केंचुआ बनेगा नाग
“तुम मुझे होटल में क्यों ले आए हो हरीश...?” रजनी होटल के गेट पर ठिठकते हुए बोली—“मां की तबियत खराब है...मुझे जाना है।”
“तुम तो खामखाह ही घबरा रही हो डार्लिंग...।” हरीश नामक युवक रजनी की गोरी-चिट्टी कलाई थामते हुए बोला—“मत भूलो कि हमें एक बार ऐसा मौका मिला था कि हम भावुकता में बह सकते थे। शायद तुम अपनी इच्छा से अपनी इज्जत मेरे हवाले कर देतीं, लेकिन मैंने नहीं चाहा था। मैं तुमसे सच्ची मुहब्बत करता हूं। तुम्हारी आत्मा से प्यार करता हूं मैं। तुम्हारे जिस्म से नहीं। मैं तुमसे खास बात करने के लिए यहां आया था। वो बात किसी भी पब्लिक प्लेस पर नहीं हो सकती थी। फिर भी तुम्हें मुझ पर यकीन नहीं है तो तुम जा सकती हो। जहां यकीन या भरोसा ना हो, वहां मुहब्बत कामयाब नहीं हुआ करती।”
“म...मेरा मतलब यह नहीं था हरीश...।” वह झेंपते हुए बोली—“वाकई में मेरी मां की तबियत खराब है। लेकिन...मैं तुम्हारे साथ भीतर चल रही हूं।”
वो हरीश की बगल से होकर भीतर दाखिल हो गई।
वो हरीश के होठों पर उभर आई रहस्यमयी और मक्कारी भरी मुस्कान नहीं देख सकी।
“रुको रजनी...।“
हरीश की आवाज पर वह पलटी और सवालिया निगाहों से देखने लगी।
“उधर कहां जा रही हो?”
“टेबिल पर।”
“नहीं...।” हरीश उसका हाथ थामते हुए बोला—“हम टेबिल पर नहीं बैठेंगे।”
“तो...?” वह दुविधा में पड़ गई।
“मैंने रूम बुक किया हुआ है।”
“रूम...?” वह नर्वस हो चली।
“ओह...कम ऑन डार्लिंग...।” हरीश लिफ्ट की तरफ बढ़ते हुए बोला—“मैं पहले भी बोल चुका हूं कि मुझे जो बात करनी है, वो सार्वजनिक स्थल पर नहीं की जा सकती है।”
“लेकिन...वो बात कौन-सी है?”
“थोड़ा सब्र रखो ना। अभी हम कमरे में पहुंच जाते हैं।”
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कमरे में दाखिल होने पर जब हरीश ने दरवाजे की सिटकनी चढ़ाई तो रजनी घबरा उठी।
“त...तुमने दरवाजा क्यों बन्द कर लिया...।”
हरीश ने पलटकर उसके दोनों हाथ थाम लिए और बोला—“वेटर ऑर्डर लेने आ जाते हैं...अगर वेटर ने मेरी बात सुन ली तो मैं मुसीबत में पड़ जाऊंगा। आओ, सोफे पर बैठते हैं...।”
रजनी झिझकते हुए सोफे पर बैठ गई।
हरीश फोन की तरफ बढ़ते हुए बोला—“क्या लेना है रजनी? कोल्डड्रिंक या चाय मंगाई जाए?”
“मेरी इच्छा नहीं है।”
“कैसी बात करती हो यार? मैं कोल्डड्रिंक मंगा लेता हूं।”
फोन पर आर्डर देकर हरीश रजनी के बराबर में आ बैठा और उसकी गर्दन में हाथ डालते हुए बोला—“पहले वेटर को कोल्डड्रिंक लाने दो डार्लिंग। फिर मैं अपनी बात शुरू करूंगा।”
कोई पांच मिनट बाद दरवाजे पर दस्तक हुई। हरीश ने उठकर दरवाजा खोला।
वेटर कोल्डड्रिंक मेज पर रखकर चला गया।
हरीश ने पहले दरवाजा भेड़ा, फिर मेज पर पहुंचकर कैम्पा कोला को दो गिलासों में डालने लगा—इसी बीच उसने एक गिलास में जेब से सफेद रंग की गोली निकालकर डाल दी।
चूंकि उसकी पीठ रजनी की तरफ थी, सो रजनी उसे गोली डालते हुए नहीं देख सकी।
“लो डार्लिंग...।” वो रजनी को गिलास देते हुए बोला—“पहले गला तर कर लो, फिर बात करेंगे।”
रजनी ने झिझकते हुए गिलास लिया और पीने लगी।
जैसे-जैसे रजनी ड्रिंक पीती जा रही थी, वैसे-वैसे हरीश की आंखों की चमक बढ़ती जा रही थी।
अचानक ही रजनी के हाथ से गिलास छूट गया।
उसके जिस्म ने यूं झटका खाया, जैसे किसी ने उसे करेंट लगा दिया था।
“ये...ये...।” वो दोनों हाथों से माथा थामते हुए बोली—“ये मुझे क्या हो रहा है हरीश...ओह...मेरा सिर चकरा रहा है...आंखों के सामने अन्धेरा छाता जा रहा है...ये कमरा क्यों घूम रहा है...ओफ्फ...मुझे बहुत घबराहट हो रही है...जी घबरा रहा है...मुझे स...सहारा दो।”
हरीश ने उसे अपने सीने से लगा लिया और पीठ पर हाथ फेरने लगा।
उसकी आंखों में अब हवस के कीड़े गिजगिजाने लगे थे।
फिर हुआ यूं कि रजनी बेहोश होकर उसकी बांहों में झूल गई।
हरीश के हलक से वहशियाना किस्म का ठहाका उबल पड़ा।
भड़ाक...!
तभी बाथरूम का दरवाजा खुला।
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