हाहाकार : Hahakar by Deva Thakur
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Description
तैयार हो जाएं—पाताल लोक की रहस्यमयी, रोमांचक दुनिया की सैर करने के लिए—जहां हर ओर अजीबो-गरीब चरित्रों का मेला भी है। तिलिस्मी घटनाक्रमों का मायाजाल भी है और पृष्ठ-दर-पृष्ठ हौलनाक दृश्यों की लड़ी भी बिखरी है...
तभी तो इसका नाम—‘हाहाकार’ रखा गया है।
हाहाकार : Hahakar
Deva Thakur
प्रस्तुत उपन्यास के सभी पात्र एवं घटनायें काल्पनिक हैं। किसी जीवित अथवा मृत व्यक्ति से इनका कतई कोई सम्बन्ध नहीं है। समानता संयोग से हो सकती है। उपन्यास का उद्देश्य मात्र मनोरंजन है। प्रस्तुत उपन्यास में दिए गए हिंसक दृश्यों, धूम्रपान, मधपान अथवा किसी अन्य मादक पदार्थों के सेवन का प्रकाशक या लेखक कत्तई समर्थन नहीं करते। इस प्रकार के दृश्य पाठकों को इन कृत्यों को प्रेरित करने के लिए नहीं बल्कि कथानक को वास्तविक रूप में दर्शाने के लिए दिए गए हैं। पाठकों से अनुरोध है की इन कृत्यों वे दुर्व्यसनों को दूर ही रखें। यह उपन्यास मात्र 18 + की आयु के लिए ही प्रकाशित किया गया है। उपन्यासब आगे पड़ने से पाठक अपनी सहमति दर्ज कर रहा है की वह 18 + है।
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हाहाकार
देवा ठाकुर
शोला की लाश को दफनाने का ऐलान कर दिया गया था। बस्ती वालों की निगाह में उसे फांसी पर लटका दिया गया था। सारा काम इन्तहाई तेज़रफ्तारी से हो रहा था। लाश को बन्द गाड़ी में डाल दिया गया था और शोला की लाश को लेकर कोचवान गाड़ी को आगे बढ़ा ले गया था। यह कोचवान कगोल था। कगोल—जिसने शोला को फांसी से बचा लिया था।
बाहर निकलते ही शोला ने आंखें खोल दीं और मुस्कराते हुए कगोल को देखा।
कगोल ने कहा—"जिन्दगी बच जाने की मुबारकबाद पेश करता हूं अजीम आका! और कहता हूं कि दोस्तों की दोस्ती पर विश्वास करना चाहिये।"
"हां, तुमने जो कुछ किया है कगोल, उसने मुझे तुम्हारा अहसानमन्द बना दिया है।"
"और एक बात कहूं। मैंने तुमसे कहा था कि मैं जो कुछ तुम्हारे साथ कर रहा हूं, उसमें मेरा एक लालच छुपा हुआ है। मैं तुमसे इसका पूरा-पूरा सिला वसूल करूंगा।"
"अगर तुम समझते हो कगोल कि मैं तुम्हें वह सिला दे सकता हूं तो तुम समझ लो—मेरी तरफ से यह स्वीकार है। अलबत्ता तुम्हारे इन इलाकों में मैं अजनबी हूं और मैं नहीं जानता कि मैं तुम्हें क्या सिला दे सकता हूं।"
"वह सिला बहुत बड़ा है। तुमने कगोल को देखा—वह एक कमजोर हड्डियों का ढांचा है। किसी को एक गाली तक नहीं दे सकता था। शुरू ही से मेरी ख्वाहिश थी कि मुझे किसी ऐसे ताकतवर हाथ का सहारा मिल जाये और मेरे अजीम दोस्त! मैं जानता हूं कि सुनारिया के वहशी और गुरबान के नुमाइन्दे अगर मिलकर भी कोशिश करें तो शायद इन हालात के बावजूद तुम पर काबू न पा सकें कि तुम यहां से वाकफियत रखते हो। कगोल का तजुर्बा भी तुमसे ज्यादा नहीं है, अलबत्ता इतना वह कह सकता है कि वह इन्सान की परख रखता है और उसने जिन्दगी में पहली बार ही यह कारनामा अन्जाम दिया है।" एक गहरी सांस लेकर वह बोला—"वरना भला मेरी क्या मजाल कि मैं उस कोचवान को जख्मी करके उसे अन्धे कुएं में धकेलकर उसकी जगह ले लेता और तुम्हें यहां से ले जाता। नामुमकिन अजीम आका! मैं तो अगर ऐसा सोचता भी तो मेरी जान ही निकल जाती। क्या समझे, मैंने जिन्दगी में कभी किसी परिन्दे का शिकार भी नहीं किया है लेकिन इस गाड़ी का कोचवान जो अन्धे कुएं में मौत की नींद सो रहा होगा, वह मेरा पहला कारनामा है।"
"ओहो! तुमने मेरे लिये कत्ल भी किया है।" शोला ने अफसोस भरे स्वर में कहा।
"हां, आसमान वाला मुझे मुआफ करे। मैं भला कत्ल कैसे कर सकता था, जैसे कि मैं तुम्हें बता चुका हूं कि मैंने तो कभी किसी चूहे को भी नहीं मारा। बस तुम समझ लो कि मैं एक बड़ा पत्थर लेकर उसके अकब में पहुंच गया और मैंने यह पत्थर उसके सर पर दे मारा। नजदीक ही गहरा कुआं था। उसमें धकेलने में मुझे कोई दिक्कत पेश नहीं आयी लेकिन वह बेचारा, कोचवान बेकसूर था। बस याद न दिलाओ, मैंने जिन्दगी में पहला कत्ल किया है।" कगोल की आवाज में कंपकपाहट थी। शोला को हंसी आ गयी।
"इस वक्त तुम मुझे कहां ले जा रहे हो?" शोला ने पूछा।
"तकदीर देखो कैसा साथ दे रही है, अजीम दोस्त! तुम्हारा कफन दफन भी जरूरी था और यह काम मेरे ही सुपुर्द किया गया है। असल में यहां गुरबान के दुश्मनों का एक कब्रिस्तान है। समझ रहे हो ना—वह अपने दुश्मनों को एक ही जगह सुलाकर रखता है और उनकी कब्रों पर बोदा दौड़ाता रहता है। वह दर्शाता है कि दुश्मनों को अपने कदमों तले ऐसे रौंदा जाता है। बहुत बड़ा रकबा है इस कब्रिस्तान का। यकीन करो मेरे मोआज्जिज दोस्त कि उसमें बेशुमार कब्रें हैं।"
"क्या यहां लाशों को जलाने का प्रचलन नहीं है?" शोला ने पूछा।
"यहां—क्या मतलब—क्या तुम किसी दूसरी धरती के बाशिन्दे हो?" कगोल ने चौंककर पूछा।
"नहीं, मेरा मतलब यह नहीं था जो तुम समझ रहे हो। दरअसल हर बस्ती के अलग-अलग नियम-कानून होते हैं। कहीं मुर्दों को जलाया जाता है—कहीं दफनाया जाता है।"
"जिनको सजा-ए-मौत मिलती है उनके मुर्दे को हमारे यहां जलाया नहीं जाता क्योंकि उसे हम पापी मानते हैं और पापी के मुदे जिस्म को भी सजा दी जाती है—ताकि वह सड़ता रहे, उस पर कीड़े पड़ते रहें और कीड़े-मकोड़े उसके मांस को खा जायें और अपने जिस्म की ऐसी बेकदरी देखकर उसकी रूह छटपटाती रहे। इसलिये उसे कब्र में गाड़ दिया जाता है। जो अपनी स्वाभाविक मौत मरता है, उसे हम जला देते हैं। गुरबान चूंकि सबको सजा देकर मारता है इसलिये उसका निजी कब्रिस्तान है जिसमें बेशुमार कब्रें हैं—उन कब्रों में अब एक और कब का इजाफा हो जायेगा, फिर उसका बोदा तुम्हारी कब्र को रौंदता रहेगा। वह कब्रों को भी गिनता रहता है और उनके इजाफे से बहुत खुश होता है।" कगोल के शब्द शोला को बहुत अजीब लग रहे थे।
फिर वह मुस्कराकर बोला—"फिर क्यों न कगोल! दुश्मनों के इस कब्रिस्तान में बल्कि कब्रिस्तान के बीचोंबीच गुरबान की कब्र भी बने ताकि उसके दुश्मन उसके करीब रहें और उससे अपना हिसाब-किताब करते रहें।"
कगोल के अन्दाज से यों लगा जैसे उन शब्दों ने उसे मदहोश कर दिया हो। उसने नशीली आवाज में कहा—"मेरे अजीम आका! तुम मुझे ख्वाब दिखा रहे हो। काश! इस ख्वाब की ताबीर मेरी जिन्दगी में निकल आये।"
शोला खुशी से कगोल को देखने लगा। वह उसके आगे बोलने का मुन्तजिर था लेकिन उसने कुछ न कहा और बोदा-गाड़ी दौड़ाता रहा। शोला खामोशी से बन्द गाड़ी की एक खिड़की खोलकर बाहर के दृश्य देखने लगा था। सूरज निकल आया था। उसकी रोशनी लम्हों में दोपहर के सूरज की तरह फैल गयी थी। यह सारे पाताल लोक का सूरज था जो आकाश के बीचों-बीच ही अस्त हो जाता था और फिर उसी जगह उदय होता था। शोला इस कुदरती निजाम का कोई वैज्ञानिक हल अब तक नहीं निकाल सका था कि धरती की एक पर्त के नीचे यह जो दूसरी पर्त है या लोक है जिसे वह पाताल कह सकता था—उसका सूरज आखिर किस वैज्ञानिक पद्धति के तहत एक ही जगह उगता है और वहीं अस्त हो जाता है। धरती की सतह पर जो सूरज आसमान पर चमकता है वह पृथ्वी के चौबीस घण्टे में एक चक्कर पूरा घूमने की वजह से सूरज पूरब में उदय होकर पश्चिम में अस्त होता है तो क्या पृथ्वी की भीतरी सतह नहीं घूमती और क्या यह वही सूरज है जो धरती की सतह से देखा जाता है। मुमकिन है कि यह कोई दूसरा सूरज हो। इन सब चीजों को देखकर शोला को अहसास होता था कि कुदरत के निजाम के सामने सारा विज्ञान निरर्थक है—क्या मालूम विद्वानों ने अब तक जो खोज की है वह भी सही न हो। और यह भी कोई आवश्यक नहीं कि वह जिस लोक में विचरण कर रहा है वह पृथ्वी का ही हिस्सा हो—किसी भी ब्लैक होल्स के रास्ते वह ऐसे किसी लोक में पहुंच सकता था—किसी दूसरे ग्रह में पहुंच सकता था। बहरहाल यह एक अनबूझ पहेली थी। शोला को तो इस धरती में वैज्ञानिक प्रोफेसर जोयोटा ने ट्रांसमिट किया था। (शोला पाताल में कैसे पहुंचा, इसका पूरा विवरण जानने के लिये पढ़िये देवा ठाकुर के उपन्यास—1. शोला का डंका, 2. डंके की चोट, 3. पाताल में डंका।)
शोला पाताल लोक के ही एक हिस्से में था जहां उसे इस धरती का बाशिन्दा फिट लेकर आया था और फिट अब गायब हो चुका था। वह कहां चला गया या उसके साथ कोई हादसा पेश आ गया, इसकी जानकारी शोला को नहीं थी।
पहाड़ों के दामन में कब्रिस्तान था। अनगिनत कब्रें फैली हुई थीं और उन पर सूखी लकड़ियों से निशान लगे हुए थे। बोदा गाड़ी उस रहस्यमयी कब्रिस्तान के पास रुक गयी और कगोल ने एक नयी कब्र की तैयारी शुरू कर दी। उसने शोला की तरफ देखा और मुस्कराकर बोला—"मेरे अजीम दोस्त! क्या तुम अपनी कब्र खुदवाने के लिये मेरा हाथ नहीं बंटाओगे? जब तुमने इस बस्ती सुनारिया में आकर यहां के सबसे ताकतवर जालिम आदमी से दुश्मनी मोल ले ही ली तो इस दुश्मनी को आखिरी अन्जाम तक पहुंचाने में मेरी मदद करो। तुम एक ऐसे मजलूम की हिमाकत में उठ खड़े हुए थे जो गुरबान का दुश्मन था और उस हिमाकत की सजा आखिर तुम्हें मिल ही गयी—सजा-ए-मौत। वैसे मैं तो समझता हूं कि इन्सान की जिन्दगी का बहुत ही बड़ा और दिलचस्प तजुर्बा होगा कि वह खुद अपनी कब्र तैयार करे और तुम्हें जल्द ही इस काम से फारिग हो जाना चाहिये।"
कगोल के शब्दों पर शोला को बेइख्तियार हंसी आ गयी। उसने आगे बढ़कर लोहे का वह औजार अपने हाथ में ले लिया जिससे कब्र खोदी जा रही थी और फिर वह हंसते हुए कगोल से बोला—"तुम बहुत दिलचस्प इन्सान हो कगोल! और तुम्हें देखकर बार-बार मुझे अपना साथी याद आ जाता है। वह बेहद खुशमिजाज और तुम्हारी ही तरह दिलचस्प शख्सियत का मालिक है। आह! मैं नहीं जानता कि इस वक्त वह मेरे साथ होता तो क्या कैफियत होती—तुम यकीन नहीं कर सकते इस बात पर कि वह माहौल बदल देने का माहिर है। बहुत जहीन और ऐसे-ऐसे गहरे नुक्ते निकालता है कि इन्सान की अक्ल हैरान रह जाये।"
"लेकिन वह कहां गया?" कगोल ने पूछा।
"यही तो नहीं मालूम। यह तो सोचा ही नहीं जा सकता कि वह अपनी जिन्दगी का खतरा महसूस करके मुझे अकेला छोड़कर भाग गया हो। नहीं कगोल! हरगिज नहीं! अगर मैं अपने दिमाग पर जोर देता हूं तो एक ही अन्दाज होता है कि वह किसी खास चक्कर में निकल गया है या फिर किसी इतनी बड़ी मुसीबत में फंस गया है कि उससे निकल नहीं पाया, क्योंकि आम हालात में वह मुझसे दूर रहने वालों में से नहीं है।"
"मेरे दोस्त! तुम यकीन करो कि मैंने उसे हर सम्भावित जगह तलाश कर लिया है और ऐसी जगह नहीं छोड़ी जहां वह छुप सकता है लेकिन मुझे इसका कोई निशान नहीं मिला।" कगोल ने कहा। दोनों कब्र खोदते रहे और कुछ देर बाद जब कब्र खोदने में कामयाब हो गए तो कब्र को पत्थरों से भरा गया और फिर उस पर एक निशान गाड़ दिया गया। सारा काम खत्म होने के बाद कगोल ने गर्दन उठायी और चारों तरफ देखने लगा फिर बोला—"अभी उचित समय है। हमें थोड़ा-सा सफर और करना होगा।"
"अब कहां जाओगे?" शोला ने सवाल किया।
"वह जो सामने वाली काली पहाड़ी देख रहे हो ना—वह जिसकी चोटी किसी कुत्ते के मुंह की तरह स्याह है और बदन ढीला, उसमें एक बड़ा अच्छा गार है। यह गार तुम्हारे इस्तेमाल में रहेगा। मुमकिन है आज रात या ज्यादा से ज्यादा कल मैं तुम्हें यहां से निकालकर दूसरी जगह ले जाऊं लेकिन इस वक्त तुम्हारे छुपने के लिये यह जगह सबसे अच्छी है।"
"यानि कि अब मुझे बुजदिलों की तरह छुपकर रहना होगा?"
"बुजदिल नहीं अक्लमन्दों की तरह। मैं इस बात को जानता हूं कि तुम एक हुनरबाज इन्सान हो, मगर तुम्हारे अन्दर एक खराबी है। अगर तुम मुझे इजाजत दो तो मैं बता दूं।"
"बताओ।"
"बस, जरा सोचने के अन्दाज में मेहनत से काम नहीं लेते। तुम्हारा क्या ख्याल है, क्या मैं यह सब कुछ करने में आसानी से कामयाब हो गया हूं? नहीं, मेरे दोस्त हरगिज नहीं। उसके लिये मैंने बड़ा जबरदस्त संघर्ष किया है और उस संघर्ष का एक ही मकसद है। तुम यह पूछना पसन्द करोगे कि वह मकसद क्या है?"
"बताओ—मैं तुम्हारी बात ध्यान से सुन रहा हूं।"
"मैं चाहता हूं कि गुरबान तुम्हारे हाथों मौत की आगोश में पहुंच जाये। क्या तुम इस बात का यकीन करोगे कि गुरबान का मुझसे बड़ा दुश्मन पूरे सुनारिया में कोई नहीं होगा। वैसे तो उसके दुश्मनों की संख्या बेपनाह है लेकिन मैं तुम्हें बता रहा हूं कि मैं गुरबान का एक बदतरीन दुश्मन हूं। कमजोर, अकेला शख्स जिस पर गुरबान को कभी सन्देह नहीं हो सकता लेकिन ऐसे ही लोग कामयाबी से हमकिनार हो सकते हैं। बेशक यह कामयाबी मैं खुद हासिल नहीं कर रहा, बल्कि उसका जरिया तुम बनोगे। मेरा इल्म मेरा जहन कहता है कि गुरबान तुम्हारे हाथों मारा जायेगा और यकीन करो, मैंने सिर्फ अपनी खुदगर्जी और लालच में तुम्हें जिन्दगी बख्शी है। मैंने तुम्हें जिन्दा रखने के लिये संघर्ष इसीलिये किया है। अब तुम से दरख्वास्त करता हूं कि मुझे अपना गहरा साथी और गहरा दोस्त समझकर फिलहाल सिर्फ मेरी हिदायत पर अमल करो—हां—जब तुम मेरे कामों को मुकम्मल करो तो जो मुनासिब समझो करना। क्या समझे, आओ अब हमें यहां से आगे बढ़ना चाहिये। उस गार तक पहुंचना बेहद जरूरी है। बाकी बातें हम गाड़ी में बैठकर ही करेंगे।"
शोला कगोल के साथ गाड़ी में जा बैठा। अब उसे यह सब कुछ बहुत दिलचस्प लग रहा था। सुनारिया वालों ने उसकी मौत का यकीन किया था और उसकी कब्र भी गुरबान के दुश्मनों के कब्रिस्तान में बन गयी थी लेकिन वह जिन्दा सलामत था। रास्ते में उसने कहा—
"कगोल! तुमने खूब खेल दिखाया है लेकिन इस खेल का अन्जाम अभी तक मेरी समझ में नहीं आया। इसके अलावा मैं यह बात भी जानता हूं कि ईरोज ने मुझे नृत्य के मैदान में क्यों तलब किया था और मुझे वहां कत्ल करने की कोशिश क्यों की थी।"
"बड़ी आम बात है और एक जहीन आदमी बड़ी आसानी से इस बात को समझ सकता है। असल में उन लोगों ने तुम्हारी दिलेरी और ताकत को स्वीकार कर लिया था। एक ताकतवर आदमी को तुमने जिस तरह शिकस्त दी थी, उस तरह शिकस्त देना आम लोगों के बस की बात नहीं थी। ख्याल यह था कि शायद बस्ती के लोग खुल्लम-खुल्ला तुम्हारे साथ सहयोग का ऐलान भी कर ले और यह बात बहुत कम लोग जानते हैं कि गुरबान जालिम दरिन्दा होने के बावजूद बुजदिल भी है और बुजदिल आदमी हमेशा चालाक होता है। गुरबान ने यही सोचा कि तुम्हें सीधे-सीधे हलाक करने की बजाये किसी न किसी तरह बस्ती वालों को तुम्हारे खिलाफ कर दिया जाये और इसके लिये उसने ईरोज को नियुक्त किया। अतः ईरोज ने सब कुछ कर डाला और अब उसने तुम्हें मौत की आगोश में पहुंचा दिया। अब यह इत्तिफाक है, कि तुम दो लोगों की उम्मीदों के केन्द्र बन गए और उन्होंने तुम्हारी जिन्दगी के लिये मिलकर संघर्ष किया और कामयाब हो गए।"
कगोल की यह बात सुनकर शोला चौंक पड़ा। उसने कहा—"दो लोग—यानि तुम्हारे अलावा भी कोई और इस साजिश में शामिल है?"
"यह बड़ी दिलचस्प बात है कि तुम अपनी जिन्दगी बचाने के अमल को साजिश कह रहे हो।"
"नहीं—मेरा मतलब यह है कि...।" शोला ने कहा।
"एक शख्स और है जो उस जगह तुम्हारा मुन्तजिर है—जो अब तुम्हारी शरण-स्थली बनने वाली है।"
"कौन है वह?" शोला ने सर्द लहजे में कहा।
"यों समझ लो कि तुम्हारा दोस्त और तुम्हारा परिचित। तुम उससे मिल लोगे। अब तो फासला भी ज्यादा नहीं है। वह देखो, हम उस गार के करीब पहुंच रहे हैं जहां तुम्हारा दोस्त अन्दर मौजूद है।"
"तुम बड़े ड्रामेबाज आदमी मालूम होते हो। कभी-कभार मुझे तुम पर गुस्सा आता है लेकिन तुम मुझ पर अहसान कर चुके हो और उस अहसान ने मुझे मजबूर कर दिया है कि तुम्हारी बेवकूफी की बातों को अनदेखा कर दूं।"
"यह तुम्हारा अहसान है। बस—मैं यह चाहता हूं कि मैं तुम्हें जल्द-से-जल्द यहां छोड़कर फौरन वापस बस्ती में पहुंच जाऊं, ताकि लोग मेरे ऊपर शक न कर सकें। जब कोचवान की गाड़ी उसके घर तक पहुंचे तो उनको मेरे बारे में किसी को कुछ पता न हो। मेरा मतलब है उसे वहां होना चाहिये जहां यह पहुंचेगी और उसके बाद मैं खुद अपना हुलिया बदलकर अपनी जगह पहुंच जाऊंगा। तो लोग कोचवान को जरूर तलाश करेंगे और उस वक्त अगर किसी को शक हो गया कि कोचवान अपनी जगह मौजूद नहीं है, कोई और उसकी जगह कार्यवाहियां करता फिर रहा है तो फिर यह समझ लो कि तुम्हारा यह दोस्त कगोल आइन्दा तुम्हारे सामने नहीं आ सकेगा। गुरबान तो खैर दूर की चीज है, ईरोज ही मेरे इतने टुकड़े करेगा कि कोई गिन भी नहीं पायेगा। क्योंकि मैं एक कमजोर और बहुत ही मामूली-सा आदमी हूं। इस बस्ती में सबकी निगाहों के सामने अहमक और बेवकूफ।"
"यह बात तो तुम्हारे हक में जाती है कगोल! बहरहाल, मैं तुम्हें नहीं रोकूंगा, क्योंकि मैं तुम्हारी जिन्दगी चाहता हूं।" शोला ने कहा और कगोल ने आंखें बन्द करके गर्दन हिला दी। वैसे इसमें कोई शक नहीं कि वह शक्ल से ही मक्कार नजर आता था।
फिर उसने बोदा गाड़ी (घोड़ा गाड़ी—वहां घोड़े को बोदा कहा जाता था) के पिछले हिस्से की तरफ इशारा करते हुए कहा—"और मेरे अजीम दोस्त! मैंने तुम्हारे लिये कुछ और भी इन्तजामात किये थे। मुझे अन्दाजा था कि तुम्हें इन गारों में चन्द चीजों की जरूरत होगी। हरचन्द तुम्हारा वह साथी जो गार में पहले से मौजूद है—तुम्हारे लिये कुछ न कुछ बन्दोबस्त करके आया होगा लेकिन कगोल की तरफ से इस बड़े थैले का तोहफा कुबूल करो।" कगोल ने नीचे उतरकर गाड़ी के पिछले हिस्से से एक थैला निकाल लिया जो काफी बड़ा था। शायद उसमें जरूरयात का सामान भरा हुआ था। उसके बाद उसने वह थैला शोला के हवाले करते हुए कहा—"और अब अगर मैंने गैर जिम्मेदारी से काम लिया तो तुम्हें तो मौत के मुंह से निकाल लाया हूं लेकिन मुझे मौत के मुंह से निकालने वाला और कोई न होगा। मुझे खौफ है कि यहां इस गार के नजदीक कोई यह बोदा गाड़ी देख न ले। अतः अब तुमसे दूर होता हूं लेकिन कोशिश करूंगा कि दोबारा तुमसे बहुत जल्द मुलाकात करूं। अच्छा...।" यह कहकर उसने बोदा गाड़ी वापस मोड़ दी और फिर तेजी से उसे दौड़ाता हुआ आगे बढ़ गया।
शोला उसे खड़ा देखता रहा था। थैला उसके हाथ में लटका हुआ था। आखिरकार जब कगोल एक मोड़ पर निगाहों से ओझल हो गया तो शोला ने एक गहरी सांस ली और गार की तरफ चल पड़ा, जिसका दहाना थोड़ी बुलन्दी पर था। वह चट्टानों को पार करता हुआ उसके नजदीक पहुंचा तो ठिठक गया। गार के दहाने पर उसे जो कोई नजर आया था, उसे देखकर उसे खुशी नहीं हुई। यह इरोना थी जो गार के दहाने पर खड़ी उसे देख रही थी। कुछ लम्हों के लिये शोला के कदम रुके। वैसे इसमें कोई शक नहीं कि उसको इरोना की यहां मौजूदगी पर हैरत हुई थी। वह आगे बढ़ा तो इरोना चेहरे पर कोई भाव पैदा किये बगैर उसके पास पहुंच गयी। उसने झुककर थैला शोला के हाथों से ले लिया।
"यह काफी वजनी है। तुम इसे सम्भाल नहीं पाओगी।" शोला ने भारी आवाज में कहा और थैला स्वयं अपने हाथों में लिये हुए ऊपर पहुंच गया। इरोना उसके पीछे-पीछे गार में आयी थी।
"मैं हैरान हूं। तुम यहां कैसे?"
"क्यों, इसमें हैरत की क्या बात है?"
"मैं नहीं जानता था कि तुम यहां मौजूद होगी।" शोला ने गार में दाखिल होकर कहा। उसने थैला एक तरफ रख दिया। गार काफी चौड़ा और साफ-सुथरा था। जरा बराबर घुटन नहीं थी वहां।
इरोना के होठों पर मुस्कुराहट थी। उसने कहा—"जब तुम बस्ती सुनारिया में दाखिल हुए थे तो मैंने तुम्हारे बारे में एक नजरिया कायम किया था। मैं यह तो नहीं कह सकती कि मैं तुम्हारे लिये बहुत कुछ कर सकती हूं या मेरे दिल में तुम्हारे लिये इश्को मौहब्बत के खजाने उबल पड़े हैं लेकिन मैं इतना जरूर कहूंगी कि मैंने पहली ही निगाह में तुम्हें बहुत पसन्द किया था और चाहती थी कि तुम्हें कोई नुकसान न पहुंचे। मैं खौफ का शिकार थी कि सुनारिया बस्ती में गुरबान, ईरोज और दूसरे खूंखार दरिन्दे तुम्हारी मौजूदगी बर्दाश्त नहीं कर सकेंगे। शुरू से ही मैं तुम्हारा पीछा कर रही थी और यह अन्दाजा लगाती रही थी कि दुश्मन तुम्हारे खिलाफ कोई कदम तो नहीं उठा रहे हैं और वही हुआ जिसका मुझे खतरा था और यह भी एक इत्तिफाक है कि यह शख्स कगोल, जो इससे पहले इन्तहाई नाकारा-सा इन्सान था, मेरे इस मुआमले में बड़ा बेहतरीन सहयोगी बन गया है। जब मेरी इससे मुलाकात हुई और मैंने डरते-डरते उसे अपना हालेदिल कहा तो मुझे पता चला कि वह तो तुम्हें खुद प्यार करने वालों में से है और तुम्हारी जिन्दगी चाहता है। निःसन्देह इस शख्स से किसी बड़े कारनामे की आशा नहीं की जा सकती थी लेकिन मैंने देखा और तुमने भी देखा और तुम्हारे अलावा शायद यह बात किसी को मालूम न हो कि कगोल ने अपनी फितरत के खिलाफ एक ऐसा कारनामा सर अंजाम दिया है जिसने उसे मेरी निगाह में पहले से भिन्न कर दिया है। मुझे बेपनाह खुशी है कि वह तुम्हारी जान बचाने में कामयाब हो गया।"
"इसमें कोई शक नहीं है कि तुमने और कगोल ने मेरी जिन्दगी बचायी है और मेरे ऊपर यह अहसान किया है लेकिन इरोना, तुम्हारा क्या ख्याल है। क्या मैं इतनी आसानी से फांसी पा लेता? अगर तुम मेरी बात पर यकीन कर सकती हो तो जरूर कर लो कि मैं आखिरी वक्त की प्रतीक्षा में था। मैं झूठ नहीं बोलता। बेशक अगर कगोल मुझे पहले न मिल जाता और मुझे सारी कार्यवाही पर विश्वास न हो जाता तो फांसी पर लटकने से पहले यहां लाशों का बाजार गर्म हो जाता। वे मुझे आसानी से फांसी नहीं दे सकते थे। यह खूंरेजी मैंने सिर्फ इसलिये नहीं की कि मुझे इसकी सम्भावना नजर आ गयी थी कि मैं बच जाऊंगा। अलबत्ता इस बात को मैं अच्छी तरह जानता हूं कि तुम लोगों ने मेरे लिये बेहद मेहनत की है।"
"मुझे यकीन है, मुझे तुम्हारी परेशानी से यह अन्दाजा होता है कि तुम आसानी से हार मानने वालों में से नहीं हो। बहरहाल, हम अपनी इस कोशिश में कामयाब हो गए। यह तुम्हारी नहीं बल्कि हमारी खुशकिस्मती है।"
"एक सवाल मेरे जहन में कुलबुला रहा है इरोना। मैं तुमसे यह जानना चाहता हूं कि तुम लोगों ने मेरे लिये यह सब कुछ क्यों किया है?"
"दिल की आवाज पर...और दिल की आवाज का कोई मकसद नहीं होता। कगोल तुम्हारे सिलसिले में जिस काम पर अमादा हुआ, उसकी पृष्ठभूमि में उसका मकसद जरूर है। वह खुलकर यह बात कहता है।"
रात के समय जब इरोना सो रही थी, शोला को गार से बाहर कदमों की आहट सुनाई दी। वह गार के दहाने पर आ पहुंचा। कुछ ही देर में आने वाला उसके सामने आ गया। उसे कगोल की बुलन्द आवाज सुनायी दी—"शोला! अगर तुम जाग रहे हो और मेरा ख्याल है कि तुम जैसे लोग बेखबर होकर नहीं सोया करते, तो तुम हम पर हमला मत कर बैठना।"
शोला ने हंसते हुए कहा—"आ जाओ कगोल!"
कगोल के साथ एक आदमी और था। उसका नाम राश था।
"यह मेरा साथी राश है। मेरा बहुत करीबी दोस्त। क्या तुम इस बात पर यकीन करोगे अजीम आका कि यह हमारी मुहिम का बेहतरीन साथी है।"
राश की भी अपनी एक दास्तान थी। वह गुरबान के दायें हाथ ईरोज का साथी था। शोला को यह जानकर हैरानी हुई कि वह गुरबान के गिरोह का आदमी होते हुए भी गुरबान का दुश्मन था। इसके पीछे एक कहानी थी जो राश ने सुनायी। गुरबान के बाप ने राश के बाप का कत्ल किया था। इस बस्ती से दूर एक सराय थी जिसका मालिक राश का बाप था। गुरबान का बाप लुटेरा था और उसने सराय में आने-जाने वालों को लूटना शुरू किया तो राश के बाप ने उसे रोकने की कोशिश की। नतीजे में राश का बाप मारा गया। सराय को आग लगा दी थी। राश बरसों तक अनाथ होकर दरबदर ठोकरें खाता रहा। फिर वह गुरबान के बाप को मौत के घाट उतारने के लिये सुनारिया में आया और इत्तिफाक से उसने ईरोज की एक मौके पर जान बचायी, जब ईरोज का एक दुश्मन उसे कत्ल करने की फिराक में था और ईरोज जख्मी हो चुका था। राश उस वक्त जंगल के एक गार में रहता था। संयोग से ईरोज उसी तरफ आया और राश ने उसके दुश्मन को कत्ल करके उसकी जान बचा ली। इस तरह ईरोज से राश की दोस्ती हो गयी। कुछ समय बाद जब राश को मालूम हुआ कि ईरोज गुरबान के गिरोह में शामिल हो गया है तो राश भी उसके साथ शामिल हो गया। बाद में उसे पता चला कि गुरबान का बाप मर गया। तब उसने फैसला किया कि अपने बाप की मौत का बदला वह गुरबान से लेगा।
उसकी कहानी सुनने के बाद शोला ने उससे एक सवाल किया—"तुम्हें याद होगा कि सुनारिया की एक लड़की और उसके बाप की मौत का इन्तकाम लेने मैं यहां रुक गया था। क्या तुम भी उसके कातिलों में शामिल थे?"
"नहीं—मैं इस किस्म के अत्याचारों से दूर रहता हूं।"
"तब ठीक है—वरना तुम मेरे हाथों मारे जाते।"
बातचीत के दौरान यह तय हुआ कि शोला को शोला का भूत बनकर हाहाकार मचा देना चाहिये। उनका कहना था कि गुरबान अन्धविश्वासी है। जब उस तक भूत की खबर पहुंचेगी तो वह दहशतजदा हो जायेगा और फिर शोला के भूत पर हमला करने की बजाये उससे बचने की कोशिश करेगा। इसका शोला भरपूर लाभ उठा सकता था। बस्ती वाले लोग, जो शोला से इसलिये नफरत करते हैं क्योंकि उसके हाथों दरवेश मारा गया था, वे भूत से खौफजदा रहेंगे।
"बाकी काम हम पर छोड़ दो। हम बस्ती वालों को समझायेंगे कि जब भी कोई गलत फैसला होता है तो मरने वाला भूत बन जाता है।" कगोल ने कहा—"और ऐसा लोग मानते भी हैं। हम बतायेंगे कि शोला के हाथों दरवेश की मौत नहीं हुई थी। उसे शोला के दुश्मनों ने धोखे में मार दिया था, ताकि शोला को फांसी पर लटकाया जा सके। इस तरह लोगों के मन में तुम्हारे प्रति सहानुभूति जागेगी और तुम्हारा भूत गुरबान के खिलाफ ऐलान-ए-जंग करेगा।"
"मैं समझ गया कि तुम क्या चाहते हो।" शोला ने कहा—"तो फिर कल से तुम शोला का भूत ही देखोगे। भूत इन्सान से कई गुना ताकतवर होता है। भूत को मारा नहीं जा सकता। उसे आग में नहीं जलाया जा सकता।"
दिन निकलने से पहले वे दोनों वापस लौट गए।
शोला जब वापस गार में पहुंचा तो उसे आभास हुआ कि इरोना वहां नहीं लेटी है, जहां उसे होना चाहिये। वह चौंककर इधर-उधर देखने लगा।
"मैं यहीं हूं।" इरोना की आवाज सुनायी दी।
"अरे! तुम जाग रही हो?"
"हां—मैं जाग गयी थी और मैंने तुम्हारी बातचीत भी सुनी है लेकिन मैंने तुम्हारी बातों में दखल देना पसन्द नहीं किया।"
"खूब! वैसे एक बात बताओ। तुम इस शख्स राश को जानती हो?"
"हां—न सिर्फ राश बल्कि तुम्हें सुनारिया के आस-पास में ऐसे बेशुमार लोग मिलेंगे जिनकी जिन्दगी की सिर्फ यही आरजू है कि गुरबान से छुटकारा प्राप्त कर लें लेकिन वे तुम्हें बेबस नजर आयेंगे। गुरबान सुनारिया वालों को सुनारिया से बाहर भी नहीं जाने देता कि वह उसके जुल्म की दास्तानें सुनारिया से बाहर फैलायें। बड़ा मुश्किल वक्त डाल रखा है उसने सुनारिया पर। बेशुमार लोग उसके जुल्म की चक्की में पिस रहे हैं लेकिन खामोशी इख्तियार किये हुए हैं। उन्हें आज तक ऐसा कोई सहारा नजर नहीं आया जो उनकी मदद करे।"
"बस—बहुत सी बातें सुन चुका हूं उसके बारे में। अब यह मेरा फर्ज हो गया है कि तुम सबको उससे निजात दिलाऊं या खुद मौत की आगोश में चला जाऊं। तुम नहीं जानतीं कि यह फर्ज कहां से मुझ पर आमद किया गया है।" इरोना अकीदत की निगाहों से उसकी सूरत देखती रही।
फिर उसके बाद शोला उसी गार में वक्त गुजारने लगा। उसके दिल में सिर्फ एक ही आरजू थी कि फिट उसे मिल जाये। वास्तव में फिट उसके लिये बड़ी हैसियत रखता था। वह बजाते खुद एक शानदार लड़का था। बेहतरीन जहीन फैसले किया करता था। फिट एक ठण्डे दिमाग का शख्स था। इधर वह लड़की खामोश निगाहों से उसे बहुत कुछ कहती रही थी। कभी-कभी शोला को उस पर गुस्सा आ जाता था। उसका दिल चाहता था कि उसे धक्के देकर गार से बाहर निकाल दे। वह उस किस्म के मामलात में जरा भी दिलचस्पी नहीं लेता था। यहां वह एक मिशन के तहत काम कर रहा था। उसे उन लोगों का पता लगाना था जो किसी रास्ते से पाताल में घुस आये थे और उन्होंने यहां अपने अड्डे बना दिये थे। ये लोग उन्हें कालके कहते थे। गुरबान कालकों का एजेण्ट था। शोला को अपने बोदे की भी जरूरत महसूस हो रही थी। इस सारे घटनाक्रम में उनका बोदा (घोड़ा) उससे अलग हो गया था। शोला ने उसे काफी सिखा दिया था और वह शोला के प्रति वफादार जानवर था।
एक रात वह खामोशी से गार से बाहर निकल गया। इरोना गहरी नींद सो रही थी और उसने उसे जागने नहीं दिया था। गार की पहाड़ी से नीचे उतरकर वह बस्ती की ओर चल पड़ा। बहुत दूर निगाहों की आखिरी हद पर बस्ती की रोशनियां नजर आ रही थीं और यह फासला शोला को पैदल ही तय करना था। बहरहाल वह तेजी से उस तरफ चलता रहा। मद्धिम और मलगजी रोशनियां आहिस्ता-आहिस्ता सफेद पड़ती जा रही थीं। दिन निकलने से पहले शोला बस्ती के करीब पहुंच गया। बस्ती में आहिस्ता-आहिस्ता जिन्दगी जागने लगी थी। मवेशियों के बाड़ों से उनके बोलने की आवाजें सुनायी दे रही थीं। भैंसें ग्वालों को पुकार रही थीं और उनके थनों से भरा हुआ दूध बाहर निकलने के लिये बेचैन था। दरख्तों पर परिन्दों ने शोर मचाना शुरू कर दिया था। यही सब इस बात का संकेत दे देते थे कि दिन निकलने वाला है। शोला उस दिशा में बढ़ रहा था जहां वह कगोल के मकान तक पहुंच सके। उसकी खुशकिस्मती ही थी कि थोड़ी दूर चलने के बाद उसने बोदे के कदमों की आवाज सुनी। कोई घुड़सवार उसकी तरफ आ रहा था। शोला को बोदे की टापें परिचित महसूस हुई। वह हैरानी से आंखें फाड़ने लगा लेकिन घुड़सवार की सिम्त का अन्दाजा नहीं हो सका था उसे। शोला को यह अन्दाजा अवश्य हो रहा था कि यह बोदा उसी का है, फिर और भी कोशिश की जा सकती है और यही हुआ। शोला के होठों से सीटी की आवाज निकली। एक बार, दूसरी बार, तीसरी बार। उसके साथ ही बोदे की टापों की आवाज तेज हो गयी। फिर एक दिलचस्प मंजर निगाहों के सामने आ गया। यह वही आदमी था जिसकी मरम्मत शोला ने अच्छी तरह की थी और उसके गुरूर को खाक में मिला दिया था। वह शख्स बड़ा ही शैतान था। उसका नाम मोंगा था। जख्मी होकर वह कई दिन तक बिस्तर में रहा था। इस वक्त वही शख्स बोदे पर सवार था और शायद वह हवाखोरी के लिये निकला था या किसी और काम के लिये कहीं जा रहा था कि बोदे की फितरत बदल गयी। उसने मोंगा को गिराने की कोशिश की लेकिन मोंगा ने उसे सम्भाल लिया था। बोदा तेज रफ्तारी से दौड़ता हुआ शोला के सामने आ खड़ा हुआ और फिर एकदम दोनों पैरों पर खड़ा हो गया। मोंगा एकदम से नीचे गिर पड़ा था। बोदे का अचानक भड़क उठना उसकी समझ में नहीं आया था। पहले तो वह सीधे-सीधे चला आ रहा था और बोदा मुकम्मल तौर पर उसके काबू में था। इसके अलावा उसने सीटी की आवाज भी नहीं सुनी थी लेकिन एकाएक उसने बोदे को बिदकते देखा और फिर जब बोदा सरपट हुआ तो मोंगा के लिये उसको सम्भालना मुश्किल हो गया। हालांकि वह एक शानदार सवार था लेकिन जख्मी होने की वजह से उसकी अपनी योग्यतायें दबी हुई थीं। बोदे ने अचानक ही यह तरीका इख्तियार किया था और उसे नीचे गिरा दिया था लेकिन यह शख्स कौन है—मोंगा ने आंखें फाड़-फाड़कर देखा। मद्धिम अन्धेरा और धुन्ध लहरें अब इस हद तक कम हो गयी थीं कि किसी के नक्शे निगार पहचानने में किसी को दिक्कत पेश नहीं आये लेकिन जिस शख्स को उसने अपने सामने देखा उसे देखकर उसे अहसास हो गया कि उसकी आंखें शायद सही तरीके से काम नहीं कर रही हैं। हालांकि अन्धकार अधिक नहीं है लेकिन उसकी आंखों पर जरूर धुन्ध छा गयी है। ऐसा तो हो ही नहीं सकता, जमीन पर लेटे-लेटे उसने दोनों आंखों को मसला और उन्हें अंगूठे और उंगली की मदद से चौड़ाकर सामने खड़े हुए खाके को देखने लगा। फिर उसके हलक से दहशत भरी एक दहाड़ निकली। ठीक उसी समय शोला ने हवा में एक बुलन्द कलाबाजी खायी और वह शख्स बुरी तरह चीखने लगा। उसने ऐसा करतब पहले कभी नहीं देखा था और यह किसी इन्सान का काम हो भी नहीं सकता था। शोला ने हवा में तीन कलाबाजियां खाईं और फिर बोदे की पुश्त पर आ रहा। बोदे की पुश्त पर वह बैठा नहीं, तनकर खड़ा था और बोदा मोंगा के ऊपर से टाप
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Additional information
Book Title | हाहाकार : Hahakar by Deva Thakur |
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Isbn No | |
No of Pages | 294 |
Country Of Orign | India |
Year of Publication | |
Language | |
Genres | |
Author | |
Age | |
Publisher Name | Ravi Pocket Books |
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