मौत का आखिरी सवाल
निःसंदेह ये मिशन मेरे लिए सवाल बन गया था—
मौत का!
और मौत को जवाब देने के लिये मुझे बार-बार मौत के मुंह से निकलना था, लाशों के ढेर लगाने थे, खून के दरिया पार करने थे—और मरना नहीं था, हमेशा की तरह मौत की खतरनाक चालों पर फतह हासिल करनी थी।
मगर...!
इस बार क्या ये मुमकिन था? आखिर मैं भी एक इंसान ही हूं। इस बार मौत ने जाल ही ऐसा बिछाया था कि मेरी जरा-सी चूक मेरी जिन्दगी की तूफानी दास्तान पर 'दी एण्ड' लगा सकती थी।
मैं....!
रीमा....रीमा भारती!
भारत की सबसे गुप्त एवं महत्वपूर्ण जासूसी संस्था इन्डियन सीक्रेट कोर यानि आई.एस.सी. की नम्बर वन एजेन्ट, जिसे उसका भारी-भरकम चीफ खुराना हमेशा मौत से पंजा लड़ाने वाले टाइप के खतरनाक से खतरनाक मिशन ही सौंपता है। मानो मैं हांड़-मांस की बनी ही नहीं हूं। ऊपर वाले से अमरत्व का वरदान लेकर पैदा हुई हूं। कभी मरूंगी ही नहीं।
लेकिन—
इस बार ये मिशन खुराना ने नहीं, मानो मौत ने अपने रूप में मेरे गले डाला था। ये मिशन बे-मौसम बरसात की तरह मेरे ऊपर आ टपका था।
मैं खाली थी।
छुट्टियों के मूड में थी।
मेरी हर शाम बहुत मजे से गुजर रही थी।
उस शाम भी मैं पूरी मस्ती के मूड में नियाग्रा नाइट क्लब में मौजूद थी। मैं तो बगैर मेकअप के भी होऊँ तो भी चाहें जवान हों या बूढ़े—सभी के दिलों पर बिजलियां गिराती हूं। उस घड़ी भी पता नहीं किस-किस पर बिजली गिर रही थी? मैं कितनी ही प्यासी नजरों का मरकज़ बनी हुई थी।
मगर मैं थी कि उन सब नजरों से लापरवाह अपनी ही मस्ती में मस्त थी, एकदम तन्हा....साथी का क्या था, वो तो मैं चुटकी बजाते ही पलभर में ढूंढ सकती थी। भला वो कौन है जो मुझ जैसी अप्सरा के साथ एक शाम बिताने का हसीन मौका गवाना पसंद करेगा। मैं ही दूसरों को 'इग्नोर' करती हूं, कोई मुझे नहीं।
मेरे हलक में दो पैग उतर चुके थे और तीसरे की मैं तलबगार थी, उसके बाद मेरा इरादा डांस फ्लोर पर 'कूद' पड़ने का था, जहां इस वक्त बड़ा ही उत्तेजक संगीत बज रहा था।
और—
अभी मैं करीब से गुजर रहे वेटर को तीसरे पैग का आर्डर देने ही जा रही थी कि सहसा मेरे सामने टेबल पर रखे मेरे कीमती मोबाइल की स्क्रीन 'ऑन' हो गई।
स्क्रीन पर फ्लैश करते नाम पर नजर पड़ते ही मेरे मुंह का जायका बिगड़ गया, सारी मस्ती हवा हो गई।
वो नाम था—'खुराना'।
और इस वक्त खुराना का फोन आने का सीधा-सा मतलब था कि मेरी मौज-मस्ती के दिन खत्म! शायद कोई नया मिशन मेरे पल्ले पड़ने वाला था।
बहरहाल फोन तो उठाना ही था। मैंने उठाया—“हैलो!”
“कहां हो?” खुराना का भावहीन स्वर।
“जी, क्लब में....।”
“फौरन हैडक्वार्टर पहुंचो, मैं तुम्हारा वेट कर रहा हूं।”
“जी, लेकिन....।”
मगर वाक्य पूरा करने की जगह मुझे गहरी सांस लेकर रुक जाना पड़ा, दूसरी तरफ से फोन डिसकनेक्ट हो चुका था। खुराना को इस बात से कोई मतलब नहीं होता था कि मैं कहां मर रही थी? हमेशा ऐसा ही होता था। उसने हुक्म दनदनाना होता था और फोन कट....।
अब जाना तो था ही।
खुराना का हुक्म नजरंदाज कर दे, इतनी तो रीमा भारती यानि मेरी भी मजाल नहीं है।
मन मार कर मैंने टेबल को टाटा-बाय-बाय कहा और बिल पे करके क्लब से बाहर निकल आई।
और बस....।
यहीं से वो खेल शुरू हो गया।
मौत का खतरनाक खेल।
मैंने पार्किंग लॉट में खड़ी अपनी कार का दरवाजा खोला ही था कि एक बेआवाज गोली सनसनाती हुई मेरी कनपटी के करीब से गुजर गई।
मैंने बला की फुर्ती से कार में जम्प लगाते हुए गोली की दिशा में देखा, सड़क के किनारे एक बाइक सवार अपनी बाइक स्टार्ट कर रहा था।
कदाचित मेरे ऊपर चलाई अपनी गोली को नकारा होते देख अब वो भागने की फिराक में था।
परन्तु मैं उसे कहां छोड़ने वाली थी!
कोई मेरी जान लेने की कोशिश करे और बचकर निकल जाये, ये तो रीमा की डिक्शनरी में ही नहीं लिखा था। मैंने तुरन्त निर्णय लेते हुए कार स्टार्ट की, उसे रिवर्स गियर में डाला और एक्सीलेटर पूरा दबा दिया।
कार मिसाइल की तरह पीछे झपटी और भड़ाक से दूसरी लेन में खड़ी किसी कार के बम्पर से टकराई। वातावरण में भड़ाक की तेज आवाज गूंजी थी।
लेकिन उस वक्त मुझे किसी भी बात की परवाह ही कहां थी?
मैंने गियर बदला, कार मोड़ी—और अगले ही मिनट मेरी कार सड़क पर उस बाइक के पीछे थी जो तीर बनी मुंबई की एक चिकनी सड़क पर दौड़ी जा रही थी।
उस घड़ी मेरे जबड़े सख्ती से कसे हुए थे, आंखों में खून तैर रहा था। जेहन में सिर्फ एक ही ख्याल था कि एक बार वो पट्ठा मेरे हाथ आ जाये, फिर मैं उसे बताती हूं अपने ऊपर गोली चलाने का मतलब!
इस शहर, इस देश या यूं कहो कि इस धरती पर मेरे बेतहाशा दुश्मन थे, जो हर घड़ी मेरी मौत के तलबगार बने रहते थे और वक्त-बेवक्त ऐसी कोशिशें भी करते रहते थे। वो उनमें से कोई एक था या फिर कोई किराये का हत्यारा हो सकता था—कोई सुपारी किलर, जिससे किसी ने करोड़ों में मेरी मौत का सौदा किया हो सकता था। वैसे वो कौन था, ये तो मुझे वही बता सकता था।
मगर....।
कितनी गलत थी मैं, जो मौत के बिछाये जाल की तरफ अपना पहला कदम बढ़ा चुकी थी।
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गजब था वो शख्स, अपनी बाइक इस कदर उड़ाये लिए जा रहा था कि लगातार दस मिनट उसके पीछे लगी रहने के बाद मैं अभी तक उसे कब्जे में करने में सफल नहीं हो पाई थी। वो पट्ठा ऐसे-ऐसे कट मार रहा था कि देखते ही बनता था।
इस समय हम जिस सड़क पर थे, तो सीधी एक फ्लाईओवर की तरफ जाती थी।
यह फ्लाईओवर कई सड़कों को जोड़ता था और दूर से देखने पर यह किसी सांप सीढ़ी की तरह नजर आता था, किन्तु इस फ्लाईओवर के सारे रास्ते अन्त में एक ही रास्ते से आ जुड़ते थे, अतः आप किसी भी रास्ते से फ्लाईओवर में प्रवेश करें, आपको घूम-फिर कर एक ही रास्ते पर पहुंचना होता था।
वो उसी तरफ बढ़ रहा था।
कुछ सोचकर मैंने अपनी कार अन्य सड़क पर मोड़ दी, ये सड़क भी उसी फ्लाईओवर पर जा मिलती थी।
मैं फ्लाईओवर पर पहुंची। मैं जिस रास्ते पर थी, वो एक घुमावदार बाजू की तरह था।
मैंने देखा, वो सीधा ऊंचाई की तरफ बढ़ रहा था। उसके सिर पर काला हेलमेट था, कपड़े भी कुछ वैसे ही कलर के पहने था। पीठ पर एक बड़ा-सा पिट्ठू बैग बन्धा था।
“भाग ले बेटा, जितना भागना है।” मैं बुदबुदाई—“आखिर में तुझे आना तो मेरे ही कब्जे में है।”
वो फ्लाईओवर के टाप पर पहुंचा, वहां से वो ढलान शुरू होता था जो हम दोनों को एक ही प्वाइंट पर ले जाने वाला था।
मैं इस बात का पूरा ध्यान रखे हुए थी कि हम दोनों के वाहन एक ही समय पर उस प्वाइंट पर पहुंचें ताकि मैं उसे दबोच सकूं।
परन्तु!
सहसा मैं न सिर्फ चौंक गई बल्कि बड़ी फुर्ती से मेरा पांव अपनी कार के ब्रेक पैडल पर जा पड़ा।
कारण! मैंने देखा था कि उसने फ्लाईओवर के टॉप पर पहुंचकर अपनी बाइक रोक दी थी। फिर वो बाइक से उतरा और फ्लाईओवर के किनारे की तरफ दौड़ लगा दी।
मेरी कार भी रुक चुकी थी। साथ ही मैं सोचने पर विवश थी कि क्या करने जा रहा था वो?
और....।
फिर मेरे देखते ही देखते उसने फ्लाईओवर से नीचे जम्प लगा दी।
कुछ पल उसका जिस्म तेजी से नीचे गया, लेकिन उसके बाद उसके ऊपर पैराशूट खुलता चला गया। उसका जिस्म झटका खाकर धीमा हुआ और फिर वो किसी पतंग की तरह हवा में तैरता चला गया।
पल भर बाद ही वो मेरी आंखों से दूर होता अन्धेरे में गुम हो गया।
मेरे होठों से गहरी सांस निकल गई।
पट्ठा मुझे ठेंगा दिखा गया था।
किन्तु मैं करती भी क्या? उसने चाल ही ऐसी चली थी।
लेकिन बात यहीं खत्म नहीं हो गई थी।
खेल तो अब शुरू हुआ था।
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