मौत का साया
सुनील प्रभाकर
“क्या आपको गोवानी गाइड की जरूरत है?”
“नहीं!”
“सोच लीजिए सर...! ये गोवा है। आप यहां पहली बार आये हुए लगते हैं। उस सूरत में हम गोवानी गाइड आपकी भरपूर मदद कर सकते हैं।”
“मिस्टर...?”
“मिस्टर स्मिथ...!” गोवानी ने युवक बोला था—“स्मिथ मेरा नाम है सर...!”
“मिस्टर स्मिथ...! गोवा में मेरा ये सतरहवां चक्कर है। अर्थात में पूरे सोलह बार यहां आ चुका हूं।”
“ओह...!” गोवानी युवक का चेहरा उतर गया था। कदाचित् उसे जेम्स विलियम से आमदनी की अपेक्षा थी किन्तु जेम्स विलियम ने उसकी आशाओं पर झटके से पानी फेर दिया था।
“मैं आपकी कोई मदद कर सकता हूं सर?” उसने जैसे अन्तिम प्रयास किया था।
“यस...!” जेम्स को न जाने क्यों उसका मायूस चेहरा रास नहीं आया था—“क्या तुम मेरे लिए बढ़िया-सी टैक्सी ढूंढ सकते हो?”
“क...क्या कहते हैं सर...?” वो किन्चित विस्मय से बोला था—“यहां तो टैक्सियों की कतार...!”
“मेरा इशारा बढ़िया-सी टैक्सी की ओर है।”
“ब...बढ़िया-सी टैक्सी...!” उसने आश्चर्य से दोहराया था।
“हां!” जेम्स मुस्कुराया था—“भाई बढ़िया-सी टैक्सी वो होती है—जिसका ड्राइवर दक्ष और जल्द-से-जल्द गंतव्य तक पहुंचने की क्षमता रखता हो।”
“ओह...!”
“ये रहा तुम्हारा पारिश्रमिक...!” जेम्स ने जेब से पांच सौ का नोट खींचकर उसकी ओर बढ़ाया।
किशोर की आंखों में हैरानी के भाव उभरे। यूं जैसे उसे यकीन नहीं आ रहा हो कि कोई इतने जरा-से काम के लिए पांच सौ का नोट यूं झटके-से दे सकता है।
“क्या पारिश्रमिक कम है?” जेम्स ने मीठे स्वर में पूछा था।
“नो...नो सर...! काफी है।” उसने नोट झपटा और उसे जेब में ठूंसते हुए जेम्स की ओर बढ़ा और उसके हाथ में लटका सफारी बैग ले लिया।
जेम्स ने कोई विरोध नहीं किया।
बाहर टैक्सी वालों का शोर।
दोनों आगे-पीछे चलते हुए सीढ़ियां उतरे तो कई ड्राइवर उनकी ओर लपके किन्तु गाइड ने हाथ के इशारे से मना कर दिया। टैक्सी वाले पीछे हट गए।
जेम्स के लिए वो अगवानी-सी करता एक ओर को बढ़ता चला गया था।
थोड़ी देर बाद में अलग-थलग खड़ी टैक्सी के निकट पहुंचा।
ड्राइविंग सीट पर बैठा व्यक्ति ऊंघ रहा था।
“मनसुख अंकल...!” वो बैग भीतर रखकर तीव्र स्वर में बोला था।
अधेड़ जाग गया।
सवारी को देखकर वो सजग हो गया।
“साहब इम्पोर्टेड आदमी हैं। इन्हें जल्दी-से-जल्दी इनकी मंजिल तक पहुंचाना मांगता।”
“ठ...ठीक है!”
“कोई बढ़िया होटल—या फिर कहीं—जहां ये जाना चाहे।”
“ओह...!”
“टैक्सी स्टार्ट कर...! जल्दी...!” उसने दरवाजा खोलते हुए कहा।
टैक्सी स्टार्ट हो गई।
“क्या मैं आपकी कोई और मदद कर सकता हूं?” गाइड अभिवादन की मुद्रा में आता हुआ बोला था—“मुझे खुशी होगी सर...!”
“जी नहीं—शुक्रिया!” जेम्स ने शालीनता से कहा।
टैक्सी आगे दौड़ पड़ी।
¶¶
गोवा की सुरमई शाम उस समय अपनी पूरी खुशनुमाई पर थी जब सर जेम्स विलियम का आगाज गोवा की उस चमचमाती सड़क पर हुआ। जेम्स विलियम सुप्रसिद्ध प्राइवेट डिटेक्टिव।
इस समय वो एक नयी-नकोर टैक्सी में सवार था और टैक्सी द्रुत वेग से अपने गंतव्य की ओर दौड़ रही थी। जेम्स के शरीर पर वही परम्परागत लिबास था। वही जो सर्दी के मौसम में अक्सर उसके शरीर पर पाया जाता था। सिर पर क्लेंसी काला हैट—शरीर पर चौड़े कॉलर वाला ओवरकोट—होठों से लटक रही डनहिल की जलती सिगरेट जिसके कश वो रह-रहकर ले लेता था।
ड्राइवर अपनी कला में दक्ष टैक्सी को पूरी गति से दौड़ाए जा रहा था। शीघ्र ही मंजिल के दर्शन हुए और टैक्सी की गति आकस्मिक रूप से घटी और वो पार्क के निकट जाकर खड़ी हो गई।
जेम्स ने सिगरेट बाहर उछाली और नीचे उतरा—भारतीय मुद्रा में उसने पांच सौ का नोट ड्राइवर की ओर बढ़ाया।
ड्राइवर नोट समेत अभिवादन की मुद्रा में झुका और कम-से-कम सोलह दांतों के दर्शन मुस्कुराने की चेष्टा में कराया और फिर टैक्सी को सीधे दौड़ाता हुआ नजरों से ओझल हो गया।
जेम्स चन्द पलों तक उसे जाता देखता रहा फिर वो अपने स्थान से हिला।
सामान के नाम पर उसके पास कुछ नहीं था, इसलिए उसने दोनों हाथ लम्बे ओवरकोट की जेब में ठूंस रखे थे।
टैक्सी की नजरों से ओझल होते ही वो अपने स्थान से हिला और उस पार्क की ओर घूम गया—जो कि इस समय उसकी मंजिल बना हुआ था
पार्क शानदार था। उस रुमानी मौसम में भीतर अनगिनत जोड़े घूम रहे थे तो कुछ खुशनुमा मौसम का कुछ अधिक ही फायदा उठाने के मूड में गुम्बदाकार कलात्मक वृक्षों के झुरमुट में सिमटे हुए थे।
जेम्स विलियम गेट से भीतर प्रवेश द्वार पार्क के दूसरे छोर की ओर यूं बढ़ा जैसे उसे एकान्त की तलाश हो। जबकि असलियत ये थी कि वो सूक्ष्म दृष्टि से आस-पास का जायजा लेते हुए कुछ सोच रहा था।
वहां की रौनक जिस प्रकार बरकरार थी उसे देखते हुए ये हरगिज़ नहीं कहा जा सकता था कि मात्र चौबीस घण्टे पहले वहां कोई दहशतनाक घटना घटी है।
वहां सब कुछ पूर्ववत् नजर आ रहा था।
जेम्स विलियम सोचने पर बाध्य हुआ।
या तो वहां मौजूद लोगों को उस घटना की जानकारी नहीं थी या फिर देश-विदेश से आये उन पर्यटकों ने उस घटना को गम्भीरता से नहीं लिया था।
आस-पास का जायजा लेते हुए जेम्स वहां मौजूद बेंचों पर भी दृष्टि डालता जा रहा था। सुर्ख रंग के पेन्ट से हर बेंच पर नम्बर पड़े हुए थे और जेम्स विलियम को इक्कीस नम्बर की बेंच की तलाश थी—इसलिए वो उधर ही बढ़ रहा था जिधर बेंचों के नम्बर बढ़ रहे थे। शीघ्र ही वो पार्क के दूसरे छोर पर पहुंचा तो उसके जेहन को झटका-सा लगा।
पार्क के उस भाग में—खासतौर पर जहां इक्कीस नम्बर की बेंच थी—वहां सन्नाटा छाया हुआ था।
दूर-दूर तक सुनसान।
जेम्स सोचने पर बाध्य हुआ। उस घटना का आतंक पुरअसर रूप में वहां मौजूद था—तभी उस ओर कोई नहीं आया था और अगर पर्यटक उस घटना से न वाकिफ थे तो जरूर वहां के व्यवस्थापकों ने उधर किसी को आने नहीं दिया था। किन्तु ये बात जमती नहीं थी—कारण ये है कि वहां न तो कोई निर्देश पट्टिका थी न ही व्यवस्थापकों में से कोई नजर आ रहा था।
फिलहाल जेम्स ने इस विषय पर अधिक सोचना उचित नहीं समझा और इक्कीस नम्बर की बेंच की ओर बढ़ा। ठीक एकान्त की तलाश में किसी सनकी सैलानी की मुद्रा में।
मगर जेम्स अभी बेंच के निकट पहुंचा ही था कि उसे अपने पीछे हल्की-सी आहट का अनुमान हुआ।
साथ ही उसकी छठेन्द्रि ने उसे एक विचित्र-से रोमांच से लबालबरेज कर दिया।
जेम्स खतरे के संकेत को समझता था, इसलिए वो चौकन्ना होकर द्रुत वेग में घुमा।
उसे पेड़ों के झुरमुट में कुछ नजर नहीं आया किन्तु इसके बावजूद उसने चन्द लचीली शाखों की जुम्बिश को भांप लिया।
उसने द्रुत वेग से उस दिशा में छलांग लगानी चाही थी कि उसे पेड़ों की बैक से एक छोटी-सी गन की नाल की झलक मिली।
वो पलभर को अवाक्-सा होकर रह गया किन्तु खतरे का अहसास करते ही उसने बेहद फुर्ती से स्वयं को जमीन पर गिराया।
उसका गिरना था कि 'धांय...धांय' की आवाज के साथ पूरा पार्क गूंज उठा।
जेम्स रोमांच से भर उठा।
वो बाल-बाल बचा था।
गोली उसके झुकते ही उसके सिर के बालों को हवा देती पीठ के अति निकट से गुजरी थी और हवा में विलीन हो गयी थी। अगर उसे एक पल की भी देरी हुई होती तो अब तक वो गोलियां उसके सीने में समा चुकी होतीं।
नीचे गिरते ही वो चीते जैसी फुर्ती से उस दिशा की ओर घूमा जिधर से गोली चली थी। साथ ही उसके सिर की मांसपेशियां खींची और उसने सिर को एक खास अन्दाज में जुम्बिश दी।
उसका इशारा पाते ही क्लेंसी हैट में पड़ी रहने वाली बाइस कैलिबर की रिवॉल्वर सरक कर उसके हाथ में आ गई।
ये सब पलक झपकते ही हो गया—और जब वो मुकम्मल तौर पर घूमा तो रिवॉल्वर उसके हाथ में आ चुकी थी।
उसने वहां निगाह जमाई, जहां उसे गन अथवा रिवॉल्वर की लम्बी नाल की झलक मिली थी। वैसे उसे फायर से ये स्पष्ट हो गया था कि वो किसी माउजर की नाल थी। दूर मारक माउजर के धमाके से जेम्स परिचित था।
उसने वहां दृष्टि डाली तो पाया कि माउजर की नाल गायब थी। जहां उसकी मौजूदगी के चिन्ह मिले थे, वहां के पत्ते हौले-हौले हिल रहे थे।
जेम्स हैरान था।
उसने गोवा की धरती पर अभी मात्र एक घण्टा पूर्व पांव रखा था—और सामान वगैरा एक होटल के कमरे में छोड़ा, थोड़ा फ्रैश होकर निकल पड़ा था।
न किसी से कुछ लेना-देना—इसके बावजूद उस पर प्राणघातक हमला...! कौन थे वे? क्या चाहते थे? उसका कोई पुराना दुश्मन था या फिर दुश्मनों को खबर हो चुकी थी कि उन्हें नेस्तनाबूद करने के लिए जेम्स विलियम सक्रिय हो उठा है।
न केवल सक्रिय हो चुका है वरन् वो अपने पहले कदम के तहत गोवा पहुंच भी चुका है।
किन्तु ये बात कुछ जमती नहीं थी। कारण ये है कि इस समय वो सी०आई०डी० कि जिस सीनियर ब्रांच का सरगम जासूस था उसके हर मामले अति गोपनीय हुआ करते थे। खासतौर पर जो मिशन उसे सौंप जाते थे वो सी०आई०डी० के चीफ डायरेक्टर सर सूर्यकान्त महन्त को ही मालूम होते थे। अगर मिशन अति आवश्यक हो तो सरकार की सन्तुष्टि हेतु महन्त केवल गृह मन्त्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों को सूचित करते थे। सूर्यकान्त महन्त के अतिरिक्त उस मिशन की जानकारी केवल उनके पीए व वरिष्ठ अधिकारियों को होती थी—ऐसा कुछ खास परिस्थितियों में ही होता था—अन्यथा सारा मामला गोपनीय ही होता था।
किन्तु गोवा की सरजमीं पर पांव रखते ही ये अभूतपूर्व स्वागत ऐलान था इस बात का कि सीक्रेसी कहीं न कहीं लीक जरूर हुई है।
किन्तु कैसे हैं?
ये सोचने का अवसर जेम्स के पास नहीं था।
मौत सिर पर सवार थी।
वृक्षों के झुरमुट में छलांग लगाने की सोच ही रहा था कि सहसा उसकी दृष्टि जमीन से कुछ इंच ऊपर पड़ी।
उसकी आंखें सिकुड़ गई।
जिस माउजर की नाल ने अभी उस पर मौत के शोले बरसाए थे वहीं अब जमीन से कुछ इंच ऊपर मौजूद उसे घूर रही थी और वो उसकी तलाश ऊपर कर रहा था।
स्पष्ट था कि आक्रमणकारी ने अभी हिम्मत न हारी थी। चूंकि वो जमीन पर पड़ा था, इसलिए वो सीधे उसके सिर में गोली उतार देने की फिराक में था।
जेम्स विलियम ने लुढ़कते हुए अपना स्थान छोड़ा—इसके अतिरिक्त चारा भी क्या था।
“धांय...धांय...!”
पहले कलाबाजी खाते ही पुनः फायर की गूंज और एक बार फिर जेम्स विलियम ने मौत को शिकस्त देने में कामयाबी पाई।
गोली उसके बाएं कान को हवा देती हुई गुजर गयी थी।
वो नर्म घास पर मछली की तरह फिसल कर सीधा हुआ और उसका रिवॉल्वर गरजा।
फौरन पेड़ के उस तरफ घुटी-घुटी-सी चीख गूंजी और रिवॉल्वर जहां-का-तहां गिर गया।
जेम्स द्रुत वेग से उठा और रिवॉल्वर थामे-थामे ही उस ओर को दौड़ा।
पेड़ों की बैक में पहुंचते ही वो रुका—वहां कोई नहीं था। ये कोई नयी बात नहीं थी। नाकाम होने के बाद हमलावर को वहां मौजूद रहकर उसकी प्रतीक्षा थोड़े ही करनी थी। जेम्स ने दौड़ते हुए आस-पास की तलाशी ले डाली—किन्तु कोई नजर नहीं आया।
उसने पेड़ों के ऊपर भी दृष्टि डाली—शायद हमलावर पेड़ पर चढ़कर छुप गया हो—किन्तु ऐसा नहीं था।
उसका शक निर्मूल साबित हुआ।
तभी उसे अहसास हुआ—जैसे कोई दीवार पर चल रहा हो। दीवार पर चढ़ने से पेट की रगड़ से पैदा होने वाली आवाज उसे सुनाई दी थी।
वो बाउण्ड्री वॉल की ओर भागा—निकट पहुंचने पर उसने एक साए को उस पार कूदते देखा।
“हॉल्ट...! रुक जाओ वर्ना...!” जेम्स विलियम्स सांप तरह फुंफकारा किन्तु साया उस पार कूद चुका था।
वो दौड़ते हुए दीवार तक पहुंचा।
दीवार काफी ऊंची थी—वो ऊपर पहुंचा ही था कि किसी गाड़ी के स्टार्ट होने का स्वर उभरा।
जेम्स ने देखा एक न्यू मॉडल सैलो कार के पहिये हिल चुके थे।
जेम्स विलियम नीचे कूदा—साथ ही उसने फायर भी किये किन्तु वो गाड़ी निर्विघ्न रुप से दौड़ती चली गयी।
जेम्स विलियम की दृष्टि कार के पीछे लगी नम्बर प्लेट से चिपकी किन्तु वहां पहले ही एक काला कागज चिपका हुआ था।
यानी की नम्बर प्लेट को ढक दिया गया था।
तभी जेम्स विलियम की दृष्टि टेल लाइट के बगल में चिपके हुए खूबसूरत स्टिकर पर पड़ी।
स्टिकर में सलमान खान बाजुओं को फैलाए बॉडी बिल्डर की मुद्रा में खड़ा था।
जेम्स विलियम ने आस-पास किसी वाहन की तलाश में दृष्टि घुमाई किन्तु उसके हाथ निराशा लगी।
जेम्स विलियम सलमान खान की उस तस्वीर व वो स्पॉट जहां वो तस्वीर लगी थी जेहन में बिठाता हुआ वापस दीवार पर चढ गया।
वो भीतर कूदा और तीव्र कदमों से उस स्थान की ओर बढ़ा जहां रिवॉल्वर गिरा था।
गोलियों की घनगरज ने वहां सनसनी फैला दी होगी—ये सुनिश्चित था। यही वजह थी कि पुलिस या पब्लिक के एकत्र होने से पूर्व वो फारिग हो जाना चाहता था।
वो उस स्पॉट पर पहुंचा जहां हमलावर की गन गिरी थी।
गन जो कि लम्बी नाल वाला माउजर था यथास्थान पड़ा था।
जेम्स ने गहरी दृष्टि से माउजर के आस-पास देखा—वो माउजर से थोड़ा हटकर खून की चन्द बूंदे घास की चोटियों पर नजर आ रही थीं।
जेम्स ने घास जरा-सी हटाई—तो घास के मध्य थोड़ा खून पड़ा नजर आया।
एक बारीक लकीर की शक्ल में! जो कि सबूत था इस बात का कि गोली ने अपना काम थोड़ा ही सही किन्तु किया जरूर था।
जेम्स ने जेब से रुमाल निकाला और उसी में लपेटकर माउजर उठाया। दूर मारक क्षमता वाले उस माउजर को जेम्स विलियम ने गौर से देखा तो मन-ही-मन चौंक गया।
वो माउजर चीन निर्मित था।
वैसे हथियारों की एक बड़ी खेप चीन ने पाकिस्तान को सप्लाई की थी—और वैसे आधुनिक हथियारों को पाकिस्तान ने आतंकवादी गुटों को सप्लाई किया था।
वैसे चीन की वो कम्पनी धन हासिल करने के लिए वैसे तमाम हथियारों की बिक्री धड़ल्ले से करती थी।
किन्तु उस माउजर का हमलावर के पास पाया जाना जेम्स के मानो मस्तिष्क में सुगबुगाहट-सी भरता चला गया था।
जेम्स ने रुमाल समेत उस माउजर को जेब में रखा और तेज-तेज कदमों से गेट की ओर बढ़ा।
आगे बढ़कर उसने देखा तो पाया कि पूरा पार्क खाली हो चुका था—एक अफरा-तफरी का माहौल।
स्पष्ट था कि गोलियों की घनगरज ने वहां भगदड़-सी मचा दी थी।
जेम्स वहां से भागता हुआ बाहर फुटपाथ पर पहुंचा और उधर की ओर बढ़ता चला गया जिधर टैक्सी मिलने की उम्मीद थी।
थोड़ी देर बाद टैक्सी उसे मिल चुकी थी और वो टैक्सी में बैठा वापस होटल की ओर जा रहा था।
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