मर जाओ मेरे लिए : Mar Jao Mere Liye
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इस उपन्यास का कथानक भी देश–काल की घटनाओं और समस्याओं को आधार बनाकर तैयार किया गया है। आज विश्व की राजनीति में जिस प्रकार की हलचल है, जिन समस्याओं से देश की सरकारें जूझ रहीं हैं, यह बात खुली किताब की तरह है। मैंने अपने इस उपन्यास के लिए कथानक का आधार उन्हीं समस्याओं को बनाया है, जिसकी आपको चिंता है, देश को और विश्व को चिंता है।
Mar Jao Mere Liye
Reema Bharti
Ravi Pocket Books
BookMadaari
प्रस्तुत उपन्यास के सभी पात्र एवं घटनायें काल्पनिक हैं। किसी जीवित अथवा मृत व्यक्ति से इनका कतई कोई सम्बन्ध नहीं है। समानता संयोग से हो सकती है। उपन्यास का उद्देश्य मात्र मनोरंजन है। प्रस्तुत उपन्यास में दिए गए हिंसक दृश्यों, धूम्रपान, मधपान अथवा किसी अन्य मादक पदार्थों के सेवन का प्रकाशक या लेखक कत्तई समर्थन नहीं करते। इस प्रकार के दृश्य पाठकों को इन कृत्यों को प्रेरित करने के लिए नहीं बल्कि कथानक को वास्तविक रूप में दर्शाने के लिए दिए गए हैं। पाठकों से अनुरोध है की इन कृत्यों वे दुर्व्यसनों को दूर ही रखें। यह उपन्यास मात्र 18 + की आयु के लिए ही प्रकाशित किया गया है। उपन्यासब आगे पड़ने से पाठक अपनी सहमति दर्ज कर रहा है की वह 18 + है।
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मर जाओ मेरे लिए
रीमा भारती अपने बेडरूम में थी। टी.वी. पर दस बजे की एक्सक्लुसिव न्यूज देख-सुनकर बिस्तर पर जाना उसके शौक में शामिल था। जब भी वह मिशन पर नहीं होती थी—देश-दुनिया की सनसनीखेज़ खबरों से जुड़ी रहकर वह नींद के आगोश में जाने की आदी थी।
उसने कॉफी का मग खाली किया—टी. वी. स्क्रीन पर विज्ञापनों का सिलसिला थमते ही न्यूज रीडर की सनसनाती आवाज उभरी—
“आज की सबसे सनसनीखेज खबर—मुम्बई के कार्टर रोड, जौहरी बाजार में दुःसाहसिक लूट। लुटेरे वारदात को अन्जाम देने के बाद फरार।”
बिस्तर पर लेटने के अन्दाज में जिस्म को फैला चुकी रीमा भारती न्यूज को सुनते ही उठकर बैठ गयी।
ज्यों-ज्यों न्यूज की लाइनें आगे बढ़ रहीं थीं और लूट वारदात की कवरेज सामने आ रही थी, उसे लग रहा था—सब कुछ उसके सामने घटित हो रहा है। नाक के नीचे लूट की वारदात को अंजाम दिया जा रहा है। बस फर्क यह है कि उसे पीछे पलटकर देखने का कोई अवसर नहीं, अन्यथा सब कुछ उसकी आंखों के सामने घट रहा होता।
“नहीं!” वह बुदबुदा उठी—“अगर मुझे पीछे पलट कर देखने या किसी कारणवश एक मिनट रुकने का अवसर मिल गया होता तो इस समय की सबसे एक्सक्लुसिव रिपोर्ट की रिपोर्टिंग कुछ और होती। टी. वी. स्क्रीन पर इस समय जो देश और दुनिया को दिख रहा, वह कुछ इस प्रकार होता— लुटेरों पर इसके द्वारा गोलियां चलायी जा रही हैं। वह लूट की वारदात को अंजाम देने वाले दुःसाहसिक लुटेरों से जान पर खेलकर जूझ रही है। दो-चार लुटेरों की लाशें बिछी होतीं। बचे हुए लुटेरों तथा उसके बीच गोलियों का अदान-प्रदान हो रहा होता। टी.वी. इण्डिया की टीम उसके और बचे लुटेरों के बीच गोली-बारी को टी. वी. कैमरे में कैद कर रही होती। यह समाचार बदले हुए हालात में, पूरे देश के टी. वी. चैनलों पर दिखाया जा रहा होता।”
लेकिन ऐसा हुआ न था। होते-होते बच गया था।
तब उसे अपने विचारों पर खुद ही हल्की-सी हंसी आ गयी। वह सोचने लगी—इन्सान की जिन्दगी में अक्सर ऐसे मौके आते हैं कि उसका एक कदम आगे बढ़ चुका होता है, तब हादसा होता है। कभी पीछे बस या कार टकरा जाती है। दुर्घटना में एक दो लोगों की जान जाती है तो कदम आगे बढ़ा चुका व्यक्ति खुद को बाल-बाल बचा हुआ महसूस करता है और सोचता है—किसी वजह से उसके कदम थम गये होते तो यह हादसा जो दूसरों के साथ हुआ, उसके साथ होता।
पर, ये सब सम्भावनाएं और आशंकाएं क्षणिक होती हैं। घटनाएं, दुर्घटनाएं, वारदातें होती ही रहती हैं। किसी के साथ होती हैं, कोई बाल-बाल बचकर आगे बढ़ चुका होता है या पीछे रह चुका होता है। हादसों या वारदातों का शिकार जिसे होना होता है वही होता है, आगे-पीछे वाले को कुछ नहीं होता। अतः ऐसे लोगों को बाल-बाल बच जाना कहा जाता है। दुर्घटनाएं, वारदातें दुनिया के हर हिस्से में पल-पल लोग सुनते हैं और भूलते जाते हैं। हर नई वारदात पुरानी वारदात की जगह ले लेती है। अलबत्ता, स्पाई क्वीन रीमा भारती के लिए टी.वी. स्क्रीन पर उस समय की कवरेज की जा रही लूट की वारदात काफी महत्त्वपूर्ण थी। महत्त्वपूर्ण इसलिये कि नौ बजे वह कार्टर रोड के जौहरी बाजार में थी। नौ बजते ही वह अपने फ्लैट के लिए रवाना हुई थी। लूट की वारदात को होना भी नौ बजे बताया जा रहा था। नौ बजे कार्टर रोड का जौहरी बाजार से गुजरने का प्रमाण उसके पास इस रूप में था, कि उसने उस समय अपने चीफ खुराना से मोबाइल वार्ता की थी। चीफ से मोबाइल वार्ता उसने कार्टर रोड के जौहरी बाजार में रहते हुए की थी। वार्ता के बाद उसने कार आगे बढ़ा दी थी।
दरअसल चीफ के निर्देशानुसार साढ़े आठ से नौ के बीच उसे जौहरी बाजार के एक खास ठिकाने पर अपनी कार में मौजूद रहना था। चीफ का निर्देश था कि साढ़े आठ से नौ के बीच उससे वहां कोई व्यक्ति आकर मिलेगा। आने वाले को खुद उससे अप्रोच करना था। चीफ ने यह भी कहा था कि आने वाले व्यक्ति को वह अपने साथ वहाँ से सुरक्षित निकाल कर ले आयेगी।
चीफ का अगला निर्देश, उस व्यक्ति के आकर मिलने और इलाके से निकाल ले जाने की खबर के बाद मिलने वाला था।
परन्तु चूंकि ऐसा हुआ न था—आने वाला आया न था। नौ से एक मिनट पहले तक उसने बोरियत भरी प्रतीक्षा के बाद चीफ का नम्बर मिला रिपोर्ट दी थी कि अब तक कोई नहीं आया। दूसरी ओर से ड्यूटी ऑफ की बात खुराना ने कही थी। रीमा भारती ने गाड़ी आगे बढ़ा दी थी।
उसे उस समय, उस अनाम व्यक्ति की बोरियत भरी प्रतीक्षा करते समय कोई खास बात सोचने की जरूरत न हुई थी। खुफिया विभाग की सेवा और कार्रवाईयों में इस तरह की बातें आम होती हैं। राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अपराधियों के विरुद्ध फैले खुफिया विभाग के विभिन सूत्रों की रिपोर्टें एक दूसरे से जुड़ी होती हैं। जिस विभाग के लिए जिस सूत्र पर कार्य करना आवश्यक होता है, उस विभाग का चीफ अपने एजेण्टों को मिशन पर लगाता है। मिशन पर लगने वाले एजेण्टों को सफलता भी मिलती है और असफलता भी। सूचना तंत्र के सूत्र यदि सही काम करते होते हैं तो सफलता निश्चित होती है। सूत्र ढीले हो जाने या अपराधी के प्रोग्राम के तबदील हो जाने से असफलता हाथ लगती है।
रीमा भारती देश की सबसे गुप्त, इण्डियन सीक्रेट कोर अर्थात आई.एस.सी. की सरगर्म, तेज तर्रार और अपने चीफ कुलभूषण खुराना की चहेती, नम्बर वन स्पाई एजेण्ट मानी जाती थी।
टी.वी. पर लूट की वारदात को बार-बार रिपीट किया जा रहा था। लूट के चश्मदीद लोगों के बयान सामने लाये जा रहे थे। पुलिस कार्रवाई दिखायी जा रही थी।
लूट के शिकार, जौहरी बाजार के सबसे बड़े जौहरी, हीरा मल चन्दानी हुए थे। लुटेरों की संख्या पांच थी। वे हवा के झोंके की तरह, शोरूम के गार्ड को काबू में कर अन्दर घुसे थे। शोरूम में उस समय मौजूद एक दर्जन के आस-पास औरत, मर्द और बच्चों को कुछ क्षणों के लिए बन्धक बनाया था। शोरूम के कर्मचारियों पर रिवाल्वरें तानी थीं। शो केसों को बेरहमी से तोड़ा था। फिर जवाहरात तथा आभूषण समेट कर आंधी की रफ्तार से निकल गये थे।
लुटेरों के अपना काम कर जाने के बाद लूट की सूचना शो रूम से बाहर आयी थी। जंगल की आग की तरह पूरे इलाके में फैली थी। फिर वे सभी कार्रवाईयां की जाने लगी थीं जो ऐसे अवसरों पर की जातीं हैं। पांच मिनट के अन्दर पुलिस और टी. वी. तथा न्यूज रिपोर्टरों की टीम घटना स्थल पर पहुंच गयी थी।
उसके बाद से, जौहरी बाजार में जो कुछ घटा, उसकी पल-पल की रिपोर्टिंग, अलग-अलग चैनलों के रिपोर्टर अपने-अपने ढंग से पेश कर रहे थे।
बताया जा रहा था कि हीरा मल चन्दानी ज्वेलर्स के शो रूम में जगह-जगह कैमरे भी फिट थे, मगर लुटेरों ने कुछ ऐसी सूझ-बूझ का परिचय दिया था कि कैमरे भी अपना कार्य सही तरीके से न कर पाये थे।
यह वेल प्लांड शातिर लूट थी। लुटेरों ने काले नकाब चेहरे पर चढ़ा रखे थे। जिससे शिनाख्त ना हो सकी थी। शिनाख्त न होने के बावजूद पुलिस लूट के तरीके तथा लुटेरों की कद-काठी तथा आवाज से निष्कर्ष निकाल चुकी थी कि यह किस गिरोह का कार्य है। पुलिस कमिश्नर ने प्रेस वार्ता में सीधे-सीधे लाखन लखटकिया गिरोह का नाम लिया था।
यह अन्तर्राज्यीय गिरोह के रूप में कुख्यात था। उसकी लूट की वारदात में एक खास बात यह होती थी कि वरदात के समय किसी की बेवजह खून बहाकर दहशत न फैलायी जाती थी। उनके वारदात को अंजाम देने का कार्य कम्प्यूटरीकृत गति से होता था। वारदात को अन्जाम देकर हवा की तरह फरार हो जाना भी उस गिरोह की फितरत में शामिल था।
मुठभेड़ हो जाने की अवस्था में ही वे गोली-बारी को मजबूर होते थे और उनकी ओर से चलने वाली हर गोली पर मौत का पैगाम लिखा होता था।
आई.एस.सी. की सरगर्म सदस्य होने के कारण, लाखन लखटकिया का नाम सामने आते ही स्पाई क्वीन रीमा के मस्तिष्क में उस गिरोह की कार्य पद्धति घूम गयी थी।
यकायक,
स्पाई क्वीन की छठी इन्द्रिय में प्रश्न उभरा—कहीं इस लूट का किसी तरह का कोई सम्बन्ध उस व्यक्ति से तो नहीं जो उससे जौहरी बाजार में मिलने आने वाला था?
हालांकि बस विचार ही उसे सूझा था—जल्दी से वह इस सम्बन्ध में किसी कड़ी के जुड़ने की कोई बात सोच न पायी थी।
पर, सोच थी कि मस्तिष्क में कुलबुला उठी थी। और रीमा के स्वभाव की यह कुदरती खूबी थी कि मस्तिष्क में कोई बात कुलबुलाती थी तो उसका पॉजिटिव प्रभाव ही सामने आता था। अपनी इसी कुदरती खूबी की वजह से वह अधिकांश अवसरों पर खतरों से बाल-बाल बच जाया करती थी।
कम्प्यूटर की गति से उसने सोचा कि उसे चीफ खुराना से मोबाइल सम्बन्ध बनाना चाहिए।
मस्तिष्क में यह बात अभी आयी ही थी कि फ्लैट के द्वार पर ‘थप-थप-थप’ की आवाजें उभरीं। जंगल में पत्ता खड़कने की आहट पर, शिकारियों की बू सूंघ लेने जैसी शक्ति पायी रीमा के कान खड़े हुए।
थाप पुनः उभरी। द्वार पर मौजूद व्यक्ति इतनी बदहवासी में था कि वह जल्दी से दरवाजा तोड़कर अन्दर आ जाना चाहता था। उसकी बदहवासी ने इस बात की सोच भी छीन ली थी कि उसे दरवाजा पीटने के बजाय कॉलबेल का इस्तेमाल करना चाहिए।
इस सोच के साथ स्पाई क्वीन ने छलावे की तरह बेड से छलांग मारी— साथ ही उसका हाथ सिरहाने मौजूद रिवॉल्वर पर गया।
वह तीर की तरह पलटकर द्वार पर पहुंची। अभी उसका हाथ दरवाजे पर पहुंचा ही था कि बाहर गोली चली।
एक क्रन्दनकारी चीख गूंजी।
खतरों की खिलाड़ी, मौत की आंखों में आंखें डालकर उसके कदम पीछे धकेल देने के स्वभाव वाली, रीमा ने दरवाजा खोलने में पलक झपकने का भी विलम्ब न किया।
उसने ‘धाड़’ से दरवाजा खींचा और जम्प मार हवा में तैरते हुए, इस अन्दाज़ में बाहर निकल आयी जैसे गन ताने शिकारी के सिर के ऊपर से गुजर जाने वाली बाघिन।
उसका यह एक्शन इतनी फुर्ती और दक्षता से सामने आया था कि यदि दरवाजे पर चार-छः गनधारी भी जमे होते तो वे उसकी ओर घूम पाने के बजाय उसके रिवॉल्वर की गोलियों के शिकार हो चुके होते। मगर, वहां मामला कुछ और था।
उसके सामने कोई गनधारी नहीं, बल्कि गोली खाकर दरवाजे के सहारे अन्दर झूल गया एक जख्मी इन्सान था।
जो गोली चली थी, वह उसके फ्लैट के द्वार पर पहुंचकर दरवाजा पीटने वाले को शिकार बना गयी थी।
ऐसी स्थितियों में बहुत तेज गति से निर्णय लेने वाली स्पाई क्वीन ने आगे-पीछे, सामने सड़क तक तेजी से नजरें दौड़ायीं। उसने सड़क के बायीं जानिब दूर होती चली जाती मोटर साइकिल की बैक लाइट देखी।
आसपास कोई और न था। अगर होता तो उसके बाहर आते ही अब तक उस पर फायर हो चुका होता।
रीमा ने निर्णय लेने में देर न की कि उस तक पहुंचने वाले व्यक्ति को, मोटर साइकिल से फरार होने वाले व्यक्ति ने निशाने पर ले रखा था।
क्यों?
फौरन उसके विवेक ने उत्तर दिया—वे उसे, उस तक पहुंचने न देना चाहते थे।
अगला सवाल उभरा—क्यों न पहुंचने देना चाहते थे? जवाब उस शख्स के पास था, जो पीठ पर गोली खाए हुए अब फर्श पर फैल चुका था।
रीमा ने आगे एक मिनट का समय बर्बाद किये बगैर दरवाजे के अन्दर कदम रखा। फर्श पर फैल चुके व्यक्ति को सहारा देकर और अन्दर किया। द्वार को बन्द कर वह फुर्ती से जख्मी व्यक्ति पर झुकी।
जख्म से खून बुरी तरह बह रहा था। नाड़ी मन्द पड़ती जा रही थी और सांसें धीमी होती जा रही थीं।
“रीमा।...रीमा...भरती...” उसने रीमा के हाथों को मजबूती से थाम लिया।
“यस, आई एम रीमा!” रीमा ने जल्दी से कहा।
“मैं छुपता-छुपाता आपके ठिकाने पर आपसे मिलने आया था।”
“बोलते रहो।”
“मैं मरने जा रहा हूँ। वे इस प्रयास में लगे थे कि आप तक मुझे पहुंचने न दें...और मेरा प्रयास था कि जान पर खेलकर मैं आप तक पहुंच जाऊं...मैंने आपके चीफ मिस्टर खुराना से सम्पर्क बनाया था और उन्हीं के निर्देश पर मैं आपसे कार्टर रोड के जौहरी बाजार में मिलना चाहता था।”
रीमा के मस्तिष्क में धमाका-सा हुआ—झटके से बहुत-सी बातें सामने आ गयीं।
“जौहरी बाजार में ही इसलिए, क्योंकि मैंने वहां अपने छुपने का ठिकाना बना रखा था। मैं आप तक इसलिए न पहुंच सका क्योंकि मेरे बाहर आते ही आप तक पहुंचने की चेष्टा करते ही उनकी निगाहें मुझ तक पहुंच जातीं और मैं आप तक पहुंचने से पूर्ण ही ढेर कर दिया जाता।”
“किसके द्वारा...?” रीमा ने गहरी उत्सुकता से पूछा।
“प्लीज...मेरी बांह पर बंधी ताबीज़ में माइक्रो-फिल्म है...उसे अपने कब्जे में कीजिए....शायद...मेरे पास ज्यादा...बोलने का वक्त नहीं। मेरा नाम तरुण विश्वास है...। मैं रेड गार्ड का एजेण्ट हूँ। मैंने अपने कमाण्डर खेमचन्द के आदेश पर अपना कर्तव्य पूरा किया...मुझे संतोष है कि मैं एक नोबल काज...मानवता के हित में काम करते हुए अपने प्राण दे रहा हूँ...गॉड...हैल्प मी...।” अंतिम शब्द उसने अटक-अटक कर लम्बी हिचकी के साथ पूरे किये।
हिचकी के साथ उसने ढेर-सा खून उगला और उसकी पकड़ पूरी तरह से ढीली पड़ गयी।
“मिस्टर तरुण...तरुण विश्वास...।” रीमा घुटने टेक फुर्ती से उस पर झुकी। उसके शरीर को उलटा।
उसकी आंखें निस्तेज और चेहरा पीला पड़ चुका था।
उसके जीवन का दीप बुझ गया था।
रीमा ने उसकी शर्ट की बाहें उलटीं।
दाहिनी बांह पर काले कपड़े में बंधा ताबीज़ उसके सामने आ गया। रीमा ने कपड़े की गांठ खोली। ताबीज़ अपने कब्जे में लिया। गोली खाने वाला तरुण विश्वास नामक नौजवान मर चुका था।
हाँ, वह नौजवान ही था। उसकी उम्र तीस से ऊपर न थी। वह हृष्ट-पुष्ट शरीर का मालिक था।
उसने किस मानवता के हित में अपना प्राणोत्सर्ग किया था, इस बात को जानने की रीमा में गहरी अधीरता थी।
उसकी अधीरता की शांति चीफ खुराना की ओर से हो सकती थी।
उसने मोबाइल उठा, जल्दी से खुराना का नम्बर मिलाया।
दूसरी ओर से पहली ही रिंग में कॉल अटेण्ड की गयी।
कॉल अटेण्ड करने का अन्दाज़ ऐसा था जैसे खुराना मोबाइल हाथ में लिए बैठा हो।
“यस रीमा, मैं तुम्हें कॉल करने ही जा रहा था।” दूसरी ओर से गम्भीरता भरे स्वर में कहा गया।
“सर, मेरे फ्लैट में एक लाश है।” रीमा ने जल्दी से कहा।
“तरुण विश्वास!”
“यस!”
“वह तुम तक पहुंच गया था, मगर पहुंच कर भी न पहुंच सका, अफसोस...।”
“अधिक अफसोस की आवश्यकता नहीं चीफ अंकल!” रीमा ने ज़रा जज्बाती और उत्साहित स्वर में कहा। फिर बताया—“वह जिस मकसद से मुझ तक पहुंचना चाहता था, उसने वह मकसद पूरा किया। उसने मरते-मरते एक माइक्रो-फिल्म मुझे सौंपी है।”
“ओह!” खुराना की गहरी सांस उभरी—“उसे तुम तक न पहुंचने देने के लिए जबरदस्त सनसनी फैलायी गयी। जौहरी बाजार में हीरामल चन्दानी के यहां लूट की हंगामाखेज वारदात की गयी। पर वह वारदात, लूट के लिए नहीं, बल्कि तरुण विश्वास पर धावा बोलकर उसे खत्म कर देने के लिए अमल में लायी गयी थी।”
“ओह माई गॉड!“ रीमा के मस्तिष्क में जैसे विवेक की बत्तियां जगमगायीं—“और इसके लिए एक कुख्यात लुटेरों के गिरोह का सहारा लिया गया?”
“यस!” खुराना ने बताया—“पर सौभाग्य से उस समय तरुण विश्वास, चन्दानी के शो रूम से बाहर निकल चुका था, जब कि लुटेरो ने शो रूम पर धावा बोला।”
“वह बाहर निकल चुका था!” रीमा ने गहरी उत्सुकता के साथ पूछा—“वह वहां कर क्या रहा था? क्या वह जौहरी चन्दानी की शरण पाए हुए था?”
“माइक्रो-फिल्म तुम्हारे कब्जे में आ चुकी है, तुम तुरन्त मुझसे आकर मिलो। आई.एस.सी. के तीन एजेण्ट इस समय तुम्हारे निवास स्थान तक पहुंच चुके हैं। वे पीछे सारी स्थिति सभाल लेंगे। हरी अप!” खुराना ने हुक्म दनदनाया और सम्बन्ध काट लिया। रीमा होंठ भीचकर रह गयी।
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Additional information
Book Title | मर जाओ मेरे लिए : Mar Jao Mere Liye |
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Isbn No | |
No of Pages | 350 |
Country Of Orign | India |
Year of Publication | |
Language | |
Genres | |
Author | |
Age | |
Publisher Name | Ravi Pocket Books |
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