कत्ल की मशीन
राकेश पाठक
“कातिल ने एस०पी० सोनकर को सीना ठोककर चैलेन्ज दिया है इस बार।”
“कौन-सा कातिल...कत्ल की मशीन?”
“हां...भाई...वो ही...जो आए दिन नए-नए तरीकों से कत्ल किया करता है और कानून उसका बाल-बांका भी नहीं कर पाया है।”
“कानून उसका बाल-बांका करे भी कैसे भाई...वो कत्ल इतनी सफाई व दूरदर्शिता के साथ करता है कि पुलिस को सबूत या गवाही नहीं मिल पाती है। पुलिस को ये मालूम है कि कत्ल की मशीन कहे जाने वाले शख्स का नाम अमरकान्त है, लेकिन उस पर हाथ नहीं डाल पाती है। खैर, ये बोलो कि उसने एस०पी० सोनकर को सीना ठोककर क्या चैलेन्ज किया है?”
“यही कि वो पुलिस हेडक्वार्टर में ही दाखिल होकर सभी पुलिस अफसरों की मौजूदगी में उसका कत्ल कर देगा।”
“बा—बाप रे...ऐसा चैलेन्ज किया है इस बार अमर ने?”
“हां, भाई। हालांकि ये बात लीक नहीं की गई है, लेकिन मैं तो एस०पी० सोनकर के ऑफिस में ही तैनात हूं—इसलिए ये बात मालूम हो गई है।”
“गया काम से...बेचारा।”
“हां—और क्या इस बार बचेगा वो? अब तक उसने आम इंसानों के ही कत्ल किए—लेकिन अब पट्ठा पुलिस से ही सीधी टक्कर लेने चला है। लगता है कि ओवर कॉन्फिडेंस का शिकार हो गया है, भला कोई पुलिस स्टाफ के सामने सुपरिटेन्डेन्ट ऑफ पुलिस का कत्ल करके बच सकता है?”
“बच भी सकता है।”
“भला वो कैसे?”
“भला मैं क्या जानूं, लेकिन हो सकता है कि अमरकान्त ने ऐसी कोई वैल-प्लानिंग तैयार की हो कि वो पुलिस हेडक्वार्टर में भी एस०पी० को कत्ल करके सबूत के अभाव में कानून की पकड़ से निकल जाए। ये बात तो तुम भी जानते हो कि अगर प्रधानमन्त्री और राष्ट्रपति के कातिल के खिलाफ कोई सबूत ना हो तो अदालत उसे भी सजा नहीं दे पाएगी। फिर अपने एस०पी० साहब की तो बिसात ही क्या है?”
“बिसात तो बहुत है भाई। अगर एक मामूली कॉन्स्टेबल का भी कत्ल हो जाए तो डिपार्टमेन्ट कातिल को पाताल से भी खोज निकालता है और उसे फांसी के तख्ते पर पहुंचाकर ही दम लेता है। ये तो एस०पी० साहब का मामला है। पहली बात तो ये कि अमरकान्त एस०पी० सोनकर को कत्ल नहीं कर पाएगा। अगर वो करेगा तो अपनी बर्बादी के परवाने पर दस्तखत ही करेगा।”
“भगवान ही जाने भाई कि इस बार कत्ल की मशीन के मन में क्या फितूर है और शाम को सात बजे क्या होने वाला है?”
¶¶
पुलिस हेडक्वार्टर।
अधेड़ उम्र के एस०पी० सोनकर के चारों तरफ बीस के लगभग पुलिस ऑफिसर विराजमान थे।
जैसे माखनचोर को गोपियां घेरे रहती थीं।
सोनकर हालांकि स्वयं को सामान्य दर्शाने की भरसक चेष्टा कर रहे थे, लेकिन कोई गहरी नजर वाला उस जाले को देख सकता था—जिसे चेचकदार चेहरे पर चिन्ता व परेशानी की मकड़ी ने बुन दिया था।
सोनकर ने कनखियों से रोशनदान से झांकते वीडियो कैमरे को देखा—फिर हौले से सिर को झटका देकर सिगार सुलगाने लगे।
“सर!”
“आं...।” सोनकर के हाथ से सिगार निकल गया। फिर स्वयं को व्यवस्थित करके उन्होंने सिगार उठाकर होठों पर लगाया और सवालिया निगाहों से ए०एस०पी० को देखा।
ए०एस०पी० खान गला खंखारते हुए बोला—“मेरी मानिए तो आप बुलेट प्रूफ जैकेट पहन लीजिए।”
“यानी तुम समझते हो कि अमरकान्त हमे गोली मार देगा?”
“नो...नो सर...।” ए०एस०पी० खान सकपकाते हुए बोला—“हम लोगों के होते हुए वो इतनी जुर्रत नहीं कर पाएगा। हमने सुरक्षा व्यवस्था का पूरा बन्दोबस्त किया है। हेडक्वार्टर के चप्पे-चप्पे पर पुलिस मैन तैनात हैं। इस कमरे के बाहर तो काफी लोग हैं। इस कमरे से लेकर बाहर गेट तक दस मेटल डिटेक्टर लगे हुए हैं। अगर वो अपने साथ छोटा-सा आलपिन भी लेकर आएगा तो...पकड़ा जाएगा। फिर भी आप सावधानी के तौर पर बुलेट प्रूफ जैकेट पहन लें तो...बेहतर होगा।”
“पहनी—पहनी हुई है।”
ए०एस०पी० खान भौचक्का-सा एस०पी० सोनकर को देखता रह गया।
एस०पी० सोनकर ने बेचैनी के साथ पहलू बदलते हुए सभी मातहतों को देखा और सवाल किया—
“क्या ख्याल है तुम सबका—क्या वो आएगा?”
सबके चेहरों पर अनिर्णय व हिचकिचाहट के भाव उजागर हुए, लेकिन जवाब किसी ने नहीं दिया।
“सर...।” एक एस०आई० ने भीतर आकर सैल्यूट मारा और बोला—“वो...वो आ गया है सर!”
“वो...वो कौन?”
“अमरकान्त।”
एस०पी० सोनकर के होठों के मध्य से कब सिगार छूट गया, वो ना जाने क्यों जेब से रुमाल निकाल कर चेहरे पर फेरने लगा।
बाकी सभी ऑफिसरों ने रिवॉल्वर निकालकर गोद में रख लीं—उनके चेहरों पर परेशानी स्पष्ट झलक रही थी।
¶¶
वो कमरे में प्रविष्ट हुआ, जिसका नाम था—अमरकान्त।
उम्र पच्चीस वर्ष, चेहरा खूबसूरत। जिस्म का रंग—मानो मक्खन में चुटकी भर सिंदूर मिला दिया गया हो।
ग्रे कलर के सफारी सूट के साथ आंखों पर टिके काले लेंस के चश्मे ने उसके व्यक्तित्व को यूं निखार दिया था—जैसे मैले कपड़े को सर्फ निखार देता है।
उसके चेहरे पर परेशानी या खौफ के नाम पर एक शिकन भी नहीं थी। गुलाबी होठों पर रहस्यमयी किस्म की मुस्कान विद्यमान थी।
“मे आई कम इन...एस०पी० साहब?”
एस०पी० सोनकर ने थूक-सा सटका। मुख से आवाज ना निकल पाई—सिर्फ होंठ ही कंपकंपा कर रह गए। उसने हौले से सिर को जुम्बिश देकर उसे भीतर आने की मूक व बेबसी भरी इजाजत दे दी।
वो शेर जैसी मस्ती भरी चाल से चलते हुए आगे बढ़ा और एस०पी० सोनकर से मात्र दो कदम की दूरी पर ही ठिठक गया।
कमरे में मौजूद सभी पुलिस अफसरों की धड़कनें बेतरतीब हो चली थीं। फेफड़ों में इतनी ज्यादा हवा भर गई थी कि वो फटने को बेकरार थे। रिवॉल्वर वाली हथेलियां इतनी चिपचिपा रही थीं कि मानो रिवॉल्वरें तेजी के साथ पसीना उगल रही थीं।
“मैं आपसे माफी मांगने आया हूं एस०पी० साहब।” अमरकान्त की आवाज ने उन्हें चौंकाया—“दरअसल मैं एक सीधा-साधा इन्सान हूं। आज तक किसी चींटी को भी नहीं मारा मैंने। किसी जीते-जागते इन्सान को कत्ल कर देना तो बहुत बड़ी बात होती है। आपके पास मेरे खिलाफ कोई सबूत नहीं था। ना जाने आपने कौन से जन्म की दुश्मनी निकालते हुए अदालत में मुझे कातिल कहा। मुझे कत्ल की मशीन का खिताब दिया। मुझे वहशी दरिन्दा और आदमखोर बोले थे आप। होश में नहीं रहा मैं। आपा खो बैठा अपना। झुंझलाकर ही आपको चैलेन्ज कर दिया था...जो कि मेरी बेबसी का आक्रोश ही था। मैं अहमक हूं। आप माफ कर दीजिए मुझे।”
एस०पी० सोनकर के मुंह से एक शब्द ना फूटा। दो कदम की दूरी पर लापरवाह अन्दाज में खड़े शख्स का व्यवहार रहस्यमयी व समझ में ना आने वाला था।
उसने जेब से विल्स नेवीकट का पैकेट निकाल लिया और खोलकर एक सिगरेट होठों पर लगा ली। फिर माचिस की तलाश में वो जेबों पर हाथ मारने लगा।
“ओ...शिट...।” झुंझलाते हुए उसने होठों पर चिपकी सिगरेट को वापस पैकेट में ठूंसा तथा पैकेट जेब में रखते हुए बोला—“साली माचिस तो है ही नहीं। कोई बात नहीं। यहां मेरा सिगरेट पीना उचित भी नहीं है। यहां पर जो ऑफिसर स्मोकिंग करने वाले नहीं हैं, उन्हें ऑब्जेक्शन हो सकता है।”
किसी के समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था।
“मुझे उम्मीद है कि आपने मेरी नादानी के लिए मुझे क्षमा कर दिया होगा एस०पी० साहब।” वो सोनकर से मुखातिब होकर बोला—“अब मैं आपसे चलने की इजाजत चाहूंगा। मुझे एक जरूरी काम से जाना है।”
लेकिन एस०पी० सोनकर ने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की।
अमरकान्त ने एस०पी० सोनकर तथा दूसरे ऑफिसर्स का अभिवादन किया और फिर पलटकर चला गया।
किसी ने भी उसे ना तो रोका—ना ही टोका।
टोकने या रोकने का कोई सवाल ही नहीं बनता था। आखिर उसने किया ही क्या था?
“हम तो खामखां ही टेंशन में आ गए थे सर।” ए०एस०पी० खान राहत की कई मीटर लम्बी सांस छोड़ने पर बोला—“किसी पुलिस ऑफिसर को चैलेन्ज देकर मारना इतना आसान काम थोड़े ही है। उसने ओवर कॉन्फिडेंस का शिकार होते हुए आपको चैलेन्ज कर दिया था। बाद में अपनी गलती का अहसास हुआ तो माफी मांगकर चला गया। माफी...वो हम लोगों के कहर से बचने के लिए मांगने आया था।”
एस०पी० सोनकर ने प्रतिक्रिया स्वरूप एक सांस तक भी ना भरी तो ए०एस०पी० खान की भूरी आंखें सिकुड़ती चली गईं।
“स—सर?”
जवाब नदारद।
आशंकाओं से भरे खान ने डरते सहमते हुए कांपते हाथ को आगे बढ़ाया और एस०पी० सोनकर के कन्धे पर हल्का-सा दबाव डाला।
पेड़ से टूटे फल की तरह ही सोनकर का जिस्म आगे की तरफ झुका और 'भद्द...से' टेबल से टकराया।
सभी ऑफिसर्स चिहुंक उठे और घुटी-घुटी सी चीख के साथ उठ खड़े हुए।
चेहरे पीले व निस्तेज पड़ते चले गए।
ए०एस०पी० ने सोनकर की नब्ज टटोली तो मुख से सिसकारी छूट गई।
“ओ माई गॉड...ये तो मर गए हैं!”
¶¶
अमरकान्त को चौराहे पर अपनी कॉन्टेसा कार रोक देनी पड़ी।
पुलिस की जीपों ने उसे चारों तरफ से घेर लिया था।
“बाहर निकल आओ अमरकान्त...।” कड़क भरी आवाज गूंज उठी—“तुम्हें पुलिस ने चारों तरफ से घेर लिया है। तुम्हारे बचकर भागने का तो कोई सवाल ही नहीं बनता है। अगर तुम एक मिनट के भीतर-भीतर ही कार से बाहर ना आए तो तुम्हें कार समेत ही भून दिया जाएगा।”
अमरकान्त को मामला गंभीर व खतरनाक लगा।
विल्स की आधी पी जा चुकी सिगरेट को खिड़की से बाहर फेंक दिया उसने। धीरे-धीरे दरवाजा खोलकर और कार से बाहर निकलकर वो किसी फिरकनी की तरह ही घूमा। चारों ओर का नजारा करने लगा।
जीपों से पचास के लगभग पुलिस ऑफिसर्स व कॉन्स्टेबल निकल आए थे और घेरा बना लिया था। वो घेरा खींचकर छोड़ दी गई रबड़ की तरह ही संकुचित होता जा रहा था।
अमर ने जब अपने आपको कई रायफलों व कई रिवॉल्वरों के निशाने पर पाया तो उसके जिस्म के तमाम मसामों ने अपने मुंह खोल दिए और बर्फ-सा ठण्डा पसीना उगलना शुरू कर दिया।
उसकी कनपटियों पर हथौड़े से बजने लगे।
वो रीड की हड्डी पर बर्फ की डली-सी फिसलते हुए महसूस करने लगा।
दो कदम के फासले पर आकर ए०एस०पी० खान ठिठक गया। उसने कहर भरी आंखों से अमरकान्त पर तीर-भाले चलाने शुरू कर दिए।
“हरामजादे...।” खान के गले में छिपा कोई विषधर फुंफकार उठा—“क्या समझा है तूने अपने आपको, बीजापुर की तोप? अमिताभ बच्चन...हिटलर? तूने दर्जनभर कत्ल करके अपने आपको कानून के फंदे से बचा लिया तो अपने आपको अफलातून ही समझ बैठा था क्या? तू भले ही सारी दुनिया के लोगों को कत्ल कर देता...शायद तेरा बाल भी बांका नहीं होता। लेकिन तूने खाकी वर्दी पर हमला बोलकर अपने लिए मुसीबतों का पहाड़ खड़ा कर दिया है। तूने एस०पी० साहब को चैलेन्ज किया और हमारी ही मौजूदगी में उन्हें कत्ल कर दिया...।”
“य...ये आप क्या बोल रहे हैं साहब। मैं...मैं तो उनसे माफी मांगने गया था। आपके सामने ही तो उनसे माफी मांगकर वापस आ गया था मैं...।”
“लेकिन तेरे जाने पर वो लाश में तब्दील हो गए थे।”
“भ-भला इसमें मेरा क्या कसूर है...?” वो माथे पर उभर आए पसीने को शर्ट की आस्तीन से पौंछते हुए बोला—“आपके सामने मैं एस०पी० साहब से काफी दूर खड़ा था। उन्हें छुआ तक नहीं था मैंने। मेरे पास हथियार के नाम पर एक आलपिन तक नहीं था। फिर भला मैं एस०पी० साहब को कत्ल कैसे कर सकता था?”
“भले ही तेरे पास कोई हथियार नहीं था अमरकान्त। लेकिन तेरे पास वो आला दिमाग तो था, जिसके इस्तेमाल से तूने दर्जनों लोगों का कत्ल किया है और हर बार सबूत के अभाव में बच निकला है।”
“मैंने एस०पी० साहब का कत्ल नहीं किया है।”
“किया है...तूने ही किया है। तू वहां माफी-वाफी मांगने नहीं गया था। तू पुलिस हेडक्वार्टर में अपना चैलेन्ज पूरा करने गया था। हम लोगों की मौजूदगी में ही तूने ना जाने किस तरीके से एस०पी० सोनकर का कत्ल किया कि हमें हवा भी नहीं आ सकी। तेरे चले जाने पर ही हमें मालूम हुआ कि कत्ल हो गया है। नाक कट गई हमारी...साले नाक। प्रेस मीडिया हमारी ही छीछालेदर करने में लगा हुआ है, बड़े अफसरान और मन्त्री लोग हमें पानी पी पीकर कोस रहे हैं। जनता हमारी खुश्की ले रही है। उस बात की पब्लिसिटी कर रही है कि जब हम तेरे चैलेन्ज के बावजूद भी अपनी मौजूदगी में अपने एक अफसर को कत्ल होने से नहीं रोक पाए हैं तो फिर आम नागरिक की क्या खाक हिफाजत कर पाएंगे?”
“ठीक है...।” उसने कन्धों को ढीला छोड़ते और ठण्डी आह भरते हुए बोला—“मैं अपने आपको कानून के हवाले करता हूं। पेश कीजिए मुझे अदालत में, दिलवाइए फांसी की सजा।”
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