एक गोली तेरे नाम
अजगर
इन्द्रजीत उलझनभरी दृष्टि से उस खतरनाक चिट्ठी को घूरे जा रहा था। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह इस चिट्ठी को वास्तव में खतरनाक समझे या किसी का मजाक।
चिट्ठी जनरल डाक से आयी थी। लिफाफे पर भेजने वाले का कोई अता-पता नहीं था। अन्दर एक लेटरहेड था, जिस पर लिखा था—
“प्रोफेसर शास्त्री जिस ‘सुपर पावर रिसर्च के आविष्कारों पर काम कर रहा है, उनके फार्मूले एवं ब्लूप्रिन्ट मुझे चाहिये। तुम्हें तीन दिन का समय दिया जाता है।”
यमराज
लेटरहेड एकदम सादा था। उसकी इबादत कम्प्यूटर से प्रिन्ट की गई थी। उसके बीच में एक भयानक चेहरे का वाटरमार्क बना हुआ था।
इन्द्रजीत कुछ देर तक सोचता रहा, फिर उसने वह चिट्ठी उठायी और केबिन से बाहर निकल गया। गलियारों के लम्बे सफर को तय करता हुआ वह इमारत के पूर्व की ओर बने प्रोफेसर रामनाथ शास्त्री के पर्सनल केबिन का दरवाजा खोलकर अन्दर चला गया।
“आओ इन्द्रजीत।” वृद्ध वैज्ञानिक प्रोफेसर शास्त्री ने उसे देखते हुए कहा—“अभी-अभी मैं तुम्हारे ही बारे में सोच रहा था।”
“जी।” इन्द्रजीत खोये हुए भाव से उनके सामने बैठ गया।
“क्या बात है? तुम कुछ परेशान लगते हो?” शास्त्री ने उसकी ओर देखा। सर!” इन्द्रजीत
“कोई खास बात नहीं है, सर!” इन्द्रजीत ने लापरवाही से कहा—“आप बताइये। आप मेरे बारे में क्या सोच रहे थे?”
“देखो इन्द्रजीत! जिन आविष्कारों पर हम काम कर रहे थे, वह पूरा हो गया है। हमने उनमें अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की है; परन्तु...।”
“परन्तु क्या सर?” इन्द्रजीत चौंका।
“परन्तु ऑफिशियल तौर पर जो रिपोर्ट मैंने सरकार को भेजी है, उसमें लिखा है कि हम इन रिसर्चों में पूरी तरह नाकामयाब रहे।”
“क्या मतलब?” इन्द्रजीत ने हैरत से शास्त्री का मुंह देखा—“आपने झूठी रिपोर्ट भेज दी?”
“हां।”
“मगर क्यों?”
“इसलिये बेटे कि सरकार चाहे अपने देश की हो या किसी दूसरे देश की; उसका इन्सानियत से कुछ लेना-देना नहीं होता। आज तक का इतिहास बताता है कि इन सरकारों ने प्रत्येक वस्तु का उपयोग अपने राजनीतिक और युद्ध सम्बन्धी लाभ के लिये किया है। मैं नहीं चाहता कि मेरे ये नायाब रिसर्च इन निर्मम और क्रूर सरकारों में से किसी के हाथ लगें।”
“फिर इन रिसर्चों का क्या फायदा हुआ?”
“इस पर बाद में विचार करेंगे। इस समय मैं जो कुछ कह रहा हूं, उसे ध्यान से सुनो...। मैंने सभी ऑरिजनल ब्लूप्रिन्ट नष्ट कर दिये हैं। उनकी प्रत्येक बात मेरे दिमाग में सुरक्षित है। मेरा ख्याल है कि तुम भी उनकी प्रत्येक बात को जानते हो...और जब चाहे ब्लूप्रिन्ट बना सकते हो।”
“यस सर।”
“मैंने सरकारी तौर पर नकली ब्लूप्रिन्ट की फाइल भेज दी है। उसकी प्रतिलिपि तुम्हारे पास भेज रहा हूं। रिकार्ड में रख लो और इस तमाम किस्से को भूल जाओ।”
“लेकिन सर...।” इन्द्रजीत ने उत्तेजित भाव में कहा—“हमारी वर्षों की मेहनत...? हमारा कैरियर?”
“इन्द्रजीत बेटे।” शास्त्री ने गम्भीर स्वर में कहा—“तुम जवान हो। अभी तुमने अपनी जिन्दगी शुरु की है। तुम्हारी नजर में कैरियर और ख्याति की बड़ी कीमत है। लेकिन मैं जानता हूं कि इस दुनिया में इसके नाम पर टैलेन्ट को ठगा जाता है। उनकी योग्यता का इस्तेमाल कौन लोग करते हैं? कोई तानाशाह, कोई धार्मिक, सनकी, बुद्धिमान अपराधियों का कोई ऐसा गिरोह, जो राजनीति के नाम पर किसी देश के हुक्मरान बन जाते हैं। घृणा और युद्धों को जन्म देने वाले ये लोग क्या वास्तव में हमारे इन आविष्कारों के लायक हैं?”
“जी, नहीं।” इन्द्रजीत समझ गया कि शास्त्री क्या कहना चाहते हैं। ये सियासी मकसदों के लिए इन आविष्कारों का युद्ध में प्रयोग करने के खिलाफ हैं। उसने कहा—“आपने जैसा कहा है, वैसा ही होगा...। लेकिन सर...आज डाक से एक अजीब चिट्ठी आयी है। जरा इसे देखिये।”
उसने शास्त्री की ओर चिट्ठी बढ़ाई। शास्त्री ने जैसे ही उस चिट्ठी को हाथ में लेकर देखा, उसका चेहरा पीला पड़ गया। वे ऐसे कांपने लगे, जैसे उन्हें जूड़ी बुखार हो गया हो।
“सर...सर!” इन्द्रजीत ने घबराकर पूछा—“क्या हुआ? आपकी तबियत तो ठीक है?”
“सर्वनाश! घोर सर्वनाश!” शास्त्री भयभीत होकर बड़बड़ाये—“बेटे, इन्द्रजीत! मुझे वचन दो कि चाहे आसमान टूट पड़े, पर तुम किसी को भी उन फार्मूलों के बारे में नहीं बताओगे।”
“सवाल ही नहीं उठता।” इन्द्रजीत ने दृढ़ स्वर में कहा—“मैं आपको वचन देता हूं कि मैं इन फार्मूलों को किसी भी दशा में किसी को नहीं बताऊंगा। मुझे माता भवानी की सौगन्ध...।”
“बेटे!” शास्त्री ने दराज खोलकर उसमें कुछ टटोलते हुए कहा—“यमराज से सावधान रहना।”
इसके साथ ही शास्त्री ने दराज से हाथ बाहर निकाला। उसमें रिवॉल्वर चमक रहा था। इन्द्रजीत कुछ समझे, इससे पहले ही शास्त्री ने रिवॉल्वर अपनी कनपटी पर लगाक ट्रेगर दबा दिया। एक धमाके के साथ उनका शरीर कुर्सी पर लुढ़क गया। रिवॉल्वर हाथ से फिसलकर फर्श पर जा गिरा।
इन्द्रजीत बुरी तरह घबरा गया। उसने केबिन का सेफ्टी-बेल बजा दिया। दूसरे ही क्षण उस रिसर्च सेन्टर में चारों ओर खतरे का सायरन गूंजने लगा।
इन्द्रजीत भौंचक्का होकर शास्त्री की लाश को घूरे जा रहा था। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि उन्होंने खुद को क्यों गोली मार ली?
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“हूं।” इन्सपेक्टर देवराज चौहान ने अपनी बड़ी-बड़ी मूछों पर ताव देते हुए कहा—“तो यह है आपकी कहानी...।”
“कहानी!” इन्द्रजीत ने झुंझलाकर कहा—“आपको यह कहानी लगती है?”
“पुलिस को अपने घामड़ समझ लिया है?” चौहान ने व्यंग से उसकी ओर देखा—“मेरा नाम इन्सपेक्टर देवराज चौहान है। मैंने एक-से-एक शातिर मुजरिमों को नानी याद करवा दी है। आप हैं ही क्या चीज!”
“इन्सपेक्टर!” इन्द्रजीत गुर्राया—“तमीज से बात करो। तुम नहीं जानते कि तुम किससे बातें कर रहे हो...।”
“मैं एक मुजरिम से बातें कर रहा हूं।” चौहान ने आंखें लाल करते हुए क्रूर स्वर में कहा—“और मुझे अच्छी तरह मालूम है कि एक मुजरिम से किस तरह बात करनी चाहिए...। अब सीधे-सीधे सच्ची बात बताइये। किस्सा क्या है?”
क्रोध से इन्द्रजीत का सारा शरीर कांपने लगा। इतनी बेइज्जती उसकी कभी नहीं हुई थी। उसने गरजकर कहा—“पता नहीं किस गधे ने तुम्हें पुलिस इन्सपेक्टर बना दिया। तुम्हें बात करने की भी तमीज नहीं, तुम केस क्या इन्वेस्टीगेट करोगे।”
“हम केस इन्वेस्टीगेट नहीं करते...।” चौहान ने अकड़कर कहा—“उसका डिस्पोजल करते हैं। एक महीने में कम-से-कम तीन सौ केस थाने में दर्ज होते हैं। हम किस-किस का इन्वेस्टीगेशन करते फिरेंगे? हम मुजरिम पहले पकड़ते हैं, सबूत बाद में ढूंढते हैं।”
“हे भगवान!” इन्द्रजीत अपने बाल नोंचते हुए बोला—“तुम कहना क्या चाहते हो? प्रोफेसर शास्त्री को मैंने शूट किया है?”
“ऑफकोर्स! मैं शर्त लगाकर कह सकता हूं कि शास्त्री को गोली अपने मारी है। आप कहते हैं कि आपको डाक में एक खतरनाक चिट्ठी मिली। आपने उस चिट्ठी को शास्त्री को दिखाया और शास्त्री ने उस चिट्ठी को देखते ही खुद को गोली मार ली...। ये रही वो चिट्ठी। इस चिट्ठी में किसी यमराज ने आपको हुक्म दिया है कि आप शास्त्री के रिसर्च के ब्लूप्रिन्टों की कॉपी बनाकर रखें। चिट्टी की भाषा बताती है कि ‘यमराज’ नामक इस व्यक्ति से आपकी पहले से साठ-गांठ है। भला कोई अपरिचित व्यक्ति किसी को इस प्रकार आदेश कैसे दे सकता है? अब बताइये कि कौन है, यह यमराज? और आपने शास्त्री को गोली क्यों मारी? क्या वे ब्लूप्रिन्ट की कॉपी बनाने की राह में रुकावट बन गये थे?”
“मैंने शास्त्री को गोली नहीं मारी।” इन्द्रजीत झुंझला उठा।
“उसने खुद ही खुद को गोली मार ली?”
“हां।”
“मगर क्यों? यह चिट्ठी आपके नाम है, इसमें आदेश आपके नाम है, चिट्ठी मिली भी आपको ही पहले, फिर आपने खुद को गोली क्यों नहीं मार ली? शास्त्री ने खुद को गोली क्यों मारी?”
“मुझे नहीं मालूम...। मैं खुद हैरत में हुं। इस चिट्ठी को देखते ही उन्होंने कहा—“बेटे! यमराज से सावधान रहना—और दराज से रिवॉल्वर निकालकर खुद को शूट कर लिया।”
“आपने रोका क्यों नहीं?”
“मैं इसके बारे में सोच ही नहीं सकता था। जब तक बात मेरी समझ में आयी, वह खुद को गोली मार चुके थे।”
“सॉरी मुझे आपके बयान पर यकीन नहीं है। आपको पुलिस स्टेशन ले जाना होगा।”
“इसके लिए तुम्हें डिफेन्स मिनिस्ट्री से आर्डर लेने होंगे।” इन्द्रजीत ने व्यंगात्मक भाव में कहा।
“ले लूंगा...ले लूंगा।” चौहान ने इत्मीनान से कहा—“किसी मुजरिम को गिरफ्तार करने के लिए मैं राष्ट्रपति से भी आर्डर ले लूंगा। फिलहाल तो मैंने आपका बयान नोट कर लिया है...लेकिन...बहुत जल्दी मैं आपसे फिर मिलूंगा...। डिफेंस मिनिस्ट्री के आर्डर के साथ। क्या समझे?”
इन्द्रजीत ने दांत पीसते हुए उसे देखा। इन्सपेक्टर चौहान एबाउट टर्न हुआ और लम्बे-लम्बे डग भरता कमरे से बाहर निकल गया।
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