जल्लाद की औलाद
रीमा भारती
“मैं युग पुरुष हूं। न तो मैं हिन्दू हूं - न ही मुसलमान हूं — न सिख हूं और न ही ईसाई हूं। मेरी कोई जाति नहीं — मेरा कोई धर्म नहीं। मेरा कोई देश नहीं और मेरा कहीं घर नहीं।
मैं युग पुरुष हूं।
समस्त पृथ्वी मेरी है और समस्त ब्रह्मांड मेरा है।
मेरा कोई रूप-रंग भी नहीं है और मेरा कोई आकार भी नहीं है। फिर भी आप मुझे देखेंगे — ज्योति पुंज के रूप में — प्रकाश पुंज के रूप में। आपकी आंखें मुझे देखेंगी — ठीक सामने और मैं आपसे बात करूंगा। एक अच्छे मित्र की तरह — एक पिता के रूप में।
आई मीनू टाप पर.....! मैं आपकी प्रतीक्षा कर रहा हूं। मैं इस युग की समाप्ति और नये युग के आगमन पर आप सबको बधाई दूंगा और आप सबके पापों का नाश करूंगा। मैं आपको आने वाले युग के विषय में बताऊंगा और वो सब बता दूंगा — जिसकी आपको जरूरत है।
मेरे पास आपके लिए भोग भी है — मोक्ष भी है और मुक्ति भी।
मैं युग पुरुष हूं..... !”
मैंने इश्तेहार पढ़ा और उसे लापरवाही से खुराना के सामने रख दिया। मेरे बॉस खुराना की उंगलियों में सिगार सुलग रहा था और वो इतना गंभीर था कि उसके चेहरे पर ऐसी गंभीरता मैंने कभी नहीं देखी थी। उसकी आंखों में गहन चिंतन के भाव थे। जाहिर था — कोई खास बात थी।
मैं खुराना को पढ़ने वाली नजरों से देखती रही और वो गंभीरता की मूर्ति बना रहा। मुझे झुंझलाहट होने लगी।
“मैं जाऊं सर?” अंततः मुझे कहना पड़ा।
“हूं.....!” काफी देर बाद खुराना का मौन व्रत टूटा। कुर्सी की पुश्त से सटते हुए उसने पूछा — “तुमने इश्तेहार पढ़ा?”
“यस सर!”
“कोई विशेष बात नजर आई?”
“नो सर.....!” मैंने लापरवाही से उत्तर दिया — “इस प्रकार के इश्तेहार तो छपते ही रहते हैं। इस प्रकार के युग पुरुष भी आपको हर शहर में मिल जाएंगे। हर रोज नये-नये आश्रम खुल रहे हैं। लाखों की भीड़ एकत्रित होती है।”
“बात ये नहीं है, रीमा!”
“और क्या बात है, सर?”
“देखो, रीमा.....!” सिगार कुछ बुझ चुका था। खुराना ने उसे ऐश ट्रे पर रख दिया और कहा — “यदि तुमने इस इश्तेहार को ध्यान से पढ़ा है — तो तुम्हें एक विशेष बात नजर आई होगी — इन युग पुरुष के बारे में। तुमने पढ़ा होगा — ये साहब जो कि अपने आपको युग पुरुष कह रहे हैं — लोगों के सामने सशरीर नहीं आयेंगे — बल्कि ज्योति पुंज अथवा प्रकाश पुंज के रूप में दर्शन देंगे। मैं नहीं जानता — इस बात में कितनी सच्चाई है। किन्तु इस चमत्कार की बात सुनकर लोगों के मन में उस युग पुरुष के लिए जिज्ञासा, उत्सुकता और दिलचस्पी पैदा होना एक स्वाभाविक बात है।”
“यस, सर.....!”
“और यही कारण है कि उस युग पुरुष के उपदेश सुनने तथा उसे देखने के लिए हजारों लोग मीन टापू पर पहुंच चुके हैं। अजय और चौहान वहां सुबह ही चले गए हैं। उन्होंने रिपोर्ट दी है कि अब तक लगभग तीन हजार श्रृद्धालु टापू पर आ चुके हैं और ये संख्या पांच हजार को भी पार कर सकती है। उन्होंने बताया कि टापू के बीचोंबीच लगभग पांच मीटर ऊंचा एक मंच बनाया गया है। कहा जाता है कि वो युग पुरुष ज्योति अथवा प्रकाश पुंज के रूप में उसी मंच पर प्रकट होंगे और लोगों से वार्तालाप करेंगे।”
अपने बॉस खुराना की बातें मैं ध्यान से सुन रही थी। मैंने कहा — “बात तो अजीब-सी लगती है, सर! लेकिन क्या आप बताएंगे कि हमारा विभाग इस मामले में इतनी दिलचस्पी क्यों ले रहा है?”
“इसके पीछे दो कारण हैं.....!” खुराना ने बुझा हुआ सिगार सुलगाया — एक कश लिया और फिर पूरी गंभीरता से कहा — “रीमा- तुम्हें याद होगा कि अभी पन्द्रह दिन पहले गृह मंत्रालय को एक अज्ञात व्यक्ति का पत्र मिला था। अज्ञात इसलिए — क्योंकि पत्र भेजने वाले ने अपना नाम और पता नहीं लिखा था। पत्र में लिखा था कि अपने आपको शांति का दूत और मनुष्यता का पुजारी कहने वाले वाले भारत देश में विनाश की एक ऐसी घटना घटेगी — जो विश्व के इतिहास में पहली घटना होगी और जिसे देखकर समस्त विश्व का कलेजा कांप जायेगा।”
“यस, सर.....!” मैं बोली- “और गृह मंत्रालय ने उस पत्र की एक प्रति हमारे विभाग को भी भेजी थी — किन्तु हमने उस पत्र की ओर विशेष ध्यान नहीं दिया था।”
“जबकि हमें ध्यान देना चाहिये था। हमें सोचना चाहिये था कि रीमा — कि आज जब मध्य एशिया के कई देश आतंकवाद से जूझ रहे हैं और समस्त विश्व पर विनाश के बादल मण्डरा रहे हैं — तो विश्व के किसी भी कोने में विनाश की किसी भी बड़ी घटना का घटना कोई आश्चर्यजनक बात नहीं कही जायेगी।”
मैं चुप रही।
खुराना ने फिर सिगार का कश लिया और फिर कहा — “दिलचस्पी का दूसरा कारण ये है कि गृह मंत्रालय को आज सुबह पहले की तरह ही एक गुमनाम पत्र और मिला है। मैं तुम्हें उसकी प्रति भी दिखाता हूं।” इतना कहकर खुराना ने सामने रखी फाइल से एक कागज निकाला और मेरी ओर बढ़ा दिया।
पत्र टाइप किया हुआ था।
मैंने पढ़ना आरम्भ किया।
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लिखा था —
“विनाश — विनाश — महाविनाश....!
समय आ चुका है। प्रकृति की विनाश लीला आरम्भ हो चुकी है। शीघ्र ही वो समय आ रहा है — जब ये संसार आकाश में मधुमक्खियों की तरह उड़ती अनगिनत आत्माओं को देखेगा। मानवता चीत्कार करेगी — रोयेगी और सहायता के लिए पुकारेगी — किन्तु उसे बचाने वाला कोई नहीं होगा। कोई भी नहीं होगा.....!”
मैंने पत्र पढ़ा और सोचों में डूब गयी। पत्र की भाषा वास्तव में दिलों में भय पैदा करने वाली और रहस्यपूर्ण थी।
खुराना सिगार समाप्त कर चुका था और मेरी ओर पढ़ने वाली नजरों से देख रहा था। मुझे विचार मग्न देखकर वो बोला —
“रीमा — मैं नहीं जानता कि इस पत्र में जो कुछ लिखा है — वो कितना सच है। किन्तु ये स्पष्ट है कि अज्ञात व्यक्ति द्वारा भेजे गए इन दोनों पत्रों की भाषा में विशेष अन्तर नहीं है। सोचने वाली बात ये है कि अज्ञात व्यक्ति ने ये पत्र ठीक उस वक्त भेजा है — जब महानगर से दस किलोमीटर दूर एक टापू पर हजारों की भीड़ एकत्रित हो रही है — और भीड़ को जिस ढंग से एकत्रित किया जा रहा है — वह भी रहस्यपूर्ण है।
मैं नहीं कहता कि वहां कोई बहुत बड़ी घटना घट सकती है। किन्तु इसके साथ-साथ और इन पत्रों को देखते हुए हमें ये भी सोचना चाहिये कि वहां कुछ भी हो सकता है। अतः सतर्कता और सावधानी जरूरी है।”
“यस सर!”
“तुम ऐसा करो — तुम इसी वक्त टापू पर चली जाओ और वहां की स्थिति देखकर रिपोर्ट दो। लेकिन तुम्हारा पूरी तैयारी के साथ जाना जरूरी है।”
“ओ. के. सर! लेकिन अजय और चौहान.....!”
“वो दोनों अभी वहीं रहेंगे।”
मैं उठ गयी।
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