गुण्डों की सरकार
राकेश पाठक
बुलेटप्रूफ शीशे की केबिन में काले लबादे वाले रहस्यमयी बिज्जू के हाजिर होने पर हॉल रूम में मौजूद सभी खूंखार सूरत वाले शख्स उठे...उन्होंने सिर झुकाकर अण्डरवर्ल्ड के बादशाह का अभिवादन किया।
खालिस सोने से बने सिंहासन पर विराजमान होकर उसने हाथ का इशारा करके सभी को बिठा लिया...फिर खून के लोथड़े जैसे सुर्ख आंखों से उसने सभी को बारी-बारी से घूरा।
“आज से तीन महीने पहले हमारे एजेण्ट ने कर्नल विनय सिन्हा को इस बात के वास्ते राजी कर लिया था कि हमें त्रिनगर में बन रहे, अण्डर ग्राउण्ड मिलिट्री कैण्ट का नक्शा उपलब्ध कराएगा। हमारे एजेण्ट ने ये सौदा एक करोड़ रुपये में किया था। कर्नल विनय सिन्हा ने किसी जुगाड़ से कैण्ट का नक्शा हासिल भी कर लिया था और हमारे एजेण्ट को फोन भी कर दिया था लेकिन...लेकिन कर्नल अपनी बीवी समेत मारा गया और वो फाइल भी हमें नहीं मिल पाई। कर्नल की बहन अपने भाई और भाभी के अन्तिम संस्कार होने के बाद से ही गायब है। हमारा ऐसा आइडिया है कि वो नक्शे वाली फाइल कर्नल विनय सिन्हा की बहन माधवी ही अपने साथ ले भागी थी। जबकि वो फाइल हमें हर कीमत पर चाहिए, क्योंकि उस फाईल अथवा उसमें जो नक्शा व अन्य जानकारियां होंउनका सौदा हम पड़ोसी देश के साथ कर चुके हैं। जिसके बदले हमें दस करोड़ रूपया मिलना है।”
क्षणभर की चुप्पी!
पिन ड्रॉप साइलेंस...जैसा माहौल!
फिर रहस्यमयी बिज्जू भर्राई-सी आवाज में कहने लगा—“कितने शर्म की बात है कि तुम लोग आज तक माधवी का पता नहीं निकाल पाए। उस हरामजादी को तलाश करके उससे नक्शे वाली फाइल हासिल नहीं कर पाए। वन वीक...सिर्फ एक हफ्ते का ही टाइम मुकर्रर करते हैं हम। तुम लोगों की जिन्दगी की मियाद हफ्ते भर की बांधी है हमने। माधवी मरे या जिए। हमें वो फाइल चाहिए। वर्ना तुम लोगों को बम के धमाके के साथ उड़ा दिया जायेगा। उठो और जाओ। जिस तरह पानी पर पेट्रोल की आग चारों तरफ फैलती चली जाती है...वैसे ही तुम लोग चारों तरफ फैलकर माधवी की तलाश करो। फौरन ही ये मालूम करो कि कर्नल विनय सिन्हा की बहन माधवी कहां है?”
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माउण्ट आइस!
एक पहाड़ी व पर्यटन स्थल!
स्वर्ग से उतरी अप्सरा जैसी हसीना माधवी अपनी हमउम्र युवती विनीता के साथ 'सिन्हा फार्म हाउस' में दाखिल हुई।
नाम को ही फार्म हाउस, वर्ना आलीशान कोठी थी...जिसमें राजसी सुख-सुविधा उपलब्ध थी। माधवी ने अपने एक रिश्तेदार से उस फार्म हाउस को कौड़ियों के मोल खरीदा था और ढाई महीने से वहीं रह रही थी।
वो बेडरूम में दाखिल होकर बेड की तरफ बढ़ ही रही थी कि फोन की घण्टी ने उसके कदमों को ठिठका दिया।
ढाई महीनों में पहली मर्तबा फोन बजा था।
किसका हो सकता है?
“हैलो, यस...माधवी सिन्हा स्पीकिंग! क्षमा कीजिए, मैंने आपकी आवाज पहचानी नहीं है।”
“पहचानोगी तो तब न बेबी...जब तुम हमें जानती होगी। हमें अण्डरवर्ल्ड के लोग बिज्जू के नाम से जानते हैं।”
उस भर्राई-सी आवाज ने माधवी को इतना चिहुंकाया कि मानो समूचे जिस्म में चार सौ चालीस वोल्ट का करन्ट प्रवाहित हो गया था। रिसीवर हाथ से छूट गया, जैसे हवा में ही विनीता ने कैच करके उसकी तरफ बढ़ाया।
उसने कम्पकंपाते हाथ से रिसीवर को यों ही थामा कि मानो किसी नाग का फन पकड़ा था और पसीने से लथपथ कान पर लगाया।
“हमारा नाम सुनते ही तेरे होश उड़ गये न बेबी!” रिसीवर के ईयरफोन से मानो किसी विषधर की फुंफकार खारिज हुई थी—“तूने तो सोचा भी नहीं होगा कि हम तेरी तलाश कर लेंगे लेकिन तुझे नहीं मालूम कि बिज्जू के हाथ कितने लम्बे हैं बेबी! पाताल में छिपे दुश्मन की गर्दन भी दबोच लेते हैं हमारे लम्बे हाथ। वो फाइल कहां है?”
“फ...फाइल...!” उसने गिरने जा रहे रिसीवर को सम्भाला और थूक-सा निकलते हुए बोली—“कौन-सी फाइल?”
“होशियार बनकर मत दिखला हरामजादी! तू जानती और समझती है कि हम किस फाइल की बात कर रहे हैं?”
माधवी को यूं लगा कि उसका दिल थैली में बन्द किसी शैतान मेंढक की तरह ही उछल-कूद कर रहा था, वो फूलती-पिचकती सांसों के साथ बोली—“मेरे...मेरे पास ऐसी कोई फाइल नहीं है...बि...बिज्जू! मैंने किसी फाइल का जिक्र भी नहीं सुना है...।”
“यानी घी-सी धी उंगली से नहीं निकलेगा? हमें घी निकालने के वास्ते उंगली को मोड़ना ही पड़ेगा...।” दूसरी तरफ से बिज्जू की आवाज मानो कहर बरपा रही थी—“बहुत पछताएगी तू छोकरी! अगर हमने तुझे उठवा लिया तो तेरी दुर्गति हो जायेगी। हमारे आदमी माउण्ट आइस पहुंच चुके हैं। उन्होंने अपना जाल तेरे इर्द-गिर्द बुन दिया है। सिर्फ तीन घण्टे हैं तेरे पास। तीन घण्टे के भीतर उस फाइल को लेकर नेशनल पार्क पहुंचा और महात्मा गांधी के स्टेच्यू के पास रखकर चुपचाप वापस लौट जा। वर्ना हमारे आदमी तेरे को उठा लेंगे और तुझे ऐसा टॉर्चर करेंगे कि तेरे पुरखों की रूह भी कांप उठेगी।”
इसी के साथ दूसरी तरफ से फोन कट गया।
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“किसका फोन था माधवी?”
“ऐसे ही...एक जानकार का था।”
“जानकार का...?” विनीता, माधवी की डरी-सहमी-सी आंखों में झांकते हुए बोली—“झूठ भी बोलना नहीं आता तुझे! ऐसा लगता था कि फोन पर यमराज से बात कर रही थी तू! तेरी घबराहट देखने लायक थी। फाइल का भी जिक्र हुआ था। शायद वो फाइल की बाबत ही बात कर रहा था। तूने एक बार फाइल का जिक्र किया था। बोली थी कि फाइल का पता तेरी बुआ को मालूम है। अगर तुझे कुछ हो जाये तो बुआ से फाइल लेकर मिलिट्री किसी बड़े अफसर के पास पहुंचा दूं। आखिर ये फाइल का चक्कर क्या है माधवी? तेरी चिन्ता और घबराहट एक बात की चुगली कर रही है कि तू किसी लफड़े में पड़ी हुई है। मुझे हमराज बना ले अपनी। शायद मैं तेरे किसी काम आ सकूं?”
बेड के किनारे बैठकर हथेलियों को परस्पर रगड़ रही माधवी बेबस भाव से निचला होंठ चबाने लगी। उसकी आंखों में भरे असमंजस के भाव इस बात को जाहिर करते थे कि वो विनीता को अपना हमराज बनाने का कोई फैसला नहीं कर पा रही थी।
विनीता ने ठण्डी आह भरी, तथा बोली—“मैं कॉफी बना लाती हूं...तब तक तुम फैसला कर लो डार्लिंग!”
विनीता पांच मिनट में दो कप कॉफी बना लाई थी, तब तक माधवी फैसला कर चुकी थी।
“फौरन ही पैकिंग करनी है हमें विनीता!”
“किस वास्ते?”
“यहां से जाने को।”
“क्या मतलब?” विनीता सस्पेंस में फंसी हुई बोली—“कहां जाना है माधवी?”
“यहां से दूर...कहीं भी।” तुम मेरे साथ चलना चाहो तो चलो। वर्ना अपने घर लौट जाओ। शायद तुम्हारी जुदाई की पीड़ा से तुम्हारे पेरेन्ट्स ने अपनी गलती का एहसास कर लिया हो और वो शायद उस बूढ़े को तुम्हारा पति बनाने की जिद न करें।”
“मैं घर वापस नहीं लौटूंगी माधवी...!” वो भभकते हुए बोली—“मेरे माइजर पेरेन्ट्स का कोई भरोसा नहीं, लेकिन तुमने अचानक ही यहां से जाने का इमीडिएटली प्रोग्राम क्यों बनाया है? क्या उस फाइल के वास्ते?”
“हां।” कॉफी की घूंट भरने के बाद माधवी धीर-गम्भीर होकर बोली—“काश कि मैं तुम्हें सब कुछ बता सकती, लेकिन...नहीं, मैं मजबूर हूं। इतना ही समझ लो कि उस फाइल में मिलिट्री के कुछ राज हैं...जिन्हें एक देशद्रोही हड़पना चाहता है। उस रहस्यमयी शख्सियत का नाम है बिज्जू। उसने मुझे तलाश लिया है। अगर मैं उसके हत्थे चढ़ गयी तो अनर्थ हो...?”
“अनर्थ तो होना ही है बेबी...!”
माधवी व विनीता के हलक से संयुक्त रूप से घुटी-घुटी-सी चीख उबल पड़ी तथा हाथों से कॉफी के प्याले भी छूटकर फर्श पर लुढ़क गये।
दोनों खौफजदा आंखों से रिवॉल्वरधारी नकाबपोशों को घूरने लगीं, जिनकी तादाद पांच से कम नहीं थी।
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