लुच्चा सबसे ऊंचा
शिवा पण्डित
'डिंग...डिंग...डिंग...।'
डॉक्टर राजेश काटकर की जेब में रखे मोबाइल का म्यूजिक बजा।
उस वक्त डॉक्टर राजेश अपने नर्सिंग होम के ऊपर बने अपने घर में आराम करने की नीयत से आया था।
हर रोज दोपहर एक से दो बजे तक उसके लंच का वक्त होता था।
वह ठीक एक बजे ऊपर अपने घर में आता और दस मिनट के लिये बेड पर लेट जाता था। इस बीच उसकी पत्नी डायनिंग टेबल पर लंच लगा देती थी...।
दस मिनट बाद वह बेड से उठता...लंच करता और फिर से बेड पर आकर लेट जाता और दो बजे उठकर नीचे नर्सिंग होम में चला जाता।
डॉक्टर राजेश काटकर करीब चालीस साल का इकहरे शरीर वाला साधारण कद-बुत वाला व्यक्ति था। उसके साधारण से चेहरे से कहीं से भी नजर नहीं आता था कि वह डॉक्टर है। बिल्कुल साधारण आदमी नजर आता था वह...तीन-चार हजार तनख्वाह पाने वाला आदमी।
मगर हकीकत इससे उलट थी।
मुम्बई में उसके नाम की तूती बोलती थी। महीने का पांच-छह लाख आराम से उसके घर में घुस जाता था...। वो भी एक नम्बर में। दो नम्बर के पैसे का तो हिसाब ही नहीं था।
मुम्बई में वह बहुत ही लायक डॉक्टर के नाम से जाना जाता था। ऐसे में उसे जानने वाले भी बहुत थे...और उसकी इज्जत भी बहुत थी। वह जिधर से निकलता लोग...खासकर पैसे वाले...उसे देखते ही सिर हिलाकर उसका अभिवादन करते।
डॉक्टर राजेश काटकर की पत्नी करुणा हालांकि डॉक्टर की डिग्री पाये हुए थी...लेकिन वह डाक्टरी नहीं करती थी। हाउस वाइफ थी वह।
राजेश काटकर ने उसे डाक्टरी न करने के लिये कहा था...या उसने स्वयं ही डाक्टरी न करने का फैसला लिया था...इस भेद का किसी को नहीं पता था।
जिस कमरे में उस वक्त राजेश काटकर प्रविष्ट हुआ था...वह उसका बेडरूम था।
कमरे के बीचों-बीच शानदार डबल बेड लगा हुआ था...जिस पर हल्के नीले रंग की साफ-सुथरी चादर बिछी हुई थी।
चादर के डिजाइन से मेल खाते दो सिरहाने लगे हुए थे वहां...और पैरों की तरफ तह की हुई ओढ़ने वाली चादरें पड़ी थीं।
बायीं तरफ कोने में एक ट्रॉली पर बड़ा टी.वी. पड़ा हुआ था...जिस पर एक फ्रेम में राजेश काटकर और उसकी पत्नी करुणा की तस्वीर लगी हुई थी।
दायीं तरफ दीवार में ए.सी. लगा हुआ था।
बेड के ऐन पीछे आधी दीवार को घेरती एक सीनरी लगी हुई थी।
समुद्र का दृश्य था उस सीनरी में...। सूर्यास्त हो रहा था।
बहुत ही प्यारी लग रही थी वह सीनरी...।
बेड से थोड़ा हटकर दायीं तरफ एक सेंटर टेबल के दायें-बायें चार सोफा चेयर रखी हुई थीं।
बेड की तरफ बढ़ते हुए राजेश काटकर ने जेब से मोबाइल निकाला और फ्लैप हटाकर उसकी स्क्रीन पर नजर मारी।
एक अंजान नम्बर था स्क्रीन पर।
"जरूर किसी पेशेंट का फोन होगा।"
वह बड़बड़ाया और अंगूठे से मोबाइल का हरा बटन दबाते हुए मोबाइल को कान से लगाया।
"हैलो! डॉक्टर राजेश काटकर स्पीकिंग।"
"बड़ा मोटा कम रेला है तू डॉक्टर...। अपुन का हिस्सा नई देगा क्या?"
दूसरी तरफ से आई आवाज को सुनकर बुरी तरह से हड़बड़ा उठा वह।
"कौन बोल रहे हो तुम...?"
"अपुन हमीद भाई बोल रेला है डॉक्टर...।"
हमीद भाई का नाम सुनते ही डॉक्टर राजेश काटकर उछल कर बेड से खड़ा हो गया।
पल भर में ही उसका चेहरा पसीने-पसीने हो गया...। आंखों में बदहवासी उभर आई।
"त...तु...म...!"
"हां मैं...पचास पेटी इदर कू सरकाने का...क्या?"
"प...चास प...पेटी...?"
"पूरी पचास पेटी...आज जुगाड़ कर ले...। कल रात नौ बजे से पहले-पहले पचास पेटी अपुन के घर पहुंचाने का...। एकदम चौकस।"
डॉक्टर राजेश काटकर की पीली पड़ी रंगत और भी पीली पड़ गई।
"द...देखो...मेरे पास पैसा नहीं है...मैं...।"
"अपुन को सब मालूम है...। चुपचाप...बिना चूं-चा किये पचास पेटी अपुन की तरफ सरकाने का वर्ना अपुन को पता है तेरे छोकरे का...सेंट मेरी स्कूल में पढ़ता है न वो...फाइव स्टैंडर्ड में...।"
राजेश काटकर के चेहरे पर फैली बदहवासी और भी गहरी हो गई।
साफ-साफ धमकी दी जा रही थी उसे।
"ल...लेकिन हमीद भाई...मैं...।"
"कल रात नौ बजे अपुन के पास पचास पेटी पहुंचने का...और कुछ नेईं सुनने का...और अगर पुलिस में फोन किया तो...।"
दूसरी तरफ से सम्बन्ध विच्छेद हो गया।
मगर राजेश काटकर दूसरी तरफ से छोड़ी गई अधूरी बात में छुपी दरिंदगी को साफ महसूस कर रहा था।
हमीद भाई के बारे में उसने भी दूसरे लोगों की तरह सुन रखा था।
कामरान अफजल का भतीजा था वो।
कामरान अफजल अंडरवर्ल्ड का एक जाना-माना नाम था...।
कई देशों की पुलिस उसके पीछे लगी हुई थी और हिन्दुस्तान की पुलिस तो बस प्रार्थना ही कर रही थी कि किसी तरह से कामरान अफजल उसे हासिल हो जाये।
लेकिन पुलिस न तो अभी तक उसे पकड़ पाई थी...और न ही ऊपर वाले ने अभी उसकी प्रार्थना सुनी थी।
पुलिस तो अभी तक यह भी नहीं जान पाई थी कि कामरान अफजल छुपा कहां है? और तो और पुलिस अभी तक उसकी सूरत भी नहीं जानती थी। उसकी न तो कोई तस्वीर थी...न ही कोई स्कैच।
हालांकि पुलिस ने उसके दो-तीन सिपहसलारों को पकड़ने में कामयाबी जरूर हासिल की थी...लेकिन वो उनसे कामरान अफजल के बारे में कुछ भी नहीं जान पाई थी।
उसी कामरान अफजल का भतीजा था हमीद भाई...।
अभी साल भर पहले तक हमीद भाई अपने बाप सत्तार अफजल के साथ बड़ी ही शराफत भरी जिंदगी गुजारता था। कामरान अफजल के साथ उसके कोई सम्बन्ध नहीं थे।
सत्तार अफजल का अपना एक्सपोर्ट का धंधा था...जोकि ठीक-ठाक चल रहा था।
पता नहीं कैसे पुलिस को यह पता चल गया कि सत्तार अफजल कामरान अफजल का भाई है...।
बस...दोनों बाप-बेटे पहुंच गये थाने में...।
सत्तार अफजल ने लाख दुहाई दी कि उसका कामरान अफजल से कोई सम्बन्ध नहीं...। मगर पुलिस भला उस पर क्यों विश्वास करती।
दोनों बाप-बेटों को बुरी तरह से टॉर्चर किया गया। बदकिस्मती से सत्तार अफजल टार्चर और बेइज्जती को बर्दाश्त नहीं कर पाया और उसने थाने में ही दम तोड़ दिया।
यह खबर मीडिया में पूरे जोर-शोर से उछली और पुलिस को मजबूरन हमीद भाई को छोड़ना पड़ा और उससे अगले ही रोज उसी थाने के चार पुलिसियों की लाशें बिछ गईं।
बहुत बड़ा बवाल उठा था तब...। लेकिन हमीद का कुछ भी नहीं बिगड़ा...।
इस सारे झमेले में हमीद भाई ने अपना बाप जरूर खो दिया था...लेकिन उसे इतनी प्रसिद्धि मिल गई थी कि एकाएक ही उसके नाम का खौफ पैदा हो गया था पब्लिक में...।
उसने भी अपने नाम का और अपने चाचा के नाम का फायदा उठाया...और दोनों हाथों से दौलत बटोरने लगा। लोग अब उससे अपने फैसले करवाने लगे... और वो बिल्लियों की लड़ाई में बंदर की भूमिका अदा करते हुए दौलत कमाने लगा।
उसके नाम की दहशत बढ़ती ही जा रही थी...और जितनी दहशत बढ़ती...उतना ही उसे ज्यादा मुनाफा होता। ऐसे में राजेश काटकर की बिसात ही क्या थी...! उसे तो हमीद भाई के नाम से ही दस्त लगने लगे थे। लेकिन पचास लाख यूं भी तो नहीं दिये जा सकते किसी को...। आखिर उसने अपनी मेहनत से कमाये थे रुपये...।
ऐसे में वो उसे ऐसे कैसे दे देता?
उसने जैसे-तैसे हिम्मत करके स्थानीय थाने का नम्बर मिलाया और मोबाइल कान से लगाकर दूसरी तरफ से बजने वाली घंटी सुनने लगा।
"हैलो...।" शीघ्र ही उसके कान के पर्दे से एक भारी आवाज टकराई—"इंस्पेक्टर शिन्दे स्पीकिंग...।"
"म...मैं बोल रहा हूं...।" राजेश काटकर इस कदर घबराया हुआ था कि वो ढंग से बात भी नहीं कर पा रहा था।
"मैं कौन? अरे भाई अपना नाम-पता बताओ...फिर दुःख-दर्द बताओ...तभी तो इलाज करने पहुंचूंगा।" दूसरी तरफ से आवाज आई।
"म...मैं क...काटकर...र...राजेश काटकर बोल रहा हूं।"
इतना कहने में ही उसने तीन दफा थूक निगली—
"कौन राजेश काटकर...?"
"ड...डॉक्टर राजेश काटकर...काटकर नर्सिंग होम से।"
"ओह! डॉक्टर साहब...खैरियत तो है...? काफी घबराये नजर आ रहे हैं आप...क्या हुआ?"
"अ...आप प्लीज फौरन यहां पहुंचें...।"
"हुआ क्या...? क्या पब्लिक ने आपके नर्सिंग होम में तोड़-फोड़ कर दी है?"
"न...नहीं ऐसा कुछ नहीं है।"
"तो फिर क्या बात है?"
"आप प्लीज यहां आ जायें...। फोन पर नहीं बता सकता मैं...।"
"ओ०के०...मैं आ रहा हूं।"
"नर्सिंग होम के ऊपर मेरा रेजीडेंस है...आप मेरे रेजीडेंस में आयें...!"
"ठीक है।"
राजेश काटकर ने मोबाइल कान से हटाया और उसे बेड पर रखकर जेब से रूमाल निकाला और उसे खोलकर अपना पसीना पोंछने लगा।
लेकिन पसीना था कि रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था।
तभी करुणा कमरे में प्रविष्ट हुई।
करुणा पैंतीस वर्ष से ऊपर की औरत थी...लेकिन उसने अपने आपको इस कदर मेन्टेन कर रखा था कि वह तीस से ऊपर की दिखती ही नहीं थी।
उसके छरहरे बदन पर इस वक्त क्रीम कलर का कुर्ता और पाजामा था।
कुर्ते के हालांकि ऊपरी बटन खुले हए थे...लेकिन वे असभ्य नहीं लगते थे।
खूबसूरत और हसीं चेहरे पर उसने जरा भी मेकअप नहीं कर रखा था। कानों में दो छोटी-छोटी बालियां और ऐसे ही एक पतला-सा नोज पिन उसकी नाक पर था।
बहुत ही खूबसूरत नजर आ रही थी वह...जबकि वह बनी-ठनी हुई भी नहीं थी।
कमरे में बेड पर पस्त हालत में बैठे राजेश काटकर को देख वह चौंकी।
"क्या हुआ राजेश...?" वह उसके करीब आ बैठते हुए बोली।
उत्तर में जब राजेश ने उसे बताया तो करुणा की हालत भी राजेश की तरह हो गई।
बल्कि वह तो राजेश से भी अधिक घबराई नजर आने लगी।
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