घूंघट में छिपा कातिल
सुनील प्रभाकर
“तू मेरे को जान से मारेगी?”
“हां, मैं तेरे को जान से मार डालूंगी निक्कू...।” फटे गाउन से झांकती नग्नता को नजरअन्दाज करके मारिया साग काटने वाले छुरे को हवा में लहराते हुए गुर्राई—“औरत अपनी इज्जत बचाने के वास्ते कुछ भी कर गुजरती है। अगर मरना नहीं चाहता है तो यहां से दफा हो जा कमीने।”
“निक्कू इतना बेवकूफ नहीं मेरी जानेमन...।” गन्दी व भद्दी मुस्कुराहट के साथ मारिया की तरफ रेंगते हुए निक्कू बोला—“जो इस गोल्डन चांस को हाथ से जाने दे। सालों से तेरी मचलती जवानी को दूर से ही देखकर खून जलाता रहा हूं अपना! तेरे को पटाने के लिए बहुतेरी कोशिश की, लेकिन तू मेरे चक्कर में नहीं फंसी। मेरे इशारों के बदले में नाक-मुंह सिकोड़कर मेरी मोहब्बत के गाल पर थप्पड़-सा मारती रही। आज मेरे को चांस मिला है। बस्ती वाले चर्च में गॉड की प्रेयर करने गए हैं। इधर हम दोनों मिलकर बड़े दिन की खुशी मनाएंगे।”
“वहीं रुक जा निक्कू।”
“तेरी कलाई कांप रही है। छुरे का बोझ नहीं सम्भाल पा रही है। क्या खाक तू मेरे को किल करेगी।”
निक्कू ने बाहें फैलाकर मारिया को दबोचना चाहा।
मारिया का छुरे वाला हाथ हरकत में आया।
खचाकऽऽऽऽ!
मूठ तक फल निक्कू के पेट में पेवस्त!
“आ...आऽऽऽऽ!”
दोनों हाथों से छुरे की मूठ को थामे हुए धुत्त शराबी की मानिन्द लड़खड़ाया वो।
चेहरे पर पीड़ा और आंखों में अविश्वास के भाव तैरे।
फिर वो रेत का बोरा-सा फर्श पर ढह गया।
आलुओं की मानिन्द बाहर को उबल आई आंखें थर-थर कांपती मारिया को घूर रही थीं।
“न...नहींऽऽऽऽ।” मारिया के हलक से घुटी-घुटी-सी चीख उबल पड़ी।
छुरा हाथ से छूट गया।
इस एहसास ने कि उसने कत्ल कर दिया है, उसके होशो-हवास पर खौफ की मोटी परत चढ़ा दी।
दो सुर्ख आंखें खिड़की की झिर्री से भीतर झांक रहीं थीं।
उन आंखों में अगर कुछ था तो सिर्फ रहस्यमयी भाव और साजिशभरी चमक।
¶¶
“ओ...माई गॉड...।” हथेलियों से चेहरा ढांपकर वो सुबह उठी—“ये मेरे से क्या हो गया? मेरे को माफ कर देना गॉड। मेरे हाथों से म... मर्डर हो गया है।”
तभी किसी ने सरगोशी की—
“गॉड भले ही तेरे को माफ कर दे, लेकिन...।”
“ले-लेकिन?”
“कानून तेरे को माफ नहीं करेगा। कानून तेरे को फांसी के फंदे पर...।”
“न...नहीं...।” वो पसीने से लथपथ हो चली।
“ऐसा ही होगा मारिया।” उसका दिमाग फुसफुसाया—“कानून किसी को नहीं बख्शता। ये सोच कि तेरे फांसी चढ़ जाने पर तेरी मासूम बेटी का क्या होगा? उसका बाप तो पहले ही खुदा को प्यारा हो गया है। कल को वो जवान भी होगी। औरत के जिस्म के भूखे भेड़िए उसे नोचकर...।”
“न- नहीं...।” बेटी के वीभत्स भविष्य की कल्पना मात्र से उसका अस्तित्व हिल उठा—“ऐसा नहीं होगा। मैंने अपनी अस्मत बचाने को निक्कू का मर्डर किया है।”
“निक्कू... शिरिल का साला था और शिरिल साहब नगरपालिका के चेयरमैन हैं। पुलिस उनके अण्डर में है। वो कोर्ट में तेरी एक नहीं चलने देंगे। पुलिस तेरे खिलाफ झूठा केस तैयार करेगी। वकील भी तेरे को गुनाहगार तथा निक्कू को बेगुनाह साबित करने के लिए झूठे गवाह व सबूत पेश कर देगा। तेरे पास तो इतना पैसा भी नहीं कि तू कोई अच्छा वकील कर सके।”
“ओ गॉड...।” ठण्डी आह के साथ वो बिस्तर पर गिरकर हांफने लगी।
¶¶
“नमस्ते, सेठ जी।”
दोनों हाथ जोड़े हुए शंकर कमरे में दाखिल हुआ।
“आओ शंकर।” शराब से भरा हुआ गिलास थामे हुए सेठ बोकाड़िया ने अपने सिक्योरिटी गार्ड शंकर को घूरा—“तुमने। महीने का एडवांस लेने की एप्लीकेशन दी थी। ये जानते हुए भी कि हम किसी भी नौकर को एडवांस नहीं देते?”
“मुझे मालूम है सेठ जी।” शंकर हाथों को जोड़े हुए बोला—“लेकिन मेरी मजबूरी से वाकिफ होकर शायद आप अपने इस उसूल को तोड़ डालें।”
“अच्छा हम भी तो सुनें तुम्हारी वो मजबूरी।”
“आप तो जानते ही हैं कि मेरे दोस्त पीटर कि पिछले साल ट्रक एक्सीडेण्ट में मौत हुई थी। उसकी बीवी मारिया को आपने ही साहनी ट्रांसपोर्ट में नौकरी पर लगवाया था। उस बेचारी की नौकरी छूट गई है...।”
“कैसे?”
“वो... साहनी साहब की नीयत मारिया पर खराब हो गई थी। उन्होंने काम के बहाने से उसे रात को अपनी कोठी पर बुलाया। मारिया ये सोचकर चली गयी कि घर में उनके बीवी बच्चे भी होंगे...।”
“लेकिन वे नहीं होंगे। हम जानते हैं इस साले साहनी को। औरत के मामले में तो वो लार टपकाऊ कुत्ता है। उसने जानबूझकर बीवी-बच्चों को बाहर भेज दिया होगा।”
“जी... जी ऐसा ही था सेठ जी।” बोकाड़िया ने दिलचस्पी लेते देख शंकर का जोश दूना हो गया—“साहनी साहब ने पहले तो मारिया को पटाने की कोशिश की लेकिन मारिया अपने कैरेक्टर की पक्की औरत है। वो किसी लालच में पड़कर अपनी अस्मत नहीं लुटाने वाली थी। साहनी साहब को थप्पड़ मारा और साहनी साहब ने उसे नौकरी से निकाल दिया। मारिया इस वक्त तंगी में है सेठ जी। घर का राशन खत्म हो चुका है। उसकी बेटी की स्कूल फीस भी नहीं गई। पता नहीं कि उसे कब नौकरी मिले। उसकी मदद करना मेरा फर्ज बनता है। अगर आप अपना उसूल तोड़कर मुझे एडवांस दे देंगे तो मारिया की दुआ आपको मिलेगी।”
“हुम्म...।” सेठ बोकाड़िया ने गैण्डे जैसी मोटी गर्दन को हिलाते हुए कहा—“तुम किसी दूसरे का भला करने के लिए एडवांस चाहते हो, इसलिए हम अपना उसूल तोड़ रहे हैं शंकर।”
“शु... शुक्रिया सेठ जी...।” शंकर का चेहरा खिल उठा।
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“मम्मी, आप मेरे साथ चर्च क्यों नहीं गई थी?”
“बस, मन नहीं किया।” रोजी के सिर पर ममताभरा हाथ फेरते हुए मारिया बोली—“मेरी तबीयत भी ठीक नहीं थी।”
“आप झूठ बोलती हैं मम्मी...।” रोजी ने मम्मी की आंखों में झांकने के लिए सिर गोद से नीचे लटका दिया—“मुझे पता है कि आप चर्च क्यों नहीं गईं थीं।”
“क... क्या जानती है तू?” मारिया की धड़कनें बढ़ चलीं।
“पहले आप डैड के साथ चर्च जाया करती थी...।” मासूमियत का पुट था रोजी की आवाज में—“अब डैडी नहीं रहे। डेड के बिना चर्च जाना आपको अच्छा नहीं लगता। क्यों? यही बात है न मम्मी?”
“प-पगली...।” प्यार भरी चपत की आड़ में उसने अपनी मनोदशा छिपाने की कोशिश की।
जबकि हकीकत यही थी।
पीटर की मौत के बाद उसने चर्च जाना छोड़ दिया था—उसे गॉड से पीटर की मौत की वजह से भारी शिकायत थी।
“खट... खट... खट...।”
बाहर से दरवाजा खटखटाया गया।
“कौन है?”
“पुलिस! दरवाजा खोलो।”
“पु... पुलिस...?”
कलेजा मुंह को आ गया मारिया के।
कपड़ों के भीतर चिपचिपाहट महसूस की उसने।
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