कौन करे कुर्बानी
सुनील प्रभाकर
“जंगल में धम्मी की लाश मिली है मुखिया जी!”
“क्या ऽऽऽ?” बूढ़े मुखिया के हाथ से हुक्के की नली छूट गई-मारे आश्चर्य के उसका मुंह खुला का खुला रह गया-वह काफी देर तक गहन तन्द्रा में डूबे रहने के पश्चात् बुदबुदाया— “नहीं, ऐसा नहीं हो सकता।”
“मैं अपनी आंखों से देखकर आ रहा हूं मुखिया जी।” लुंगीधारी खबरची अपनी उभरी हुई पसलियों का प्रदर्शन करते हुए, हांफकर बोला— “उस बेचारी की भी वही दशा है। उसकी सुन्डी ‘नाभि’ तले लहू का जोहड़ बना हुआ है। जैसे किसी राक्षस ने उसकी इज्जत के साथ किसी लोहे के सरिये से खिलवाड़ किया हो।”
“समझ में नहीं आता कि...।” मुखिया कराहा— “हमारे गांव पर ये कैसी आफत आ पड़ी है? धम्मो से पहले भी कई लड़कियों के साथ वही दुव्र्यवहार हुआ। उनकी नंगी लाशें खेतों में पड़ी मिलीं...लहू से सनी हुईं। समझ में नहीं आता कि कोई शैतान उनकी इज्जत से खेला या किसी पागल ने हथियार से उनके अंग-भंग किये?”
“सारे गांव में हड़कम्प-सा मचा हुआ है मुखिया जी।”
“वो तो मचेगा ही कालू।”
“लड़कियों की बुरी हालत है। मारे आतंक के कई तो रो रही हैं। उनके घरवाले घबराये हुए हैं और पुलिस के पास जाने की बात कर रहे हैं।”
“नहीं...!” मुखिया झटका खाकर चारपाई से उठते हुए बोला— “सोनीपुर गांव में कभी पुलिस ने पैर नहीं रखे। और रखेगी भी नहीं। गांव के सारे मामले पंचायत ही निपटायेगी। ढोलू से कहकर मुनादी करवा दो कि शाम को सारे गांव को चौपाल में इक्ट्ठा होना है।”
“जो हुक्म...मुखिया जी।”
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“मैं दूध नहीं पीऊंगा मां।” बोलने वाले की आवाज में भेड़िये जैसी गुर्राहट थी।
“ऐसा नहीं कहते मेरे लाल।” अधेड़ा, जो कि अपने समय में बला की खूबसूरत रही होगी, बेटे के बालों से भरे चेहरे पर ममता भरा हाथ फेरते हुए बोली— “यदि दूध नहीं पियेगा तो अपने दुश्मनों से बदला कैसे लेगा रे?”
“तुम मूझे स्कूल क्यों नहीं भेजतीं?”
गीली आंखों से उसने अपने जिगर के टुकड़े को ऊपर से नीचे तक निहारा और फिर रुंधे गले से बोली— “घर में तो तुझे थोड़ा-बहुत पढ़ा भी देती हूं मुन्ना! स्कूल में कुछ भी नहीं पढ़ सकेगा तू! गांव के शैतान बच्चे तेरा तमाशा बनाकर रख देंगे। कोई तुझे परेशान न करे, इसीलिए तो तुझे घर से बाहर नहीं जाने देती मैं।”
“लोग मेरा मजाक क्यों उड़ाते हैं मां।” हालांकि वो कस-मसाकर बोला, किन्तु गले से भेड़िये की-सी गुर्राहट ही निकली— “मुझे रीछ...भालू क्यों कहते हैं?”
रो ही तो पड़ी बेचारी मां— “तेरे साथ भगवान ने अन्याय किया है मेरे लाड़ले! एक औरत की कोख से जन्म लेने पर भी तेरा शरीर भा...भालू जैसा है। भालू की तरह सारे शरीर पर लम्बे-लम्बे बाल हैं। मैं...मैं कर ही क्या सकती हूं? तुझे भालू या रीछ कहने वालों की जुबान भी तो नहीं पकड़ सकती।”
“भगवान ने मुझे भालू जैसा क्यों बनाया मां?”
उसके दिल पर घूसा-सा लगा-मानस पटल पर अतीत के गहरे बिच्छू रेंगने लगे और उसकी आत्मा को डंकों से प्रताड़ित करने लगे।
मनोदशा पर काबू पाकर इतना ही बोली— “ये तेरी मां का...और तेरा दुर्भाग्य है मुन्ना...।”
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“मेरे विचार से तो ये किसी गांव वाले की ही करतूत है मुखिया जी।”
“तुम्हारा ऐसा विचार क्यों है मुरली?”
“उस वहशी दरिन्दे ने जिन पांच लड़कियों की भद्दे तरीके से जान ली, वे सभी हमारे गांव की थीं। यदि हत्यारा बाहर का होता तो वह दूसरे गांवों की लड़कियों को भी अपना निशाना बनाता।”
“मुरली ठीक कहता है...।” चौपाल पर इकट्ठे हुए गांव वालों में से चार-पांच एक साथ बोले।
“सवाल तो ये है कि वो है कौन?” बूढ़ा मुखिया हुक्का गुड़गुड़ाते हुए बोला— “और वह ऐसा क्यों कर रहा है?”
“यदि...यदि आप लोग बुरा न मानें तो...।” भीड़ के बीच से एक युवक झिझकते हुए उठा-उसकी आंखें खूब रोने के कारण सूजी हुई थीं।
“हमें तुम्हारी बहन छम्मों की मौत पर बेहद दुख है किरशन! तुम्हें जो भी कहना हो...बे-खौफ होकर कहो।”
“न-नहीं...!” किरशन घबराकर वापिस बैठ गया।
“अबे डरता क्यों है साले...?” एक युवक ने उसे जबरन खड़ा करते हुए कहा— “तुझे अपने दिल की बात पंचायत के बीच कहनी चाहिए। ऐसे ही तेरे-मेरे सामने कहने से क्या होगा? कोई तुझे फांसी पर नहीं लटकायेगा। तेरी बहन की जान ली है उस राक्षस ने। यदि उसका कोई इलाज नहीं हुआ तो...।”
“तू किसकी बात कर रहा है गधे?”
किरशन को उकसाने वाला युवक सकपकाकर बोला— “आप किरशन से ही पूछें मुखिया जी! मुझे भी यही बता रहा था कि...भगवान जाने सच्ची है, या इसका भरम ही है।”
“किरशन...!” मुखिया की आंखें किशन के लाल-भभूके चेहरे पर गड़-सी गईं— “राधे किसकी बात कर रहा है? तुमने इससे किसका नाम लिया? इधर-उधर मत देखो। जवाब दो हमारे सवाल का। डरो नहीं, कोई कुछ नहीं कहेगा! हमारी गारन्टी है।”
किरशन पहले तो झिझका-फिर उसका चेहरा पत्थर की भांति सख्त व खुरदरा हो चला-सूजी हुई आंखों में लहू छलकने लगा।
और वे खूनी आंखें घूमती हुई सफेद साड़ी में लिपटी उस अधेड़ा के चेहरे पर जाकर अटक गईं-जो अपने समय में बला की खूबसूरत रही होगी।
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“दुहाई मुखिया जी...!” वह रोते हुए चीखी— “ये...ये सच नहीं है। किरशन ने मेरे बेटे पर कतई झूठा आरोप लगाया है। ये ठीक है कि मुन्ना तन्दुरुस्त और लम्बा है, किन्तु है तो अभी बच्चा ही। कुल तेरह साल का है वो। वह इतना मासूम है कि औरत-मर्द के रिश्ते के बारे में कुछ भी नहीं जानता। फिर मैं उसे घर से बाहर ही कब निकालती हूं? पिछले चार सालों से घर में कैद करके रखा हुआ है मैंने उसे क्योंकि गांव के बच्चे उसे तंग करते थे। मजदूरी पर जाती हूं तो उसे भीतर बन्द करके, बाहर से ताला डालकर जाती हूं। भगवान ने उस अभागे को क्या कम सजा दी है, जो उस पर झूठा आरोप लगाकर सजा देने की तैयारी की जा रही है?”
“राधिका बहन ठीक कहती है।” लम्बे घूंघट वाली एक औरत उठकर बोली— “इसका मुन्ना पांच साल के बच्चे जितना मासूम और नासमझ है। उसे दीन-दुनिया की कोई खबर नहीं। पड़ोसन होने के नाते मैं मुन्ना को खूब जानती हूं। वह ऐसा गन्दा काम नहीं कर सकता।”
कुछ और लोगों ने भी मुन्ना का पक्ष लिया और किरशन को लताड़ा।
“किरशन!” मुखिया क्रोधातिरेक लाल-पीला होते हुए चीखा— “तूने राधिका बहन के बेटे पर ऐसा आरोप क्यों लगाया?” क्या तूने अपनी आंखों से देखा था?
“न-नहीं तो...!” किरशन ने थूक निगला।
“तो फिर?”
“व...वो...मैंने किताब में पढ़ा था।”
“क्या पढ़ा था तूने?”
“य-यही कि रीछ...औरत को पसन्द करता है। उठाकर अपने ठिकाने पर ले जाता है। इसकी इज्जत से खेलता है और किसी मर्द के लायक नहीं छोड़ता। मुन्ना तगड़ा है और...रीछ जैसा ही है।”
“खामोश!” मुखिया चीखा— “इन बेतुकी बातों से तूने मुन्ना पर संदेह किया? सुन...यदि तेरी बहन छम्मों की मौत न हुई होती तो...पंचायत तुझे सजा सुनाती। बैठ जा...।”
किरशन चुपचाप बैठ गया।
“मुखिया जी...!” एक बूढ़ा उठा— “वो भले ही कोई भी हो...किन्तु उसका पकड़ा जाना तो जरूरी है।”
“हम उसे पकड़ने के लिए कोई प्रबन्ध करेंगे। सोच-समझ कर उसके लिए जाल बुनेंगे। हम रात को भरोसे के कुछ आदमियों के साथ बात करेंगे। यहां नहीं, क्योंकि वह राक्षस हम लोगों के बीच बैठा हुआ हो सकता है।”
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