीछे से आई एक दूसरी कार ने ओवरटेक किया और ठीक सामने यूँ अड़ाकर रोका कि मजबूरन विनय को भी अपनी कार रोकनी पड़ी। विनय ने कार रोकी और सामने अड़ी खड़ी कार पर निगाह डाली। उसे इस वक़्त एयरपोर्ट पहुँचने की खासी जल्दी थी लेकिन फिलहाल यहाँ उसके सामने मौजूद हालात को देखते हुए ऐसा होता मुमकिन नहीं लग रहा था। तभी दूसरी कार के सारे दरवाज़े आगे-पीछे लगभग एक साथ खुले और उनमें से पांच नई उम्र के नौजवान उतरकर विनय के पास पहुंचे।
“बाहर निकलो”—उनमें से एक, जो दिखने में उनका लीडर था, ने विनय से कहा।
“क्यों—क्या बात है?”—विनय ने पुछा।
“तुमसे कुछ बात करनी है, सो कारे से बाहर निकलो।”
“करो” – विनय ने शांति पूर्वक कहा
“करते हैं, पहले बाहर निकलो”– लीडर बोला।
पहला नियम-
शांत रहो और चीज़ों को समझने की कोशिश करो।
“मैं कार में बैठे–बैठे भी सुन सकता हूँ”—प्रत्यक्षतः वो बोला।
“तुम सुन सकते हो, लेकिन यूं हम कह नहीं सकते” – लीडर ने लहजा सख्त किया – “इसलिए ये हुज्जत छोड़ो और बाहर निकलो।”
“मामला क्या है?”
“अभी सामने आता है, लेकिन तुम पहले बाहर निकलो।”
“देखो—मुझे फिलहाल कहीं और पहुँचने की जल्दी है”—विनय ने इस बार अपना स्वर बदला और कहा —“इसलिए मुझे लगता है कि हमें अपनी यह मुलाक़ात किसी और दिन के लिए मुल्तवी कर लेनी चाहिए।”
“सलाह अच्छी है, लेकिन बदकिस्मती से आज इसे अमल में नहीं लाया जा सकता”—सामने खड़े नौजवान ने जवाब दिया—“और अब तुम खुद बाहर निकलते हो या हम तुम्हें बाहर निकाल लें!”
दूसरा नियम—
अगर बचकर निकलना मुमकिन न हो तो काम जल्दी निपटाओ और आगे बढ़ जाओ।
विनय ने एक गहरी सांस ली और कार का दरवाज़ा खोलकर बाहर आ गया।
“कहो क्या बात है?”—उसने पूछा
“ज़्यादा कुछ नहीं—हम बस इतना चाहते हैं कि तुम अगले दो घंटे हमारे साथ यहीं बिताओ, फिर आगे उसके बाद तुम कहीं भी जाने के लिए आज़ाद हो।”
“देखो—मुझे कहीं पहुँचने की जल्दी है, सो क्या ही बेहतर हो कि तुम जो कुछ कहना चाहते हो एक ही बार में कह चुको।”
“तुमने शायद सुना नहीं कि मैंने क्या कहा।”
“क्या कहा?”
“तुम…अब…कहीं…नहीं…जा रहे।”
“बढ़िया”—विनय ने अपनी कार का दरवाज़ा खोलने का उपक्रम करते हुए कहा—“मुझे लगता है कि हमारे बीच जो भी बात होनी थी, हो चुकी।”
तभी एक दूसरे नौजवान ने आगे बढ़कर विनय की कार के दरवाज़े को सख्ती से थाम लिया।
मतलब साफ़ था।
विनय को अब उनसे छुटकारा पाए बगैर आगे बढ़ना नामुमकिन था।
तीसरा नियम—
तैयार हो जाओ और हमलावर को महसूस कराओ कि कैसे उसने आज एक गलत किस्सा छेड़ दिया है।
“कुछ लोगों की ये कुदरतन काबिलियत होती है कि कैसे वो हर बार खुद एक नई मुसीबत से जा टकराते हैं।”
“क्या मतलब?”—दरवाज़ा थामे खड़े युवक ने पूछा।
“मतलब ये प्यारेलाल”—विनय ने दृढ़ता से कहा—“कि अगर तुम लोगों ने फ़ौरन मेरा रास्ता नहीं छोड़ा तो तुम्हारे अगले कुछ महीने हस्पताल में यहाँ मुझसे हुई इस मुलाक़ात को याद करते, इस पल को कोसते हुए ही गुजरेंगे।”
“बोलते बहुत हो।”—एक अन्य ने आगे बढ़ते हुए कहा।
“बर्खुरदर—इस फानी दुनिया में सीखना तो सभी चाहते हैं, लेकिन उस सबक से हासिल तजुर्बे की कीमत अदा करना हरेक के बस की बात नहीं। मेरी मानो, वैसे ही ज़िंदगी दिक्कतों से भरी पड़ी है, तुम क्यों एक और का इज़ाफा करते हो!”
“क्या मतलब?”
“मतलब समझदारी दिखाओ, ये टिक्के भिड़ाना छोड़ो, रास्ता दो और मुझे जाने दो।”
“कहा न—तुम कहीं नहीं जा रहे।”—एक और ने आगे आते हुए कहा।
“तुम लोग मुझे नहीं रोक सकते इसलिए ज़िद छोड़ो।”
“तुम्हें लगता है कि तुम हम पाँचों से निपट सकते हो?”—सबसे पहले वाला बोला।
चौथा नियम—
लीडर की पहचान करो और उसे टारगेट पर सबसे पहले लो।
“पांच नहीं—सिर्फ तीन।”—विनय ने उनके लीडर दीखते शख्स से कहा।
“तीन!”—आगे खड़े हुए नवयुवक ने चुटकी ली—“गिनती भूल गए हो।”
“तीन—सिर्फ तीन।”—विनय ने अपनी कमीज़ की आस्तीनों को ऊपर चढ़ाया और उनके लीडर जैसे दिखते शख्स से संबोधित हुआ—“बस एक बार मैं लीडर को निकाल लूं—जो कि शायद तुम हो—तो मुझे आगे बस दो या तीन चमचों से ही गुज़ारा करना पड़ेगा क्योंकि”—विनय ने निराशा में सर हिलाते हुए कहा—“आखिरी दो तो हमेशा भाग जाते हैं।”
हालांकि वो पांच जने थे, लेकिन विनय जानता था कि ऐसे किसी भी हमलावर समूह में आमतौर पर एक रिंग लीडर होता है, कोई दो उसके पक्के चमचे और आखिरी दो ज्यादा से ज्यादा तमाशबीन होते हैं—सो एक बार पहले रिंग लीडर को और उसके बाद उसके दो करीबी चमचों को धूल चटा देने के बाद मामला ख़त्म हो जाता है।
आखिरी दो तमाशाबीन कभी इस लड़ाई में शामिल नहीं होते और इसीलिए मामला एक के खिलाफ पांच का नहीं बनता।
कभी नहीं बनता।
ज्यादा-से-ज्यादा एक के खिलाफ तीन का मामला था और विनय तीन को बखूबी संभाल सकता था।
“तुमने ये पहले भी किया है?”—अब तक वहां शांत खड़े शख्स ने पूछा।
“मुझे देर हो रही है और तुम आज खर्च हो जाने को उतारू हो।”—विनय ने सर झटकते हुए जवाब दिया।
तुम्हें लगता है कि तुम बहुत बहादुर हो!”—लीडर ने मानो अपने साथियों का हौंसला बढाते हुए कहा—“तुम अकेले हम पांच लोगों से नहीं निपट सकते।”
“खामखाँ खर्च हो जाओगे बर्खुरदर, पूरा पलस्तर उधड़ जाएगा। ऐसे किसी तजुर्बे से बचना बेहतर जो बाद में जिन्दगी भर नासूर की तरह चुभें।”
“बकवास बंद करो।”
“मेरी बात मानो, एक बार फिर बोलता हूँ” – विनय ने सख्ती से कहा – “रास्ता छोड़ दो।”
“कभी नहीं।”
“जैसी तुम्हारी मर्ज़ी”—विनय ने लम्बी सांस छोड़ी और कहा—“लेकिन हस्पताल के बिस्तर पर जब मेरी याद आये तो यह भी याद रखना कि जिद्द तुमने की थी वर्ना मैंने तो तुम्हे यहाँ से निकल जाने का मौका दिया था।”
“लगता है तुम ऐसे नहीं मानोगे।”—कहकर लीडर ने अपने एक चेले को आगे बढ़ने का इशारा किया।
चेला फ़ौरन दांत चमकाता आगे बढ़ा।
पांचवां नियम—
अगर लीडर सबसे पहले अपने किसी हल्के साथी को आगे बढ़ाए तो....पहला वार हमेशा सटीक होना चाहिए।
“बढ़िया—तो फिर इसे ख़त्म करते हैं”—विनय ने हमलावर पोजीशन में आते हुए कहा—“इत्तेफाकन कुछ सीखना एक सेलेक्टिव प्रोसेस होता है और आज तुम्हें इसका बड़ा दर्दनाक तजुर्बा होगा।”
चेला—जिसका नाम नोए कोस्तावा था—ने आगे बढ़कर विनय के मुंह को निशाना बनाते हुए एक ज़ोरदार वार किया। विनय, जो पहले ही इस हमले के लिए तैयार था, ने झुकाई देकर वार बचाया और पहले अपनी कोहनियों से हमलावर के चेहरे को ठोका और फिर अगले ही पल उसकी पसलियों में घूँसा जमा दिया। नोए तड़प उठा और चीख मारकर अपना पेट थामे सड़क पर उलट गया।
छठा नियम—
परिस्थितियों को तोलो और हमलावर को करारा सबक सिखाओ।
“न.. न.. कोई बात नहीं बच्चे, तुम ठीक हो।”—विनय ने कहा और नीचे झुककर उसकी एक बांह को एक ख़ास अंदाज़ में थामकर एक तेज़ झटका दिया। तत्काल हड्डी चटखने की “कड़ाक” सी हुई और नोए चीखें मारता सड़क पर उलटने-पलटने लगा।
विनय सीधा खड़ा हुआ और उसने बाकी बचे चार युवकों की ओर निगाह डाली। दो जने हैरत में जड़ थे कि कैसे उनका साथी इतनी आसानी से मार खा बैठा था और बाकी दो जने, जिनमें से एक उनका लीडर मिखेइल ज़ेविद भी था—के चेहरों पर अपमान से उभरा तेज़ गुस्सा था।
“गोर्गी!”—लीडर मिखेइल ने अपने दूसरे साथी को आवाज़ दी—“खत्म करो।”
लम्बे-चौड़े बदन वाला गोर्गी फ़ौरन आगे बढ़ा. हालाँकि वो अपने पहले साथी की पस्त हालत से सदमे में था लेकिन अब संभल चुका था। उसने विनय पर एक गहरी निगाह डाली और तय किया कि वो उससे निपट सकता था।
गोर्गी के मुंह से एक गुर्राहट निकली और उसने विनय पर छलांग लगा दी। विनय ने एक ओर झुकाई देकर न सिर्फ खुद को हमलावर के चंगुल में पड़ने से बचाया बल्कि उसी फुर्ती से उसकी जाँघों के बीच एक ज़बरदस्त किक जमा दी। तत्काल गोर्गी ने अपने दोनों हाथों को जाँघों के जोड़ पर जमाया और चीखें मारता सड़क पर उलट गया।
“दो गए।”—विनय ने लीडर की ओर देखते हुए कहा– “और बचा एक।”
लीडर मिखेइल ने पलटकर अपने साथ खड़े दो साथियों के चेहरों पर निगाह डाली। उन दोनों के चेहरों पर बारह बजे थे और खौफ की लकीरें वहाँ साफ़ देखी जा सकती थीं। मिखेइल ने अपने सूख आये गले में थूक निगला और बिना किसी चेतावनी के विनय पर दौड़ पड़ा, लेकिन विनय तैयार था। नतीजतन अगले दो मिनट बाद मिखेईल भी वहीँ सड़क पर अपने पहले दो साथियों के पास उलटता-पलटता चीखें मार रहा था।
सातवाँ नियम—
हमेशा रियेक्ट करो, क्रिया से दूर रहो।
“तो अब तुम दोनों में से कौन आ रहा है?”—विनय ने बाकी बचे दोनों गुर्गों की ओर देखते हुए पूछा।
दोनों ने पहले तो एक-दूसरे की ओर देखा, फिर नीचे सड़क पर पड़े अपने साथियों की हुई दुर्गति पर निगाह डाली।
“आओ—आ जाओ।”—विनय ने उन्हें पास बुलाने का इशारा करते हुए कहा– “मुझे भी ज़रा जल्दी है।”
दोनों ने फिर एक-दूसरे की ओर देखा और, आखिरकार फैसला किया।
दोनों फ़ौरन पलटे और वहां से निकल भागे।
विनय ने एक लम्बी सांस छोड़ी और पलटकर अपनी कार की ओर बढ़ते हुए धरती चाट रहे लीडर के पास आकर रुका। उसने अपनी जेब से पिस्तौल निकाल ली और उसे नीचे पड़े उस गैंग लीडर के घुटने पर रखते हुए बोला—“बर्खुरदर—जिन्दगी कीमती चीज़ है, जो सिर्फ एक बार हासिल होती है। अब ऐसी कीमती शै को यूँ ऐसे कामों में पड़कर बर्बाद करोगे तो कैसे चलेगा?”
आखिरी नियम—
कोई दया नहीं, कोई रहम नहीं।
“नहीं… प्लीज नहीं।”—लीडर की आँखों में खौफ़ उभरा।
“मैंने कहा था कि मुझे जल्दी है लेकिन तुम्हारी ज़िद ने मेरे दस कीमती मिनट बर्बाद कर दिए।”
“हमें इसके लिए पैसे दिए गए थे।”—वो गिडगिड़ाता हुआ बोला—“प्लीज़ गोली मत चलाना।”
“बच्चे, मैं नहीं चाहता कि तुम्हारी नौजवान पीढ़ी इस किस्म की शोर्टकट इनकम के फेर में पड़कर अपना भविष्य बिगाड़े, और इसीलिए तुम्हे सबक सिखाया जाना ज़रूरी है।”—यकायक विनय का स्वर सख्त हुआ—“अगली बार जब मेरे जैसा कोई नेकबख्त तुम जैसे किसी निक्कमे को कोई वाजिब सलाह दे तो उस पर कान देना। कान पर से मक्खी मत उड़ाना।”
“न...न...न... नहीं... प्लीज ऐसा मत करना।”—लीडर लगभग रोते हुए बोला।
“माफ़ करना दोस्त लेकिन, बदकिस्मती से मेरे धंधे में माफ़ नहीं, साफ़ किया जाता है।” —कहते हुए विनय ने ट्रिगर दबा दिया।
पिस्तौल से निकली उस एक ही गोली ने उसका घुटना फोड़ दिया।
मिखेइल दीदे फाड़ के चिल्लाया और दर्द के अतिरेक से उसकी आँखें मुंदने लगीं।
“माफ़ करना दोस्त।”—विनय ने रिवाल्वर की गोलियां निकालकर खाली रिवाल्वर को वहाँ से दूर उछालते हुए कहा—“निशाना चूक गया। आगे शायद तुम्हे बाकी की ज़िन्दगी बैसाख़ियों पर बितानी पड़े।”
दर्द से कराहते मिखेइल ने बेहोश होने से पहले सिर्फ इतना देखा कि विनय अपनी कार में बैठकर उसे ड्राइव करता वहां से जा रहा था। पीछे तीनों शातिर सड़क पर पड़े, चीखें मारते उन दस मिनटों की लड़ाई से हासिल अपने उस तजुर्बे के दम पर इतना तो समझ ही गए थे कि—ज़िन्दगी में कई तजुर्बे कई बार बदकिस्मती से बेहद कड़वे, बेहद भद्दे अहसास के साथ आते है।
¶¶
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Additional information
Book Title | One Shot : वन शॉट |
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Isbn No | 9798177894843 |
No of Pages | 318 |
Country Of Orign | India |
Year of Publication | |
Language | |
Genres | |
Author | |
Age | |
Publisher Name | Ravi Pocket Books |
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