मुर्दे भी बोलते हैं
सुनील प्रभाकर
उसने दूरबीन से आंखें गड़ाये हुए उस इमारत की ओर देखा—कहीं कोई नजर नहीं आया, सिवाय उस बूढ़े माली के, जो क्यारियों की काट-छांट में लगा हुआ था।
"कोई दिखायी दिया?"
"न...बाहर केवल माली है। क्यारियां ठीक कर रहा है।"
"कहां मर गए सब?"
"भीतर होंगे।"
"फिर कैसे काम बनेगा?"
उस व्यक्ति ने दूरबीन अपनी आंखों से हटाकर बगल में बैठे साथी की ओर देखा फिर ठण्डी सांस लेकर बोला—"तेरे में धैर्य की बहुत कमी है। इसीलिये तू कभी-कभी गड़बड़ी कर देता है। बॉस का गुस्सा भी इसी कारण तुझको झेलना पड़ता है। हमारे पेशे में दो ही बातें बहुत जरूरी हैं—एक है समय और दूसरी है प्रतीक्षा। यानी धैर्य। तूने कभी बगुले को देखा है?"
"यह बगुला कहां से घुस आया?" उसने मुंह बनाकर कहा।
पहला वाला हंसा धीरे से, फिर बोला—"बगुला हमारा गुरु है। हमारा मार्ग-दर्शक है। पथ-प्रदर्शक है। शिक्षक है।"
"देख शंकर।" उसने खोपड़ी सहलाते हुए कहा—"तू मेरे से वो बातें किया कर जो मेरी समझ में आ जाया करें। मैं मोटे दिमाग का हूं। महीन बातें मेरी समझ में नहीं आती हैं और न मैं इतनी दूर तक सोच सकता हूं। महीन बातें तेरे जिम्मे रहती हैं।"
सहसा शंकर की जेब में पड़े मोबाइल फोन की घण्टी बजी। उसने दूरबीन गले में लटका ली और जेब से इंस्ट्रूमेंट निकाल लिया। कॉल रिसीव करके कान से लगा लिया—"हैलो?"
"क्या रहा?" दूसरी तरफ से गुर्राहट भरा स्वर उभरा—"काम हुआ या नहीं?"
"अभी नहीं हुआ बॉस। पिछले चार घण्टों से मैं शम्भू के साथ छत पर नजर गड़ाये हुए बैठा हूं। कोई भी बाहर निकला ही नहीं है।"
"कोई है भी या नहीं?"
"कह नहीं सकता बॉस। हो भी सकता है और नहीं भी। जब हम दोनों आए थे तो दोपहर थी और अब शाम होने जा रही है। इस बीच कोई आता-जाता नहीं नजर आया।" शंकर ने जवाब दिया फिर बोला—"वैसे आप चिन्ता न करें। समय चाहे जितना लगे—हम दोनों अपना काम पूरा करके ही आयेंगे।"
"मुझे राना के मरने की सूचना चाहिए।" दूसरी तरफ से मौत भरा स्वर आया।
"आपको उसके मरने की ही सूचना मिलेगी बॉस।"
शंकर का चेहरा सख्त हो गया—"आज तक कभी ऐसा नहीं हुआ कि आपने कोई काम हम दोनों को सौंपा हो और वो पूरा न हुआ हो।"
"हम जानते हैं।"
"तब आप निश्चिन्त रहिए। हम काम पूरा करके ही वापस लौटेंगे।"
"गुड स्प्रिट।"
"और कोई निर्देश?"
"तुम दोनों हो कहां?"
"नारंग पैलेस की छत पर।" शंकर ने कहा।
"होशियार रहने की जरूरत है। अगर किसी के द्वारा देख लिये गए तो मुसीबत हो सकती है, क्योंकि वो इलाका बहुत व्यस्त है और नारंग पैलेस तो बिजनेस कॉम्पलैक्स है।
शंकर इस बार धीरे से हंसा था।
"बॉस, हम जान लेने का धन्धा करते हैं—जान देने का नहीं। अपनी जिन्दगी हमें भी प्यारी है। अभी हमें जिन्दा रहना है।"
"शंकर, किसी के नजर न आने का मतलब यह तो नहीं है कि वे लोग सतर्क हो गए हों? राना को किसी प्रकार का शक हो गया हो? क्योंकि वो बहुत चौकन्ना रहने वाला शख्स है। उसके आदमी भी कम खतरनाक नहीं हैं। सम्भव है राना के आदमियों की नजर में तुम और शम्भू आ गए हों? क्योंकि यह अजीब लगता है कि चार घण्टा हो जायें और कोई आदमी दिखाई तक न दे।"
इस बार शंकर के जबड़े सख्त हो गए।
उसके चेहरे पर सोच के भाव नजर आए। बॉस की बात ने उसको सोचने पर मजबूर कर दिया था। बॉस ने जो शंका प्रकट की थी, वो सही भी हो सकती थी।
"हालांकि विश्वास नहीं है कि राना के आदमियों ने हमें देख लिया होगा लेकिन आपकी आशंका को मैं गलत भी नहीं कह सकता बॉस।"
"फिर?"
"आप निश्चिन्त रहिये। मैं देखता हूं क्या मामला है?"
"मगर खुद को बचाकर—तुम्हें और शम्भू को मैं खोना पसन्द नहीं करूंगा।" इस बार अज्ञात बॉस का स्वर गम्भीर था—"मेरे लिये तुम दोनों कीमती हो। गिरोह के लिये कीमती हो—आवश्यक हो, जरूरी हो, समझे?"
"ठीक है बॉस, मैं थोड़ी देर बाद आपको जानकारी देता हूं।"
"ठीक है। मैं वेट करूंगा तुम्हारी सूचना का।"
बॉस ने सम्पर्क काट दिया था।
शंकर ने मोबाइल फोन जेब में रख लिया।
¶¶
शंकर ने सामने नजर डाली।
शाम का धुंधलका धीरे-धीरे वातावरण पर उतरता आ रहा था। उसने सड़क पर नजर डाली। रोड लाइट्स जल गई थीं। सड़क गुलजार थी। दुकानें जगमग कर रही थीं। आकाश में पक्षियों के झुण्ड के झुण्ड अपने बसेरों को वापस लौटने शुरू हो गए थे।
"बॉस से क्या बात हुई है?" छत की चारदीवारी से पीठ टिकाये बैठे शम्भू ने पूछा।
"बॉस का कहना है राना से बहुत सतर्क रहने की जरूरत है। पिछले चार घण्टों से सिवाय माली के किसी का नजर न आना इस बात का प्रमाण है कि राना के आदमियों द्वारा हम लोगों को वाच किया जा रहा है। इसका यह भी मतलब है कि हम दोनों राना और उसके आदमियों की नजर में हैं।"
"इतनी सावधानी के बाद भी?" शम्भू बोला।
"इसमें शक नहीं कि हम दोनों ने बहुत सतर्कता और सावधानी से काम लिया है। इस कॉम्पलैक्स में पच्चीसों ऑफिस हैं, लेकिन छत तक पहुंचने में किसी को शक तक नहीं हुआ है। किसी ने टोका तक नहीं—पूछा भी नहीं।"
"फिर राना के आदमियों को कैसे मालूम हो गया होगा कि हम दोनों नारंग पैलेस की छत पर मौजूद हैं...!" शम्भू कहते-कहते रुका। वह किसी शिकारी की तरह एकाएक चौकन्ना नजर आने लगा था—"कोई ऊपर आ रहा है।"
"क्या?" शंकर फुर्ती से खड़ा हो गया।"
"कोई—नहीं कई लोग ऊपर आ रहे हैं।"
"फिर?" शंकर के जबड़ों में कसाव पैदा हो गया।
शम्भू ने छत पर बनी विशालकाय पानी की टंकी की ओर देखा। उसने सतर्क भाव से चारों ओर देखा—"फिलहाल टंकी के पीछे चलते हैं। हो सकता है राना के आदमी हों या फिर न भी हों—लेकिन इस समय टंकी ही छिपने के लिये सही आड़ है, जो भी होगा देखा जायेगा।"
दोनों फुर्ती से दबे पांव भागते हुए टंकी के पीछे चले गए। दोनों किसी खूंखार चीतों की तरह सतर्क और चौकन्ने थे। उनकी आंखों में खतरनाक चमक आ गई थी, जो उनके पेशेवर हत्यारा होने की सूचक थी। किसी की जान लेना उन दोनों के लिये चुटकी बजाने जैसा था। किसी की हत्या करना शंकर-शम्भू को इसलिये दिलचस्प लगता था क्योंकि दोनों को ही मानसिक तृप्ति मिलती थी। आनन्द और थ्रिल की अनुभूति होती थी।
टंकी के पीछे जाकर दोनों ने अपने-अपने रिवॉल्वर निकाल लिये और किसी शिकारी की तरह चौकन्ने होकर बैठ गए। दोनों की आंखों में दरिन्दगी झलकने लगी थी।
¶¶
"हैलो?"
"यस...राना स्पीकिंग...!"
"राना साहब...!" ईयरपीस से एक भारी स्वर निकलकर राना के कान से टकराया—"आप मुझे नहीं जानते, लेकिन मैं आपको जानता हूं।"
राना की घनी भौंहें सिकुड़ गयीं।
"फोन क्यों किया है?" भावहीन स्वर में पूछा उसने।
"आपको सतर्क करने के लिये।"
"मुझे सतर्क करने के लिये?" राना ने होठ सिकोड़े।
"जी।"
"मैं समझा नहीं?" राना का स्वर शुष्क हो गया—"तुम हो कौन? मुझे क्यों सतर्क करना चाहते हो? किससे सतर्क करना चाहते हो?"
"आपको शूट करने का आदेश दे दिया गया है। दो हत्यारे—पेशेवर शूटर-आपको ख़त्म करने के लिये रवाना हो चुके हैं।"
"क्या बकते हो?" राना के शरीर में खिंचाव पैदा हो गया।
"मैं सही कह रहा हूं।" बोलने वाले का स्वर संजीदा था—"रतन सेठ ने आपको किसी भी कीमत पर खत्म करने के आदेश दे दिये हैं। उसको शक है कि परसों उसका जो हथियारों का कन्साइनमेन्ट लूटा गया था, उसे आपने लूटा है। दस करोड़ का माल था। रतन सेठ गुस्से से पागल हो रहा है। उसने अपने पेशेवर शूटरों को आदेश दे दिया है कि आपको खत्म कर दिया जाये। दोनों के नाम शंकर-शम्भू हैं। रतन सेठ के दोनों बेस्ट शूटर हैं और आज तक कभी अपने काम में असफल नहीं हुए हैं। दोनों का हत्या करने का पेशा है। दोनों निर्मम हत्यारे हैं। उनको किसी की भी हत्या करने में आनन्द आता है।"
"रतन सेठ को कैसे मालूम कि हमने उसके हथियारों का कन्साइनमेन्ट लूटा है?" राना ने ठण्डे स्वर में कहा—"मुझे तो मालूम भी नहीं उसका कन्साइनमेन्ट कब आया, किधर से आया और किसने लूटा? फिर मेरा और उसका धन्धा अलग है। मैं हथियारों का धन्धा नहीं करता। मेरा हथियारों के धन्धे में कोई इन्ट्रेस्ट नहीं है—यह बात तो सभी जानते हैं।"
"आपकी बात सही हो सकती है लेकिन उसको यकीन है कि यह काम आपका ही है।"
"पागल है क्या रतन सेठ?" राना ने सर्द स्वर में कहा।
"अब आप जो भी समझें—मैंने जो सूचना देनी थी—दे दी। मुझे भी नहीं पता कि माल किन लोगों ने लूटा है? मगर माल तो लूटा ही गया है? मुठभेड़ में रतन सेठ के चार आदमी मारे गए तथा आधा दर्जन घायल हुए हैं। उनको माल छोड़कर भागना पड़ा वर्ना शायद सभी मारे जाते। यह बात चारों ओर फैल चुकी है कि माल आपके ही इशारे पर लूटा गया है। अण्डरवर्ल्ड में इस घटना को लेकर बहुत सनसनी है। वैसे कुछ लोगों का यह भी अनुमान है कि आप दोनों अलग हुए हैं तभी से आप दोनों में गहरा मनमुटाव चल रहा है—इसका लाभ किसी तीसरे शख्स ने उठाया है और उसी ने इस बात की अफवाह उड़ायी है कि माल आपके इशारे पर आपके आदमियों ने ही लूटा है। इस बात को लेकर काफी सनसनी है कि आप दोनों में गैंगवार हो सकती है। रतन सेठ को आप मुझसे बेहतर जानते हैं। आप दोनों ने इस दुनिया में साथ-साथ कदम रखा था और काफी समय तक साथ-साथ काम किया। फिर किसी बात पर आप दोनों के मतभेद इतने बढ़ गए कि झगड़े के बाद आप दोनों अलग-अलग हो गए। उसके बाद, आप दोनों के बीच कई बार झड़पें भी हुईं। कहा नहीं जा सकता कि रतन सेठ के दिमाग में आपका नाम कैसे आया? सम्भव है किसी ने जान-बूझकर आप दोनों को भिड़ाने के लिये यह कार्य अंजाम दिया हो।"
"क्या नाम बताया तुमने दोनों का?"
"शंकर-शम्भू।"
"आदेश कब दिया गया?"
"कल रात को।"
"तुम कौन हो?"
"आपका शुभचिन्तक।"
"कोई नाम भी तो होना चाहिए शुभचिन्तक का?"
बोलने वाले ने धीरे से लम्बी सांस लेकर कहा—"नाम तो है राना साहब—मगर मैं अपने आपको अभी डिस्क्लोज नहीं करूंगा। समय आने पर सामने भी आऊंगा और नाम का भी आपको पता लग जायेगा—लेकिन अभी नहीं—वर्ना मेरी खुद की जान पर बन आएगी। और जान सबको प्यारी होती है राना साहब—मुझे भी है।"
राना ने क्षणभर सोचा फिर गम्भीर स्वर में कहा—"ठीक है लेकिन तुमसे सम्पर्क कैसे होगा?"
"सम्पर्क मैं खुद कर लूंगा राना साहब। विश्वास रखिये। मैं आपको जो सूचना दे रहा हूं—किसी लालच के कारण नहीं क्योंकि मैं खुद कोई साफ-सुथरा शख्स नहीं हूं। मेरा इतिहास भी अपराध का ही है, लेकिन कुछ बातें अपराध में भी वर्जित होनी चाहिएं। जिन बातों और मतभेदों के कारण आप और रतन सेठ में बिगाड़ हुआ था और आप दोनों को अलग होना पड़ा था—वे बातें मेरी समझ में देर से आयीं लेकिन देर आयद दुरुस्त आयद। धन, पैसा, ऐशोआराम, प्रभुत्व, धमक बनाये रखना—यह सब ऐसे लालच हैं, जो आदमी को अपराध करने की ओर खींचते हैं—मैं भी इसी लालच में इस धन्धे में आ फंसा था—मगर अब जाकर लगा कि मैं एक प्रकार से अपने पैरों पर ही कुल्हाड़ी मार रहा था। देश से गद्दारी कर रहा था। गहराई से सोचा तो आपके अलगाव की वास्तविकता समझ में आयी। जब आप जैसा व्यक्ति निर्णय ले सकता है तो मैं क्यों नहीं ले सकता—बस, यही कारण है रतन सेठ के खिलाफ जाने का। खैर, बाकी फिर कभी। आप अपनी सुरक्षा व्यवस्था कड़ी करें और सतर्क रहें। मैं बीच-बीच में आपके सम्पर्क में रहूंगा।"
सम्पर्क कट गया।
बोलने वाले ने रिसीवर रख दिया था।
राना ने धीरे से रिसीवर रख दिया क्रेडिल पर। उसका चेहरा सख्त हो गया था और आंखों में एक सर्द कहर का भाव उभर आया था।
उसने जेब से सिगार निकालकर सुलगाया। दो-तीन लम्बे-लम्बे कश लेकर कुछ सोचते हुए रिसीवर उठाकर इंटरकनेक्शन का स्विच दबा दिया।
"यस सर?" एक महीन नारी स्वर उसके कान से टकराया—"मारिया स्पीकिंग।"
"धवन से बात कराओ मारिया।" राना ने कहा—"क्विक्...अभी।"
"यस सर।" मारिया का हड़बड़ाया स्वर आया।
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