ज्वालामुखी : Jwalamukhi
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Description
Jwalamukhi
Deva Thakur
Ravi Pocket Books
BookMadaari
प्रस्तुत उपन्यास के सभी पात्र एवं घटनायें काल्पनिक हैं। किसी जीवित अथवा मृत व्यक्ति से इनका कतई कोई सम्बन्ध नहीं है। समानता संयोग से हो सकती है। उपन्यास का उद्देश्य मात्र मनोरंजन है। प्रस्तुत उपन्यास में दिए गए हिंसक दृश्यों, धूम्रपान, मधपान अथवा किसी अन्य मादक पदार्थों के सेवन का प्रकाशक या लेखक कत्तई समर्थन नहीं करते। इस प्रकार के दृश्य पाठकों को इन कृत्यों को प्रेरित करने के लिए नहीं बल्कि कथानक को वास्तविक रूप में दर्शाने के लिए दिए गए हैं। पाठकों से अनुरोध है की इन कृत्यों वे दुर्व्यसनों को दूर ही रखें। यह उपन्यास मात्र 18 + की आयु के लिए ही प्रकाशित किया गया है। उपन्यासब आगे पड़ने से पाठक अपनी सहमति दर्ज कर रहा है की वह 18 + है।
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ज्वालामुखी
देवा ठाकुर
परभान की गोली शोला को रोकने में नाकाम हो गयी थी। वृन्दा स्वामी को इस बात का एहसास हो गया था कि शोला का अगला कदम क्या होगा।
‘‘वह पेरिस की तरफ आ रहा है।’’ वृन्दा स्वामी ने ‘पैराडाइज सोल’ नामक पेरिस स्थित आश्रम के इंचार्ज मोरिस बेकर से सम्पर्क किया―‘‘क्या तुम्हारे पास उसकी सारी डिटेल पहुंच गयी है।’’
वृन्दा स्वामी शिकागो में था और इस वक्त अपने कण्ट्रोल रूम में बैठा था। वह इस समय एक ऐसे तख्त पर विराजमान था जो पूरा का पूरा जानवरों की खालों से मढ़ा हुआ था और यह सभी खालें शेरों की थीं। उसके सामने दीवार पर दो बाई दो मीटर की स्क्रीन उजागर थी और स्क्रीन पर मोरिस बेकर का क्लोजरूप दिखाई दे रहा था।
‘‘शोला किसी भी वक्त तुम्हारे आश्रम में पहुंच सकता है।’’ वृन्दा स्वामी ने अपनी सफेद दाढ़ी पर हाथ फिराते हुए कहा―‘‘और मैं यह खेल इसी जन्म में खत्म कर देना चाहता हूं। मेरा ख्याल था कि सांपों का बादशाह परभान ही इसके लिये काफी होगा। उसके पास होहारा जैसा जिन है लेकिन मैं देख रहा हूं कि होहारा इस समय खुद शोला से जान बचाने के लिये कोहरे के सुरक्षा कवच में छिपा पड़ा है। उसके लिये यह कवच गोली ने बनाया है। होहारा जैसे जिन को इस तरह बेबस कर देना एक असाधारण कारनामा है।’’
‘‘होली स्वामी...हमारी जानकारी के अनुसार शोला इंसान है...और संसार में कोई भी इंसान अमर नहीं होता और उसकी आयु का भी एक सर्किट बना होता है लेकिन कोई भी खौफनाक दुर्घटना इस सर्किट को भी काट सकती है...जिसे आप अकाल मृत्यु कहते हैं। शोला कोई जिन नहीं है या ऐसी कोई छाया शरीर नहीं है जिस पर हथियारों का प्रयोग असफल हो जाये। मैं उसका यहां जोरदार स्वागत करूंगा।’’
‘‘मैं अपने किसी भी आश्रम में गोलियों की बौछार नहीं करना चाहता बेकर...यह बात बहुत ध्यान रखने की है। हमारे आश्रम में फायरिंग हो और नतीजे में कुछ इंसानी लाशें गिरें, यह हमारी बदनामी का कारण बनेगा।’’
‘‘तो क्या हम हाथ पर हाथ धरे बैठे रहें...जाहिर है कि वह यहां घूमने–फिरने के इरादे से तो आ नहीं रहा है...हमारे नेटवर्क को तहस–नहस करने आ रहा है...वो क्या इस सिलसिले में पुलिस...।’’
‘‘नहीं...पुलिस को दूर रखो...तुम्हें इस वक्त एक ही काम करना है...जैसे ही शोला आश्रम में कदम रखे, तुम तुरन्त मुझसे सम्पर्क करोगे और उसके सामने कोई विरोध प्रकट नहीं करोगे। मेरा विश्वास है कि वह किसी भी किस्म की तोड़–फोड़ या मारकाट नहीं करेगा। जिन तिलस्मों से इसके जिस्म को लैस किया गया है, पहले उनका अन्त जरूरी है। मैं चाहता हूं कि परभान यह काम कर दे क्योंकि परभान भी ऐसी शक्तियों की मदद ले सकता था जो शोला के अन्दर की ऐसी तमाम शक्तियों को छिन्न–भिन्न कर सकती थीं और इसी काम के लिये परभान ने गोली का निर्माण किया था। परभान ने गोली को अपने जीवन की पूरी तपस्या से नवाजा है, उसे अपने पूजनीय सात सितारों की ताकत दी गयी है...लेकिन इसके बावजूद भी वह नाकाम रही। जबकि गोली के भीतर मौजूद सात सितारों की ताकत के सामने शोला अधिक देर नहीं ठहर सकता था।’’
‘‘क्या आपने इस बात का विश्लेषण कर लिया है कि इस नाकामी की वजह क्या हो सकती है।’’
‘‘इसका विश्लेषण परभान को करने दो...और अभी हमारे पास इसका वक्त भी नहीं है। हालांकि मेरे पास अभी शोला से निपटने के लिये दो तुरुप के पत्ते भी हैं––लेकिन अभी अगर मैंने यह पत्ते उसके सामने खोल दिये तो शोला अपनी जादुई शक्ति से कोई भी रुख बदल सकता है। मसलन बरसों से मैंने जिस सम्मोहन द्वारा बकायदा एक प्लेटफार्म तैयार करके एक इंसान के व्यक्तित्व को ही बदल कर उसे नये सांचे में ढाला है...वह बिखर सकता है। शोला उसके लुप्त हो चुके वास्तविक व्यक्तित्व को जमा सकता है।’’
‘‘क्या आपका इशारा शोला के पिता अर्जुन की तरफ है?’’
‘‘हां...अर्जुन...जिसका नाम अब अर्जुन नहीं, शीराक है और शीराक एक ड्रग्स माफिया है...एक गाडफादर...ऐसी ताकत जिसके आधीन कई आतंकवादी संगठन चल रहे हैं और शीराक का मुख्यालय पेरिस में ही है। इस बात को तुम भी अच्छी तरह जानते हो―मगर मैं शीराक को शोला के सामने कर दूं तो क्या परिणाम निकलेगा?’’
‘‘जाहिर है बाप के हाथों बेटा मारा जायेगा।’’ मोरिस बेकर ने कहा।
‘‘नहीं मोरिस...उसका परिणाम कुछ और भी निकल सकता है...इसका परिणाम यह भी हो सकता है कि जब बेटे को पता चलेगा कि उसका बाप उसके सामने दुश्मन बनकर खड़ा है तो वह बाप के सुप्त मस्तिष्क को भी जागृत करने की कोशिश कर सकता है। उसे याद दिला सकता है कि उसका नाम अर्जुन है और वह एक देशभक्त पुलिस इंसपेक्टर था...उसकी पत्नी का हत्यारा वृन्दा स्वामी है। जिन ड्रग्स माफियाओं के खिलाफ वह खड़ा था...उसका सरगना वृन्दा स्वामी है और अगर यह सब बातें उसे याद आ गयीं या यूं कहो कि उस पर से सम्मोहन का पर्दा हट गया...और शोला इस कार्य में सक्षम भी है...तो वह वर्षों से चले आ रहे सम्मोहन को छिन्न–भिन्न कर सकता है।’’
‘‘लेकिन सवाल यह है कि शोला को अर्जुन के बारे में इतनी सारी जानकारियां कहां से उपलब्ध होंगी। यह बात उसे कैसे पता चलेगी कि उसकी मां की हत्या किसने करवाई थी और क्यों करवाई थी...और यह कि...।’’ मोरिस कहते–कहते रुक गया।
‘‘इसकी जानकारी उसे अवश्य करा दी गयी होगी...इसलिये मैं इस पत्ते को अभी नहीं खोलना चाहता।’’
‘‘तब आपका प्लान क्या है?’’
‘‘मोरिस...मैं खुद उसके सामने आऊंगा।’’ वृन्दा स्वामी ने निर्णायक स्वर में कहा―‘‘लेकिन तुम लोगों को आने वाले कुछ सालों के लिये कुछ तैयारियां करनी होंगी। अगर शोला से मेरा निर्णायक युद्ध हुआ तो मेरी पहली कोशिश यही होगी कि उसकी उन सभी शक्तियों को समाप्त करूं जो उसे सुपरमैन की हैसियत प्रदान करती हैं। उसकी शक्ति का अनुमान तुम इसी बात से लगा सकते हो कि वह ट्रांसमिट होकर ब्लैकहोल में समा कर मिनटों में हजारों मील दूर का सफर तय कर सकता है। वह किसी भी जड़ चीज को मूवमेन्ट में ला सकता है। वह किसी को भी जहां चाहे वहां चिपका सकता है। ऐसी बहुत–सी शक्तियां हैं उसमें...उन्हीं में से किसी एक शक्ति का प्रयोग करके उसने होहारा को भी चित्त किया है।’’
वृन्दा स्वामी ने कुछ रुक कर कहा।
‘‘मैं तुमसे यह कहना चाहता था कि इस निर्णायक लड़ाई में मैं उसकी इन तमाम ताकतों को खत्म करूंगा...और सिर्फ मैं ही ऐसा कर सकता हूं लेकिन उसके बाद मुझे तुरन्त समाधि में चले जाना होगा...इसलिये कि शोला के साथ–साथ मेरी अपनी वे शक्तियां भी समाप्त हो जायेंगी। मेरी बाडी सर्किट में तमाम बल्ब एक के बाद एक फ्यूज होते चले जायेंगे और अन्त में सिर्फ एक ही बल्ब रोशन रहेगा...समाधि में रहकर मैं इसी प्वाइण्ट से पुनः अपने शरीर का सर्किट बनाकर इन बल्बों को रोशन करूंगा और जब तक मैं इसमें कामयाब नहीं हो जाता, मैं समाधि से बाहर नहीं निकलूंगा। जैसे–जैसे यह रोशन होते जायेंगे, शोला की वर्तमान स्थिति से भी मैं अवगत होता चला जाऊंगा। वह कहां है...क्या कर रहा है...यह सब मेरी जानकारी में आता जायेगा और उसके बाद वृन्दा स्वामी एक बार फिर अपनी चमत्कृत शक्ति से प्रकट हो जायेगा...और तब शोला को खत्म करना मेरे लिये ऐसा ही होगा जैसे हाथी के सामने चीटीं की औकात होती है...इस अरसे में मैं तुम लोगों से सम्पर्क स्थापित न कर सकूंगा...मेरे सभी आश्रमों के जो भी इंचार्ज होंगे, उन्हें मेरा भ्रम बनाकर रखना होगा...हो सकता है...इस बीच मेरे कुछ पुराने दुश्मन सक्रिय हो जायें और तुम सब लोगों को भारी नुकसान उठाना पड़े। यह भी हो सकता है कि इंटरपोल पुलिस मास्क आर्गेनाइजेशन को ही खत्म करके उनके कर्ता–धर्ताओं को जेल की सलाखों में पहुंचा दे, क्योंकि मैं उस वक्त किसी पर भी कण्ट्रोल नहीं कर पाऊंगा लेकिन इतना याद रखना कि चाहे हम सब कुछ गंवा बैठें...फिर भी हौसला मत गंवा बैठना। मैं फिर से प्रकट होऊंगा और अपनी खोई हुई ताकत फिर से प्राप्त कर लूंगा।’’
वृन्दा स्वामी के इस निर्णय पर मोरिस के चेहरे पर एक रंग आता रहा, एक जाता रहा।
आज पूरी दुनिया में मास्क आर्गेनाइजेशन का बोलबाला था। वृन्दा स्वामी ने हर मुल्क के बड़े–बड़े राजनीतिज्ञों पर अपना शिकंजा कसा हुआ था। आर्गेनाइजेशन के इस वक्त आठ कमाण्डर ऐसे थे, जिन्हें इस बात की जानकारी थी कि उनका चीफ कौन है...उनमें से एक मोरिस भी था...मोरिस बेकर योरोप की यूनिट का इंचार्ज था। इससे पूर्व इंचार्ज की एक एयरक्रैश में मृत्यु हो गयी थी। मोरिस की नियुक्ति सिर्फ तीन साल पहले हुई थी। एरिया इंचार्ज वृन्दा स्वामी के आश्रमों के भी इंचार्ज हुआ करते थे और ये सब भगवे वस्त्र पहनते थे। इन्हें वृन्दा स्वामी की सोल सोसाइटी का स्थानीय इंचार्ज ही समझा जाता था।
मोरिस बेकर इस समय पेरिस स्थित आश्रम के कण्ट्रोल रूम में बैठा था―यहां से वह इस पूरी पहाड़ी पर नजर रख सकता था। यह पहाड़ी वृन्दा स्वामी की सोसाइटी की मिलकियत थी और जो सड़क पहाड़ी में होती हुई आश्रम तक आती थी, वह प्राइवेट रोड थी। पहाड़ी की ऊपरी सतह पर आश्रम की इमारत थी। यहां हेलीकाप्टर उतरने के लिये हैलीपैड भी बना हुआ था।
आश्रम की इमारत से लेकर पहाड़ी पर कहीं भी शस्त्रधारी गार्ड्स का पहरा नहीं होता था। जहां से प्राइवेट रोड शुरू होती थी, वहां एक फाटक बना हुआ था। यह फाटक बन्द ही रहता था लेकिन वहां कोई गार्ड्स केबिन नहीं था। फाटक स्वतः ही बन्द होता था और इसे आश्रम की मुख्य इमारत से ही आपरेट किया जाता था।
फाटक पर कैमरा लगा हुआ था और इसका सीधा लाइव टेलीकास्ट आश्रम के कण्ट्रोल रूम में देखा जा सकता था। अवांछनीय व्यक्ति के लिये फाटक खुलता ही नहीं था। यहां आने के लिये पहले से अप्वाइण्टमेंट लेकर मुलाकात का समय निर्धारित करना पड़ता था। तभी कोई शख्स अन्दर आ सकता था।
मोरिस बेकर की वार्ता समाप्त हो गयी। उसकी निगाह कमरे के चारों तरफ लगे स्क्रीनों को देखती हुई बंद फाटक पर ठहर गयी। फाटक पर लगे इस कैमरे को जूम करके काफी दूर तक का दृश्य क्लोज में देखा जा सकता था। शोला के ताजातरीन फोटोग्राफ्स मोरिस को उपलब्ध थे। यह चित्र दिल्ली के आश्रम में उतारे गये थे और इन्टरनेट पर उन्हें प्राप्त हो गये थे। उस आश्रम में भी गुप्त कैमरे फिक्स थे। मोरिस के सामने अब सबसे अहम प्रश्न यह था कि शोला किस मार्ग से आश्रम में दाखिल होगा। हालांकि वृन्दा स्वामी की ओर से तो उसे आदेश मिल ही चुका था लेकिन उसे हैरानी हो रही थी कि एक आदमी के लिये खुद वृन्दा स्वामी को जंग में उतरना पड़ रहा है। आखिर यह ऐसा कौन–सा अविश्वसनीय मानव पैदा हो गया है!
मोरिस शोला को अपने स्तर से परखना चाहता था और उसने सोच लिया था कि शोला को इतनी आसानी से आश्रम में नहीं आने दिया जायेगा। उसे आश्रम में पहुंचने से पहले ही खत्म कर दिया जायेगा।
मोरिस ने तुरन्त शोला के फोटोग्राफ्स को तमाम सब–स्टेशनों में...ड्रग्स कैम्पों में और दूसरे महत्वपूर्ण स्थानों में मेल पर प्रसारित कर दिया। मोरिस को वृन्दा स्वामी ने यों ही इंचार्ज नहीं बनाया था। मोरिस के पास ऐसे संसाधन थे कि वह वहीं बैठे–बैठे योरोप में कहीं भी लाशों के ढेर लगा सकता था।
उसने तय कर लिया था कि आश्रम में गोलियों का एक भी धमाका नहीं होगा और शोला को मौत के घाट उतार दिया जायेगा। चाहे वह किसी भी रास्ते से आये...उसकी मंजिल आश्रम ही थी लेकिन मोरिस की पहली कोशिश यही थी कि शोला को आश्रम के बाहर ही कत्ल कर दिया जाये...और इस पहाड़ी क्षेत्र से बाहर तो मोरिस गोलियां क्या तोप के भी धमाके कर सकता था।
अब उसने शोला के लिये नाकाबन्दी की तैयारियां शुरू कर दीं।
उसने एक फोन का रिसीवर उठाया और कहा―‘‘डूजोन!’’
‘‘यस चीफ!’’ दूसरी तरफ से कहा गया।
‘‘शोला के कत्ल के मामले में हम सीधे इन्वाल्व नहीं होना चाहते। दस लाख डालर का बजट रिलीज कर दो...यह शोला के सर की कीमत है। ब्लैक बुल...मरीनो...किंग्सले...और बोर्डर...इन सभी को ई–मेल पर इसकी सूचना दे दो। यह बजट रेडलाइट फ्रंट की तरफ से इशू होगा।’’
‘‘ओ.के. चीफ।’’
‘‘एक बात का ध्यान रहे...हमारे होली आश्रम की सीमा में कभी किसी परिन्दे की भी हत्या नहीं की जा सकती...इसलिये शोला को आश्रम की सीमा में पहुंचने से रोका जाये...क्योंकि एक बार यहां पहुंचने के बाद वह पूरी तरह सुरक्षित हो जायेगा। हमारी सबसे बड़ी मजबूरी यही है कि हम उसे अपने घर में कत्ल नहीं कर सकते और वह सीधा हमारे घर की तरफ ही आ रहा है।’’
‘‘चीफ! अगर उसने हमारे घर में पहुंचकर हमें नुकसान पहुंचाने की कोशिश की, तो।’’
‘‘होली स्वामी ने इसकी सम्भावना से इन्कार किया है, उनका मानना है कि शोला का टार्गेट सिर्फ स्वामी ही है...और किसी से उसका कोई लेना–देना नहीं।’’
‘‘यह एक अजीब बात है चीफ! दुश्मन जब किसी कैम्प पर हमला करता है तो भले ही उसका लक्ष्य कैम्प कमाण्डर हो लेकिन कैम्प कमाण्डर के सहयोगी उसके मित्र नहीं हुआ करते। वह उन सभी पर वार करके ही अपना मकसद पूरा करता है। सेनानायक को तो तभी मारा जा सकता है जब सेना का सफाया कर दिया जाये।’’
‘‘मेरा भी दृष्टिकोण यही था लेकिन हम स्वामी के हुक्म के बिना अपनी तरफ से कोई कदम नहीं उठायेंगे लेकिन उसकी सीमा सिर्फ आश्रम ही होगा...अगर कोई गैंग रेडलाइट फ्रंट से शोला के बारे में डिटेल प्राप्त करना चाहे तो उसे दे देना...। बस फिलहाल इतना ही देखो।’’
‘‘ओ.के. चीफ।’’
बेकर ने फोन बन्द कर दिया।
अब उसे सिर्फ शोला के आगमन का इंतजार था।
शोला अगर आश्रम में पहुंच भी गया तो वह यह जानने के बाद कि वृन्दा स्वामी वहां नहीं है...शायद वहां अटेकिंग एक्शन में नहीं आयेगा...और इसी सम्भावना को देखते हुये वृन्दा स्वामी ने यह बात कही थी।
लेकिन आश्रम की सीमा से बाहर शोला के लिये आग का दरिया बिछा दिया गया था।
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Additional information
Book Title | ज्वालामुखी : Jwalamukhi |
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Isbn No | |
No of Pages | 286 |
Country Of Orign | India |
Year of Publication | |
Language | |
Genres | |
Author | |
Age | |
Publisher Name | Ravi Pocket Books |
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