महानायक
सुनील प्रभाकर
दमयंती ग्रोवर के कंठ से निकलने वाली गुर्राहट बेहद खतरनाक थी। उसके खूबसूरत चेहरे पर चट्टान जैसी कठोरता थी तथा होठ भिंचे हुये थे। उसने जलती नजरों से उन चारों की ओर देखा, जो उसकी कार को दोनों ओर से घेरे हुये थे। उन चारों के हाथों में कोई न कोई हथियार मौजूद था।
वह महसूस कर रही थी कि बहुत गलत समय, गलत जगह पर फंस गयी है——जिससे आसानी से छुटकारा नहीं मिलने वाला। उड़ती नजर से चारों तरफ देखने के बाद वह कार का दरवाजा खोलकर बाहर निकली। इस प्रकार फंसने के बावजूद उसके ऊपर किसी प्रकार का प्रभाव नहीं पड़ा था। डर या खौफ नाम का कोई प्रभाव उसके हाव-भाव से नहीं जाहिर हो रहा था।
दमयंती ग्रोवर के कार से बाहर आते ही सड़क पर खड़ी मारुति वैन——जो उसकी ओपल का रास्ता रोके अड़ी खड़ी थी——धीरे से रेंगकर सीधी हो गयी।
सब कुछ अचानक ही हुआ था।
वह शंकित तो थी लेकिन इस बात का विश्वास नहीं था कि अचानक घेरा जा सकता है। फैक्टरी से चलते समय बिहारी ने कहा था कि किसी को साथ लेती जाए या वह चलता है——मगर दमयंती ने मना कर दिया था। यह दूसरी बात थी कि उसकी आशंका सही निकली थी। खास बात यह थी कि वह रास्ते भर पैनी नजर रखती आयी थी। वह गारंटी से कह सकती थी कि न तो उस पर किसी ने नजर रखी थी और न ही पीछा किया था। इसका मतलब स्पष्ट था की फैक्ट्री से चलते समय किसी ने——शायद किसी घर के भेदी ने काली भेड़ ने——दुश्मनों तक खबर पहुंचा दी थी। इस प्रकार से घेरे जाने से यह बात साफ हो गई थी कि उसका ही कोई आदमी उसकी पीठ में दगाबाजी का, विश्वासघात का छुरा घोंप रहा है।
“क्या चाहते हो तुम लोग? इस प्रकार रास्ता रोकने का क्या मतलब है?” दमयंती ने चारों की ओर देखते हुए कठोर स्वर में कहा।
“तुमसे जो कहा गया था——लगता है तुम्हारे ऊपर इसका कोई असर नहीं पड़ा है।” उन चारों में से जो सबसे ज्यादा लम्बा-चौड़ा और खूंखार लग रहा था, ठंडे स्वर में बोला।
“बेवकूफ़ी की बातों का मेरे ऊपर असर पड़ने का सवाल ही नहीं पैदा होता है।” दमयंती ने शब्दों को चबाते हुए कहा, “अपने बॉस से जाकर कह देना कि दमयंती ग्रोवर को इस तरह डराने धमकाने की हरकत बंद कर दे।”
“लगता है तुमको अपनी जान प्यारी नहीं है?”
“जान हर एक को प्यारी होती है। एक छोटे से भुनगे को भी अपना जीवन अज़ीज़ होता है। क्या तुम लोगों को अपनी जिंदगी से लगाव नहीं है?” जहरीले स्वर में कहा दमयंती ने, “इस प्रकार अकेले घेरकर, डरा-धमकाकर तुम लोग क्या समझते हो अपनी बात मानने पर मजबूर कर सकते हो? तुम्हारा बॉस या मालिक क्या यह समझता है? ऐसी धमकियों से मैं डर जाऊंगी और उसकी बात मान लूंगी?”
“नहीं मानोगी तो अपने बाप की तरह तुम भी मरोगी।” उस व्यक्ति ने दरिंदगी से कहा।
“धोखे से तो किसी को भी मारा जा सकता है। मेरे बाप को भी धोखे से मारा गया।”
“वो इसलिए मारा गया क्योंकि उसने बॉस की बात नहीं मानी। बॉस की चेतावनियों को हवा में उड़ा दिया। अपने साथ-साथ अपनी बेवकूफ़ी से पत्नी को भी मौत के मुँह में धकेल दिया। क्या फायदा हुआ इससे?”
“और वो समझता है कि इस प्रकार अपनी बात मनवाने में कामयाब हो जाएगा?”
इस बार वो व्यक्ति मुस्करा दिया। उसकी मुस्कराहट अत्यंत खतरनाक थी। कम से कम साधारण आदमी का रक्त तो जमा ही सकती थी। मगर दमयंती पर उसका कोई असर नहीं पड़ा।
“अब क्या चाहते हो?”
“तुमको हमारे साथ चलना है?”
“कहाँ चलना होगा?” दमयंती ने सपाट स्वर मेँ पूछा। उसके चेहरे पर शिकन तक नहीं नजर आयी। भावहीन आँखों से चारों की तरफ देखती रही
“यह तो चलकर ही मालूम होगा।”
“और अगर न चलूँ तो?”
उस आदमी के चेहरे पर अजीब से भाव आ गए। क्षण भर वह दमयंती का चेहरा देखता रहा। फिर बोला, “अगर अपना नुकसान नहीं चाहती हो——किसी प्रकार की जबरदस्ती नहीं चाहती हो——तो तुमको हमारी बात मान लेनी चाहिए। बॉस का आदेश तुम को किसी प्रकार का नुकसान न पहुंचाने का है। हम भी नहीं चाहते कि…।
दमयंती इस बार धीरे से हंस दी।
“इसकी बकवास पर तवज्जो देने की जरूरत नहीं है।” एकाएक बाकी तीनों व्यक्तियों में से एक ने पहलू बदलकर कर्कश स्वर में कहा, “इसे उठा ले चलो। बाकी मामला बॉस जाने। हमारा काम इसे बॉस तक पहुंचाना है।’
“कोई आ गया बीच में तो खामख्वाह बवाल हो सकता है।” दूसरे ने मुंह बनाया।
“ऐ !” तीसरा गुर्राया, “काफी देर से तेरी बकवास सुन रहा हूँ। जो भी कहना हो, बॉस से कहना। हम लोगों से बहस करने से कोई फायदा नहीं। यह समय नष्ट कर रही है।”
“सुना तुमने?” पहले वाला बोला, “बेहतर होगा हमें बल प्रयोग करने पर मजबूर न करो——यही तुम्हारे हित में होगा।”
“चलो कोशिश करके देख लो।“ दमयंती ने भिंचे स्वर में कहा, “अगर ले चल सकते हो तो ले चलो।”
उसने तय कर लिया था कि किसी भी कीमत पर उन लोगों के साथ नहीं जाएगी। उसके शरीर में एक बारगी ही तनाव पैदा हो गया था। मांसपेशियों में कसाव आ गया था। वह अच्छी तरह जानती थी कि उसके सामने पेशेवर अपराधी हैं——जो हर प्रकार से, हर तरह का कदम उठा सकते हैं। अपने बॉस के आदेश पर भले ही उसे जान से न मारें मगर घायल तो कर ही सकते हैं।
दमयंती जींस और शर्ट में थी।
उसका लंबा कद। लचकदार और मजबूत शरीर एकाएक पूरी उचाई में तन गया। आंखों में खूंखारियत उभर आई। अपनी भूरी-भूरी आँखों को चारों पर जमाती हुई बोली, “तुम लोगों ने मुझे रसगुल्ला समझ रखा है। तुम्हारा हरामजादा बॉस शायद यह समझता है कि मेरे माता-पिता को मारकर मुझे भयभीत कर सकता है या दबाव बनाकर काम करा सकता है तो यह उसकी बहुत बड़ी भूल है। मेरे जीवन का उद्देश्य ही उसे तबाह और बर्बाद करना है। कई बार मुझ पर हमला करवाकर फ़ोन पर धमकियां देकर यह समझा होगा कि डर जाऊंगी तो उसकी खामख्याली है। खड़े क्यों हो सुअर के बच्चों ——अलग मर्द हो तो पकड़ो मुझे——ले चलो मुझे अपने कुत्ते के पास।”
उस पहले आदमी का चेहरा अपमान के कारण कानों तक लाल हो गया। उसके तीनों साथियों की आँखों में खून उतर आया था। वे चारों शिकारियों की तरह नजर आने लगे।
“गोली मार दो हरामजादी को।” एक ने दहाड़कर कहा और रिवॉल्वर निकाल लिया।
“नहीं।” पहला वाला गुर्राया, “कोई गोली नहीं चलाएगा, हम इसे खाली हाथों ही पकड़ेंगे ताकि इसको यह मलाल न रहे कि खुद को बचाने का मौका नहीं मिला।”
“लेकिन बॉस——।“ दूसरे ने कहना चाहा।
“बॉस से मैं बात कर लूँगा।” वह दमयंती को कठोर दृष्टि से देखते हुए दांत पीसकर बोला, “खाली हाथ सामना करने वाली स्त्री पर हथियार उठाना मैं ठीक नहीं समझता। हम इसे खाली हाथ ही पकड़ेंगे। पकड़ो इसे——।“
उसका वाक्य खत्म हुआ था कि दमयंती का शरीर अपनी जगह से उछला और कलाबाजी खाता हुआ कार के ऊपर पहुंचा फिर झटके के साथ कार के दूसरी तरफ।
चारों तेजी से कार की ओर लपके।
उसी समय एक तीखा स्वर गूंजा।
“हाय-हाय………. एक लड़की के पीछे चार-चार आदमी...यह बदमाशी हमारे रहते नहीं हो पाएगी।”
¶¶
चारों सकपका कर ठिठके।
उस नई तीखी आवाज़ ने जैसे कोड़ा बनकर उनके पैरों को थाम लिया था। उनकी चेतना पर तीखा प्रहार किया था। चारों ने एक साथ सिर घुमाकर आवाज़ की दिशा में देखा।
उनकी आँखें विस्मय से फैल गयीं।
एक मारुति कार युवती वाली गाड़ी के पीछे आकर रुकी थी। और उसमें से एक छोटे कद का खूबसूरत तथा गोरा-चिट्टा लड़का सफेद वस्त्र पहने उससे बाहर उतर रहा था।
“कमाल है भाई!” लड़का कार से पीठ टिकाकर पलकें झपकाता हुआ बोला, “एक अकेली लड़की और तुम चार मुस्टंडे! यह तो गलत बात है।”
"ए..... कौन है तू.....?" पहले वाले व्यक्ति ने उसे खूंखार नजरों से देखा, "तू कौन होता है बीच में बोलने वाला? और वहाँ क्या कर रहा है?"
"अलादीन के चिराग का जिन्न।" लड़का दांत निकाल कर बोला, "लेकिन पुराने समय का नहीं आज के जमाने का। गरीबों, मजलूमों,कमजोरों का मददगार। वैसे चाहो तो खुदाई फौजदार भी कर सकते हो।"
"खामोश!" वो व्यक्ति चिल्लाया, "भाग जाओ यहां से वरना मारे जाओगे।"
"अरे यार, तुम तो बेकार ही नाराज हो रहे हो। मैं एक उसूल वाली बात कर रहा हूं...... भला एक अकेली औरत के पीछे चार लोग——वो भी हथियार बंद——यह कहां का इंसाफ है? तुम लोगों को तो खुद ही शर्म आनी चाहिए।"
"तू भी मरना चाहता है क्या?" दूसरा व्यक्ति सर्द आवाज में बोला, " चला जा यहां से——वरना खामख्वाह जान से हाथ धो बैठेगा।"
"दिलीप भाई।" लड़का कार की स्टेयरिंग के पीछे बैठे दिलीप शांडिल्य पर नजर डालकर हंसा, "सुना तुमने——यह गधा मुझे यानी बबूना को धमकी दे रहा है। जबकि इस गधे को यह पता नहीं कि जहां हम होते हैं——अरे.... अरे....।"
दूसरे शख्स ने बबूना पर छलांग लगा दी।
बाबूना बहुत आराम से एक ओर हट गया। वो शख्स मारुति के ड्राइविंग सीट वाले डोर से टकरा गया था। डोर से टकराकर वो पलटा ही था कि दिलीप शांडिल्य की बांह किसी सांप की तरह उसके गले से लिपट गयी।
उन चारों में से कोई सोच भी नहीं सकता था कि लड़के ने जानबूझकर उत्तेजित करने की कोशिश की थी।
दिलीप शांडिल्य जैसे तैयार बैठा था।
उस व्यक्ति के झपटते ही बिजली की गति से कार कार ड्राइविंग साइड का डोर खुला था और इतनी आसानी से वह चंगुल में फंस गया था——जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती थी।
उसके हाथ का पिस्तौल छीन कर उसकी ही कनपटी से लगा दिया था दिलीप शांडिल्य ने। पलक झपकाते वहां दृश्य बदल गया था। वह व्यक्ति कांपा। छटपटाया, तड़पा। मगर दिलीप की पकड़ से निकल पाना असंभव था। जैसे गले में संडासी फंस गयी थी उस व्यक्ति के बबूना खिलखिला कर हंसा।
"देखा तुम लोगों ने?" उसने हंसते हुए ही कहा, “मैंने पहले ही कह दिया था। अब तो विश्वास हो गया होगा?”
तीनों हड़बड़ाये से अपनी गने थामें में खड़े रह गए थे। उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें——क्या ना करें। एक साथी की जान को सांसत में देख कुछ भी करना उसको मौत के मुंह में धकेलने जैसा था।
"उसे छोड़ दो।" पहले वाले व्यक्ति ने भिंचे स्वर में कहा।
"जरूर छोड़ दिया जाएगा।" दिलीप ने उसी स्वर जवाब दिया, "हमें इसका चार नहीं डालना है। बस तुम तीनों को एक काम करना होगा।"
"कौन सा काम?"
"चुपचाप तीनों अपनी गाड़ी में बैठो और यहां से दुम दबाकर खिसक लो।"
"मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि दूसरे के फटे में तुम दोनों क्यों अपनी टांग फंसा रहे हो? तुम दोनों अपना रास्ता नापो।"
"बात तो सही है तुम्हारी।" बबूना बोल पड़ा, "लेकिन यार, हम लोग अपनी आदत से मजबूर हैं। अब आदत तो आदत है। और आदत आसानी से नहीं बदलती।"
"क्या मतलब?" उसके भौहों में सिकुड़न आ गयी।
"ऐसे जैसे तुम लोग अपना हरामीपन.... सॉरी....मेरा मतलब बदमाशी नहीं छोड़ सकते। गलत काम नहीं छोड़ सकते——इसी तरह हम दोनों भी एकदम से दूसरों के फटे में टांग फंसाने की आदत को नहीं बदल सकते। तुम तो जानते होंगे, आदतें जल्दी नहीं बदला करती।"
उस व्यक्ति ने असहाय भाव से लम्बी सांस छोड़ी।
"ऐसा लगता है तुम दोनों इस शहर में नये हो?"
"नये से भी नये भइये। रास्ते भर पूछ-पूछ कर तो शहर में प्रविष्ट हुये हैं।"
"इसलिए तुम लोगों ने ऐसी मूर्खता की है।"
"ऐसी मूर्खता भइये?"
"त्रिकाल का नाम सुना है?"
"यानी त्रिकाल किसी का नाम है?"
"हां, हम उसी के आदमी हैं। और इस शहर में वही होता है जो बॉस यानी त्रिकाल चाहता है। हम त्रिकाल के आदमी हैं। तुम दोनों को शायद यह नहीं मालूम कि शहर में त्रिकाल के संकेत के बिना पत्ता तक नहीं खड़कता।"
“सुना दिलीप भाई?” बाबूना जोर से बोला।
"सुना। बड़ा बकवास शहर है। अगर पहले पता होता तो इधर का रुख ही नहीं करते।"
"लेकिन अब तो आ गये हैं।"
"आ भी गये और उलझ भी गये। आ बैल मुझे मार वाली कहावत सही हो गयी है।"
"फिर अब क्या किया जाए?"
"अब तो फिसल पड़े तो हरिगंगा है भई।"
"यानी फंस गये तो फंस गये?"
"और क्या?"
"ए लड़कों।" वही शख्स इस बार झल्लाते हुये खतरनाक स्वर में बोला, "बेकार की बात करने की जगह अपनी भलाई की बात सोचो। इस आदमी को छोड़ दो। वरना तुम दोनों के साथ जो भी होगा उसके बारे में तुम लोगों ने सपने में भी नहीं सोचा होगा।"
"अबे चुप——।" बबूना गुर्राया, " इतनी देर से साला धमकी दिये जा रहा है। साले——अपने आप को क्या समझता है तू और तेरा बॉस त्रिकाल——वो हरामजादा क्या बेचता है? तू कहता है उसके बिना शहर में पत्ता तक नहीं हिलता। अब हम दोनों आ गये हैं। तू देखना——पत्ता तो क्या पूरा पेड़ हिलेगा। हमें क्या समझा है तूने?"
"ऐ छोकरे——।"
"क्या है उल्लू के पट्ठे?"
"मैं आखिरी बार कर रहा हूं, आदमी को छोड़ दो और यहां से चले जाओ वरना ज्यादा से ज्यादा यही होगा कि अपने एक आदमी को खोना पड़ेगा हमें——लेकिन, तुम दोनों कुत्ते की मौत मारे जाओगे——अभी समय है बच निकलने का।"
"यानी अपने आदमी को मार दोगे?" दिलीप ने शुष्क स्वर में कहा, "उस आदमी को मार दोगे जो तुम्हारा साथी है?"
"मजबूरी है। तुम दोनों को खत्म करने के लिए ऐसा करना जरूरी है।" उस आदमी के चेहरे पर मौत नाचने लगी, "हमें हर हालत में छोकरी चाहिये। इसके साथ ही यह भी कान खोलकर सुन लो——अगर तुम लोगों के दिमाग में पुलिस से मदद पाने की कोई आशा हो तो उसे खुरचकर फेंक दो। रामनगर में पुलिस का नहीं हमारा शासन है। पुलिस तुम्हारी कोई मदद नहीं कर पायेगी।"
उस आदमी ने बोलना बंद ही किया था कि उसी समय एक घटना घटी।
एक के बाद एक तीन धमाके हुये और उस आदमी तथा उसके दोनों साथियों के हाथ से रिवाल्वर व पिस्तौल छिटककर निकल गयीं।
तीनों हड़बड़ाकर हाथ झटकने लगे।
इसी के साथ दिलीप ने जिस आदमी को पकड़ रखा था——उसे झटके के साथ आगे किया और उसकी पिछाड़ी पर जोरदार ठोकर रसीद की। वो उछलकर अपने साथियों से जा टकराया। इस नई घटना से चारों हड़बड़ा गये।
दिलीप ने एक काम और किया। उसने तीन फायर और किये है। उन लोगों के सड़क पर गिरे हथियार उछल-उछलकर दूर जा पड़े। दिलीप ने अपने रिवाल्वर को भी——जो उसने छीना था——एक ओर उछाल दिया और फिर खूंखार स्वर में बोला, “अब हम निहत्थे हो गये हैं। यानी हथियारों के मामले में हम सभी खाली हाथ है। वैसे हम दो और तुम चार हो——लेकिन कोई बात नहीं——कम से कम हथियारों का इस्तेमाल नहीं होगा हमारे बीच। चाहो तो हमारे बीच मुकाबला हो सकता है। हम भी देखना चाहेंगे की त्रिकाल के तीनों कालों का हिसाब-किताब कितना सही और कितना गड़बड़ हो रहा है। वैसे भविष्य तो समझ लो अभी से——इसी समय से खराब होना शुरू हो गया है। हम दोनों को तो राहु-केतु समझो——।”
उसी समय दमयंती ग्रोवर उन दोनों के बगल में आ खड़ी हुई। उसका चेहरा तमतमाया हुआ था। आंखों में कहर का भाव नजर आ रहा था।
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