नहीं मरेगा अभिमन्यु : Nahi Marega Abhimanyu
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Description
रीमा भारती का एक्शन और सस्पेंस से सराबोर हैरतअंगेज नया कारनामा - नहीं मरेगा अभिमन्यु
Nahi Marega Abhimanyu
Reema Bharti
Ravi Pocket Books
BookMadaari
प्रस्तुत उपन्यास के सभी पात्र एवं घटनायें काल्पनिक हैं। किसी जीवित अथवा मृत व्यक्ति से इनका कतई कोई सम्बन्ध नहीं है। समानता संयोग से हो सकती है। उपन्यास का उद्देश्य मात्र मनोरंजन है। प्रस्तुत उपन्यास में दिए गए हिंसक दृश्यों, धूम्रपान, मधपान अथवा किसी अन्य मादक पदार्थों के सेवन का प्रकाशक या लेखक कत्तई समर्थन नहीं करते। इस प्रकार के दृश्य पाठकों को इन कृत्यों को प्रेरित करने के लिए नहीं बल्कि कथानक को वास्तविक रूप में दर्शाने के लिए दिए गए हैं। पाठकों से अनुरोध है की इन कृत्यों वे दुर्व्यसनों को दूर ही रखें। यह उपन्यास मात्र 18 + की आयु के लिए ही प्रकाशित किया गया है। उपन्यासब आगे पड़ने से पाठक अपनी सहमति दर्ज कर रहा है की वह 18 + है।
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नहीं मरेगा अभिमन्यु
रीमा भारती
हुस्न की मल्लिका, परियों की शहजादी, दोस्तों की मुस्कान और दुश्मन को नानी याद दिला देने वाली हुस्न परी उर्फ आईoएसoसी की तेज-तर्रार जासूस रीमा रात बारह बज कर पन्द्रह मिनट पर क्लब से निकली और अपनी गाड़ी में बैठ सांय से निकल गई।
फ्रेण्ड की बर्थडे पार्टी अटैण्ड करके उसे अब अपने बंगले पर पहुंचने की लगी हुई थी।
वह गाड़ी को तूफानी गति से आगे बढ़ाती चली जा रही थी।
आधे रास्ते में पहुंचकर न चाहते हुए भी उसे गाड़ी में ब्रेक लगाने पड़े।
क्योंकि।
वास्तव में सड़क के बीचो-बीच कोई शख्स यूं पेट के बल लेटा था मानो सो रहा हो।
उस शख्स को देखते हुए इस बात का भली भांति आभास होता था कि अवश्य ही वह किसी भयंकर दुर्घटना का शिकार हुआ था।
रीमा उस समय तक नहीं जानती थी कि वह जीवित था या मर गया।
सड़क पर उसने उस बॉडी के करीब खून तो बहता देखा था।
मगर यह अभी नहीं कह सकती थी कि यकीनन उसे मौत अपनी आगोश में ले चुकी थी।
वह झट ब्रेक लगा गाड़ी से बाहर निकली।
तीव्रता सहित उस बॉडी के करीब पहुंची।
तत्काल अधीरतापूर्वक घुटनों के बल वह उसके करीब बैठ गई।
उसी पल बॉडी का कन्धा थामकर झट उसे करवट दिलाई।
करवट दिलाते ही वह चौंक गई।
वास्तव में उसके सामने अब एक जानी-मानी हस्ती का चेहरा स्पष्ट था।
यह शख्स कोई और नहीं, मुम्बई का माना हुआ बिल्डर विजय ठकराल था।
विजय ठकराल को देख आश्चर्य में पड़ गई।
उसके पेट में गोलियां लगी थीं।
अभी भी गर्म खून विजय ठकराल के पेट से लगातार बह रहा था।
रीमा ने झट उसका भारी-भरकम शरीर अपने बलिष्ठ बाजुओं पर उठाया।
तत्पश्चात्।
वह उसे अपनी गाड़ी में डालकर हॉस्पिटल ले गई।
¶¶
ऑपरेशन थियेटर के बाहर बैठी रीमा ने लगभग दो घण्टे तक प्रतीक्षा की।
वास्तव में ठकराल अपने परिवार में अकेला ही था। लिहाजा वह उसकी बाबत किसी को सूचित नहीं कर पाई थी।
स्वयं ऑपरेशन थियेटर के बाहर बैठी प्रतीक्षा कर रही थी।
ठकराल की एक बेटी थी—पिंकी। मगर वो शादी होकर अमेरिका जा चुकी थी।
रीमा ने उसे इतनी दूर परेशान नहीं करना चाहा था।
लिहाजा वह स्वयं उसकी हमदर्द के रूप में वहां बैठी रही।
ठीक दो घण्टे के बाद ऑपरेशन थियेटर से डॉक्टर बाहर निकल कर आया।
डॉक्टर के आते ही रीमा तुरन्त अपनी सीट से उठ गई।
डॉक्टर ग्लव्स उतारता हुआ रीमा की ओर देखकर बोला—"मिस्टर ठकराल अब खतरे से बाहर हैं।"
उसका स्वर नम्र था।
अगले ही पल रीमा के होंठों से निकला—
"थैंक गॉड।"
उसी समय डॉक्टर के चेहरे पर उभरे भाव में तब्दीली आई और चिन्ता प्रकट करता बोला—
"अगर आप मिस्टर ठकराल को हॉस्पिटल लाने में और दस मिनट लेट हो जातीं तो शायद दुनिया का कोई भी डॉक्टर उन्हें नहीं बचा सकता था।"
इतना सुनकर मानो रीमा के रौंगटे खड़े हो गए।
वह अपने स्थान पर एकदम शान्त हो गई।
तभी वह बोली—
"मिस्टर ठकराल बहुत भले आदमी हैं। ऐसे लोगों की मदद ईश्वर करता है।"
"आपने सही कहा।" डॉक्टर उसकी बात से सहमति प्रकट करता बोला— "मिस्टर ठकराल के पेट से चार गोलियाँ निकली हैं। इतने में कोई भी अपना जीवन खो सकता था। बस यूं मानिए कि मिस्टर ठकराल को ईश्वर ने ही नया जीवन दान किया है।"
"थैंक यू, डॉक्टर।"
"वैलकम।"
¶¶
सफारी गाड़ी में सवार राका नाम का इन्टरनेशनल किलर जश्न मना रहा था।
ड्राइविंग सीट पर ड्राइवर था।
गाड़ी की पिछली सीट पर राका व उसके साथ एक नौजवान था।
नौजवान खामोश था।
वह चेहरे से काफी गम्भीर लग रहा था।
जबकि राका के होठों की मुस्कराहट रुक नहीं रही थी।
राका के हाथ में शराब की एक बोतल थी, जिसे वह अकेला ही पी रहा था।
युवक यूं उसकी बराबर में बैठा था मानो उसे राका की मौजूदगी का एहसास ही न हो।
जबकि युवक अपनी खामोशी में राका की सांसें तक गिन रहा था।
राका जितना खुश था, बीच-बीच में उतने ही उसके चेहरे पर पल-दो-पल के लिए उस समय दहशत सिमट आती—जब वह पलट कर पीछे देखता।
तभी युवक ने उसके भीतर उभरती दहशत को महसूस करते हुए सपाट स्वर में कहा—
"घबराओ मत, राका। अगर हम तुम्हें जेल से फरार करा सकते हैं तो जाहिर-सी बात है रास्ते में भी किसी तरह की परेशानी नहीं होने देंगे।"
तभी राका ने आश्चर्यचकित भाव सहित युवक को सम्बोधित करते कहा—
"मान गए, विशाल बाबू। आप मेरे मन का हाल भी जान रहे हो!"
"हम तो यह भी याद रखते हैं कि इन्सान एक मिनट में कितनी सांसें ले रहा है।"
"मुझे सचमुच डर लग रहा है।" इस बार राका तनिक भय से बोला।
"किस बात का डर लग रहा है?" विशाल नामक युवक बोला—"यही न कि कहीं पुलिस हमारा पीछा करती वापस तुम्हें सलाखों के पीछे न डाल दे?"
"हां।"
"घबराओ मत।"
"मगर मुझे बहुत डर लग रहा है।" राका ने पूर्ववत्त स्वर में कहा।
"जब तक तुम हमारे साथ हो, तब तक तुम्हें फिक्र करने की आवश्यकता नहीं।”
“अगर मैं पुलिस के हत्थे पड़ गया तो क्या होगा?"
"यह हमारा वादा है तुमसे।" विशाल दृढ़ स्वर में बोला—"जब तक तुम हमारी शरण में रहोगे, तब तक पुलिस तुम्हें छू भी नहीं सकती।"
उसके वादे पर एतबार करता राका एक बार फिर चिन्तामुक्त नजर आया।
उसी पल।
राका के मुंह से झटके से शराब की बोतल अलग हो गई।
आंखों में दहशत फैल गई।
पल भर में वह अपने स्थान पर बुत बनकर बैठा रह गया।
कारण।
चारो ओर वातावरण में पुलिस की गाड़ी का सायरन गूंज उठा था।
मगर विशाल अपनी जगह पर बड़े ही शांत भाव से बैठा था।
उसने गाड़ी का सायरन सुनकर गम्भीरता अपनाते ड्राइवर को आदेश दिया—
"गाड़ी अगले मोड़ पर ले लेना।"
"ओoकेo।" ड्राइवर बोला।
ड्राइवर सधा हुआ था।
उसने गाड़ी को हाई स्पीड देने के साथ-साथ बड़े ही शानदार ढंग में आगे बढ़ाया था।
मोड़ आते-आते राका की मानो हालत ही खराब हो गई थी।
ऐसा लगता था मानो वह पुलिस के हाथों सचमुच उस समय पकड़ा गया हो।
तभी विशाल शांत भाव से बैठा नजर सामने जमाये रखकर बोला—
"तुम्हारी दहशत बता रही है कि तुम बहुत ही डरपोक किस्म के हो।"
"यह बात नहीं है, गुरु।" राका तत्काल बोला—"सावधानी रखना समझदारी है।"
"मगर इस तरह डरना, घबराना, बुजदिली और मूर्खता की पहचान है।"
"पुलिस हमारा पीछा कर रही है।"
"करने दो।"
"कुछ ही देर में शहर के अन्दर नाकाबन्दी कर दी जायेगी, गुरू।"
"करने दो।"
"हम कहां जायेंगे फिर? पुलिस एकाडेमी तो साली इस बार बहुत डण्डे बजायेगी।"
"यह ग्रुप माया मैडम का है। तुम अच्छी तरह जानते हो....माया मैडम की योजनाएं कभी फेल नहीं होती, राका।"
"हां, यह तो मुझे पता है। मगर पुलिस इस समय हमारा पीछा कर रही है, उसका क्या? शहर में नाकाबन्दी होने के साथ हमारे सभी रास्ते बन्दे होंगे, उसका क्या? फिर हम कहां जाएंगे, गुरू?"
तब तक उसकी गाड़ी मोड़ अपनाकर काफी आगे निकल आई थी।
ड्राइविंग सीट पर बैठा ड्राइवर यकीनन शानदार ड्राइविंग का मालिक था।
लाख कोशिशों के बाद भी पुलिस गाड़ी को छू भी नहीं पा रही थी।
काफी देर से राका की बक-बक पर विशाल खामोश था।
गाड़ी में बैठने के बाद यह पहला अवसर था, जब वो अपने स्थान से हिला था।
उसने पलट कर पीछे देखा।
पुलिस की जीप उनकी गाड़ी से काफी पीछे थी।
तभी विशाल अपने स्थान पर सीधा होकर बैठता ड्राइवर से बोला—
"गाड़ी की स्पीड कम करो।"
इतना सुन राका को लगा कि पुलिस की दहशत से विशाल की दिमागी हालत बिगड़ गई थी।
वह तत्काल बोला—
"गुरू, पागल हो गए हो क्या? पुलिस की गाड़ी हमारे पीछे आ रही है और तुम ड्राइवर से कह रहे हो कि स्पीड धीरे करो।"
विशाल शांत रहा।
उसका आदेश पाते ही ड्राइवर ने खामोशी इख्तियार किए रखकर गति धीमी की।
इस प्रकार पुलिस की जीप उनकी गाड़ी के काफी निकट आ गई।
राका तो मानो अपना हार्ट फेल करने को तैयार हो गया था।
इससे पहले कि राका के दिल की धड़कन बन्द होती, उसने हैण्ड ग्रेनेड देखा।
हैण्ड ग्रेनेड विशाल के हाथ में था।
विशाल ने तत्काल दांतों में दबाकर उसकी पिन खींची।
तत्पश्चात्त्।
उसने घूमकर अपनी गाड़ी के पीछे आती पुलिस की जीप देखी।
जीप अब उनकी गाड़ी से बहुत दूर नहीं थी।
तभी विशाल ने गाड़ी की खिड़की से बाहर झांकते हुए बम जीप पर फेंका।
उसी के साथ भयंकर धमाका हुआ।
'भड़ाम'।
उस भयंकर धमाके के साथ न केवल जीप के चिथड़े उड़े, बल्कि वातावरण भी थर्रा गया।
अनगिनत चीखें वातावरण में एक साथ गूंजी थीं।
जीप सहित पुलिस वालों के भी चिथड़े उड़ गए थे।
यह देख राका की आंखें फैल गईं।
अगले ही पल उसने कार्टून की भांति मुस्कान होंठों पर सजा कर कहा—
"वाह गुरू, कमाल कर दिया!"
"हमारी इसी बात की कीमत है।"
"माने गए, गुरू।"
"यूं तो तुम भी निशाने के पक्के हो, राका। एक बार निशाना साध लो तो उड़ा डालते हो।"
"हां गुरू, यह तो सच है।"
"बस तो यूं समझो कि हम भी तुम्हारा दूसरा रूप हैं।"
"ठीक कहा गुरू।"
"अब तो तुम्हें तसल्ली होगी हमारी तरफ से?" विशाल ने पूछा।
"बेशक।" वह शराब का घूंट भर कर बोतल मुंह से हटाकर बोला।
"जब तक मेरे साथ हो, घबराना मत। तुम्हें कुछ नहीं होगा।"
तभी राका शराब की खाली बोतल खिड़की से बाहर फेंकता बोला—
"यूं तो शेर को मुकाबला करने के लिए झुण्ड की जरूरत नहीं होती, गुरू।" इस बार उसका स्वर दमदार था—"मगर साली सिचुएशन ऐसी थी कि डर था कि कहीं शहर में नाकाबन्दी न हो जाए।"
"मैं समझता हूं, राका। तुम वीर योद्धा हो। यूं ही माया मैडम तुम्हें याद नहीं करतीं।"
"एकदम बराबर गुरू।" राका झट बोला— "मैं यह जानने के लिए बहुत ज्यादा बेचैन हूं कि माया मैडम ने आखिर मुझे जेल से क्यों फरार कराया?"
"यकीनन उन्हें तुमसे कोई ऐसा काम है, जो सिर्फ तुम कर सकते हो।"
"जाहिर-सी बात है। मगर बेचैनी इस बात की है कि आखिर काम क्या है?"
"थोड़ा और इन्तजार करो। जल्द ही हर बात का खुलासा हो जाएगा।"
"हां, वो तो करना ही पड़ेगा।"
इसी के अन्तर्गत पहले से जानकारी रखे ड्राइवर ने गाड़ी मैदान में उतार दी।
इस मैदान में चारों तरफ अन्धकार था।
दूर-दूर तक भी रोशनी का नाम नहीं था।
अचानक गाड़ी में ब्रेक लग गए।
अंधकार में गाड़ी रुकते देख राका घबराकर बोला—
"क्या हुआ गुरू? गाड़ी खराब हो गई क्या?"
"नहीं।"
"तो फिर अन्धेरे में क्यों रुकी?"
तभी वहां हैलीकॉप्टर की आवाजें गूंज गईं।
इस आवाज को सुन राका ने अपना पूरा ध्यान समेट एक ओर लगाया।
वास्तव में लगभग तीस गाड़ियां उस मैदान के अन्धकार की आगोश में खड़ी थीं।
हैलीकॉप्टर की ध्वनि उभरने के साथ ही सभी गाड़ियों की हैडलाइट्स जल उठी थीं।
हैडलाइट्स जलाकर एक विशाल गोल घेरा बनाकर उन लाइटों ने इन्डीकेट किया था कि हैलीकॉप्टर वहीं लैण्ड करेगा।
हुआ भी यही।
लाइटों के जलते ही हैलीकॉप्टर सीधी रफ्तार से नीचे आता उस घेरे में समा गया।
उस समय राका की गाड़ी उस हैलीकॉप्टर से बामुश्किल पन्द्रह मीटर दूर थी।
हैलीकॉप्टर के पैर जमीन पर जमते ही विशाल अपनी सीट से उतर बाहर निकलता बोला—
"जल्दी आओ।"
इसी के साथ राका आगे की बातें स्वयं समझ गया।
वे दोनों गाड़ी से उतरे तो ड्राइवर ने झट गाड़ी को वहां से आगे बढ़ा दिया।
राका तथा विशाल हैलीकॉप्टर में सवार हो गए।
हैलीकॉप्टर ने उड़ान भरी व अपनी मन्जिल की तरफ बढ़ गया।
इसी के साथ प्रकाश फैलाने वाली गाड़ियां स्टार्ट हुईं और एक लाइन बनाकर एक-दूसरे के पीछे चल पड़ीं।
इस प्रकार वहां मौजूद सभी लोग अपने-अपने रास्ते पर चल दिये।
¶¶
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Additional information
Book Title | नहीं मरेगा अभिमन्यु : Nahi Marega Abhimanyu |
---|---|
Isbn No | |
No of Pages | 286 |
Country Of Orign | India |
Year of Publication | |
Language | |
Genres | |
Author | |
Age | |
Publisher Name | Ravi Pocket Books |
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