मर्डर मशीन
दिनेश ठाकुर
सुबह के छह बजे थे।
एकाएक ही मैं हड़बड़ाकर उठ बैठी।
अधूरी नींद से उठने के बावजूद भी मुझे बिजली जैसी फुर्ती का प्रदर्शन करना पड़ा था।
तुरन्त ही मैं अपने बैड से नीचे उतरी और तेजी के साथ अपने बेडरूम की खिड़की की तरफ झपटी।
अगले ही पल मैंने अपने शयन कक्ष के सभी खिड़की-दरवाजे खोल दिए थे।
क्योंकि...!
मेरे बेडरूम में मेरे किसी दुश्मन ने नशीली गैस का गाढ़ा धुआं फैला दिया था। फलस्वरूप मेरा दम घुटने लगा और मैं हड़बड़ाकर उठ बैठी थी। अपने शयन कक्ष से वो जहरीला धुआं निकालने के लिए ही सभी खिड़की-दरवाजे खोलकर, मैं हवा का झोंका बनी दुश्मन की तलाश में अपने शयन कक्ष से बाहर पहुंची।
लेकिन...!
बाहर का वातावरण एकदम शान्त था। ये सर्द रातों की सुबह थी, जिसमें आसमान पर अभी दिन निकलता कहीं से कहीं तक भी नजर नहीं आ रहा था। आजकल मेरे फ्लैट में कंस्ट्रक्शन का काम चल रहा था, इसलिए मैं कुछ रोज के लिए आई०एस०सी० के एक बंगले में रह रही थी।
मैं एक जगह रुककर अंदाजा लगाने लगी कि यदि दुश्मन मेरे बंगले में है तो कहां है?
मगर मुझे अपने बंगले में दुश्मन की मौजूदगी का अहसास दूर-दूर तक भी नहीं हुआ था। फिर इसके बाद मैं आगे बढ़ी और एक-एक जगह का निरीक्षण करना शुरू कर दिया। लेकिन कहीं से भी कोई ऐसा सुराग हाथ नहीं आया था, जिससे मैं अपने दुश्मन का पता लगा पाती।
कुछ पल वहीं खड़े रहने के बाद अचानक मुझे चौकीदार का ख्याल आया, तो मैंने बाआवाजे बुलन्द उसे पुकारा।
अगले ही क्षण...!
चौकीदार मेरे सामने मौजूद था, उसकी आंखें इस समय नींद से बोझिल थीं।
"यस मैडम!" उसने मेरे सामने आकर आदरपूर्वक पूछा।
"कहां थे तुम?" मैंने पूछा।
"मैं अपनी ड्यूटी कर रहा था मैडम।" उसकी आंखों में खौफ के साये लहराने लगे।
"ड्यूटी कर रहे थे या आराम से सो रहे थे?" मैंने कड़कदार आवाज में पूछा।
"नो मैडम!"
"तुम सच बोल रहे हो?"
"यस मैडम!"
"तो फिर मुझे एक बात का जवाब दो...कि कुछ देर पहले यहां कोई आया था?" मैंने पूछा।
"नहीं मैडम!"
"या फिर तुमने बंगले के आस-पास किसी आदमी को घूमते हुए देखा था?"
"नहीं मैडम!"
"इसका मतलब तुम अपनी ड्यूटी करने की बजाय आराम से सो रहे थे।"
"न...नहीं मैडम! ये गलत है।" उसकी आवाज़ कांप रही थी—"हम पूरी ईमानदारी से अपनी ड्यूटी कर रहे थे।"
"अगर तुम वाकई सच बोल रहे हो, तो फिर वो आदमी तुम्हें दिखाई क्यों नहीं दिया, जो कुछ देर पहले यहां आया था?" मैं गुर्राई।
"हमारी बात का विश्वास कीजिए मैडम! यहां कोई आदमी नहीं आया।" उसने यकीन दिलाया।
"तो फिर मेरे बेडरूम में जहरीली गैस किसने छोड़ी थी?" मैंने प्रश्न किया।
"क्या?" सुनकर वह चौंका।
"ज्यादा एक्टिंग मत दिखाओ और मेरी बात का सही-सही जवाब दो।" मैंने कहा।
"हम सच बोल रहे हैं मैडम, हम इस बारे में कुछ भी नहीं जानते।" उसने हाथ जोड़कर कहा।
चौकीदार की बातों से लगता था कि वह सच बोल रहा है, इसलिए मैं खामोश हो गई।
"ठीक है, जाओ।" मैंने उसे जाने की आज्ञा दी, तो वह तुरन्त जाने के लिए पलटा।
"सुनो।"
"यस मैडम!" मेरी आवाज सुनकर वह फिर मेरी ओर घूमा और आदरपूर्वक खड़ा हो गया।
"अपनी ड्यूटी पर पूरी तरह सावधानी के साथ रहना।" मैंने हिदायत दी।
"यस मैडम!"
"हां, एक बात और।"
"जी कहिए।"
"अगर किसी को आस-पास घूमते देखो, तो तुरन्त मुझे सूचित करना।"
"यस मैडम!"
इतना कहकर वह मेनगेट की तरफ बढ़ गया और मैं कुछ पलों तक वहीं खड़ी सोचती रही।
सुबह की पहली किरण वातावरण में अपनी दस्तक दे चुकी थी और पूरा वातावरण सूर्य की लालिमा से नहाकर लाल-लाल प्रतीत हो रहा था।
फिर अचानक!
मुझे अपने बेडरूम में फैले उस नशीले धुएं का ख्याल आया, जिसे बाहर निकालने के लिए मैं अपने बेडरूम के सभी खिड़की-दरवाजे खोलकर आई थी।
मैं तेजी के साथ बेडरूम की ओर बढ़ी।
जिस समय मैं बेडरूम में दाखिल हुई तो सारा नशीला धुआं खिड़की-दरवाजों के रास्ते बाहर जा चुका था। ये देखकर मैंने राहत की सांस ली।
मैंने महसूस किया कि अब मुझे सांस लेने में दिक्कत नहीं हो रही थी। इसका मतलब था कि कमरे से सारा धुआं बाहर जा चुका था और वहां का वातावरण एकदम शुद्ध था।
लेकिन...!
मेरे मस्तिष्क में एक साथ अनेकों सवाल घुमड़ने लगे थे—आखिर वो नशीली गैस यहां कौन छोड़ सकता है, अगर मेरे दुश्मन का इरादा, मुझे मारने का होता तो वो इसकी जगह जहरीली गैस भी छोड़ सकता था।
मगर उसका इरादा ऐसा नहीं लगता था, यानि मुझे मारने का नहीं था, बल्कि मुझे बेहोश करने का था। अगर मैं एक-दो मिनट और सोती रहती तो शायद पूरी तरह बेहोश हो चुकी होती।
लेकिन मेरी समझ में एक बात बिल्कुल नहीं आ रही थी कि मेरा दुश्मन मुझे बेहोश क्यों करना चाहता था। उसका इरादा तो मुझे मारने का होना चाहिए था, फिर उसने मुझे बेहोश ही क्यों किया, आखिर वो चाहता क्या था?
शायद मेरा किडनैप या फिर कोई चीज मेरे कमरे से चुराने का इरादा रखता हो और इसीलिए उसने मुझे यहां बेहोश करने की कोशिश की थी। इससे पहले कि मैं कुछ समझने की कोशिश करती—
तभी...!
मेरे मोबाइल की घन्टी के स्वर ने मुझे बुरी तरह चौंका दिया और मेरी विचार-तन्द्रा भंग हो गई।
मोबाइल मेरे बैड के एक कोने पर पड़ा था।
मैंने तीव्रता के साथ आगे बढ़कर स्क्रीन पर उभरने वाला नम्बर देखा, फोन मेरे चीफ खुराना का था।
अगले ही क्षण!
मैं अपने मोबाइल का बटन पुश करते हुए उसे अपने कानों से सटाते हुए बोली—
"हैलो! गुड मॉर्निंग सर!"
"हां रीमा, कहां हो तुम इस समय?" दूसरी ओर से चीफ का भारी-भरकम स्वर उभरा।
"मैं इस समय अपने बेडरूम में हूं सर, लेकिन उठते ही मैं एक मुश्किल में फंस गई हूं चीफ।" मैंने बताया—"और अभी तक फँसी हूं।"
"कैसी मुश्किल?"
"लगता है सर, मेरे दुश्मन सुबह होने से पहले ही मेरे बेडरूम तक पहुंच गए थे।"
"व्हॉट?"
"यस सर!"
"तुम तो ठीक हो न?"
"मैं बिल्कुल ठीक हूं सर!" मैंने कहा—"हां, अगर कुछ मिनट की देरी हो जाती तो शायद मैं आपको ठीक-ठाक नहीं मिल सकती थी।"
"आखिर हुआ क्या है?"
"जो कुछ भी यहां हुआ है, मैं आपको फोन पर नहीं बता सकती।" मैंने कहा।
"तो फिर तुम जल्दी से तैयार होकर आफिस पहुंचो, मैं यहां तुम्हारा इन्तजार कर रहा हूं।"
"ओ०के० सर!"
उसके बाद दूसरी तरफ से लाइन काट दी गई थी और मैंने भी अपना मोबाइल बन्द करके एक ओर डाल दिया और जल्दी से टॉवल उठाकर बाथरूम की ओर बढ़ गई।
¶¶
ठीक पन्द्रह मिनट बाद!
मैं अपने चीफ खुराना के सामने मौजूद थी।
"आओ रीमा! मैं यहां तुम्हारा ही इन्तजार कर रहा था।"
मैंने उनके सामने पहुंकर अपनी सीट सम्भाल ली।
"हां रीमा! अब मुझे विस्तार से बताओ कि क्या हुआ था?" बैठते ही उसने प्रश्न किया।
"सर! आज किसी ने मेरे बेडरूम में नशीली गैस फैलाकर मुझे बेहोश करने की कोशिश की थी।"
"ओह! लेकिन यह सब किया किसने?" उन्होंने प्रश्नवाचक दृष्टि से मेरी ओर देखा।
"जाहिर है, मेरे किसी दुश्मन ने।"
"लेकिन तुम्हारा दुश्मन तो तुम्हें मारने की कोशिश करेगा, वो भला तुम्हें बेहोश क्यों करेगा?"
"मैं नहीं जानती सर!" मैंने लापरवाही से कहा—"शायद उसका इरादा मुझे किडनैप करने का रहा हो।"
"अगर वह वाकई तुम्हें किडनैप करना चाहता था, तो किडनैपिंग के पीछे उसका क्या मकसद हो सकता है?"
"अभी हम पूरी तरह से इस निष्कर्ष पर भी तो नहीं पहुंच सकते सर!" मैंने कहा।
"क्या मतलब?"
"हो सकता है सर कि वो वहां किसी दूसरे मकसद से आया हो।" मैं बोली।
"तुम्हारा मतलब चोरी करने के इरादे से?" उन्होंने तीव्र दृष्टि से मेरी ओर देखा।
"यस सर।"
"अगर वो वाकई चोरी करने आया था, तो उसे तुम्हें बेहोश करने की क्या जरूरत थी?"
"जरूरत थी सर!"
"वो क्यों?"
"क्योंकि मेरे बेहोश हुए बिना वह वहां आसानी से चोरी नहीं कर सकता था।"
"ओह!"
"इसीलिए सर! उसने सोचा होगा कि पहले वह इस नशीली गैस के जरिये मुझे बेहोश करे...और फिर इत्मीनान के साथ चोरी करेगा।"
"लेकिन वह चुराने क्या आया था?" उन्होंने उत्सुकतावश पूछा—"क्या तुम्हारे बेडरूम में कोई ऐसी खास चीज मौजूद थी, जो वह चुराने आया हो, या जिससे उसका कोई सम्बन्ध हो?"
"इस समय तो मेरे बेडरूम में कोई भी ऐसी चीज मौजूद नहीं थी, जो वो चुरा सके, सिवाय रुपयों के।" मैंने बताया।
"क्या तुमने अपने लॉकर चैक किये?"
"यस सर!" मैंने बताया—"सब कुछ अपनी जगह पर सुरक्षित है।"
"इस बात से तो साफ जाहिर होता है कि वह रुपयों के लालच में तो वहां नहीं आया था!" उन्होंने सोचपूर्ण मुद्रा कहा—"उसके आने का मकसद कुछ और ही था।"
"लेकिन उसके आने का क्या मकसद हो सकता है, इस सवाल ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया है।"
"तुमने हर जगह का अच्छी प्रकार से निरीक्षण किया है?" चीफ ने पूछा।
"यस सर!"
"कोई ऐसा सुराग हाथ लगा, जिसके जरिए हम दुश्मन का पता लगा सकते हों?"
"नो सर! खैर छोड़िये, इन बातों को।" मैंने कहा—"और अब ये बताइये कि आपने मुझे यहां क्यों बुलाया था?"
"मैंने तुम्हें यहां एक खास काम के लिए इतनी सुबह बुलाया है रीमा! तुम तो जानती हो कि हमारे देश में आतंकवाद कुछ ज्यादा ही बढ़ता जा रहा है।"
"ये कोई नई बात नहीं है सर!" मैंने कहा—"आतंकवाद तो हमारे देश में कैंसर की तरह अपनी जड़ जमाता जा रहा है, जितना इसे खत्म करने की कोशिश की जाती है, ये उतनी ही तेजी के साथ फैलता जा रहा है।"
"इसीलिए मैंने तुम्हें यहां बुलाया है।" उन्होंने बताया—"मुझे इसी सिलसिले में तुमसे बातचीत करनी थी।"
"जी कहिये सर!"
"अभी कुछ दिन पहले ही मुम्बई में बम धमाके हुए थे, शायद तुम्हें याद हो।"
"यस सर! मुझे अच्छी तरह याद है।" मैंने कहा—"उसमें से काफी लोगों की जानें भी गई थीं।"
"यू आर राइट।"
"आगे बताइये।" मैंने पूछा।
"उस बम काण्ड में हमने जिन लोगों को गिरफ्तार किया था, उनमें दो लोगों का ताल्लुक उस घटना से था।" उन्होंने बताया—"मेरा मतलब उस बम कान्ड से।"
"व्हॉट?"
"यस रीमा!"
"कौन थे वे लोग?" मैंने अधीरतावश पूछा—"क्या उनसे पूछताछ के दौरान कुछ पता चला?"
"हां रीमा!"
"मुझे बताइये सर!" मेरा स्वर उत्सुकता से परिपूर्ण था—"आखिर वो लोग कौन हैं?"
"अभी मैं तुम्हें स्पष्ट रूप से उनके बारे में कुछ नहीं बता सकता।" उन्होंने कहा।
"फिर?"
"अभी तो तुम इतना जान लो कि उन लोगों का ताल्लुक एक बहुत बड़े आतंकवादी संगठन से है।"
"क्या आप उस संगठन का नाम बता सकते हैं?" मेरी उत्सुकता पल-पल बढ़ने लगी।
"हां।" उन्होंने गर्दन हिलाई।
"तो फिर बताइये न, उस आतंकवादी संगठन का क्या नाम है, जिसने हमारे देश की शान्ति भंग कर रखी है?"
"डी०एल०एफ०।" उन्होंने गम्भीरता से कहा।
"व्हॉट?" मैं चौंकी।
"हां रीमा! उन्होंने यही नाम बताया था।" चीफ ने अपने सिगार में कश लगाते हुए बताया।
"क्या आप मुझे बता सकते हैं कि डी०एल०एफ० की फुल फॉर्म क्या है?" मैंने पूछा।
"डी०एल०एफ० की फुल फॉर्म है...ड्रेगन लिब्रेशन फ्रन्ट।" उन्होंने धुआं फूंकते हुए बताया।
"ड्रेगन लिब्रेशन फ्रन्ट!" मैं बड़बड़ायी।
"हां रीमा ! यह संगठन काफी खतरनाक है।" उन्होंने बताया—"और इसके छोटे-छोटे ग्रुप हर देश में मौजूद हैं।"
"इनका मिशन क्या है?"
"लोगों की शान्ति भंग करना इनका मिशन है।" उन्होंने बताया—"और यही सब वो करते भी हैं।"
"लेकिन ऐसा करके उन्हें क्या हासिल होता है?"
"अब ये तो वही बता सकते हैं कि ऐसा करके उन्हें क्या हासिल होता है...।" वह गम्भीर थे।
"क्या आप मुझे बता सकते हैं कि ये संगठन कहां पर स्थित है?" मैंने पूछा।
"मैंने तुम्हें बताया तो था कि इस संगठन की शाखाएं हर देश में फैली हैं।"
"मेरा मतलब इसके हैडक्वार्टर से है सर।"
"इस बारे में मैं अभी तुम्हें कुछ नहीं बता सकता।" वह बोले—"आज रात दो बजे अजय, चौहान, तिवारी और घोषाल भी यहीं मौजूद होंगे। उस समय हम इस मिशन के बारे में पूरी तफ्सील से बात करेंगे, तब तक हमें बाकी की इन्फॉर्मेशन भी मिल जाएगी।"
"अबकी बार आप मुझे यही मिशन सौंपना चाहते हैं?"
"यही समझ लो।"
"गुड!" मैंने प्रसन्नतापूर्वक कहा—"जिस संगठन ने मेरे देश की शान्ति भंग करने की कोशिश की है, मैं उस संगठन को नेस्तनाबूद कर दूंगी सर!"
"यही हमारा मकसद भी है। इस मिशन के बारे में पूरी व सही जानकारी तुम्हें आज रात को मिल जायेगी।"
"वो कैसे सर?"
"हमारे कुछ लोग इसी मिशन के बारे में पूरी इन्फार्मेशन लेकर आज रात को लौटेंगे।"
"क्या अजय और चौहान भी उनके साथ गए हैं?" मैंने उत्सुकतावश पूछा।
"सिर्फ चौहान।"
"अजय कहां है इस समय?"
"अपने निवास पर होगा।" उन्होंने कहा।
"ओह!"
"कुछ काम था?"
"नहीं, मुझे उससे कुछ बात करनी थी।" मैंने बताया—"मैं जाते समय उससे मिल लूंगी।"
"ठीक है।" कहते हुए उन्होंने फिर सिगार अपने होंठों से दबाया और कश लेने लगे।
"तो फिर मैं चलूं सर?"
"हां ठीक है, अब तुम जा सकती हो। लेकिन याद रहे, आज रात दो बजे तुम्हें हैडक्वार्टर पहुंचना है।"
"आज रात दो बजे ही क्यों सर?" मैंने हैरानी से पूछा—"क्या इससे पहले बातचीत नहीं हो सकती?"
"नहीं।"
"वो क्यों सर?"
"जो लोग इन्फॉर्मेशन लेने गए हैं, वो आज रात देर से लौटेंगे, इसलिए हमने ढाई बजे मीटिंग फिक्स की है और तुम दो बजे तक यहां पहुंच जाना।"
"ओ०के० सर!"
"अब तुम जा सकती हो।"
"ठीक है सर, मैं चलती हूं।" मैंने उठते हुए कहा—"मैं ठीक समय पर यहां पहुंच जाऊंगी।"
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