गोली तेरे नाम की
सुनील प्रभाकर
“उफ! यह तुमने क्या कर डाला आकाश... मेरा समूचा जिस्म जलने लगा है...सांसें दहकती जा रही हैं...पलकें भारी हो रही हैं...।”—
“इसे प्यार कहते हैं जानेमन!” आकाश नाम का वह हैण्डसम युवक उस सुन्दर नवयौवना के होंठों को चूमता हुआ बोला—“आज मैं तुझे अपने प्यार की चाशनी में डुबोकर, मस्ती की तरंगों से सराबोर कर दूंगा लीजा।”
“ओह...!” लीजा के होंठों से थरथराता स्वर निकला—वह सिसकारी-सी भरकर आकाश के सीने से लिपटती चली गयी—“मसल डालो जानम—रंग डालो मेरा अंग-अंग, मुझे अपनी बांहों में भरकर चूर-चूर कर डालो...।”
“ह-हां...मैं तुम्हें आज भरपूर प्यार दूंगा।” थरथराते लहजे में बोलता हुआ आकाश उसके होंठों व उभारों को चूमने लगा।
उसके हाथ तीव्रता से लीजा के टॉप के हुक खोलने के बाद पैन्ट की जिप व हुकों में उलझे हुए थे।
लीजा भी मदहोश होकर उसके सीने व होंठों को चूम रही थी—अपने होंठ रगड़ रही थी, साथ ही उसकी लम्बी सुडौल उंगलियां तीव्रता से आकाश की शर्ट के बटन खोल रही थीं।
थोड़ी देर बाद उन दोनों के वस्त्र उनसे थोड़े से फासले पर ही दूसरी चट्टान पर पड़े मारे शर्म के एक-दूसरे में सिमटते जा रहे थे।
'वर्सोवा बीच' पर सुनसान क्षेत्र की उस चट्टान से टकराती समुद्र की तीव्र लहरें, वहां गूंजती लीजा व आकाश की मादक तथा गर्म सांसों के साथ मिलकर वातावरण को बेहद रोमांटिक बना रही थीं।
वासना का ज्वर अपने चरम पर पहुंच चुका था।
वे दोनों एकदम निर्वस्त्र होकर एक-दूसरे के अंग-प्रत्यंग को चूम रहे थे और एक-दूसरे में समा जाने के लिए आतुर हो रहे थे।
“आह...!” लीजा आकाश को अपने ऊपर खींचकर मदहोश लहजे में बड़बड़ाई—“और मत तड़पाओ मेरे राजा...मैं झुलस रही हूं...मेरा समूचा वजूद अंगारा बनता जा रहा है...उफ्...अपने प्यार की तूफानी बारिश से मेरे अन्दर धधकते अंगारों को ठण्डी राख बना दो...!” उसकी पलके बन्द हो चली थीं।
“ह...हां।” आकाश उसके उभारों पर झुकता हुआ बड़बड़ाया—“बस थोड़ा-सा सब्र करो...!”
“धड़ाक।”
उसी क्षण वह किसी फुटबॉल की भांति उछला और धड़ाम से चट्टान पर गिरा—उसके होंठों से घुटी-घुटी सी चीख निकल पड़ी।
हड़बड़ाकर लीजा ने अपनी आंखें खोलीं—सामने का दृश्य देखते ही उसकी आंखें मारे आतंक के फट पड़ीं। चीख हलक से जुबान तक आते-आते बीच में ही दम तोड़ गयी।
बौखलाकर आकाश खड़ा हुआ तो उसकी भी घिग्घी बंध गयी। पलभर पूर्व का रोमांटिक मूड फौरन हवा हो गया।
एकाएक मुम्बई के 'वर्सोवा बीच' का वह इलाका आतंक व भय की सिहरन से बढ़ता चला गया।
उन दोनों की सांसें जहां-की-तहां अटकी रह गयीं।
¶¶
चट्टान पर उन दोनों के ठीक सामने गोरिल्ले जैसे रूप रंग व आकार का आठ फीट लम्बा, विशाल प्राणी खड़ा था।
उसकी लाल सुर्ख आंखे भयंकर चेहरे को और भी खूंखार बना रही थीं। उसने एक सुलगती निगाह थरथर कांपते नग्न खड़े भयाक्रांत आकाश पर डाली, फिर लीजा की तरफ घूमा।
नीचे पड़ी लीजा का वासना का ज्वार तो कब का झाग की तरह बैठकर वर्ष की भांति जम चुका था।
दिल सुपरफास्ट ट्रेन की स्पीड पकड़ कर पसलियों को तोड़ने का प्रयास करने लगा था।
उस भयानक गोरिल्ले ने अपने दाएं पैर की ठोकर नीचे पड़ी लीजा की कमर में ठोकी।
गुब्बारे की भांति लीजा का शरीर हवा में उछला और इससे पूर्व कि वह दोबारा नीचे गिरता, उस गोरिल्ले ने उसे अपने लम्बे व विशाल पंजे में दबोचकर कंधे पर डाल लिया।
¶¶
“न-नहीं!” आकाश के हलक से घुटी-घुटी चीख निकल गयी।
“मूर्ख।” वह गोरिल्ला दहाड़ा—“रावण का हुक्म ना मानकर तूने अपनी व इस हसीना की जिन्दगी दांव पर लगा दी—अब मैं इसे ले जा रहा हूं—मेरे जैसे ही दर्जनभर लोग तेरी इस हसीना की आग बुझाएंगे—मौसमी की तरह निचोड़कर पी जाएंगे हम इसे...।”
“नहीं...नहीं रावण...त...तुम ऐसा नहीं करोगे।” भय से थरथर कांपता आकाश अपने दोनों हाथ जोड़कर गिड़गिड़ा उठा।
“त...तुम...ज...जो भी चाहोगे...आ...आकाश कर देगा।” लीजा किसी प्रकार गिड़गिड़ाई—“प...प्लीज...भगवान के लिए मुझ पर रहम...।”
“नहीं।” खूंखार स्वर में गरजा वह गोरिल्ला—“रावण...जुर्म का पुजारी है। 'रहम' नाम का शब्द उसके शब्दकोश में नहीं है।”
“म...मुझे एक मौका दे...दो, रावण...म...मैं...।”
“तुझे मौका मिला था बेवकूफ लड़के—तूने उसे खो दिया—अब कोई मौका नहीं मिलेगा—तेरी इस कुतिया के चिथड़े हुई लाश तेरे पास शाम तक पहुंचा दी जाएगी।”
“क्...क्याऽऽ?” बुरी तरह से तडपा आकाश—स्वयं को संयत करता हुआ वह चीख पड़ा—“म...मैं तुम्हें ऐसा नहीं करने दूंगा रावण...।”
“हा...हा...हा...कौन रोकेगा मुझे?”
“म...मैं रोकूंगा...अपने जीते जी मैं अपनी प्रेमिका को तेरी हवस और दरिंदगी का शिकार नहीं बनने दूंगा।”
आकाश के जिस्म में एकाएक बिजली-सी भरने लगी—उस गोरिल्ले के भय का खौफ नफरत और खूंखारता में तब्दील होता चला गया।
गोरिल्ले की सुर्ख आंखों में रक्त निचुड़ आया, ऐसा लगने लगा जैसे उसकी आंखों से खून टपकने वाला है—अपने भद्दे मुख से भयंकर गुर्राहट निकालता हुआ वह आकाश की तरफ बढ़ा।
अचानक ही आकाश उसकी तरफ उछला...परन्तु अगले ही पल वह 'धप्प' से अपने स्थान पर पूर्ववत् अपने पैरों पर खड़ा था।
उसके चेहरे पर आतंक की मकड़ी ने तेजी से अपना जाला बुन डाला—आंखें फैलकर कनपटी से जा मिली थीं।
वह चाहकर भी बोल नहीं पा रहा था।
एकाएक उसकी खोपड़ी गर्दन समेत धड़ के ऊपर घूमने लगी। वह पूरी ताकत से चीख पड़ा।
लीजा ने गोरिल्ले के कन्धे पर पड़े-पड़े आकाश की खोपड़ी को पाटी की भांति घूमते देखा तो चेहरा पीला जर्द पड़ता चला गया—चीख हलक में ही घुट गयी और वह घुटर-घुटर करने लगी।
सहसा आकाश का सिर, गर्दन समेत हवा में उछला और छपाक से समुद्र में जा गिरा।
कटी हुई गर्दन से रक्त का फव्वारा तीव्रता से आसमान की तरफ उछला और दूर-दूर तक चट्टानों पर फैल गया।
इससे पूर्व कि आकाश का खून से लथपथ धड़ लहराकर समुद्र में गिरता, चीखने का असफल प्रयास करती हुई लीजा भय से जड़ होती चली गयी और उसी क्षण दिल मारे खौफ के फट गया।
नथुनों से व मुख से खून की पिचकारी निकली और एक जोरदार हिचकी के साथ ही उसकी आंखें पथरा गयीं।
उस गोरिल्ले ने हिकारत से अपने कन्धे पर पड़ी मृत लीजा को घूरा, फिर अपने पंजे में पकड़कर समुद्र की तरफ उछाल दिया।
ठीक तभी आकाश की सिर कटी लाश भी समुद्र की तरफ लुढ़क गयी।
छपाक-का तीव्र शोर लहरों की भयंकर आवाज में दबकर रह गया और थोड़ी देर बाद ही सब शांत हो गया।
¶¶
“नहीं!” एकाएक बेड से चार फीट ऊंचा उछला आकाश। उसकी तीव्र चीख से समूची इमारत की दीवारें थरथरा उठीं।
“क...क्या हुआ?” पास ही नींद में बेसुध पड़ी लीजा हड़बड़ा कर उठी। उसने आकाश की तरफ देखा।
वह जोरों से चौंकी। बदहवास-से बैठे इधर-उधर देखते आकाश को उलझनपूर्ण आंखों से देखते हुए हड़बड़ाई-सी बोली—“क-क्या बात है आकाश?”
“ऐं!” आकाश यूं चौंका जैसे उसकी आंखों के सामने हिमालय पर्वत आकाश में तैर गया हो।
“अरे...तुम तो बुरी तरह पसीने से तरबतर हो।” लीजा ने अपनी कोमल दूधिया कलाई उसके माथे पर रखी—“और...और तुम तो कांप भी रहे हो—क्या हुआ आकाश, कुछ बताओ तो...?”
आकाश जैसे आसमान से गिरा।
उसने जल्दी-जल्दी अपने चारों तरफ देखा, जब वह अपनी स्थिति से पूरी तरह सन्तुष्ट हो गया कि वह और लीजा सही सलामत हैं तो उसके होंठों से गहरी सांस निकल गयी।
“थैंक गॉड!” अपना चेहरा दोनों हाथों में लेकर वह बुदबुदा उठा।
पागलों की भांति आंखें फाड़े देखती रह गयी लीजा उस पच्चीस वर्षीय हैण्डसम नवयुवक को—जिसका चेहरा-मोहरा कुछ-कुछ फिल्म स्टार रितिक रोशन से मिलता-जुलता था।
“क्या हुआ था आकाश—कुछ बताओ तो यार—मारे सस्पेंस के मेरा दम निकला जा रहा है।”
आकाश ने अपनी नशीली आंखों से लीजा के बदन पर पड़े, पारदर्शी गाउन के अन्दर से झांकते दूधिया व सुडौल बदन को निहारा।
वह बाईस वर्षीय नीली आंखों वाली सुन्दरी किसी फिल्मी तारिका से कम नहीं थी।
एकाएक उसने लीजा का गोल, मासूम चेहरा अपनी हथेलियों में लिया और अपने होंठ उसके होंठों पर रख दिए।
फिर वह स्वयं पर काबू पाते हुए बोला—“बड़ा भयानक सपना देखा था डार्लिंग।”
“स...सपना...तुम सपना देखकर उछले थे?”
“हां—बहुत भयंकर था।”
“ओह गॉड!” लीजा ने अपनी सुडौल बांहें आकाश से गले में डाल दीं—वह उसके सीने से लिपटती हुई बोली—“मैं तो डर ही गयी थी आकाश...शायद तुम नहीं जानते...तुम्हारी चीख से मेरा क्या हाल हो गया था।”
“जानता हूं लीजा...मगर वह सपना ही...।”
“अब छोड़ो उसे—सपने तो सपने ही होते हैं...तुम ठीक हो—मेरे लिए यही सब कुछ है।”
आकाश ने कसकर उसे अपने बांहों के पाश में जकड़ लिया और उसके माथे पर प्यारा-सा चुम्बन लेकर बेड से नीचे उतर गया।
कमरे में जलते दूधिया बल्बों के प्रकाश में भी आकाश का चेहरा तमतमाकर सुर्ख हुआ नजर आ रहा था।
“क-क्या हुआ—बेड से क्यों उतरे?”
आकाश ने एक सरसरी निगाह वॉल क्लॉक पर डाली।
“सवेरे के पांच बज रहे हैं डार्लिंग—मुझे साढ़े छः बजे किसी से मिलना है—बहुत अर्जेंट काम है।”
“ओह!” लीजा के सुन्दर मुखड़े पर गंभीरता लौट आई।
“अरे तुम सीरियस होकर क्या सोचने लगीं?” आकाश कपड़े पहनता हुआ चौंकता-सा बोला।
“आकाश...तुम तो जानते हो...तुम्हारे सिवाय मेरा इस दुनिया में कोई नहीं है।” लीजा बेहद रुआंसी-सी होकर बोली।
आकाश पैन्ट पहनने के बाद शर्ट के कॉलर सही कर रहा था कि उसने ठिठककर लीजा की तरफ देखा—उसके पास पहुंचकर वह बेड पर बैठ गया।
धीरे से लीजा की ठोड़ी को अपनी हथेली से ऊपर उठाकर उसकी आंखों में झांकते हुए वह बोला—“लीजा...मैं जानता हूं कि तुम्हारे मां-बाप को रावण ने मौत के घाट उतार दिया। इस बात को सारा इन्द्रनगर जानता है कि रावण ने तुम्हारे मां-बाप को बेदर्दी से सरेआम कत्ल किया था, तुम इसलिए बच गयी थीं क्योंकि उस समय तुम कॉलेज हॉस्टल में रह रही थीं।”
“आकाश...अब मेरा सहारा तुम ही हो।” सिसक पड़ी लीजा।
“तुम तो एकदम इमोशनल होने लगीं—अरे...तुम्हारे सिवाय भला मेरा ही कौन बैठा है दुनिया में...लीजा तुम मेरा प्यार ही नहीं हो, मेरी जिन्दगी भी हो...मेरे जीवन का लक्ष्य तुम्हारी वही कसम है जो तुमने मुझे दी है।”
लीजा ने अपने आंसू पौंछकर आकाश का चेहरा देखा—“हां आकाश, मैं तुमसे उसी दिन शादी करूंगी जिस दिन मेरे मां-बाप का हत्यारा मेरे हाथों अपने अंजाम को पहुंचेगा।”
“रिलैक्स लीजा...मैं तुम्हारी इस शर्त को जरूर पूरी करूंगा।” बेड से उठता हुआ आकाश बोला।
“त- तुम शाम तक लौट आओगे ना?”
“शायद...लौट भी आऊं...वैसे जब भी लौटूंगा आना तो यहीं पड़ेगा...इसके सिवाय मेरा दूसरा घर भी तो नहीं है।”
“मगर तुम मिलने किससे जा रहे हो?”
लीजा के प्रश्न पर आकाश हौले-से सकपकाया—उसकी आंखों के सामने रावण का भयंकर चेहरा घूम गया।
पूरी तरह से कांप उठा—पूरा जिस्म पसीने से भरभरा उठा।
आंखों में खौफ का कत्थक प्रारम्भ हो गया।
“न-नहीं...म-मैं सब-कुछ करूंगा...उस रावण की गुलामी भी करूंगा...म...मगर...अपने प्यार, अपनी लीजा पर आंच नहीं आने दूंगा।” वह होंठों ही होंठों में बुदबुदा उठा।
“अरे, तुम फिर से कांपने लगे—तुम्हारा चेहरा पसीने से भर गया है।”
“ओह!” आकाश की तन्द्रा भंग हुई। झट से उसने रुमाल निकाला और अपना चेहरा साफ करते हुए बोला—“लौटकर बताऊंगा...मैं किससे और क्यों मिलने जा रहा हूं।”
“मगर...।”
“डोन्ट आस्क क्वेश्चन माय स्वीट डार्लिंग—मैं जल्दी आकर सब बताऊंगा।”
कहते ही आकाश कमरे का दरवाजा खोलकर बाहर निकला और थोड़ी देर बाद वह मोटरसाइकिल पर सवार होकर उस शानदार इमारत से बाहर निकल गया था।
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