मेरी बीवी मेरी कातिल
सुनील प्रभाकर
वह सड़क के बीचों-बीच अन्धा-धुन्ध भाग रहा था, मानो उसके पीछे सैकड़ों भूत लगे हों।
उसका हुलिया देखकर एक बच्चे के साथ सड़क पार कर रही महिला मारे भय के चीखी—फिर बेटे को गोद में उठाए हुए फुटपाथ पर जा चढ़ी तथा बेटे को सीने से चिपकाए हुए बुरी तरह हांफने लगी।
उसका हुलिया?
शायद वो वर्षों से नहाया भी नहीं था—मैल से उसका चेहरा व हाथ-पैर काले पड़ गये थे—सिर के लम्बे बाल आपस में उलझे हुए तथा धूल से सने थे।
दाढ़ी काफी लम्बी व धूल भरी थी।
मैले-कुचैले कपड़े फटकर तार-तार हो चुके थे।
वह नंगे पैर था।
पैर जख्मी थे तथा सूजे हुए थे।
पुलिस स्टेशन के सामने ठिठका वह।
गेट पर खड़े राइफलधारी कांस्टेबिल को सहमी-सी दृष्टि से देखते हुए वह हांफने लगा।
फिर डरते-सहमते हुए वह गेट की तरफ बढ़ा।
"ऐ कौन है तू—?" कान्स्टेबल गरजा।
वह सहमकर अपने आप में सिमट गया।
"साले...पागल, ये पागलखाना नहीं है। थाना है...थाना। पुलिस स्टेशन। चल फूट इधर से। साला मुंह उठाए हुए भीतर चला जा रहा है जैसे बाप का घर हो। चल-चल फूट इधर से।"
"मैं पागल नहीं हूं दीवान जी...!" वह गिड़गिड़ाने वाले भाव से ही बोला—"मैं नार्मल हूं। हां, मेरा हुलिया अवश्य बिगड़ा हुआ है। मैं रिपोर्ट दर्ज कराना चाहता हूं।"
"रिपोर्ट कराएगा तू...हो...हो...हो! साला, पागल कहीं का।"
"प्लीज, माइण्ड यूअर लेंग्वेज दीवान जी! आई एम मेंटल? नो...यू आर रोंग। मैं एक मुसीबतजदा नागरिक हूं? एक हादसे के कारण मेरा हुलिया ऐसा हो गया है। मुझे तुम्हारे ऑफिसर से मिलना है?"
"अरे यार तुम तो पढ़े-लिखे जैसी बातें करते हो।" कान्स्टेबल चौंकते हुए बोला—"यानी तुम पागल नहीं हो?"
"नहीं, मैं नार्मल इन्सान हूं। आई वान्ट टू मीट योर ऑफिसर!"
"जाओ भाई, भीतर जाओ।" वह रास्ता छोड़ते हुए बोला—"मैं तुम्हें गलत समझ बैठा था।"
वह गेट पार करके थाना परिसर में प्रविष्ट हुआ।
¶¶
इन्स्पेक्टर विकराल सिंह।
राक्षसों जैसे डील-डौल वाला वह काला-कलूटा इन्स्पेक्टर टाइम पास करने की गरज से नौ इंची मूंछों को ताव दे रहा था।
उसकी मूंछों के सिरे ऐंठकर गोलाकार हो चले थे—लगता था कि उसने मूंछों के दोनों तरफ काली जलेबी बांध रखी थी।
स्टाफ के लोग उसे पीठ पीछे जलेबी सिंह भी कहते थे।
जलेबी सिंह, नहीं—विकराल सिंह ने दरवाजे पर खड़े उस वहशी टाइप इन्सान को लाल-लाल आंखों से घूरा मानो कोई अवांछनीय वस्तु उसके सामने आ गयी थी।
"मे आई कम इन इन्स्पेक्टर?"
विकराल सिंह चौंका!
उसे शायद उस पागल सरीखे इन्सान से अंग्रेजी में बोलने की कतई आशा नहीं थी।
"यस, कम इन!"
वह भीतर प्रविष्ट हुआ तथा कुर्सी के पास आकर ठिठका—आंखों की भाषा से कुर्सी पर बैठने की इजाजत मांगने लगा।
"बैठो?"
वह बैठ गया।
"कहो, क्या काम है?" विकराल सिंह की रौबदार आवाज गूंजी।
"जी...मुझे किसी के खिलाफ कम्पलेंट करनी है?"
"किसके खिलाफ?"
"अपनी बीवी के खिलाफ?"
"क्या किया है उनने?"
"कत्ल।"
"क—कत्ल! विकराल सिंह चिहुंक पड़ा, सामने बैठे शख्स को विस्फारित आंखों से घूरते हुए बोला—"तुम्हारी बीवी ने कत्ल किया है?"
"जी हां।"
"किसका कत्ल किया है?"
"जी...मेरा।"
¶¶
"तुम्हारा कत्ल!" इन्स्पेक्टर विकराल सिंह चिहुंकते हुए बोला—"तुम्हारी बीवी ने तुम्हारा कत्ल किया है!"
"हां, इन्स्पेक्टर।" वह सपाट चेहरे के साथ बोला।
विकराल सिंह ने सिकुड़ी हुई आंखों से उसके चेहरे को घूरा, परन्तु उसे सामने बैठे शख्स के चेहरे पर झूठ या छल का कोई निशान दिखलाई नहीं पड़ा।
"क्या बात है इन्स्पेक्टर साहब...?" वह सकपकाते हुए बोला—"आप मुझे यूं क्यों घूर रहे हैं?"
"हां, घूर तो रहा हूं। मुझे तुम पर पहले थोड़ा-थोड़ा सन्देह था, परन्तु अब तो पूरा विश्वास हो गया है।"
"किस बात का विश्वास?"
इन्स्पेक्टर ने ‘टेलीफोन’ की बीड़ी सुलगाई तथा एक शट्टा मारते हुए बोला—"यही कि तुम क्रैक हो।"
"क्रैक...!" वह सकपकाते हुए बोला—"आप मुझे पागल या सनकी समझ रहे हैं?"
"इसमें मेरी क्या गलती है—यार! सिर्फ हुलिया ही नहीं, बल्कि बातें भी क्रैक जैसी कर रहे हो तुम।"
वह बेचैन-सा होकर पहलू बदलने लगा।
"भला कौन यकीन करेगा तुम्हारा कि तुम्हारी बीवी ने तुम्हारा कत्ल कर दिया है? अगर तुम्हारी बीवी ने तुम्हारा कत्ल कर दिया होता तो तुम भगवान के घर पहुंच गये होते। मेरे सामने नहीं बैठे होते। मैंने ऐसा ना तो देखा, ना ही सुना कि किसी का कत्ल हुआ हो और वो थाने में रिपोर्ट लिखवाने आया हो? जरा एक मिनट ठहरो यार!"
विकराल सिंह कुर्सी से उठा तथा चलकर उसके पीछे जा खड़ा हुआ फिर उसने उस शख्स का कन्धा पकड़ लिया।
"अरे यार मैं तुम्हारे कन्धों को स्पर्श कर पा रहा हूं। मुझे इस बात का अहसास हो रहा है कि मैं तुम्हारे जिस्म को स्पर्श कर रहा हूं। माना कि तुम्हारा कत्ल हो चुका होता तो तुम्हारी आत्मा ही मेरे सामने बैठी होती जिसे स्पर्श नहीं कर पाता। मैं अगर तुम्हारा कन्धा छूने की चेष्टा करता तो मेरा हाथ हवा में ही रह जाता। भला कोई आदमी मरने के बाद अपने जिस्म के साथ कैसे हो सकता है? मैं भूत-प्रेतों को मानता हूं। ये भी मानता हूं कि अगर किसी की मौत वक्त से पहले हो जाती है तो उसकी आत्मा भटकने लगती है। मैंने एक बार सत्य कहानियों में में पढ़ा था कि एक आदमी को उसकी बीवी ने अपने यार के साथ मिलकर मार डाला था। फिर उसकी आत्मा ने पुलिस के पास आकर अपने कत्ल की दास्तान बताई थी। पुलिस ने उसकी बीवी व उसके यार को मय सबूत के पकड़ लिया था परन्तु तुम आत्मा भी नहीं हो। तुम कहो तो मैं आगरा फोन कर दूं? वे लोग तुम्हें लेने आ जाएंगे।"
"वहां क्या है? आप वहां से किन लोगों को बुलवाना चाहते हैं इन्स्पेक्टर साहब?"
“आगरा?”
"वहां पागलों का हास्पिटल हैं। वहां एडमिट हो जाओगे तो इलाज के बाद ठीक हो जाओगे।"
"हे भगवान...!" उसने प्रार्थना की—"आप तो सचमुच ही मुझे पागल समझ रहे हैं।"
"तो क्या नहीं हो?"
"नहीं-नहीं मैं पागल नहीं हूं।" वह विक्षिप्त भाव से चीखा—"मैं पूरी तरह नार्मल हूं। मेरे दिमाग में कोई खराबी नहीं है। आपको यदि विश्वास न हो तो मुझसे कोई भी सवाल कर लीजिए, मैं बिल्कुल ठीक जवाब दूंगा। यह मेरे हुलिए पर छपा नहीं। क्योंकि ये ठीक है कि अगर मैं आपको एक महीने के लिए ही किसी एक अंधेरे कमरे में बन्द कर दूं, आपको महीनों बाद नहाने या मुंह धोने को एक गिलास पानी दिया जाए तो क्या आपकी हालत भी मेरे जैसी नहीं हो जाएगी? मैं काफी दिनों से नहाया-धोया नहीं। शेविंग भी नहीं की। कपड़े भी नहीं बदल पाया। फिर जब भागा तो झाड़ियों में उलझकर कपड़े फट गये। आप मेरे हुलिए पर ना जाइए। मैं अभी नहाकर दूसरे कपड़े पहन लूंगा तो आपको सही दिखलाई पड़ने लगूंगा।"
"बात हुलिए की तो है ही नहीं मेरे भाई! बात तो तुम्हारे बयान की है? तुम बात पागलों जैसी कर रहे हो? तुम बोलते हो कि तुम्हारा तुम्हारी बीवी ने कत्ल कर दिया है?"
"हां।"
"कत्ल होने वाला का क्या हश्र होता है?"
"वो मर जाता है।"
"तो क्या तुम मर चुके हो?"
"जब मेरी बीवी ने मेरा कत्ल कर दिया है तो मैं मर ही चुका हूं?"
"हे भगवान...!" इन्स्पेक्टर विकराल सिंह दोनों हाथों से सिर थामकर मेज पर बैठ गया।
"आप मेरी बात को ऐसे नहीं समझ पाएंगे इन्स्पेक्टर साहब! जब तक मैं अपनी बात को सच साबित नहीं कर देता हूं, आप परेशान ही रहेंगे। मैं साबित कर सकता कि मेरी बीवी मेरी कातिल है। वो मेरा कत्ल कर चुकी है।"
"तुम ये बात साबित कर सकते हो?" विकराल सिंह की आंखें चौड़ी होती चली गईं।
"जी हां।"
"ये बात तो गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉड्स में छपने लायक हो जाएगी यार। तो साबित करो कि तुम अपनी बीवी के हाथों कत्ल हो चुके हो।"
"वो मैं बाद में करूंगा? पहले आप ये बोलिए कि क्या आप साजन को जानते हैं?"
"साजन मिश्रा!"
"जी हां?"
"वैसे तो कोई जान पहचान नहीं थी परन्तु मैं उसके बारे में जानता हूं।"
"क्या जानते हैं आप उसके बारे में?"
"वो एक मुजरिम था। उसने कत्ल किए थे। फिर जब उसने ये महसूस किया कि वो कानून के शिकंजे में फंसने वाला है तो उसने आत्महत्या कर ली थी।"
"आपको ये बात कैसे मालूम हुई थी कि वो कई जुर्म कर चुका था? क्या उसने ये बात सुसाइड नोट में लिखी थी?"
"उसने आत्महत्या करने से पहले वैसे सुसाइड नोट भी लिखा था तथा संक्षेप में अपने सारे जुर्मों को कबूल भी किया था परन्तु मुझे पूरी डिटेल्स उसकी बीवी सजनी ने दी थी। उसे कानून ने छह महीने की सजा दी थी।"
"महीने भर पहले ही वो जेल से रिहा हुई है और उसने किसी के साथ शादी की है?"
"हां—।" विकराल सिंह उसे सिकड़ी हुई आंखों से घूरते हुए बोला—"परन्तु तुम ये सब कुछ क्यों पूछ रहे हो? तुम साजन और उसकी बीवी सजनी के बारे में कैसे जानते हो?"
"क्योंकि साजन मैं ही तो हूं।"
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