कंगला : Kangla
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Description
प्रस्तुत उपन्यास का कथानक बेहद तेज रफ्तार है। इसमें आप पायेंगे कि देश में देश–विरोधी गतिविधियों को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए, रीमा भारती कैसे अपने प्रचण्ड रूप में उन पर हमले करके, उनके नापाक इरादोें को नेस्तनाबूद कर देती है और उसके हुस्न के जलवे... वो तो पाठकों को छलते ही रहेंगे।
Kangla
Reema Bharti
Ravi Pocket Books
BookMadaari
प्रस्तुत उपन्यास के सभी पात्र एवं घटनायें काल्पनिक हैं। किसी जीवित अथवा मृत व्यक्ति से इनका कतई कोई सम्बन्ध नहीं है। समानता संयोग से हो सकती है। उपन्यास का उद्देश्य मात्र मनोरंजन है। प्रस्तुत उपन्यास में दिए गए हिंसक दृश्यों, धूम्रपान, मधपान अथवा किसी अन्य मादक पदार्थों के सेवन का प्रकाशक या लेखक कत्तई समर्थन नहीं करते। इस प्रकार के दृश्य पाठकों को इन कृत्यों को प्रेरित करने के लिए नहीं बल्कि कथानक को वास्तविक रूप में दर्शाने के लिए दिए गए हैं। पाठकों से अनुरोध है की इन कृत्यों वे दुर्व्यसनों को दूर ही रखें। यह उपन्यास मात्र 18 + की आयु के लिए ही प्रकाशित किया गया है। उपन्यासब आगे पड़ने से पाठक अपनी सहमति दर्ज कर रहा है की वह 18 + है।
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कंगला
आई.एस.सी. सीक्रेट संस्था की नम्बर वन जासूस रीमा भारती अपने मिशन को पूरा करने के बाद घोड़े बेचकर सो रही थी।
अपने मिशन को पूरा करने की वजह से वह न जाने कितनी रातों से सो नहीं पाई थी इसलिए चीफ खुराना ने उसे दो दिन की छुट्टी पर छोड़ा था ताकि वह भरपूर आराम कर सके।
यही वजह थी कि रीमा अपने शानदार बैडरूम में बेखबरी की नींद सोई हुई थी।
अचानक!
टेलीफोन की घण्टी ने उसे जागने पर मजबूर कर दिया था।
‘ट्रिन....ट्रिन....ट्रिन....।’
कुछ क्षण वह आंखें बन्द किये उसी मुद्रा में लेटी रही, लेकिन फोन की घण्टी लगातार बजती ही जा रही थी इसलिए उसे रिसीवर उठाकर कानों से लगाना पड़ा।
“हैलो....।” उसने अलसाए स्वर में कहा—“रीमा स्पीकिंग।”
“हैलो रीमा! मैं समीर बोल रहा हूं।” दूसरी ओर से स्वर उभरा।
“अरे समीर! कैसे हो तुम?” नाम सुनते ही रीमा चहककर बोली।
“मैं ठीक हूं....तुम कैसी हो?” दूसरी ओर से समीर का भारी-भरकम स्वर उभरा।
“मैं भी ठीक हूं, लेकिन आज इतने दिनों बाद तुम्हें मेरी याद कैसे आ गई?”
“मैं तुमसे किसी जरूरी मसले में मुलाकात करना चाहता हूं।”
“किस मसले में?” रीमा चौंकी।
“वो मैं तुम्हें सब आने पर ही समझाऊंगा। फिलहाल फोन पर कुछ नहीं बता सकता।” दूसरी ओर से फिर समीर का स्वर उभरा।
“ठीक है, तुम कब आ रहे हो?” रीमा ने सीरियस होते हुए पूछा।
“आज शाम छः बजकर चालीस मिनट पर मेरी फ्लाइट मुम्बई एयरपोर्ट पहुंच जाएगी।” दूसरी ओर से बताया गया।
“तुम आज ही आ रहे हो—।” रीमा ने एकाएक ही चहककर पूछा।
“हां! तुम एयरपोर्ट पहुंच जाना।” समीर ने हिदायत दी।
“ठीक है, पर तुम कौन से नम्बर की फ्लाइट से आ रहे हो?” रीमा ने पूछा।
“मैं 721 फ्लाइट से मुम्बई पहुंच रहा हूं और मेरी फ्लाइट छः बजकर चालीस मिनट पर वहां पहुंच जाएगी।” समीर ने बताया।
“यह तुम मुझे पहले भी बता चुके हो, फिलहाल तुम कहां काम कर रहे थे?”
“मैं तो तीन सालों से जापान में ही हूं, और अब वहां से सीधा तुम्हारे पास आ रहा हूं।” दूसरी ओर से स्वर उभरा था।
“ठीक है आ जाओ, मैं तुम्हारा बेताबी से इन्तजार कर रही हूं।”
“लेकिन ठीक टाइम पर एयरपोर्ट पहुंच जाना।” समीर ने दूसरी ओर से कहा।
“ओ.के.।”
उसके बाद सम्बन्ध विच्छेद हो गया।
रीमा ने रिसीवर फोन पर रखकर एक गहरी सांस ली, और सोच में डूब गई।
समीर उससे किसी जरूरी मसले के तहत जापान से मुम्बई मिलने आ रहा था। आखिर ऐसी कौन-सी वजह थी जो उसे यहां आना पड़ रहा था। वह उसे वह वजह फोन पर भी नहीं बता पाया था।
समीर सीक्रेट एजेन्सी का एक इन्टेलीजेंट एजेंट था। इन दिनों उसकी ड्यूटी जापान में थी।
रीमा को इस बात ने हैरानी में डाल दिया था कि जापान स्थित वह सीक्रेट एजेंट इतना अर्जेन्टली उससे क्यों मिलने आ रहा है।
समीर ने उसे फोन पर कुछ नहीं बताया था, बस इतना ही कहा था कि वह सारी बातें मिलने पर ही बताएगा, आखिर ऐसी क्या वजह थी?
रीमा ने उसकी आवाज से महसूस किया था कि वह काफी खौफज़दा था, उसकी आवाज में रीमा ने हल्की-सी लर्जिश महसूस की थी।
इसलिए रीमा को इस बात का तो पूरा यकीन हो चुका था कि समीर किसी बड़े खतरे से वाकिफ है। जापान से आने वाला सीक्रेट एजेंट समीर एक बहादुर व दिलेर इन्सान था। रीमा यह जानती थी और वह कई बार आंखें बन्द करके खतरों में कूद चुका था।
सही मायनों में वह एक खतरों का खिलाड़ी था, साथ ही हैण्डसम भी। लड़कियां उसकी तरफ काफी जल्दी आकर्षित हो जाती थीं। खुद रीमा को भी वह काफी आकर्षक लगता था।
अक्सर समीर के आ जाने पर रीमा की शामें काफी रंगीन गुजरती थीं। इस झंझटों भरी जिन्दगी से निकलकर वह रीमा को शहर के कुछ ऐसे हिस्सों में ले जाता था, जहां तन्हाई और खामोशी के अलावा कोई नहीं होता था, सिर्फ वह दोनों होते थे।
जहां की फिजां में भीनी-भीनी सुगन्ध महसूस होती थी और गुनगुनाकर नगमें छेड़ दिया करती थी। इसलिए रीमा को उसका साथ बेहद पसन्द था।
वह उसके आने पर बेहद खुश थी, और शाम होने की प्रतीक्षा कर रही थी।
अचानक!
उसकी दृष्टि वॉल क्लॉक पर पड़ी।
दिन के साढ़े तीन बजे थे और उसे तैयार होकर छः बजे तक एयरपोर्ट पहुंचना था।
अगले ही क्षण!
वह अपने बिस्तर से उठकर खड़ी हो गई और अपनी ड्रेस निकालने के लिये अलमारी की ओर बढ़ी। उसके पास पूरे ढाई घण्टे थे, और इसी समय में उसे तैयार होकर एक घण्टे का सफर तय करने के बाद एयरपोर्ट भी पहुंचना था—इसलिए वह तुरन्त उठ गई।
अलमारी से कपड़े निकालने के बाद वह सीधी बाथरूम में घुसी, और कुछ ही देर में नहाकर और अपनी ड्रेस चेन्ज करके बाहर निकल आई।
उसने आदमकद आइने के सामने खड़े होकर अपने आपको निहारा, फिर हल्का-सा मेकअप किया और बालों में कंघा करती हुई बालकनी में आ गई।
वहां भी उसके मस्तिष्क में समीर की बातें गूंजती रहीं, आखिर वह कौन-सी वजह है जो वह इतना अर्जेन्टली उससे मिलना चाहता है?
लेकिन!
अगले ही क्षण हवा के एक तेज झोंके ने उसकी विचार मुद्रा को भंग कर दिया था।
रीमा ने अपनी रिस्टवॉच पर दृष्टि डाली तो पांच बज चुके थे।
वह तीव्रता से बालकनी से निकलकर दरवाजे की ओर बढ़ी, उससे जल्द-से-जल्द एयरपोर्ट पहुंचना था। वह समीर से मिलने को काफी बेताब थी।
अगले ही क्षण!
उसकी चमचमाती कार तेज स्पीड के साथ एयरपोर्ट की ओर दौड़ रही थी।
¶¶
समीर की फ्लाइट आने में अभी काफी टाइम था। इसलिए वह एयरपोर्ट में स्थित रेस्टोरेंट में जाकर बैठ गई।
उसने वेटर को बुलाकर कॉफी का ऑर्डर दिया और कॉफी आने की प्रतीक्षा करने लगी। उस वक्त उसे कॉफी की काफी जरूरत महसूस हो रही थी।
अचानक!
“अमरीकन फ्लाइट थ्री वन थ्री गेट जी टू पर पहुंचने वाली है, आप लोगों से रिक्वेस्ट है....।”
एक नर्म व दिलकश आवाज रेस्टोरेंट के इंटरकॉम पर एलान कर रही थी।
अगले ही क्षण!
ब्यूटी क्वीन ने अपनी रिस्टवॉच पर दृष्टि डाली। ये फ्लाइट वो नहीं थी जिसके आने का रीमा को बेताबी से इन्तजार था। लेकिन उस फ्लाइट के आने का वक्त भी करीब आ चुका था।
इतना करीब आ चुका था कि अब वह और अधिक प्रतीक्षा नहीं कर सकती थी। वह बस कॉफी के आने का इन्तजार कर रही थी।
उसी क्षण!
वेटर कॉफी लेकर वहां आ गया।
रीमा ने कॉफी के बड़े-बड़े घूंट भरे, और कप खाली करके रख दिया।
उसके बाद!
उसने सिगरेट को ऐश-ट्रे में डाला, और वेटर को इशारा करके अपने पास बुलाया।
“यस मैडम!” वेटर ने नजदीक आकर पूछा।
“प्लीज! जल्दी बिल लेकर आओ।” रीमा ने नम्रतापूर्वक कहा।
कुछ ही क्षणों में।
वेटर हल्की-सी मुस्कुराहट के साथ बिल लेकर उसके पास पहुंचा। उसके हाथ में सुनहरी ट्रे थी। वह बड़ी शालीनता से बोला—
“मैडम....बिल।”
“थैंक्स।” रीमा ने मुस्कुराकर बिल उठा लिया और उस पर उचटती नजर डाली।
“उम्मीद है कि आपको यहां की कॉफी पसन्द आई होगी।” वेटर ने पूछा।
“कॉफी बेहतर थी, इसके अलावा यहां की सर्विस भी काफी अच्छी है।” रीमा मुस्कुराई।
“थैंक्स मैडम!”
उसके बाद रीमा ने मुस्कुराते हुए अपने पर्स से कुछ रुपये निकाले और तश्तरी में डाल दिए, जिसमें टिप भी शामिल थी।
रीमा समीर को लेने के लिये मुम्बई के शान्ताक्रूज एयरपोर्ट पर पहुंच चुकी थी। फ्लाइट आने में देर थी, इसलिए उसे रेस्टोरेंट में बैठना पड़ा था।
जिस समय!
वह रेस्टोरेंट से बाहर निकल रही थी तो अचानक उसकी नजर टेलीविजन सैट पर पड़ी, जिस पर लिखा था—
“फ्लाइट न. 721 जो जापान से आ रही है, छः बजकर चालीस मिनट पर पहुंचेगी।”
रीमा को इस बात की पूरी जानकारी थी कि समीर डी.सी. दस के जम्बोजैट से आ रहा है। रीमा इस जहाज को लैण्ड करते देखना चाहती थी, इसलिए उसके कदम तीव्रता के साथ बालकनी की ओर बढ़ने लगे।
बालकनी काफी बड़ी थी और वहां से लैण्ड करते हुए विमानों को बड़ी आसानी से देखा जा सकता था।
रीमा ने रिस्टवॉच पर दृष्टि डाली।
उस समय साढ़े छः बजे थे और अन्धेरा भी हल्का-हल्का फैलने लगा था, लेकिन इसके बावजूद आसमान बिल्कुल साफ नजर आ रहा था, जहाज जमीन पर उतरता हुआ साफ दिखाई दे सकता था।
रीमा ने बालकनी में पहुंचकर अपने चेहरे से हवा में उड़ती आवारा लट को हटाया और फिर अपने गले में पड़ी हुई दूरबीन आंखों से लगा ली।
एयरपोर्ट की इमारत और कन्ट्रोल टावर के पास काफी रोशनी दिखाई दे रही थी। इसके अलावा रनवे के दोनों तरफ भी काफी रोशनी थी।
जिसके कारण वह पट्टी साफ दिखाई दे रही थी, जिस पर जहाज को आकर लैण्ड करना था। रीमा बेताबी से जहाज के आने का इन्तजार कर रही थी।
भारत के प्रत्येक एयरपोर्ट पर रीमा का आना-जाना लगा ही रहता था, क्योंकि वह हमेशा ही सफर की पोजीशन में रहती थी। इसलिए हर समय उसे एयरपोर्ट ही आना पड़ता था।
कुछ विषम हालातों में कस्टम वाले खासतौर पर जरूरत पड़ जाने पर उसकी सहायता भी करते थे। कस्टम वालों की तरफ से ही उसे एक आज्ञापत्र भी प्राप्त हुआ था, जिसे दिखाकर वह एयरपोर्ट की किसी भी इमारत में दाखिल हो सकती थी। उसके ऊपर कोई भी किसी तरह की रोक-टोक नहीं लगा सकता था।
दूरबीन आंखों से लगाते ही उसे एक जहाज नजर आया, जिसके पेट पर लगी बत्तियां जुगनुओं की तरह चमक रही थीं। उस जहाज के फैले हुए परों की लम्बाई चालीस फुट होती है और यह जहाज दो मंजिला था।
उस समय!
हवाई जहाज जमीन से एक हजार फुट की ऊंचाई पर नजर आ रहा था।
उसी समय रीमा ने अपनी आंखों से दूरबीन हटा ली थी, क्योंकि हवाई जहाज बिना दूरबीन के भी अब उसे स्पष्ट नजर आ रहा था।
अचानक!
रीमा को महसूस हुआ कि हवाई जहाज कुछ क्षण के लिए फिजा में डगमगाया हो।
एकाएक ही उसके दिल की धड़कनें तेज होती चली गई थीं। मगर अगले ही क्षण वह फिर सीधा हो गया तो रीमा ने एक इत्मीनान की सांस ली।
हमेशा से रीमा भारती हर चीज का दूसरा पहलू देखने की आदी हो चुकी थी। इसलिए हवाई जहाज की हल्की-सी डगमगाहट ने उसे काफी परेशान कर दिया था।
पता नहीं क्यों उसका मस्तिष्क बार-बार यही कह रहा था कि हवाई जहाज में जरूर कोई-न-कोई गड़बड़ है, इसलिए उसे सावधान हो जाना चाहिए।
कुछ क्षण बाद!
विमान में फिर उसी तरह की हरकत उत्पन्न हुई।
इस बार जहाज इस प्रकार नीचे की ओर आ रहा था कि जैसे उसने गोता लगाया हो। उसका सीधा रुख सामने टॉवर हाऊस की तरफ था।
अब रीमा को इस बात का पूरा यकीन हो चुका था कि जहाज को नहीं, जरूर पायलेट को कुछ हो गया है या फिर यह जहाज कन्ट्रोल से बाहर है।
एक क्षण के लिए रीमा को महसूस हुआ था कि वह विमान शीशे से बने कन्ट्रोल टॉवर से टकराकर उसे टुकड़े-टुकड़े कर देगा।
क्योंकि!
उस जहाज की आवाज काफी बढ़ गई थी और सुनने में भयानक लग रही थी।
रीमा का दिल अजीब अन्दाज में धड़क रहा था। उस वक्त उसकी हथेलियां पसीने से तर हो चुकी थीं। दूरबीन हाथ से छूटकर गले में झूलने लगी थी।
वह अपनी आंखें फाड़े उस जहाज को देख रही थी जो बादलों की तरह गरजता हुआ कन्ट्रोल टावर पर फटने के लिए एकदम तैयार था।
उसी क्षण!
कन्ट्रोल टावर में बैठे हुए लोग बदहवासी की हालत में इधर-उधर भागते हुए नजर आ रहे थे। चारों तरफ अफरा-तफरी का माहौल था।
अचानक!
एक अजीब-सी गड़गड़ाहट हुई।
उसी के साथ विमान फिर से ऊपर की ओर उठने लगा था। इस वजह से कन्ट्रोल टावर उसकी लपेट में आने से बच गया था। यह देखकर रीमा ने फिर से इत्मीनान की सांस ली और माथे से पसीने की बूंदों को साफ करने लगी।
लेकिन!
अभी उसे इत्मीनान की सांस लिए कुछ क्षण भी नहीं गुजरे थे कि एक जबरदस्त धमाका हुआ। रीमा ने बौखलाकर चारों तरफ अपनी पैनी दृष्टि दौड़ाई।
पश्चिमी साइड में जहां गोदाम बने हुए थे, वह जहाज उनसे बुरी तरह टकरा गया था।
अचानक!
उसी क्षण एक और जबरदस्त धमाका हुआ।
वह धमाका इतना भयानक था कि उससे धरती और आकाश दोनों ही कांप उठे थे।
उसी समय रीमा को प्रतीत हुआ कि उसका पूरा शरीर बेजान-सा होता चला जा रहा है, और उसके पैरों के नीचे से धरती खिसक चुकी है।
यह दूसरा धमाका यकीनन पेट्रोल की टंकी फटने के कारण ही हुआ था।
गोदामों की साइड से खतरनाक शोले उठते हुए नजर आ रहे थे, जो सीधे आसमान को छूने की कोशिश कर रहे थे। चारों ओर काला धुआं था।
उसके बाद!
फिर देखते-ही-देखते वहां सायरनों की आवाज गूंजने लगी और पुलिस की गाड़ियां उसी दिशा में तीव्रता के साथ बढ़ती हुई दिखाई दे रही थीं।
रीमा अपने लड़खड़ाते हुए कदमों के साथ सीढ़ियों की तरफ लपकी। उसके अलावा वहां काफी औरतें और आदमी भी मौजूद थे। इस भयंकर धमाके की वजह से सभी अपना सन्तुलन खो बैठे थे।
सभी लोगों में काफी अफरा-तफरी मची हुई थी। वह वहां से जल्द-से-जल्द निकल जाना चाहते थे। रीमा भीड़ के कारण वहां से निकल नहीं पा रही थी, कोई भी उसे आगे बढ़ने के लिये जगह नहीं दे रहा था।
रीमा तुरन्त बाईं साइड मुड़ गई। वहां से एक जीना लाउन्ज की तरफ जाता था। लेकिन वहां से किसी आम इन्सान का आना-जाना नहीं था।
अचानक!
जीने में शुरुआती हिस्से में खड़ा हुआ पुलिसमैन रीमा को देखकर बोला—
“मैडम! आप इस तरफ से नहीं जा सकतीं, आप यहां से वापस जाइये।”
“मेरे पास यहां से जाने की परमीशन है।” रीमा ने गम्भीर स्वर में कहा।
“कैसी परमीशन?”
अगले ही क्षण!
रीमा ने अपना आई कार्ड अपनी जेब से निकालकर उसे दिखाया तो वह बोला—
“ठीक है मैडम! अब आप जा सकती हैं।”
रीमा तीव्रता से आगे बढ़ी।
फिर वह एक गाड़ी की सहायता से जहाज तक पहुंची। वहां पहुंचकर उसने देखा कि वहां कयामत का नजारा था। चारों तरफ हाहाकार मचा हुआ था।
आग बुझाने वाले लोगों ने शोलों को काफी हद तक शान्त कर दिया था। अब वहां कहीं-कहीं से धुआं उठता हुआ दिखाई दे रहा था। उस समय वातावरण में एक अजीब-सी दुर्गन्ध फैली हुई थी।
सहायता पहुंचाने वाले लोग हवाई जहाज के अन्दर थे, जहाज के अन्दर से घायल यात्रियों को स्ट्रेचर पर डालकर जल्दी-जल्दी बाहर निकाला जा रहा था और उन्हें एम्बुलेन्स में हॉस्पिटल पहुंचाया जा रहा था।
उन लोगों में कुछ ऐसे भी लोग थे जो वहीं घटना स्थल पर ही दम तोड़ चुके थे और कुछ लोग अपनी आखरी सांसें ले रहे थे।
जो लोग अपनी जिन्दगी का सफर वहीं खत्म कर चुके थे, उन पर आंसू बहाने या दिल थाम लेने के अलावा कुछ नहीं किया जा सकता था। चारों तरफ एक दर्दनाक मंजर था।
उन्हीं लोगों में समीर भी था, जो अपनी जिन्दगी का सफर वहीं खत्म कर चुका था।
समीर को देखते ही रीमा की आंखों से अनायास ही आंसू बह रहे थे। एक इतना खूबसूरत हाड़-मांस का पुतला इस प्रकार बेजान नजर आएगा, उसने कभी ख्वाब में भी नहीं सोचा था।
उसकी आंखों के सामने ही समीर का मृत शरीर बेजान पड़ा हुआ था। उसे देखते ही रीमा के शरीर में झुरझुरी-सी उत्पन्न होने लगी थी। रीमा ने अगले ही क्षण अपनी दोनों आंखें बन्द कर ली थीं।
आंखें बन्द करते ही उसकी आंखों से बहते आंसू ढलककर गालों पर बहने लगे थे। समीर की मौत का उसे बेहद अफसोस था।
रीमा से समीर की हालत देखी नहीं जा रही थी, इसलिए उसकी आंखों ने खुलने से अब साफ इन्कार कर दिया था।
पता नहीं क्यों रीमा के मस्तिष्क में रह-रहकर एक ही ख्याल उत्पन्न हो रहा था कि जहाज पायलेट की किसी कमजोरी की वजह से तबाह नहीं हुआ है, बल्कि इसे किसी साजिश के तहत तबाह किया गया है।
शायद!
यह उसका कोई वहम था कि समीर को उस तक पहुंचने से रोकने के लिए ही इस जहाज को तबाह किया गया था। रह-रहकर बार-बार रीमा के जेहन में यही बात उभरकर आ रही थी।
¶¶
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Additional information
Book Title | कंगला : Kangla |
---|---|
Isbn No | |
No of Pages | 320 |
Country Of Orign | India |
Year of Publication | |
Language | |
Genres | |
Author | |
Age | |
Publisher Name | Ravi Pocket Books |
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