मैंने मौत को देखा है
दिनेश ठाकूर
“धड़ाक्....ऽ....!”
सड़क के बीचों-बीच एक भयंकर धमाका गूंजा।
सर....सर करती बह रही हवा भी जैसे सहम गई।
लोग चिहुंक गये और उनकी गर्दनें यंत्रवत उधर घूम गईं जिधर वो भयानक धमाका गूंजा था।
एक जूस कार्नर के निकट खड़ी रीमा भी उछल पड़ी। उसने अभी-अभी अपनी गाड़ी एक जूस कार्नर के निकट रोकी थी।
जून की दोपहरी का वक्त था। सूर्यदेव की प्रखर तीखी रश्मियां जैसे धरती को जला देना चाहती थीं।
धूप में आग सी नाचती प्रतीत हो रही थी। मानसून न आने के कारण सूर्य की तपन पूरे जलाल पर थी। ऐसे में सड़क पर कोई खास ट्रैफिक भी न था।
सबके सब घरों में दुबके हुये थे, किन्तु जिन्हें बगैर कहीं आये गये काम न चलने वाला था, वे मरते क्या न करते की तर्ज पर सड़कों पर निकलने पर बाध्य थे।
वक्त यही कोई डेढ़ बजा था।
स्वयं रीमा को भी कंठ सूखता महसूस हुआ था, इसलिये उसने अपनी गाड़ी जूस कार्नर पर रोकी थी और लड़के को जूस लाने का इशारा किया था। लड़के ने आर्डर सर्व किया था। जूस का लंबा गिलास रीमा के हाथ में पहुंचा ही था कि सड़क पर वो हादसा दरपेश आ गया था।
रीमा अर्थात् रीमा भारती!
भारत की सर्वाधिक महत्वपूर्ण व गुप्त जासूसी संस्था आई.एस.सी. की नम्बर वन एजेंट।
आई.एस.सी. (इण्डियन सीक्रेट कोर) ऐसी गुप्त जासूसी संस्था थी, जिसकी कार्य प्रणाली हमेशा गुप्त ही रहा करती थी। बेहद गोपनीय ढंग से वह अपना काम करती रहती थी।
रीमा उसी महत्वपूर्ण विभाग की नम्बर वन एजेंट थी।
एक चलती फिरती आफत की पुतली!
एक खूबसूरत बला!
एक ऐसी खतरनाक ‘शै’, जो देश व समाज के दुश्मनों पर विजयी-आकाशीय बिजली बनकर टूटती थी और उन्हें उनके नापाक इरादों के साथ सुपुर्दे खाक कर दिया करती थी।
यही वजह थी कि रीमा के कदमों की आहट सुनते ही शत्रु के खेमे में खलबली मच जाया करती थी। उसके कदमों की दबिश से देश व समाज के दुश्मनों के कलेजे हिल जाया करते थे।
वही रीमा इस समय रूबरू थी।
उसके रूबरू होने का कारण था। इन दिनों वह ‘फ्री’ थी। उसके पास कोई केस न था।
जैसा कि स्वाभाविक था और रीमा के पुराने मित्र जानते हैं कि उन फुर्सत के क्षणों में रीमा केवल मटरगश्ती किया करती थी। अपने हमनवां दोस्तों के साथ मेल-मिलाप, क्लब, पिकनिक, सैर-सपाटा! यही उसका काम हुआ करता था।
इस वक्त भी वह अपने अभिन्न मित्र प्रेम प्यारे परदेसी से मिलकर लौट रही थी।
उसने लंच के लिये रोक लिया था और उसका पीछा तभी छोड़ा था जब उसने लंच खिला दिया था।
दोनों ने साथ लंच किया था, फिर रीमा अपनी राह आगे बढ़ गई थी।
उसका रुख अपने फ्लैट की ओर था। वह एक लिंक रोड से गुजरी थी कि ये हादसा पेश आ गया था।
रीमा ने देखा।
एक गाड़ी अपनी साईड में थी किन्तु दूसरी गाड़ी ने अपनी लेन का अतिक्रमण करके सीधी टक्कर मार दी थी।
सामने वाली गाड़ी का थोबड़ा न केवल पिचक गया था, बल्कि वह अपना संतुलन बरकरार न रख सकी थी और एक झटके से बाईं करवट उलट गई थी।
उसका ड्राईवर इस पोजीशन में भी नजर आ रहा था। वह स्टेयरिंग व ड्राईविंग सीट के मध्य फंसा हुआ था।
स्पष्ट था कि उसकी इहलीला समाप्त हो चुकी थी।
तभी।
उस उलटी हुई गाड़ी का दरवाजा खुला और एक लंबे कद के बूढ़े ने सिर उभारा। उसके अर्धश्वेत बाल कंधों तक छितरे हुये थे। उसकी दाढ़ी-मूंछें भी लंबी थीं। कम से कम पैंसठ वर्षीय उस बूढ़े की आंखों में चमक ही रहा करती होगी। किन्तु इस समय तो हालात विपरीत थे।
उसकी आंखों में वेदना के भाव थे। साथ ही वह सशंक सा चारों ओर देख रहा था। दूसरी ओर, टक्कर मारने वाली गाड़ी की सारी खिड़कियों पर काले शीशे चढ़े हुये थे।
उसका न तो कोई द्वार खुला था, न ही किसी ने उतरने का उपक्रम किया था।
जबकि बूढ़े ने आसमान की ओर मौजूद दरवाजे की ओर सिर उभारा था और सशंक भाव से चारों ओर देखता रहा था, फिर उसकी दृष्टि घूमकर गाड़ी पर पड़ी थी।
उसकी आँखें उस वक्त सिकुड़ी हुई थीं।
चूंकि रीमा अधिक दूर न थी, इसलिये उसकी तेज नजरों ने उसकी आंखों में थिरक रहे शंका के कीड़ों को बखूबी लक्ष्य किया।
उसे किंचित आश्चर्य हुआ।
अचानक हादसा हुआ था। ऐसा एक्सीडेंट कि उसकी जान जाते-जाते बची थी।
ऐसे में वह शंका क्यों कर रहा था? तथा किस पर?
तभी।
रीमा को याद आया कि उस बूढ़े की गाड़ी को ठोका गया था। सामने वाली गाड़ी अपनी लेन छोड़कर आपा खोकर उसकी गाड़ी से आ टकराई थी।
जबकि सड़क पर आने-जाने हेतु काफी जगह थी।
वो क्या....दो अन्य गाड़ियां भी आराम से निकल सकती थीं। फिर गाड़ी कैसे आ टकराई थी?
क्या उसकी स्पीड अधिक थी? या फिर उसका ड्राईवर अत्यधिक जल्दी में था, इसलिये वह गाड़ी ठोक बैठा था?
फिलहाल इसका पता बाद में ही चल सकता था।
बूढ़ा कांखते-कराहते हुए बाहर निकला। गाड़ी एक करवट पड़ी थी और उसका दरवाजा आसमान की ओर था। इसलिये बूढ़े को निकलने में दिक्कत तो, हुई किन्तु उसकी लंबी टांगें इस समय में सहायक सिद्ध हुईं।
अपनी टांगें सड़क पर टिकाते हुये वह कई बार कराहा था। जाहिर था कि उसके शरीर में टूट-फूट न सही, किन्तु गुम चोटें जरूर आई थीं और भरपूर मात्रा में आई थीं। तभी बूढ़े की हालत खस्ता थी।
और फिर!
तभी गजब हुआ!
दूसरा गजब!
जी हां, वह दूसरा गजब ही तो था।
हुआ क्या कि इधर कांखते कराहते बूढ़े ने अपने पांव धरातल से टिकाये ही थे कि टकराने वाली गाड़ी के दरवाजे द्रुतवेग से खुले और फिर कई गनों की नालें प्रकट हुईं।
जब तक कोई कुछ समझता—
“धांय....धांय....तड़-तड़....!”
लगातार फायरों की आवाज गूंजी।
लक्ष्य था बूढ़ा।
उसके कंठ से घुटी-घुटी सी चीख निकली और फिर उसने गजब की फुर्ती से गाड़ी की बैक में छलांग लगाई।
उसकी चुस्ती-फुर्ती दर्शनीय थी।
रीमा ने देखा।
गोलियों की बरसात भी उसका कुछ न बिगाड़ पाई थी और वह सुरक्षित गाड़ी की बैक में जा छुपा था।
उसकी लंबी-लंबी टांगें गाड़ी की बैक में सिमटीं!
रीमा के चेहरे पर प्रशंसा के भाव आ गये।
वाकई चोट खाये उस व्यक्ति द्वारा इतनी जबर्दस्त फुर्ती की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी।
किन्तु सच्चाई सामने थी। जो कुछ घटा था, रीमा की आंखों के सामने घटा था।
किन्तु वही टक्कर देने वाली गाड़ी में सवार लोगों के मंसूबे रीमा की आंखों के सामने साफ हो गये थे।
उनका यूं टक्कर मारना, फिर गनों से हमला करना—इस बात का सबूत था कि उनकी नीयत ठीक नहीं थी और उनके द्वारा मारी गई टक्कर सांयोगिक नहीं—बल्कि सोची-समझी स्कीम का हिस्सा था।
रीमा ने ध्यान दिया तो पाया कि बूढ़े की कार नाजुक थी जबकि हमलावरों की कार ठोस व मजबूत थी।
टक्कर होने के साथ बूढ़े की कार घिसटती हुई करीब दस फुट दूर पहले ही चली गई थी। संभव था कि टक्कर इसलिये मारी गई हो कि बूढ़े की गाड़ी में विस्फोट हो जाये और बूढ़े के परखच्चे उड़ जायें।
ऐसा संभव था।
वैसे भी जिस प्रकार उसकी गाड़ी पिचकी थी, उसे देखकर तो यही लगता था कि उसमें विस्फोट हो ही जाना चाहिये था। किन्तु विस्फोट न हुआ था। इसका सीधा-सा अर्थ था कि बूढ़े की तकदीर अच्छी थी।
किन्तु इसका मतलब यह नहीं था कि मौत ने उसका पीछा छोड़ दिया था।
वह ज्यों की त्यों उसके पीछे हाथ धोकर पड़ी हुई थी।
हमलावर गाड़ी के शीशे थोड़ा-थोड़ा खुले थे। इंसानी चेहरों की झलकें तो दिखाई न दी थीं, किन्तु गनों की नालें जरूर बाहर आई थीं और उन्होंने अभी-अभी आग उगली थी।
बूढ़े के बच जाने की सूरत में कुछ सेकंडों तक तो सन्नाटा छाया रहा था, फिर हमलावर गाड़ी का इंजन स्टार्ट हुआ था और वह द्रुतवेग से गिरी हुई गाड़ी की ओर दौड़ी थी।
उसका इरादा शायद उस गाड़ी को पछाड़ते हुये बूढ़े को खत्म ही कर देने का था।
उसके बाद गनें तैयार थीं। गोलियां न छोड़तीं तो केवल गाड़ी से ही उसे कुचला जा सकता था।
रीमा के जेहन में बिजली सी कौंधी।
मौत बूढ़े की ओर पुरजोर अंदाज में झपट चुकी थी। गोलियां चलते ही वहां भगदड़ मच चुकी थी और मैदान साफ हो चुका था।
किन्तु!
ऐसे में स्पाई क्वीन रीमा!
वह कहां मानने वाली थी। उसे तो दनदनाती गोलियों के बीच में ही दौड़ लगाने में आनंद मिलता था। उसे बूढ़ा मदद के लायक दिखाई दिया। पलक झपकते उसका हाथ जेब के भीतर रेंगा और जब बाहर आया तो उसमें उसका रिवाल्वर दबा हुआ था।
“धांय....ऽ....!”
अगले ही पल उसका रिवॉल्वर पुरजोर अंदाज में गरज उठा था।
अचूक लक्ष्य!
लक्ष्य चूंकि रीमा का था, इसलिये चूकने का प्रश्न ही नहीं उठता था।
गोली गाड़ी के अगले टायर से टकराई। एक धमाका-सा हुआ और गाड़ी की रफ्तार बेहद धीमी हो गई। उसकी पोजीशन टक्कर मारने लायक न रही।
“धांय....ऽ....धांय....धांय....ऽ....!” रीमा का रिवॉल्वर पुनः गरजा और उनकी पंजों में कसी गनें उन पंजों को घायल करती साथ छोड़ गईं।
गाड़ी में कई चीखें—कई सिसकारियां गूंजीं!
रीमा ने अपनी गाड़ी का गेट खोला और द्रुतवेग से नीचे की ओर छलांग लगा गई थी। स्पष्ट था कि वह खुली जंग का ऐलान कर चुकी थी।
उधर!
बूढ़े को शायद जंग का पता नहीं चला था—किन्तु उसने स्वयं पर झपटती हुई हमलावर गाड़ी को जरूर देख लिया था। इसलिये उसे दुश्मनों के इरादों को समझते देर न लगी थी।
वह उठा था और भागा था।
एक ओर, उधर, जिधर फुटपाथ पर पेड़ लगाये गये थे और उन्हें पतली-पतली ग्रिल वाली जालियों से घेरा गया था।
वहां पहुंचने पर बूढ़ा बच जायेगा! इसकी उम्मीद न के बराबर थी।
किन्तु डूबते को तिनके का सहारा!
इसके अतिरिक्त उसके पास चारा भी क्या था! गाड़ी पर टक्कर पड़ते ही उसकी शरण खत्म हो जानी थी।
तब वह एकदम खुले में आ जाता—जिसे वह आराम से शूट कर सकते थे। गाड़ी से कुचल सकते थे। इसलिये उसका कहीं अन्यत्र शरण लेना आवश्यक था।
किन्तु बूढ़ा अभी भागता हुआ आधा सफर ही तय कर पाया था कि सहसा—
“धांय....धांय....तड़-तड़....।”
कई गोलियां चलीं।
ये गाड़ी की दूसरी विन्डो से चलाई गई थीं। ये सब वास्तव में इतने कम समय में हो रहा था कि गाड़ी में मौजूद लोगों को ही न पता चला था कि वे अपनी-अपनी गनों से हाथ धो चुके हैं—और अगर पता चला था तो उन्होंने उसकी परवाह न की थी और बूढ़े को शर्तिया ढेर कर देना चाहा था।
एक गोली बूढ़े की टांग में लगी।
वह हवा में कलाबाजी खाते हुये तड़पा।
नीचे गिरा तो फुटपाथ तक पहुंच चुका था। अगर वह सड़क पर गिरता तो उसका बड़ा ही बुरा हश्र होता—किन्तु वह फुटपाथ पर गिरा था और चोट खाये नाग की तरह बल खाता चला गया था।
यूं कि चलाई गईं गोलियां आसपास फटीं।
“धांय....धांय....!”
तभी रीमा के हाथ में थमा रिवॉल्वर पुनः गरजा।
दो गनें और गिरीं।
तभी!
एक गाड़ी आकर उस लंगड़ी गाड़ी के निकट रुकी और फिर एक चीख गूंजी—
“भागो!”
फौरन उस गाड़ी से उतरकर कुछ व्यक्ति उस आगंतुक गाड़ी में बैठे और वो गाड़ी ये जा-वो जा!
रीमा ने फायर किया, किन्तु उसके रिवॉल्वर में मात्र एक गोली बची थी जो कि शायद उस भगोड़ा गाड़ी का टायर बर्स्ट न कर सकी। उसके बाद उसका रिवॉल्वर क्लिक-क्लिक की आवाज करके रह गया था।
रीमा अपनी चढ़ी हुई सांसों के साथ उन्हें जाता देखती रही थी।
उसकी गाड़ी रांग साईड में खड़ी थी। वह वहां तक पहुंचती फिर उसे राईट साईड में लाती तो उसमें वक्त लगता। तब तक वे कहां के कहां पहुंच गये होते!
यही सोचकर रीमा ने कोई प्रयास न किया था।
वह होंठ भींचे उन्हें जाता देखती रही। नंबर प्लेट पर दृष्टि डाली तो वह नदारद मिली।
तदुपरांत!
उसे उस बूढ़े का ध्यान आया जो गोली खाकर गिरा था, किन्तु वह बेहद तेजी से स्वयं को ग्रिलों के घेरे युक्त पेड़ के पीछे समेट ले गया था।
वह उस ओर बढ़ी तो उसने बूढ़े को दाईं पिंडली पकड़कर बुरी तरह कराहते हुये बैठा पाया। उसकी आंखें चढ़ी हुई थीं।
वह बुरी तरह आहत था। तथा उसका वो मनोबल जो कठिन युद्ध के दौरान देखने में आया था, वह इस वक्त धूल-धुसरित नजर आ रहा था।
वह बुरी तरह कराह रहा था।
रीमा समझ गई।
वह दोहरे हमले की चपेट में आया दिलेर इंसान था। उसका इस दोहरे हमले से बच पाना एक करिश्मा ही था।
यही वजह थी कि रीमा उसके निकट तेजी से पहुंची थी।
“कैसे हो महाशय....!” रीमा ने पूछा था।
“ठीक हूं तथा जिंदा भी! वह भी आपकी बदौलत!” उसने दूर-दूर तक सन्नाटे में डूबी सड़क पर दृष्टिपात करते हुये कहा था।
उसके स्वर में कृतज्ञता थी।
“वे लोग मुझे....!”
“ये सब बातें बाद में....! अभी आपको डॉक्टरी सहायता की जरूरत है।” कहते हुये रीमा ने उसे सहारा दिया था।
“ओह! कमाल! इतनी भरी-पूरी दुनिया में एक लड़की मेरी मददगार! जान बचाने वाली! धिक्कार....शहर के उन सारे मर्दों को धिक्कार जो उस वक्त यहां मौजूद थे।”
प्रत्युत्तर में रीमा कुछ न बोली और उसे सहारा दिये अपनी गाड़ी की ओर बढ़ती चली गई।
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