अर्जुन त्यागी सीरीज
कर बुरा हो भला
शिवा पण्डित
“देखा तुमने?”
“हां देखा—।”
“क्या देखा? वही है या कोई और है?”
“वही—।”
“कहीं ऐसा तो नहीं कि उसकी तरह तेरे को भी गलतफहमी हो। वह, वह न होकर उससे मिलता-जुलता कोई और हो।”
“वह, वही है—और मैं यह दावे से कह सकता हूं कि न तो तुझे पहचानने में कोई गलतफहमी हुई थी—न मेरे को हुई है। वह वही है—और सौ प्रतिशत—सौ टंच-चौबीस कैरेट वही है।”
“फिर तो समझ लो कि काम बन गया अपना।”
बिन्दु जोश भरे अंदाज में हाथों को थोड़ा ऊपर उठा अपनी जांघों पर मारते हुए बोला।
साधारण से कमरे में कुल तीन आदमी बैठे थे।
एक तो वो—जो अभी-अभी कमरे में प्रविष्ट हुआ था।
उसका नाम सचिन था। सचिन भरारा।
सचिन करीब पैंतीस साल का साधारण कद-बुत का व्यक्ति था। उसके बाल सारे-के-सारे पीछे की तरफ थे। चेहरे पर हर वक्त बेचैनी सी नजर आती थी उसके। उसे देखकर ऐसा लगता था—जैसे वह किसी बात से परेशान है। मगर ऐसा था नहीं।
उसकी सूरत ही ऐसी थी। जब वह किसी टेंशन में नहीं होता था—तब भी ऐसा ही नजर आता था। उससे पहली दफा मिलने वाला उसकी टेंशन भरी सूरत से अक्सर धोखा खा जाता था। मगर धीरे-धीरे उसे उसकी वही सूरत सामान्य नजर आने लगती थी।
सचिन उस वक्त आसमानी रंग की जीन्स के ऊपर धारियों वाली शर्ट पहने हुए था।
उसके ऐन सामने—सेन्टर टेबल के उस तरफ साधुराम बैठा था।
साधुराम सचिन से काफी बड़ा नजर आ रहा था। उसका कद लम्बा था, चेहरा साफ था; लेकिन उसकी सुर्ख आंखें उसके नाम से कतई मेल नहीं खाती थीं। उसकी आंखें बताती थीं कि वह बहुत ही खतरनाक किस्म का व्यक्ति था।
साधुराम ने भी जीन्स पहन रखी थी तथा ऊपर पीले रंग की चमड़े की जैकेट पहनी थी—जिसके दोनों पल्लों पर काले कोबरा फन उठाये बने हुए थे।
साधुराम के दाईं तरफ बिन्दु बैठा था।
बिन्दु करीब तीस साल का, शक्ल से नालायक और मक्कार नजर आने वाला व्यक्ति था।
सचिन के आने पर पहले के प्रश्न साधुराम ने किए थे—आखिरी का डायलाग बिन्दु ने मारा था।
साधुराम ने बुरा मुंह बनाते हुए बिन्दु को देखा—“तू तो ऐसे कह रहा है—जैसे पता लगते ही वो, वो ही है, हमारा काम पूरा हो गया।”
बिन्दु हौले से मुस्कुराया और सेन्टर टेबल पर रखा पैग उठाते हुए बोला—
“दुनिया के हर आदमी के लिए कहीं न कहीं, कोई न कोई काम असम्भव हो सकता है—लेकिन उसके लिए कुछ भी असम्भव नहीं, वो मिस्टर परफैक्ट है। हर काम में सफल होता है वो—ऐसे में हमारे काम में असफल कैसे होगा—जबकि हमारा काम उसके लिए कोई खास मुश्किल नहीं है।”
“बोल तो ऐसे रहा है जैसे हमसे काम जानते ही वह हां कर देगा।”
“उसका तो धंधा ही यही है, यार। न क्यों करेगा वो? उसके आगे कीमत रखो—और काम बता दो। बस समझ लो काम हो गया; क्योंकि पैसा देखते ही उसकी राल टपक पड़ती है।”
“यह तेरी गलतफहमी है बिन्दु—पता नहीं कहां से सुना है तूने कि पैसा देखते ही वह हां कर देगा! रही राल टपकने की बात—वो तो वो—पैसा देखकर सबकी राल सबकी टपक पड़ती है। और जहां तक मैंने उसके बारे में सुना है—वो यह है कि ऊपर से वह बेशक कितना भी लालची क्यों न हो—भीतर से वह हर काम को पूरे सोच-विचार करके ही करता है।”
सचिन गंभीरता से बोला—
“अरे यार!” बिन्दु ने माथे पर हाथ मारा—“अगर यहीं आपस में बात करके ही फैसले पर पहुंचे हो तो फिर हो गया काम! उसके पास जाते हैं, बात करते हैं। फिर देखते हैं क्या रिजल्ट निकलता है।”
“और अगर उसने न कर दी तो?” साधुराम गंभीरता से बोला।
“फिर वही बात। पहले बात तो कर लो उससे—देखो तो सही वह क्या कहता है। यहीं बैठे-बैठे नतीजे निकालोगे तो कुछ नहीं होगा।”
“ठीक है।” साधुराम ने गहरी सांस छोड़ी—“फिर तू ही जाकर बात कर उससे।”
“ठीक है।” बिन्दु ने कंधे उचकाये—“मैं कर लेता हूं। बात करने में क्या हर्ज है? वैसे कहां तक ऑफर करूं?”
“आधे तक की कर दे।”
“आधे की—!” सचिन उछल पड़ा—“पागल तो नहीं हो गया तू?” उसने साधुराम को घूरा—“अगर आधा उसे दे दिया तो हमें क्या मिला—टट्टू?”
“अरे बेवकूफ, सारा काम भी तो उसी ने करना है—हमें तो बैठे-बिठाये आधा मिलना है। करना ही क्या है हमें—बस रास्ता तो दिखाना है—आगे का काम उसका।”
“ल-लेकिन फिर भी आधा बहुत ज्यादा है।”
“तो फिर तू कर ले काम। आधा तेरा और बाकी के आधे भी में से तीसरा हिस्सा तेरा।”
“म-मैं कैसे कर सकता हूं यह काम?”
“क्यों नहीं कर सकता?”
“अगर मैं फंस गया तो...?”
“आधा फालतू भी तो मिल रहा है। ऐसे में रिस्क तो उठाना ही पड़ेगा।”
“अरे नहीं भाई—तू उसे ही जाकर दे दे आधे की ऑफर—मेरे को ऐसा पैसा नहीं चाहिए जिसमें फंसने के सौ प्रतिशत चांस हों।”
“साला हरामी—जब पैसे की बात आती है तो तब भी फटती है इसकी—और जब मौत देखता है—तब भी फटती है।”
साधुराम ने मुंह बिगाड़ते हुए कहा और सेन्टर टेबल से पैग उठाकर बिन्दु से बोला—
“तू जाकर बात कर उससे।”
बिन्दु ने सिर हिलाया—और फिर सचिन की तरफ देखा—“कहां देखा तूने उसे?”
“नटराज होटल से निकल रहा था तब वह। जरूर वह उसी होटल में ही रहता है।”
बिन्दु ने सिर हिलाया और पैग होठों से लगाकर खाली करने लगा।
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