मैं आई मौत लाई : Main Aayi Maut Layi by Dinesh Thakur
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'मैं आई, मौत लाई' आपके सपनों की रानी रीमा भारती का एक ऐसा दिलफरेब और खून से लबरेज कारनामा है जिसमें ये दिलफेंक हसीना आपको अपने पुराने चिर-परिचित हाहाकारी अंदाज में नजर आएगी।
मैं आई मौत लाई : Main Aayi Maut Layi
Dinesh Thakur
प्रस्तुत उपन्यास के सभी पात्र एवं घटनायें काल्पनिक हैं। किसी जीवित अथवा मृत व्यक्ति से इनका कतई कोई सम्बन्ध नहीं है। समानता संयोग से हो सकती है। उपन्यास का उद्देश्य मात्र मनोरंजन है। प्रस्तुत उपन्यास में दिए गए हिंसक दृश्यों, धूम्रपान, मधपान अथवा किसी अन्य मादक पदार्थों के सेवन का प्रकाशक या लेखक कत्तई समर्थन नहीं करते। इस प्रकार के दृश्य पाठकों को इन कृत्यों को प्रेरित करने के लिए नहीं बल्कि कथानक को वास्तविक रूप में दर्शाने के लिए दिए गए हैं। पाठकों से अनुरोध है की इन कृत्यों वे दुर्व्यसनों को दूर ही रखें। यह उपन्यास मात्र 18 + की आयु के लिए ही प्रकाशित किया गया है। उपन्यासब आगे पड़ने से पाठक अपनी सहमति दर्ज कर रहा है की वह 18 + है।
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मैं आई, मौत लाई
दिनेश ठाकुर
धांय!
गोली चली।
और हवा में सनसनाती वो गोली मेरे सिर के सिर्फ एक इंच ऊपर से गुजर गई और मैं बिजली जैसी तीव्रता से जमीन पर गिरकर उस ढलान पर तेजी से लुढ़कती चली गई थी।
अगर मैंने ऐसा करने में एक सेकंड का सौवां हिस्सा भी व्यर्थ किया होता तो निश्चित रूप से अगली गोली मेरी खोपड़ी में जगह बना चुकी होती।
बाल-बाल बची थी मैं।
दूसरे पल मैंने एक चट्टान के पीछे पनाह ले ली थी।
और मैं अपनी उखड़ी हुई सांसों पर नियंत्रण करने लगी।
“वो बचकर नहीं जाना चाहिए! उसे तलाश करो!” सहसा मेरे कानों से एक पत्थर जैसा सख्त एवं खुरदरा स्वर टकराया—“और उस हरामजादी के टुकड़े-टुकड़े कर दो!”
मैंने दम साध लिया।
इस वक्त मैं एक मिशन के सिलसिले में पाकिस्तान की धरती पर थी।
मैं...।
मेरे मेहरबान दोस्त समझ गए होंगे कि मैं कौन हूं?
जी हां, आपने ठीक पहचाना।
मैं आपकी चहेती...आपके सपनों की रानी रीमा...रीमा भारती।
भारत की सबसे महत्वपूर्ण जासूसी संस्था आई०एस०सी० यानी इंडियन सीक्रेट कोर की नंबर वन एजेंट। दोस्तों की दोस्त और दुश्मनों के लिए साक्षात मौत।
मां भारती की उद्दंड किंतु लाडली बेटी।
वो बला जिससे मौत भी पनाह मांगे।
इस वक्त मेरी हालत बद से बदतर थी। मेरे कपड़े जगह-जगह से फटे हुए थे और फटे कपड़ों के बीच से झांकते संगमरमरी जिस्म पर असंख्य छोटे-बड़े घाव नजर आ रहे थे, जिनके आसपास खून जम चुका था। समूचा जिस्म पसीने से भीगा हुआ था। सीना लोहार की धौंकनी बना हुआ था। जिस्म में पीड़ा की लकीरें उछाले मार रही थीं और रोम-रोम दर्द से टीस रहा था।
मुझे ऐसा लग रहा था जैसे किसी भी क्षण मैं बेहोश हो जाऊंगी। किंतु मैं बड़ी मुश्किल से अपने होशो-हवास पर काबू किए हुए थी...क्योंकि मौत अभी भी मुझे तलाश कर रही थी।
कुल मिलाकर अपनी ऐसी हालत होने के बावजूद मैं पूरी तरह से चाक-चौबंद और सतर्क थी। क्या मजाल जो मेरी चुस्ती फुर्ती में बाल बराबर भी अंतर आया हो। आखिर मैं दुश्मन देश की धरती पर मौत से पंजा लड़ा रही थी।
मेरे चाहने वाले ये बात अच्छी तरह से जानते हैं कि मेरा चीफ खुराना अक्सर मुझे एक से एक खतरनाक मिशन सौंपता है। ऐसा, जिसमें जान जाने के पूरे-पूरे चांस होते हैं।
मगर!
मैं खतरों से डरने वाली कहां हूं? खतरों से खेलना तो मेरा पुराना शौक है।
जाहिर है कि इस बार भी खुराना ने मुझे एक ऐसा ही खतरनाक मिशन सौंपा था।
शुरुआत कुछ इस तरह से हुई थी।
उस दिन मैं चंद घंटों पहले ही एक खतरनाक और महत्वपूर्ण मिशन में कामयाबी हासिल करके विदेश से वापस लौटी थी। उस दिन मैं हंगामाई मूड में थी।
वो शाम मैं मुंबई के एक शानदार क्लब रॉक्सी में गुजारना चाहती थी, जहां शाम होते ही रंगीनियां अपना कब्जा जमा लेती थीं।
मैं रॉक्सी क्लब जाने के लिए तैयार हो ही रही थी कि सहसा फोन की घंटी ने मुझे चौंकाया।
इस वक्त फोन का आना मुझे बेहद नागवार गुजरा था।
मैंने फोन को घूरा, परंतु भला उस पर मेरे घूरने का क्या प्रभाव होने वाला था? वो तो अपना बेसुरा राग अलापे जा रहा था। अतः मुझे आगे बढ़कर रिसीवर उठाना पड़ा—“हेलो!”
“रीमा!”
मैं होंठ काटकर रह गई।
वजह!
लाइन पर खुराना मौजूद था। मैं जानती थी कि खुराना का फोन करना अकारण नहीं हो सकता था। वो मुझे उस वक्त ही फोन करता था, जब कोई गंभीर बात होती थी।
“गुड इवनिंग सर!”
“मैं अपने ऑफिस में तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं।” खुराना बगैर किसी भूमिका के शुरू हो गया था—“फौरन ऑफिस पहुंचो।”
“म...मगर...।”
मेरा वाक्य पूरा होने से पहले ही दूसरी तरफ से संबंध विच्छेद हो गया था।
मैं झुंझला उठी।
मुझे खुराना पर गुस्सा तो बहुत आया। उसने मेरा मूड खराब करके रख दिया था, लेकिन मैं कर भी क्या सकती थी?
मैं मजबूर थी।
मैंने एक ठंडी सांस भरते हुए रिसीवर वापस रख दिया।
पचास मिनट बाद मैं खुराना के केबिन का दरवाजा धकेल कर भीतर दाखिल हो रही थी।
मेरा भारी-भरकम चीफ अपनी लंबी-चौड़ी ऑफिस मेज के पीछे रिवाल्विंग चेयर पर मौजूद था। मेरी नजरें खुराना के चेहरे पर सरसरा गईं, जिस पर सदैव की भांति गहन गंभीरता कुंडली मारे हुए थी। उस चेहरे पर कुछ भी पढ़ लेना लगभग असंभव था।
“मैं तुम्हारा ही इंतजार कर रहा था।” खुराना गंभीरता भरे स्वर में बोल उठा।
“कहिए सर!” मैं मेज के इस पार ठिठकती हुई बोली।
प्रत्युत्तर में खुराना ने कुछ कहने की जगह एक झटके से कुर्सी छोड़ दी और फिर वो मेज के पीछे से निकलकर दरवाजे की तरफ बढ़ता हुआ बोला—“मेरे साथ आओ।”
मैं बगैर कुछ पूछे खुराना के पीछे चल दी।
मैं इस बारे में सोचकर हैरान अवश्य थी कि वो मुझे कहां ले जा रहा है?
चंद पलों के बाद मैं खुराना के साथ उसकी कार में सवार थी। ड्राइविंग सीट पर खुराना मौजूद था।
खुराना की कार आई०एस०सी० के हेडक्वार्टर के कंपाउंड से तीर की तरह बाहर निकली और सड़क पर पहुंचते ही तोप से छूटा गोला बन गई।
मेरा सवाल अपनी जगह पर कायम था—खुराना मुझे लेकर कहां जा रहा था?
चक्कर क्या था?
¶¶
मैं चौंकी।
वजह!
आधे घंटे बाद खुराना ने जिस इमारत के कंपाउंड में कार ले जाकर रोकी थी, वो हॉस्पिटल जैसी दिखाई देने वाली इमारत थी। दरअसल वो इमारत मेरी जासूसी संस्था आई०एस०सी० से संबंधित हॉस्पिटल था। वो गृह मंत्रालय के अधीन था। वहां बड़ी ही गहनता और कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच आई०एस०सी० के एजेंटों का इलाज हुआ करता था।
आम आदमियों को इस हॉस्पिटल के बारे में कोई जानकारी नहीं थी।
मेरी जिज्ञासा आसमान छूने लगी थी।
कार रोकते ही खुराना दरवाजा खोलकर नीचे उतरा।
मैं भी अपनी तरफ का दरवाजा खोलकर नीचे उतर गई।
“आओ!” खुराना इमारत की तरफ बढ़ता हुआ मुझसे बोला।
बिना कोई बात किए चकराई-सी मैं खुराना के पीछे चल पड़ी।
कठिनाई से आधा मिनट भी नहीं गुजरा था कि खुराना इमरजेंसी वार्ड में दाखिल हुआ और एक बेड की तरफ बढ़ता चला गया।
मैं उसके पीछे थी।
खुराना उस बेड के करीब पहुंचकर ठिठका।
उस बेड पर कोई लेटा हुआ था। उसके ऊपर कंबल पड़ा हुआ था। उसका चेहरा तक नजर नहीं आ रहा था। बेड के करीब एक नर्स खड़ी हुई थी। बेड के सिरहाने की तरफ दीवार पर डॉक्टरी चार्ट लटका हुआ था।
“गुड इवनिंग सर!” नर्स ने खुराना का अभिवादन किया।
खुराना ने धीरे से सिर हिलाकर उसके अभिवादन का जवाब देते हुए कहा—“अब इसकी तबीयत कैसी है?”
“तबीयत तो पहले जैसे ही बनी हुई है।” उसने तत्परता से जवाब दिया।
“अभी होश नहीं आया?”
“नो सर।” नर्स ने सर्द सांस छोड़ते हुए जवाब दिया—“अभी भी हालत सीरियस ही कही जा सकती है।”
खुराना मेरी तरफ घूमा।
मेरी सवालिया नजरें खुराना के चेहरे पर जा टिकीं।
“इसे देखो रीमा!” कहते हुए खुराना ने उसके चेहरे से कंबल हटा दिया।
मैं बुरी तरह उछल पड़ी।
कंबल हटाते ही जो चेहरा मेरे सामने आया था, वो उर्मी का चेहरा था।
उर्मी!
आई०एस०सी० की एक तेज-तर्रार जूनियर एजेंट!
जो अक्सर मेरी अनुपस्थिति में जरूरत पड़ने पर मेरा रोल बखूबी प्ले कर लिया करती थी। इसी बात से मेहरबान दोस्त अंदाजा लगा सकते हैं कि सिर्फ शक्ल को छोड़कर मेरी और उर्मी की फिगर में जरा भी फर्क नहीं था।
मेरी निगाहें उर्मी के चेहरे पर स्थिर होकर रह गईं।
इस वक्त उर्मी का चेहरा यूं पीला नजर आ रहा था, मानो किसी ने उसके जिस्म से खून की आखिरी बूंद तक निचोड़ ली हो। उसे देखकर ऐसा लगता था जैसे वो महीनों की मरीज हो।
“इ...इसे क्या हुआ सर?” खुराना की तरफ देखते हुए धड़कते दिल से पूछा।
“बलात्कार।”
मुझे बिजली जैसा शॉक लगा।
खुराना ने मानो जबरदस्त विस्फोट किया था।
बलात्कार!
ये इकलौता शब्द किसी घन की तरह मेरे जेहन से टकराया था।
कई पलों बाद किसी तरह से मैं अपने आपको संभालकर कहने में कामयाब हुई—“य...ये आप क्या कह रहे हैं सर?”
“ये सच है रीमा!” खुराना की गंभीरता में बाल बराबर भी अंतर नहीं आया था—“उर्मी का बलात्कार हुआ है।”
“ल...लेकिन इसके साथ बलात्कार किसने किया? कौन है वो दरिंदा?”
“बेहोश होने से पहले उर्मी ने किसी असलम का नाम बताया था।” खुराना ने जवाब दिया।
“कौन असलम?”
“वो एक खतरनाक आतंकवादी है।”
पलक झपकते ही मेरे चेहरे पर कहर नाच उठा। आंखों में खून उतर गया और जबड़े एक-दूसरे पर जमकर सख्ती से कसते चले गए।
मैं जब भी किसी के साथ बलात्कार की बात सुनती हूं अथवा अखबार में पढ़ती हूं तो मेरा खून खौल उठता है। मेरा दिल करता है कि ऐसे दरिंदों को चौराहे पर खड़ा करके सरेआम गोली से उड़ा दूं।
मेहरबान दोस्त जानते ही हैं, जब मैं चौदह साल की थी तो कुछ दरिंदों ने मेरे साथ भी बलात्कार जैसा घिनौना काम किया था। हालांकि मैंने उन दरिंदों को ऊपर पहुंचाकर ही दम लिया था। मैंने उन्हें कुत्तों से भी बुरी मौत मारा था। परंतु फिर भी मुझसे बेहतर ये और कौन जान सकता है कि एक औरत के लिए कितनी बड़ी त्रासदी होती है ये बलात्कार!
“उस हरामजादे ने उर्मी के साथ बलात्कार करके अपनी मौत को ललकारा है सर!” मेरे होंठों से जहरीली नागिन जैसी फुंफकार निकली—“मैं उसे जिंदा नहीं छोडूंगी। कुत्ते से भी बुरी मौत मारूंगी उसे। ऐसी मौत दूंगी कि देखने वालों के कलेजे लरज उठेंगे। एक बार...सिर्फ एक बार आप मुझे ये बता दीजिए सर कि वो सूअर का जना कहां पाया जाता है?”
“रिलैक्स रीमा!”
“आप रिलैक्स की बात कर रहे हैं सर! उर्मी आई०एस०सी० की एजेंट ही नहीं, बल्कि मेरी छोटी बहन जैसी भी है। उस कुत्ते असलम ने उर्मी के साथ ये हरकत करके सीधे मेरे मुंह पर भी तमाचा मारा है...और जब तक मैं उस तमाचे का जवाब नहीं दे लूंगी मुझे चैन नहीं आएगा। मैं उस हरामजादे को बताऊंगी कि आई०एस०सी० की एक एजेंट के साथ बलात्कार करने का क्या अंजाम होता है?”
“मैं तुम्हारे जज्बातों की कद्र करता हूं रीमा!” गंभीरता की प्रतिमूर्ति बना बोला खुराना—“मगर तुम अच्छी तरह जानती हो कि आई०एस०सी० का ढांचा जिस ढंग से बनाया गया है, उसके हिसाब से हम भावुकता में कोई फैसला नहीं कर सकते। हमें सबसे पहले ये सबक सिखाया जाता है कि भावना नाम की शै से दूर रहो...और मेरे ख्याल से इस वक्त तुम भावना में बह रही हो।”
“नो सर! ये भावनाओं का नहीं, बल्कि नैतिकता का फैसला है। उर्मी के साथ एक आतंकवादी ने बलात्कार किया है। भला मैं कैसे खामोश बैठी रह सकती हूं। जब रीमा भारती उस पर कहर बनकर टूटेगी, तब उसे पता चलेगा कि मां भारती की एक बेटी के साथ बलात्कार करना उस हरामजादे को कितना महंगा पड़ रहा है।”
“वो तो ठीक है रीमा, लेकिन तुमने ये जानने की कोशिश की कि उर्मी के साथ बलात्कार क्यों हुआ?”
“अ...अभी तक आपने मुझे बताया ही कहां है?”
“तुमने मुझे बताने का मौका ही कहां दिया है? तुम तो भावनाओं में इस कदर बह गईं कि तुम्हें और कुछ सूझ ही नहीं रहा है।” वो बोला।
“आई एम सॉरी सर।” वो जल्दी से स्वयं को संभालकर बोली—“प्लीज बताइए, किस्सा क्या है?”
“बताता हूं।” खुराना एक लंबी सांस छोड़ता हुआ बोला—“तुमने फैरीलैंड नाम तो सुना होगा। ये उत्तरी-पश्चिमी महासागर के उस पार एक छोटा सा राष्ट्र है और भारत को हमेशा अपना एक मित्र देश मानता है। उसने हमारे डिपार्टमेंट को एक अत्यंत ही गुप्त और महत्वपूर्ण खबर भेजी थी कि उसकी सीक्रेट सर्विस के हाथ एक ऐसी माइक्रोचिप लगी है, जिसमें उन आतंकवादियों के नाम-पते मौजूद हैं, जो भारत में आए दिन खतरनाक वारदातें अंजाम देते रहते हैं। वो उस माइक्रोचिप को हमारे विभाग को सौंपना चाहता था, लेकिन साथ ही उसने कहा था कि उस माइक्रोचिप को लेने के लिए फैरीलैंड आई०एस०सी० की नंबर वन एजेंट रीमा भारती को भेजा जाए, क्योंकि वही उस माइक्रोचिप को सुरक्षित भारत सरकार के हाथों तक पहुंचा सकती है।”
कहकर खुराना पलभर सांस लेने के लिए रुका।
मैं उसका कहा गया एक-एक शब्द गौर से सुन रही थी।
“वो माइक्रोचिप हमारे लिए अत्यंत ही महत्वपूर्ण थी। अतः उसे हर कीमत पर फौरन हासिल करना जरूरी था, लेकिन उस वक्त तुम एक जरूरी मिशन के सिलसिले में मुल्क से बाहर गई हुई थीं। मेरे सामने एक विकट समस्या आ खड़ी हुई। इस मसले पर मैंने गंभीरता से विचार किया। चूंकि तुम मिशन पर थीं अतः मैंने उर्मी को तुम्हारे मेकअप में फैरीलैंड भेज दिया।” खुराना अपनी बात आगे बढ़ाता हुआ बोला—“उर्मी सकुशल फैरीलैंड पहुंच गई और वहां से माइक्रोचिप लेकर समुद्र के रास्ते भारत के लिए रवाना हो गई, परंतु ना जाने कैसे असलम को उस माइक्रोचिप के बारे में भनक लग गई। उसने सफर के दरमियान ही पोत पर उर्मी से ना सिर्फ वो माइक्रोचिप झपट ली, बल्कि उसके साथ बलात्कार भी किया और उर्मी को मरणासन्न अवस्था में छोड़कर फरार हो गया।”
अब सारा किस्सा मेरी समझ में आ गया था।
“रीमा! मैं जानता हूं कि तुम चंद घंटे पहले ही एक खतरनाक मिशन से पूरे बीस दिन बाद वापस लौटी हो और उसूलन तुम्हें कुछ दिन आराम करना चाहिए, लेकिन हालात ऐसे हैं कि मैं तुम्हें आराम करने की इजाजत नहीं दे पाऊंगा।” कहकर वो रुका और सिगार सुलगाने लगा।
मेरी निगाहें खुराना के चेहरे पर टिकी हुई थीं।
“खैर! अब मेरे लिए क्या आदेश है सर?” खुराना को खामोश देखकर मैंने पूछा।
“सब कुछ तुम्हारे सामने खुली किताब की तरह है रीमा!” वो सिगार का गहरा कश लेकर ढेर सारा धुआं उगलता हुआ बोला—
“असलम पाकिस्तान का रहने वाला है। वहीं से वो एक बहुत बड़े आतंकवादी संगठन को कमांड करता है, जिसके तार अलकायदा तक से जुड़े हुए हैं। जाहिर है, माइक्रोचिप लेकर वो पाकिस्तान ही गया होगा। हमें हर हालत में वो माइक्रोचिप हासिल करनी होगी रीमा! ताकि देश में कोढ़ की तरह फैले इन आतंकवादियों और उनके समर्थकों का सफाया किया जा सके। इसके लिए तुम्हारा फौरन पाकिस्तान पहुंचकर असलम को दबोचना जरूरी है। तुम्हारी फ्लाइट अब से तीन घंटे बाद है। तुम्हें एयरपोर्ट पर चौहान तुम्हारी प्रतीक्षा करता मिलेगा। वो तुम्हारे टिकट, पासपोर्ट और वीजा इत्यादि सौंप देगा। तुम मुंबई से दुबई और वहां से समुद्र के रास्ते करांची पहुंचोगी।”
ना करने का तो प्रश्न ही पैदा नहीं होता था। अतः मेरे होंठों से स्वयं ही निकलता चला गया—“ओ०के० सर!”
“मेरे ख्याल से मुझे तुम्हारा मिशन समझाने की जरूरत तो नहीं है।” खुराना कश लेकर बोला।
“नो सर!” मैंने दृढ़ता से कहा—“मगर मेरे सामने एक छोटी-सी प्रॉब्लम जरूर है।”
“बोलो।”
“मुझे असलम नाम के उस आतंकवादी के बारे में कोई जानकारी नहीं है। आप मुझे उसके बारे में कुछ बता सकते हैं?”
“आफकोर्स! मैं तुम्हें असलम के बारे में बताता हूं।” खुराना बोला—“उसका पूरा नाम असलम शेरखान है। वो एक खतरनाक किस्म का आतंकवादी है। आज से एक साल पहले वो हमारे मुल्क में सक्रिय था और सुना है कि बांग्लादेश के रास्ते गुप्त रूप से भारत में घुसा था। उसने हमारे मुल्क के विभिन्न शहरों में खूनी कारनामे अंजाम दिए हैं। सार्वजनिक स्थलों पर बम ब्लास्ट किए हैं, जिनसे सैकड़ों निर्दोष लोगों की जानें गई थीं। यहां तक कि उसने मासूम बच्चों और औरतों तक को भी नहीं बख्शा था। फिर वो हमारी सुरक्षा एजेंसियों के हत्थे चढ़ा और उसे गिरफ्तार करके जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा दिया गया, परंतु चंद दिन ही गुजरे थे कि जम्मू-कश्मीर में कुछ आतंकवादियों ने हमारे एक नेता की बेटी का अपहरण कर लिया। आतंकवादियों ने हमारी सरकार के सामने शर्त रखी कि वो असलम को रिहा कर दे, वरना वे उस लड़की की हत्या कर देंगे।
अंत में, हमारी सरकार को आतंकवादियों के सामने झुकाना पड़ा और उसने असलम को जेल से रिहा कर दिया। आतंकवादियों ने नेता की बेटी को छोड़ दिया। उधर जेल से रिहा होने के बाद असलम पाकिस्तान चला गया। मगर इस बारे में कोई भी जानकारी हासिल नहीं हो सकी कि वो किस जगह रहकर आतंकवादियों की कमांड संभालता है। बस इतना मालूम हो सका है कि उसका ठिकाना पेशावर के आसपास कहीं है।”
“हूं।”
“वैसे आतंकवादी पाकिस्तान में कैम्पों, सघन पहाड़ियों में रहकर ट्रेनिंग लेते हैं। हो सकता है कि ओसामा बिन लादेन की तरह असलम शेरखान भी किसी गुफा अथवा किसी पहाड़ी में अपना ठिकाना बनाए हो। बहरहाल उसे तलाश करना तुम्हारा काम है।”
“डोंट वरी सर! मैं उसे तलाश कर लूंगी।”
“गुड!”
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Additional information
Book Title | मैं आई मौत लाई : Main Aayi Maut Layi by Dinesh Thakur |
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Isbn No | |
No of Pages | 288 |
Country Of Orign | India |
Year of Publication | |
Language | |
Genres | |
Author | |
Age | |
Publisher Name | Ravi Pocket Books |
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