कलयुग की काली
शहंशाह
मूसलाधार बरसात, बिजली की चकाचौंध, बादलों की गड़गड़ाहट, रात का सर्द ठिठुरा हुआ अंधकार। सड़कें सुनसान, गलियां वीरान। ना कुत्तों की आवाजें—ना झींगुरों की सीटियां। ना कहीं चांद, ना कहीं सितारे थे।
खप...खप...।
फावड़े की जमीन से टकराने की गूंज—खप... खप।
बिजली की चमक में एक इंसानी साया दिखाई देता, फिर चमक खत्म होते ही साये को अंधेरा निगल जाता। यह इकहरे बदन का लम्बूतरा सा इंसान था। बाल खिचड़ी और कंधों को छूते हुए। बाएं गाल पर एक कट। ताबड़तोड़ फावड़ा चला रहा था—जमीन में कीचड़ फेंकता जा रहा था और यह कीचड़ उसके लिबास पर तो सन ही गया था—हाथों पर भी था—चेहरे पर भी उसके छींटे थे।
मूसलाधार बरसात की उसे जैसे कोई परवाह नहीं थी। बड़ा खुंदकी और धुनकी इंसान था वरना जनवरी के महीने में ऐसी ठिठुरती बरसाती रात में शायद कोई पागल ही घर से बाहर कदम रखता।
मिट्टी काफी हद तक हट चुकी थी, गीली हो जाने के कारण उसे और भी आसानी हो गई थी—वहां एक गड्ढा बनता जा रहा था। कभी-कभार वह रुकता, टॉर्च जलाकर गड्ढा देखता, फिर खोदने लगता। अचानक गड्ढे में कोई चीज चमकी और वह रुक गया। उसने फावड़ा एक तरफ फेंका। टॉर्च जलाकर देखा, पॉलिथीन का सिरा चमक रहा था। अब वह फावड़े की बजाय हाथों से मिट्टी हटाने के लिए गड्ढे में उतर गया। पॉलिथीन का सिरा अब अपना आकार बढ़ाता जा रहा था, फिर एक चीज साफ नजर आने लगी। उसी समय बिजली चमकी और पॉलिथीन के बैग में लिपटी एक लाश दिखाई दी। पॉलीथीन के ट्रांसपेरेंट पेपर की वजह से आर-पार साफ चमक रहा था। वह एक खूबसूरत युवती की नंगी लाश थी। उसने पांवों की तरफ से पकड़कर लाश को घसीटा और कुछ ही देर में उसे खींचकर गड्ढे से बाहर निकाल लिया।
फिर उसने पॉलिथीन का बैग हटा दिया। टॉर्च की रोशनी लाश के चेहरे पर डाली, फिर रोशनी का घेरा लाश के उरोजों पर आकर ठहर गया। उसके मुंह से एक सिसकारी सी निकल गई। उसने आहिस्ता से गुंबदों के ठोस उठान पर हाथ फेरा और वह उठान ही ऐसा था कि उसकी लार टपक पड़ी।
“बेटा बब्बन।” वह बड़बड़ाया—“आज तो तेरी लॉटरी लग गई। क्या जोरदार माल है। साली के कट्स देखो। भरी जवानी में क्यों मर गई रे तू...हाहा...।” वह धीरे से हंसा—“मेरे लिए मरी है, मरती नहीं तो मैं क्यों यहां आता... छातियां देखो क्या टन-टन बोल रही हैं।”
बारिश पड़ने के कारण छातियां भीगने लगी थीं, दूधिया जिस्म पर मिट्टी भी पुतने लगी थी। उसके हाथ की लकीरों के सांचे बन गए थे। उसने उरोजों के अग्र बिंदुओं को चुटकी में भरा, फिर सिसकारी सी ली और बारी-बारी दोनों निपल्स को मसलकर छोड़ दिया। अब उसने टॉर्च की रोशनी में नीचे का मुआयना किया, पतली कमर सांचे में ढली हुई—वहां से कट्स में फैलाव आ गया था। वह हाथ फेरता रहा, फिर रोशनी एक जगह ठहर गई। यह युवती की सुडौल जंघाओं के बीच का सेंट्रल प्वाइंट था, यानी एक औरत की सबसे संवेदनशील जगह थी।
बब्बन उस प्वाइंट को सहलाता रहा—ठीक उस अंदाज में जैसे वह अपनी किसी माशूका के जिस्म में गर्मी भर देना चाहता हो—एकाएक बारिश फिर तेज हो गई। इस बार कुछ ओले भी टपक पड़े।
“ऐसी की तैसी इस बरसात की।” बब्बर ने टॉर्च बुझा दी।
उसके बाद उसने टॉर्च को कमर की बेल्ट में लटकाया और लाश की टांगें पकड़कर खींचने लगा। वह किसी बेहतर जगह की तलाश में आगे बढ़ रहा था, जहां बारिश और इन बेमौसम के ओलों से बचा जा सके।
यहां आसपास घना जंगल था—आसपास झाड़-झंकाड फैले हुए थे। लाश घसीटने से युवती का पूरा जिस्म कीचड़ में लिथुड़ गया था—कई बार कांटेदार झाड़ियों ने भी इस बढ़ती वहशत के सफर को रोका लेकिन बब्बन झाड़ियों को कुचलता बेखौफ आगे बढ़ता रहा। जिस ढंग से वह लाश को खींच रहा था उससे उसकी ताकत का भी अनुमान लगाया जा सकता था—फिर उसे एक घना सायेदार वृक्ष दिखाई दिया। यह बरगद का पेड़ था जिसकी शाखें भी काफी दूर तक फैली हुई थीं और इस पेड़ के नीचे एक चबूतरा सा भी बना हुआ था।
बब्बन लाश घसीटता बरगद की छांव में आ गया। यहां आकर उसे थोड़ा सुकून मिला। बूंदें तो टपक रही थीं लेकिन वैसी बारिश नहीं थी—ना ही ओले पड़ रहे थे। उसने टॉर्च की रोशनी डालकर इधर-उधर देखा। पेड़ के मोटे तने पर गेरुए रंग की धारियां सी खिंची नजर आ रही थीं... वहां कुछ कलावे भी बंधे थे—जगह-जगह रोली भी लगी थी—जिससे सहज ही पता लगता था कि वहां पूजा-पाठ होता रहा है।
“लोगों की अक्ल पर आज तक पत्थर ही पड़े हैं—पेड़ों की पूजा करते हैं—लेकिन चलो, यह जगह अपने काम तो आई।” वह बड़बड़ाया।
उसने लाश को चबूतरे पर लिटाया। लाश कीचड़ में सन गई थी। उसने आसपास का फिर निरीक्षण किया—एक जगह पानी का नन्हा-सा तालाब बना दिखाई दिया। वह उठा और वहां से चुल्लू भर पानी लाकर लाश पर डाला—उसका कीचड़ साफ करने लगा—दो-तीन बार ऐसा किया परंतु इतने पानी से भला कीचड़ कहां साफ होता—फिर भी उसने अपने मतलब के अंग साफ कर लिए।
अब वह खड़ा हो गया। उसने बारी- बारी अपने सभी कपड़े उतारे। सारे कपड़े एक तरफ टांग कर वह आदमजात नंगा हो गया। उसके बाद वह लाश पर झुक गया। उसने युवती के उठान से कुचमर्दन शुरू किया।
“क्या कयामत रही होगी..... साली के होंठ भी कितने जबरदस्त हैं—एकदम रसभरे—अभी भी उन में ताजगी बाकी है—और यह उठी हुई नाक—मेरी जान—पता नहीं कितने नौजवान तो देख कर ही गश खा जाते होंगे।” वह बोला।
फिर उसने असली जगह तलाश करके वहां अपने रंगरूट को दाखिल करके हमला बोल दिया। उसने लड़की की टांगें उठाकर कंधे पर रख ली थीं और फिर उसके सुडौल भरपूर उठे हुए नितंबों के नीचे एक पत्थर रखकर उसे थोड़ा ऊपर उठा दिया था। अब वह आरामदायक पोजीशन में था।
रेप..... रेप..... रेप.....।
आसमान भी उस दृश्य को देखकर जार-जार आंसू बहा रहा था। बब्बन उस पर भूखे भेड़िए की तरह टूट पड़ा था—वह कुत्ते की तरह हाँफ रहा था और लंबा—गहरे से गहरा गोता मार रहा था। आम हरकत में अगर वह किसी जिंदा लड़की के साथ यह खेल खेलता तो लड़की की चींखें गूंजतीं और खून बहता.... फिर उसका बचना मुश्किल न था।
उसकी रफ्तार बढ़ती जा रही थी। उसके मुंह से सांसों के साथ सीटियां सी निकल रही थीं, आखिर वह क्लाइमेक्स पर पहुंचकर निढाल हो गया।
“तर हो गए।” उठता हुआ बोला।
उसके बाद वह अपनी जैकेट की जेब से सिगरेट का पैकेट निकालकर सिगरेट फूंकने लगा। थोड़ी ही देर में वह दोबारा तैयार हो गया। इस बार उसने लाश को औंधा कर दिया और उसे घुटनों से मोड़ कर उकडू कर दिया। उसके बाद उसने उन्हीं में एक और नया रास्ता तलाश किया और पुनः जुट गया।
बब्बन ने चार बार अपनी भटकी आत्मा को शांत किया उसके बाद उसने कपड़े पहन लिए। बारिश अब थोड़ी कम हो गई थी। वाह वहां से हट गया और अंधेरे में चलता हुआ एक पगडंडी तक पहुंच गया। कुछ ही दूरी पर एक मोटरसाइकिल खड़ी थी। मोटरसाइकिल की सीट के नीचे एक तलवार बंधी हुई थी। उसने यह खींच ली। उसकी धार को चेक किया और वापिस उसी दिशा में पलट पड़ा जहां लाश को छोड़कर आया था।
“अब साली के टुकड़े-टुकड़े करके कुछ मतलब के पीस ले चलूंगा—बाकी यहीं बरगद देवता के लिए छोड़ दूंगा।” वह बड़बड़ाया।
जैसे ही उसने तलवार उठाकर लड़की का सिर काटना चाहा उसे एक फुंकार सुनायी दी। वह बुरी तरह उछल पड़ा। एक सांप फन काढ़े लाश के सीने पर कुंडली मारे बैठा था। और यह सांप भी कम अजब नहीं था—उसके आसपास हल्की रोशनी थी। सांप का रुख उसी की तरफ था और फुंकार भी उसने उसी को देखकर मारी थी।
“अबे तू कहां से आ गया कम्बखत—चल हट वरना तेरी भी हत्या हो जाएगी।” बब्बन ने दो कदम पीछे हटाते हुए कहा।
सांप की रंगत भी सुनहरी सी दिखती थी। ऐसा सांप बब्बन ने तो कभी देखा नहीं था।
सांप ने फुंकार मारी और अपनी जगह छोड़ दी। वह तेजी के साथ बब्बन की तरफ झपटा। अब सांप ऐसी चीज है कि बड़े से बड़े सूरमा के भी ऐसी स्थिति में छक्के छूट जाते हैं, और उसे एक ही बात सूझती है—भाग। भागते-भागते उसके जूते कीचड़ में धंस गए—उसने जूते उतार दिये और नंगे पैर भाग लिया। भागते-भागते उसने तलवार सांप पर फेंक मारी—लेकिन उसने यह देखा ही नहीं की तलवार सांप को लगी भी है या नहीं। वह तो भागे जा रहा था और अपनी मोटरसाइकिल के पास पहुंच कर भी दम नहीं लिया। मोटरसाइकिल स्टार्ट की और ये जा वो हो जा। उसने सुन रखा था कि सांप आंखों में इंसान की तस्वीर उतार लेता है और आसानी से पीछा नहीं छोड़ता। गनीमत थी कि उसने अपनी जान बचा ली थी।
बब्बन तो चला गया..... किंतु सांप वापिस युवती की लाश के पास पहुंचा गया। युवती के सीने पर अब भी प्रकाश फूट रहा था और यह प्रकाश एक मणि से निकल रहा था, जो उसके सीने पर रखी हुई थी। सांप उसी मणी के पास पहुंच गया। उसने मणी को अपने दांतों में दबाया और युवती के जिस्म पर इधर-उधर चकराने लगा—वह इस मणी को उसके जिस्म के चोटीले हिस्सों पर जगह-जगह रख रहा था।
अंत में उसने इस मणि को युवती के मुंह के अंदर फंसा दिया। थोड़ी देर तक उसे देखता रहा। बारिश बिल्कुल रुक गई थी और भोर का उजाला फूट रहा था।—सांप मणि उसके मुंह में छोड़कर भोर का उजाला फैलते ही बरगद के तने में समा गया और गायब हो गया।
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