खून बहेगा गली-गली
“मे आई कम इन सर....?”
शानदार ऑफिस की लम्बी-चौड़ी काली कलर की टेबल के पीछे ऊंची पुश्त वाली कुर्सी पर एक फाइल पर सिर झुकाये बैठे अजीत पाण्डे के कानों में शहद से घुली आवाज पड़ी तो उसने गर्दन उठाकर ऑफिस के शीशे के दरवाजे की तरफ देखा।
दूध और रूहआफजा के मिक्स्चर से धुली परियों को भी मात देने वाली खूबसूरती समेटे करीब बाइस साल की युवती खड़ी थी....जिसने घुटनों तक काले रंग की स्कर्ट और ऊपर सफेद टॉप पहन रखी थी, जिसके बाईं तरफ ऐन वक्ष के ऊपर लाल कढ़ाई में FOR SALE लिखा हुआ था।
स्कर्ट के नीचे नजर आ रही गोरी-चिट्टी टांगों पर एक भी बाल नहीं था। बिल्कुल ऐसे नजर आ रही थीं टांगें कि हाथ ऊपर रखो तो फिसलकर नीचे आ जाये।
युवती की खूबसूरती… उसके सैक्सी बदन को देख करीब पैंतालीस साल के अजीत पाण्डे की राल टपक पड़ी।
तुरन्त उसने सुड़ककर राल को भीतर खींचा और होठों पर मुस्कान लाते हुए बोला—
“यस....कम इन....।”
अजीत पाण्डे एक टी.वी. प्रोड्यूसर था। विभिन्न चैनलों में उसके कई सीरियल चल रहे थे।
उसकी कुर्सी के पीछे दीवार में लगे शो केस में कई अवार्ड सजे हुए थे तथा बाईं तरफ दीवार पर टी.वी. सीरियलों के सीनों के पोज लगे थे।
आगे बढ़कर युवती भीतर आई तो अजीत पाण्डे ने एक विजिटर चेयर की तरफ इशारा किया।
“बैठिये....।”
“थैंक्यू सर!” बड़ी अदा से कुर्सी को थोड़ा खिसकाकर युवती कुर्सी पर बैठी।
“यस....?” अजीत पाण्डे उसके उभारों पर नजरें डालते हुए बोला।
“जी मेरा नाम कंचन है।” युवती ने अपना परिचय दिया—“मैं दिल्ली में ही रहती हूं।”
“दिल्ली में कहां....?”
“पटेल नगर में।” कंचन बोली—“मैंने नैना फिल्म एक्टिंग कोर्स से अभिनय का डिप्लोमा लिया है सर....!”
“तो टी.वी. में काम करना चाहती हैं आप....?”
“यस....यस सर....!” कंचन थोड़ा दबे स्वर में बोली।
अजीत पाण्डे ने टेबल पर रखे सफेद रंग के माचिस के आकार के रिमोट पर लगे इकलौते बटन को दबाया और पहलू बदलते हुए बोला—
“मैं एक फिल्म लांच करने जा रहा हूं....। बड़े बजट की फिल्म....जिसके लिये मुझे हीरोइन की तलाश है।”
हीरोइन का नाम सुनते ही कंचन का कलेजा जोरों से धड़क उठा।
चेहरे पर सुर्खी उभर आई।
“अ....आप म....मुझे एक चांस दीजिये सर....!” वह अपने सीने पर हाथ रखते हुए थोड़ा थर्राये स्वर में बोली—“मैं अपने रोल में जान डाल दूंगी....।”
तभी दरवाजा खुला और एक आदमी हाथों में चांदी की तश्तरी उठाये भीतर प्रविष्ट हुआ, जिसमें दो गिलासों में कोल्डड्रिंक भरा था।
उसने दोनों को कोल्डड्रिंक सर्व किया और खाली ट्रे उठाकर बाहर निकल गया।
“कोल्डड्रिंक पीजिये।” गम्भीरता ओढ़ते हुए बोला अजीत पाण्डे।
कंचन ने गिलास उठाया और बड़ी अदा से दो घूंट भरकर वापिस टेबल पर रखते हुए बोली—
“सर....आप....आप हीरोइन का रोल मुझे दे दीजिये....। आपका बहुत बड़ा अहसान होगा मुझ पर।”
कहकर उसने अपने हैंडबैग को खोलकर उसमें से एक खाकी लिफाफा निकाला और कुर्सी से थोड़ा उठकर आगे को झुकते हुए लिफाफा उसकी तरफ बढ़ाया।
“इसमें मेरे कुछ पोज हैं सर! मुझे विश्वास है कि आपको मेरे यह फोटोग्राफ्स बहुत पसन्द आयेंगे।”
लिफाफा लेते हुए अजीत पाण्डे की नजर कंचन की टॉप के गले में से झांकते उसके गुलाबी उभारों पर पड़ी तो उसके गले में कांटे चुभने लगे।
कंचन वापिस अपनी कुर्सी पर बैठी, तब जाकर उसका ध्यान उस लिफाफे की तरफ गया।
उसने कोल्डड्रिंक का घूंट भरकर गिलास वापिस रखा और लिफाफे में से तस्वीरें निकालकर उन्हें देखने लगा।
कुछ तस्वीरों में कंचन छोटे कपड़ों में अलग-अलग पोज में खड़ी थी, और कुछ में पूरे कपड़ों में थी।
तस्वीरों में वह उत्तेजक पोजों में तो नहीं थी, मगर फिर भी वह काफी सैक्सी नजर आ रही थी।
अजीत पाण्डे ने तस्वीरें वापिस लिफाफे में डालकर लिफाफा टेबल पर रखा, गिलास उठाया और कुर्सी की पुश्त से टेक लगाते हुए कंचन को देखा, जो बड़ी आशाभरी नजरों से उसे देख रही थी।
उसने दो घूंट भरे और बोला—
“क्या नाम बताया आपने अपना?”
“कंचन....।”
“देखिये मिस कंचन....!” वह गम्भीरता से बोला—“जो फिल्म मैं बनाने जा रहा हूं....वो लीक से बहुत ही हटकर है और काफी बोल्ड भी है।”
“जब कहानी की डिमाण्ड है सर....तो फिर एतराज किस बात का....।”
कंचन ऐसे बोली, जैसे वह फिल्म पाने के लिये मरी जा रही हो।
“फिर तो तुम्हारा स्क्रीन टैस्ट लेना पड़ेगा....।”
कहकर उसने अपना गिलास खाली कर टेबल पर रखा और टेबल की ड्राअर खींचकर उसमें से दो चीथड़े निकाले और उसकी तरफ बढ़ाते हुए बोला—
“इन्हें पहनो....।”
बुरी तरह से हड़बड़ा उठी कंचन....। चेहरा सुर्ख हो गया—“य....यहां....? अ....आपके सामने....?”
अजीत पाण्डे मुस्करा पड़ा। उसने अंगूठे से दाईं तरफ इशारा किया—
“उस कमरे में जाकर बदलो....मैं इन कपड़ों में तुम्हारे कुछ पोज लूंगा।”
कंचन ने थूक सटकते हुए उससे वे चीथड़े लिये।
टू-पीस बिकनी थी वह, जो कि सुनहरे रंग की थी।
उसने सिर हिलाया और उठकर दाईं तरफ के दरवाजे की तरफ बढ़ गई।
जैसे ही वह भीतर प्रविष्ट हुई, अजीत पाण्डे ने टेबल की टॉप के नीचे से एक की-बोर्ड खींचा और उसके पास रखे रिमोट को उठाकर दरवाजे के ऐन ऊपर लगे एल.सी.डी. को चालू कर दिया।
फिर उसने की-बोर्ड के कुछ बटन दबाये तो स्क्रीन पर पीछे वाले कमरे का दृश्य उभर आया, जिसमें दो अलग-अलग कोनों पर लगे स्टैण्डों पर कैमरे लगे हुए थे।
एक स्टूडियो की तरह सजा हुआ था वह कमरा।
दरवाजे के पास कंचन खड़ी थी, जो कि भीतर से सिटकनी लगा रही थी।
सिटकनी लगाकर वह दाईं तरफ दीवार में लगे लम्बे-चौड़े दर्पण के सामने आ खड़ी हुई।
उसने बिकनी करीब रखे स्टूल पर रखी और टॉप को नीचे से पकड़कर जैसे ही ऊपर उठाया, अजीत पाण्डे का कलेजा मुंह को आ गया।
काली ब्रा में फंसे कंचन के उभार कयामत ढाते नजर आ रहे थे।
कंचन ने टॉप उतारकर नीचे रखी और फिर हाथ पीछे कर अपनी ब्रा के हुक खोल दिये।
जैसे ही उसकी ब्रा बांहों से निकली, अजीत पाण्डे का कलेजा जोर-जोर से धड़कने लगा।
कनपटियों पर ठोकरें बजने लगीं।
रगों में बह रहा खून इस कदर उबलने लगा कि वो लावा बनकर बाहर फूटने को लगने लगा।
गले की घण्टी बार-बार उछलकर गिरने लगी।
और निगाहें एकटक एल.सी.डी. पर टिकी हुई थीं, जहां कंचन अपने उभारों पर ऐसे हाथ फेर रही थी जैसे ब्रा में फंसे उभारों का तापमान हाथ फेरकर एडजस्ट कर रही हो।
तीन-चार बार हाथ फेरकर उसने अपनी स्कर्ट उतारी और फिर जैसे ही उसने पैंटी उतारी, उसकी चिकनी जांघों को देख अजीत पाण्डे का सब्र जवाब दे गया।
तुरन्त उसने पहले रिमोट से एल.सी.डी. बन्द किया और फिर टेबल पर रखे लाल रंग के एक रिमोट को उठाकर उसका रुख दरवाजे की तरफ किया और बटन दबाकर रिमोट वापिस टेबल पर रख दिया।
अब दरवाजा लॉक हो चुका था।
अपने भीतर उठ रहे तूफानों से बेकाबू हुआ अजीत पाण्डे कुर्सी से उठा और अपने पीछे दीवार पर लगे शो केस के सामने आ खड़ा हुआ।
बिना वक्त गंवाये उसने शो केस के बायें किनारे पर लगे एक छोटे से उभार को दबाया और फिर शो केस को दाईं तरफ धकेला।
पूरा-का-पूरा शो केस दाईं तरफ बिना कोई आवाज किये सरक गया....और उसके स्थान पर सामने कंचन नजर आने लगी, जो कि उस वक्त स्टूल पर से ब्रा उठाकर उसे सही कर रही थी।
उसके सामने जो लम्बा-चौड़ा दर्पण लगा हुआ था, वो सरककर दीवार में घुस गया था।
सामने अपने अक्स की जगह अजीत पाण्डे को देख कंचन बुरी तरह से हड़बड़ा उठी और वहीं बैठकर अपने कपड़ों से अपनी शानदार छातियों को ढकने की असफल कोशिश करते हुए बोली—
“य....यह क्या हरकत है सर! म....मुझे कास्ट्यूम तो पहनने दीजिये....।”
मगर अजीत पाण्डे ने जैसे उसकी बात सुनी ही नहीं। हवस का बुखार उस पर इस कदर चढ़ा हुआ था कि उसे सिवाये कंचन के नग्न शरीर के न तो कुछ दिखाई दे रहा था, न ही सुनाई दे रहा था।
वह उसके करीब आया और झुककर उसे कन्धों के पास से पकड़कर उसे उठाकर खड़ा कर दिया।
तु....म बहुत ही खूबसूरत हो....म....मैं तुम्हें हिन्दुस्तान की नम्बर वन हीरोइन बना दूंगा। बस....त....तुम मेरी तमन्ना पूरी करती रहना....।” कहते हुए उसने कंचन को जोरों से अपने साथ भींच लिया।
उसकी सांसें तेज चल रही थीं। आवाज बार-बार उसके हलक में फंस रही थी। इसी से पता चल रहा था कि इस वक्त हवस का नशा उस पर किस कदर चढ़ा हुआ है।
कंचन ने उसके सीने पर हाथ रख पूरी शक्ति से उसे पीछे धकेला और अपने कपड़ों की तरफ झपटते हुए चीखी—
“मुझे नहीं करनी फिल्म... मुझे जाने दो...”
मगर अजीत पाण्डे ने उसे कपड़ों को उठाने नहीं दिया।
बीच रास्ते में ही उसने उसे पीछे से पकड़ा और उठाकर दाईं तरफ दीवार के साथ लगकर पड़े सोफे की तरफ बढ़ा।
“बेवकूफ हो तुम, जो ऐसी बात कर रही हो....। क्या है इज्जत....है क्या इज्जत....।” कहते हुए उसे सोफे पर पटक दिया—“आज के वक्त में इज्जत है तो एक ही चीज से है....और वो चीज है पैसा....। मैं तुम्हें नोटों से तोल दूंगा....। तुम्हें इतनी बड़ी हीरोइन बना दूंगा कि तुम्हारे घर के आगे हर वक्त लोगों की भीड़ लगी रहेगी। लोग तुम्हारी बस एक झलक पाने के लिये कुछ भी कर गुजरने को तैयार हो जायेंगे।”
कहते हुए उसने कंचन को सोफे पर लम्बा गिराया और उस पर सवार हो गया।
“मुझे नहीं चाहिये पैसा....मुझे नहीं बनना हीरोइन....मुझे घर जाने दो....।”
“घर तो अब तू तभी जायेगी, जब मैं तेरे को जाने दूंगा।”
कंचन उसके नीचे दबी खुद को छुड़ाने की कोशिश करती रही, उसे खूब बुरा-भला कहती रही....। मगर वो शैतान उस पर से तभी उतरा, जब कंचन लुट चुकी थी।
उठकर अजीत पाण्डे ने अपनी पैंट पहनी और सोफे पर बैठी कंचन के सामने आ झुका और उसके कन्धों पर हाथ रखते हुए बोला—
“लड़कियां तो टी.वी. में भी छोटा-सा रोल पाने के लिये समझौता करने को तैयार हो जाती हैं, जबकि मैं तेरे को हीरोइन का रोल दे रहा हूं....। बहुत खुशकिस्मत है तू, जो प्रोड्यूसर अजीत पाण्डे तुम पर मेहरबान हुआ है। समझ ले... जिन्दगी बदल गई तेरी।”
कंचन कुछ नहीं बोली, बस आंसू बहाते हुए उठी और अपने कपड़ों की तरफ बढ़ गई।
अजीत पाण्डे उसके करीब आया और उसके उभारों को पकड़ते हुए बोला—
“सुबह ऑफिस आ जाना और एग्रीमेण्ट पर साइन कर देना। अगले महीने ही मैं फिल्म लांच कर दूंगा।”
कंचन चुपचाप नजरें झुकाये ब्रा पहनने लगी तो अजीत पाण्डे ने उसके उभार छोड़ दिये।
“इस तरह आंसू बहाओगी तो कुछ भी हासिल नहीं होगा तुम्हें....।” अजीत पाण्डे गम्भीर होते हुए बोला—“फिल्मों में काम करना है तो शर्मोहया को ठोकर मारनी होगी....। खोया ही क्या है तुमने....? तुम्हारी चीज तुम्हारे पास है....। बस मैंने अपनी चीज तुम्हारी चीज को दिखा दी। इतने से कुछ नहीं होता, और यह बात अपने दिमाग में अभी से बिठा लो कंचन कि जिन्दगी में अगर आगे बढ़ना है तो बहुत कुछ त्यागना होगा, वर्ना जहां हो वहीं रहोगी....। मेरा ख्याल है कि....!” उसने एक लम्बी सांस छोड़ी—“मेरी यह सीख तुम्हारे दिमाग में बैठ चुकी होगी।”
कंचन कुछ नहीं बोली, बस अपनी टॉप के बटन बन्द करती रही।
अजीत पाण्डे ने खुद उसकी टॉप का आखिरी बटन बन्द किया, और बोला—
“उस दरवाजे से बाहर निकल जाओ....।” उसने बाईं तरफ एक दरवाजे की तरफ इशारा किया।
कंचन ने गर्दन घुमाकर उधर देखा।
दीवार का ही रंग किया हुआ था दरवाजे पर और दरवाजा बना भी ऐसे हुआ था कि पता ही नहीं लगता था कि वहां दरवाजा है। बिल्कुल दीवार का एक हिस्सा नजर आ रहा था।
“पीछे वाली गली में खुलता है दरवाजा....।” अजीत पाण्डे बोला—“तुम पीछे की तरफ से घर जाओ और आने वाले सुनहरी दिनों की कल्पनाओं में खो जाओ।”
कंचन कुछ नहीं बोली, बस दरवाजे की तरफ बढ़ गई।
उस वक्त अगर अजीत पाण्डे उसका चेहरा देखता तो वह अवश्य ही दहल जाता।
कंचन की आंखों में खून तैर रहा था, और उसके जबड़े सख्ती से भिंचे हुए थे।
उसने दरवाजा खोला तो आगे एक और कमरा नजर आया उसे, जिसमें कबाड़ वगैरह बिखरा हुआ था। वह उस कमरे को पार करते हुए दरवाजे की तरफ बढ़ी।
दरवाजे के करीब आकर उसने सिटकनी गिराई और दरवाजा खोलकर पीछे की गली में आ गई।
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