हैलो मौत डॉट कॉम : Hello Maut Dot Com
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स्पाई थ्रिलर रीमा भारती का जेहादी आतंकियों के विरुद्ध मौत को चुनौती देता नया कारनामा।
Hello Maut Dot Com
Reema Bharti
प्रस्तुत उपन्यास के सभी पात्र एवं घटनायें काल्पनिक हैं। किसी जीवित अथवा मृत व्यक्ति से इनका कतई कोई सम्बन्ध नहीं है। समानता संयोग से हो सकती है। उपन्यास का उद्देश्य मात्र मनोरंजन है। प्रस्तुत उपन्यास में दिए गए हिंसक दृश्यों, धूम्रपान, मधपान अथवा किसी अन्य मादक पदार्थों के सेवन का प्रकाशक या लेखक कत्तई समर्थन नहीं करते। इस प्रकार के दृश्य पाठकों को इन कृत्यों को प्रेरित करने के लिए नहीं बल्कि कथानक को वास्तविक रूप में दर्शाने के लिए दिए गए हैं। पाठकों से अनुरोध है की इन कृत्यों वे दुर्व्यसनों को दूर ही रखें। यह उपन्यास मात्र 18 + की आयु के लिए ही प्रकाशित किया गया है। उपन्यासब आगे पड़ने से पाठक अपनी सहमति दर्ज कर रहा है की वह 18 + है।
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हैलो मौत डॉट कॉम
सुबह खुशगवार थी। हल्के गुलाबी जाड़े की धूप खिड़की के शीशों से छनकर रीमा भारती के चेहरे पर अठखेलियां कर रही थी। आई.एस.सी. की सरगर्म स्पाई एजेण्ट रीमा, रात को देर से सोई थी, इसलिए धूप की परछाइयां भी उसे जगा नहीं पा रही थीं।
उसी समय, सिरहाने रखे मोबाइन फोन की बीप उभरी। रीमा ने कुनमुनाकर करवट बदली। हाथ बढ़ाया। लेटे-लेटे ही मोबाइल उठाया। अधमुंदी आंखों से मोबाइल स्क्रीन पर उचटती नजर डाली।
इरादा था कि गैरजरूरी कॉल होगी तो मोबाइल ऑफ कर, लम्बी चादर तानकर सो जायेगी। लेकिन, स्क्रीन पर नज़र पड़ते ही रीमा की नींद हवा हो गयी।
कॉल उसके विभागीय चीफ खुराना की थी।
रीमा को कॉल अटैण्ड करनी पड़ी।
“हैलो....।”
“रीमा बेटी, मुझे एहसास है कि तुम अभी नींद से जागी होगी, बावजूद इसके तुम्हें आधे घण्टे के अन्दर-अन्दर ऑफिस पहुंचना है।” दूसरी ओर से चीफ खुराना का स्नेह में डूबा मगर अधिकार भरा स्वर उभरा।
“खैरियत तो है, चीफ अंकल?” रीमा ने हड़बड़ाकर पूछा और फुर्ती से उठ बैठी।
“वैसे तो सब खैरियत है, बेटी।” चीफ अपनत्व भरे स्वर में बोले। फिर कहा—“पिछले दिनों देश के सम्मान के साथ खिलवाड़ की चेष्टा करने वाले आतंकवादियों के सम्पर्कों के कुछ सूत्र विभाग को प्राप्त हुए हैं....। मैं चाहता हूं कि इस जटिल केस को तुम हैण्डल करो।”
“राइट....।” रीमा ने आज्ञाकारिता के भाव में कहा। उसके स्वर में उत्साह और स्फूर्ति थी।
वह समझ गयी थी कि ‘देश के सम्मान के साथ खिलवाड़ करने वालों’ से चीफ का आशय क्या था। भारत की संसद पर आत्मघातियों का हमला वास्तव में देश के सम्मान के साथ खिलवाड़ करने की; दुश्मन देश की साजिश थी। जिसे संसद के वीर रक्षाकर्मियों ने अपनी जान पर खेलकर विफल कर दिया था। घटना-स्थल पर ही आतंकवादियों को आत्मघात के लिए मजबूर होना पड़ा था। रक्षाकर्मियों द्वारा मुकाबला करते हुए उन्हें मौत के घाट उतार दिया गया था।
“पहुंच रही हो?” रीमा के राइट के उत्तर में चीफ ने पूछा।
“यस, मैं आधे घण्टे के अन्दर पहुंच जाऊंगी।” रीमा ने कहा। उसके स्वर में आत्मविश्वास था।
दूसरी ओर से लाइन काट दी गयी।
मसला देश के सम्मान से सम्बन्धित था—भारत की जांबाज बेटी और आई.एस.सी. की सरगर्म सदस्या, विभाग की नाक कही जाने वाली रीमा ने नींद को अलविदा कहा। फुर्ती से उठी, बिस्तर छोड़ा और बाथरूम की ओर तेजी से लपकी।
ठीक बीस मिनट बाद वह अपनी शानदार होण्डा सिटी कार की चालक सीट पर थी।
फास्ट ड्राइविंग करने की आदी रीमा भारती की होण्डा सिटी पसन्दीदा कार थी। उसने गाड़ी स्टार्ट की और रुख चीफ के ऑफिस की ओर कर दिया।
चीफ के ऑफिस की ओर जाने के लिए, उस समय रीमा चैम्बूर लेन रोड से गुजर रही थी। ड्राइविंग करते समय उसका जेहन चीफ के उन शब्दों में खोया हुआ था जो उन्होंने मोबाइल पर कहे थे।
वह सोच रही थी—अवश्य ही चीफ को कुछ महत्त्चपूर्ण सूत्र प्राप्त हुए होंगे। तभी तो एमरजेन्सी में कॉल की है। वह देश के गद्दारों और दुश्मनों को धूल चटाने को तड़प उठी थी। वह जानती थी कि दुश्मन देश, आतंकवाद का सहारा लेकर हमारे देश को कमजोर करने का षड्यन्त्रा समय-समय पर रचता रहता है।
ठीक तभी,
जांबाज स्पाई क्वीन की तन्द्रा भंग हो गयी। तन्द्रा भंग होने का मुख्य कारण था; एक विशालकाय ट्रालर का रास्ते में आ जाना। साइड प्राप्त करने तथा अपनी गाड़ी को आगे बढ़ाने के लिए रीमा ने जोर-जोर से हार्न बजाना शुरू किया।
परन्तु, लगा ड्राइवर या तो बहरा था या वह पीछे से आने वाले किसी भी वाहन को साइड नहीं देना चाहता था।
रीमा की आंखें सोचपूर्ण मुद्रा में सिकुड़ती चली गयीं। अगले पल उसकी छठी इन्द्रि ने खतरे की गंध सूंघ ली थी। हर पल यह एहसास दृढ़ होता जा रहा था कि कहीं न कहीं गड़बड़ी जरूर थी। वह ओवरटेक करके गाड़ी इसलिए नहीं निकाल सकती थी क्योंकि वहां सड़क इतनी चौड़ी न थी। कुछ देर बाद चौड़ी सड़क का सिलसिला शुरू हुआ तो उसे एक बार फिर चौंक जाना पड़ा—क्योंकि अब दोनों साइडों में दो ट्रक और प्रकट हो गये थे। हाइवे की चौड़ी सड़क पर यह मंजर सामने आया। अब इस बात की गुंजाइश न छोड़ी गयी थी कि वह दायें या बायें से ओवरटेक करके गाड़ी निकाल ले जाती।
और फिर, दोनों साइडों में नमूदार होने वाले ट्रकों ने देखते ही देखते कुछ ऐसी पोजीशन बनायी कि उसकी गाड़ी को कवर कर लिया। आगे-आगे ट्रालर दौड़ रहा था—उसके पीछे रीमा की गाड़ी थी—दायें-बायें से दो ट्रकों ने यूं कवर कर रखा था जैसे उसकी गाड़ी की पायलटिंग कर रहे हों।
रीमा ने दायें-बायें देखा—दोनों ट्रकों के ड्राइवरों के चेहरों पर वहशियाना मुस्कान थी। उनकी कुटिलता भरी मुस्कान, देखने का अंदाज इस बात को दर्शा रहा था कि उसकी बेचारगी पर वे कुछ इस तरह मुस्करा रहे थे जैसे अकेले वीराने में घेर ली गई किसी लड़की की बदहवाशी पर बलात्कारी।
लेकिन, रीमा पर बदहवाशी का राई-रत्ती भी असर न था। वह तो ऐसा फौलाद का जिगर रखने वाली जांबाज स्पाई थी जो मुसीबत और दुश्मनों के घेरे पर ज्यादा हौंसला और सूझ-बूझ समेट लेती थी।
उसका कम्प्यूटरीकृत जेहन तेजी से कार्य करने लगा था। आने वाले खतरे के प्रति वह अधिक जागरूक हो उठी थी। ड्राइविंग करते हुए उसने दूसरा हाथ सामने लगे कैबिनेट पर रखा। कैबिनेट का सेफ्टीलॉक हटाया। कैबिनेट का ढक्कन—सेफ्टीलॉक हटाते ही—शटर की तरह ऊपर सरक गया। रीमा का हाथ कैबिनेट के अन्दर सरका—जहां मोबाइल कारफोन था। उसकी अंगुली कारफोन के रिडायल बटन पर दबाव डाल गयी।
सब कुछ एक पल में वह कर गुजरी थी—अगले पल उसके दोनों हाथ गाड़ी के स्टेयरिंग पर थे।
रीमा भारती की होण्डा सिटी, ड्राइविंग मामले में शानदार गाड़ी होने के साथ-साथ मैकेनिज्म सम्बन्धित अन्य अनेकों खूबियों से युक्त थी—जिसे उसने खुद अपनी निगरानी में तैयार कराया था।
रिडायल बटन पर हाथ रखते ही फोन का रिसीवर हुक अपनी जगह से हट गया। अब वह आनसरिंग फोन की तरह कार्य कर रहा था।
रिडायल का नम्बर मिला। यह नम्बर आई.एस.सी. के चीफ खुराना का एमरजेन्सी फोन नम्बर था।
नम्बर मिलते ही दूसरी ओर से आवाज उभरी—
“हैलो....। सी.एफ.बी. चीफ खुराना अटेण्डिंग....।”
आवाज रीमा के कानों में पड़ी। उसने झट कहा—
“यस चीफ अंकल, मैं रीमा भारती बोल रही हूं।” रीमा ने जल्दी से कहा।
“बोलो बेटी रीमा....।” चीफ का स्वर उभरा।
“मैं इस समय अपनी गाड़ी से हाइवे रोड नाइन के मध्य रास्ते में हूं।” रीमा ने अपनी सही लोकेशन की जानकारी तेजी से देते हुए कहना जारी रखा—“मेरी गाड़ी के आगे-आगे एक भारी-भरकम ट्रालर दौड़ रहा है और साइडों में दो ट्रक लग गये हैं। उनके इरादे गलत हैं....षड्यंत्र की योजना मुझे प्रतीत हो रही है....अपने ढंग से मामले को मैं हैण्डल करने जा रही हूं, लेकिन आपको सूचना देना मैंने इसलिए जरूरी समझा कि इस चक्कर में आपके पास पहुंचने में मैं कुछ मिनट लेट हो सकती हूं....।”
“डोन्ट वरी।” चीफ का स्वर उभरा—“मैं विभागीय सदस्यों को एमरजेन्सी ड्यूटी पर रवाना करता हूं....साथ ही पुलिस कन्ट्रोल रूम को सूचना देता हूं....। अगर तुम्हारी राह में अवरोध के रूप में आने वाले कुछ गलत इरादा रखते हैं तो वे विफल हो जायेंगे।”
“आई एम नॉट वरी सर....।” रीमा ने उत्साहजनक स्वर में कहा—“अब मैं अपनी ओर से कदम उठाने जा रही हूं....।”
अपना कथन पूरा करते ही रीमा ने झटके से अपने दोनों हाथ ड्राइविंग सीट के अगली साइडों पर डाले—जहां सीट बेल्ट के साथ अटैच्ड होलस्टोरों में रिवाल्वरें थीं। उसी क्षण एक्सीलेटर से पैर हटाकर एमरजेन्सी पैडल पर तेज दबाव डाला।
एक्सीलेटर से पैर तथा स्टेयरिंग से हाथों के हटते ही होण्डा सिटी किसी शराबी की तरह इधर-उधर लहरायी।
उसकी गाड़ी को साइडों से कवर करके चलते ट्रक ड्राइवरों के चेहरों पर बौखलाहट के भूकम्पी चिन्ह उजागर हुए....।
एमरजेन्सी पैडल पर दबाव पड़ते ही सीट का स्प्रिंग लॉक हटा—स्प्रिंग ने झटके से रीमा को ऊपर उछाला। वह तोप के मुहाने से निकली सर्कस गर्ल की तरह ऊपर उछली—एमरजेन्सी पैडल के दाब ने होण्डा सिटी के ऊपरी कवर और सीट स्प्रिंग के लॉक को हटाने का कार्य एक साथ किया था।
उसकी इस अप्रत्याशित हरकत पर दोनों ट्रक ड्राइवरों ने बौखलाकर अपने ट्रक होण्डा सिटी से टकरा दिये—उनकी हरकतें कार को अपनी चपेट में लेकर उसे पीस डालने जैसी थीं। लेकिन, हकीकत में यह मामला घबरा जाने की वजह से सामने आया था।
‘धाड़....धाड़।’ वातावरण में जोरदार एक्सीडेन्ट की आवाज कौंधी।
जबकि, गाड़ी की छत से ऊपर हवा में तैर जाने वाली रीमा ने अपने दोनों हाथों में सधे रिवॉल्वरों का कमाल तत्क्षण दिखा डाला—
उसने हाथों में सधी रिवॉल्वरों के फायर दोनों साइडों के ट्रक ड्राइवरों पर झोंक मारे थे—जो गाड़ी से ट्रकों के टकराव की वजह से खुद असन्तुलित हो गये थे।
रीमा के अचूक निशाने का कमाल सामने आया। दोनों ड्राइवरों की हृदय विदारक चीखें उभर पड़ीं। वे सीने पर हाथ रखे चालक विण्डो से बाहर की ओर टपक पड़े—उनके सीनों से रक्तधार जारी हो चुकी थी।
हवा में तैरी एक्रोबेट गर्ल, रीमा ने कलाबाजी खाई। डाइव मारी। और गाड़ी के हुड को लक्ष्य बना पैर जमाने के लिए लपकी। एक्सीडेन्ट की चपेट में आ जाने के बाद भी उसकी गाड़ी दौड़ रही थी। दरअसल उसने गाड़ी को ऑटो गियर में डाल रखा था। उसका अगला इरादा—आगे-आगे दौड़ते भारी-भरकम ट्रालर चालक की गर्दन पर हाथ डालने का था....। वह आंधी-तूफान बनकर, अपनी गाड़ी से कूद, सड़क पर पहुंचे ट्रालर चालक को घेर लेना चाहती थी ताकि उससे इस बात की पूछताछ कर सके कि राह के अवरोध के रूप में आने के पीछे उसका वास्तविक उद्देश्य क्या था?
वह अपनी गाड़ी के हुड से कूदी।
मगर उस स्लोब को न देख सकी जोकि ट्रालर के पिछले हिस्से से गिरकर सड़क पर किसी मैट की तरह बिछ गया था।
रीमा के पैर स्लोब पर पड़े। वह निहायत चिकना, स्टील का स्लोब था, जिस पर पैर पड़ते ही वह फिसल पड़ी और चलते ट्रालर की रफ्तार की वजह से हिचकोले खाकर गिर गयी।
उसने तेजी से सम्भलकर खड़ी हो जाना चाहा।
मगर स्लोब, हाथी की सूंड की तरह उठने लगा था। वह इतनी तेजी से कि स्थिति का आंकलन कर चुकी रीमा उसमें से कूदकर बाहर न जा सकी।
स्टील स्लोब ने उसे वैन में अन्दर झोंका....और खट् से ढक्कन के रूप में बन्द हो गया।
रीमा वैन के फर्श पर गिर तड़प उठी। बन्द हो जाने वाले स्लोब पर दौड़कर जोर आजमाइश की। उस पर हाथों में थमे रिवॉल्वरों से गोलियां झोंक मारीं।
स्टील स्लोब पर शोले टकराये—‘खट्....खट्’।
मगर, कोई नतीजा सामने न आ सका।
ट्रालर अब भी अपनी नपी-तुली रफ्तार से दौड़ रहा था।
ट्रालर के फर्श पर गिरी रीमा को तेज झटके लग रहे थे। चिकने स्टील फर्श पर उसका पैर जमाना कठिन हो रहा था।
सम्भलने की चेष्टा करते-करते वह बार-बार फिसलकर गिर रही थी।
“कस्तूरी हिरनी....।” अचानक ही स्पीकर पर एक भारी-भरकम आवाज उभरी—“तू कैद कर ली गयी है लोहे के पिंजड़े में....तेरी धमाचौकड़ी अब किसी भी तरह कारगर नहीं होने वाली है....। एक-दो मिनट बाद तू हाथ-पैर हिलाने लायक भी नहीं रह जायेगी, क्योंकि बेहोशी की गैस तुझे गहरी नींद सुला देगी....।”
गिरकर सम्भलने की चेष्टा करती रीमा ने आंखें फाड़-फाड़कर चारों ओर देखा—वहां अंधेरा-ही-अंधेरा था; घना अंधेरा। हाथ को हाथ न सुझाई दे रहा था। ऐसे में वह उस स्पीकर को कैसे देख सकती जिस पर से उभरकर उस तक आवाज पहुंची थी। सिर्फ आवाज़ की दिशा का अनुमान उसके कानों ने कर लिया था।
और फिर,
अगले ही क्षण, रीमा ने महसूस किया कि ट्रालर के अन्दर की हवा भारी और ऑक्सीजन विषैली होती जा रही थी....। उसकी सांसें धौंकनी की तरह चलने लगी थीं। फेंफड़े विषैली हवा को बाहर फेंकने की चेष्टा में कठिन परिश्रम कर रहे थे—और थकने लगे थे।
उसका मस्तिष्क गहरी थकान में डूबा। चेतना संज्ञा शून्य होती चली गयी।
अब तो उसमें हाथ-पैर हिलाने की भी शक्ति न रह गई थी....।
कुछ पलों तक उसने फटी-फटी आंखों से अंधेरे की घनी चादरों को बेधने की असफल चेष्टा की....फिर आंखों की देखने की शक्ति भी पूरी तरह निष्क्रिय हो गई।
¶¶
विशालकाय ट्रालर एक लम्बी-चौड़ी इमारत के कम्पाउण्ड में रुका।
उसके रुकते ही इमारत के बरामदे में पहले से ही प्रतीक्षारत दो व्यक्ति भागते हुए करीब आये। उनमें से एक छः फुट से भी ऊंचे कद का था। उसने चुस्त जीन्स के ऊपर सैण्डो बनियान पहन रखी थी। उसका चौड़ा सीना, बलिष्ठ भुजाएं बनियान से साफतौर पर नुमायां हो रही थीं। उसके बाल हल्के घुंघराले, नाक थोड़ी खड़ी— चेहरा अण्डाकार आकर्षक मगर सख्त था। रंग गोरा, आंखें भूरी और चमकीली थीं।
दूसरा साधारण कद-काठी का था—आम आदमियों जैसा।
उन दोनों के दौड़कर ट्रालर तक आने तक, चालक सीट से कूदकर उसका चालक नीचे आया। उसकी वेशभूषा आम ड्राइवरों जैसी थी—पंजाबी स्टाइल की तहमद और लम्बा कुर्ता उसने पहन रखा था। दाढ़ी और मूंछें दोनों ही लम्बी थीं—जो उसके चेहरे को रौबीला बना रही थीं। वैन को लम्बे-चौड़े आकार के अनुरूप ही वह तन्दुरुस्त और लम्बा था—सवा छः जुटा से कम के कद का मालिक न था। उसकी उम्र चालीस-पैंतालीस के आस-पास थी।
“क्या रहा दिलावर सिंह....?” इमारत के बरामदे से भागकर आये गोरे व्यक्ति ने कुतूहल भरे स्वर में लम्बी दाढ़ी-मूंछों वाले से पूछा।
“कस्तूरी हिरनी जाल में है....।” दिलावर ने सफलता भरी मुस्कान के साथ कहा—“फड़फड़ाने के बाद अब अचेत पड़ी है....।” यह बात उसने रीमा भारती के लिए कही थी।
अपनी बात पूरी करते-करते वह वैन के पिछले हिस्से की ओर बढ़ गया।
वैन के पिछले हिस्से में पहुंच उसने एक लीवर दबाया।
हाथी की सूंड रूपी स्लोब नीचे आने लगा।
ट्रालर का पिछला हिस्सा खुला।
“यह जो हिरनी है न पीटर....।” फर्श पर अचेत पड़ी रीमा भारती की ओर इशारा करते हुए दिलावर ने कहा—“होश में पूरी तरह शिकारी शेरनी साबित हुआ करती है। ध्यान रहे, फंस आने के बाद हमारे दो ट्रक साथियों पर हमला बोलकर उन्हें जहन्नुम का रास्ता दिखा दिया है....। इसे उठाओ और पूरी सावधानी के साथ अपनी निगरानी में रक्खो। इन बातों की जानकारी मैं तुम्हें इसलिए दे रहा हूं, क्योंकि अपने दोनों साथी ट्रक चालकों की, इसके हाथों हुई मौत अपनी आंखों से मैंने देखी है। इसके मामले में जरा-सी चूक हुई नहीं कि यह मौत बनकर सामने वाले की जिन्दगी चट कर जाती है।”
गोरा-चिट्टा, चौड़े सीने और बलिष्ठ भुजाओं वाले पीटर ने अचेत पड़ी रीमा भारती की ओर गौर से देखा। दिलावर की ओर पलटकर बोला—
“पीटर कोई मोम का गुड्डा नहीं दिलावर, जो वह एक लड़की से मात खा जाए! एक बार शेर के मुंह से शिकार निकलकर जा सकता है, लेकिन पीटर के हाथ में आया शिकार नहीं बच सकता।” पीटर ने सीना फुलाकर कहा।
उसके जवाब पर दिलावर के चेहरे पर तसल्ली के भाव आये।
उसने पीटर की पीठ थपथपाई—
“मुझे तुमसे यही उम्मीद है....। लड़की को उठाओ और अन्दर ले जाओ—मैं ऊपर वालों को, इसके यहां तक लाये जाने की खबर देता हूं....।”
पीटर ने हल्के से सिर हिलाकर हामी भरी। फिर उसने घूमकर अपने साथी को इशारा किया। इशारा पाते ही उसका साथी ऊपर चढ़ गया।
अगले कुछ सेकण्ड बाद अचेत रीमा भारती का जिस्म पीटर के कंधे पर था। वह उसे लेकर इमारत के अन्दरूनी हिस्से की ओर यूं बढ़ने लगा था जैसे वह खुद शिकारी और रीमा भारती शिकार हुई हिरनी हो।
¶¶
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Additional information
Book Title | हैलो मौत डॉट कॉम : Hello Maut Dot Com |
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Isbn No | |
No of Pages | 256 |
Country Of Orign | India |
Year of Publication | |
Language | |
Genres | |
Author | |
Age | |
Publisher Name | Ravi Pocket Books |
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