मौत बुलाती है
अजगर
समुद्री सफर का यह चौथा दिन था।
इन्द्रजीत डेक पर खड़ा किसी गहरी सोच में डूबा हुआ था। शालिनी उसके समीप ही खड़ी बार-बार उसकी ओर देख रही थी। वह उससे कुछ कहना चाहती थी, पर इन्द्र के चेहरे का भाव उसे रोक देता था। इतने दिनों के साथ में वह समझ गई थी कि जब भी वह सोच में होता है, किसी प्रकार की टोका-टोकी पसन्द नहीं करता था।
दूर क्षितिज में सूरज डूब रहा था। उसकी गुलाबी किरणों ने आकाश को मानो गुलाल से सराबोर कर रखा था। हवा शांति थी और दूर-दूर तक समुद्र का नीला पानी फैला हुआ था।
इन्द्रजीत ने सिगरेट निकालकर सुलगाया।
“किस सोच में डूबे हो...?” शालिनी ने हिम्मत करके पूछा।
“मैं सोच रहा हूं कि उस टापू के नजदीक पहुंच भी गये, तो टापू तक कैसे पहुंचेंगे...। ऐसा तो नहीं हो सकता कि उन लोगों ने टापू की सुरक्षा का कोई उपाय नहीं किया हो। वहां बारूदी सुरंगें हो सकती हैं। पानी में बिजली हो सकती है। लेजर किरणों का जाल हो सकता है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि वे लोग विज्ञान की विकसित तकनीकियों की जानकारी रखने वाले हैं। एटोमिक बैटरी और ऑटोमेटिक सब-मरिन का प्रयोग करने वाले...।”
“और हमारे पास क्या है? ऑटोमेटिक रिवाल्वर...।” शालिनी ने बुरा-सा मुंह बनाते हुए कहा—“इस जहाज पर बैलेस्टिक लांचर और लेजर बीम प्लान्ट जरूर हैं, पर ये हमारे किस काम के हैं...? हम टापू तक इन्हें ले जा नहीं सकते...। आखिर तुम इस जिद पर क्यों अड़े हो कि अपने रिसर्च का प्रयोग नहीं करोगे?”
“तुम जानती हो कि वह रिसर्च क्या था?”
“नहीं!”
“हम एक ऐसे सर्किट पर काम कर रहे थे, जिसमें लगी एक ऑटोमेटिक बैटरी इस पृथ्वी पर कहर ढा सकती है। एक छोटा-सा यन्त्र शक्तिशाली परमाणु बमों का भी रुख मोड़ सकता है। यह अपनी पन्द्रह सेकण्ड की किरण से धरती के किसी हिस्से को राख बना सकता है। इससे दस हजार गुना अधिक फसल उगाई जा सकती है। भारी-भरकम गाड़ियां एक महीने तक चलाई जा सकती हैं, कल-कारखानों को एक महीने तक 100 मेगावाट बिजली की आपूर्ति की जा सकती है!”
“हे भगवान...!” शालिनी ने अवाक् भाव से उसे देखा—“और इतनी महत्वपूर्ण खोज तुम लोगों ने दबा ली...। हमारे देश को इसकी जरूरत है। तुम जानते हो कि हमें यह शक्ति मिल जाए, तो हम...।”
“आदर्शों की दुनिया में मत घूमो शालिनी...।” इन्द्र मुस्कुराया—“आज मैं सरकार के सामने इस बात को स्वीकार कर लूं कि रिसर्च सफल रहे थे, तो सरकार इसे अपनी सुरक्षा में ले लेगी...। यह किसी आम आदमी के काम नहीं आएगा। वैज्ञानिक आविष्कारों के साथ अब तक हुआ क्या है? गरीबों के लिए तो जीवन रक्षक दवाएं भी उपलब्ध नहीं हैं। कूलर, एयर कण्डीशनर, फ्रिज, कार, हेलीकॉप्टर...किन लोगों को उपलब्ध हैं? उनको, जो उनकी कीमत चुका सकते हैं...। और इनकी कीमत चुकाने की होड़ में आज मनुष्य स्वयं मूल्यहीन हो गया है...। उसका मूल्य अब इन चीजों के आधार पर लगाया जाता है।”
“तुम्हें तो दार्शनिक होना चाहिए था...। वैज्ञानिक कैसे बन गए?”
“नादान था। समझता था कि यह मानवता की सेवा है। पर शास्त्री...एक महान आत्मा थे। वे जानते थे कि ऐसे आविष्कारों का सरकारें क्या करती हैं...। मैंने उन्हें वचन दिया था कि इन रिसर्चों को, जो एक ही यन्त्र से सम्बन्धित थे, भूल जाऊंगा। तुम भी उस किस्से को भूल जाओ। मैंने तो कभी नहीं देखा कि किसी देश की जनता किसी देश पर चढ़ दौड़ी हो। जब भी युद्ध होता है, जब भी मानवता घायल होकर कराहती है, जब भी यह दुनिया नर्क बनती है, वह इन सरकारों का भी कारनामा होता है।”
शालिनी मुग्ध होकर उसके चेहरे को देखती रह गई।
“इस तरह क्या देख रही हो...?” इन्द्रजीत ने पूर्ववत् मुस्कुराते हुए पूछा।
“कुछ नहीं...।” शालिनी के गाल शर्म से गुलनार हो गए। उसने पलकें झुकाते हुए कहा—“हमें कैप्टन से पता करना चाहिए कि अब हमारी मंजिल हमसे कितनी दूर है?”
“हां, चलो।”
दोनों डेक से नीचे उतर आए। कैप्टन सुधाकर उस समय इन्हीं दोनों को ढूंढ रहा था। उसके चेहरे पर व्याकुलता थी। उसने उन्हें देखते ही कहा—“मुझे आप लोगों से कुछ बातें करनी हैं।”
“आइए...।” इन्द्रजीत ने उसे साथ आने का इशारा किया। तीनों इन्द्र के केबिन में पहुंचे।
“बैठिए...।” इन्द्र ने कहा—“बात क्या है कैप्टन? आप चिंतित नजर आ रहे हैं?”
“आपको विश्वास है कि आपने जो नक्शा हमें सौंपा है, वह सही है...?” कैप्टन ने पूछा।
“नहीं...!” इन्द्र ने कहा—“जिस व्यक्ति ने यह नक्शा उन अपराधियों के अड्डे से चुराया था, उसका कहना था कि यह उसी रहस्यमय टापू का नक्शा है, जिसकी हमें तलाश है।”
“अब वह आदमी कहां है?”
“पता नहीं। शायद मार डाला गया हो...। लेकिन बात क्या है?”
“हम जिस क्षेत्र की ओर बढ़ रहे हैं, वह एक रहस्यमय समुद्री क्षेत्र है। उसके बारे में अब तक किसी को कुछ भी नहीं मालूम।”
“क्या मतलब?”
“इस क्षेत्र में गहरी धुन्ध छाई रहती है। जो भी जहाज या पनडुब्बी इस क्षेत्र में गया, वापस नहीं लौटा। हवाई जहाज से धुन्ध के कारण कुछ नजर नहीं आता। यहां तक कि विद्युत चुंबकीय तरंगें भी उससे टकराकर वापस लौट जाती है।”
“तब तो मैं गारण्टी के साथ कह सकता हूं कि नक्शा सही है। हमें इसी क्षेत्र में जाना है।”
“इस जहाज का कैप्टन होने के नाते, मेरी भी कुछ जिम्मेदारियां हैं। इस क्षेत्र में जहाज ले जाने का मतलब आत्महत्या है।”
“आप कहना क्या चाहते हैं...?” इन्द्र ने क्रोधित होकर पूछा—“आप आगे बढ़ने से इंकार कर रहे हैं?”
“जी, हां। मैं इस क्षेत्र में जहाज ले जाने की इजाजत नहीं दे सकता।”
“मिस्टर सुधाकर...।” शालिनी ने तीखे स्वर में कहा—“आपको सरकार ने एक मिशन पर भेजा है। आपको नौसेना का लिखित आर्डर प्राप्त है कि आपको हमारे निर्देशानुसार काम करना है।”
“आप कहने लगें कि जहाज में बम लगाकर पानी में कूद जाओ, तो मैं कूद जाऊंगा...?” सुधाकर ने व्यंग से मुस्कुराते हुए कहा—“वैसे भी जहाज का कैप्टन किसी के आदेश को मानने के लिए बाध्य नहीं है।”
“देखिए कैप्टन...।” इन्द्रजीत ने झुंझलाकर कहा—“हम आपके अधिकार क्षेत्र को चुनौती नहीं दे रहे। हम तो चले ही इसी क्षेत्र में जाने के लिए थे।”
“इसके बारे में मुझे कुछ बताया नहीं गया था।”
“हमने यह मिशन गोपनीय रखा था। दुश्मन के आदमी कहीं भी, किसी भी वेश में हो सकते थे।”
“आप यह कहना चाहते हैं कि इस क्षेत्र में किसी अपराधी ने अपना अड्डा बना रखा है?”
“हां।”
“नामुमकिन! इस क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति ऐसी नहीं है। यहां तो हेलीकॉप्टर या हवाई जहाज भी नीचे आने पर खिंचकर धुन्ध में समा जाते हैं। फिर उनका कुछ पता ही नहीं चलता।”
“यह धुन्ध उन्हीं लोगों द्वारा फैलाई गई है। कैप्टन! यदि आपको प्राणों का इतना मोह था, तो नौसेना ज्वाइन ही नहीं करना चाहिए था...।” शालिनी ने गुस्से से कहा।
“मैं प्राणों की परवाह नहीं करता, लेकिन इस जहाज के प्रति मेरा कुछ कर्तव्य है...। इसमें एक पनडुब्बी है। आप चाहें, तो उसका प्रयोग कर सकते हैं...। मैं आपको इस धुन्ध वाले इलाके में किनारे तक ले चल सकता हूं।”
तभी असिस्टेंट कैप्टन मोहम्मद बशीर घबराया हुआ यहां पहुंचा। उसके हाथ में एक ट्रांजिस्टर था। उसने कहा—“सभी फ्रीक्वेंसी पर कोई विचित्र संदेश दे रहा है।”
“क्या मतलब...?” कैप्टन सुधाकर ने चिंहुकते हुए पूछा—“कैसा संदेश?”
“कैप्टन! जहाज का वायरलेस संपर्क टूट गया है। उस पर केवल एक ही आवाज बार-बार रिपीट हो रही है। वही आवाज ट्रांजिस्टर की सभी फ्रिकवेंसीयों से आ रही है। इसने भी काम करना बंद कर दिया है।”
इन्द्रजीत ने उसके हाथ से ट्रांजिस्टर झपटते हुए उसका स्विच ऑन कर दिया। उस पर भयानक कहकहा गूंज रहा था। अचानक कहकहा बंद हो गया और किसी युवती के विलाप करने का स्वर उभरने लगा। उस आवाज में इतनी पीड़ा और इतना दर्द था कि इन्द्रजीत के रोंगटे खड़े हो गए। शालिनी भी सिहर उठी। कोई युवती बुरी तरह बिलख रही थी। अचानक उस पर आवाज उभरी—“हे भगवान...! क्या तुम भी नहीं हो...? अब नहीं बर्दाश्त होता भगवान! मुझे बचा लो भगवान...!”
“यह तो रतिबाला की आवाज है...।” इन्द्रजीत व्याकुल भाव से बोला—“वह किसी भारी मुसीबत में लगती है...।”
अचानक रेडियो से ठहाके की आवाज गूंजने लगी। उसमें से एक जाना पहचाना स्वर उभरा—“तुम ठीक समझे इन्द्रजीत सिंह! यह रतिबाला ही है। वह रतिबाला जो तुम्हारी साली है और इस नर्क में पड़ी है। यमराज ने उसे अपने प्रेमी की लाश के साथ...ही...ही...ही...एक अन्धेरे गार में छोड़ दिया है।”
“फराह खान कहां है...?” इन्द्रजीत गुर्राया।
“फराह शास्त्री कहो मिस्टर सिंह! वह शास्त्री की बेटी है। अभी उसे सुरक्षित रखा गया है। अभी उसे कुत्तों वाले बाबा भैरवानन्द की सेवा में पेश नहीं किया गया है। वह इस समय तुम्हारी साली में ही मस्त है।”
“तू जरूर किसी हरामी की औलाद है...।” इन्द्रजीत दांत पीसता हुआ बोला—“रतिबाला तेरे पास है और तू उसके साथ कुछ भी कर सकता है, लेकिन याद रख! अगर उसे कुछ हुआ, तो तेरी खैर नहीं।”
“पहले तू मुझ तक पहुंच तो ले बेटे...।” उधर से फिर कहकहा उभरा—“तू तो दो महीने से अपने सिर के बाल नोच रहा है। मुझे नेस्तनाबूद करने की धमकियां दे रहा है।”
“तू पाताल में भी छुप नहीं सकता। मेरी जिंदगी का एक ही उद्देश्य है। तुझे ढूंढ कर तेरे मुकाम तक पहुंचाना। तू क्या समझता है? एक नकली धुन्ध की चादर बनाकर तू उसमें छुप जाएगा?”
“ओह! तो तुम्हें यह मालूम हो गया है...? मैं समझ नहीं पा रहा था कि तुम्हारा जहाज मेरे क्षेत्र की ओर क्यों बढ़ रहा है...। लेकिन बेटे! तू केवल इतना जानता है कि मैं धुन्ध में छुपा बैठा हूं...। पर तू यह नहीं जानता कि यह धुन्ध है क्या बला...? इसके अंदर घुसते ही, इंसान तो इंसान, लेसर किरणें और परमाणु मिसाइलों तक की शक्तियां बेकार हो जाती हैं...। तू मौत को गले लगाना ही चाहता है, तो आ जा! तेरी मौत तेरा इंतजार कर रही है...।”
“नवीन कहां है?”
“वह हमारे किसी काम का नहीं था। हमने उसे मार डाला है। अब तक वह समुद्री मछलियों के पेट में पच भी गया होगा...।”
इन्द्रजीत सन्न रह गया। उसका पाला एक ऐसे अपराधी से पड़ गया था, जो क्रूर, निर्मम, बेहद नीच प्रकार का दरिंदा था। उसने ट्रांजिस्टर ऑफ कर दिया। इस समय उसके जबड़े भिंचे हुए थे और आंखों से ज्वाला निकल रही थी।
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