लाश खाऊंगा खून पिऊंगा
ऐलफिन टॉवर!
ब्लूचिस्तान का सबसे बड़ा टॉवर, मैं उसी टॉवर के पास वाली बिल्डिंग में एक कमरे में कैद थी। वह टॉवर जो ब्लूचिस्तान का सबसे ऊंचा टॉवर था। कमरा पूर्ण रूप से अन्धकार में डूबा था, मैं चिपचिपे फर्श पर बंधी पड़ी थी।
वे आठ गनधारी थे, जो काली पोशाकों में पूरी तरह लिपटे थे। वे मुझे यहां पटक गये थे। उनके बारे में मैं कुछ नहीं जानती थी कि वे कौन हैं....? मैं अच्छी-खासी होटल ‘मोर्गा’ में डांस फ्लोर पर डांस कर रही थी। होटल काफी नामी था, वह होटल जिसका नाम पूरे इलाके में छाया था। वहां से डांस खत्म करने के बाद मैं मुर्ग-मुसल्लम खाकर अपनी कार तक पहुंची, जहां उन वर्दीधारियों ने मुझे अपने कब्जे में कर डाला था।
मैं उनके काबू में नहीं भी आती, मगर उन लोगों ने मुझे इतना भी वक्त नहीं दिया था, कि मैं अपनी पिस्टल तक भी निकाल पाती, और फंस गयी थी।
बस एक बन्द वैन में मुझे डालकर यहां लाकर ही पटक दिया था।
मुझे यहां पड़े-पड़े कितना वक्त हो गया था, ये तो मैं भी नहीं जानती थी। मगर इतना अवश्य हुआ था कि मैं यहां पड़े-पड़े अकड़ गयी थी। अब तक मेरे खुद के अन्दाजे से मैं यहां एक घण्टे से ज्यादा बन्द रह चुकी थी। एक घंटे में मैंने खूब सोचा था कि ये लोग कौन थे, क्यों मुझे यहां लाये—पर मैं इस बारे में कुछ नहीं समझ सकी थी।
“धड़ाम-बड़ाम-धड़ाम....।” सहसा बाहर दिल दहला देने वाले तीव्र विस्फोट गूंजने लगे थे।
वह इमारत बुरी तरह कांपने लगी थी।
विस्फोटों के साथ चीखो-पुकार और गोलियों की बौछारों का स्वर भी अब सुनाई देता जा रहा था।
बम फट रहे थे, लोगों की चीखो-पुकार....उनके द्वारा पुकारने का स्वर उभर रहा था।
मैं खुद को वक्त के हाथों में छोड़कर पड़ी रही थी। और मैं कर भी क्या सकती थी?
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मैं....मैं यानी रीमा भारती, आपके सपनों की रानी, खूबसूरत मौत, जो दुश्मनों के ऊपर ऐसे छा जाती है जैसे वे मौत की चादर ताने सोने को बेताब हों। जो हमेशा मुझसे बचने की कोशिश तो करते हैं मगर नाकाम। मैं वही रीमा भारती, जो आई.एस.सी. यानी कि इण्डियन सीक्रेट कोर की नम्बर वन स्पाई हूं, वन वूमैन आर्मी हूं। वही रीमा भारती, जिसका खौफ हर देश के अपराधी खाते हैं।
मैं अच्छी-खासी होटल से अपनी शाम रंगीन करके फ्लैट पर लौटी थी, जहां मेरे पहुंचने के कुछ पलों बाद फोन बजा था।
“ट्रिन....ट्रिन....।” मेरा फोन बज उठा था।
मैंने नाक-भौं सिकोड़कर चोंगा उठाया था।
“हैलो....।” मैं कड़क स्वर में बोली।
“हम बोल रहे हैं रीमा....!” उधर से जाना-पहचाना सख्त स्वर उभरा।
“यस-यस चीफ....!” आवाज सुनते ही मेरी आवाज कांप गयी थी।
“रीमा, कल जितनी सुबह तुम ऑफिस पहुंच सकती हो पहुंचना, मुझे बहुत अर्जेंट बात करनी है....।”
“यस सर....!”
“गुड नाइट, टेक केयर....।” उधर से स्वर उभरा।
साथ ही उस तरफ से सम्बन्ध विच्छेद हो गया था।
मैं सोचों के भंवर में फंसी काफी देर तक चोंगा थामे खड़ी रह गयी थी।
मेरे दिमाग में विचारों का ऐसा द्वन्द्व छिड़ गया था, जो काफी देर तक मेरे दिमाग को हिलाता रहा था।
विचारों की श्रृंखलायें, लगातार यही कह रही थीं कि जरूर कुछ-ना-कुछ हो गया है।
जरूर कोई-ना-कोई मामला है जो अब एक केस के रूप में मेरे सामने आने वाला है।
वह केस कैसा है, किस रूप में, ये तो अब आने वाले कुछ घण्टों के बाद ही पता चलता।
फिलहाल मैंने सिर को झटककर उन विचारों के तन्तुओं को अलग किया।
अब मैं बैड की तरफ बढ़ गयी थी।
क्योंकि ज्यादा देर तक सोचना बेकार था, कारण ज्यादा सोचने से बस दिमागी टेन्शन तो बढ़ सकती थी, हल नहीं हो सकती थी।
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मैं चीफ के ठीक सामने पड़ी रिवाल्विंग चेयर्स में से एक पर बैठी थी।
चीफ अपने होठों में दबे सिगार के कश लगाते बस उस सुनहरे रंग की फाइल को देख रहे थे।
मैं काफी देर तक करवटें बदलती बस चीफ के बोलने का इन्तजार कर रही थी।
“हूं....।” चीफ फाइल फेंककर बोले थे—“ओह तुम आ गयीं रीमा....!” चीफ ऐसे बोले थे जैसे अभी उन्हें मेरे आने का पता चला हो।
“यस सर....!” मैं इतना ही कह पाई थी।
“रीमा....!” चीफ ढेर सारा धुआं छोड़ते बोलने लगे—“तुम शकू इस्लाम को जानती हो....?”
“श....शकू इस्लाम....ये कौन है....?” मैंने आंखें सिकोड़ते हुए कहा था।
“शकू इस्लाम....ब्लूचिस्तान के आर्मी का एक जनरल है, वहां की सेना का एक ही प्रमुख होता है। उसे सेनापति कहा जाता है....जनरल शकू इस्लाम....यहां इंडिया में है....।”
“मैं समझी नहीं चीफ, आखिर मामला क्या है....?” मैं लम्बी सांस छोड़ती बोली।
“रीमा, गृहमंत्रालय द्वारा तुम्हें मिस्टर शकू के साथ मीटिंग का आदेश है....।”
“वह क्यों सर....आखिर मेरे साथ....।”
“हां रीमा, स्वयं गृहमंत्री जी और मैं भी समझ नहीं पाये।”
“मैं समझ नहीं पा रही हूं सर, कि आखिर मामला क्या है?”
“ये तो वक्त बतायेगा रीमा, हम इस वक्त गृहमंत्रालय के आधीन हैं, हमें केस के ऑर्डर वहीं से मिलते हैं, बस अब तो हमें वहां जाने के बाद पता चलेगा कि माजरा क्या है। तुम रेडी होकर एक घण्टे बाद अपने केबिन से निकलकर गेस्ट हाउस पहुंच जाना, मैं वहीं मिलूंगा....।” चीफ ने अपना आदेश सुनाया था।
मैं गर्दन हिलाकर रह गयी।
चीफ का आदेश सर्वोपरि था।
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