हत्यारी औरत : Hatyari Aurat by Sunil Prabhakar
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Description
वो चौदहवीं के चांद-की उज्जवल छटा-सी निर्मल थी। सर्दी की धूप-सी मखमली नजर आती थी। उसका जिस्म खुजराहों की मूर्तियों की मानिन्द तराशा हुआ सुडौल था। उसकी हिरनी-सी आंखों में सम्मोहन था जो किसी को भी अपने वश में करने की कुव्वत रखता था।
मगर...।
वो जब भी सामने आती थी तो देखने वाले को साक्षात् मौत ही नजर आती थी क्योंकि...
वो मौत की परकाला ही थी।
वो हत्यारी औरत थी।
हत्यारी औरत : Hatyari Aurat
Sunil Prabhakar सुनील प्रभाकर
Ravi Pocket Books
BookMadaari
प्रस्तुत उपन्यास के सभी पात्र एवं घटनायें काल्पनिक हैं। किसी जीवित अथवा मृत व्यक्ति से इनका कतई कोई सम्बन्ध नहीं है। समानता संयोग से हो सकती है। उपन्यास का उद्देश्य मात्र मनोरंजन है। प्रस्तुत उपन्यास में दिए गए हिंसक दृश्यों, धूम्रपान, मधपान अथवा किसी अन्य मादक पदार्थों के सेवन का प्रकाशक या लेखक कत्तई समर्थन नहीं करते। इस प्रकार के दृश्य पाठकों को इन कृत्यों को प्रेरित करने के लिए नहीं बल्कि कथानक को वास्तविक रूप में दर्शाने के लिए दिए गए हैं। पाठकों से अनुरोध है की इन कृत्यों वे दुर्व्यसनों को दूर ही रखें। यह उपन्यास मात्र 18 + की आयु के लिए ही प्रकाशित किया गया है। उपन्यासब आगे पड़ने से पाठक अपनी सहमति दर्ज कर रहा है की वह 18 + है।
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हत्यारी औरत
सुनील प्रभाकर
"हैलो, गजराज सिंह...!"
"हां...मैं बोल रहा हूं—कहिये!"
"जन्मदिन मुबारक हो, गजराज सिंह।" दूसरी ओर से कहा गया। यह एक अत्यन्त सुरीला नारी कण्ठ से उभरा स्वर था।
"इसके लिये धन्यवाद, मगर मैंने पहचाना नहीं आपको!"
"पहचानो गजराज सिंह...क्योंकि यह तुम्हारे लिये बहुत जरूरी है।" दूसरी ओर से तनिक रहस्यमयी स्वर में कहा गया।
गजराज सिंह के चेहरे पर अजीब-से भाव उभर आये।
"अपना परिचय दीजिये...मुझे किसलिये फोन किया है?"
दूसरी ओर से हंसी की आवाज सुनाई दी और उसी हंसी में वही स्वर खनकता हुआ उभरा।
"अपनी मौत का परिचय पूछ रहे हो गजराज सिंह!"
"क्या कहा—?" गजराज सिंह चौंकता हुआ-सा बोला। मगर उसे शक हो रहा था जैसे उसके कानों ने कुछ गलत सुन लिया हो।
दूसरी ओर से हंसी उसी प्रकार सुनाई दी।
"अपनी मौत की आहट को पहचानो गजराज सिंह। यह फोन कॉल नहीं तुम्हारी मौत की आहट है।"
"कौन हो तुम—?"
"मैं अपना परिचय दे चुकी। अब मेरी आहट का इंतिज़ार करो।"
"तुम जानती हो किसे धमकी दे रही हो—।" गजराज सिंह का स्वर अत्यन्त कठोर हो गया था।
"मौत के लिये सब समान हैं गजराज सिंह। तुम कौन हो, इससे क्या फर्क पड़ता है?"
"मुझे धमकी देने का परिणाम तुम शायद नहीं जानतीं मगर जो भी हो, यदि भलाई चाहती हो तो ठीक-ठीक अपना परिचय दो और मुझसे आकर क्षमा मांगो। तुम्हें क्षमा किया जा सकता है।"
फिर वह हंसी—
"मुझे तुम क्षमा कर सकते हो गजराज सिंह मगर अपनी मौत को तुम नहीं रोक सकोगे मगर मुझसे मिलने की तुम्हारी तमन्ना बहुत जल्द पूरी होगी क्योंकि तुम्हारी जिन्दगी के पल अब गिनती के ही रह गए हैं। इसलिये मुझसे यानि तुम्हारी मौत से तुम्हारी मुलाकात शीघ्र होने जा रही है।"
"मेरी मौत क्या आयेगी—मगर लगता है तुम्हारे ऊपर कोई बड़ी मुसीबत आ रही है।"
"आज तुम्हारा जन्मदिन है गजराज सिंह...तुम्हारा आखिरी जन्मदिन। चाहो तो जी भरकर जन्मदिन मना सकते हो मगर सब काम जल्दी निपटाना क्योंकि तुम्हारे पास तुम्हारे जीवन का अन्तिम जश्न मनाने का अधिक समय नहीं है। रात बारह के बाद तो मैं तुम्हें कतई इजाजत नहीं दे सकती।"
"तुम कौन होती हो मुझे इजाजत देने वाली?" गजराज सिंह का चेहरा क्रोध से लाल हो गया था।
"तुम्हारी मौत!"
और इसके साथ ही दूसरी ओर से सम्पर्क काट दिया गया।
गजराज सिंह कुछ पल तक रिसीवर को हाथ में लिये सन्नाटे की हालत में खड़ा रह गया।
तुम्हारी मौत—
यह अन्तिम शब्द बर्फ की तरह सर्द थे और वह गजराज सिंह के अन्दर तक सर्द लहर की तरह ही उतरते चले गए थे। उसने अपने आपको काफी साहसी समझने तथा इस धमकी पर ध्यान न देने की कोशिश की थी मगर यह जैसे उसके वश में नहीं रहा था।
अपने चेहरे पर आने वाले आतंक के भावों को वह रोक नहीं सका था। वह आतंकित-सा नजर आ रहा था। उसने रिसीवर रख दिया।
कुछ पल तक सोचता रहा मगर वह जितना अधिक इस बात को नजरअंदाज करने की कोशिश कर रहा था—उसका मन उस ओर से हट नहीं पा रहा था।
मौत शब्द उसके कानों से बार-बार टकरा रहा था। अपने जीवन में पहली बार उसे इस प्रकार की धमकी दी गयी थी। उसके सामने इतना साहस करने की हिम्मत किसी में नहीं हुई थी इसलिये भी इस धमकी को वह इतनी आसानी से नजरअंदाज नहीं कर सकता था।
कुछ पल सोचने के बाद उसने फिर रिसीवर उठाया तथा उसकी उंगलियां डायल पर घूमने लगीं।
"हैलो...एस०पी० साहब..." दूसरी ओर से सम्पर्क स्थापित होने के बाद उसने कहा।
¶¶
उस बड़े हॉल में मेहमान एकत्र थे। सभी के हाथों में जाम थे। कुछ लोग छोटे-छोटे ग्रुपों में बातें कर रहे थे। वर्दीधारी वेटर हाथों में ट्रे लिये मुस्तैदी के साथ मेहमानों में घूम रहे थे। जब भी किसी का जाम खाली होता, कोई न कोई वेटर उसके पास पहुंच जाता। खाली जाम ट्रे में रख दिया जाता तथा भरा हुआ उसके हाथ में आ जाता।
पार्टी अपने पूरे यौवन पर थी।
मगर गजराज सिंह काफी कोशिश करने के बावजूद भी मेहमानों के स्वागत में गर्मजोशी नहीं दिखा पा रहा था जैसा कि हमेशा वह हुआ करता था।
हालांकि ऊपर से देखने में ऐसा महसूस नहीं हो रहा था मगर वास्तव में वह बहुत उखड़ा-उखड़ा सा था। वह किसी के साथ जम कर बातें नहीं कर पा रहा था।
जरा-सी आहट पर भी वह चौंक जाता था।
उसकी नजरें बार-बार गेट की ओर उठ जाती थीं। लगता था जैसे वह अपनी सुरक्षा की ओर से पूरी तरह सन्तुष्ट नहीं था। वह काफी चौकन्ना नजर आ रहा था।
हालांकि पार्टी में उपस्थित सभी मेहमान उसके जाने-पहचाने थे। कोई भी चेहरा उसके लिये अजनबी नहीं था फिर भी हर एक को वह शक की नजर से देख रहा था।
उस धमकी का उसके ऊपर काफी प्रभाव पड़ा था। यदि गौर से देखा जाता तो यह अनुमान लगाया जा सकता था कि अन्दर-ही-अन्दर वह बहुत अधिक घबराया हुआ था।
उसी पल किसी ने अन्दर प्रवेश किया तो गजराज सिंह उसका स्वागत करने के लिये आगे बढ़ गया।
आगन्तुक एस० पी० नागर था। गजराज सिंह को शायद उसी का इंतिज़ार था। उसके आने पर शायद उसने राहत की सांस ली थी।
उसने गर्मजोशी के साथ एस० पी० नागर के साथ हाथ मिलाया। इतनी गर्मजोशी वह अब तक किसी दूसरे मेहमान के साथ नहीं दिखा सका था।
"आइये एस० पी० साहब...मैं आपका ही इंतिज़ार कर रहा था। मैं दो बार आपको फोन कर चुका हूं मगर पता चला कि आप वहां से चल चुके थे। मैं समझ नहीं पा रहा था कि आप बीच में ही कहां अटक गए?"
एस० पी० मुस्कराया—
"जैसा मैंने कहा था आपने अपने किसी मित्र से इस धमकी का जिक्र तो नहीं किया होगा।"
"सवाल ही नहीं उठता।"
"तब आपको चिन्ता नहीं होनी चाहिये थी।" एस० पी० ने उसके साथ एक एकान्त कोने की ओर बढ़ते हुए कहा। वे शायद एकान्त में बातें करना चाहते थे।
एस० पी० उस समय सादी वर्दी में था।
"मैं सोच रहा था कि अभी तक आपने फोर्स भी नहीं भेजी है जबकि मैं आपको, तीन घण्टे पहले सूचना दे चुका हूं।"
एस० पी० मुस्कराया—
उसी पल एक वेटर ट्रे लिये उनके करीब आ गया। बातों का सिलसिला रुक गया था। दोनों ने जाम उठा लिये। एस० पी० ने वेटर की ओर देखा—
"कैसा चल रहा है हरि सिंह—?"
"सब ठीक है सर। हमारे आदमी पूरी तरह मुस्तैद हैं।" वेटर ने उत्तर दिया।
गजराज सिंह चकित सा वेटर की ओर देख रहा था मगर वह एस० पी० साहब के प्रश्न का उत्तर देकर वापिस चला गया तथा अपने काम में व्यस्त हो गया।
एस० पी० दोबारा मुस्कराया—
"अब तो आपकी शिकायत दूर हो गयी होगी कि मैंने फोर्स नहीं भेजी।"
"यह तो मैंने सोचा भी नहीं था कि आप फोर्स को इस रूप में भेजेंगे।"
"हमें इस प्रकार के नाटक खेलने ही पड़ते हैं। जहां जैसी स्थिति होती है वैसा ही नाटक खेलना पड़ता है। आपकी सूचना मिलते ही हमने फैसला कर लिया था कि हमें क्या करना है। इसीलिये मैंने आपसे यह जानना चाहा था कि इस पार्टी में किस होटल की सेवाऐं ली जा रही हैं।
और उसी समय हमने होटल के स्टाफ में अपने चुस्त, फुर्तीले और जांबाज जवानों को शामिल कर दिया। स्टाफ में होटल के आदमी तो नाम मात्र के ही हैं। जो हैं वे भी काफी भरोसे के तथा उन पर भी कड़ी नजर है।
जिस प्रकार से धमकी दी गई है उससे यही जाहिर है कि हमलावर की योजना पार्टी में ही गड़बड़ करके अपना उद्देश्य प्राप्त करने की हो सकती है इसलिये उसी प्रकार की योजना हमें बनानी पड़ी ताकि हमलावर को आसानी से जाल में फंसाया जा सके।
वैसे इसकी भी सम्भावना हो सकती है यह धमकी महज आपको डराने के लिये ही दी गई हो। आपका क्या विचार है—?"
"हो सकता है। वैसे मैं इस प्रकार की धमकियों से डरने वाला नहीं हूं। आपको भी सूचित इसलिये किया कि यह मेरा फर्ज था।" गजराज सिंह ने कहा।
वैसे कोई आम आदमी तो उसकी इस बात पर विश्वास कर सकता था मगर एस० पी० नागर जैसे पुलिस अधिकारी के सामने अपने अन्दर की घबराहट को छिपाना उसके लिये सम्भव नहीं था। वह तो आते ही उसके अन्दर समाये भय को ताड़ गया था मगर उसने ऐसा जाहिर नहीं होने दिया था।
"यह आपने ठीक ही किया सिंह साहब। जब धमकी दी गई है तो उसका कोई न कोई अर्थ तो होगा ही। भले ही वह अर्थ किसी का मजाक ही क्यों न हो मगर हमें उसकी हर सम्भावना पर विचार करना जरूरी है।"
"अब आप जानें एस० पी० साहब...मेरी जो जिम्मेदारी थी वह आपको सूचना देने के बाद पूरी हो गई।" गजराज सिंह ने जबरदस्ती मुस्कराने का प्रयास किया।
"बेशक...अब आगे की जिम्मेदारी हमारी है। आप निश्चिन्त रहें। यदि कोई सिरफिरा किसी प्रकार की हरकत करने की कोशिश करेगा तो हमारा जाल उसका स्वागत करने के लिये तैयार है।"
"मुझे किस बात की चिन्ता हो सकती है एस० पी० साहब...वैसे मेरे लिये मरना-जीना बराबर है। मौत की मुझे परवाह नहीं है। देश की और देश के लोगों की सेवा करते-करते बाल सफेद हो गए। अब यदि देश की खातिर जान भी चली जाये तो क्या अन्तर पड़ता है।
मुझे दुःख है तो इस बात का कि इस बार हमारी पार्टी राज्य में सरकार नहीं बना सकी और मैं देश की सेवा करने से वंचित रह गया जबकि मेरे लिये हाथ पर हाथ रखकर बैठे रहना बहुत कठिन है।
मेरे हाथ हर समय देश के लिये कुछ करने के लिये मचलते रहते हैं। मेरे समर्थक भी इसके लिये दबाव डाल रहे हैं कि मैं देश के लिये व उसके लोगों के लिये कुछ करूं। इसके लिये मेरा मन्त्री बनना जरूरी है। अब विपक्ष की बैन्चों पर बैठकर तो कुछ भी नहीं किया जा सकता।
फिर पार्टी के लोगों से भी मेरे विचार अब मिल नहीं रहे हैं। असल में हम जैसे लोगों की बातों का महत्व ही नहीं समझा जा रहा।
सी० एम० से मेरी बात हुई थी। वह मेरे ऊपर दबाव डाल रहे हैं कि मैं उनकी पार्टी और सरकार में शामिल हो जाऊं। मैं भी विचार कर रहा हूं कि यदि लोगों की सेवा करनी है तो सरकार में शामिल होना ही चाहिये मगर सी० एम० इस समय अपनी आन्तरिक समस्या में उलझे हैं। उनके कुछ विधायक विद्रोह करने की कोशिश कर रहे हैं मगर यह सब जल्दी ही टल जायेगा। इसके बाद हम लोग बात करेंगे। यदि सी० एम० ने फिर अनुरोध किया तो मुझे सोचना पड़ेगा। और मैं समझता हूं कि इस प्रकार का अनुरोध ही नहीं बल्कि मेरे ऊपर दबाव डाला जायेगा क्योंकि पब्लिक में मेरी एक इमेज है। मेरे क्षेत्र की जनता मेरे ऊपर जान छिड़कती है। मेरे क्षेत्र के अलावा भी कई क्षेत्रों में मेरा प्रभाव है। उन क्षेत्रों का मेरा एक दौरा किसी को भी चुनाव जिता सकता है। यही कारण है कि वह लोग मुझे अपनी पार्टी में शामिल करने को आतुर हैं। इसमें उनका अपना ही स्वार्थ है। मेरा स्वार्थ तो बस इतना है कि मुझे जनता की सेवा करनी है।" गजराज सिंह ने कहा।
उसकी बात पूरी होने तक एस० पी० हल्की-हल्की चुस्कियां लेता रहा था। ऐसा लगता था मानो उसे इन बातों में कोई विशेष रुचि नहीं थी।
उसकी बात पूरी होने पर एस० पी० ने प्रश्न किया—"क्या आप इस प्रकार का अनुमान लगा सकते हैं कि आपको धमकी देने वाला कौन हो सकता है? मेरा मतलब किससे आपकी इस प्रकार की रंजिश हो सकती है कि आपको जान से मारने की धमकी दे सके?"
"अब इसका क्या अनुमान लगाया जा सकता है नागर साहब? मैं एक पोलिटिशियन हूं। मेरी लोकप्रियता के बारे में सभी जानते हैं। इससे कुछ लोगों को ईर्ष्या तो होती ही है और यह ईर्ष्या ही हमारे दुश्मनों की संख्या बढ़ाती है। जहां लाखों लोग मेरे ऊपर जान की बाजी लगाने को तैयार रहते हैं वहीं ऐसे लोगों की संख्या भी हजारों में होगी जो मेरी जान लेने को तैयार हैं।
मगर इस प्रकार की धमकी देने का साहस आज तक कोई नहीं कर सका। शायद किसी सिरफिरे को यह वहम हो गया होगा कि अब मैं मन्त्री नहीं रहा तो मेरी ताकत ही घट गई है मगर उसे जल्दी ही मेरी ताकत का एहसास हो जायेगा। मैं अपने दुश्मन को माफ करने या उसके साथ किसी प्रकार की रियायत करने में बिल्कुल भी विश्वास नहीं रखता। आप बस उस दुस्साहसी का पता लगाइये और बाकी का काम आप मेरे ऊपर ही छोड़ दीजिये। ऐसे आदमी के साथ मैं स्वयं ही निपटूंगा।" गजराज सिंह ने कहा। उसके चेहरे पर क्रोध के भाव साफ दिखाई दे रहे थे।
"मेरा मतलब है सिंह साहब कि कोई पुरानी घटना इस प्रकार की हो जिसके कारण कोई व्यक्ति आपसे रंजिश रखता हो?"
"ऐसी घटना कोई हो ही नहीं सकती। यूं समझिये कि मेरा तो जन्म ही जनता की भलाई के लिये हुआ है। जीवन भर मैं जनता की भलाई ही करता रहा हूं। किसी को तकलीफ देना तो दूर रहा मैं तो किसी को कष्ट में देखना भी सहन नहीं कर सकता। फिर ऐसा तो कुछ हो ही नहीं सकता। यह सारी करामात मेरे किसी विरोधी की ही हो सकती है जो मेरी लोकप्रियता देखकर जलता हो।"
"हूं!" एस० पी० ने केवल हुंकार भरी तथा व्हिस्की की एक-दो चुस्कियां लेने के बाद एक बार पूरे हॉल का जायजा लिया।
भेष बदलकर वहां मौजूद सभी पुलिस वाले पूरी तरह से चौकन्ने थे तथा एस० पी० अपनी इस व्यवस्था से पूरी तरह सन्तुष्ट थे।
एक नजर उन्होंने हॉल में मौजूद सभी मेहमानों को देखा। वे सभी जाने-पहचाने शरीफ लोग थे। उनमें किसी पर भी इस प्रकार का शक नहीं किया जा सकता था।
एस० पी० नागर यह भी सोच रहा था कि यह धमकी मात्र आतंक फैलाने की कार्यवाही भी हो सकती थी मगर इसके अलावा भी दूसरी सम्भावनायें थीं जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता था।
इसीलिये इस धमकी को गम्भीरता से लिया जा रहा था क्योंकि इस धमकी में सच्चाई भी हो सकती थी और गजराज सिंह काफी महत्वपूर्ण तथा प्रभावशाली व्यक्ति था। वह एक लम्बे समय से विधायक था तथा दो बार राज्य में मन्त्री रह चुका था।
उसका काफी दबदबा था।
इसलिये यदि उस व्यक्ति के साथ किसी प्रकार की गड़बड़ होती है तो पुलिस के लिये बहुत बड़ी सिरदर्दी हो सकती थी। इसीलिये एस० पी० ने इस धमकी को गम्भीरता से लिया था और उसकी सुरक्षा का योजनाबद्ध ढंग से प्रबन्ध किया था।
आरम्भ में गजराज सिंह भी काफी घबराया हुआ था मगर पुलिस की सुरक्षा की शानदार योजना देखकर उसे काफी राहत महसूस हुई थी। हालांकि वह काफी निडर बनने की कोशिश कर रहा था मगर उसका भय पूरी तरह से नहीं निकल सका था। उस धमकी के कारण वह अन्दर-ही-अन्दर काफी डर गया था।
पार्टी सामान्य ढंग से चल रही थी।
मेहमान अभी तक आ रहे थे। सभी मेहमान अपने साथ कीमती उपहार भी ला रहे थे तथा गजराज सिंह के जन्मदिन पर उनके लिये लम्बी उम्र के लिये शुभकामनाएं दे रहे थे। अभी तक कहीं कोई असामान्य बात नजर नहीं आ रही थी।
केक तैयार था।
और उस समय जबकि लगभग सभी मेहमान आ चुके थे, केक काटने की रस्म अदा की गई।
उसके बाद डिनर का प्रोग्राम था।
केक काटने की औपचारिकता के बाद डिनर आरम्भ हुआ।
धमकी के अनुसार एस० पी० को पक्का विश्वास था कि यदि धमकी में जरा भी सच्चाई होगी तो पार्टी में ही कोई गड़बड़ होगी।
और अब थोड़ा ही समय रह गया था। डिनर के बाद सभी मेहमानों ने विदा हो जाना था। उसी समय शायद पुलिस चैन की सांस ले सकेगी। और जैसे ही पार्टी समाप्ति की ओर बढ़ रही थी वैसे ही पुलिस की चौकसी बढ़ती जा रही थी।
किसी भी समय कुछ भी हो सकता था।
हमलावर कोई भी तरीका इस्तिमाल कर सकता था। वह पार्टी में शामिल किसी मेहमान को भी बन्धक के रूप में प्रयोग करके सुरक्षा को मजबूर कर सकता था इसलिये गजराज सिंह के अलावा सभी मेहमानों को भी सुरक्षा के घेरे में ले रखा था।
एस० पी० साहब ने सभी सम्भावनाओं पर गम्भीरता से विचार करके ही सुरक्षा की योजना तैयार की थी।
और—
उस समय जबकि डिनर लगभग समाप्ति पर था; बाहर से कुछ शोर सा उभरा।
उसी पल चार वेटर्स ने गजराज सिंह को अपने घेरे में ले लिया। उन सभी ने अपने हाथों को जेब में घुसा लिया था।
कुछ अन्य वेटर अन्य लोगों के चारों ओर इस प्रकार खड़े हो गए जैसे उन्हें पहले ही पता था कि किस अवसर पर किसको कौन-सा मोर्चा सम्भालना है।
कुछ वेटर्स ने एस० पी० नागर की ओर देखा।
और फिर नजरों के संकेत से ही मानो उन्हें बाहर जाकर देखने का आदेश मिला हो।
वेटर्स की वर्दी पहने पांच व्यक्ति तेजी से बाहर की ओर बढ़ गए। हाथ सभी के जेबों में थे। शायद वे इस बात के लिये पूरी तरह से तैयार थे कि किसी पल भी उनके हाथ जेबों से बाहर आ सकते हैं और उस समय उनके हाथों में रिवॉल्वर्स होंगे। वे किसी भी परिस्थिति का मुकाबला करने के लिये पूरी तरह से सतर्क थे।
मगर पार्टी लगभग सामान्य रूप से ही चल रही थी क्योंकि कुछ वेटर्स अब भी सर्विस कर रहे थे। दूसरों का कार्य भी उन्होंने सम्भाल लिया था। इस बात का किसी को जरा भी एहसास नहीं था कि उनकी सुरक्षा किस योजनाबद्ध ढंग से की जा रही थी।
बाहर जो मामूली-सा शोर था, उसकी ओर मेहमानों का विशेष ध्यान नहीं था।
अगले ही मिनट एक वेटर अन्दर आया और सीधा एस० पी० साहब की ओर बढ़ गया।
उसने धीमे स्वर में एस० पी० से कोई बात की जिसे किसी दूसरे ने नहीं सुना। फिर एस० पी० साहब ने उसी प्रकार धीमे स्वर में कोई निर्देश दिया।
वेटर तेज कदमों से बाहर निकल गया।
और कुछ पल बाद ही सभी ने चौंककर गेट की ओर देखा। और बहुत सारे वेटरों के हाथों में रिवॉल्वर्स चमक उठे थे।
एक व्यक्ति कुछ वेटर्स की पकड़ में कसमसा रहा था। वे लोग उसे घसीटते हुए अन्दर ला रहे थे।
सभी लोग आश्चर्यचकित से यह दृश्य देख रहे थे। एस० पी० साहब उस ओर ही बढ़ गए। उस व्यक्ति को गौर से देखा। देखने में ही वह व्यक्ति गुण्डा नजर आ रहा था। उसकी उम्र चालीस से ऊपर रही होगी। वह केवल बनियान व घुटनों तक तहमद बांधे था।
चेहरे पर बड़ी-बड़ी मूंछे थीं तथा सिर के घुंघराले बाल कहीं-कहीं से सफेद हो रहे थे। होठों के कोने पान खाने के कारण लाल हो रहे थे।
उसका चेहरा पत्थर की तरह कठोर व भावहीन था।
एस० पी० साहब कुछ पल तक गौर से उस व्यक्ति की ओर देखते रहे।
"कौन तुम—?"
उस व्यक्ति ने एस० पी० के प्रश्न का कोई उत्तर नहीं दिया। उसका चेहरा उसी प्रकार कठोर व भावहीन बना रहा मानो उसने एस० पी० साहब का प्रश्न सुना ही न हो अथवा वह गूंगा या बहरा हो।
एस० पी० साहब ने वेटर की वर्दी पहने एक व्यक्ति की ओर देखा—जो उस व्यक्ति के साथ ही अन्दर आया था।
"कौन है यह आदमी—?"
"सर, यह आदमी बाथरूम में घुसकर उसके रोशनदान पर चढ़ने का प्रयास कर रहा था। इसने बड़ी सावधानी से बाथरूम में घुसने की कोशिश की थी मगर हमारी नजरों से बच नहीं सका। हमने इसे उसी समय दबोच लिया जबकि यह रोशनदान पर चढ़ने का प्रयास कर रहा था।"
"हूं..." एस० पी० ने एक बार फिर उसकी ओर देखा। उसकी भौं तनिक फूली हुई थीं तथा उस पर नीला निशान उभर रहा था।
शायद उसे चोट आयी थी।
एस० पी० साहब जिस व्यक्ति से बात कर रहे थे उस व्यक्ति ने एक पिस्तौल एस० पी० साहब की ओर बढ़ा दी।
"यह पिस्तौल हमें इसी से बरामद हुई है सर!"
एस० पी० साहब ने पिस्तौल ले ली। एक बार उसे उलट-पलट कर देखा। फिर मैग्जीन निकालकर चैक की। मैग्जीन लोडेड थी।
वह जिस बाथरूम में घुसकर रोशनदान पर चढ़ने का प्रयास कर रहा था वह रोशनदान उसी हॉल में खुलता था जिसमें पार्टी चल रही थी। एस० पी० नागर के लिये यह अनुमान लगाना आसान था कि यदि उस व्यक्ति को बाथरूम में प्रविष्ट होते न देख लिया गया होता तो वह उसके रोशनदान से अवसर मिलते ही गोली चला देता।
बस उसे एक बार बाथरूम में घुसकर उसका दरवाजा बन्द कर लेना था। फिर आसानी के साथ वह गजराज सिंह को निशाने पर लेने का इंतिज़ार कर सकता था। उस बाथरूम में किसी के आने की सम्भावना भी कम ही थी क्योंकि उस समय जो बाथरूम प्रयोग किया जा रहा था—वह दूसरा था जिसका दरवाजा उसी हॉल में खुलता था।
मेहमानों की भीड़ अब तक उस आदमी के गिर्द एकत्र हो गई थी। हर एक की आंखों में हैरत के भाव थे। लोग फटी-फटी नजरों से उसे देख रहे थे।
एस० पी० साहब ने एक बार फिर उस व्यक्ति की ओर देखा—
"कौन हो तुम और यहां तुम्हें किसने भेजा है?" एस० पी० साहब ने एक बार फिर उससे प्रश्न किया मगर उसने इस बार भी कोई उत्तर नहीं दिया।
इस बार स्वयं गजराज सिंह उसके सामने आकर खड़ा हो गया।
"तो तुम हो जो मेरी हत्या करने के लिये आये थे?"
मगर वह उसी प्रकार मौन खड़ा रहा। कठोर व भावहीन चेहरे के साथ।
तड़ाक!
गजराज सिंह का जोरदार तमाचा उसके मुंह पर पड़ा।
मगर वह एक बार तनिक हिलकर ही रह गया। न ही वह कुछ बोला तथा न ही उसके चेहरे के भावों में कोई परिवर्तन आया।
"इसे मेरे हवाले कर दीजिये नागर साहब! मैं इससे सब कुछ पूछ लूंगा। ऐसे बदमाशों की जुबान खुलवाने के बहुत तरीके हैं मेरे पास।"
"आपको तकलीफ नहीं करनी होगी सिंह साहब...इस काम के लिये हम ही काफी हैं।" एस० पी० साहब ने कहा—"यह कितनी देर तक चुप रह सकता है। बहुत जल्दी ही यह सब कुछ बक देगा।" कहकर एस० पी० साहब ने वेटर की वर्दी पहने एक व्यक्ति की ओर देखा—
"इन्स्पेक्टर...ले चलो इसे—"
"आप मेरी मानिये नागर साहब...इसे सिर्फ दो घण्टे के लिये मेरे हवाले कर दीजिये। आप विश्वास कीजिये मैं इसे जीवित आपको लौटा दूंगा।"
"आप मेरी बात सुनिये सिंह साहब!" एस० पी० साहब ने कहा तथा गजराज सिंह के साथ एक कोने में चले गए।
"इस समय आपको जिद नहीं करनी चाहिये। यहां बहुत सारे लोग हैं। यदि हम इसे आपको सौंपते हैं तो यह न हमारे हित में होगा और न आपके।"
"मगर यह सब अपने ही लोग हैं।"
"मानता हूं कि यह अपने ही लोग हैं। फिर भी इस तरह की बातें गोपनीय नहीं रह पातीं। यदि मामला केवल आपके और मेरे बीच में होता तब बात दूसरी थी।"
"मगर मैं इस आदमी से स्वयं बात करना चाहता हूं।"
"यह कोई प्रॉब्लम नहीं है। सुबह आप मेरे आफिस में आ जाइयेगा। मैं इसे आपके सामने कर दूंगा। आप जो चाहें इससे बात कर लीजिये। आपको कोई नहीं रोकेगा।"
"ठीक है...आप यही उचित समझते हैं तो..." गजराज सिंह ने कह दिया।
दोबारा फिर एस० पी० ने अपने आदमियों को संकेत दिया।
अब तक उस व्यक्ति को हथकड़ियां लगा दी गई थीं तथा एक कांस्टेबल उसकी तलाशी ले रहा था।
¶¶
मौत के भय का साया जो गजराज सिंह के मस्तिष्क पर छाया हुआ था वह अब पूरी तरह से दूर हो गया था। हत्यारा अपनी कोशिश में सफल नहीं हो सका था। हालांकि उसने कोशिश अवश्य की थी मगर वह बिल्कुल बेवकूफी भरी कोशिश थी। यदि उसने पहले ही टेलीफोन पर धमकी न दी होती तब शायद उसके सफल होने की सम्भावना हो सकती थी।
मगर यह रहस्य अभी अवश्य बना हुआ था कि उसे धमकी देने वाली कोई औरत थी। वह कौन हो सकती थी?
मगर यह रहस्य अधिक समय तक रहस्य रहने वाला नहीं था। हमलावर जल्दी ही पुलिस को उस औरत के विषय में भी बता देगा जिसने फोन किया था।
यह भी हो सकता था कि उसे गुमराह करने के लिये ही धमकी में नारी स्वर प्रयोग किया हो ताकि पुलिस का ध्यान पार्टी में शामिल होने वाली औरतों पर ही केन्द्रित रहे और हमलावर आसानी के साथ अपना काम पूरा कर सके। जो भी होगा सुबह तक सब सामने आ ही जायेगा। पुलिस जाते ही उसके साथ पूछताछ आरम्भ कर देगी।
पुलिस के सामने वह अधिक समय तक अपनी जुबान बन्द नहीं रख सकेगा।
मेहमान सभी उससे विदा लेकर जा चुके थे। कोठी के नौकरों को भी उसने आराम करने के लिये कह दिया था क्योंकि वह स्वयं भी अब आराम करना चाहता था। एक बहुत बड़ा बोझ जैसे उसके सिर से उतर चुका था। पुलिस ने पूरी मुस्तैदी दिखाई थी इसीलिये एस० पी० नागर की सुरक्षा की योजना सफल हो सकी थी।
वह अपने बेडरूम की ओर बढ़ गया।
उसका बेडरूम कोठी के एक एकान्त हिस्से में था क्योंकि रात में आराम करते समय वह किसी प्रकार का डिस्टर्बेंस पसन्द नहीं किया करता था।
उसने बेडरूम का दरवाजा खोला तथा अन्दर घुस गया। नौकरों की लापरवाही पर उसे यह देखकर बड़ी झुंझलाहट हुई कि उसके बेडरूम की बत्ती जलाना ही भूल गए थे। दरवाजे के पास ही स्विच बोर्ड था। उसने स्विच दबाया तो कमरा दूधिया प्रकाश से नहा उठा।
डोर क्लोजर लगे होने के कारण दरवाजा स्वयं ही बन्द हो गया था।
मगर—
उसी पल वह बुरी तरह चौंका।
उसका हाथ उसके कोट की जेब में चला गया तथा अगले ही पल उसके हाथ में रिवॉल्वर था जो उसकी ओर तन गया। उंगली ट्रेगर पर कस गई।
रिवॉल्विंग चेयर उसकी ओर घूम गई।
"बहुत इंतिज़ार कराया गजराज सिंह..."
यह वही नारी स्वर था जो उसने टेलीफोन पर सुना था। उसक पूरा जिस्म बुर्के से ढका हुआ था।
"कौन हो तुम...?"
"भूल गए...इतनी जल्दी भूल गए। मैंने तुमसे वायदा किया था और मैं आ गई।"
"अब आ गई हो तो जा नहीं सकोगी। मेरे बेडरूम से अब तुम्हारी लाश ही बाहर जायेगी।"
हंसी का स्वर उभरा—
"स्वयं मौत को कौन मार सकता है गजराज सिंह..."
"अब तुम स्वयं ही मेरे जाल में आ फंसी हो तो तुम्हें मरना तो पड़ेगा ही मगर पहले यह नकाब हटाओ...शायद मरने से पहले तुम मेरे काम आ सको।"
हंसी का स्वर एक बार फिर उभरा—
"कहावत ठीक ही है गजराज सिंह कि दीये की लौ बुझने से पहले एक बार जोर से फड़फड़ाती है। तुम उसी दीये के समान हो जिसका तेल लगभग समाप्त हो चुका है और तुम्हारे जीवन की लौ अब बुझने ही वाली है। तुम्हारा यह एकान्त ही आज तुम्हारी मौत का कारण बनेगा क्योंकि यहां से तुम्हारी चीख किसी को सुनाई नहीं देगी। तुम्हारे नौकरों के क्वार्टर्स यहां से काफी दूर हैं। तुम्हारी चीखों की आवाज उनके पास तक नहीं पहुंच सकेगी। और यदि पहुंचेगी भी तो वे पहचान नहीं सकेंगे कि यह चीखें तुम्हारी हैं या किसी ऐसी मासूम कली की जिसे तुम बेरहमी से मसल डालते हो क्योंकि इस प्रकार की चीखों का उभरना कोई नयी बात तो होगी नहीं।"
"जरा अपना नकाब हटाकर देखो कि मेरे हाथ में क्या है? तुम्हारे चेहरे के साथ शायद तुम्हारी आंखों पर भी नकाब पड़ा हुआ है।"
और उसने नकाब उलट दिया।
और उसके चेहरे पर नजर पड़ते ही गजराज सिंह बुरी तरह चौंका।
"तुम—"
उस जानलेवा हुस्न की मलिका के होठों पर मुस्कराहट थी।
"मैंने तो सोचा था गजराज सिंह कि तुम मुझे शायद पहचान नहीं सकोगे मगर यह अच्छा ही हुआ कि मेरा समय अपना परिचय कराने में जाया नहीं होगा। आखिर तुमने मुझे पहचान ही लिया।"
"इधर देखो...मेरे हाथ में रिवॉल्वर है और इसका निशाना तुम्हारी ओर है।"
"और यदि तुम्हारे रिवॉल्वर से गोली न चल सके तो...? "
"मेरा हाथ ट्रेगर पर है और मेरे हाथ की जरा-सी जुम्बिश से ही गोली चल जायेगी।"
युवती के होठों पर मुस्कराहट आ गई मगर उसकी मुस्कराहट बेहद रहस्यमयी थी।
"तो फिर कोशिश करके देखो गजराज सिंह..."
गजराज सिंह ने एक बार आश्चर्य से उस युवती की ओर देखा फिर अपने रिवॉल्वर की ओर।
"ऐसे क्या देख रहे हो...ट्रेगर दबाओ..."
और—
गजराज सिंह ने ट्रेगर दबा दिया।
मगर रिवॉल्वर पिट की आवाज करके रह गया। गोली उसकी बैरल से बाहर नहीं आ सकी।
वह बौखला गया।
फिर—
उसने बौखलाहट में कई बार ट्रेगर को दबाया मगर हर बार वैसा ही परिणाम।
उसके कमरे में उस युवती का ठहाका गूंज उठा।
गजराज सिंह ने बौखलाकर उसकी ओर देखा। वह जानलेवा हुस्न की मल्लिका साक्षात् उसे मौत का प्रतिरूप नजर आ रही थी।
इस बार उस युवती के हाथ में रिवॉल्वर था। उसकी आंखों में इस प्रकार के भाव थे कि उन्हें देखकर स्वयं मौत भी कांप उठे। उसकी आंखें जैसे आंखें न होकर दो जलती हुई मशालें हों। उसकी आंखें अंगारों की तरह दहक रही थीं तथा उसका खूबसूरत चेहरा क्रोध के कारण बुरी तरह से विकृत हो रहा था।
गजराज सिंह के जिस्म में एक सर्द लहर-सी दौड़ती चली गई।
"कुत्ते...तुझे अपनी ताकत पर बहुत घमण्ड था ना...उसी ताकत के घमण्ड में चूर होकर तूने अपनी मौत को भी पहचानने में भूल कर दी मगर अब तेरी वह ताकत तेरे किसी काम नहीं आयेगी।"
"नहीं..."
"डर गया...मौत का एहसास होते ही डर गया कमीने...!"
वह साक्षात मौत का अवतार बन गई थी।
"बचाओ...मुझे बचाओ...कोई..."
धांय—
वह अपना वाक्य पूरा भी नहीं कर सका। शब्द उसके गले में फंसकर रह गए। उसने निराश होकर मदद के लिये किसी को पुकारा था।
मगर उसकी आवाज शायद किसी ने सुनी नहीं। शायद सुन भी ली हो मगर यह कल्पना शायद नहीं की जा सकती थी कि यह पुकार गजराज सिंह की हो सकती है। और उस समय जबकि वह अपने बेडरूम में होता था तब किसी को उसकी आज्ञा के बिना उधर आने की इजाजत नहीं थी।
इसलिये उसकी मदद के लिये यहां कोई नहीं आ सकता था। उसके पेट से खून की धारा बह रही थी। अब वह मुंह से नहीं बोल सकता था मगर उसका हाथ युवती की ओर उठा हुआ रहम की भीख मांग रहा था।
मगर यह बात वह स्वयं भी जानता था कि उसे यह भीख नहीं मिल सकती।
युवती की उंगली एक बार फिर ट्रेगर पर कस गई।
धांय—
इस बार याचना भरा उसका हाथ भी लटक गया। उसकी हालत ऐसी हो गई थी मानो कोई मछली बिना जल के तड़प रही हो।
फिर—
इस बार फायर हुआ तो उस समय तक होता रहा जब तक कि रिवॉल्वर का पूरा चैम्बर खाली नहीं हो गया।
युवती के दिल में किस कदर नफरत भरी हुई थी इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता था कि चैम्बर खाली होने के बाद भी वह ट्रेगर को देर तक दबाती रही थी। और रिवॉल्वर की फायरिंग पिन पिट-पिट की आवाज करती थी। कई बार ट्रेगर दबाते रहने के बाद शायद उसे होश आया था कि चैम्बर खाली हो चुका है।
तब तक गजराज सिंह शान्त भी हो गया था। उसके जिस्म में कोई हरकत बाकी नहीं थी।
उसने पैर की ठोकर उसके जिस्म में मारी। और उसका निर्जीव जिस्म एक बार हिलकर रह गया। युवती शायद उसकी मौत का पक्का विश्वास कर लेना चाहती थी। एक बार उसने गजराज सिंह के मुंह पर नफरत से थूक दिया।
फिर उसने जेब से राउन्ड निकाल कर रिवॉल्वर का चैम्बर दोबारा लोड किया तथा कोने में रखे टेलीफोन की ओर बढ़ गई। उसने रिसीवर उठाया तथा उसकी उंगलियां डायल पर घूमने लगीं।
फिर कुछ पल के इंतिज़ार के बाद दूसरी ओर का स्वर उसके कानों से टकराया—
"एस० पी० नागर दिस साइड..."
"मैंने अपना वायदा पूरा कर दिया है एस० पी० साहब..."
"कौन हो तुम...कैसा वायदा—?"
"मैंने पूर्व मन्त्री गजराज सिंह से वायदा किया था कि आज का जन्मदिन उसका अन्तिम जन्मदिन होगा। और यह रात उसके जीवन की अन्तिम रात होगी। वह सुबह का उगता सूर्य नहीं देख सकेगा।"
"क्या मतलब...?"
"उसके जीवन का अन्त हो चुका है एस० पी० साहब। उसे उसके पापों की सजा आप और आपका कानून नहीं दे सकता था इसलिये यह जिम्मेदारी मुझे स्वयं सम्भालनी पड़ी। मैंने उसे मृत्युदण्ड दिया है। उसकी लाश का पोस्टमार्टम
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Additional information
Book Title | हत्यारी औरत : Hatyari Aurat by Sunil Prabhakar |
---|---|
Isbn No | |
No of Pages | 192 |
Country Of Orign | India |
Year of Publication | |
Language | |
Genres | |
Author | |
Age | |
Publisher Name | Ravi Pocket Books |
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