नसीब का विधाता
सुनील प्रभाकर
“आप बार-बार थाने में आकर हमें शर्मिन्दा ही करती हैं रेशमा जी...।” इंस्पेक्टर शर्मा उंगलियों के बीच में फंसी सिगरेट को 'रोल' करते हुए बोला—“आपको सांत्वना देने को भी मेरे पास शब्द नहीं बचे हैं। मैं आज तक आपसे यही कहता रहा हूं कि मैं आपके पति को खोजने की पूरी-पूरी चेष्टा करूंगा। मैंने अपनी तरफ से चेष्टा भी की है। परन्तु...अब मैं आपसे क्या कहूं। जो सच्चाई है, आप उसे स्वीकारती ही नहीं हैं।”
उसकी आयु पच्चीस वर्ष से एक दिन भी ऊपर नहीं होगी।
सिंदूर मिले मक्खन-सा वर्ण, आंखें गहरी मृगी-सी, नासिका...सोन जूही-सी, अधर ऐसे...जैसे माणिक की सीपी।
अनिद्य, निर्दोष सौंदर्य और देहयष्टि फूलों से लदी डाल जैसी।
मृणाल भुजाएं—तराशी हुई उंगलियां।
उन्नत वक्ष।
कुल मिलाकर रूप-यौवन की जीती-जागती प्रतिमा थी वह, परन्तु कफन जैसी सफेद पोशाक में लिपटी हुई।
सौंदर्य प्रसाधन से वंचित होने पर भी उसके व्यक्तित्व में देवी जैसी पावनता व ओजस्वी तेज था।
“शर्मा जी...!” गुलाब की ताजी पंखुड़ियां हिलने से मोतियों की चमचमाती लड़ी अनावृत हुई और कानों में मिश्री-सी घोलता स्वर उभरा—“आप ही नहीं दुनिया वाले भी बोलते हैं कि मेरे पति नहीं रहे...स्वर्गवास हो गया है उनका। परन्तु मैं ऐसा नहीं मानती। उनके जीवित होने की आशा में ही मैं अपनी मांग में सिंदूर भरती हूं और मैंने गले से मंगलसूत्र भी नहीं निकाला है।”
“परन्तु...” मुंह में भरे सिगरेट के धुएं को गर्दन मोड़कर दूसरी दिशा में उगलने पर इंस्पेक्टर रोमेश शर्मा बोला—“नदी से पुलिस ने डैड बॉडी बरामद की थी—रेशमा जी।”
“इस बात की क्या गारंटी है कि वो डैड बॉडी मेरे हसबैंड दिनेश माथुर की ही थी...?” वह शर्मा की आंखों में झांकते हुए बोली—“वो डैमेज डैड बॉडी थी। मछलियों ने डैड बॉडी को किसी आइडेंटिफिकेशन लायक नहीं छोड़ा था। ना तो चेहरा ही सेव बचा था, ना ही डैड बॉडी पर कपड़े या जूते बचे थे। यहां तक कि रिस्ट वॉच, रिंग व चैन भी नहीं थी। न जाने किसकी डैड बॉडी होगी वह।”
“परन्तु वो डैड बॉडी रामघाट से बरामद हुई थी। किडनेपर ने भी तो पत्र में यही लिखा था कि वो मास्टर दिनेश माथुर का मर्डर करके डैड बॉडी को नदी में रामघाट पर डाल देगा। रही बात चेन, रिंग या रिस्ट वॉच की...तो उन्हें किडनेपर ने उतार लिया होगा। भला वो हजारों रुपयों की ज्वेलरी को कैसे छोड़ सकता था। उस डैड बॉडी का साइज आपके पति के जितना था। यहां तक कि फोरेंसिक रिपोर्ट के अनुसार उस डैड बॉडी या स्ट्रक्चर की उम्र तीस वर्ष यानी आपके पति की उम्र के बराबर थी। तभी तो पुलिस इस नतीजे पर पहुंची थी कि वो डैड बॉडी मिस्टर दिनेश माथुर की थी। यानी किडनेपर ने किलसकर उनका मर्डर कर दिया था। एक बात और भी है।”
“वो क्या?”
“उस हादसे को हुए लगभग पांच महीने हो गए हैं। अगर किडनेपर ने आपके पति का मर्डर नहीं किया था, यानी आपके पति जीवित होते तो वो आपके पास लौट आते। या किडनेपर आपसे फिरौती की डिमांड करता। उस डैड बॉडी के मिलने पर किडनेपर ने आपसे कोई संपर्क नहीं किया। करने से उसे लाभ भी क्या था? फिरौती मांगने का बेस तो उसने खत्म कर दिया था। मैं दिल को कड़ा करके आपसे कह रहा हूं कि आप झूठी आशा को त्याग कर सच्चाई को स्वीकार कर लीजिए। आप सच्चाई से कब तक भागेंगी आखिर? वन परसेंट भी तो चांस नहीं है आपके पति के जीवित होने का। यदि किडनेपर आपके पति को मारने की धमकी वाला पत्र नहीं भेजता, यदि हमें नदी से डैड बॉडी नहीं मिलती...तो उनके जीवित होने की आशा भी की जाती। यदि किसी चीज के मिलने की वन परसेंट भी संभावना हो तो...अंधेरे में भी लाठी घुमाई जाए। फिर पुलिस ने मिस्टर दिनेश की तस्वीरें अखबारों में निकलवाई हैं और आपने भी इनाम की घोषणा की है। इनाम भी पच्चीस लाख रुपए का है। जबकि किडनेपर ने फिरौती में सिर्फ दस लाख रुपए ही मांगे थे। यदि उसने आपके पति को जीवित रखा होता तो पच्चीस लाख के लालच में उन्हें लेकर सामने आ जाता, या किसी दूसरे माध्यम से रकम हासिल करने की चेष्टा करता वो।”
ऐसा लगा कि रेशमा नामक वो युवती बस रोने ही वाली है, परन्तु उसने स्वयं को संभाला तथा मोतिया दांतों से कुचले हुए होंठों को हिलाते हुए और रुंधे कंठ से बोली—“झूठी ही सही, अब तो मैं अपनी इस आशा को नहीं तोडूंगी कि मेरे पति जीवित हैं। उनकी मौत का गम बर्दाश्त कर पाना मेरे लिए मुश्किल है। मैं अन्त तक उनके लौटने की प्रतीक्षा करती रहूंगी, प्लीज आप एक बार फिर ट्राई कीजिए ना।”
इन्कार करने का साहस इंस्पेक्टर शर्मा में नहीं था—वो झूठी दिलासा के साथ बोला—“ठीक है। मैं मिस्टर दिनेश को खोजूंगा। मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि यदि वो सही सलामत हैं तो जल्द ही उन्हें आपके सामने ले आऊंगा मैं।”
“थैंक्यू इंस्पेक्टर।” वह उठ खड़ी हुई।
दोनों हाथ जोड़कर वह पलटी तथा टूटे हुए से कदमों से ऑफिस से बाहर चली गई।
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“चींऽऽ चींऽऽचिरड़...।”
ब्रेकों की चीखो-पुकार ने सबका ध्यान आकर्षित किया। हर किसी की दृष्टि आवाज की दिशा में उठी।
हर कोई सफेद इम्पाला की तरफ दौड़ पड़ा, जिसके आगे सड़क पर एक मानव शरीर औंधी अवस्था में सड़क पर फैला पड़ा था।
लोगों की भीड़ ने उस मानव शरीर को घेर लिया।
“इसके सिर पर बहुत तेज चोट लगी है...।” कोई बोला—“खून तेजी के साथ बह रहा है। यदि इसे जल्दी हॉस्पिटल नहीं पहुंचाया गया तो शायद मर ही जाएगा।”
“ये ससुरे गाड़ी वाले तो अंधे होकर चलाते हैं...।” कोई उत्तेजित होकर चीखा—“सड़क पर चलने वालों को तो कीड़ों-मकोड़ों जैसी अहमियत नहीं देते हैं। गाड़ी से बाहर निकालकर मारो...।” वह सफेद वस्त्रों में लिपटी जीती-जागती गुड़िया को गाड़ी से बाहर निकलते देखकर सिर्फ चुप ही नहीं हुआ, बल्कि उसके चेहरे पर शर्मिंदगी के भाव भी उभर आए।
“रे...रेशमा जी...।”
“अरे भाई...ये तो रेशमा जी हैं।”
कुछ लोगों के हाथ जुड़ते चले गए, तो कुछ ने मुंह खोलकर नमस्ते कही।
परन्तु रेशमा ने उस तरफ ध्यान नहीं दिया।
उसके चेहरे का रंग फक्क पड़ा हुआ था, तथा आंखों में आशंका व चिंता के भाव थे।
“मैं तो स्लो-स्पीड में ही ड्राइविंग कर रही थी...।” वो रूआंसे भाव से बोली—“ये शख्स अचानक ही गाड़ी के सामने आ गया। मैंने ब्रेक भी मारे—परन्तु एक्सीडेंट हो ही गया।”
“इसमें आपकी कोई गलती नहीं है रेशमा जी...।” उत्तेजित होकर गाड़ी वालों को कोसने वाला शख्स ही खुशामदी भाव से बोला—“भला आपकी इस ससुरे से कोई दुश्मनी थोड़े ही थी जी। ये आत्महत्या करने के लिए ही आपकी गाड़ी के सामने कूद गया होगा। आपको तो चोट नहीं लगी है रेशमा जी?”
“नहीं, मैं तो ठीक हूं। आप लोग इस बेचारे की चिंता कीजिए। प्लीज, इसे मेरी गाड़ी में लिटा दीजिए। इसे तुरंत हॉस्पिटल पहुंचाना जरूरी है।”
“आपकी गाड़ी गंदी हो जाएगी मैडम। हम इसे टैक्सी में डालकर सरकारी अस्पताल पहुंचा देते हैं।”
“ठीक है, आप इसे तुरंत ही टैक्सी में डालिए, परन्तु सरकारी हॉस्पिटल में नहीं। वहां इसकी सही केयर नहीं हो पाएगी। इसे हमारे प्राइवेट हॉस्पिटल में लेकर जाएंगे। मैं भी साथ चल रही हूं।”
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